जैसे-जैसे आर्थिक विकास होता है, प्रौद्योगिकी शक्ति-प्रधान की बजाय कौशल पर अधिक निर्भर होती जाती है, जिससे महिलाओं की कमाई की सम्भावना बढ़ जाती है। इस लेख में, वर्ष 2004-2012 के भारतीय डेटा का विश्लेषण करते हुए यह दिखाया है कि स्त्री-पुरुष अनुपात में कमी के कारण विशेषकर उन क्षेत्रों में जहाँ लिंगानुपात में पूर्वाग्रह अधिक है, महिलाओं के साथ बलात्कार और अभद्र व्यवहार की घटनाएं बढ़ रही हैं। इसके पीछे का मुख्य कारण महिला सशक्तिकरण के खिलाफ़ पुरुषों की प्रतिक्रिया है, वह भी ऐसे परिवेश में जहाँ सामाजिक संस्थाएँ पारम्परिक रूप से पुरुषों का पक्ष लेती रही हैं।
विश्व बैंक (2018) ने महिलाओं और लड़कियों के खिलाफ हिंसा को एक वैश्विक महामारी के रूप में पहचाना है जो न केवल पीड़ितों के लिए विनाशकारी है बल्कि इसकी एक महत्वपूर्ण आर्थिक लागत भी है।1 भारत में महिलाओं और लड़कियों के खिलाफ लगातार हो रही हिंसा एक सामाजिक और नीतिगत चिंता का विषय बनती जा रही है। पिछले साल अगस्त में कोलकाता में हुई एक युवा महिला डॉक्टर की हत्या ने एक बार फिर पूरे देश में शोक और आक्रोश को जन्म दिया है। यह त्रासदी यह सवाल उठाती है कि क्या महिलाओं (जो शिक्षा से मिलने वाले उच्च लाभ और अधिक कमाई की सम्भावना पर प्रतिक्रिया कर रही हैं) के बीच बढ़ती शैक्षिक और करियर की आकांक्षाएं पुरुषों से प्रतिक्रिया को जन्म देती हैं, जो इस घटना को महिलाओं द्वारा पितृसत्तात्मक मानदंडों के अनुसार परिवार में उनके पीढ़ी-दर-पीढ़ी चली आ रही भूमिकाओं के खिलाफ जाने के रूप में देखते हैं।
महिलाओं के खिलाफ अपराध के कारणों की जांच करने वाले आर्थिक शोध ने मुख्य रूप से घरेलू हिंसा पर ध्यान केंद्रित किया है (सेखरी और स्टोरीगार्ड 2014, कूल्स एवं अन्य 2015, एंजेलसी 2008, हिड्रोबो एवं अन्य 2016, अमरल 2017, अमराल और भालोत्रा 2017) अपने हालिया अध्ययन (बंद्योपाध्याय, जोन्स और सुंदरम 2020) में हम दो अलग-अलग प्रकार के अपराधों- घरेलू हिंसा और परिवार के बाहर महिलाओं के खिलाफ अपराध का विश्लेषण करने के लिए एक एकीकृत दृष्टिकोण अपनाते हैं और दोनों प्रकार के अपराधों के प्रेरक के रूप में महिला सशक्तिकरण का प्रस्ताव करते हैं। हम इस बात पर प्रकाश डालते हैं कि महिला सशक्तिकरण इन दो अलग-अलग प्रकार के अपराधों को अलग-अलग तरीके से प्रभावित कर सकता है।
समाज में महिलाओं के खिलाफ अपराध
हमारा तर्क यह है कि स्त्री-पुरुष भेदभाव वाले समाज में, महिला सशक्तीकरण एक शत्रुतापूर्ण प्रतिक्रिया उत्पन्न कर सकता है, जिससे परिवार के बाहर महिलाओं के खिलाफ अपराध बढ़ सकते हैं। इसे 'बैकलैश इफ़ेक्ट' के रूप में जाना जाता है। हमारे ढांचे में, समाज के दो समूह जिन्हें हम "पितृसत्तावादी" और "नारीवादी" कहते हैं, महिलाओं के अधिकारों (या सामाजिक संस्थाओं में लैंगिक पूर्वाग्रह) की मात्रा/विस्तार पर विरोधी प्राथमिकताएँ रखते हैं। प्रौद्योगिकी को आघात देना जो इसे अधिक कौशल-गहन (ताकत-गहन के सापेक्ष) बनाता है, महिलाओं की सापेक्ष उत्पादकता और कमाई की क्षमता को बढ़ाता है (गैलोर और वेइल 1996, रेंडल 2017)। लिंग भेद में यह कमी नारीवादियों को महिलाओं के अधिक अधिकारों के लिए राजनीतिक प्रतिस्पर्धा में निवेश करने के लिए सशक्त बनाती है, जिससे पितृसत्ताओं के बीच अलगाव पैदा होता है। पितृसत्तात्मक लोग राजनीतिक प्रतिस्पर्धा में और अधिक निवेश करके प्रतिक्रिया देते हैं। इसके परिणामस्वरूप दोनों समूहों के बीच शत्रुता बढ़ जाती है, जो बदले में समाज में महिलाओं के खिलाफ अपराध की सम्भावना को बढ़ाती है। यह कथा इस विचार के अनुरूप है कि सत्ता में बदलाव, या स्त्री-पुरुष भेदभाव वाले समाज में यथास्थिति में परिवर्तन पुरुषों की प्रतिक्रिया को भड़का सकता है (पांडे 2015)।
घरेलू हिंसा
घरेलू हिंसा पर लिंग भेद में कमी का प्रभाव सभी संदर्भों में ज़रूरी नहीं कि एक जैसा हो। जबकि लिंग भेद में कमी से घर में महिलाओं की सौदेबाज़ी की शक्ति बढ़ती है, परिवार के बाहर/समाज में अपराध में वृद्धि से उनके बाहरी विकल्पों का उपयोग करने की क्षमता सीमित हो सकती है, जिससे यह प्रभाव कम हो सकता है। साथ ही, महिलाएं अपने पतियों के मुकाबले अधिक प्रबंधकीय नियंत्रण का प्रयोग करके अपनी सापेक्ष कमाई क्षमता में वृद्धि का जवाब दे सकती हैं, जिसके चलते घरेलू हिंसा बढ़ सकती है। हमारा तर्क है कि घरेलू हिंसा पर लिंग भेद में कमी का अंतिम प्रभाव सामाजिक संस्थाओं में स्त्री-पुरुष पूर्वाग्रह पर निर्भर करता है जो परिवार के बाहर अपराध और घरेलू हिंसा के निवारक, दोनों को निर्धारित करते हैं।
संस्थागत लैंगिक पूर्वाग्रह
हमने अपने अध्ययन में भारत में महिलाओं के विरुद्ध हुए अपराध से संबंधित वर्ष 2004-2012 के जिला-स्तरीय डेटा का उपयोग किया है जो राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) से प्राप्त किया गया है। इसे राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण संगठन (एनएसएसओ) के रोज़गार और बेरोज़गारी सर्वेक्षणों से जिला स्तर पर एकत्रित व्यक्तियों के लिए श्रम बाजार परिणामों की जानकारी के साथ मिलाया गया है ताकि एक ओर आय क्षमता2 में लैंगिक अंतर और दूसरी ओर घरेलू हिंसा, बलात्कार और अभद्र व्यवहार (बाद के दो को परिवार के बाहर अपराध के रूप में वर्गीकृत किया गया है) के बीच के सम्बन्धों का अध्ययन किया जा सके।
हम लैंगिक असमानता और महिलाओं के विरुद्ध अपराध के बीच सम्बन्धों को बढ़ाने में सामाजिक संस्थाओं में लैंगिक पूर्वाग्रह की भूमिका का पता लगाने के लिए भारतीय राज्यों में संस्कृति और संस्थाओं में व्यापक भिन्नता का उपयोग करते हैं। हम मैकिन्से से प्राप्त प्रत्येक जिले में ‘लापता महिलाओं’3 का अनुपात (एंडरसन और रे 2010, 2012), आवश्यक सेवाओं और अवसरों (ईएसओ)4 तक पहुँच वाली महिलाओं के प्रतिशत का उपयोग करते हैं और उन परिवारों के प्रतिशत को देखते हैं जिनमें महिलाओं ने बताया है कि वे ‘पर्दा’ या धार्मिक रूप से चेहरे को ढकने के अन्य रूपों को अपनाती हैं5। यह हमें वर्ष 2005 के भारत मानव विकास सर्वेक्षण (आईएचडीएस) से प्राप्त हुआ है। ये माप भारत भर में सामाजिक, सांस्कृतिक और संस्थागत लैंगिक पूर्वाग्रह की एक विस्तृत श्रृंखला को दर्शाते हैं।
पुरुष की प्रतिक्रिया
हम दर्शाते हैं कि लैंगिक अंतर में कमी आने से ख़ासतौर पर उन क्षेत्रों में जहाँ लैंगिक पूर्वाग्रह अधिक है, महिलाओं के खिलाफ बलात्कार और अभद्र व्यवहार की घटनाएं बढ़ रही हैं। हम यह दर्शाने में सक्षम हैं कि यह प्रतिक्रिया प्रभाव महिलाओं के विरुद्ध अपराध की कम रिपोर्टिंग में कमी के कारण नहीं है। ऐसा हम तीन तरीकों से करते हैं। सबसे पहला- हम दर्शाते हैं कि उच्च लिंग पूर्वाग्रह वाले क्षेत्रों में प्रतिक्रिया प्रभाव अधिक मज़बूत है, जहाँ संस्थाएँ पारम्परिक रूप से पुरुषों के पक्ष में हैं। दूसरा- हम यह दर्शाते हैं कि यह प्रभाव कम शिक्षित और थोड़ा कम शिक्षित व्यक्तियों के बीच लैंगिक अंतर को कम करने से आता है और अंततः, हम पाते हैं कि गुणात्मक परिणाम आईएचडीएस (2005, 2011) के आँकड़ों में सामने आते हैं। इसमें प्रशासनिक आँकड़ों की तुलना में रिपोर्टिंग एक कम गंभीर मुद्दा है (चूंकि व्यक्तियों से उनके परिवारों में ही अपराध के बारे में साक्षात्कार होता है, जो पुलिस स्टेशन में रिपोर्ट दर्ज कराने की तुलना में कम भयावह और कलंकित करने वाला होता है)। परिवार के अंदर अपराध के संदर्भ में, हम पाते हैं कि लिंग के आधार पर होने वाला अंतर कम होने से घरेलू हिंसा कम होती है, जो महिला की सौदेबाज़ी की शक्ति में वृद्धि के अनुरूप है। हालाँकि, यह संबंध केवल अपेक्षाकृत कम लिंग पूर्वाग्रह वाले क्षेत्रों में ही दिखाई देता है, जैसा कि कम ‘लापता महिलाओं’, उच्च ईएसओ सूचकांक और कम परिवारों में ‘पर्दा’ प्रथा के रूप में देखा जा सकता है।
निष्कर्ष
हमारा अध्ययन महिला सशक्तिकरण और आर्थिक विकास (डोपके और टेरटिल्ट 2019) के बीच के सम्बन्धों की खोज करने वाले मैक्रोइकॉनोमिक शोध साहित्य से संबंधित है। हम इस विमर्श को आगे बढ़ाने के लिए अनुभवजन्य समर्थन प्रदान करते हैं कि जैसे-जैसे आर्थिक विकास तकनीकी परिवर्तन को बढ़ावा देता है जो महिलाओं की सापेक्ष उत्पादकता को बढ़ाता है, लगातार सामाजिक लिंग पूर्वाग्रह महिला सशक्तिकरण के प्रति शत्रुता की भावना पैदा कर सकता है और बदले में महिलाओं के खिलाफ अपराध में वृद्धि को बढ़ावा दे सकता है।
टिप्पणियाँ :
- विश्व बैंक ने लैटिन अमेरिका में महिलाओं के खिलाफ हिंसा की आर्थिक लागत का अनुमान सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के 3.7% के रूप में लगाया है।
- कमाई की सम्भावना वह वेतन है जो किसी विशेष लिंग (स्त्री—पुरुष) का व्यक्ति जिले में औसतन कमाने की उम्मीद कर सकता है। प्रत्येक जिले के लिए, इसकी गणना उद्योगों में लिंग-विशिष्ट भारित औसत राष्ट्रीय वेतन के रूप में की जाती है, जहाँ भार पहली अवधि (2004) में उद्योग के हिस्से हैं। इस तरीके से कमाई की सम्भावना का माप तैयार करने से यह सुनिश्चित होता है कि यह जिले में अपराध से संबंधित कारकों से अप्रभावित है। हम पुरुषों और महिलाओं की कमाई की सम्भावना के अनुपात को लिंग अंतर के रूप में संदर्भित करते हैं।
- ‘लापता महिलाएँ’ बेटे की प्राथमिकता का एक संकेतक है, जो लिंग पूर्वाग्रह का एक सांस्कृतिक माप है।
- ईएसओ माप पुरुषों के सापेक्ष महिलाओं द्वारा सामना की जाने वाली संस्थागत बाधाओं को दर्शाता है।
- पर्दा प्रथा का प्रचलन इस हद तक बढ़ जाता है कि महिलाओं को सार्वजनिक स्थानों पर जाने से रोक दिया जाता है, जो महिलाओं के लिए स्थान और भूमिकाएं निर्धारित करनेवाले लैंगिक मानदंडों की उपस्थिति की ओर इशारा करता है।
अंग्रेज़ी के मूल लेख और संदर्भों की सूची के लिए कृपया यहां देखें।
लेखक परिचय : जेम्स एलन जोन्स ऑकलैंड विश्वविद्यालय के बिज़नेस और इकोनॉमिक्स संकाय के अर्थशास्त्र विभाग में रिसर्च फेलो हैं। वह ऑकलैंड काउंसिल, स्ट्रेटेजी एंड रिसर्च में वरिष्ठ डेटा वैज्ञानिक भी हैं। उन्होंने ऑकलैंड विश्वविद्यालय से अर्थशास्त्र में पीएचडी की है। देबाशीष बंद्योपाध्याय भी ऑकलैंड विश्वविद्यालय के अर्थशास्त्र विभाग में वरिष्ठ व्याख्याता हैं। उन्होंने मिनेसोटा विश्वविद्यालय से मैक्रोइकॉनॉमिक्स में पीएचडी, फ्लोरिडा विश्वविद्यालय से अर्थमिति में एमए और कलकत्ता विश्वविद्यालय के प्रेसीडेंसी कॉलेज से बीएससी (ऑनर्स) किया है। आशा सुंदरम भी ऑकलैंड विश्वविद्यालय के बिज़नेस और इकोनॉमिक्स संकाय के अर्थशास्त्र विभाग में वरिष्ठ व्याख्याता हैं।
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29 मई, 2025 






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