मानव विकास

मध्य भारत के आदिवासी समुदाय : चुनौतियाँ और आगे की राह

  • Blog Post Date 09 अगस्त, 2024
  • फ़ील्ड् नोट
  • Print Page

आदिवासी आजीविका की स्थिति’ रिपोर्ट ने एक बार फिर मध्य भारत में जनजातियों की भयावह स्थिति की ओर ध्यान आकर्षित किया है। विश्व के मूल व आदिवासी लोगों के अधिकारों के प्रति जागरूकता बढ़ाने और उनकी रक्षा करने के लिए प्रत्येक वर्ष 9 अगस्त को मूल लोगों के अंतर्राष्ट्रीय दिवस के रूप में मनाया जाता है। इसी उपलक्ष्य में प्रस्तुत इस लेख में मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ के आदिवासी परिवारों के सर्वेक्षण के आधार पर, चौधुरी और घोष जैव विविधता की हानि और भूमिहीनता, खराब खाद्य सुरक्षा और कुपोषण, और निरक्षरता जैसी चुनौतियों पर चर्चा करते हैं। वे खाद्य सब्सिडी के ज़रिए प्रदान की जाने वाली राहत पर प्रकाश डालते हैं, साथ ही इन समुदायों के उत्थान के लिए शासन प्रणाली में सुधार और आदिवासी मूल्यों को संरक्षित करने का सुझाव देते हैं।

‘आदिवासी आजीविका की स्थिति’ (स्टेटस ऑफ़ आदिवासी लाइवलीहुड्स- एसएएल) रिपोर्ट 2022 से पता चलता है कि मध्य भारत के मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ राज्यों में आदिवासी1 परिवारों की आय अन्य समुदायों की तुलना में काफी कम है। मध्य प्रदेश में आदिवासी परिवारों की औसत वार्षिक आय 73,900 रुपये है, जबकि छत्तीसगढ़ में यह आँकड़ा 53,610 रुपये का है (प्रदान, 2024)। यह कृषक परिवारों की राष्ट्रीय औसत वार्षिक आय2 से बहुत कम है, जो कि कृषि वर्ष 2018-19 (राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय, 2021) के दौरान 1,22,616 रुपये थी।

खाद्य सब्सिडी की भूमिका

सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) ने दोनों राज्यों में आदिवासी परिवारों के बीच कम आय और खाद्य असुरक्षा के तनाव को कम करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। विशेष रूप से छत्तीसगढ़ को राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम 2013 (ड्रेज़ और सेन 2013) के अधिनियमन के बाद पूरे राज्य में पीडीएस को प्रभावी ढंग से लागू करने में अग्रणी राज्य के रूप में जाना जाता है।

पीडीएस के माध्यम से प्रदान की जाने वाली खाद्य सब्सिडी आदिवासी परिवारों को उनकी कम आय के बीच कुछ राहत पाने में मददगार साबित हो रही है। छत्तीसगढ़ में, जहाँ आदिवासी परिवार पीडीएस से सालाना औसतन 18,000 रुपये के सामान का उपभोग करते हैं, इस राशि में से परिवारों द्वारा केवल 13% खर्च किया जाता है, जिसमें सरकार की 15,660 रुपये की सब्सिडी महत्वपूर्ण रूप से आय के तनाव को कम करने में योगदान देती है। इसी प्रकार, मध्य प्रदेश में आदिवासी परिवार औसतन 10,000 रुपये मूल्य की वस्तुएं खरीदते हैं, जबकि लागत का केवल 22% हिस्सा ही वहन करते हैं और 7,800 रुपये की सरकारी सब्सिडी से शेष 78% का भुगतान होता है (आकृति-1 देखें)।

आकृति-1. औसत पारिवारिक आय और पीडीएस से प्राप्त सब्सिडी

हमारा अध्ययन

हमने अपना अध्ययन आदिवासी आजीविका के छह पहलुओं- सांस्कृतिक लोकाचार, संसाधन की स्थिति, बाहरी हस्तक्षेप, साक्षरता एवं भूमि स्वामित्व जैसी घरेलू विशेषताएँ, गतिविधियाँ और आय, खाद्य सुरक्षा और पोषण जैसे परिणाम को शामिल करने के लिए डिज़ाइन किया था। हमने पारिवारिक दृष्टिकोणों को समझने के लिए परिवार स्तर पर एक प्रश्नावली सर्वेक्षण किया, गाँव के तथ्यपत्र का उपयोग किया, गाँव-स्तरीय दृष्टिकोण को समझने के लिए अर्ध-संरचित फ़ोकस समूह चर्चाएँ (एफजीडी) आयोजित कीं, और विद्वानों, कार्यकर्ताओं और सामुदायिक नेताओं के विचारों को समझने के लिए अर्ध-संरचित व्यक्तिगत साक्षात्कार किए। यह डेटा संग्रह मई से अगस्त 2022 तक किया गया था। समग्र नमूना संरचना तालिका-1 में दी गई है।

तालिका 1. नमूना संरचना

 

मध्य प्रदेश

छत्तीसगढ़

कुल

कुल परिवार

2,967

3,052

6,019

आदिवासी परिवार

2,405

2,340

4,745

पीवीटीजी परिवार

201

192

393

ग़ैर-आदिवासी परिवार

361

520

881

कुल गाँव

148

153

301

आदिवासी गाँव

117

117

234

पीवीटीजी गाँव

10

10

20

ग़ैर-आदिवासी गाँव

21

26

47

ब्लॉक जिनसे नमूने लिए

27

28

55

जिले जिनसे नमूने लिए

11

11

22

कुल एफजीडी

24

26

50

कुल साक्षात्कार

11

17

28

 

मध्य प्रदेश में 46 मान्यता प्राप्त अनुसूचित जनजातियाँ हैं, जिनमें भील बहुसंख्यक हैं, उसके बाद गोंड हैं। बैगा, सहरिया और भारिया ये तीन समूह विशेष रूप से कमज़ोर जनजातीय समूह (पीवीटीजी) के रूप में जाने जाते हैं। छत्तीसगढ़ में 42 जनजातीय समूह हैं, जिनमें गोंड बहुसंख्यक हैं। इन 42 समूहों में से सात पीवीटीजी (कमार, बैगा, पहाड़ी कोरबा, अबूझमाड़िया, बिरहोर, पंडो और भुजिया) अर्थात कमज़ोर जनजातीय समूह हैं।

नमूनाकरण रणनीति यह सुनिश्चित करने के लिए तैयार की गई थी कि आम तौर पर विशिष्ट क्षेत्रों में केन्द्रित जनजातीय समूहों का अध्ययन में यथासम्भव प्रतिनिधित्व हो (तालिका-1)। तदनुसार, मध्य प्रदेश में आदिवासी क्षेत्रों को तीन क्षेत्रों– भील, गोंड और ‘अन्य’ में विभाजित किया गया था। छत्तीसगढ़ को उत्तर, मध्य और दक्षिण क्षेत्रों में विभाजित किया गया था। वास्तव में, यहाँ की औसत आय अन्य क्षेत्रों की तुलना में कम से कम 1.5 गुना है (24,571 रुपये बनाम 12,000-15,000 रुपये)।

गहन आदिवासी विकास कार्यक्रम (आईटीडीपी) के तहत आने वाले आदिवासी बहुल प्रशासनिक ब्लॉकों से नमूना लिया गया था। इस नमूने को मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ दोनों में, जनसंख्या के अनुपात में नौ जिलों में वितरित किया गया था। इसके अतिरिक्त, पीवीटीजी आबादी को 4% आबादी होने के बावजूद 8% नमूना आवंटन दिया गया था। एक ही क्षेत्र के आदिवासी और ग़ैर-आदिवासी परिवारों के बीच तुलना करने के लिए आईटीडीपी ब्लॉकों से एक हजार ग़ैर-आदिवासी परिवारों का भी सर्वेक्षण किया गया।

आदिवासी परिवारों में मानव विकास संकेतक

आजीविका और आय : मध्य प्रदेश में 60% से अधिक आदिवासी परिवार, छत्तीसगढ़ में 90% और दोनों राज्यों में लगभग सभी पीवीटीजी परिवार वन उत्पादों पर निर्भर हैं। अधिकांश लोग ईंधन की लकड़ी इकट्ठा करते हैं- दोनों राज्यों में 98% परिवार इसका उपयोग निजी उपभोग के लिए करते हैं।

हालाँकि आम धारणा के विपरीत, दोनों राज्यों में कुल आय में वन-संग्रह से होने वाली आय का योगदान लगभग नगण्य है (आकृति-2)। चूँकि हमारे पास वन से संग्रहण के सन्दर्भ में स्व-उपभोग का अनुमानित मूल्य नहीं है, इसलिए इससे कुछ हद तक कम आंकलन हो सकता है।

आकृति-2. पारिवारिक आय में वन से संग्रहण का योगदान

गाँव स्तर पर फोकस समूह चर्चा के दौरान, ग्रामीणों ने बताया कि महुआ, तेंदू पत्ता, चार और चिरौंजी जैसे वन उत्पादों की उपलब्धता हर साल घट रही है। उनके अनुसार, वन विभाग का लकड़ी पर विशेष ध्यान होने के कारण, ये पौधे जंगल से तेज़ी से गायब हो रहे हैं। जैव विविधता हानि और जलवायु परिवर्तन के दृष्टिकोण से भी, इस घटना की गहन खोज की आवश्यकता है।

खाद्य सुरक्षा और आहार विविधता : पीडीएस के बेहतर प्रदर्शन के परिणामस्वरूप सम्भवतः छत्तीसगढ़ में बेहतर खाद्य सुरक्षा हुई है। हालाँकि, पीडीएस से चावल पर अत्यधिक निर्भरता ने आहार विविधता को नकारात्मक रूप से प्रभावित किया हो, ऐसा सकता है।

आकृति-3 में उन परिवारों का प्रतिशत दर्शाया गया है जिनके पास पर्याप्त भोजन प्राप्त करने के संसाधन हैं जिन्हें वे आम तौर पर खाना पसंद करते हैं। इस खाने में अपनी खेती, पीडीएस और खरीदे गए भोजन शामिल है।

आकृति-3. अपने पसंदीदा भोजन को प्राप्त करने में कोई समस्या नहीं बताने वाले परिवारों का हिस्सा

स्रोत : कोट्स एवं अन्य (2007)

संयुक्त राष्ट्र विश्व खाद्य कार्यक्रम द्वारा विकसित खाद्य उपभोग स्कोर, एफसीएस का उपयोग करके आहार विविधता पर डेटा एकत्र किया गया था। एफसीएस आहार विविधता, खाद्य आवृत्ति और विभिन्न खाद्य समूहों के सापेक्ष पोषण संबंधी महत्व पर आधारित एक समग्र स्कोर है। आकृति-4 में उन परिवारों का प्रतिशत दर्शाया गया है जिन्होंने पोषण के लिए आवश्यक विभिन्न खाद्य पदार्थों को प्राप्त किया था।

आकृति-4. स्वीकार्य आहार विविधता वाले परिवारों का हिस्सा 

बच्चों में कुपोषण : मध्य प्रदेश में नमूना लिए गए परिवारों में 506 बच्चे (276 लड़के और 240 लड़कियाँ) थे और छत्तीसगढ़ में 455 बच्चे (239 लड़के और 216 लड़कियाँ) 60 महीने से कम उम्र के थे। पाँच साल से कम उम्र के बच्चों में कुपोषण के संकेतकों में से एक उनके सिर का घेरा3 है। प्रशिक्षित गणनाकर्ताओं ने मापने वाले फीते से उनके सिर का घेरा मापा और पाया कि छत्तीसगढ़ के बच्चों की तुलना में मध्य प्रदेश के बच्चों में कुपोषण की दर अधिक है। इनमें मध्य प्रदेश के ग़ैर-आदिवासी परिवारों का प्रदर्शन सबसे खराब रहा। इस मुद्दे की आगे जाँच करने और अंतर्निहित कारणों को जानने के लिए अलग-अलग अध्ययनों की आवश्यकता होगी।

आकृति-5: पाँच साल से कम उम्र के कुपोषित बच्चों का हिस्सा

भूमिहीनता में वृद्धि : दोनों राज्यों के ग्रामीण परिवारों में भूमिहीनता की दर राष्ट्रीय औसत 8.2% से कहीं अधिक है। चूँकि भूमि और जंगलों तक पहुँच आदिवासी पहचान का एक अभिन्न अंग रही है, यह समझना महत्वपूर्ण है कि इन दोनों राज्यों में आदिवासियों में भूमिहीनता के इस उच्च स्तर का क्या कारण है। विकास परियोजनाओं के लिए विस्थापन और भूमि से बेदखली को आमतौर पर आदिवासियों की भूमि के नुकसान का कारण बताया जाता है, लेकिन यह एकमात्र कारण नहीं हो सकता है। पिछले दशक में योगदान देने वाले कारकों और सम्भावित परिवर्तनों का पता लगाने के लिए आगे और अध्ययन की आवश्यकता है।

आकृति-6: भूमिहीन परिवारों का हिस्सा 

कार्यात्मक साक्षरता : सर्वेक्षण वाले गाँवों में, परिवारों के मुखिया और उनके जीवन साथियों की  कार्यात्मक साक्षरता संबंधी परीक्षण किए गए। इनमें से ज़्यादातर व्यक्ति 30 से 40 के बीच की उम्र के हैं और माना जाता है कि उन्हें अपनी प्राथमिक शिक्षा लगभग 25 से 35 साल पहले पूरी करनी चाहिए थी। नतीजों से पता चलता है कि उनमें से ज़्यादातर बचपन में स्कूल भी नहीं गए थे। 

आकृति-7. उत्तरदाताओं का हिस्सा जो पढ़-लिख नहीं सकते 

सड़क सम्पर्क और आँगनवाड़ियों तक पहुंच : उपरोक्त अपर्याप्तताओं के बावजूद, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ दोनों में आदिवासी गाँवों में बेहतर सड़क सम्पर्क देखने को मिलता है, इनमें से लगभग 80% गाँवों में पक्की सड़कें हैं। हालाँकि मध्य प्रदेश में केवल 42% और छत्तीसगढ़ में 30% आदिवासी गाँव ही सार्वजनिक परिवहन से जुड़े हैं, दोनों राज्यों के लगभग 100% आदिवासी गाँवों में आँगनवाड़ियाँ या चाइल्डकेयर सेंटर मौजूद हैं।

भविष्य की राह

हालाँकि एसएएल रिपोर्ट में मुख्य रूप से आदिवासी आजीविका की वर्तमान स्थिति को प्रस्तुत करने पर ध्यान केन्द्रित किया गया है, बिना विशिष्ट सिफारिशें के, व्यक्तिगत साक्षात्कारों के ज़रिए भी सम्भावित सुधारों के लिए मूल्यवान सुझाव प्राप्त होते हैं। आदिवासी इलाकों में समुदायों ने शिक्षा की गुणवत्ता को एक महत्वपूर्ण कारक के रूप में पहचाना है, जिस पर सरकारी और ग़ैर-सरकारी एजेंसियों को ध्यान देना चाहिए। उनमें से कई ने कहा कि आदिवासी बच्चों और युवाओं को जिस तरह की शिक्षा मिलती है, उससे उन्हें ग़ैर-आदिवासी छात्रों के साथ प्रतिस्पर्धा करने में मदद नहीं मिलती है। रोज़गार-योग्य कौशल हासिल करने में मदद करने के लिए व्यावसायिक शिक्षा की आवश्यकता पर भी प्रकाश डाला गया है।

लगभग सभी साक्षात्कारकर्ताओं का मानना ​​​​है कि आदिवासी क्षेत्रों में स्थानीय शासन प्रणाली को मज़बूत किया जाना चाहिए, जिससे स्थानीय निकायों को उनकी ज़रूरत के अनुसार योजना बनाने और निष्पादित करने का अधिकार मिल सके। उनके अनुसार, यह योजना आदिवासियों के मूल्यों और विश्वदृष्टि पर आधारित होनी चाहिए। इसके विपरीत, सरकार और अन्य एजेंसियों की अधिकांश योजनाएं व्यक्तिवाद, धन संचय और संसाधनों के दोहन के मुख्यधारा के मूल्यों को दर्शाती हैं।

साक्षात्कारकर्ताओं में से अधिकांश ने यह विचार रखा कि विशेष रूप से सामुदायिक अधिकारों के सन्दर्भ में वन अधिकार अधिनियम, 2006 का प्रभावी कार्यान्वयन वन जैव विविधता को पुनर्जीवित करने में मदद कर सकता है।

सभी साक्षात्कारकर्ताओं ने आदिवासी पहचान, परम्परा, संस्कृति और रीति-रिवाजों को संरक्षित करने के महत्व पर ज़ोर दिया, ताकि सामूहिकता, प्रकृति के साथ सद्भाव में रहना, धन का संचय न करना जैसे उनके वैकल्पिक मूल्य विलुप्त न हो जाएं। उन मूल्यों का पालन करना न केवल आदिवासियों, बल्कि पूरी मानव जाति को बचाने का एकमात्र तरीका है।

टिप्पणियाँ :

  1. आदिवासी आम तौर पर 'अनुसूचित जनजाति' की प्रशासनिक श्रेणी से संबंधित लोग हैं, जो मुख्य रूप से मध्य भारतीय बेल्ट में रहते हैं।
  2. राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण (एनएसएस) (2019) के 77वें दौर में, एक कृषक परिवार को ऐसे परिवार के रूप में परिभाषित किया गया है, जो कृषि उपज (फसलों, बागवानी फसलों, चारा फसलों, वृक्षारोपण, पशुपालन, मुर्गी पालन, मत्स्य पालन, सूअर पालन, मधुमक्खी पालन, कृमि पालन, रेशम उत्पादन, आदि) की बिक्री से सालाना 4,000 रुपये से अधिक प्राप्त करता है और जिसका कम से कम एक सदस्य पिछले 365 दिनों के दौरान प्रमुख या सहायक स्थिति में कृषि में स्व-रोज़गार कर रहा है।
  3. बच्चे के ‘सिर का घेरा’ आदर्श रूप से अनुशंसित जनसंख्या स्कोर के 3-97 प्रतिशतक के भीतर होना चाहिए। 

अंग्रेज़ी के मूल लेख और संदर्भों की सूची के लिए कृपया यहाँ देखें।

लेखक परिचय : दिब्येंदु चौधुरी एक ग़ैर-लाभकारी संगठन, प्रोफेशनल असिस्टेंस फॉर डेवलपमेंट एक्शन (प्रदान) की शोध और वकालत इकाई में काम करते हैं। शिक्षा से भूविज्ञानी, उन्होंने मध्य भारतीय पठार में मूल समुदायों के लोगों को संगठित करने और उनकी आजीविका को मजबूत करने में 22 से अधिक वर्ष बिताए हैं। पारिजात घोष भी प्रदान में शोध और वकालत में काम करती हैं। वे एक इंजीनियर हैं जिसे सामुदायिक संगठनों और आजीविका गतिविधियों को मज़बूत करने में हाशिए पर पड़े लोगों के साथ काम करने का 15 से अधिक वर्षों का अनुभव है।

क्या आपको हमारे पोस्ट पसंद आते हैं? नए पोस्टों की सूचना तुरंत प्राप्त करने के लिए हमारे टेलीग्राम (@I4I_Hindi) चैनल से जुड़ें। इसके अलावा हमारे मासिक न्यूज़ लेटर की सदस्यता प्राप्त करने के लिए दायीं ओर दिए गए फॉर्म को भरें।

No comments yet
Join the conversation
Captcha Captcha Reload

Comments will be held for moderation. Your contact information will not be made public.

संबंधित विषयवस्तु

समाचार पत्र के लिये पंजीकरण करें