यह अच्छी तरह से प्रमाणित हो चुका है कि शुद्ध पानी पीने से स्वास्थ्य संबंधी लाभ होते हैं, लेकिन क्या इससे बच्चों के शैक्षिक परिणामों में भी सुधार हो सकता है? साफ पानी का अधिकार एक मूल अधिकार है और एक सतत विकास लक्ष्य भी। विश्व स्वास्थ्य दिवस, जो हर साल 7 अप्रैल को मनाया जाता है, के सन्दर्भ में भारत मानव विकास सर्वेक्षण के आँकड़ों का विश्लेषण करते हुए, इस लेख में दस्त की घटनाओं में कमी, पानी लाने में कम समय बिताया जाना और अल्पकालिक रुग्णता पर कम खर्च तथा शिक्षा पर अधिक खर्च कर पाने जैसे विकल्पों की पहचान के प्रमाण प्रस्तुत किए गए हैं। एक विशेष बात यह है कि इसका प्रभाव लड़कियों पर अधिक स्पष्ट है।
खराब गुणवत्ता वाले पीने के पानी से कई गम्भीर स्वास्थ्य जोखिम पैदा होते हैं और परिणामस्वरूप दस्त, पेचिश, टाइफाइड और हैजा जैसी गम्भीर स्वास्थ्य समस्याएं हो सकती हैं, जिनके चलते उच्च रुग्णता और मृत्यु दर में बढ़ोत्तरी होती है (जालान और रवालिओं 2003, कोसेक 2014)। यूनिसेफ की 2021 की रिपोर्ट से पता चलता है कि वैश्विक आबादी के एक तिहाई हिस्से की स्वच्छ, सुरक्षित पेयजल तक पहुँच नहीं है और पाँच वर्ष से कम आयु के 700 से अधिक बच्चे प्रतिदिन असुरक्षित पानी और अपर्याप्त स्वच्छता से होने वाली डायरिया जैसी बीमारियों के कारण मर जाते हैं। ये स्वास्थ्य मुद्दे, विशेष रूप से जलवायु परिवर्तन और भूजल की कमी के कारण ताज़े पानी की आपूर्ति प्रभावित होने से, विकासशील देशों में अधिक हैं और चिंताजनक बने हुए हैं। असुरक्षित पेयजल के हानिकारक प्रभावों को ध्यान में रखते हुए, संयुक्त राष्ट्र सतत विकास लक्ष्य 6 में “सभी के लिए स्वच्छ पानी और स्वच्छता” के प्रावधान पर ज़ोर दिया गया है। हालांकि वर्ष 2020 तक, दुनिया भर में लगभग 2 अरब लोग मानव अपशिष्ट से दूषित पेयजल का उपयोग करते रहे हैं (विश्व स्वास्थ्य संगठन, 2022)। इस प्रकार, बेहतर सार्वजनिक स्वास्थ्य सुनिश्चित करने के लिए घरों में सुरक्षित पेयजल की आपूर्ति किया जाना एक नीतिगत प्राथमिकता बन गई है।
घर के अन्दर पाइप से पीने के पानी (आईपीडीडब्ल्यू) तक पहुँच विशेष रूप से महिलाओं और लड़कियों के लिए बहुत फायदेमंद हो सकती है। आकृति-1 से पता चलता है कि पुरुषों की तुलना में महिलाएं घरेलू ज़रूरतों के लिए पानी लाने के काम में काफी अधिक समय बिताती हैं। इस तरह के अनुत्पादक कार्यों में समय व्यतीत किया जाना लड़कियों के शैक्षिक परिणामों पर प्रतिकूल प्रभाव डालता है और इनसे महिलाओं के पास आय के सृजन, बच्चों की देखभाल और पारिवारिक कामों जैसी अन्य गतिविधियों के लिए समय कम रह जाता है (चौधरी और देसाई 2021, झांग और जू 2016)।
आकृति-1. लिंग के आधार पर, जल संग्रह के कार्यों में बिताया जाने वाला दैनिक समय
स्रोत : भारत मानव विकास सर्वेक्षण (आईएचडीएस) (2004, 2011) के डेटा का उपयोग करके लेखकों द्वारा की गई गणना।
टिप्पणी : 95% कॉन्फिडेंस इंटरवल, सीआई या विश्वास अंतराल का मतलब है कि यदि आप नए नमूनों के साथ प्रयोग को बार-बार दोहराते हैं, तो गणना किए गए 95% समय में सीआई (ग्रे रंग में) में सही प्रभाव होगा। सीआई अनुमानित प्रभावों के बारे में अनिश्चितता दर्शाने का एक तरीका है।
इस पृष्ठभूमि में, हम बच्चों के शैक्षिक और सीखने के परिणामों पर भारत के प्रमुख पेयजल आपूर्ति कार्यक्रम, जिसे राष्ट्रीय ग्रामीण पेयजल कार्यक्रम (एनआरडीडब्ल्यूपी) कहा जाता है, के प्रभाव की जाँच करते हैं।
सन्दर्भ
केन्द्र सरकार ने वर्ष 2009 में भारत के सभी ग्रामीण क्षेत्रों में राष्ट्रीय ग्रामीण पेयजल कार्यक्रम (एनआरडीडब्ल्यूपी) को लागू किया। एनआरडीडब्ल्यूपी का प्राथमिक लक्ष्य सभी ग्रामीण परिवारों को घर के अन्दर पाइप से पीने के पानी (आईपीडीडब्ल्यू) की आपूर्ति करना था। इस कार्यक्रम के तहत सुरक्षित पेयजल तक पहुँच में पीने लायक पानी, उसकी पर्याप्तता, सुविधा, सामर्थ्य और समानता पर ज़ोर दिया गया है। एनआरडीडब्ल्यूपी के तहत, प्रत्येक ग्रामीण परिवार को पीने, खाना पकाने और अन्य घरेलू आवश्यकताओं जैसे उद्देश्यों के लिए निर्दिष्ट प्रति व्यक्ति 40 लीटर पानी की दैनिक आपूर्ति का प्रावधान है। एनआरडीडब्ल्यूपी के तहत आपूर्ति की जाने वाली आईपीडीडब्ल्यू की गुणवत्ता भारतीय मानक ब्यूरो (बीआईएस) द्वारा निर्धारित पेयजल मानक, आईएस-10500 के अनुरूप है और ऐसी आपूर्ति जैविक संदूषकों और हानिकारक रसायनों से मुक्त होती है। स्थानीय पंचायती राज संस्थानों को जल आपूर्ति सेवाओं की अंतिम मील डिलीवरी सुनिश्चित करने की ज़िम्मेदारी सौंपने के लिए एनआरडीडब्ल्यूपी के दिशानिर्देशों को और संशोधित किया गया है।
डेटा और कार्यप्रणाली
हम भारत मानव विकास सर्वेक्षण (आईएचडीएस) के राष्ट्रीय प्रतिनिधि सर्वेक्षण दौर (2004 और 2011) के डेटा का उपयोग करते हैं। हमारे नमूने में देश के 27 राज्यों और छह केन्द्र-शासित प्रदेशों के 8-11 वर्ष की आयु के बच्चे शामिल हैं। हमारी रुचि के शैक्षिक परिणाम चर या एजुकेशनल आउटकम वेरिएबल हैं- क्या बच्चा स्कूल में नामांकित है और माता-पिता द्वारा बच्चे-विशिष्ट शैक्षिक व्यय किया जाता है? अधिगम परिणामों के सन्दर्भ में, हम बच्चों की पढ़ने की क्षमता और उनके गणित कौशल पर अपना ध्यान केन्द्रित करते हैं।
हम बच्चों के शैक्षिक और अधिगम परिणामों पर एनआरडीडब्ल्यूपी के कारणात्मक प्रभाव का अनुमान लगाने के लिए 'डिफरेंस-इन-डिफरेंस'1 पद्धति का उपयोग करते हैं। हमारी परिकल्पना यह है कि कम प्रारम्भिक आईपीडीडब्ल्यू स्तर वाले गाँवों में बच्चों को उच्च प्रारम्भिक स्तर वाले गाँवों के समकक्षों की तुलना में कार्यक्रम से अधिक लाभ मिलने की सम्भावना है। इसलिए, हम 'उपचार' (आईपीडीडब्ल्यू तीव्रता का सबसे कम चतुर्थक) और 'नियंत्रण' (आईपीडीडब्ल्यू तीव्रता का उच्चतम चतुर्थक) गाँवों को परिभाषित करने के लिए बेसलाइन (2004) पर ग्राम-स्तरीय आईपीडीडब्ल्यू तीव्रता में भिन्नता का उपयोग करते हैं। इसके बाद, हम एनआरडीडब्ल्यूपी कार्यक्रम के प्रभाव का अनुमान लगाने के लिए हस्तक्षेप से पहले और बाद की अवधि (क्रमशः 2004 और 2011) के बीच ‘उपचार’ और ‘नियंत्रण’ गाँवों में रहने वाले बच्चों के औसत परिणामों में बदलाव की तुलना करते हैं।
जाँच के परिणाम
हमारे निष्कर्षों से पता चलता है कि उन गाँवों में समग्र नामांकन में 4.5% की वृद्धि और बाल-विशिष्ट शैक्षिक व्यय में 14% की वृद्धि हुई है जो बेसलाइन आईपीडीडब्ल्यू तीव्रता (नियंत्रण) के सन्दर्भ में उच्चतम चतुर्थक वाले गाँवों के सापेक्ष सबसे कम चतुर्थक (उपचार) में थे।2 इसके अतिरिक्त, हमने ‘नियंत्रण’ गाँवों की तुलना में ‘उपचार’ गाँवों में स्कूली बच्चों की पैराग्राफ पढ़ने की क्षमता में 6.3% सुधार और कहानी पढ़ने की क्षमता में 20% सुधार देखा है।
उन तंत्रों की ओर देखने पर जिनके माध्यम से शैक्षिक परिणामों में ये सुधार होते हैं, हमारे परिणाम दर्शाते हैं कि महिलाओं द्वारा पानी लाने में बिताए जाने वाले औसत समय में 50% की, यानी प्रति यात्रा औसतन पाँच मिनट की गिरावट आई है। इससे, बढ़ी हुई सुरक्षा और बीमारियों की कम घटनाओं के साथ-साथ, महिलाओं के पास अधिक समय बचता है जिसका उपयोग वे आय के सृजन और बच्चों की देखभाल जैसी अन्य गतिविधियों पर उत्पादक रूप से कर सकती हैं। इसी तरह, लड़कियाँ भी शिक्षा पर अधिक समय देने में सक्षम हैं। परिणामस्वरूप, हमें होमवर्क और निजी ट्यूशन पर बिताए जाने वाले समय में क्रमशः एक और दो घंटे की उल्लेखनीय वृद्धि का प्रमाण मिलता है।
हमें डायरिया के मामलों में 4 प्रतिशत की कमी और महीने में स्कूल से अनुपस्थिति में 2.5 दिनों की कमी आने के सन्दर्भ में बच्चों के लिए आईपीडीडब्ल्यू केमहत्वपूर्ण स्वास्थ्य और अन्य लाभों के प्रमाण भी मिले। हम जाँच करते हैं कि क्या पानी की गुणवत्ता में सुधार के चलते दस्त आदि पर होने वाले खर्च जैसे कि अल्पकालिक अस्पताल खर्चों में कमी आई है? हमने ‘उपचार’ गाँवों में अल्पकालिक रुग्णता से जुड़े व्यय में 38.2% की महत्वपूर्ण कमी देखी, जो औसत अल्पकालिक रुग्णता व्यय में 44% की कमी के बराबर है। आईपीडीडब्ल्यू तक पहुँच लड़कियों के लिए समय-उपयोग परिणामों में सुधार करती है, बेहतर शैक्षिक परिणामों में योगदान देती है, जबकि डायरिया की घटनाओं में गिरावट और रुग्णता में कमी लड़कों के सीखने के परिणामों पर भी सकारात्मक प्रभाव डालती है।
हम 'गहन मार्जिन दृष्टिकोण'3 या इंटेन्सिव मार्जिन एप्रोच के अनुरूप वैकल्पिक अर्थमितीय विनिर्देश का उपयोग करके कार्यक्रम के प्रभाव का भी विश्लेषण करते हैं। हम 8 से 11 आयु वर्ग के ग्रामीण बच्चों के शैक्षिक और सीखने के परिणामों पर आईपीडीडब्ल्यू आपूर्ति के घंटों की संख्या के प्रभाव की जाँच करते हैं। इस के लिए, हम आईपीडीडब्ल्यू आपूर्ति के घंटों की संख्या (1 घंटे से 24 घंटे तक की सीमा) पर अपने परिणाम चर को पुनः प्राप्त करते हैं और जनसांख्यिकीय, सामाजिक आर्थिक नियंत्रण चर और विभिन्न सर्वेक्षण दौरों से उत्पन्न किसी भी न देखे गए प्रभाव के साथ 'एकत्रित प्रतिगमन' या पूल्ड रिग्रेशन का अनुमान लगाते हैं। हम आकृति-2 में पूर्ण नमूने, लड़कों और लड़कियों के सन्दर्भ में परिणाम चर पर आईपीडीडब्ल्यू आपूर्ति के घंटों के प्रभाव का बिन्दु अनुमान प्रस्तुत करते हैं। अधिकांश अनुमान सांख्यिकीय रूप से महत्वपूर्ण हैं (शून्य को कॉन्फिडेंस इंटरवल में शामिल नहीं किया गया है), जो यह दर्शाते हैं कि आईपीडीडब्ल्यू आपूर्ति की अवधि का शैक्षिक और सीखने के परिणामों पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है।
आकृति-2. 8 से 11 आयु वर्ग के ग्रामीण बच्चों के शैक्षिक और अधिगम परिणामों पर आईपीडीडब्ल्यू आपूर्ति के घंटों का प्रभाव
हम 'दृढ़ता जाँच' की एक श्रृंखला चलाते हैं, जिसमें प्लेसीबो परीक्षण भी शामिल है। सबसे पहले, हम नमूने को शहरी क्षेत्रों तक सीमित रखते हैं और समान परिणाम पाते हैं। दूसरा, हम गैर-जल जनित बीमारियों पर आईपीडीडब्ल्यू आपूर्ति तक पहुँच के प्रभाव की जाँच करते हैं और हमें परिणाम चर को प्रभावित करने वाले आईपीडीडब्ल्यू का कोई सबूत नहीं मिलता है। इसके अतिरिक्त, हम परिणाम चर को प्रभावित करने वाले अन्य सम्भावित भ्रमित करने वाले कारकों जैसे कि बिजली तक पहुँच, शौचालय सुविधाओं और स्कूलों की दूरी की भी जाँच करते हैं। हमारे नतीजे दर्शाते हैं कि उपर्युक्त कारक हमारे प्रभाव अनुमानों को प्रभावित नहीं करते हैं।
नीति का क्रियान्वयन
कई परिवारों में, पूरे परिवार के लिए पानी लाने की ज़िम्मेदारी मुख्य रूप से महिलाओं की होती है। पीने के पानी के स्वच्छ और सुरक्षित स्रोत की अनुपस्थिति महिलाओं और लड़कियों को पानी लाने में काफी समय बिताने के लिए मजबूर करती है। इस प्रकार का समय उपयोग स्वास्थ्य और शिक्षा तक पहुँच के मामले में अंतर-पारिवारिक लैंगिक असमानताओं को और बढ़ा देता है। इस प्रकार, एनआरडीडब्ल्यूपी जैसे राष्ट्रव्यापी कार्यक्रम के माध्यम से घर के अन्दर पाइप से पीने के पानी (आईपीडीडब्ल्यू) प्रदान करना दोहरे उद्देश्यों को पूरा कर सकता है। पहला, यह सुरक्षित पेयजल तक पहुँच में समानता सुनिश्चित कर सकता है और इसलिए, भारत में ग्रामीण परिवारों का स्वास्थ्य बेहतर हो सकता है। दूसरा, एनआरडीडब्ल्यूपी शिक्षा में लैंगिक अंतर को कम करने का मार्ग प्रशस्त कर सकता है और ग्रामीण भारत में महिलाओं के सशक्तिकरण में सहायता कर सकता है।
टिप्पणियाँ :
- किसी मानक ‘डिफरेंस-इन-डिफरेंस’ फ्रेमवर्क में, समान समूहों में समय के साथ परिणामों के विकास की तुलना करने के लिए अनुदैर्ध्य डेटा का उपयोग किया जाता है, जहाँ कोई किसी घटना या नीति से प्रभावित हुआ था- इस मामले में, एनआरडीडब्ल्यूपी के माध्यम से आईपीडीडब्ल्यू तक पहुँच- जबकि अन्य प्रभावित नहीं हुआ था।
- परिणाम चर के संगत माध्य (औसत) के सन्दर्भ में, सभी प्रतिशत परिवर्तनों की गणना परिणाम चर पर एनआरडीडब्ल्यूपी के प्रभाव के बिन्दु अनुमान को विभाजित करके की जाती है।
- इस सन्दर्भ में सीधे शब्दों में कहें तो, ‘गहन मार्जिन दृष्टिकोण’ आईपीडीडब्ल्यू आपूर्ति के घंटों की संख्या और उनके आवास इकाइयों में आईपीडीडब्ल्यू तक पहुँच वाले परिवारों से संबंधित बच्चों के शैक्षिक और सीखने के परिणामों के बीच सीधे संबंध की परिकल्पना करता है।
अंग्रेज़ी के मूल लेख और संदर्भों की सूची के लिए कृपया यहां देखें।
लेखक परिचय : नर्बदेश्वर मिश्र आईएफएमआर ग्रेजुएट स्कूल ऑफ बिज़नेस, क्रेआ यूनिवर्सिटी में एक शोधार्थी हैं। उनकी शोध रुचि विकास अर्थशास्त्र के क्षेत्र में है। ज्योति प्रसाद मुखोपाध्याय वर्तमान में आईएफएमआर ग्रेजुएट स्कूल ऑफ बिज़नेस, क्रेआ यूनिवर्सिटी में अर्थशास्त्र के एसोसिएट प्रोफेसर हैं। उन्होंने तीन साल से अधिक समय तक आईएफएमआर में सेंटर फॉर माइक्रोफाइनेंस (सीएमएफ) में रिसर्च एसोसिएट के रूप में और विश्व बैंक के साथ छत्तीसगढ़, भारत में प्रभाव मूल्यांकन अध्ययन पर अल्पकालिक सलाहकार के रूप में काम किया है।
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