मानव विकास

बेटियों को सशक्त बनाना : सशर्त नकद हस्तांतरण किस प्रकार से पारम्परिक मानदंडों को बदल सकते हैं

  • Blog Post Date 24 जनवरी, 2025
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Christopher Cornwell

University of Georgia

cornwl@uga.edu

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Laura Zimmermann

University of Georgia

lvzimmer@uga.edu

हर साल 24 जनवरी को राष्ट्रीय बालिका दिवस के रूप में मनाया जाता है। इस दिन की स्थापना 2008 में भारत सरकार के महिला एवं बाल विकास मंत्रालय ने लड़कियों को सशक्त बनाने और उनकी सुरक्षा के महत्व के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए की थी। यह दिन उन सभी असमानताओं के बारे में लोगों में जागरूकता बढ़ाने के लिए मनाया जाता है जिनका सामना लड़कियों को करना पड़ता है। इसी अवसर पर पेश है आज का आलेख। पिछले 30 वर्षों में भारत सरकार ने बेटियों के जन्म के बाद, उनके लिए निवेश करने वाले माता-पिता को पुरस्कृत करने के लिए 20 से अधिक कार्यक्रम लागू किए हैं। फिर भी, पुत्र प्राप्ति की प्राथमिकता को कम करने तथा सांस्कृतिक मानदंडों में बदलाव लाने में इन कार्यक्रमों की प्रभावशीलता के बारे में बहुत कम जानकारी उपलब्ध है। इस शोध आलेख में, कई विशिष्ट डिज़ाइन वाली योजनाओं के प्रभाव का विश्लेषण करते हुए पाया गया है कि ऐसे कार्यक्रम सही मायने में नीति सम्बन्धी टूलकिट का हिस्सा हैं और उन पर और अधिक ध्यान देने की आवश्यकता है।

अमर्त्य सेन ने 1990 के दशक की शुरुआत में ‘मिसिंग वुमन’ शब्द गढ़ा था, जो कुछ देशों में पुत्र प्राप्ति की प्राथमिकता और पितृसत्तात्मक सांस्कृतिक मानदंडों के कारण पुरुषों और महिलाओं के बीच के गंभीर लिंग-अनुपात के असंतुलन को दर्शाता है (सेन 2010)। यह समस्या आज भी इतनी व्यापक बनी हुई है कि दुनिया भर में हर साल 16 लाख से अधिक लड़कियाँ या तो जन्म नहीं लेती या जन्म के बाद समय से पहले मर जाती हैं (बोंगार्ट्स और गुइलमोटो 2015)।1 सर्वविदित है कि भारत के कई राज्यों में शिक्षा में बढ़ोतरी और आर्थिक विकास में बड़े सुधारों के बावजूद, 0-6 वर्ष की आयु वर्ग (बाल लिंग अनुपात) में लिंग अनुपात बिगड़ रहा है। आकृति-1 में दिए गए मानचित्र इस प्रवृत्ति को दर्शाते हैं, जिसमें 2001 और 2011 की जनगणना से प्रत्येक राज्य में बाल लिंग अनुपात की तुलना की गई है। इसलिए पुत्र प्राप्ति की प्राथमिकता को कम करना एक तत्काल नीतिगत आवश्यकता बनी हुई है।

आकृति-1. 2001 और 2011 में 0-6 वर्षीय लड़कों और लड़कियों के अनुपात का राज्य स्तरीय मानचित्र


राज्य सरकारों और कभी राष्ट्रीय सरकार के लिए लड़कियों पर केन्द्रित सशर्त नकद हस्तांतरण (सीसीटी) कार्यक्रम सबसे लोकप्रिय नीतिगत साधनों में से एक रहा है। वर्ष 1992 की शुरुआत में ही राजस्थान और तमिलनाडु ने पंजीकृत परिवारों को बेटी पैदा करने पर वित्तीय प्रोत्साहन देना शुरू कर दिया था। तालिका-1 में प्रारंभ वर्ष के अनुसार भारतीय लड़कियों पर केन्द्रित सशर्त नकद हस्तांतरण (सीसीटी) का अवलोकन, उनके स्थानिक कवरेज और दायरे के साथ दिया गया है। लड़की के जन्म पर भुगतान के अलावा, इनमें से कई योजनाएँ टीकाकरण, शिक्षा प्राप्ति और 18 वर्ष की आयु तक अविवाहित रहने पर अतिरिक्त भुगतान के माध्यम से, बेटियों में निरंतर निवेश को प्रोत्साहित करती हैं।

तालिका-1. बालिकाओं के लिए सशर्त नकद हस्तांतरण कार्यक्रमों का अवलोकन

बालिका सीसीटी कार्यक्रम

साल की शुरुआत

स्थानिक कवरेज

दायरा

राजलक्ष्मी

1992

राजस्थान

जन्म

बालिका सुरक्षा योजना

1992

तमिलनाडु

जन्म, शिक्षा

अपनी बेटी अपना धन

1994

हरियाणा

जन्म, शिक्षा, विवाह

कुँवरबैनु मामेरु योजना

1995

गुजरात

विवाह

बालिका सुरक्षा योजना

1996

आंध्र प्रदेश

जन्म, टीकाकरण, शिक्षा, विवाह

कन्या जागृति ज्योति योजना

1996

पंजाब

जन्म

बालिका समृद्धि योजना

1997

राष्ट्रीय*

जन्म, शिक्षा, विवाह

देवी रूपक

2002

हरियाणा

जन्म

बालरी रक्षक योजना

2005

पंजाब

जन्म

लाड़ली योजना

2005

हरयाणा

जन्म, टीकाकरण, शिक्षा

भाग्यलक्ष्मी

2006

कर्नाटक

जन्म, टीकाकरण, शिक्षा, विवाह

मुख्यमंत्री कन्यादान योजना

2006

मध्य प्रदेश

विवाह

लाडली लक्ष्मी योजना

2007

मध्य प्रदेश

जन्म, शिक्षा, विवाह

इंदिरा गांधी बालिका सुरक्षा योजना

2007

हिमाचल प्रदेश

जन्म

धनलक्ष्मी योजना

2008

राष्ट्रीय#

जन्म, टीकाकरण, शिक्षा, विवाह

मुख्यमंत्री कन्या विवाह योजना

2008

बिहार

विवाह

मुख्यमंत्री कन्या सुरक्षा योजना

2008

बिहार

जन्म

लाड़ली

2008

दिल्ली

जन्म, शिक्षा

माजोनी

2009

असम

जन्म

बेटी है अनमोल

2010

हिमाचल प्रदेश

जन्म, शिक्षा, विवाह

ममता

2011

गोवा

जन्म, टीकाकरण, शिक्षा

* गुजरात में जारी, हिमाचल प्रदेश में वर्ष 2010 तक जारी रही।

# सात राज्यों के (पंजाब, उत्तर प्रदेश, आंध्र प्रदेश, बिहार, झारखंड, छत्तीसगढ़, ओडिशा) ग्यारह ब्लॉक में जारी।

ये कार्यक्रम पुत्र प्राप्ति की प्राथमिकता को कम करने और सांस्कृतिक मानदंडों को बदलने में कितने कारगर साबित हुए, यह ज्ञात नहीं है। हमारे पास जो सीमित अनुभवजन्य साक्ष्य उपलब्ध हैं, उनमें प्रतिकूल प्रभावों को दर्ज किया गया है। उदाहरण के लिए, हरियाणा में वर्ष 2002 में लागू किए गए देवी रूपक कार्यक्रम से वास्तव में प्रथम जन्म के समय का लिंगानुपात 1-2% तक बिगड़ गया (अनुकृति 2018)।

इन प्रतिकूल प्रभावों के सन्दर्भ में एक संभावित स्पष्टीकरण यह हो सकता है कि इसमें पात्रता के कठोर नियम लागू थे, जो कि अनेक प्रारंभिक बालिकाओं के सीसीटी कार्यक्रमों के लिए विशिष्ट है- इस कार्यक्रम के तहत भविष्य में भुगतान के पात्र बने रहने के लिए नसबंदी और अधिकतम दो बच्चों (या तो एक बच्चा या दो लड़कियाँ) का होना आवश्यकता था। हम अध्ययन करते हैं कि क्या नए बालिका शिशु कार्यक्रमों में शामिल अधिक आम डिज़ाइन विशेषताएँ, जिनमें नसबंदी और परिवार के आकार की शर्तों को हटा दिया गया है, बाल लिंग अनुपात में सुधार लाने में अधिक सफल हैं? 

शोध अध्ययन

हम अपने एक नए शोधपत्र (बिस्वास, कॉर्नवेल और जिमरमैन, आगामी) में, धनलक्ष्मी कार्यक्रम का अध्ययन करते हैं, जिसे वर्ष 2008 में भारत सरकार के महिला एवं बाल विकास मंत्रालय द्वारा एक पायलट कार्यक्रम के रूप में लागू किया गया था। इस कार्यक्रम ने 19 नवंबर 2008 को या उसके बाद जन्मी उन लड़कियों को महत्वपूर्ण उपलब्धियाँ हासिल करने पर वित्तीय सहायता प्रदान की, इन उपलब्धियों में शामिल हैं : जन्म- जीवन के पहले दो वर्षों में महत्वपूर्ण टीकाकरण ;  प्रत्येक वर्ष स्कूल में नामांकन और उपस्थिति ; और 18 वर्ष की आयु तक अविवाहित रहना। हालांकि आर्थिक लाभ ‘देवी रूपक’ जैसे पहले के कार्यक्रमों के समान थे, इसमें कार्यक्रम को लागू किए जाने वाले क्षेत्र में निवास के अलावा अन्य कोई पात्रता प्रतिबंध के नहीं थे। महत्वपूर्ण बात यह है कि प्रजनन क्षमता या किसी घर में लड़कियों की संख्या पर कोई प्रतिबंध नहीं था जिन्हें इस योजना में नामांकित किया जा सकता था। हालांकि इस कार्यक्रम के तहत 2013 में नए लाभार्थियों को नामांकित करना बंद कर दिया गया, पहले से नामांकित परिवारों को आर्थिक लाभ दिया जाना जारी रहा।

हमने अपना ध्यान पंजाब में लागू की गई ‘धनलक्ष्मी’ योजना के प्रभाव पर केन्द्रित किया, जहाँ हमने फतेहगढ़ साहिब के ‘उपचारित’ (हस्तक्षेप के अधीन) जिले में लड़कियों और उनकी माताओं के लिए परिणामों की तुलना योजना शुरू होने से पहले और बाद में अन्य पंजाबी जिलों के साथ की, जहाँ योजना पहले अस्तित्व में नहीं थी। 2001 की जनगणना के आधार पर, पूरे भारत में सबसे खराब बाल लिंग अनुपात फतेहगढ़ साहिब में था, जहाँ प्रति 1,000 लड़कों पर 766 लड़कियाँ थीं। जिले का सरहिंद ब्लॉक, जिसका बाल लिंगानुपात 749 था, को कार्यक्रम के लिए ‘उपचार’ क्षेत्र के रूप में चुना गया।

इस संदर्भ में वित्तीय प्रोत्साहन सार्थक थे- पहला मील का पत्थर, लड़की के जन्म का पंजीकरण, 5,000 रुपये के भुगतान से जुड़ा था, जो उस समय एक सामान्य परिवार के एक महीने के घरेलू खर्च के बराबर था। इसके अतिरिक्त, एक परिवार लड़कियों के प्राथमिक स्कूल पूरा करने पर 3,500 रुपये तथा कक्षा 8 तक माध्यमिक स्कूल पूरा करने पर 3,750 रुपये प्राप्त कर सकता था। लाभार्थी लड़की को 18 वर्ष की आयु में अविवाहित होने का प्रमाण देने पर 1,00,000 रुपये का अंतिम भुगतान प्राप्त होता था।

संभावित लाभार्थियों में कार्यक्रम के प्रति जागरूकता का स्तर तथा सरहिंद में धनलक्ष्मी के कार्यान्वयन की गुणवत्ता, दोनों ही उच्च थे। कार्यक्रम में नामांकन में आम तौर पर एक सप्ताह से भी कम समय लगता था और इसमें शिक्षकों ने जानकारी प्रसारित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। वास्तव में, जिन शोधकर्ताओं ने ‘उपचार’ क्षेत्र में लाभार्थी और गैर-लाभार्थी परिवारों का साक्षात्कार करने का प्रयास किया, उन्हें ऐसे पात्र परिवारों को खोजने में परेशानी हुई जो धनलक्ष्मी में नामांकित नहीं थे (शेखर और राम 2015)।

मुख्य निष्कर्ष

वर्ष 2007-08 और वर्ष 2012-13 के जिला स्तरीय परिवार और सुविधा सर्वेक्षण (डीएलएचएस) और वर्ष 2015-16 के राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (एनएफएचएस) से प्राप्त पारिवारिक सर्वेक्षण डेटा का उपयोग करते हुए, हम लिंग अनुपात, बालिका स्वास्थ्य और शिक्षा परिणामों तथा मातृ स्वास्थ्य पर धनलक्ष्मी योजना के प्रभाव का अध्ययन करते हैं।

आकृति-2 में जन्म-सम्बन्धी परिणामों के सन्दर्भ में परिणामों का सारांश प्रस्तुत किया गया है। पहली दो पंक्तियों से हमारे मुख्य निष्कर्षों का पता चलता है- धनलक्ष्मी योजना से बालिका जन्म की संभावना 5.5 प्रतिशत अंक (पीपी) बढ़ गई, जबकि प्रजनन क्षमता में मामूली वृद्धि ही हुई।

इसका तात्पर्य यह है कि लिंग अनुपात में सुधार अधिक बच्चे पैदा करने वाले परिवारों के कारण नहीं आया, बल्कि उन माता-पिता द्वारा पुत्री को जन्म देने का विकल्प चुनने के कारण आया, अन्यथा उन्हें पुत्र ही चाहिए था। एक सामान्य गणना के आधार पर, धनलक्ष्मी योजना ‘उपचार’ क्षेत्र में 30% से अधिक बालिकाओं के जन्म का कारण रही, लेकिन यह ‘उपचार’ अवधि में कुल जन्मों में से केवल 5% के लिए जिम्मेदार थी।

आकृति की अगली पाँच पंक्तियाँ दर्शाती हैं कि जन्म क्रम और भूगोल के अनुसार लड़की के जन्म का प्रभाव कैसे भिन्न होता है। धनलक्ष्मी योजना ने पहली बार जन्म लेने वाली लड़की की संभावना को 4.3 पीपी और दूसरे बच्चे के लिए अतिरिक्त 5.8 पीपी तक बेहतर बनाया। हमें जन्म क्रम 3 और उससे ऊपर के बच्चों पर कोई सांख्यिकीय रूप से महत्वपूर्ण प्रभाव नहीं मिला। धनलक्ष्मी का सकारात्मक प्रभाव फतेहगढ़ साहिब के ग्रामीण इलाकों में केन्द्रित है, जहाँ भारत के अन्य क्षेत्रों के विपरीत, शहरी क्षेत्रों की तुलना में लिंग अनुपात अधिक विषम है। ग्रामीण क्षेत्रों में, लड़कियों के जन्म में 7.4 पीपी की वृद्धि हुई है- लेकिन शहरी क्षेत्रों में यह प्रभाव लगभग 7 पीपी कम है, जिसका अर्थ है कि शहरी क्षेत्रों में धनलक्ष्मी की प्रभावशीलता लगभग शून्य है।

आकृति की अंतिम दो पंक्तियाँ इस बात का प्रमाण प्रस्तुत करती हैं कि धनलक्ष्मी योजना पुत्र को प्राथमिकता देने के मानदंडों को बदलने में सफल रही है- पहले जन्मी बेटियों की संख्या के आधार पर, एक माँ की बेटे के प्रति घोषित प्राथमिकता में लगभग 5 पीपी की गिरावट आती है। कार्यक्रम के बाद के प्रभाव से यह अनुमान मिलता है कि कार्यक्रम बंद होने और नए लाभार्थियों का नामांकन बंद होने के बाद लड़की के जन्म की संभावना में 5.5 पीपी का कितना सुधार बना रहता है। लगभग -2.5 पीपी का बिन्दु अनुमान यह दर्शाता है कि धनलक्ष्मी योजना के जरिये हुए सुधार का लगभग आधा हिस्सा तब भी बना रहता है, जब माता-पिता को लड़की होने पर वित्तीय लाभ नहीं मिल पाता है, जो यह दर्शाता है कि पुत्र को प्राथमिकता देने के मानदंड बदल गए हैं।

आकृति-2. जन्म-सम्बन्धी परिणामों पर अनुमानित प्रभाव

टिप्पणियाँ : i) प्रत्येक वृत्त किसी दिए गए परिणाम के सन्दर्भ में प्रभाव के आकर को दर्शाता है तथा उसके बीच से गुजरने वाली रेखा उससे संबंधित 95% ‘विश्वास अंतराल’ को दर्शाती है। 95% विश्वास अंतराल का मतलब है कि, यदि आप नए नमूनों के साथ प्रयोग को बार-बार दोहराते हैं, तो 95% बार गणना के विश्वास अंतराल में सही प्रभाव होगा। ii) विश्वास अंतराल जिसमें शून्य शामिल नहीं है, 5% स्तर पर सांख्यिकीय महत्व को दर्शाता है। iii) क्लस्टर किए गए मानक त्रुटियों के आधार पर 95% विश्वास अंतराल।

हम धनलक्ष्मी कार्यान्वयन अवधि में जन्मी लड़कियों पर 5 से 7 वर्ष की आयु तक नजर रखते हैं, जो कि हमारे पास उपलब्ध सबसे हाल के वर्ष हैं। हम पाते हैं कि इस कार्यक्रम ने टीकाकरण दरों में 7.1 पीपी तक की वृद्धि की, स्तनपान दरों में 2.4 पीपी तक की वृद्धि की, तथा प्राथमिक विद्यालय में नामांकन में 4 पीपी तक की वृद्धि की। हमने यह भी दर्ज किया कि 5 वर्ष की आयु वाली बालिकाओं की संख्या में 4.5 पीपी की वृद्धि हुई है, जो यह दर्शाता है कि धनलक्ष्मी के कारण जन्म लेने वाली अधिकांश बालिकाएं 5 वर्ष की आयु तक जीवित रहीं, जिसका कारण संभवतः (कम से कम आंशिक रूप से) जन्म के बाद स्वास्थ्य और शिक्षा पर किया गया निवेश था। यह उत्साहजनक है, क्योंकि 5 वर्ष से कम आयु की लड़कियों की मृत्यु दर अत्यधिक है और आमतौर पर टीकाकरण जैसे स्वास्थ्य निवेश में बड़े लिंग अंतर को इसका कारण माना जाता है।

कार्यक्रम से पहले जन्म लेने वाली बड़ी लड़कियाँ निरंतर भुगतान की पात्र थीं, जिससे उन्हें मिडिल स्कूल के अंत तक स्कूल में उपस्थिति और कक्षा पूरी करने के लिए प्रोत्साहन मिलता था। हमने दर्शाया कि 8-14 वर्ष की लड़कियों के स्कूली शिक्षा पूरी करने के वर्षों में लगभग एक तिहाई वर्ष की वृद्धि हुई।

इसके अलावा, हम गर्भावस्था और प्रसव में माताओं के स्वास्थ्य परिणामों पर धनलक्ष्मी योजना के प्रभावों की जांच करते हैं। हम पाते हैं कि दोनों में काफी सुधार हुआ है। महिलाओं को प्रसव में जटिलता की संभावना कम होती है तथा गर्भावस्था में अत्यधिक थकान और उच्च रक्तचाप से पीड़ित होने की संभावना भी कम होती है।

नीतिगत निहितार्थ

हम अपने अध्ययन में दर्शाते हैं कि नीति-निर्माताओं के लिए पुत्र प्राप्ति के प्रति प्राथमिकता से लड़ने के लिए बालिका सीसीटी कार्यक्रम एक प्रभावी नीति उपकरण हो सकता है, लेकिन अनपेक्षित प्रतिकूल प्रभावों से बचने के लिए विशिष्ट डिजाइन विशेषताओं पर ध्यान दिया जाना चाहिए। नए कार्यक्रमों में पहले से ही धनलक्ष्मी की कई विशेषताएं शामिल हैं, जिनमें पात्रता मानदंडों का बहुत कम प्रतिबंधात्मक सेट शामिल है, जो माता-पिता को नसबंदी कराने या योजनाओं से लाभ उठाने के लिए अपने बच्चों की कुल संख्या को सीमित करने के लिए मजबूर नहीं करता है। हमारा विश्लेषण दर्शाता है कि माता-पिता को यह स्वतंत्रता देना सही कदम था और इससे प्रजनन क्षमता में बड़ी वृद्धि की कीमत नहीं चुकानी पड़ी। इसके बजाय अधिकतर लड़कियों का जन्म ऐसे परिवारों में होता है जहाँ अन्यथा बेटे का जन्म हुआ होता और बड़ी लड़कियाँ और माताएँ भी लाभान्वित होती हैं।

टिप्पणी :

1. जन्म से पहले पुत्री की कमी तब उत्पन्न होती है जब जन्म-पूर्व लिंग निर्धारण से पता चलता है कि भ्रूण कन्या है, और तब भ्रूण का गर्भपात कर दिया जाता है। हालांकि यह प्रथा भारत में वर्ष 1994 से अवैध है, लेकिन यह अभी भी व्यापक रूप से प्रचलन में है (भालोत्रा ​​और कोक्रेन 2010)।

अंग्रेज़ी के मूल लेख और संदर्भों की सूची के लिए कृपया यहां देखें।

लेखक परिचय : नबनीता बिस्वास वेस्ट वर्जीनिया में मार्शल यूनिवर्सिटी में अर्थशास्त्र की सहायक प्रोफेसर हैं। उन्होंने 2017 में जॉर्जिया विश्वविद्यालय से अर्थशास्त्र में पीएचडी प्राप्त की और उनकी शोध रुचियों में विकास अर्थशास्त्र, स्वास्थ्य अर्थशास्त्र और अनुप्रयुक्त सूक्ष्म अर्थशास्त्र शामिल हैं। वह विशेष रूप से राजनीतिक अर्थव्यवस्था और समाजों के जनसांख्यिकीय परिणामों के बीच संबंधों में रुचि रखती हैं। क्रिस्टोफर कॉर्नवेल जॉर्जिया विश्वविद्यालय के टेरी कॉलेज ऑफ बिज़नेस में जॉन मुनरो गॉडफ्रे, सीनियर अर्थशास्त्र विभाग में प्रोफेसर हैं, एम. डगलस और वीके इवेस्टर इंस्टीट्यूट फॉर बिज़नेस एनालिटिक्स एंड इनसाइट्स के निदेशक हैं, लोक प्रशासन और नीति विभाग के संबद्ध संकाय सदस्य हैं और यूजीए के उच्च शिक्षा संस्थान के वरिष्ठ फेलो हैं। लौरा ज़िमरमैन भी जॉर्जिया विश्वविद्यालय के अर्थशास्त्र और अंतर्राष्ट्रीय मामलों के विभाग में सहायक प्रोफेसर हैं। उन्होंने मिशिगन विश्वविद्यालय से अर्थशास्त्र में पीएचडी की डिग्री प्राप्त की है। उनकी शोध रुचियों में विकासशील देशों में गरीबी उन्मूलन कार्यक्रमों के प्रभाव, मौसम के झटकों और प्राकृतिक आपदाओं के प्रभाव और अंतर-घरेलू भेदभाव के कारण और परिणाम शामिल हैं। 

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