मानव विकास

शिक्षा का मार्ग रोशन करना : क्या बिजली की सुविधा से बच्चों के परीक्षा स्कोर में वृद्धि हो सकती है?

  • Blog Post Date 15 मई, 2025
  • लेख
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Somdeep Chatterjee

Indian Institute of Management, Calcutta

somdeep@iimcal.ac.in

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Shiv Hastawala

State University of New York at Binghamton

shivhastawala@gmail.com

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Jai Kamal

Indian Institute of Management Jammu

jai@iimj.ac.in

घरों में बिजली की सुविधा उपलब्ध हो जाने पर बच्चों के स्कूल में दाखिला लेने की सम्भावना बढ़ जाती है। लेकिन क्या वे बेहतर प्रदर्शन भी करते हैं? यह लेख पश्चिम बंगाल के सार्वभौमिक घरेलू विद्युतीकरण कार्यक्रम और राष्ट्रीय स्तर के प्रतिनिधि डेटा के आधार पर, दर्शाता है कि बिजली की सुविधा वाले परिवारों के बच्चे पठन और गणित की परीक्षाओं में बेहतर अंक प्राप्त करते हैं। इसके पीछे के मुख्य तंत्रों के रूप में अधिक देर तक पढ़ने की सुविधा, अधिक पारिवारिक आय और ईंधन संग्रहण की आवश्यकता कम होने के रूप में की गई है

विद्युतीकरण को लम्बे समय से विकास, औद्योगीकरण, उत्पादकता और पारिवारिक कल्याण में सुधार को सक्षम करने का एक महत्वपूर्ण पहलू माना जाता रहा है (रुड 2012, ब्रिज एवं अन्य 2016)।

शिक्षा के मामले में विद्युतीकरण के कई प्रभाव हो सकते हैं। पहला, बेहतर रोशनी की सुविधा के कारण बच्चे लम्बे समय तक, ख़ासकर रात में अध्ययन गतिविधियाँ करने में सक्षम होते हैं (कैब्राल एवं अन्य 2005)। दूसरा, अधिकांश परिवारों में बच्चों द्वारा ईंधन के अन्य साधनों को इकट्ठा करने में बिताए जाने वाले समय में कमी या पूरी तरह से ज़रूरत न रहने के रूप में देखा जाता है (खांडकर एवं अन्य 2012)। तीसरा, एक अप्रत्यक्ष लाभ परिवार की आय में वृद्धि (ब्रिज एवं अन्य  2016) से हो सकता है या जहाँ रोशनी और मीडिया के सम्पर्क में आने से बेहतर शिक्षण सामग्री की उपलब्धता बढ़ जाती है या फिर माता-पिता के शिक्षा विकल्पों पर प्रभाव पड़ता है (बैरन और टोरेरो 2017)।

अब तक विद्युतीकरण को छात्रों के अधिगम से जोड़ने से संबंधित बहुत कम काम हुआ है। पिछले शोध से पता चलता है कि बिजली की पहुँच स्कूल में नामांकन को बढ़ा सकती है (कुमार और रौनियार 2018, लिप्सकॉम्ब एवं अन्य 2013), वास्तविक परीक्षा स्कोर पर इसके प्रभाव को खोजने का प्रयास करने वाले अध्ययनों ने अक्सर शून्य (सेओ 2017) या नकारात्मक प्रभाव (डैसो एवं अन्य 2015) दर्शाए हैं। इसका एक कारण यह हो सकता है कि अधिकांश अध्ययन स्कूल स्तर पर विद्युतीकरण पर केन्द्रित होते हैं। हालांकि, स्कूलों में बिजली की पहुँच वास्तव में सीखने के लिए एक प्रमुख बाधा नहीं हो सकती है क्योंकि वहाँ दिन का उजाला होता है और बिजली के ज़रिए रोशनी की ज़रूरत कम होती है।

अपने हालिया शोध (चटर्जी एवं अन्य 2023) में हम बच्चों की पढ़ने और गणित की शिक्षा पर, घर पर बिजली होने के प्रभाव की जाँच करते हैं। हम साक्ष्य के दो स्रोतों का उपयोग करते हैं। पहला, हम पश्चिम बंगाल राज्य का मामला लेते हैं, जहाँ सरकार के ने विशिष्ट जिलों में सार्वभौमिक घरेलू विद्युतीकरण शुरू करने की कोशिश करने वाले शोबार घरे आलो (एसजीए)1 कार्यक्रम से हमें बच्चों की शिक्षा पर प्रभाव का आकलन करने के लिए एक 'प्राकृतिक प्रयोग' प्राप्त हुआ। इसके बाद हम अध्ययन सन्दर्भ से परे निष्कर्षों की पुनरावृत्ति की जाँच के लिए, एक बड़े प्रतिनिधि घरेलू डेटासेट का विश्लेषण करके राष्ट्रीय स्तर पर अपने अनुभवजन्य परिणामों को पुन: प्रस्तुत करते हैं।

पश्चिम बंगाल का ‘शोबार घरे आलो’

पश्चिम बंगाल सरकार ने वर्ष 2012 में अपने कुल 19 जिलों में से 11 (तत्कालीन) 'पिछड़े' जिलों में पूर्ण घरेलू विद्युतीकरण लाने के लिए एसजीए की शुरुआत की (आकृति-1)। पिछड़ा क्षेत्र अनुदान निधि के तहत एक बड़े परिव्यय द्वारा वित्तपोषित इस योजना का लक्ष्य इन जिलों में गरीबी रेखा से नीचे के बीस लाख से अधिक परिवार थे। क्रियान्वयन में वितरण अवसंरचना को मज़बूत करना शामिल था ताकि वंचित ग्रामीण इलाकों को बिजली का नियमित कनेक्शन मिल सके।

आकृति 1. ‘शोबार घरे आलो’ कार्यक्रम द्वारा लक्षित जिले 


अध्ययन का डिज़ाइन और परिणाम

एसजीए ने बच्चों की पढ़ाई को किस प्रकार प्रभावित किया, इसकी जांच करने के लिए हम वार्षिक शिक्षा स्थिति रिपोर्ट (एएसईआर) डेटा (वर्ष 2007-2014, वर्ष 2016 और 2018) का उपयोग करते हैं। एएसईआर में ग्रामीण भारतीय बच्चों (आयु 5-16 वर्ष) की बुनियादी पढ़ने और अंकगणितीय क्षमताओं को उनके घर जाकर मापा जाता है। प्रत्येक बच्चे के पढ़ने/गणित कौशल को 0 (अक्षरों/संख्याओं को पहचान नहीं सकता) से 4 (ग्रेड 2 का पाठ पढ़ सकता है या भाग कर सकता है) तक स्कोर किया जाता है। हम एसजीए के अंतर्गत शामिल जिलों (‘उपचारित’ या ‘हस्तक्षेप’ के अधीन) और गैर-एसजीए जिलों (‘नियंत्रण’ या ‘हस्तक्षेप’ के अधीन नहीं) में बच्चों के स्कोर की तुलना वर्ष 2012 से पहले और बाद में करते हैं। मुख्य धारणा यह है कि एसजीए के बिना, दोनों जिलों में परीक्षा स्कोर की प्रवृत्तियाँ समानांतर रूप से बदल गई होंगी।

हम पाते हैं कि नीति से पहले से लेकर बाद तक, एसजीए से विद्युतीकरण में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है- एसजीए जिलों में परिवार स्तर पर बिजली की पहुँच अन्य जिलों की तुलना में लगभग 8-9 प्रतिशत अंकों तक बढ़ गई है। परिणामस्वरूप, एसजीए जिलों में बच्चों के पढ़ने के अंक गैर-एसजीए जिलों की तुलना में लगभग 0.05 मानक विचलन2 अधिक थे। 5-8 वर्ष आयु वर्ग के छोटे बच्चों में इसका प्रभाव अधिक था (आकृति- 2), संभवतः इसका कारण यह है कि प्रारंभिक वर्षों में उन्हें अधिक अध्ययन समय या बेहतर गुणवत्ता वाली रोशनी का अधिक लाभ मिलता है। हालांकि, हमें गणित की उपलब्धि पर कोई स्पष्ट प्रभाव नहीं मिला। यह शायद इस बात का संकेत है कि गणित कौशल शिक्षक की गुणवत्ता, कक्षा सामग्री, या संवादात्मक शिक्षण विधियों पर अधिक निर्भर करता है, जो कि शाम के लम्बे समय तक घर पर अध्ययन करने के पूरक नहीं हैं।

आकृति-2. विभिन्न आयु समूहों में, बच्चों के पढ़ने के अंकों पर घरेलू विद्युतीकरण का प्रभाव


राष्ट्रीय स्तर के साक्ष्य और तंत्र

यह सुनिश्चित करने के लिए कि पश्चिम बंगाल का अनुभव अपवाद नहीं है, हम भारत के 40,000 से अधिक ग्रामीण और शहरी परिवारों का एक राष्ट्रीय प्रतिनिधि पैनल डेटासेट- भारत मानव विकास सर्वेक्षण (आईएचडीएस) का उपयोग करते हैं। इस सर्वेक्षण में, 8-11 आयु वर्ग के बच्चों का पढ़ने और अंकगणित के सन्दर्भ में परीक्षण किया गया।

जनसांख्यिकीय, घरेलू और गाँव के कारकों को नियंत्रित करने तथा साधन चर जैसे अर्थमितीय तरीकों का उपयोग करने पर, लगातार यह निष्कर्ष निकलता है कि बिजली तक पहुँच का होना बेहतर सीखने के परिणामों से जुड़ा हुआ है। आंकड़ों से इस बात की पुष्टि होती है कि जिन परिवारों के लिए बिजली की सुविधा उपलब्ध है, उनके बच्चे पढ़ने और गणित की परीक्षाओं में उन परिवारों की तुलना में बेहतर प्रदर्शन करते हैं जिनके लिए बिजली की सुविधा उपलब्ध नहीं है।

निम्नलिखित सम्भावित तंत्र हैं जिनके ज़रिए घरेलू विद्युतीकरण से बच्चों की शिक्षा पर प्रभाव पड़ता है :

पढ़ाई का समय बढ़ना : हम पाते हैं कि घर में बिजली आने के कारण बच्चे होमवर्क करने और निजी ट्यूशन में अधिक समय बिताते हैं। शाम को बेहतर रोशनी का बच्चों की होमवर्क पूरा करने की क्षमता पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है और घर में पढ़ाई का माहौल बेहतर हो जाता है (बामन्याकी और हर्सडॉर्फ 2009)।

उच्च पारिवारिक आय : हम पाते हैं कि जिन परिवारों को विद्युतीकरण सुविधा ममिली हुई है वे अधिक कमाने में सक्षम हैं। ऐसा विद्युतीकरण के परिणामस्वरूप रोज़गार और उद्यमिता के अवसरों में वृद्धि के कारण हो सकता है (डिंकेलमैन 2011, ब्रिज एवं अन्य 2016)। परिणामस्वरूप, निजी ट्यूशन जैसी शिक्षा गतिविधियों में अधिक वित्तीय संसाधनों का निवेश किया जा सकता है।

ईंधन जुटाने के कार्यों में कम समय लगाना : हम पाते हैं कि विद्युतीकृत घरों में बच्चे जलाऊ लकड़ी या अन्य ईंधन इकट्ठा करने में कम समय लगाते हैं।3 बजाय इसके, जैसा कि पहले देखा गया है, उनका समय आवंटन अकादमिक कार्यों पर अधिक केन्द्रित है।

नीतिगत निहितार्थ

हमारे निष्कर्षों का तात्पर्य है कि घरों के सार्वभौमिक विद्युतीकरण से शैक्षिक परिणामों पर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ सकता है और इसलिए, यह स्कूल के बुनियादी ढांचे या शिक्षक की गुणवत्ता में सुधार के लिए चल रहे प्रयासों के अनुरूप हो सकता है। यह देखते हुए कि भारत ने वर्ष 2018 में गाँव-स्तर पर विद्युतीकरण हासिल कर लिया है, वर्तमान चुनौती विश्वसनीय और परिवार स्तर पर, विशेष रूप से सबसे गरीब परिवारों के लिए कनेक्शन प्राप्त करने में है, जिन्हें शुरुआती लागतों में कठिनाई या राजनीतिक बाधाओं का सामना करना पड़ सकता है (चटर्जी और पाल 2021)।

संक्षेप में, बिजली एक सुविधा से कहीं अधिक है- यह अतिरिक्त अध्ययन समय भी प्रदान कर सकती है, बच्चों की ज़िम्मेदारियों को फिर से आवंटित कर सकती है और अंततः शिक्षा के परिणामों को बढ़ा सकती है। इस प्रकार, नीति-निर्माता ग्रामीण विद्युतीकरण परियोजनाओं को नामांकन और उपलब्धि दोनों को बढ़ाने की दिशा में व्यापक रणनीति का एक प्रमुख घटक मान सकते हैं। सुरक्षित आपूर्ति और कम कीमत की गारंटी देने से अभी भी इन शैक्षिक लाभों में योगदान मिल सकता है।

टिप्पणियाँ :

  1. इसका मतलब है 'सब के घर में रोशनी'।
  2. मानक विचलन एक ऐसा माप है जिसका उपयोग उस सेट के माध्य (औसत) मूल्य से मूल्यों के एक सेट की भिन्नता या फैलाव की मात्रा को मापने के लिए किया जाता है।
  3. चेतावनी- यह परिणाम अपर्याप्त है।

अंग्रेज़ी के मूल लेख और संदर्भों की सूची के लिए कृपया यहां देखें।

लेखक परिचय : सोमदीप चटर्जी आईआईएम कलकत्ता में अर्थशास्त्र के एसोसिएट प्रोफेसर हैं। इससे पहले, वे आईआईएम लखनऊ और फ्लेम यूनिवर्सिटी, पुणे में सहायक प्रोफेसर रह चुके हैं। शिव हस्तावला बिंगहैमटन में स्टेट यूनिवर्सिटी ऑफ़ न्यूयॉर्क में अर्थशास्त्र में पीएचडी के उम्मीदवार हैं। उनके शोध के हितों में विकास अर्थशास्त्र और राजनीतिक अर्थव्यवस्था, शिक्षा और वित्तीय समावेशन पर विशेष ध्यान देने के साथ लागू सूक्ष्मअर्थशास्त्र शामिल हैं। जय कमल भारतीय प्रबंधन संस्थान, जम्मू में अर्थशास्त्र क्षेत्र में सहायक प्रोफेसर हैं। आईआईएम जम्मू में शामिल होने से पहले, उन्होंने यूनेस्को-एमजीआईईपी में जूनियर रिसर्च फेलो के रूप में काम किया है।

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