कोविड के प्रसार को रोकने के लिए भारत में 10 हफ्तों तक चला राष्ट्रीय लॉकडाउन दुनिया के सबसे कड़े लॉकडाउनों में से एक था। यह लेख उन रोगियों के स्वास्थ्य की देखभाल तक पहुँच और स्वास्थ्य परिणामों पर लॉकडाउन प्रतिबंधों के प्रभावों की पड़ताल करता है जिन्हें दीर्घकालिक जीवन-रक्षक-देखभाल की आवश्यकता होती है। इसमें दर्शाया गया है कि इस दौरान स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुंच बुरी तरह बाधित हो गई थी। मार्च और मई 2020 के बीच मृत्यु दर में 64% की वृद्धि हुई, और लॉकडाउन लागू होने के बाद के चार महीनों में अतिरिक्त मृत्यु दर कुल 25% थी।
24 मार्च 2020 को भारत ने एक राष्ट्रव्यापी लॉकडाउन की घोषणा की जिसने लोगों के घरों से बाहर निकलने पर रोक लगा दी, गैर-जरूरी वाणिज्यिक प्रतिष्ठानों और परिवहन सेवाओं को बंद कर दिया और इसे गिरफ्तारी के दंड सहित कड़ाई से लागू किया गया था। गूगल आवाजाही आंकड़े बताते हैं कि इसकी घोषणा के कुछ दिनों के भीतर ही आवाजाही में 60-80% तक कमी आ गई। यद्यपि गहन स्वास्थ्य सेवाओं को आधिकारिक तौर पर लॉकडाउन से छूट दी गई थी, लेकिन यह बात दस्तावेजों में दर्ज हो गई है कि नियमित और आपातकालीन गैर-कोविड सेवाओं में व्यापक अवरोध आए हैं (स्मिथ एवं अन्य, 2020, प्रसाद एवं अन्य 2020, इंडियास्पेंड, 2020)। हालांकि बीमारी और मृत्यु दर पर विश्वसनीय और उच्च आवृत्ति आंकड़े उपलब्ध न होने के कारण स्वास्थ्य परिणामों पर इन अवरोधों के प्रभाव की मात्रा निर्धारित करना मुश्किल है। प्रशासनिक आंकड़ों की अनुपस्थिति में गैर-वैकल्पिक स्वास्थ्य सेवाओं पर कोविड-19 लॉकडाउन के प्रभाव का मूल्यांकन करने के लिए इस तरह की देखभाल की आवश्यकता वाले रोगियों की पहचान किए जाने और प्राथमिक डेटा के संग्रह करने की आवश्यकता होती है।
एक नए शोध अध्ययन (जैन और ड्यूपास2020) में, हम राजस्थान में बड़े पैमाने पर सरकारी स्वास्थ्य बीमा कार्यक्रम के तहत दायर बीमा दावों का उपयोग करते हैं, ताकि गंभीर, पुरानी गैर-कोविड स्वास्थ्य सेवा की आवश्यकता वाले सभी रोगियों की पहचान की जा सके। हम डायलिसिस पर ध्यान केंद्रित करते हैं जो अस्पताल में की जाने वाली एक जीवनदायी दीर्घकालिक देखभाल है और जिसे आमतौर पर रोगी के जीवन के दौरान प्रत्येक सप्ताह में 2-4 बार किया जाना आवश्यक है। डायलिसिस के लिए नहीं जा पाना या उसकी अवधि का कम होना अस्पताल में भर्ती होने और मृत्यु दर (सरन एवं अन्य 2003) में बड़ी वृद्धि के साथ जुड़ा हुआ है। हमने लॉकडाउन लागू होने के बाद चार महीनों में स्वास्थ्य सेवा, बीमारी और मृत्यु दर पर इसके प्रभावों को मापने के लिए मई और अगस्त 2020 के बीच पहचाने गए मरीजों के परिवारों के साथ त्वरित फोन सर्वेक्षण की एक श्रृंखला आयोजित की।
मरीजों को उनकी देखभाल में काफी अवरोधों का सामना करना पड़ा
62% से अधिक रोगियों ने बताया कि लॉकडाउन के कारण डायलिसिस देखभाल तक पहुंच में व्यवधान हुआ है (आकृति 1)। इन अवरोधों का सबसे आम कारण यात्रा में आने वाली बाधाएँ थीं। साक्षात्कार से पता चलता है कि परिवहन के साधन मिलने में कठिनाइयां होना और अस्पताल जाने के लिए छूट की आधिकारिक मंजूरी का सबूत दिखाना भी इन अवरोधों में शामिल था। मरीजों को अस्पताल के बंद होने, सेवा से मना करने और प्रभारों में बढ़ोतरी का भी सामना करना पड़ा। तेईस प्रतिशत रोगियों को अपने अस्पतालों को बदलना पड़ा जिनमें वे आमतौर पर जाते थे। यद्यपि लॉकडाउन सार्वभौमिक था, फिर भी देखभाल पहुंच पर इसका प्रभाव निम्न-जाति और गरीब रोगियों तथा किसी अस्पताल से दूर रहने वाले लोगों के लिए और भी बदतर था। अस्पतालों के साथ किए गए साक्षात्कार मरीजों की प्रतिक्रियाओं की पुष्टि करते हैं, लेकिन यह भी सुझाव देते हैं कि अस्पतालों को खुद भी कई अवरोधों का सामना करना पड़ा - अधिकांश अस्पतालों में यात्रा अवरोधों के कारण मरीजों की संख्या में बड़ी कमी आई और कई अस्पतालों को स्टाफ एवं आपूर्ति की कमी के कारण बंद करना पड़ा।
आकृति 1. कोविड -19 लॉकडाउन के दौरान डायलिसिस देखभाल में व्यवधान
आकृति में आए अंग्रेजी शब्दों का हिंदी अर्थ
Any disruption - कोई व्यवधान
Travel barriers - यात्रा बाधाएं
Switched to new hospital - अस्पताल बदलना
Difficulty getting medicines - दवाइयां मिलने में कठिनाई
Hospital closure/refusal - अस्पताल बंद होना/मना करना
Increased hospital charges - अस्पताल के बढ़े हुए प्रभार
नोट: यह आंकड़ा रोगियों की संख्या के उस हिस्से को प्रस्तुत करता है जिन्होंने लॉकडाउन लागू होने और मई-जून 2020 के दौरान किए गए पहले सर्वेक्षण के बीच किसी भी बिंदु पर लॉकडाउन के कारण अपनी डायलिसिस देखभाल में व्यवधान का अनुभव किया था।
नीचे एक मरीज के परिवार के सदस्य के साथ एक साक्षात्कार का एक अंश दिया गया है जिसकी मृत्यु लॉकडाउन के तुरंत बाद हो गई: "हम [जिला ए] में रहते हैं और वह जिस अस्पताल में वह नियमित रूप से जाता था, वह [जिला बी] में था। जब लॉकडाउन लगाया गया और कर्फ्यू था, तो उसे डायलिसिस के लिए एक छोटी, वैकल्पिक सुविधा ढूंढनी पड़ी थी। हमें सरकारी अधिकारियों से अनुमति और कई पर्चियां प्राप्त करने के लिए कहा गया था। उसे आमतौर पर मिलने वाली देखभाल नहीं मिली। उस छोटे अस्पताल ने उसका डायलिसिस ठीक से नहीं किया और इस कारण उसकी मौत हो गई। […] उसे जो दवाएं दी जानी थीं, वे केवल [जिला बी] में उपलब्ध थीं और लॉकडाउन के कारण उनके स्थानीय क्षेत्र में उपलब्ध नहीं थीं। वह बीपी और मधुमेह के लिए 20 दिनों तक दवाई नहीं ले सका।”
मई में, खासकर महिलाओं और वंचित समूहों में मृत्यु दर तेजी से बढ़ी
मृत्यु दर में परिवर्तन का अध्ययन करने के लिए हम लॉकडाउन से पहले और बाद के चार महीनों तक मासिक मृत्यु दर खतरे या उन जीवित लागों की संख्या को चिन्हित करते हैं जिनकी मृत्यु एक महीने के दौरान हो जाती है। यह जांचने के लिए कि क्या मासिक या मौसमी उतार-चढ़ाव से मृत्यु दर में कोई परिवर्तन हो सकता है, हम रोगियों के समान समूह में पिछले वर्ष की मृत्यु दर तथा अपने सर्वेक्षण के प्रतिदर्श में मृत्यु दर की तुलना करते हैं। दोनों समूहों में दिसंबर और मार्च के दौरान मृत्यु दर में लगातार गिरावट आती है। यह अपेक्षित है, क्योंकि बीमार और सबसे कमजोर रोगियों की जल्दी मृत्यु होने की दर उच्च होती है। हालांकि मार्च और मई 2020 के बीच (लॉकडाउन के एक महीने के बाद), यह ट्रेंड उलट जाता है और मृत्यु दर 64% बढ़ जाती है। पिछले वर्ष में मृत्यु दर में इतनी वृद्धि नहीं देखी गई है। कुल मिलाकर अप्रैल-जुलाई 2020 के दौरान मृत्यु दर की तुलना मार्च 2020, और अप्रैल-जुलाई 2019 के दौरान मृत्यु दर की तुलना करने पर हमारा अनुमान है कि लॉकडाउन के बाद के चार महीनों में कुल अतिरिक्त मृत्यु दर 22-25% हो जाती है।
आकृति 2. डायलिसिस रोगियों में मासिक मृत्यु दर
नोट: यह आंकड़ा डायलिसिस के रोगियों में दिसंबर 2019 और जुलाई 2020 (मोटी हरी रेखा) के बीच मासिक मृत्यु दर के खतरे (एक महीने तक जीवित रहने वाले लोगों की हिस्सेदारी जिनकी मृत्यु उस महीने में हो जाती है) और पिछले वर्ष उसी महीने में रोगियों के उसी समूह के बीच तुलना को प्रस्तुत करता है (बिंदुवत स्लेटी रेखा)। जबकि दोनों समूहों में मृत्यु दर दिसंबर से मार्च के बीच तेजी से घटती है, मार्च में यह 2.67% थी जो तेजी से बढ़कर मई में 4.37% (64% उछाल), और जून 2020 में 3.23% हो जाती है। कुल मिलाकर अप्रैल-जुलाई 2020 के दौरान मृत्यु दर मार्च 2020 की तुलना में 22% अधिक थी और 2019 में इन्हीं महीनों की तुलना में 25% अधिक है।
यह अतिरिक्त मृत्यु दर कोविड-19 संक्रमणों के कारण होने की संभावना नहीं है- प्रतिदर्श में केवल चार रोगियों को पॉजिटिव बताया गया था और हम लॉकडाउन के तुरंत बाद मई में मृत्यु दर में सबसे बड़ी वृद्धि पाते हैं, जब समय के साथ वायरस फैल चुका था। इसके बजाय, हमें इस बात का प्रमाण मिलता है कि यह अतिरिक्त मृत्युदर डायलिसिस देखभाल में लॉकडाउन-संबंधी व्यवधानों के कारण आने वाली बाधाओं से प्रेरित है। अपने प्रतिदर्श को अप्रैल के अंत में जीवित तथा कम से कम एक माह तक लॉकडाउन में रहने वाले मरीजों की संख्या तक सीमित करने पर हम पाते हैं कि देखभाल में बाधा का एक सूचकांक बीमारी, अस्पताल में भर्ती होने और मृत्यु में वृद्धि के साथ मजबूती से जुड़ा हुआ है।
उपसमूह के अनुसार मृत्यु दर में भिन्नता का विश्लेषण इंगित करता है कि जबकि लगभग हर उपसमूह में मार्च की तुलना में मई में मृत्यु दर में बड़ी वृद्धि हुई है, यह वृद्धि महिलाओं और सामाजिक आर्थिक रूप से वंचित समूहों में अधिक है। गरीब और निम्न जाति के रोगियों को उनकी देखभाल में अधिक व्यवधानों का सामना करना पड़ा जिससे उनकी उच्च मृत्यु दर समझी जा सकती है। हालांकि पुरुषों की तुलना में महिलाओं में उच्च मृत्यु दर महिलाओं द्वारा अधिक बाधाओं का सामना करने से प्रेरित नहीं है। इसके बजाय हमें कुछ प्रमाण मिलते हैं कि ऐसा महिलाओं के बीमार होने पर परिवारों में उनकी कम देखभाल करने की इच्छा के कारण हो सकता है। जबकि अवरोधों के कारण महिलाओं और पुरुषों दोनों के बीच बीमारी में वृद्धि हुई, अस्पताल में भर्ती होने वालों में पुरुषों की संख्या में ही वृद्धि हुई, और महिलाओं में मृत्यु दर में काफी वृद्धि हुई।
चर्चा और नीतिगत निहितार्थ
मृत्यु दर के समय और आकार में 2020 में लॉकडाउन-पूर्व ट्रेंड तथा पिछले वर्ष के ट्रेंड के सापेक्ष वृद्धि होती है जो स्पष्ट रूप से यह बताता है कि देखी गई यह वृद्धि राष्ट्रव्यापी कोविड-19 लॉकडाउन के कारण है। यह तथ्य इस व्याख्या के लिए और समर्थन प्रदान करता है कि डायलिसिस देखभाल में लॉकडाउन-संबंधी अवरोध बाद के महीनों में बीमारी और मृत्यु दर के साथ धनात्मक रूप जुड़े हुए हैं, जबकि हमारा विश्लेषण एक राज्य में एक प्रकार की देखभाल तक ही सीमित है। हमारे निष्कर्ष यह इंगित करते हैं कि भारत भर में कड़े अवरोधों का इसी प्रकार की गहन स्वास्थ्य सेवाओं पर गंभीर परंतु बड़े पैमाने पर अप्रलेखित स्वास्थ्य प्रभाव हुआ है। राष्ट्रीय प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना (पीएमजेएवाई)1 स्वास्थ्य बीमा कार्यक्रम में डायलिसिस के दावों में हमारे परिणामों के समान ही 6% की कमी, ऑन्कोलॉजी देखभाल में 64% की गिरावट, और गहन हृदय शल्य चिकित्सा में 80% की कमी देखी गई (स्मिथ एवं अन्य 2020)।
ये निष्कर्ष गहन गैर-कोविड स्वास्थ्य सेवाओं पर लॉकडाउन के उन अनपेक्षित परिणामों को उजागर करते हैं जिन्हें भविष्य में महामारी के प्रसार को नियंत्रित करने के लिए नीतिगत प्रयासों का कार्यान्वयन करते समय ध्यान में रखा जाना चाहिए। यद्यपि गहन स्वास्थ्य सेवाओं को आधिकारिक तौर पर लॉकडाउन से छूट दी गई थी, परंतु व्यवहार में इन्हें लागू करना कठिन था - मरीजों को प्रशासनिक छूट प्राप्त करने और परिवहन के साधन खोजने में कठिनाइयों का सामना करना पड़ा, और अस्पताल और फार्मेसी आपूर्ति श्रृंखला बाधित हो गई। लॉकडाउन अवधि के दौरान गहन, गैर-वैकल्पिक स्वास्थ्य सेवाओं को बिना बाधा के सुनिश्चित करने के लिए काफी पहले ही बनाई जाने वाली प्रशासनिक और स्वास्थ्य प्रणाली योजना की आवश्यकता है। इसके अलावा हमारा यह निष्कर्ष कि पहले से ही कमजोर उप-जनसंख्या (कमजोर सामाजिक-आर्थिक स्थिति के रोगियों, और स्वास्थ्य प्रणाली से दूर रहने वालों) पर एक सार्वभामिक नीति का बड़ा प्रतिकूल प्रभाव हुआ था, यह दर्शाता है कि इन समूहों को अतिरिक्त, लक्षित सुरक्षा की आवश्यकता हो सकती है। हमें इस बात के भी प्रमाण मिले हैं कि लॉकडाउन में ढील दिए जाने के काफी बाद अगस्त तक भी सेवा की पहुंच सामान्य नहीं हुई थी, यह इंगित करता है कि यदि आगे कार्रवाई नहीं की जाएगी तो बीमारी और मृत्यु दर पर प्रतिकूल प्रभाव आने वाले कई महीनों तक जारी रह सकता है।
टिप्पणी :
- पीएमजेएवाई आयुष्मान भारत योजना (राष्ट्रीय स्वास्थ्य सुरक्षा मिशन) के दो घटकों में से एक है, जिसे 2018 में शुरू किया गया था। पीएमजेएवाई एक स्वास्थ्य बीमा कार्यक्रम है जिसका उद्देश्य अपने रोगियों का अस्पताल में इलाज कराने के दौरान गरीब और कमजोर समूहों पर पड़ने वाले भयावह वित्तीय बोझ को कम करना है।
लेखक परिचय: पास्कलीन ड्यूपास एक विकास अर्थशास्त्री हैं जिनकी छात्रवृत्ति वैश्विक गरीबी को कम करने पर केंद्रित है। उन्हें 1 सितंबर 2020 को स्टैनफोर्ड किंग सेंटर के ग्लोबल डेव्लपमेंट की नई फ़ैकल्टि डाइरेक्टर के पद पर नियुक्त किया गया। राधिका जैन वर्तमान में स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी में एशिया हेल्थ पॉलिसी पोस्ट-डॉक्टोरल रिसर्च फेलो हैं।
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