मानव विकास

किशोरों के मानसिक स्वास्थ्य पर शराब निषेध का अनपेक्षित प्रभाव

  • Blog Post Date 08 मई, 2025
  • लेख
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Khushboo Aggarwal

Institute of Economic Growth

khushboo@iegindia.org

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Rashmi Barua

Jawaharlal Nehru University

barua.bhowmik@gmail.com

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Rajdeep Chaudhuri

CITD, JNU

शराब का सेवन आमतौर पर किशोरावस्था के दौरान शुरू होता है, जिसका वयस्कों के स्वास्थ्य, आर्थिक स्थिरता और कल्याण पर दीर्घकालिक प्रभाव पड़ता है। इस लेख में बिहार के शराब प्रतिबंध का विश्लेषण करते हुए, पड़ोसी राज्यों से अवैध शराब की बढ़ती पहुँच और घर में स्थानीय रूप से तैयार शराब की अधिक खपत के कारण किशोरों के मानसिक स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पाया गया। इसके अतिरिक्त, जोखिम भरे व्यवहार में वृद्धि हुई और किशोरों के सामाजिक वातावरण में गिरावट आई।

वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार 10-19 आयु वर्ग की 21% आबादी के साथ, भारत में दुनिया भर में किशोरों की सबसे बड़ी आबादी है। भारत में शराब पीने की कानूनी उम्र से कम उम्र के पुरुषों का एक बड़ा हिस्सा शराब का सेवन करता है (लुका एवं अन्य 2019)। युवा आबादी में शराब का सेवन लगातार बढ़ रहा है, 13-15 वर्ष की आयु के बच्चे भी शराब का सेवन कर रहे हैं (गुरुराज एवं अन्य 2016)। यह सार्वजनिक स्वास्थ्य के अंतर्गत चिंता का विषय है, क्योंकि किशोरावस्था के दौरान शुरू हुई शराब की आदत बाद में जीवन में शराब विकारों की अधिक सम्भावनाओं से जुड़ा हुआ है (डेविट एवं अन्य 2000)। किशोरावस्था में शराब का सेवन सड़क दुर्घटनाओं, जोखिम भरे यौन व्यवहार, किशोरावस्था में गर्भधारण, हिंसक अपराधों, मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं, कम शैक्षणिक प्रदर्शन और खराब रोज़गार से भी जुड़ा है (रुहम 1996, डी 1999, फेल्सन और स्टाफ 2010, जोशी एवं अन्य 2017)। युवाओं में वयस्कों की तुलना में 'स्वयं को छूट देने की दर' अधिक होती है (लाहाव एवं अन्य 2010)- अर्थात, उनमें अकादमिक (या श्रम बाज़ार) सफलता के विलंबित पुरस्कार की तुलना में शराब और धूम्रपान से तत्काल तुष्टि चुनने की अधिक सम्भावना होती है (मर्फी और डेनहार्ट, 2016)।

हालांकि शराब के सेवन और स्वास्थ्य परिणामों के बीच कारण-संबंध का अनुमान लगाना मुश्किल है, क्योंकि इसमें कई ऐसे कारक जिनका अवलोकन नहीं हो पाता (उदाहरण के लिए, अलग-अलग व्यक्ति स्वास्थ्य में निवेश को अलग-अलग महत्व देते हैं, जिससे शराब के सेवन पर तत्काल विभिन्न प्रभाव पड़ सकते हैं : कुछ लोग अपने वर्तमान परिणामों को भविष्य से ज़्यादा महत्व देते हैं जबकि कुछ अधिक दूरदर्शी होते हैं) और कई विपरीत कारण जुड़े हुए हैं (उदाहरण के लिए, खराब मानसिक स्वास्थ्य शराब की समस्या का कारण बन सकता है)। अपने शोध (अग्रवाल एवं अन्य 2025) में हम भारत में किशोरों के शराब के सेवन और मानसिक स्वास्थ्य के बीच कारण-संबंध का अध्ययन करते हैं।

भारत में शराब की औसत खपत विकसित दुनिया से कम रही है, हाल के वर्षों में शराब की खपत में वृद्धि देखी गई है (प्रसाद 2009)। 15 वर्ष से अधिक आयु के लगभग 20% पुरुष और 1% महिलाएँ शराब का सेवन करती हैं (राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण, 2019)। गुजरात, मिज़ोरम, नागालैंड, आंध्र प्रदेश, हरियाणा, केरल, मणिपुर और तमिलनाडु द्वारा लागू किए गए प्रतिबंधों सहित भारत भर में कई शराब निषेध कानून पारित किए गए हैं। पिछले नियमों के विपरीत, रातों-रात घोषित बिहार शराब प्रतिबंध शराब की खपत, मानसिक स्वास्थ्य और अन्य संबंधित परिणामों पर शराब निषेध के कारणात्मक प्रभाव का अनुमान लगाने के लिए एक दिलचस्प 'प्राकृतिक प्रयोग' है।

बिहार मद्यनिषेध और उत्पाद शुल्क अधिनियम 2016

बिहार निषेध और उत्पाद शुल्क अधिनियम 2016 में कहा गया है कि “कोई भी व्यक्ति किसी भी मादक पदार्थ या शराब का निर्माण, बोतलबंद, वितरित, परिवहन, संग्रह, भंडारण, कब्जा, खरीद, बिक्री या उपभोग नहीं करेगा।“ शुरुआत में प्रतिबंध आंशिक था, जो देशी शराब को लक्षित करता था, लेकिन जल्द ही इसे राज्य भर में विदेशी शराब सहित सभी प्रकार की शराब को कवर करने के लिए बढ़ा दिया गया। जबकि प्रतिबंध घरेलू हिंसा को कम करने, घरेलू बचत बढ़ाने और शराब से संबंधित स्वास्थ्य समस्याओं को कम करने में प्रभावी साबित हुआ है (चक्रवर्ती एवं अन्य, 2024), प्रतिबंध को लागू करने में लगाए गए संसाधनों के कारण व्यय के बोझ के साथ-साथ, आबकारी राजस्व में भी काफी नुकसान हुआ है। प्रतिबंध ने पड़ोसी देशों जैसे नेपाल सहित राज्य के बाहर से शराब के अवैध उत्पादन और तस्करी में भी वृद्धि की, जिसके परिणामस्वरूप ज़हरीली या मिलावटी शराब की खपत हुई। समाचार पत्रों की रिपोर्ट और सार्वजनिक रूप से उपलब्ध अदालती आदेशों से पता चलता है कि अवैध शराब के परिवहन और बिक्री को सुविधाजनक बनाने के लिए किशोरों और गरीबों का शोषण किया गया। यह आश्चर्य की बात नहीं है कि प्रतिबंध के बाद के वर्षों में उत्तर प्रदेश और झारखंड जैसे पड़ोसी राज्यों के उत्पाद शुल्क राजस्व में वृद्धि देखी गई, जो दर्शाता है कि अवैध सीमा पार व्यापार वास्तव में प्रचलित था।

आकृति-1. बिहार एवं अन्य राज्यों के लिए उत्पाद शुल्क राजस्व का रुझान


हम किशोरों के मानसिक स्वास्थ्य पर इसके प्रभाव का अध्ययन करने के लिए प्रतिबंध के कारण शराब की पहुँच में सम्भावित बदलाव का फायदा उठाने का प्रयास करते हैं। हम बिहार (वह राज्य जो हस्तक्षेप के अधीन था) के परिणामों की तुलना अन्य राज्यों से करते हैं जहाँ शराब पर प्रतिबंध नहीं था। हालांकि अवैध सीमा पार का व्यापार पड़ोसी राज्यों पर प्रतिबंध के प्रभाव को बढ़ा सकता है, जो सम्भावित रूप से 'नियंत्रण' समूहों (हस्तक्षेप के अधीन नहीं) को दूषित कर सकता है। सम्भावित संदूषण समस्या से निपटने के लिए, हम बिहार के सबसे नज़दीकी राज्यों के एक नियंत्रण समूह का उपयोग करते हैं जो बिहार के साथ कोई सीमा साझा नहीं करते हैं। हमारा तर्क है कि ये राज्य (अर्थात् मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और असम) बेहतर नियंत्रण समूह हैं क्योंकि वहाँ से फैलाव की सम्भावना कम है।

डेटा और निष्कर्ष

विश्लेषण दो स्रोतों से प्राप्त डेटा का उपयोग करके किया गया है। सबसे पहले, हम किशोरों और युवा वयस्कों के जीवन को समझने (यूडीएवाईए) से अनुदैर्ध्य यानी लोन्गिच्यूडिनल डेटा का उपयोग करके 10 से 20 वर्ष के बच्चों के बीच मानसिक स्वास्थ्य परिणामों का अध्ययन करते हैं, जिसे दो चरणों में एकत्र किया गया है- पहले 2015-2016 में और फिर 2018-2019 में। इसके बाद हम जनसांख्यिकी और स्वास्थ्य सर्वेक्षण, एनएफएचएस-4 (2015-2016) और एनएफएचएस-5 (2019-2021) के दो दौरों से 15 से 20 आयु वर्ग के लिए शराब की खपत और उसके स्रोत का अध्ययन करते हैं।

शराब के उत्पादन, बिक्री और उपभोग पर पूर्ण, अघोषित प्रतिबंध के बाद, हम पाते हैं कि किशोरों के मानसिक स्वास्थ्य के परिणाम खराब हो गए (नियंत्रण समूह के सापेक्ष 0.09 मानक विचलन1)। मृत्यु के विचार और अवसादग्रस्तता के लक्षणों जैसी चरम मानसिक स्वास्थ्य स्थितियों की सम्भावना प्रतिबंध के बाद 2.6% और 4.2% बढ़ जाती हैं। प्रभावित लोगों में नींद आने में परेशानी की सम्भावना 13.5% अधिक थी, इसके अलावा थकावट की सम्भावना 5.2% और बेचैनी की सम्भावना 3.2% अधिक थी।

आकृति-2. किशोरों के मानसिक स्वास्थ्य संकेतक और सामाजिक वातावरण


इसके अलावा, बिहार में किशोरों में शराब पीने और धूम्रपान करने की सम्भावना क्रमशः 3 और 12 प्रतिशत बढ़ जाती है। साथ ही, प्रतिबंध के कारण जोखिम भरे व्यवहार में वृद्धि हुई, जिसमें बदमाशी और लड़ाई-झगड़ा शामिल है, और किशोरों के सामाजिक वातावरण में गिरावट आई। प्रतिबंध के बाद, किशोरों में पत्नी की पिटाई को उचित ठहराने, अधिक हिंसक प्रवृत्ति दिखाने और अधिक अवकाश समय लेने की सम्भावना अधिक रही, जैसा कि इंटरनेट पर बिताए गए समय और टीवी/फिल्मों में वृद्धि से स्पष्ट होता है।

प्रतिबंध का किशोरों की घरेलू संपत्ति पर भी अलग-अलग प्रभाव पड़ा। सबसे गरीब आय समूहों को मानसिक स्वास्थ्य में गिरावट के रूप में प्रतिबंध का खामियाजा भुगतना पड़ा और उनमें शराब पीने की सम्भावना 3% अधिक थी। गरीबों में शराब की खपत में वृद्धि के लिए ज्यादातर गैर-बाज़ार स्रोतों को जिम्मेदार ठहराया जा सकता है, जो शराब के कानूनी रूपों की तुलना में सम्भावित रूप से अधिक हानिकारक हैं। इसके विपरीत, सबसे अमीर व्यक्तियों की शराब की खपत में कोई महत्वपूर्ण बदलाव नहीं आया और न ही शराब के स्रोत में कोई बदलाव आया। यह दर्शाता है कि प्रतिबंध ने इस समूह के लिए शराब-विशिष्ट व्यवहार को नहीं बदला।

आकृति-3. गरीब और अमीर लोगों के बीच मादक द्रव्यों के सेवन में बदलाव

नीतिगत निहितार्थ


शराब पर पूर्ण प्रतिबंध से गरीबों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। इससे न केवल राज्य के राजस्व में कमी आती है (जिसका उपयोग कल्याणकारी योजनाओं के लिए किया जा सकता था), बल्कि इससे गरीब लोग अवैध शराब की ओर रुख करते हैं, जबकि अमीर लोग पड़ोसी राज्यों से शराब खरीदते हैं। इससे ऐसी स्थिति पैदा होती है जहाँ कमज़ोर वर्ग को अनियंत्रित और असुरक्षित शराब के संपर्क में आने जैसे नकारात्मक परिणामों का खामियाजा भुगतना पड़ता है, जो स्वास्थ्य और सामाजिक असमानताओं को और बढ़ा सकता है।

हमारे शोध से यह भी दिखता है कि ऐसी नीतियों का युवाओं पर महत्वपूर्ण, असंगत प्रभाव पड़ता है। इसके अतिरिक्त, हम शराबबंदी की अक्सर अनदेखा की जाने वाली उस लागत को उजागर करते हैं, जो एक संवेदनशील आबादी के मानसिक स्वास्थ्य पर पड़ती है। ये अनपेक्षित परिणाम कमज़ोर आबादी पर ऐसी नीतियों के व्यापक प्रभावों की अधिक व्यापक समझ की आवश्यकता को रेखांकित करते हैं।

टिप्पणी

  1. मानक विचलन एक माप है जिसका उपयोग उस सेट के माध्य (औसत) मूल्य से मूल्यों के एक सेट की भिन्नता या फैलाव की मात्रा को मापने के लिए किया जाता है।

 अंग्रेज़ी के मूल लेख और संदर्भों की सूची के लिए कृपया यहां देखें।

लेखक परिचय : खुशबू अग्रवाल दिल्ली के आर्थिक विकास संस्थान में सहायक प्रोफेसर हैं। रश्मि बरुआ जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के अंतर्राष्ट्रीय व्यापार और विकास केन्द्र में कार्यरत हैं। उनके शोध के क्षेत्रों में शिक्षा का अर्थशास्त्र और श्रम अर्थशास्त्र शामिल हैं। उनकी लिंग, प्रारंभिक बचपन मानव पूंजी निवेश (स्वास्थ्य और शिक्षा) और महिला श्रम आपूर्ति में विशेष रुचि है। राजदीप चौधरी जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के अंतर्राष्ट्रीय व्यापार और विकास केन्द्र के एक छात्र हैं। मैरियन विडाल-फर्नांडीज़ सिडनी विश्वविद्यालय के स्कूल ऑफ़ इकॉनमी में एसोसिएट प्रोफेसर हैं और साथ ही एआरसी सेंटर ऑफ एक्सीलेंस फॉर चिल्ड्रन एंड फैमिलीज़ ओवर द लाइफ कोर्स में एसोसिएट इन्वेस्टिगेटर भी हैं।

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