बैंकों की बढ़ती मजबूती और भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा उन्हें प्रदान की गई बहुउद्देशीय तरलता के बावजूद, बैंकों की ऋण वृद्धि में कोई उल्लेखनीय सुधार नहीं हुआ है। इस लेख में, के. श्रीनिवास राव बैंकों की ऋण जोखिम प्रबंधन नीति हेतु बड़े वाणिज्यिक बैंकों द्वारा अपने कौशल और जोखिम क्षमता का उपयोग केवल बड़े आकार के ऋण पर ध्यान केंद्रित करने के लिए तथा मध्यम-स्तरीय और छोटे बैंकों द्वारा शेष खुदरा समुदाय को अपनी सेवाएं उपलब्ध कराने के लिए एक नया दृष्टिकोण प्रस्तावित करते हैं।
आरबीआई (भारतीय रिजर्व बैंक) द्वारा जुलाई 2021 में जारी की गई वित्तीय स्थिरता रिपोर्ट दर्शाती है कि वित्तीय वर्ष 2020-21 के दौरान पूंजी पर्याप्तता अनुपात 130 आधार अंक1 से बढ़ा है और यह वित्तीय वर्ष 2019-20 (आरबीआई, 2021) के 14.7% के मुकाबले बढ़कर 16.03% तक पहुंचने के साथ ही बैंकिंग क्षेत्र मजबूत स्थिति में है। वित्त वर्ष 2020-21 में सकल गैर-निष्पादित संपत्ति (जीएनपीए) 8.2% से गिरकर 7.48% हो गई, और कोविड-19 की दूसरी लहर के कारण हुए गंभीर व्यवधान के बीच, वित्त वर्ष 2019-20 की तुलना में वृद्धि धीमी होने की संभावना है। वित्त वर्ष 2019-20 में दर्ज 65.4% से प्रावधान कवरेज अनुपात 70% के करीब है।
बैंकों की बढ़ती मजबूती और आरबीआई द्वारा 'लक्षित दीर्घकालिक रेपो संचालन' (टीएलटीआरओ) के तहत उन्हें पर्याप्त बहुउद्देशीय तरलता प्रदान किये जाने के बावजूद, बैंकों की ऋण वृद्धि में अब तक कोई सुधार नहीं हुआ है। हाल ही में एसबीआई (भारतीय स्टेट बैंक) की एक रिपोर्ट से पता चला है कि, वित्त वर्ष 2020-21 में बैंकों की गैर-खाद्य ऋण वृद्धि2 59 साल के निचले स्तर 5.56% पर आ गई है, जबकि वित्त वर्ष 2019-20 में यह 6.14% दर्ज की गई थी।
इस तरह की कमजोर ऋण वृद्धि के बीच, हाल की संयुक्त ग्रीनविच3 रिपोर्ट बताती है कि बड़े बैंक कॉर्पोरेट ऋण में बड़ा हिस्सा हासिल कर रहे हैं। एसबीआई, आईसीआईसीआई (इंडस्ट्रियल क्रेडिट एंड इनवेस्टमेंट कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया) बैंक, और एचडीएफसी (हाउसिंग डेवलपमेंट फाइनेंस कॉर्पोरेशन लिमिटेड) बैंक "2021 ग्रीनविच शेयर लीडर्स" के रूप में उभरे हैं, जबकि एक्सिस बैंक "2021 ग्रीनविच क्वालिटी लीडर" था। यह एक सकारात्मक विकास है क्योंकि इन बड़े बैंकों को अर्थव्यवस्था को पुनर्जीवित करने के लिए बड़ा भार उठाना था।
उक्त रिपोर्ट में आगे यह अवलोकित किया गया है कि 2015-2020 के दौरान कॉर्पोरेट बैंकिंग में एसबीआई और निजी बैंकों के बाजार प्रवेश में सुधार हुआ है। 2020 में एसबीआई द्वारा बत्तीस प्रतिशत कॉर्पोरेट फर्मों को क्रेडिट प्रदान किया गया था, जो 2016 में 30% था। निजी बैंकों ने कॉर्पोरेट फर्मों को 2016 के 17% के मुकाबले 2020 में 24% क्रेडिट प्रदान किया। यह एक अच्छे चलन की शुरुआत है कि बड़े बैंक अपने मजबूत पूंजी आधार के साथ बड़े क्षेत्रों को उधार देने के लिए एक मजबूत जोखिम-क्षमता विकसित कर रहे हैं और तदनुसार अपनी जोखिम प्रबंधन रणनीतियों को ढाल रहे हैं।
बैंकों के विलय का एक उल्लेखनीय उद्देश्य उन्हें इतना बड़ा बनाना है कि वे अपनी उधार देने की क्षमता में सुधार कर सकें। बैंक फॉर इंटरनेशनल सेटलमेंट (बीआईएस) के अनुसार, भारत में सकल घरेलू उत्पाद अनुपात के क्रेडिट में 2019 के 52.4% के मुकाबले 2020 में 56% तक मामूली सुधार हुआ है, फिर भी यह अपने साथियों से बहुत पीछे है, और यह जी-20 औसत का सिर्फ आधा है और एशिया में दूसरा सबसे कम है। यह 2015 के 64.8% से नीचे है, जो यह दर्शाता है कि बैंक सकल घरेलू उत्पाद में वृद्धि के साथ अपने क्रेडिट प्रवाह की गति को बनाये रखने में सक्षम नहीं हैं। मैं इसके निम्न कारण मानता हूँ:-
ऋण जोखिम को व्यापक रूप से वितरित किया जाता है
तार्किक रूप से देखा जाय तो, बेहतर पूंजी आधार और ऋण-जोखिम प्रबंधन क्षमता वाले बड़े बैंकों को बड़े आकार के ऋण जारी करने चाहिए। लेकिन आरबीआई की 'बेसिक स्टैटिस्टिकल रिपोर्ट- 2020' एक अलग स्थिति का संकेत देती है। उधारकर्ताओं के आकार-वार वितरण के अनुसार, 27.25 करोड़ बैंक उधारकर्ताओं में से केवल 6,79,034 (दस लाख से भी कम) उधारकर्ता बैंकों से 1 करोड़ रुपये या अधिक का उधार लेते हैं। ऋण लेने वालों में से अधिकांश खाते 1 करोड़ से कम छोटे ऋण के हैं, और 95.7 प्रतिशत बैंक उधारकर्ताओं की ऋण सीमा दस लाख रुपये तक की है। चौंकाने वाली बात यह है कि 77 फीसदी कर्जदारों पर पांच लाख रुपये से कम का कर्ज है।
वाणिज्यिक बैंकों द्वारा ऋण-जोखिम ग्रहण करने की नीति अभी भी ऋणों के आकार के अनुरूप नहीं है। ऋण-जोखिम मानकर ऋण देने की क्षमता और ऋणों के आकार के बीच कोई स्पष्ट संबंध नहीं है। परिणामस्वरूप, ऋण-जोखिम की कम प्रवृत्ति वाले छोटे और फुटकर उधारकर्ता बैंकों का अधिकांश समय ले रहे हैं और मध्यस्थता लागत में वृद्धि कर रहे हैं, और यह बड़े बैंकों की क्षमता का सबसे अच्छा उपयोग नहीं हो सकता है। इसके अलावा, ऋण वितरण की समान कागजी कार्रवाई की लगभग समान प्रक्रिया के चलते ऋण प्रसंस्करण का टर्न-अराउंड समय भी बढ़ रहा है। हाल ही में स्वचालित ऋण-प्रणाली को अपनाये जाने से ऋण-प्रक्रिया को व्यवस्थित करने और परिचालन दक्षता में सुधार करने में मदद मिली है, लेकिन अभी भी बैंकों में समय के उपयोग को अनुकूलित करने के लिए एक लंबा रास्ता तय करना है। क्षेत्र-विशिष्ट ऋण जोखिम प्रबंधन नीतियों और प्रक्रियाओं में और सुधार और उन्हें ऋणों के आकार से जोड़ने की आवश्यकता है।
सार्वभौमिक उधार प्रणाली
भारतीय बैंकिंग- सार्वभौमिक बैंकिंग प्रणाली पर काम कर रहे है जिसमें एक तरफ भारी क्रेडिट जोखिम क्षमता वाले एसबीआई जैसे बड़े बैंक हैं, तो दूसरी ओर कम जोखिम वाले छोटे सहकारी बैंक हैं जो मुख्य रूप से स्पेक्ट्रम के दूसरे छोर पर ग्रामीण इलाकों में काम कर रहे हैं। किस प्रकार के उधारकर्ता को कौन से बैंक की शाखा से संपर्क करना चाहिए, इसकी कोई परिभाषित नीति नहीं है। सार्वभौमिक ऋण नीति में एक ऐसा पारिस्थितिकी तंत्र बनता है जिसमें कोई भी उधारकर्ता किसी भी बैंक की शाखा से किसी भी राशि तक का ऋण ले सकता है और इसमें ऋण के आकार और संबंधित बैंक की अंतर्निहित जोखिम क्षमता के संदर्भ में अपनी आवश्यकताओं के अनुसार 'उपयुक्त' बैंक चुनने के लिए उन्हें प्रोत्साहित करने का कोई अलग तरीका भी उपलब्ध नहीं है। वर्तमान में, बैंक शाखा का नजदीक होना ही अब तक का एकमात्र मार्गदर्शक कारक रहा है।
वर्तमान में बैंकिंग क्षेत्र में बढ़ रहे विलय के चलते धीरे-धीरे एक त्रि-स्तरीय बैंकिंग संरचना विकसित हो रही है। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर फैले और 100 खरब रुपये से अधिक की परिसंपत्ति वाले बड़े बैंक सार्वजनिक क्षेत्र और निजी क्षेत्र दोनों में काम कर रहे हैं। राष्ट्रीय स्तर के वाणिज्यिक बैंक जैसे मध्यम परिसंपत्ति वाले कुछ बैंक, और बैंकों का एक तीसरा चरण- जिसमें क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक, लघु-वित्त बैंक, भुगतान बैंक, सहकारी बैंक और सहकारी ऋण समितियां शामिल हैं, इनकी ग्रामीण इलाकों में मजबूत उपस्थिति है। बैंकों की ये श्रेणियां नरसिम्हम समिति-I (1991) की सिफारिशों के अनुरूप हैं। इन बैंकों ने समय के साथ-साथ ऋण-जोखिम वहन के संदर्भ में विभिन्न क्षमताएं विकसित की हैं जिनका उपयोग तेजी से ऋण विस्तार के लिए किया जा सकता है। छोटे आकार के ऋण सांचा-गत (टेम्प्लेट-चालित) हो सकते हैं, जबकि मध्यम और बड़े आकार के ऋणों के मामले में क्रेडिट मूल्यांकन के लिए विभिन्न कौशल सेटों की आवश्यकता होती है। बड़ी संख्या में छोटे आकार के ऋणों-सहित उधारकर्ताओं की विशाल संख्या उधार की गुणवत्ता को प्रभावित कर सकती है, और इस सेगमेंट में खराब ऋणों को समुचित रूप से संभालने की जरुरत है। इसलिए यदि इन बैंकों के ऋण-जोखिम प्रबंधन कौशल और जोखिम उठाने की क्षमता पर विचार किया जाये तो सभी प्रकार के ऋण प्रदान करनेवाले इन बैंकों को उत्पादन-रोधी (प्रति-अर्जक) होना चाहिए।
कार्यनीतिक नीति प्रतिक्रिया का समय
अतः, इस बात का मूल्यांकन जरुर किया जाना चाहिए कि क्या बड़े वाणिज्यिक बैंकों को केवल दस लाख रुपये से अधिक के ऋण पर ही ध्यान केंद्रित करना चाहिए, क्योंकि बैंकों का दूसरा समूह शेष खुदरा समुदाय को ऋण मुहैया कराता है। इसका उद्देश्य ऋण वृद्धि की गुणवत्ता में सुधार करना और ऋण जोखिम प्रबंधन कौशल और जोखिम उठाने की क्षमता का न्यायसंगत उपयोग सुनिश्चित करना है। यह दृष्टिकोण लंबी अवधि में संपत्ति की गुणवत्ता संबंधी समस्याओं को दूर करने हेतु ऋण की मंजूरी के बाद की निगरानी के लिए सहवर्ती संसाधन बन सकता है। परिवर्तन की राह पर चली इस बैंकिंग प्रणाली के तहत, बड़े बैंकों द्वारा अपने अन्य साथी बैंकों को कम-आकार के ऋण देने हेतु सहायता करने की कल्पना के बारे में भी सोचा जा सकता है, और इसमें बचाए गए समय और प्रयास का उपयोग मजबूत बड़े आकार के क्रेडिट पोर्टफोलियो को बेहतर ढंग से विकसित करने पर ध्यान केंद्रित करने के लिए किया जा सकता है। यह उनकी शाखाओं में मांग किये जाने वाले प्रत्येक आकार के ऋण को संभालने हेतु उनकी क्षमता को बर्बाद करने के बजाय, इस उद्देश्य के लिए उनके ऋण जोखिम प्रबंधन कौशल का उपयोग करके किया जा सकता है।
विश्लेषकों के अनुसार, बैंक ऋण में वृद्धि आर्थिक विकास का एक प्रमुख संकेतक है और 100% का क्रेडिट-टू-जीडीपी अनुपात एक आदर्श अनुपात है, जो इसमें किसी व्यवधान के डर के बिना ऋण की मजबूत मांग को दर्शाता है। उच्चतम क्रेडिट-टू-जीडीपी अनुपात का होना, वास्तविक अर्थव्यवस्था में बैंकिंग क्षेत्र की आक्रामक और सक्रिय भागीदारी का संकेत है, जबकि इसकी कम संख्या अधिक औपचारिक ऋण की आवश्यकता को इंगित करती है।
यदि भारतीय बैंकिंग प्रणाली को, क्रेडिट-टू-जीडीपी अनुपात के सन्दर्भ में एशिया में अपने समकक्षों के करीब कहीं भी पहुंचना है, तो सोचने के एक नए तरीके की आवश्यकता होगी। विशेष रूप से जन-सांख्यिकीय विभाजन के दृष्टिकोण से, ऋण देने की सदियों पुरानी प्रथाएं बढ़ती अर्थव्यवस्था को मदद नहीं कर सकती हैं। वर्तमान में निहित 'एक आकार-सभी के लिए फिट' दृष्टिकोण के स्थान पर, बैंकों को उन्हें अपनी सहज विशिष्ट ऋण-जोखिम प्रबंधन क्षमता के अनुसार ऋण देने संबंधी गतिविधियों के सही आकार का चयन करने की अनुमति देते हुए उनकी क्षमता का दोहन करना, सुस्त ऋण प्रवाह का एक संभावित समाधान हो सकता है।
यद्यपि यह देखते हुए कि मेट्रो, शहरी, अर्ध-शहरी और ग्रामीण क्षेत्र के प्रत्येक स्थान पर लगभग प्रत्येक बैंक की शाखा है, यह व्यवहार्य नहीं लगता, लेकिन शुरुआत करने के लिए एक अनौपचारिक एजेंडा रखा जा सकता है जिसके तहत महानगरों और शहरी क्षेत्रों के बड़े बैंकों पर कम-आकार वाले ऋण का बोझ न पड़े इसलिए इन प्रमुख केंद्रों में ऋण-जोखिम प्रबंधन विशेषज्ञों को नियुक्त करके बड़े ऋण की परियोजनाओं को शुरू करने की उन्हें अनुमति दी जा सकती है। सभी वर्गों को ऋण देने की वर्तमान व्यवस्था एक ही बैंक की अर्ध-शहरी और ग्रामीण शाखाओं में जारी रह सकती है।
महानगरों में असाधारण रूप से बड़े बैंकों (जो विश्व के शीर्ष-100 बैंकों में शामिल हैं) द्वारा दस लाख रुपये का गृह-ऋण देने का कोई फायदा नहीं है। आखिरकार, ऐसे मेगा बैंकों का उपयोग 1 करोड़ रुपये या उससे अधिक की बड़ी परियोजनाओं को निधि देने के लिए किया जाना चाहिए। एमएसएमई (सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों) और अन्य छोटे व्यवसायों को निधि देने के लिए उधारकर्ताओं के निचले वर्ग की देखभाल करने हेतु पर्याप्त संख्या में उपयुक्त संस्थान हैं। अर्थव्यवस्था के पुनस्र्ज्जीवन में सहायता हेतु बैंकों की ऋण-जोखिम प्रबंधन नीति और जोखिम उठाने की क्षमता के उपयोग को अलग-अलग तरीके से बढ़ाने की आवश्यकता होगी। फिनटेक और गैर-बैंक भी प्रौद्योगिकी का उपयोग कर सकते हैं और मध्य-क्रम के बैंकों के साथ सहयोग कर सकते हैं ताकि ग्रामीण इलाकों में धन उपलब्ध कराया जा सके।
इसमें व्यक्त विचार निजी हैं।
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टिप्पणियाँ:
- वित्त में, आधार अंक माप की एक सामान्य इकाई है और प्रतिशत बिंदु के 1/100वें हिस्से को संदर्भित करता है।
- गैर-खाद्य ऋण में अर्थव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्रों (कृषि, उद्योग और सेवाओं) को दिया गया ऋण और व्यक्तिगत ऋण शामिल हैं।
- संयुक्त ग्रीनविच क्रिसिल (क्रेडिट रेटिंग इंफॉर्मेशन सर्विसेज ऑफ इंडिया लिमिटेड) का एक प्रभाग है।
लेखक परिचय: केम्बई श्रीनिवास राव इंस्टिट्यूट ऑफ़ इंश्योरेंस एंड रिस्क मैनेजमेंट, हैदराबाद में एडजंक्ट प्रोफेसर, हैं।
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