यद्यपि शिक्षा का अधिकार अधिनियम (2009) के अनुसार प्राथमिक कक्षाओं के लिए 200 दिनों का शिक्षण अनिवार्य है लेकिन सरकारी स्कूलों में इसकी वास्तविक संख्या बहुत कम प्रतीत होती है। गुणात्मक फील्डवर्क और राजस्थान के उदयपुर जिले में एक सर्वेक्षण के आधार पर, इंदिरा पाटिल ने यह चर्चा की है कि सरकारी स्कूलों के शिक्षक कक्षा में पढ़ाई संबंधी कार्यों की तुलना में गैर-शैक्षणिक कार्यों को प्राथमिकता क्यों देते हैं, और इससे अभिभावकों की स्कूल पसंद कैसे प्रभावित होती है।
शिक्षा का अधिकार अधिनियम (2009) (आरटीई) के अनुसार प्राथमिक कक्षाओं के लिए 200 दिनों का शिक्षण अनिवार्य है। हालाँकि, सरकारी स्कूलों में प्राथमिक कक्षाओं के लिए शिक्षण की वास्तविक संख्या आरटीई द्वारा निर्धारित संख्या की तुलना में बहुत कम है। कम कक्षा शिक्षण के प्रमुख कारणों में से एक कारण गैर-शैक्षणिक कार्यों का बोझ है जिसके कारण शिक्षकों को शिक्षण के समय के दौरान कक्षा के बाहर रहना पड़ता है।
भारतीय प्रणाली में शोध की जवाबदेही (आरएआईएसई)नामक एक शोध अध्ययन के अंतर्गत गुणात्मक फील्डवर्क और राजस्थान राज्य के उदयपुर जिले में 40 से अधिक सरकारी और कम शुल्क वाले निजी (एलएफपी) स्कूलों में 100 से अधिक शिक्षकों और प्राचार्यों का एक मात्रात्मक सर्वेक्षण के आधार पर मैंने इस बात पर चर्चा की है कि शिक्षक गैर शैक्षणिक कर्यों को प्राथमिकता क्यों देते हैं, और यह कक्षा में पढ़ाई संबंधी कार्यों (या शिक्षण) के समय को कैसे प्रभावित करता है और बदले में माता-पिता की स्कूल पसंद इससे किस प्रकार प्रभावित होती है।
कक्षा में पढ़ाई संबंधी कार्यों पर बिताए समय में कमी
कक्षा में पढ़ाई संबंधी कार्यों के समय को वह समय माना जा सकता है जिसे शिक्षक कक्षा में छात्रों के साथ शिक्षण और इससे जुड़ी हुई गतिविधियों में व्यतीत करता है। दो पहलू कक्षा में पढ़ाई संबंधी कार्यों के समय को निर्धारित करते हैं - स्कूल के कार्य दिवसों की संख्या, और प्रत्येक कार्य दिवस में कक्षा में शिक्षक द्वारा बिताए गए घंटों की संख्या।
राजस्थान राज्य सरकार के शिक्षा विभाग द्वारा प्रकाशित 2019-20 के वार्षिक शैक्षिक कैलेंडरमें स्कूलों के लिए उत्सव के दिनों के अलावा 206 कार्य दिवस निर्धारित किए गए हैं। मई 2019 से अप्रैल 2020 तक के शैक्षणिक वर्ष के दौरान राजस्थान में दो चुनाव हुए थे - राष्ट्रीय स्तर पर आम चुनाव और ग्रामीण स्तर पर पंचायत चुनाव। सरकारी-स्कूल के शिक्षकों को बूथ स्तर के अधिकारियों के रूप में नियुक्त किया गया था और उन्हें चुनाव ड्यूटी के लिए प्रशिक्षण दिया गया था। इसके अलावा स्कूलों में मतदान केंद्र भी बनाये गये थे और सुरक्षा एवं अन्य तैयारियों के कारण इन्हें कुछ दिनों के लिए बंद कर दिया गया था। इस प्रकार, इनमें से प्रत्येक चुनाव के दौरान लगभग 10 दिनों तक विद्यालयों में कोई शैक्षणिक कार्य नहीं हुआ था। परीक्षा के सप्ताहों को जोड़ दिया जाए तो शिक्षण और पढ़ाई संबंधी कार्यों के लिए 200 से भी कम कार्य दिवस उपलब्ध रहे थे।
इसके अलावा वार्षिक शैक्षणिक कैलेंडर के अनुसार अप्रैल-सितंबर (ग्रीष्मकालीन अनुसूची) के दौरान 4 घंटे और अक्टूबर-मार्च (शीतकालीन अनुसूची) के दौरान 5 घंटे का दैनिक शिक्षण अनिवार्य है। इसके अनुसार विद्यालयों के लिए शीतकालीन अवधि के लिए निम्नलिखित समय सारिणी निर्धारित की गई है:
तालिका 1. वार्षिक शैक्षिक कैलेंडर (शिक्षा विभाग, राजस्थान) द्वारा निर्धारित शीतकालीन समय सारणी
प्रार्थना |
सुबह 10 – सुबह 10:25 |
कक्षाएं |
सुबह 10:25– दोपहर 1:05 |
मध्याह्न भोजन |
दोपहर 1:05– दोपहर 1:30 |
कक्षाएं |
दोपहर 1:30– सांय 4 |
हालाँकि शिक्षण में खर्च किया गया वास्तविक समय बहुत कम प्रतीत होता है। चिकपुर1गाँव के एक सरकारी स्कूल की कक्षा 5 में देखी गई गतिविधियों के अंश निम्नानुसार हैं:
दिन 1: शिक्षक सुबह 10:15 बजे स्कूल पहुंचते हैं। छात्र प्रार्थना शुरू होने के बाद भी, सुबह 10:30 बजे तक आते रहते हैं। प्रार्थना सुबह 10:20 बजे शुरू होती है और 10:50 बजे तक चलती है। प्रार्थना के बाद, कक्षा 1 से 5 के छात्रों को एक साथ बैठकर 'टीवी' (स्मार्ट बोर्ड, जो एक संवादात्मक डिजिटल बोर्ड है, 'टीवी' के रूप में जाना जाता है)2 देखने के लिए कहा जाता है। शिक्षक कहता है कि उसे अगले शैक्षणिक वर्ष के लिए पाठ्यपुस्तकों की आवश्यकता-संबंधी कागजात तैयार करने हैं और इसे भेजने का आज अंतिम दिन है।
छात्रों को कक्षा के अंदर भेज दिया जाता है, उनमें से कुछ स्मार्ट बोर्ड पर पाठ बदल रहे हैं, कुछ खेल रहे हैं, दौड़ रहे हैं, और कुछ पढ़-लिख रहे हैं। कक्षा अव्यवस्थित है। सुबह 11:20 बजे, कक्षा 6 का एक लड़का छात्रों को दूध पीने के लिए बाहर बुलाता है। छात्र तुरंत कक्षा से बाहर चले जाते हैं और 11:50 बजे लौटते हैं। कुछ छात्र बाहर खेल रहे हैं। कुछ समय बाद शिक्षक कक्षा में प्रवेश करता है। छात्रों को चुप रहने के लिए कहता है। वह उन्हें बताता है कि आज कोई पढ़ाई नहीं होगी क्योंकि वह कुछ कागजात जमा करने के लिए ब्लॉक कार्यालय जाएगा। अब तक भी कई छात्र बाहर खेल रहे हैं। केवल कुछ ही स्मार्ट बोर्ड देख रहे हैं, जबकि कुछ पढ़ -लिख रहे हैं या अंदर खेल रहे हैं। स्कूल में दोपहर 1 बजे से 2 बजे के बीच भोजनावकाश होता है। छात्र उपस्थिति अब कम हो गई है। और जो छात्र उपस्थित हैं वे ज्यादातर खेल रहे हैं, इधर-उधर दौड़ रहे हैं। छात्र दोपहर 3:30 बजे निकलते हैं, जबकि शिक्षक 3:50 बजे निकल जाते हैं।
दिन 2: आज दृश्य पिछले दिन से थोड़ा अलग है। भोजन से पहले के सत्र के दौरान शिक्षक प्राथमिक कक्षाओं में छात्रों की ऊंचाई और वजन दर्ज कर रहा है। कक्षा 1 से 5 के कुछ छात्र गलियारे में खेलते हुए दिखाई देते हैं जबकि कुछ स्मार्ट बोर्ड देख रहे हैं। दोपहर के भोजन के बाद शिक्षक दोपहर 2 बजे से अपराह्न 3 बजे तक एक घंटे के लिए कक्षा में व्यस्त रहता है और उसके बाद छात्रों से खेल खेलने के लिए कहता है।
चिकपुर के एक सरकारी स्कूल में एक सामान्य दिन पर चर्चा करते हुए एक शिक्षक ने कहा - “स्कूल सुबह 10 बजे शुरू होता है। 11:30 बजे तक हम प्रार्थना, सफाई और दूध वितरण करने संबंधी कार्य करते हैं। फिर हम दोपहर 1 बजे तक कक्षाएं चलाते हैं तथा साथ ही साथ दोपहर के भोजन की तैयारी की निगरानी भी करते हैं। इस बीच अगर हमें शिक्षा विभाग के अधिकारियों जैसे कि प्रखंड शिक्षा अधिकारी, जिला शिक्षा अधिकारी आदि से कोई व्हाट्सएप संदेश प्राप्त होता है, और हमें कुछ कार्य सौंपे जाते हैं तो हम उन कार्यों (जैसे कि स्कूल प्रबंधन या निधि के उपयोग, मध्याह्न भोजन व्यय के संबंध में डेटा प्रदान करना) को पूरा करते हैं और इन्हें संबंधित अधिकारियों को प्रेषित करते हैं। फिर दोपहर 1 बजे से दोपहर 1:30 बजे तक भोजनावकाश होता है, जो अक्सर समाप्त होते-होते दोपहर के 2 बज जाता है। फिर उसके बाद 3 बजे तक कक्षाएँ चलती हैं। दोपहर 3 बजे के बाद हम ज्यादातर छात्रों को खेलने के लिए छोड़ देते हैं क्योंकि उनका कक्षाओं में बैठने का मन नहीं करता है।”
इन दो दिनों में शिक्षकों ने कक्षा के समय के दौरान कागजात तैयार करने संबंधी कार्य किए और कक्षा में बहुत कम समय बिताया। अध्ययन के गुणात्मक और मात्रात्मक दोनों चरणों के दौरान उदयपुर के अन्य सरकारी स्कूलों में भी इसी तरह की गतिविधियां दर्ज की गईं थीं।
तालिका 2. चिकपुर में सरकारी स्कूल में एक सामान्य दिन
प्रार्थना |
सुबह 10:15 – सुबह 10:45 |
कक्षा-कक्षों की सफाई |
सुबह 10:45 – सुबह 11 |
दूध वितरण |
सुबह 11 – सुबह 11:30 |
कक्षाएं |
सुबह 11:30 – दोपहर 1 |
मध्याह्न भोजन |
दोपहर 1 – दोपहर 2 |
कक्षाएं |
दोपहर 2 – दोपहर 3:15 |
खेल-कूद |
दोपहर 3:15 – सायं 3:45 |
कक्षा में शिक्षण कार्य प्रतिदिन लगभग 2.5-3 घंटे तक होता है, अर्थात निर्धारित समय का लगभग 50-60%। इस प्रकार पढ़ाई संबंधी कुल कार्य का समय आरटीई द्वारा अनिवार्य किए गए समय से काफी कम है। जैसा कि देखा गया है - पढ़ाई संबंधी कार्यों का समय कम होने के मुख्य कारणों में से एक कारण गैर-शैक्षणिक कार्य का बोझ है। यह संभव है कि शिक्षक पढ़ाई के लिए निर्धारित घंटों के दौरान कक्षा में छात्रों के साथ समय न बिताने का एक बहाना यह दे सकते हैं कि उनके ऊपर गैर-शैक्षणिक कार्य का बोझ है। हालाँकि, गैर-शैक्षणिक कार्य के बोझ को अनदेखा नहीं किया जा सकता है।
शिक्षक गैर-शिक्षण कार्यों को प्राथमिकता क्यों देते हैं
जब ढ़ोलपुर गाँव के एक सरकारी-स्कूल के शिक्षक से बात की गई तो उन्होंने कहा, “जब अधिकारी स्कूल का दौरा करते हैं, तो वे यह जाँच करते हैं कि दूध वितरित किया गया है या नहीं और स्कूल में मध्याह्न भोजन बनाया गया है या नहीं। इस बात पर कोई जोर नहीं दिया जाता है कि गणित या हिंदी की कक्षा किस दिन हुई थी। हम दूध और भोजन वितरण सुनिश्चित करने में रोजाना 2-3 घंटे बिताते हैं। कभी सिलेंडर नहीं होता है, कभी किराने का कोई सामान नहीं होता है तो कभी किसी दिन दूध नहीं होता है। फिर भी चाहे कैसे भी हो हमें यह सुनिश्चित करना होता है कि दूध और भोजन का वितरण अवश्य हो। यह अनिवार्यता कक्षा लेने के बजाय हमारी प्राथमिकता बन जाती है”।
इस बातचीत के दौरान उन्हें पंचायत प्राथमिक शिक्षा अधिकारी से व्हाट्सएप पर एक अग्रेषित संदेश प्राप्त हुआ जिसमें स्कूल में नियुक्त शिक्षकों और शिक्षकों के रिक्त पदों की संख्या का डेटा मांगा गया था।
व्हाट्सएप संदेशों के माध्यम से प्राप्त होने वाले प्रशासनिक आदेशों और परिपत्रों की आवृत्ति के बारे में पूछे जाने पर सैनपुर गांव में एक सरकारी-स्कूल के प्रधानाचार्य ने कहा, “हमें एक दिन छोड़ कर हर एक दूसरे दिन एक परिपत्र प्राप्त होता है। डेटा ऑनलाइन उपलब्ध हैं लेकिन अधिकारियों को डेटा प्राप्त करने के लिए प्रधानाचार्यों (या शिक्षकों) को व्हाट्सएप संदेश भेजना अधिक सुविधाजनक लगता है। उदाहरण के लिए - पिछले हफ्ते, विधान सभा सत्र के दौरान शिक्षक की रिक्तियों की संख्या पर एक प्रश्न पूछा गया था। यह जानकारी ऑनलाइन उपलब्ध है, फिर भी हमें पंचायत के सभी सरकारी स्कूलों में शिक्षक नियुक्तियों और रिक्तियों की संख्या भेजने के लिए उच्च अधिकारियों से एक संदेश मिला”।
इस प्रकार ऐसा लगता है जैसे काम को दोहराया जा रहा है, क्योंकि शिक्षक अक्सर उन आंकड़ों को संकलित करने और भेजने में लगे रहते हैं जिनका पहले ही दस्तावेजीकरण किया जा चुका है और जो ऑनलाइन या अधिकारियों के पास उपलब्ध हैं।
सैनपुर गाँव के सरकारी-स्कूल शिक्षक के अनुसार, “आम धारणा यह है कि सरकारी स्कूलों के शिक्षक लापरवाह होते हैं और काम नहीं करते हैं। हम काम करते हैं, लेकिन लिपिकों की तरह अधिक और शिक्षकों की तरह कम। हम कागजों को भरते रहते हैं और डेटा अपलोड करते हैं। इसलिए ठीक से पढ़ाने के लिए पर्याप्त समय नहीं मिलता है। यदि आप रात में शाला दर्पण3वेबसाइट पर लॉग इन करेंगे तो आपको हजारों शिक्षक ऑनलाइन डेटा भरते हुए मिलेंगे। हम कागजों को स्कूल में तैयार करते हैं और घर पर ऑनलाइन दस्तावेजीकरण करते हैं। स्कूल में ठीक से कार्य करने वाला कंप्यूटर या गाँव में हाई-स्पीड इंटरनेट नहीं उपलब्ध है।”
प्रशासनिक कार्यों का तदर्थ वितरण और आदेशों/परिपत्रों वाले व्हाट्सएप संदेशों के लिए सतर्क रहकर प्रतीक्षा करना अक्सर कठिन होता है। चिकपुर गाँव के एक सरकारी-स्कूल के प्रधानाचार्य के अनुसार, “जैसे ही मेरा फोन बजता है तो मैं व्हाट्सएप संदेश के बारे में सोचने लगता हूं कि इसमें क्या हो सकता है - प्रशिक्षण, कोई समारोह, या डेटा की आवश्यकता। यह हमारे सिर पर लटकी हुई तलवार की तरह होती है।” इस प्रकार शिक्षकों को कक्षा में पढ़ाई संबंधी कार्यों के बजाय गैर-शैक्षणिक कार्य को पूरा होने के लिए जिम्मेदार ठहराया जाता है।
उदयपुर में सरकारी स्कूलों में विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में, मुख्य रूप से आदिवासी समुदायों के जो छात्र पढ़ते हैं, वे ज्यादातर पहली पीढ़ी के शिक्षार्थी हैं। गैर-शैक्षणिक कार्य के कारण कक्षा में शिक्षकों की सीमित उपस्थिति और व्यस्तता के कारण पाठ पूरा होने में देरी होती है और छात्रों के सीखने पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। यह आगे वंचित समुदायों के छात्रों के मौजूदा अधिगम अंतर को बढ़ाता है।
निजी स्कूल शिक्षकों की तुलना में सरकारी स्कूल शिक्षकों का गैर-शैक्षणिककार्य
आकृति 1 दर्शाती है कि लगभग 75% सरकारी शिक्षकों ने कहा कि वे कक्षा के समय में गैर-शैक्षणिक गतिविधियों में शामिल रहते हैं। दूसरी ओर, आकृति 2 से पता चलता है कि एलएफपी स्कूलों में केवल 13% शिक्षकों ने कहा कि वे कक्षा के समय में गैर-शैक्षणिक कार्य4में शामिल थे। जबकि निजी स्कूलों के 43.5% शिक्षकों ने कहा कि वे कक्षा के घंटों के अलावा या अतिरिक्त कक्षाओं के दौरान गैर-शैक्षणिक कार्य में संलग्न रहते हैं, जबकि 23.9% ने कहा कि उनके पास गैर-शैक्षणिक कार्यों की जिम्मेदारियां नहीं हैं।
आकृति 1. सरकारी-स्कूल शिक्षकों द्वारा गैर-शैक्षणिक गतिविधियाँ कब की जाती हैं?
आकृति में आए अंग्रेजी शब्दों का हिंदी अर्थ
In class time - कक्षा समय में
After school or at home - स्कूल के बाद या घर पर
Non-class hours or Extra period - कक्षा घंटों के अलावा या अतिरिक्त कालांश
No non-teaching work - कोई गैर-शैक्षणिक कार्य नहीं
आकृति 2. कम शुल्क वाले निजी-स्कूल शिक्षकों द्वारा गैर-शिक्षण गतिविधियाँ कब की जाती हैं?
आकृति में आए अंग्रेजी शब्दों का हिंदी अर्थ
In class time - कक्षा समय में
After school or at home - स्कूल के बाद या घर पर
Non-class hours or Extra period - कक्षा घंटों के अलावा या अतिरिक्त कालांश
No non-teaching work - कोई गैर-शैक्षणिक कार्य नहीं
इसके अलावा सर्वेक्षण में शामिल 83% सरकारी-स्कूल प्रधानाचार्यों ने कहा कि वे कक्षा के समय में गैर-शैक्षणिक कार्य करते हैं। दूसरी ओर, निजी स्कूलों के केवल 6% प्रधानाचार्यों ने कहा कि वे कक्षा के समय में गैर-शैक्षणिक कार्य करते हैं जबकि उनमें से 94% ने कहा कि उन्होंने यह काम शिक्षकों को वितरित किया है जो इसे कक्षा समय के अलावा या खाली सत्रों के दौरान करते हैं।
सरकारी स्कूल के शिक्षक एलएफपी स्कूलों के अधिकांश शिक्षकों की तुलना में बेहतर योग्य होते हैं। उदयपुर में जिन 46 एलएफपी-स्कूल शिक्षकों का सर्वेक्षण किया गया, उनमें से लगभग एक चौथाई के पास शिक्षण की डिग्री नहीं थी। इसके विपरीत सर्वेक्षण किए गए सभी 60 सरकारी-स्कूल शिक्षकों के पास शिक्षण डिग्री थी, जबकि सभी सरकारी-स्कूल के शिक्षकों को वार्षिक सेवाकालीन प्रशिक्षण प्राप्त हुआ और एलएफपी के स्कूली शिक्षकों को किसी भी प्रकार का सेवाकालीन प्रशिक्षण नहीं मिला। हालांकि गैर-शैक्षणिक कार्य के बोझ के परिणामस्वरूप सरकारी स्कूलों में शिक्षकों द्वारा कक्षाओं में निजी स्कूलों में शिक्षकों की तुलना में कम समय व्यतीत किया जाता है।
कक्षा में पढ़ाई संबंधी कार्य स्कूल की पसंद को कैसे प्रेरित करता है
यह देखा जाता है कि कक्षा में पढ़ाई संबंधी कार्यों का समय माता-पिता के लिए अपने बच्चों को निजी स्कूलों में भेजने के लिए प्रमुख प्रेरक कारकों में से एक है। चिकपुर सरकारी स्कूल की कक्षा पाँच की एक छात्रा की मां सरिता ने कहा कि उसे स्कूल में पढ़ाई के कम समय के बारे में पता था और कहा कि “छोटी कक्षाओं में बिल्कुल पढ़ाई नहीं होती है। शिक्षक 'टीवी' चालू कर देते हैं और छात्रों को इसे देखने के लिए कह देते हैं। वे कागजी कार्रवाई करने में व्यस्त हो जाते हैं (कागज लिखते रहते हैं)।
इसके अलावा चिकपुर गाँव में अपने बच्चों को पड़ोसी लालपुर गाँव के एक एलएफपी स्कूल में भेजने वाली मनीषा कहती हैं कि, “निजी स्कूलों में, शिक्षक छात्रों पर ध्यान देता है, कक्षा में मौजूद रहता है और छात्र स्कूल में रहते हैं”। इस प्रकार परिवारों की स्कूल पसंद का एलएफपी की ओर झुकाव इस बात से प्रेरित हो रहा है कि कक्षा में अधिक समय बिताया जा रहा है भले ही वह गुणवत्तापूर्ण हो या न हो।
आगे की राह : कक्षा में पढ़ाई संबंधी कार्यों को प्राथमिकता देना
नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति में यह स्वीकार किया गया है कि गैर-शैक्षणिक कार्य शिक्षकों के लिए सबसे बड़ी चुनौतियों में से एक है। इसमें यह भी कहा गया है कि “उच्चतम न्यायालय के निर्देशों के अनुसार चुनाव ड्यूटी और सर्वेक्षण करने से संबंधित न्यूनतम कार्यों के अलावा शिक्षकों को स्कूल के समय के दौरान ऐसी किसी भी गैर-शैक्षणिक गतिविधि में भाग लेने के लिए न तो अनुरोध किया जाएगा और न ही अनुमति दी जाएगी जो शिक्षक के रूप में उनकी क्षमताओं को प्रभावित करती हो।”
गैर-शैक्षणिक कार्य में अधिकतर स्कूल प्रबंधन, डेटा संग्रह और दस्तावेजीकरण शामिल होता है और कई बार इस कार्य में दोहराव और मात्रा ही अधिक होती है। दिन में गैर-शैक्षणिक कार्य का बार-बार वितरण और उच्च अधिकारियों के कॉल पर तैयार रहने का दबाव अक्सर शिक्षकों पर बोझ डालता है और शिक्षण के मुख्य कार्य को पूरा करने में समय लगाने की उनकी क्षमता को प्रभावित करता है।
यह महत्वपूर्ण है कि उच्च पदों पर आसीन नीति नियंता और नौकरशाह यह विचार करें कि शिक्षकों को गैर-शैक्षणिक कार्य आवंटित या निर्देशित करते समय प्रक्रियाओं में दोहराव और कार्य की अधिक मात्रा को कैसे कम किया जा सकता है। इसके अलावा प्रशासनिक कार्य करने के लिए स्कूलों में अधिक से अधिक गैर-शैक्षणिक कर्मचारियों की भर्ती करने की आवश्यकता है। ऐसे मामलों में जहाँ दस्तावेज़ीकरण ऑनलाइन है, तब ऑफ़लाइन दस्तावेज़ीकरण को समाप्त किया जाना चाहिए। ग्रामीण स्कूलों में, जहां इंटरनेट/आईटी कनेक्टिविटी नहीं है या सीमित है, इन्हें उपलब्ध कराया जाना चाहिए, और ऑफ़लाइन दस्तावेजीकरण की अनुमति दी जा सकती है। जहां पहले से ही डेटा उपलब्ध है वहाँ स्कूलों को इसे संकलित करने और भेजने के लिए नहीं कहा जाना चाहिए। इसके अलावा शिक्षकों को अन्य गैर-शैक्षणिक गतिविधियों के बजाय मुख्य रूप से कक्षा में पढ़ाई संबंधी कार्यों के लिए जवाबदेह ठहराया जाना चाहिए।
टिप्पणियाँ:
- पहचानों की सुरक्षा के लिए सभी क्षेत्रों और व्यक्तियों के छद्म नाम दिए गए हैं।
- छात्र (माता-पिता सहित) स्मार्ट बोर्ड को 'टीवी' के रूप में संदर्भित करते हैं, जो छात्रों को व्यस्त रखने के लिए ध्वनि और दृश्य प्रभावों के माध्यम से मनोरंजन के साधन के रूप में समझा जाता है। पाठ अंग्रेजी और हिंदी में होते हैं - कई शब्द या वाक्यांश छात्रों की समझ के परे होते हैं क्योंकि ये स्थानीय रूप से उपयोग नहीं किए जाते हैं (जहां वे स्थानीय भाषा अर्थात मेवाड़ी बोलते हैं)। शिक्षकों ने स्मार्ट बोर्ड का उपयोग करने संबंधी कोई प्रशिक्षण प्राप्त नहीं किया है, और वे छात्रों को पाठ के संदर्भ को आसान तरीके से नहीं समझाते हैं। इसके बजाय स्मार्ट बोर्ड का उपयोग शिक्षकों के विकल्प के रूप में किया जाता है, जब वे कक्षा में उपस्थित नहीं होते हैं और गैर-शैक्षणिक कार्य कर रहे होते हैं।
- “शाला दर्पण” राजस्थान की राज्य सरकार द्वारा प्रबंधित एक ऑनलाइन पोर्टल है जो सरकारी स्कूलों और शिक्षा कार्यालयों के बारे में सूचना के डेटाबेस के रूप में कार्य करता है।
- शिक्षकों के अनुसार, एलएफपी स्कूलों में गैर-शैक्षणिक गतिविधियों में मुख्य रूप से सांस्कृतिक और पाठ्येतर गतिविधियाँ शामिल हैं। कुछ शिक्षकों ने नोटबुक-जाँचने, परीक्षा की उत्तर पुस्तिकाएं जांचने और छात्र उपस्थिति रजिस्टर की देखरेख करने को भी गैर-शैक्षणिक गतिविधियों के रूप में भी माना। दूसरी ओर, सरकारी स्कूलों में, गैर-शैक्षणिक गतिविधियों में ज्यादातर स्कूल प्रबंधन/प्रशासन से संबंधित कार्य, उच्च अधिकारियों द्वारा निर्देशित डेटा दस्तावेजीकरण, और मध्याह्न भोजन, दूध वितरित करना या आयरन गोलियों का वितरण जैसी विभिन्न सरकारी योजनाएं शामिल हैं।
लेखक परिचय: इंदिरा पाटिल राजस्थान के उदयपुर में विद्या भवन सोसाइटी के लिए काम करती हैं। वे राजस्थान और बिहार में प्राथमिक शिक्षा प्रणाली में जवाबदेही संबंधों को समझने के लिए एक शोध अध्ययन (आरएआईएसई) का हिस्सा है।
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