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भारत में समाचार पत्र बाज़ार के राजनीतिक निर्धारक

समाचार पत्र भारतीय मतदाताओं के लिए राजनीतिक जानकारी का एक महत्त्वपूर्ण स्रोत हैं। लेख में इस बात पर प्रकाश डाला गया है कि राजनीतिक कारक समाचार पत्र बाज़ार को किस तरह से प्रभावित करते हैं। 2000 के दशक क...

  • लेख

भारत में उद्यमिता और रोज़गार में लैंगिक असमानताओं का आकलन

आर्थिक विकास सम्पूर्ण कार्यबल के सफल उपयोग पर निर्भर करता है। एजाज़ ग़नी का तर्क है कि लैंगिक समानता न केवल मानवाधिकारों का एक प्रमुख स्तम्भ है, बल्कि उच्च और अधिक समावेशी आर्थिक विकास को बनाए रखने का ए...

  • दृष्टिकोण

क्या सुरक्षित पेयजल से बच्चों के शैक्षिक परिणामों में सुधार हो सकता है?

यह अच्छी तरह से प्रमाणित हो चुका है कि शुद्ध पानी पीने से स्वास्थ्य संबंधी लाभ होते हैं, लेकिन क्या इससे बच्चों के शैक्षिक परिणामों में भी सुधार हो सकता है? साफ पानी का अधिकार एक मूल अधिकार है और एक स...

  • लेख
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शहरीकरण, लैंगिक और सामाजिक परिवर्तन: भारत में महिला श्रम-शक्ति की भागीदारी इतनी कम क्यों है?

भारत में महिलाओं की श्रम-शक्ति में भागीदारी एक जटिल सामाजिक मसला है, जो अन्य बातों के अलावा– पितृ-सत्तात्मक मानदंड, ग्रामीण-शहरी संक्रमण, और मांग एवं आपूर्ति कारकों के बेमेल होने के परिणामस्वरूप उत्पन...

  • लेख

ई-संगोष्ठी का परिचय: उत्तर भारत में शहरीकरण, लैंगिक और सामाजिक परिवर्तन

भारत में तेजी से हो रहा शहरीकरण लोगों के व्यवहार के प्रचलित सामाजिक और आर्थिक पैटर्न को इस तरह से बदल रहा है कि विद्वान इसे अभी पूरी तरह से नहीं समझ सके हैं। भारत में तेजी से हो रहा यह शहरीकरण कई महत्...

  • लेख

भारत में भूमि के स्वामित्व के सन्दर्भ में लैंगिक और आंतर-लैंगिक अंतर

हालाँकि महिलाओं के भू-स्वामित्व को उनके आर्थिक सशक्तिकरण के एक प्रमुख संकेतक के रूप में पहचाना जाता है, भारत में कितनी और किन महिलाओं के पास भूमि है, इसका कोई विस्तृत अनुमान नहीं है। नौ राज्यों के लिए...

  • लेख

शौचालय नहीं तो दुल्हन नहीं: भारत में पुरुषों का शौचालय स्वामित्व और उनकी शादी की संभावनाएं

निरंतर किये जा रहे अनुसंधान से पता चलता है कि परिवारों के लिए स्वच्छता निवेश में लागत एक प्रमुख बाधा रही है। मध्य-प्रदेश और तमिलनाडु में किये गए एक सर्वेक्षण के आधार पर, यह लेख दर्शाता है कि वित्तीय औ...

  • लेख

क्या ‘वादे’ कारगर होते हैं? 'अपनी बेटी अपना धन' कार्यक्रम के दीर्घकालिक लाभों का आकलन

1994-1998 के दौरान, हरियाणा की राज्य सरकार ने बाल विवाह की समस्या के समाधान हेतु एक सशर्त नकद हस्तांतरण कार्यक्रम चलाया; जिसके तहत, समाज के हाशिए पर रहने वाले वर्गों के माता-पिता को, यदि उनकी बेटी 18 ...

  • लेख

शहर-नियोजन को लोकतांत्रिक बनाना: 'मैं भी दिल्ली' अभियान से कुछ विचार

दिल्ली मास्टर प्लान 2041 के अंतर्गत नागरिकों के विचारों को शामिल करना सुनिश्चित करने हेतु वर्ष 2018 में ‘मैं भी दिल्ली’ अभियान शुरू किया गया था। इस संदर्भ में, शलाका चौहान शहर-नियोजन प्रक्रियाओं में स...

  • फ़ील्ड् नोट

बैंकों की ऋण-जोखिम प्रबंधन संबंधी नीतियां: एक नया दृष्टिकोण

बैंकों की बढ़ती मजबूती और भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा उन्हें प्रदान की गई बहुउद्देशीय तरलता के बावजूद, बैंकों की ऋण वृद्धि में कोई उल्लेखनीय सुधार नहीं हुआ है। इस लेख में, के. श्रीनिवास राव बैंकों की ऋण...

  • दृष्टिकोण

केवल विकास ही नहीं: गरीबी दूर करने में पुनर्वितरण का महत्व

हाल के अध्ययनों से इस बात की पुष्टि मिलती है कि विकासशील देशों में नीतियां और संस्थान विश्व के संपन्न देशों के अनुरूप बदल रहे हैं और इसी वजह से इन देशों की प्रति-व्यक्ति आय औद्योगीकृत देशों के बराबर ह...

  • दृष्टिकोण

क्या ओबीसी हेतु आरक्षण विकास के लिए अच्छा है?

सकारात्मक कार्रवाई के बारे में बहस हमेशा योग्यता बनाम सामाजिक न्याय के सवाल में घिरी रही है, और जाति-आधारित जनगणना किये जाने की चर्चा ने एक बार फिर से अन्य पिछड़े वर्गों (ओबीसी) के आरक्षण से संबंधित ...

  • लेख

क्या ग्रामीण महिलाओं द्वारा फोन का उपयोग किये जाने से उनके प्रति लैंगिक मानदंडों में उदारता आती है?

भारत में मोबाइल नेटवर्क की बेहतर कनेक्टिविटी के बावजूद, महिलाओं की प्रौद्योगिकी तक पहुंच और उनके द्वारा इसके उपयोग के संबंध में लैंगिक पूर्वाग्रह अभी तक बने हुए हैं। इस लेख में, एक अध्ययन से प्राप्त प...

  • फ़ील्ड् नोट

भारत में बच्चों के टीकाकरण की समयबद्धता और उसका कवरेज

यूनिवर्सल इम्यूनाइजेशन प्रोग्राम के तहत 12 साल से कम उम्र के बच्चों के लिए मुफ्त में टीकाकरण उपलब्ध होने के बावजूद, विश्व के एक तिहाई बच्चों की मौतें भारत में जिन बीमारियों की रोकथाम वैक्सीन से हो सकत...

  • दृष्टिकोण

श्रमिकों की उत्पादकता बढ़ाने के लिए उनकी वित्तीय चिंताओं को दूर करना

वित्तीय बाधाओं का असर श्रमिकों की मानसिक स्थिति पर हो सकता है और इसके कारण कार्य के दौरान श्रमिक के अधिक विचलित रहने से उसकी उत्पादकता प्रभावित हो सकती है। ओडिशा में छोटे पैमाने के निर्माण-उद्योग के श...

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