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हिन्दी अनुभाग

भारत में समाचार पत्र बाज़ार के राजनीतिक निर्धारक

समाचार पत्र भारतीय मतदाताओं के लिए राजनीतिक जानकारी का एक महत्त्वपूर्ण स्रोत हैं। लेख में इस बात पर प्रकाश डाला गया है कि राजनीतिक कारक समाचार पत्र बाज़ार को किस तरह से प्रभावित करते हैं। 2000 के दशक क...

  • लेख

भारत में महिलाओं का सशक्तिकरण : क्या औपनिवेशिक इतिहास मायने रखता है?

क्या औपनिवेशिक इतिहास भारत में महिलाओं के समकालीन आर्थिक परिणामों की दृष्टि से मायने रखता है? इसकी जांच करते हुए यह लेख इस बात की ओर इशारा करता है कि जो क्षेत्र सीधे ब्रिटिश शासन के अधीन रहा, महिला सश...

  • लेख

अज्ञात गरीबों की खोज: अत्यधिक गरीबी में रहने वाले लोगों की पहचान और लक्ष्यीकरण

गरीबी के बारे में अलग-अलग अनुमानों के परिणामस्वरूप कुछ वंचित समुदाय अक्सर सरकारी कल्याण योजनाओं से बाहर रह जाते हैं। सबरवाल और चौधरी बिहार में लागू ‘सतत जीविकोपार्जन योजना’ का अध्ययन करते हैं, जिसमें ...

  • दृष्टिकोण
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लोक-स्वास्थ्य कैसे बने राजनीतिक प्राथमिकता

आज सारा विश्व कोरोना महामारी की समस्या से जूझ रहा है जिस पर अनेक कोणों से शोधकर्ताओं ने प्रामाणिक आलेख प्रस्तुत किए हैं। भावेश झा द्वारा इस आलेख में आम जनता के स्वास्थ्य को राजनीतिक प्राथमिकता कैसे प्...

  • दृष्टिकोण

कोविड-19: बिहार लौटते प्रवासी मजदूर, ग्रामीण आजीविका तथा सामाजिक सुरक्षा

कोविड-19 के प्रसार को कम करने के लिए लागू किए गए लॉकडाउन के कारण अनेक प्रवासी मजदूरों ने अपना रोज़गार गँवाया और उनमें से करीब 30 लाख से ज्‍यादा प्रवासी दूसरे राज्यों से बिहार लौटे। इस विषय पर प्रोफेस...

  • पॉडकास्ट

हमें भारत के बच्चों को निराश नहीं करना है

कोविड-19 महामारी के कारण स्कूल बंद हैं और पूरी दुनिया में करोड़ों बच्चे घर में बैठे रहने को मजबूर हैं। अनिश्चितता से भरे इस दौर में, खास तौर पर बच्चों को सामान्य हालात की कुछ झलक चाहिए। उनकी ज़रूरतों के...

  • दृष्टिकोण

भूख और अनिश्चितता: ओडिशा के खानाबदोश भविष्यश-वक्ताजओं की स्थिति

अबिनाश दाश चौधरी, जो भारत में कोविड-19 से जुड़े मानवीय संकट पर पाक्षिक डेटा प्रस्तुत करने के लिए शोधकर्ताओं के एक नेटवर्क के हिस्से के रूप में काम करते हैं, ने इस लेख में दक्षिण ओडिशा के पारंपरिक भविष...

  • लेख

कैंसर जांच के लिए ‘मोबाइल कैंप’ पर पुनर्विचार करना

मोबाइल शिविरों के माध्यम से कैंसर की निवारक जांचों की संख्याप बढ़ाने के लिए सार्वजनिक-निजी प्रयासों के बावजूद, इस बीमारी के कारण मृत्यु दर अधिक बनी हुई है। इस लेख में घोष एवं सेकर ने बड़ी संख्या में ल...

  • दृष्टिकोण

वन अधिकार अधिनियम का क्रियान्वयन: महाराष्ट्र के दो गांवों की कहानी

वन अधिकार अधिनियम (2006) भारत में एक ऐतिहासिक वन कानून था, जिसके तहत वन संसाधनों पर व्यक्तिगत एवं सामुदायिक अधिकारों को मान्यता दी गई। हालांकि नवंबर 2018 तक देश भर में प्राप्त कुल दावों में से केवल 44...

  • फ़ील्ड् नोट

कोविड-19, जनसंख्या और प्रदूषण: भविष्य के लिए एक कार्ययोजना

वर्तमान में चल रही कोविड-19 महामारी के बहुआयामी प्रभाव दिख रहे हैं और इसने हमारे समक्ष दो दीर्घकालिक मुद्दे भी रख दिये हैं। वे हैं - जनसंख्या और प्रदूषण। इस आलेख में ऋषभ महेंद्र एवं श्वेता गुप्ता ने क...

  • लेख

क्या भारत अपने सरकारी स्कूलों में सुधार कर सकता है? - शोध कहता है हां

यह एक महत्वपूर्ण नीतिगत प्रश्न है कि क्या छात्र परिणामों को प्रभावी ढंग से बढ़ाने के लिए सरकारी स्कूलों की गुणवत्ता में पर्याप्त सुधार किया जा सकता है। यह लेख भारत में उच्च गुणवत्ता वाले सार्वजनिक स्क...

  • लेख

सेवानिवृत्ति के बाद की नियुक्तियों की राजनीति: सर्वोच्च न्याेयालय में भ्रष्टाचार?

भारतीय न्यायपालिका न्यायिक स्वतंत्रता की रक्षा करती है। कार्यकारी हस्तक्षेप से सावधान रहते हुए न्यायाधीश अपने संस्थागत हितों को बचाते हैं। लेकिन क्या भारत की न्यायिक व्यवस्था न्यायिक स्वतंत्रता के उल्...

  • लेख

कोविड-19 लॉकडाउन और आपराधिक गतिविधियाँ: बिहार से साक्ष्य

कोविड-19 महामारी से लड़ने के लिए लागू किया गया लॉकडाउन समाज के लिए व्यापक रूप से परिणामकारी था। रुबेन का यह आलेख पुलिस से प्राप्‍त अद्यतन सूचना का उपयोग करते हुए बिहार में आपराधिक गतिविधियों पर लॉकडाउ...

  • लेख

कोविड-19 संकट और छोटे व्यवसायों की स्थिति: एक प्राथमिक सर्वेक्षण से निष्कर्ष

हाल के अपने बयान में, सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम मंत्रालय के केंद्रीय मंत्री ने स्वीकार किया कि यह क्षेत्र "अस्तित्व के लिए जूझ रहा है"। इस आलेख में, शांतनु खन्ना और उदयन राठौर ने, मई 2020 में, 360 स...

  • फ़ील्ड् नोट

कोविड-19: विपरीत पलायन से उत्‍पन्‍न होने वाले जोखिम को कम करना

भारत में कोविड-19 लॉकडाउन से सबसे बुरी तरह प्रभावित वर्गों में से एक वर्ग प्रवासी मजदूरों का है, जो बेरोजगार, धनहीन और बेघर हो गये हैं। हालांकि कई राज्य सरकारों द्वारा प्रवासी मजदूरों को वापस लाने और ...

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