उत्पादकता तथा नव-प्रवर्तन

विकासशील देशों में उन्नति से जुड़ी बाधाएं

  • Blog Post Date 20 सितंबर, 2022
  • दृष्टिकोण
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हाल के दशकों में, उन्नत विश्व प्रौद्योगिकियों को अपनाये जाने से मदद मिलने के कारण कुछ हद तक कई देशों में तेजी से विकास हुआ है। इस लेख में, एरिक वरहोजेन ने उन कारकों के बारे में चर्चा की है जो विकासशील देशों की फर्मों में उन्नति को प्रेरित करते हैं। उन्होंने हाल के उस शोध पर प्रकाश डाला है जिसमें उन्नति पर सकारात्मक प्रभाव डालने वाले दो कारकों को दर्शाया गया है- विकसित देशों या बहुराष्ट्रीय कंपनियों जैसे अमीर उपभोक्ताओं को बिक्री; और सलाहकारों या अन्य फर्मों से सीखकर जानकारी में वृद्धि करना।

सैद्धांतिक रूप में, विकासशील देशों की फर्मों को इस तथ्य से लाभ होता है कि विकसित देशों में उन्नत उत्पादों और प्रौद्योगिकियों का आविष्कार किया जा चुका है और वे 'ऑफ द शेल्फ' अपनाने के लिए उपलब्ध हैं। इसे साठ साल पहले, आर्थिक इतिहासकार अलेक्जेंडर गर्शेनक्रोन ने प्रसिद्ध रूप से (अगर कुछ कूटनीतिक रूप से) "पिछड़ेपन के लाभ" (गर्शेनक्रोन 1962) की कुंजी के रूप में संदर्भित किया था। बीच के दशकों में, विशेष रूप से एशिया में- कई देश उनमें स्थित फर्मों द्वारा वैश्विक सीमा की प्रौद्योगिकी अपनाये जाने से वास्तव में तेजी से विकसित हुए हैं। लेकिन कई विकासशील देशों की फर्मों के लिए पिछड़ेपन के कथित लाभ दुर्ग्राह्य बने हुए हैं: ऐसा लगता है कि उन्नत प्रौद्योगिकियों और उत्पादों को अपनाने के रास्ते में कुछ हो रहा है।

ये बाधाएं क्या हैं?

यह सवाल जब 1950 और 1960 के दशक में पहली बार आया, तो यह विकास अर्थशास्त्र के क्षेत्र के केंद्र में था। लेकिन कुछ समय पहले तक, यह सवाल मुख्यधारा के विकास अनुसंधान से बाहर हो गया। इसके कई कारण हैं: एक यह है कि फर्मों के बारे में माइक्रो-डेटा ऐतिहासिक रूप से आना मुश्किल रहा है। दूसरा यह कि ‘वाशिंगटन सहमति’1 में निहित हस्तक्षेपवादी नीति के खिलाफ उठी प्रतिक्रिया ने शोधकर्ताओं को औद्योगिक नीति से संबंधित विषयों से पीछे हटने के लिए प्रेरित किया और प्राकृतिक दर्शकों के लिए कई लिंक को सख्त कर दिया। नीति निर्माताओं ने अलग-अलग नामों के तहत औद्योगिक नीति को बनाना जारी रखा, लेकिन उसमें अक्सर अकादमिक शोध से प्राप्त साक्ष्य पर आधारित अंतर्दृष्टि पर जोर नहीं था। तीसरा कारण यह है कि फर्मों में नए प्रयोग अपनाना कठिन (हालांकि यह असंभव भी नहीं है) है।

खुशी की बात है कि हाल के वर्षों में स्थिति बदल रही है, और हमने विकासशील देशों की फर्मों द्वारा प्रौद्योगिकी को अपनाए जाने और अन्य नवीन गतिविधियों पर शोध में वृद्धि देखी है। ऐसी गतिविधियों को 'उन्नति' के सामान्य शीर्षक के अंतर्गत वर्गीकृत किया जा सकता है। अमीर देशों में, नवाचार को अक्सर केवल उन चीजों के संदर्भ में लिया जाता है जो दुनिया के लिए नई हैं, लेकिन विकासशील देशों में, कंपनियां मुख्य रूप से इसे आगे बढ़ाने के बजाय प्रौद्योगिकी की वैश्विक सीमा तक पहुंचने का प्रयास कर रही हैं, इस संदर्भ में उन्नति की व्यापक अवधारणा तर्कसंगत रूप से अधिक उपयोगी है। इस कथन का आधार लेते हुए, बाधाओं से जुडे प्रश्न को सकारात्मक तरीके से पुन:स्थापित किया जा सकता है: विकासशील देशों में फर्म स्तर पर उन्नति के चालक कौन-से हैं? मैं इस प्रश्न पर हाल के एक समीक्षा पत्र (वरहोजेन 2021) में, हालिया सूक्ष्म-अनुभवजन्य शोध पर एक सिंहावलोकन प्रस्तुत करता हूं- जिसमें बड़ी गैर-कृषि फर्मों पर और फर्मों में उन्नति के निर्धारकों पर ध्यान केंद्रित किया गया है (बजाय फर्मों में संसाधनों के आवंटन के, जो स्पष्ट रूप से औद्योगिक विकास प्रक्रिया के लिए भी महत्वपूर्ण हैं)।

विकासशील संदर्भों में उन्नति को मापना

एक मुद्दा जो तुरंत उठता है वह यह है कि उन्नति को कैसे मापा जाए। विकसित देश का नवाचार साहित्य पेटेंट और अनुसंधान और विकास (आर एंड डी) व्यय पर बहुत अधिक निर्भर करता है, लेकिन विकासशील देशों में इसके कैच-अप के संदर्भ में ऐसे उपाय कम जानकारीपूर्ण होते हैं। विकासशील देशों पर किये जा रहे शोध में, उन्नति  का सबसे अधिक उपयोग किया जाने वाला संकेतक कुल कारक उत्पादकता (टीएफपी)2 रहा है। जबकि सैद्धांतिक रूप में टीएफपी का उद्देश्य फर्मों की क्षमताओं (कुछ ऐसा, जिसे हम जानना चाहते हैं) के बारे में जानना है, लेकिन व्यवहार में इसका अनुमान लगाने में कई तकनीकी कठिनाइयाँ हैं। अत्याधुनिक विधियों के लिए मजबूत मान्यताओं की आवश्यकता होती है जिनके विशेष रूप से विकासशील देशों में होने की संभावना नहीं है। उदाहरण के लिए, ओले और पेक्स (1996) के अनुसार आमतौर पर उपयोग की जाने वाली विधि हेतु आवश्यक है कि फर्मों में क्रेडिट बाधाओं की स्थिति में कोई अंतर न हो- एक ऐसी धारणा जो क्रेडिट-मार्केट संबंधी विफलताओं पर बड़े विकास साहित्य के साथ असंगत है। मेरा तर्क है कि उन्नति के प्रत्यक्ष उपायों- जैसे कि प्रौद्योगिकी को अपनाना, उत्पाद नवाचार, या गुणवत्ता में सुधार के प्रत्यक्ष अवलोकन का उपयोग करने वाले हाल के अध्ययन आमतौर पर टीएफपी जैसे अवशिष्ट-आधारित उपायों का उपयोग करने वाले अध्ययनों की तुलना में अधिक आश्वासक रहे हैं। परिणामस्वरूप, शोधकर्ताओं द्वारा भविष्य में ऐसे प्रत्यक्ष उपायों का उपयोग करने पर अधिक ध्यान केंद्रित किया जाना अच्छा होगा।

खरीदार के कारण उन्नति के साक्ष्य

माप के मुद्दों से परे, हाल के शोध से कई सबक सामने आए हैं। पहला यह कि अमीर उपभोक्ताओं को या तो सीधे (उदाहरण के लिए, अमीर देशों को निर्यात करके) या परोक्ष रूप से (उत्पादन श्रृंखलाओं में बेचकर जो अंततः अमीर देशों को बेचते हैं) वस्तुएं बेचने पर शायद उसका उन्नति पर मजबूत सकारात्मक प्रभाव पड़ता है। शायद इस आशय का सबसे स्पष्ट प्रमाण एटकिन एवं अन्य (2017) द्वारा मिस्र के कालीन उत्पादकों के साथ किये गए एक प्रयोग से मिलता है। लेखकों ने यूएस-आधारित एक एनजीओ और मिस्र के एक मध्यस्थ के साथ काम करते हुए, अमीर-देश के खरीदारों को प्रारंभिक निर्यात अनुबंध बेतरतीब ढंग से वितरित किए। उन्होंने पाया कि ‘उपचारित’ फर्मों ने प्रत्यक्ष रूप से देखने-योग्य विभिन्न आयामों पर गुणवत्ता में सुधार किया और अपने लाभ में वृद्धि की। प्रयोगशाला सेटिंग में एकसमान विशिष्टताओं के साथ कालीन की बुनाई करते हुए ‘उपचारित’ उत्पादकों ने ‘नियंत्रण’ उत्पादकों की तुलना में कम समय में उच्च गुणवत्ता वाले कालीन बनाए। गुणवत्ता उन्नति पर किये गए पिछले अर्ध-प्रयोगात्मक कार्य में यह परिकल्पना (सुविधा के लिए आंशिक रूप से) की गई थी कि अमीर उपभोक्ताओं को बेचने से फर्मों के उत्पाद मिश्रणों की औसत गुणवत्ता प्रभावित होगी, लेकिन जरूरी नहीं कि जानकारी में लाभ मिलेगा (वेरहोजेन 2008), तथापि इस शोध से यह बात दृढ़ता से सामने आती है कि इसमें जानकारी प्राप्त करना (सीखना) भी शामिल था।

अल्फारो-यूरेना एवं अन्य (2022) द्वारा प्रस्तुत हाल के एक पेपर- जिसमें कोस्टारिकन टैक्स सिस्टम (एक प्रकार का डेटा जो हाल ही में उपलब्ध हुआ है) से प्राप्त फर्म-टू-फर्म बिक्री डेटा का आधार लिया गया है, से कथित खरीदार-चालित उन्नति का एक और अच्छा उदाहरण मिलता है। जब घरेलू कोस्टारिकन फर्म एक बहुराष्ट्रीय निगम की स्थानीय शाखा को बिक्री शुरू करती हैं (उदाहरण के लिए इंटेल, जो 1997 से देश में मौजूद है) तो उनके प्रदर्शन में कई आयामों में सुधार होता है। अन्य (गैर-एमएनसी) खरीदार, जिन्हें बेचने की उनकी प्रवृत्ति होती है, बड़े होते हैं, और उनकी निर्यात और आयात करने की अधिक संभावना होती है, और उनके आपूर्तिकर्ताओं के साथ लंबे संबंध होते हैं; यह इस विचार के अनुरूप है कि बहुराष्ट्रीय कंपनियों को आपूर्ति करने से उन्नति को बढ़ावा मिलता है।

उन्नति में ज्ञान की भूमिका

हालिया साहित्य से दूसरा सबक यह मिलता है कि विकासशील देश की फर्में अक्सर जानकारी की कमी के कारण विवश होती हैं। एक नई तकनीक को अपनाने या किसी उत्पाद का उत्पादन करने के लिए आवश्यक अधिकांश ज्ञान, यहां तक कि जो कहीं और उपलब्ध तो है, कहीं भी नहीं लिखा गया है और इंटरनेट से डाउनलोड नहीं किया जा सकता है, अकथित (अनकहा) होता है। फर्में अक्सर परीक्षण और त्रुटि से धीरे-धीरे क्षमताएं हासिल करती हैं। जैसा कि गिबन्स (2010) कहते हैं, क्षमताओं को स्वदेशी होने की जरूरत है। ये नए विचार नहीं हैं, लेकिन हाल के कार्य ने सीखने की प्रक्रिया को विशेष रूप से विश्वसनीय तरीके से दर्ज किया है। उदाहरण के लिए, दो प्रभावशाली प्रयोगों से पता चला है कि "हाई-टच", अनुरूपित परामर्श फर्म के प्रदर्शन पर महत्वपूर्ण प्रभाव डाल सकते हैं।

ब्लूम एवं अन्य (2013) में, भारतीय कपड़ा फर्मों के एक यादृच्छिक उप-समुच्चय की ओर ‘नियंत्रण’ फर्मों के लिए एक महीने की तुलना में एक बहुराष्ट्रीय परामर्श फर्म द्वारा पांच महीने तक गहन ध्यान दिया गया। ‘उपचारित’ फर्मों ने आउटपुट और टीएफपी में वृद्धि की, गुणवत्ता दोषों को कम किया, और अन्य संदर्भों में उच्च फर्म प्रदर्शन से जुड़ी कई प्रबंधन प्रथाओं को अपनाया। ब्रुहन एवं अन्य (2018) में, ‘उपचारित’ छोटे और मध्यम आकार के उद्यमों ने एक वर्ष के लिए प्रति सप्ताह चार घंटे के लिए सलाहकारों के साथ आमने-सामने मुलाकात की, और पांच वर्षों के बाद रोजगार में बड़ी वृद्धि देखी गई।

कै और स्ज़ीडल (2018) के एक अन्य उल्लेखनीय अध्ययन से पता चलता है कि फर्म न केवल सलाहकारों से बल्कि अन्य फर्मों से भी सीख सकते हैं। लेखकों ने 2,820 चीनी उद्यमियों को यादृच्छिक रूप से समूहों में शामिल किया, जिनमें से कुछ एक वर्ष के लिए हर माह मिले। ‘उपचारित’ फर्मों के राजस्व में ‘नियंत्रण’ फर्मों की तुलना में 8% की वृद्धि हुई। लेखकों ने सूचना प्रवाह की और जांच करने के लिए, कुछ समूहों में दो प्रकार के व्यावसायिक अवसरों के बारे में जानकारी का खुलासा किया, लेकिन अन्य में नहीं। जानकारी समूहों के बीच फैल गई और ऐसा होने की संभावना अधिक थी यदि जानकारी गैर-प्रतिद्वंद्वी थी (अर्थात, यदि फर्म व्यवसाय के अवसर का लाभ लेने में प्रत्यक्ष प्रतिस्पर्धी नहीं थीं)।

यह ध्यान देने योग्य है कि यह विचार कि विकासशील देशों में फर्में जानकारी की कमी से विवश हैं, इस धारणा से अलग है कि वे अधिकतम लाभ प्राप्त करने में विफल रहती हैं। बाद वाला दृष्टिकोण तेजी से लोकप्रिय होता प्रतीत होता है, और इसके दो रूप हैं: एक यह है कि प्रबंधक लाभ के अलावा उद्देश्य रखते हैं, और दूसरा यह है कि प्रबंधक लाभ को अधिकतम करना चाहते हैं लेकिन गलतियाँ करते हैं। जबकि दोनों प्रकार प्रशंसनीय हैं, साहित्य के बारे में मेरी समझ यह है कि साक्ष्य काफी हद तक इस दृष्टिकोण के अनुरूप है कि उद्यमी या तो अनुबंध की समस्याएं और अन्य संगठनात्मक कठिनाइयाँ या यह तथ्य कि जानकारी प्राप्त करना महंगा है- जैसी बाधाओं के अधीन रहते हुए लाभ-अधिकतम करते हैं। वर्षों पहले, शुल्ज (1964) ने कृषि के संदर्भ में तर्क दिया था कि हमें यह नहीं सोचना चाहिए कि किसान गलतियाँ कर रहे हैं; इसके बजाय हमें उन्हें "गरीब, लेकिन तर्कसंगत हैं " के रूप में सोचना चाहिए और उन बाधाओं को समझने की कोशिश करनी चाहिए जिन्हें गरीबी थोपती हैं। बड़ी फर्मों के संदर्भ में, मेरा यह तर्क है कि हमें उनके बारे में "ज्ञान की कमी है, लेकिन तर्कसंगत हैं" के रूप में सोचना चाहिए और ‘सीखने’ के लिए बाधाओं से संबंधित शोध पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए।

निष्कर्ष

विकासशील देशों में फर्म-स्तरीय उन्नति के बारे में सूक्ष्म-अनुभवजन्य साहित्य अभी भी प्रारंभिक अवस्था में है, लेकिन प्रेरक प्रश्न महत्वपूर्ण बने हुए हैं, और डेटा सीमा का तेजी से विस्तार हो रहा है। यह इस क्षेत्र के लिए एक रोमांचक समय है, और आशावाद का कारण है कि अधिक मूल्यवान अंतर्दृष्टि जल्द ही आने वाली है।

यह लेख VoxDev के सहयोग से प्रकाशित किया गया है।

टिप्पणियाँ:

  1. ‘वाशिंगटन सम्मति’ विकासशील देशों के लिए मुक्त बाजार आर्थिक नीति की सिफारिशों का एक समूह है। इन नीतियों को वाशिंगटन, डीसी में स्थित प्रमुख वित्तीय संस्थानों- अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष, विश्व बैंक और यूएस ट्रेजरी द्वारा समर्थित किया गया था।
  2. टीएफपी को इनपुट (आमतौर पर श्रम, सामग्री, पूंजी) पर आउटपुट (आमतौर पर बिक्री) के प्रतिगमन में अवशिष्ट के रूप में अनुमानित किया गया है - यानी, यह आउटपुट का हिस्सा है जिसे इनपुट के जरिये नहीं समझाया जा सकता है |

लेखक परिचय: एरिक वेरहोजेन कोलंबिया विश्वविद्यालय में अर्थशास्त्र विभाग और अंतर्राष्ट्रीय और सार्वजनिक मामलों के स्कूल में प्रोफेसर हैं।

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