मानव विकास

कोविड-19 और मानसिक स्वास्थ्य: क्या बच्चे वापस स्कूल में जाने के लिए तैयार हैं?

  • Blog Post Date 18 अक्टूबर, 2021
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'कोविड-19 और मानसिक स्वास्थ्य' पर आयोजित की गई I4I ई-संगोष्ठी के पूर्व भाग में स्कूल बंद होने के कारण, विशेष रूप से हाशिए पर रहे और कमजोर समूहों से संबंधित बच्चों के मनोवैज्ञानिक स्वास्थ्य पर पड़ने वाले संभावित प्रतिकूल प्रभावों की चर्चा की गई है। इस लेख में, विलीमा वाधवा ने इस अवधि के दौरान सीखने की सामग्री तक बच्चों की पहुंच के बारे में एएसईआर (वार्षिक शैक्षिक स्थिति रिपोर्ट) 2020 के आधार पर प्राप्त निष्कर्ष प्रस्तुत किये हैं। उनका तर्क है कि स्कूलों के फिर से खुलते ही, शिक्षण-व्यवस्था को किसी अन्य तरीकों को न अपनाते हुए बच्चों और उनकी वर्तमान वास्तविकता के अनुकूल चलना होगा।

यूनेस्को (संयुक्त राष्ट्र का शैक्षिक, वैज्ञानिक और सांस्कृतिक संगठन) के अनुसार, अप्रैल 2020 की शुरुआत में 194 देशों में स्कूल बंद रखे गए जिसकी वजह से 160 करोड़ शिक्षार्थी प्रभावित हुए, जो दुनिया के सभी स्कूलों में नामांकित छात्रों का 91% है। भारत में भी, मार्च 2020 के शुरू से ही स्कूल बंद रखने की कवायद शुरू हो गयी, वहीं कुछ राज्यों में अब सितंबर 2021 से कुछ कक्षाओं (ग्रेड) के लिए स्कूल फिर से खुलने लगे हैं। 

अब महत्वपूर्ण प्रश्न यह उठता है कि बच्चे जब वापस स्कूल जाना शुरू करेंगे तो कक्षाओं का  माहौल कैसा होगा? चूंकि इस अवधि के दौरान के प्राथमिक ग्रेड के सभी बच्चों को सीधे अगली कक्षाओं में प्रमोट कर दिया गया है, अब वे स्कूल बंद होने के समय1 जिस कक्षा में थे उससे दो कक्षा आगे हो चुके हैं। परिणामस्वरूप जो बच्चा स्कूल बंद होने पर पहली कक्षा में था, वह अब स्कूल के खुलने पर तीसरी कक्षा में होगा। क्या शिक्षक अपनी नियमित शिक्षण विधि का पालन करेंगे और वर्तमान ग्रेड के पाठ्यक्रम को पढ़ाएंगे? या किसी प्रकार से यह पता लगाने का प्रयास किया जायेगा कि सीखने में कितना नुकसान हुआ है, और पहले की तरह शिक्षण शुरू करने से पहले बच्चों के स्तर को सुधारने में सहयोग किया जायेगा ?

विश्व बैंक द्वारा किया गया एक अध्ययन स्कूल के बंद होने के कारण हुए सीखने के नुकसान का आकलन करता है (अज़ेवेदो एवं अन्य 2020)। अपने सबसे निराशावादी परिदृश्य में, वैश्विक स्तर पर सात महीने से स्कूल बंद रहने का प्रभाव बच्चों के सीखने की क्षमता में करीब साल भर के नुकसान के बराबर होगा2, और इसका दूरगामी प्रभाव उसके जीवन-भर की शिक्षा पर पड़ेगा। अध्ययन से पता चलता है कि कमजोर आर्थिक पृष्ठभूमि वाले बच्चों के सीखने की क्षमता के और अधिक प्रभावित होने की संभावना है, क्योंकि वे दूरस्थ शिक्षण संसाधन जुटा पाने में असमर्थ हैं, और उनके घर पर सीखने के पर्याप्त साधन भी नहीं हैं। 

भारत में स्कूलों का बंद रहना : वार्षिक शैक्षिक स्थिति रिपोर्ट 2020 के नतीजे 

भारत में करीब 18 महीने से स्कूल बंद हैं। इस अवधि के दौरान, सरकारी और निजी स्कूलों ने विभिन्न तरीकों से शिक्षण सामग्री प्रदान करने का प्रयास किया गया है। वार्षिक शैक्षिक स्थिति रिपोर्ट (एएसईआर) 2020 के तहत सितंबर 2020 में बच्चों की सीखने की सामग्री तक पहुंच पर केन्द्रित एक ग्रामीण घरेलू सर्वेक्षण किया गया, जिस अवधि में सभी स्कूल अभी तक बंद थे। यह सर्वेक्षण राज्य और राष्ट्रीय स्तर के प्रातिनिधिक अनुमान प्रदान करता है। एएसईआर 2020 के अनुसार, जहां राज्य पाठ्यपुस्तकें प्रदान करने में बहुत सफल रहे हैं, वहीं वे दूरस्थ रूप से वर्कशीट और ऑनलाइन कक्षाओं (लाइव या अन्य) जैसे अन्य सीखने के अवसर प्रदान करने में कम सफल रहे हैं। 80% बच्चों ने बताया कि उन्हें अपने वर्तमान ग्रेड की पाठ्यपुस्तकें प्राप्त हुई, वहीं अन्य शिक्षण सामग्री प्राप्त करने का आंकड़ा 35% रहा। पाठ्यपुस्तकों के मामले में, सरकारी स्कूलों ने निजी स्कूलों की तुलना में बहुत बेहतर कार्य किया, सरकारी स्कूलों में 84% बच्चों को पाठ्यपुस्तकें प्राप्त हुईं जबकि निजी स्कूलों के 72% बच्चों को अपने वर्तमान ग्रेड की पाठ्यपुस्तकें मिलीं। दूसरी ओर, निजी स्कूलों की तुलना में सरकारी स्कूल अन्य शिक्षण सामग्री वितरित करने में थोड़ा कम सफल रहे- सरकारी स्कूलों में 33% बच्चों को अन्य शिक्षण सामग्री प्राप्त हुई, जबकि निजी स्कूलों के 40% छात्रों को अन्य शिक्षण सामग्री प्राप्त हुई।

हालाँकि, जब हम विभिन्न आर्थिक पृष्ठभूमि के बच्चों की तुलना करते हैं तो ये अंतर काफी बड़े हो जाते हैं। यह अच्छी तरह से स्थापित है कि आमतौर पर आर्थिक रूप से कमजोर पृष्ठभूमि के बच्चों के सीखने के परिणाम कम होते हैं। यदि इन बच्चों की सीखने की सामग्री तक पहुँच ही सीमित होगी तो हम ऐसी स्थिति में उनके सीखने के अवसर में अंतर को बढ़ा हुआ देखेंगे, जो उनकी हिस्सेदारी संबंधी चिंता को और बढाता है। 

माता-पिता की शिक्षा को संपन्नता के एक मानक के रूप में देखते हुए, एएसईआर-2020 ने पाया कि कम शिक्षा वाले माता-पिता के बच्चों (45%) के पास शिक्षित माता-पिता के बच्चों की तुलना में (79%)3 स्मार्टफोन होने की संभावना कम है। कम पढे लिखे माता पिता की अपने बच्चों को सरकारी स्कूलों में भेजने की संभावना (84%) होती है जबकि अधिक शिक्षित माता-पिता के बच्चों की सरकारी स्कूलों में भेजने की संभावना (54%) होती है। इसके अलावा, कम शिक्षित माता-पिता द्वारा अपने बच्चों के स्कूल के गृह-कार्यों में मदद करने की संभावना कम होती हैं। उच्च शिक्षित माता-पिता से उनके बच्चों को 90% सीखने में सहायता मिलती है, वहीं कम शिक्षित माता-पिता से उनके बच्चों को घर पर सीखने में केवल 55% ही मदद मिल पाती है। अंत में, कम शिक्षित माता-पिता के अपने बच्चों को सरकारी स्कूलों में भेजने की वजह से और उनके पास स्मार्टफोन होने की संभावना कम होने के कारण उनमें 23% बच्चों को ही शिक्षण की कोई सामग्री प्राप्त हुई, जबकि उच्च शिक्षित माता-पिता वाले बच्चों में इसकी संख्या 49% रही। 

इसलिए, विश्व बैंक के अध्ययन के अनुसार, स्कूल बंद होने के कारण न केवल महत्वपूर्ण रूप से सीखने की हानि होगी, बल्कि ये नुकसान पहले से वंचित तबके के बच्चों को बहुत अधिक प्रभावित करने की संभावना व्यक्त करता है, और इसके चलते शिक्षा के सन्दर्भ में अमीर और गरीब के बीच का अंतर और भी अधिक बढ़ जाएगा। इस बढ़ती हुई असमानता के परिणामस्वरूप न केवल शिक्षण सामग्री की पहुँच असमान होगी बल्कि विभिन्न समूहों द्वारा उपयोग की जाने वाली सामग्री की गुणवत्ता में भी अंतर होगा । राज्य द्वारा साझा की जाने वाली शिक्षण सामग्री और संसाधनों में, निर्देशानुसार सबसे नज़दीकी चीज़ ऑनलाइन वीडियो और कक्षाएं थीं। कुल मिलाकर, ग्रामीण भारत में केवल 11% बच्चों ने ऑनलाइन कक्षाओं में भाग लेने की सूचना दी। हालांकि, विभिन्न समूहों में ऑनलाइन कक्षाओं तक पहुंच में बहुत अंतर हैं- 18% निजी स्कूली बच्चों की तुलना में 8% सरकारी स्कूली बच्चों ने ऑनलाइन क्लास किया और उच्च शिक्षित माता-पिता वाले 20% बच्चों की तुलना में कम शिक्षित माता-पिता वाले 5% बच्चे ही ऑनलाइन कक्षाओं में शामिल हो सके। 

एएसईआर 2020 एक फोन सर्वेक्षण के रूप में कराया गया, जिसमें बच्चों के सीखने के स्तर का आकलन नहीं किया गया था। सीखने के स्तर के नवीनतम उपलब्ध अनुमान एएसईआर 2018 से हैं, जो यह दर्शाते हैं कि ग्रामीण भारत में पांचवी कक्षा के केवल 50% बच्चे ही दूसरी कक्षा के स्तर का पाठ पढ़ने में सक्षम थे। निजी स्कूलों के पांचवी कक्षा के 65% बच्चे इस स्तर पर पढ़ सकते थे, वहीं सरकारी स्कूल के 44% बच्चे ही इस स्तर पर पढ़ सकते थे। इसलिए, यह स्पष्ट है कि जब भी स्कूल खुलेंगे, सभी बच्चों को कुछ सुधार की आवश्यकता होगी। हालांकि, आमतौर पर सरकारी स्कूलों में पढ़ रहे वंचित पृष्ठभूमि के बच्चों को अधिक मदद की आवश्यकता होगी। एएसईआर 2018 के अनुसार, कम शिक्षा वाले माता-पिता के पांचवी कक्षा के बच्चों का अनुपात, जो कक्षा दो के स्तर का पाठ पढ़ सकते थे, उच्च शिक्षित अभिभावक वाले 70% बच्चों की तुलना में 35% था। इसलिए, स्कूल बंद होने के दौरान इन बच्चों की न केवल सीखने की सामग्री तक सीमित पहुंच रही, बल्कि उन्होंने अपने सीखने की शुरुआत बड़े अभाव के साथ की है।

आगे की रणनीति

स्कूलों के पुनः खुलने के बाद, शिक्षकों द्वारा वर्तमान ग्रेड पाठ्यक्रम का अनुसरण कर हमेशा की तरह अपना ‘शैक्षिक कार्य’ आरम्भ करने से काम नहीं चलेगा। बच्चों के स्कूल वापस आने पर उनमें पहले से मौजूद सीखने की कमी और अधिक होने वाली है। यदि इन कमियों को समय रहते दूर नहीं किया गया, तो ये बच्चे की समझ से बाहर होते जाएंगे, और सीखने की कमी होते-होते अधिकाधिक बच्चे पीछे छूटते चले जाएंगे। इस समय हम एक ऐसी अकल्पनीय स्थिति में हैं जहां बच्चों को लगभग 18 महीनों से कोई औपचारिक अनुदेश नहीं मिला है। यह बहुत संभव है कि जिन युवा शिक्षार्थियों ने 2020 में ही पढ़ना आरम्भ किया था उनके साथ शिक्षकों को नए सिरे से शुरुआत करनी पड़े। इसी तरह से, अप्रैल 2020 में पहली कक्षा से अपनी पढ़ाई शुरू करने वाले बच्चे वास्तव में कभी स्कूल गए ही नहीं हैं, और शिक्षक संभवतः उन्हें सीधे दूसरी कक्षा के पाठ्यक्रम से पढ़ाना शुरू भी नहीं कर सकते हैं।

पहला कदम यह पता लगाना चाहिए कि सीखने के स्तर के मामले में बच्चे कहां हैं और वहीं से शुरूआत की जाए। छात्रों के सीखने की कमियों को दूर करने के लिए और लर्निंग गैप को दूर करने हेतु शिक्षकों के साथ ही साथ ही एजेंसी को प्रशिक्षण दिया जाना चाहिए। सभी राज्यों में भिन्नता को देखते हुए, 'एक आकार में सभी फिट बैठते हैं' वाले दृष्टिकोण का पालन नहीं किया जाना चाहिए। हिमाचल प्रदेश जैसा दृष्टिकोण जो सभी के लिए काम करता है, जिसमें सीखने के उच्च स्तर हैं और स्कूल बंद होने के दौरान सीखने की सामग्री के साथ बच्चों तक पहुंचने में अपेक्षाकृत अधिक सफल रहे हैं, यही दृष्टिकोण उत्तर प्रदेश जैसे राज्य के लिए उपयुक्त नहीं होगा, क्योंकि इसमें सीखने का स्तर बहुत कम है और शिक्षण सामग्री के वितरण के मामले में भी राज्य पिछड़ गया है । व्यवस्था को अन्य तरीकों के बजाय बच्चे और उनकी वर्तमान वास्तविकता के अनुकूल होना चाहिए।

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टिप्पणियाँ:

  1. भारत में अधिकांश स्कूलों का सत्र अप्रैल-मार्च है।
  2. विश्व बैंक के अनुसार, "स्कूल में शिक्षा-समायोजित वर्षों की गणना स्कूल के अपेक्षित वर्षों के प्रस्तावित अनुमानों पर आधारित है, जो हाल के सामंजस्यपूर्ण परीक्षण स्कोर के अनुपात से 625 गुणा करके की जाती है"।
  3. 'कम' शिक्षित माता-पिता उन्हें माना गया है जिन्होंने पांचवी कक्षा या उससे कम की शिक्षा प्राप्त की हो; और ‘उच्च' शिक्षित माता-पिता से तात्पर्य माता-पिता दोनों ने कम से कम नौवीं कक्षा तक शिक्षा पूरी की हो; मध्यम श्रेणी की माता-पिता की शिक्षा एक अवशिष्ट श्रेणी है जिसमें माता और पिता दोनों की स्कूली शिक्षा के अन्य सभी संयोजन शामिल हैं। ग्रामीण भारत में, 22.5% बच्चों के माता-पिता कम शिक्षा प्राप्त हैं, जबकि 27.6% बच्चों के माता-पिता उच्च शिक्षा प्राप्त करते हैं। शेष 50% माता-पिता मध्यम अभिभावकीय शिक्षा श्रेणी में आते हैं।

लेखक परिचय: डॉ विलीमा वाधवा असर केंद्र की निदेशक हैं।

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