सामाजिक पहचान

सहभागी रंगमंच के माध्यम से महिलाओं को सशक्त बनाना

  • Blog Post Date 04 जनवरी, 2022
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Jyotsna Jalan

Center for Studies in Social Sciences, Calcutta

jjalan@cssscal.org

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Sattwik Santra

Centre for Studies in Social Sciences

sattwiks@gmail.com

भारत में उनतीस प्रतिशत महिलाओं ने सूचित किया है कि वे अपने जीवन-साथी से हिंसा की शिकार हुई हैं। पश्चिम बंगाल राज्य के 92 गांवों को शामिल कर किये गए एक क्षेत्रीय अध्ययन के आधार पर, यह लेख दर्शाता है कि घरेलू दुर्व्यवहार के विषय पर समुदाय- आधारित सहभागी रंगमंच का आयोजन जीवन-साथी द्वारा किये जाने वाले दुर्व्यवहार को एक चौथाई तक कम कर सकता है– तथा इसमें स्पिलओवर और लगातार एवं लंबे समय तक सकारात्मक प्रभाव के प्रमाण मिले हैं।

घरेलू हिंसा एक वैश्विक समस्या है। इसके खिलाफ कानून केवल उन समुदायों में कमजोर रूप से लागू होते हैं जहां इसे सामाजिक रूप से स्वीकार किया जाता है। भारत में, 29% महिलाओं ने सूचित किया कि उन्होंने अपने जीवन-साथी से हिंसा का सामना किया है (आर्थिक सहयोग और विकास संगठन (ओईसीडी), 2019)। उत्तर भारत में पुरुषों में एक प्रचलित कहावत है "ये कैसा आदमी है जो मारता नहीं है?"

मास मीडिया एंटरटेनमेंट ('एड्यूटेनमेंट') में निहित शैक्षिक संदेशों ने कुछ व्यवहारों को प्रभावित किया है, उदाहरण के लिए, आयरन-फोर्टिफाइड नमक का सेवन (बनर्जी एवं अन्य 2018), परन्तु घरेलू हिंसा के प्रति दृष्टिकोण को बदलने में बहुत कम सफलता मिली है। घरेलू हिंसा के प्रति दृष्टिकोण पर शिक्षा ('एड्यूटेनमेंट') के प्रभाव की जांच करने के लिए, आज तक केवल दो मूल्यांकन किए गए हैं (बनर्जी एवं अन्य 2019, कूपर एवं अन्य 2020)। दोनों मूल्यांकनों में इस विश्वास पर सीमित प्रभाव मिलता है कि पत्नी को मारना वैध है।

महिलाओं के खिलाफ हिंसा की नैतिकता के संबंध में किसी व्यक्ति के मूल मूल्यों और विश्वासों को बदलने के लिए यह आवश्यक है कि वे महिलाओं को अपने जीवन के बारे में निर्णय लेने के अधिकार वाले व्यक्तियों के रूप में देखना शुरू करें। लेकिन अगर किसी समुदाय के अधिकांश लोग एक निर्देशात्मक सामाजिक मानदंड को स्वीकार करते हैं, तो यहां तक ​​​​कि उस समुदाय के ऐसे सदस्य भी, जो इन मानदंडों के कारण होने वाले अन्याय से सहमत हैं, उन्हें इसका पालन जारी रखने के लिए प्रोत्साहन मिलता है। किसी सामाजिक मानदंड को बदलने के लिए किसी एक व्यक्ति या समुदाय से शुरुआत की जा सकती है, लेकिन दोनों को प्रभावित करना महत्वपूर्ण है।

गैर-सहभागी थिएटर की सीमाओं को दूर करने हेतु डिज़ाइन किए गए सहभागी रंगमंच (फोरम थिएटर) का स्वरूप, किसी कहानी की 'सच्चाई' की सार्वजनिक रूप में बातचीत करते हुए, क्या लोगों के विश्वास में बदलाव लाकर व्यापक सामाजिक आर्थिक परिवर्तन को प्रेरित कर सकता है? जब कोई सहभागी रंगमंच समुदाय-आधारित होता है, तो वह समुदाय के सदस्यों को उनके सामाजिक मानदंडों को बदलने संबंधी नीतियों का सह-निर्माता बनाता है।

फोरम थिएटर कैसे काम करता है

फोरम थिएटर में, प्रदर्शन का आरम्भ क्षेत्र के ग्रामीणों द्वारा अनुभव किये गए व्यक्तिगत संघर्षों को नाटकीय ढंग से अभिनीत करते हुए एक 'तथ्य' पर आधारित नाटक के निरंतर मंचन से होता है। इस छोटे से प्रदर्शन के बाद, थिएटर ग्रुप का सूत्रधार, जिसे 'जोकर' कहा जाता है, पूछता है कि क्या दर्शकों में से हर कोई इस नाटक में दिखाई गई कथा से सहमत है। संभावना है कि कुछ लोग असहमत होंगे। जोकर तब बताता है कि इस नाटक का फिर से मंचन किया जाएगा और इस बार दर्शकों में से कोई भी, नाटक के किसी भी बिंदु पर, "रुको" कहकर चिल्ला सकता है, मंच पर जा सकता है, और अपनी इच्छा के अनुसार सीन को आगे बढाने हेतु नाटक के किसी भी बिंदु से नायक की भूमिका निभा सकता है। तमाशा-अभिनेता ('स्पेक्ट-एक्टर्स') की श्रेणी में आने वाले कई स्वयंसेवक अब मंच पर कुछ नई नीतियों को आजमाते हैं ताकि वे उस उत्पीड़न को रोक सकें जो उन्होंने निर्बाध नाटक में देखा था।

फोरम थियेटर अपने द्वारा प्रस्तुत की जाने वाली समस्याओं का कोई बना–बनाया समाधान प्रदान नहीं करता है। इसके बजाय, यह एक ऐसा मंच है जिसके जरिये यह चर्चा की जा सकती है कि पात्र उत्पीड़न से मुक्ति कैसे प्राप्त कर सकते हैं। प्रदर्शन का परस्पर संवादात्मक हिस्सा 2-3 घंटे तक चल सकता है1|

प्रभाव का मूल्यांकन

हाल के शोध (हॉफ एवं अन्य 2021) में, हम फोरम थिएटर- जन-संस्कृति (जेएस) का प्रदर्शन करने वाले दुनिया के सबसे बड़े संगठनों में से एक के प्रभाव का मूल्यांकन करते हैं। पश्चिम बंगाल में समुदायों में इसकी निरंतर सहभागिता के कारण जन-संस्कृति समुदाय आधारित सहभागी रंगमंच का एक उपयुक्त उदाहरण है। जिन गावों में जन-संस्कृति का नियमित रूप से प्रदर्शन किया जाता था उनके चयन के लिए क्या कोई सुनियोजित मानदंड थे, इसके बारे में हमारे द्वारा जन-संस्कृति के साथ कई चर्चाएँ की जाने के बावजूद हमें केवल अस्पष्ट उत्तर ही मिले। हालांकि, यह संभव है कि उन गांवों के बारे में कुछ अजीब हो जहां जन-संस्कृति ने प्रदर्शन किया था। उदाहरण के लिए, एक जन-संस्कृति टीम ने किसी विशेष गांव में प्रदर्शन करने के लिए चुना हो सकता है क्योंकि ऐसा लगता है कि इसमें बदलाव की बड़ी संभावना है; इसका अनुमानित प्रभाव तब ज्यादा होगा। यह भी संभव है कि जन-संस्कृति टीम ने प्रदर्शन करने के लिए किसी ऐसे गांव का चयन किया हो जहाँ घरेलू हिंसा की अत्यधिक समस्या थी; तब वहां जन-संस्कृति का अनुमानित प्रभाव कम होगा। इसलिए हम मानते हैं कि जन-संस्कृति का लाभ मिलना संभावित रूप से चयनात्मक है और हमारे विश्लेषण में इसके लिए नियंत्रण है।

राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (एनएफएचएस) के समान, हम जन-संस्कृति के संपर्क में आये गांव में घरेलू हिंसा पर प्रभावों और पितृ-सत्तात्मक मानदंडों की पहचान करने हेतु, जीवन-साथी द्वारा दुर्व्यवहार, पितृसत्ता, और मद्यपान संबंधी प्रश्नों सहित एक सर्वेक्षण तैयार करते हैं। हम पश्चिम बंगाल के उन गांवों में से 32 गांवों का यादृच्छिक नमूना लेते हैं जहां जन-संस्कृति ने वर्ष 2002 तक प्रदर्शन किया था। इन गांवों में, वर्ष 2002 और 2013 के बीच की अवधि में, पितृसत्ता और मद्यपान के मुद्दों पर जन-संस्कृति के प्रदर्शनों की औसत संख्या 25 थी। इन गाँवों की तुलना ऐसे गाँवों के साथ करने के लिए, जहाँ जन-संस्कृति ने प्रदर्शन नहीं किया था, हम तीन पड़ोसी ब्लॉकों के 60 गाँवों का एक यादृच्छिक नमूना लेते हैं जहाँ जन-संस्कृति ने कभी प्रदर्शन नहीं किया था (नियंत्रण समूह)। फील्ड जांचकर्ताओं ने 3,000 से अधिक विवाहित महिलाओं और उनके पतियों के व्यक्तिगत साक्षात्कार किए, जिन्हें इन 92 गांवों से यादृच्छिक रूप से चुना गया था। जांचकर्ताओं ने पत्नियों और पतियों का अलग-अलग साक्षात्कार किया।

हम सहभागी रंगमंच के कारण व्यवहार और दृष्टिकोण में लंबे समय तक बने रहने वाले वाले परिवर्तनों को मापने का प्रयास करते हैं। प्रतिक्रियाएं, गहरी मान्यताओं और मूल्यों के बजाय एक प्रदर्शन के जरिये उठाए गए विचारों को ही दर्शायेंगी, इस आशंका को दूर करने के लिए हमने गांव में अपने निर्धारित सर्वेक्षण से पहले छह महीने में जन-संस्कृति मंडलियों का कोई प्रदर्शन नहीं रखने की व्यवस्था की थी। हमने जनवरी 2014 से मार्च 2015 तक सर्वेक्षण किया।

जाँच के परिणाम

हमारा अनुमान है कि एक गांव में जन-संस्कृति के प्रदर्शन से अपनी पत्नियों का शारीरिक शोषण करने वाले पतियों का अनुपात एक चौथाई कम यानी 32% से 24% (तालिका 1) हो गया। पत्नी की पिटाई को वैध मानने वाले पतियों का अनुपात आधे से कम हो गया था। हमारे निष्कर्ष यह भी बताते हैं कि जन-संस्कृति फोरम थिएटर के गांव में प्रदर्शन से पतियों को पितृसत्ता की विचारधारा पर सवाल उठाने के लिए प्रेरित किया और उन्हें अपनी पत्नियों को अधिक स्वायत्तता देने के लिए प्रेरित किया। पत्नियों की प्रतिक्रियाओं के आधार पर, हम पाते हैं कि गांव में जन-संस्कृति के प्रदर्शन से उन महिलाओं का अनुपात आधे से अधिक कम हो जाता है, जिनका हमारे सर्वेक्षण में शामिल छह प्रमुख पारिवारिक निर्णयों2 में से कोई भी निर्णय लेने में परिवार में अपना कोई मत नहीं है। यह अनुपात 21% से घटकर 9%3 हो गया।

तालिका 1. पुरुषों द्वारा दुर्व्यवहार, उनकी पत्नियों द्वारा सूचित किया गया

निर्भर चर

भावनात्मक रूप से अपमानजनक

शारीरिक रूप से अपमानजनक

कोई दुर्व्यवहार नहीं

नियंत्रण समूह में दुर्व्यवहार करने वाले और दुर्व्यवहार न करनेवाले पतियों का अनुपात

0.35

0.32

0.45

गांव में जन-संस्कृति के प्रदर्शन के कारण अनुपात में बदलाव

-0.05

-0.08

0.15

अवलोकनों की संख्या

3,440

3,440

3,438

टिप्पणियाँ: (i) भावनात्मक दुर्व्यवहार का तात्पर्य लोगों के सामने अपमानित करने के लिए कुछ कहना या करना है; चोट या नुकसान या किसी करीबी को धमकी देना; किसी का अपमान करना या अपने बारे में बुरा महसूस कराना; शारीरिक शोषण से तात्पर्य धक्का देना, हिलाना या कोई चीज फेंककर मारना, थप्पड़ मारना, कलाई मोड़ना या बाल खींचना, मुट्ठी से मुक्का मारना या किसी ऐसी चीज से मारना है जिससे चोट लग सकती है; लात मारना, घसीटना या पीटना, जानबूझ कर गला घोंटने या जलाने की कोशिश करना, या चाकू, बंदूक या किसी अन्य हथियार से धमकी देना या हमला करना; कोई दुर्व्यवहार किसी भी प्रकार के दुर्व्यवहार- भावनात्मक, शारीरिक या यौन सम्बन्धी दुर्व्यवहार को संदर्भित नहीं करता है । (ii) हम यौन शोषण पर जन-संस्कृति का कोई प्रभाव नहीं पाते हैं। पत्नी को अगर यौन- क्रिया करने के लिए जबरदस्ती की जाती है तो यह समझा जाएगा की उसका यौन शोषण हो रहा है। (iii) यौन शोषण पर जन-संस्कृति के अनुमानित प्रभाव का न होना जन-संस्कृति के एक उद्देश्यपूर्ण छोटे प्रभाव को दर्शा सकता है। वैकल्पिक रूप से, जो कार्य किसी स्थिति में उचित लग रहा था उसे यदि अब अपमानजनक के रूप में देखा जाने लगा है तो यह स्वयं को और हानिकारक व्यवहार के बारे में अधिक जागरूकता के साथ-साथ यौन शोषण पर एक बड़े प्रभाव को प्रतिबिंबित कर सकता है।

जन-संस्कृति का एक व्यापक लक्ष्य पितृसत्ता के दमनकारी परिणामों की खुली चर्चा को बढ़ावा देना है, और इस प्रकार से इस सन्दर्भ में अंतर्निहित पितृसत्तात्मक मानदंडों और विश्वासों के अनुपालन को कम करना है। तालिका 2 में, हम इस परिकल्पना की जाँच करते हैं कि गांव में जन-संस्कृति के प्रदर्शन ने गांव के मानदंडों को कितना बदल दिया है।

हम पहले ‘उपचार’ गांवों में स्पिलओवर प्रभावों पर विचार करते हैं। पश्चिम बंगाल के एक गांव में 1-4 मतदान केंद्र हैं। प्रत्येक ‘उपचार’ गांव के अन्दर, हम जन-संस्कृति द्वारा सामान्य रूप से प्रदर्शन ('सक्रिय क्षेत्र') किये गए क्षेत्र के मतदान बूथ और जिन क्षेत्रों में यह प्रदर्शन नहीं किया गया है ('निष्क्रिय क्षेत्र'), उन क्षेत्रों के मतदान बूथ अलग-अलग करते हैं। निष्क्रिय क्षेत्रों में रहने वाले जोड़ों की तुलना में, सक्रिय क्षेत्रों में रहने वाले 8% अधिक जोड़ों (पत्नी या पति या दोनों) ने कम से कम एक जन-संस्कृति प्रदर्शन देखा है। इस परिकल्पना के तहत कि एक ‘उपचार’ गांव के अन्दर स्पिलओवर प्रभाव बड़े होते हैं, पितृसत्ता के समान मानदंड सक्रिय और निष्क्रिय क्षेत्रों में एक-जैसे होने चाहिए। इससे मिले प्रमाण काफी हद तक इस परिकल्पना से मेल खाते हैं (तालिका 2, कॉलम 1)।

इसके बाद, हम गांव में जन-संस्कृति प्रदर्शन के प्रभाव की निरंतरता पर विचार करते हैं। हम अपने सर्वेक्षण से पहले के चार वर्षों में, ‘उपचार’ वाले गांवों की तुलना पितृसत्ता या मद्यपान पर आधारित नाटकों के किसी भी जन-संस्कृति प्रदर्शन और बिना प्रदर्शन के साथ करते हैं। तालिका 2 (कॉलम 2) से पता चलता है घरेलू हिंसा के कृत्यों के लिए पत्नियों की गवाही देने की इच्छा को छोड़कर, हाल के प्रदर्शनों वाले और बिना प्रदर्शनों वाले गांवों के बीच जन-संस्कृति प्रदर्शन के प्रभाव में कोई महत्वपूर्ण अंतर नहीं है।

हम जिस तीसरे कारक पर विचार करते हैं वह ‘वर्ष’ है जिसमें पहली बार गांव में जन-संस्कृति प्रदर्शन किया गया था। हम 1996-2000 की अवधि में जन-संस्कृति द्वारा पितृसत्ता या मद्यपान पर अपनी पहली प्रस्तुति जिन ‘उपचार’ गावों में की गई थी, उन गांवों की तुलना जन-संस्कृति द्वारा 2001-2006 की अवधि में पहली प्रस्तुति दिए गए गावों के साथ करते हैं। तालिका 2 (कॉलम 3) यह दर्शाती है कि पहले बनाम बाद के गांवों में जन-संस्कृति के प्रभाव में कोई महत्वपूर्ण अंतर नहीं है।

तालिका 2. जन-संस्कृति के लिए पहले प्रदर्शन के सन्दर्भ में स्पिलओवर, निरंतरता और प्रभाव

निर्भर चर

स्पिल ओवर

हालिया बनाम हालिया एक्सपोजर नहीं

पहले बनाम बाद में एक्सपोजर

पत्नी ने बताया कि उसके पति ने उसका शारीरिक शोषण किया

एक जैसे नहीं

वैसा ही

वैसा ही

पत्नी ने बताया कि उसके पति ने कभी उसके साथ दुर्व्यवहार नहीं किया

वैसा ही

वैसा ही

वैसा ही

पत्नी अपने परिवार के किसी बड़े फैसले में भाग नहीं लेती

वैसा ही

वैसा ही

वैसा ही

पत्नी अन्य परिवारों में घरेलू हिंसा के कृत्यों की गवाही देगी

वैसा ही

वैसा ही

वैसा ही

एक अवैध शराब की दुकान को ध्वस्त करने की कार्रवाई में दूसरों का समर्थन करने के लिए पत्नी मदद करेगी

वैसा ही

वैसा ही

वैसा ही

पत्नी घरेलू हिंसा के शिकार लोगों को कानूनी सुरक्षा के बारे में अनजान है

वैसा ही

वैसा ही

वैसा ही

पति का मानना है कि कुछ स्थितियों में पत्नी को पीटना जायज है

वैसा ही

वैसा ही

वैसा ही

नोट: तालिका का प्रत्येक कॉलम यह दर्शाता है कि पाठ में वर्णित दो अलग-अलग सेटिंग्स के तहत जन-संस्कृति का प्रभाव समान है या नहीं।

हमारे निष्कर्ष से यह संकेत मिलता है कि जिस गांव में जन-संस्कृति प्रदर्शन हुआ है उसमें महिलाएं सशक्त हुई और बेटियों के लिए माता-पिता की आकांक्षाएं बढ़ेंगी। भारत की दशकीय जनगणना में 7 वर्ष से अधिक आयु के महिलाओं और पुरुषों के सन्दर्भ में जनगणना गांव के आधार पर साक्षरता दर की रिपोर्ट दी गई है। 1991 (फोरम थिएटर के साथ जन-संस्कृति के पूर्व का पहला हस्तक्षेप) और 2011 (जन-संस्कृति के हस्तक्षेप के बाद) के आंकड़ों पर चित्रण करते हुए, हम पाते हैं कि जन-संस्कृति के प्रदर्शन ने गांव में महिला और पुरुष साक्षरता दर- दोनों में वृद्धि हुई है, लेकिन यह दर महिलाओं के सन्दर्भ में काफी अधिक है। हम पाते हैं कि कई ग्राम-स्तरीय चरों को नियंत्रित करने के बाद, जन-संस्कृति के संपर्क में आने से नियंत्रण समूह में महिला साक्षरता दर 39% से बढ़कर उपचार समूह में 53% हो गई है; और इसने महिला-से-पुरुष साक्षरता दर के अनुपात को नियंत्रण समूह के 56% को बढ़ाकर उपचार समूह में 67% कर दिया है।

चित्र 1 में जीवन-साथी द्वारा दुर्व्यवहार और पत्नी-पिटाई की स्वीकृति पर गांव में जन-संस्कृति के प्रदर्शन के प्रभाव को दिखाया गया है। दिए गए आंकड़े के निचले भाग में पहले तीन प्रतिशत गांवों में उन पत्नियों का अनुपात दर्शाते हैं जिन्होंने कभी भी जन-संस्कृति प्रदर्शन नहीं देखा था, और जिन्होंने कहा कि उनके साथ दुर्व्यवहार किया गया था। जन- संस्कृति के प्रदर्शन से दुर्व्यवहार की तीनों श्रेणियों में कमी आ गई।

चित्र 1. जीवन-साथी द्वारा दुर्व्यवहार और पत्नी की पिटाई की स्वीकृति पर गांव में जन-संस्कृति के प्रदर्शन का प्रभाव

नोट: (i) यह आंकड़ा गांव में जन-संस्कृति के प्रदर्शन और 95% विश्वास अंतराल के प्रभाव के प्रतिगमन गुणांक को दर्शाता है। विश्वास अंतराल अनुमानित प्रभावों के बारे में अनिश्चितता व्यक्त करने का एक तरीका है। 95% विश्वास अंतराल, का अर्थ है कि यदि आप नए नमूनों के साथ प्रयोग को बार-बार दोहराते हैं, तो 95% समय परिकलित विश्वास अंतराल में सही प्रभाव होगा। (ii) क्षैतिज अक्ष के नीचे का प्रतिशत, जिन गावों में जन-संस्कृति प्रदर्शन नहीं हुआ है उन गांवों में, अपने पतियों द्वारा दुर्व्यवहार की गई पत्नियों के अनुपात और उत्तरदाताओं का आधार मान है जो यह मानते हैं कि पत्नी की पिटाई को उचित ठहराया जा सकता है।

जन-संस्कृति के प्रदर्शन का सबसे बड़ा प्रभाव पतियों के उस विश्वास पर पड़ा है जो अपनी पत्नियों की पिटाई को उचित मानते हैं। यह अनुपात 58% से 33% अंक गिर गया, जैसा कि आंकड़े के अंतिम बार में दिखाया गया है।

पितृसत्ता जैसी लंबे समय से चली आ रही विचारधारा के प्रति प्रतिबद्धता लोगों को ऐसी जानकारी स्वीकार करने से रोक सकती है जो पूर्व मान्यताओं के विपरीत है। जानकारी और अनुभव वैचारिक अंधेरों को दूर करने में मदद कर सकते हैं। सामाजिक परिवर्तन के बारे में बातचीत करने और उसे अभिनीत करने में समुदाय के सदस्यों की सक्रिय सहभागिता यह स्पष्ट दर्शाती है कि घरेलू हिंसा के प्रति दृष्टिकोण पर शिक्षा की तुलना में समुदाय-आधारित सहभागी रंगमंच अधिक प्रभावी क्यों है।

आगे की दिशा

अर्थशास्त्र आज व्यवहार को प्रभावित करने के लिए कला की शक्ति (इस मामले में, नाटकों के माध्यम से कहानी बताना) को पहचानता है। कहानियां लोगों को उनके आसपास की दुनिया को समझने का एक साधन देती हैं और एक व्यक्ति की समझ का विस्तार कर सकती हैं कि क्या संभव है। एक समुदाय की साझा की जाने वाली कहानियां उनके निर्देशात्मक मानदंडों को प्रभावित करती हैं। फोरम थिएटर के बारे में हमारा मूल्यांकन, हमारी सर्वोत्तम जानकारी के अनुसार सहभागी थिएटर का पहला बड़े पैमाने पर प्रभाव मूल्यांकन है, जो यह दर्शाता है कि इसका वास्तव में एक बड़ा प्रभाव हो सकता है। इस प्रकार से, भविष्य में किये जाने वाले अनुसंधान को कई सामाजिक समस्याओं के समाधान के लिए मंच थिएटर के हस्तक्षेप को बढ़ाने के तरीकों पर विचार करना चाहिए।

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टिप्पणियाँ:

  1. अधिक जानकारी के लिए मंच थिएटर जन संस्कृति से एक चर्चा का यह वीडियो देखें।
  2. छह डोमेन हैं- परिवार की शिक्षा और स्वास्थ्य देखभाल, परिवार द्वारा प्रमुख खरीद, पत्नी का अपने रिश्तेदारों से मिलना, बच्चों की शादी, बच्चों की संख्या और गर्भनिरोधक का उपयोग।
  3. हम पाते हैं कि ये प्रभाव सांख्यिकीय रूप से सार्थक हैं।

लेखक परिचय: कार्ला हॉफ विश्व बैंक में प्रमुख अर्थशास्त्री और कोलंबिया विश्वविद्यालय में गेस्ट प्रोफेसर हैं। ज्योत्सना जालान सेंटर फॉर स्टडीज इन सोशल साइंसेज, कलकत्ता (सीएसएसएससी, भारत) में अर्थशास्त्र की प्रोफेसर हैं और सेंटर फॉर ट्रेनिंग एंड रिसर्च इन प्यूबिक फाइनेंस एंड पॉलिसी (सीटीआरपीएफपी) की परियोजना निदेशक हैं। सात्विक संतरा, सेंटर फॉर स्टडीज इन सोशल साइंसेज, कलकत्ता में अर्थशास्त्र के सहायक प्रोफेसर हैं।

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