सामाजिक पहचान

ग्रामीण भारत में दहेज प्रथा का क्रमिक उद्भव: 1960-2008 के साक्ष्य

  • Blog Post Date 15 जुलाई, 2021
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Sungoh Kwon

Korea Institute of Public Finance

sokwon@kipf.re.kr

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Nishith Prakash

University of Connecticut

nishith.prakash@uconn.edu

1961 से अवैध घोषित किये जाने के बावजूद, दहेज परंपरा ग्रामीण भारत में व्यापक रूप से फैली हुई है। दो - भागों की श्रृंखला के इस पहले भाग में, यह लेख राज्यों और धार्मिक एवं सामाजिक समूहों में 1960 - 2008 के दौरान जारी दहेज प्रथा के क्रमिक उद्भव को चिन्हित करता है। यह पता चलता है कि घरेलू आय के एक हिस्से के रूप में दहेज में राष्ट्रीय स्तर पर धीरे-धीरे गिरावट आई है– तथापि इस अवधि के दौरान कुछ राज्यों और धार्मिक समूहों में दहेज़ में वृद्धि हुई है।

 

दहेज की प्रथा, यानी शादी के समय दुल्हन की तरफ से दुल्हे को किया जाने वाला अंतरण कई देशों में सर्वव्यापी है। इस लेख में, हम अपना ध्यान ग्रामीण भारत पर केंद्रित करते हैं, जहां 1961 से अवैध किये जाने के बावजूद दहेज परंपरा व्यापक रूप से फैली हुई है। 2006 के ग्रामीण आर्थिक और जनसांख्यिकी सर्वेक्षण (आरईडीएस) के अनुसार, 1960-2008 के दौरान 95% शादियों में दहेज का भुगतान किया गया था। प्रत्येक शादी में अक्सर दहेज परिवार की कई वर्षों की आय के बराबर होता है और यह लड़कियों के परिवारों पर काफी बोझ डालता है। हालांकि, हाल के दशकों में दहेज के उद्भव के बारे में बहुत कम जानकारी है जिसमें उल्लेखनीय आर्थिक और सामाजिक परिवर्तन हुए हैं।

क्या भारत में दहेज महंगाई का सामना किया जा रहा है, यह दहेज पर लोकप्रिय और अकादमिक दोनों चर्चाओं में जीवंत बहस का विषय रहा है। इस लेख में, हम 1960-2008 के दौरान हुई लगभग 40,000 शादियों के आंकड़ों का उपयोग करके ग्रामीण भारत में समय के साथ और राज्यों, जातियों और धर्मों में दहेज भुगतान में बदलाव आया है या नहीं, और आया है तो किस प्रकार से, इसका आकलन करते हैं (अनुकृति तथा अन्य 2020)।

हमारा विश्लेषण भारत के सन्दर्भ में दहेज डेटा के सबसे नवीनतम स्रोत- 2006 आरईडीएस के डेटा पर आधारित है- यह डेटा 17 प्रमुख राज्यों को कवर करता है जिसमें भारत की आबादी का लगभग 96% हिस्सा है। शादी के समय प्राप्त या दिए गए उपहारों के मूल्य की जानकारी का उपयोग करते हुए, हम निबल दहेज की गणना दुल्हन के परिवार द्वारा दूल्हे या उसके परिवार को दिए गए उपहारों के मूल्य और दूल्हे के परिवार द्वारा दुल्हन के परिवार को दिए गए उपहारों के मूल्य के बीच के अंतर के रूप में करते हैं। । हमारे प्रमुख निष्कर्षों पर चर्चा निम्नानुसार है।

1975 से पहले और 2000 के बाद कुछ बढ़ोत्तरी के साथ औसत निबल दहेज समय के साथ उल्लेखनीय रूप से स्थिर रहा है (चित्र 1)। निबल दहेज में यह प्रवृत्ति दुल्हन के परिवार द्वारा दूल्हे के परिवार को किए गए सकल भुगतान की प्रवृत्ति से मिलती है। इसके विपरीत, दूल्हे के परिवार द्वारा दुल्हन के परिवार को किए गए भुगतान का सिलसिला भी लगातार बना रहा है, लेकिन वह काफी कम है। यदि एक दूल्हे का परिवार औसतन लगभग रु. 5,000 (वास्तव में) दुल्हन के परिवार को उपहार देने के लिए खर्च करता है तो दुल्हन के परिवार से दिए जा रहे उपहार की कीमत इससे सात गुना अधिक यानी लगभग 32,000 रुपये है, जिसका मतलब औसत वास्तविक निबल दहेज 27,000 रुपये हो जाता है।

चित्र 1. विवाह के वर्ष के अनुसार वास्तविक निवल और कुल दहेज की प्रवृत्ति

टिप्पणियाँ: (i) बायां पैनल विवाह के वर्ष में दुल्हन के परिवार द्वारा भुगतान किए गए सकल दहेज के अभारित औसत और अभारित पांच-वर्षीय चल औसत को इंगित करता है। (ii) दायां पैनल विवाह के वर्ष में दुल्हन के परिवार और दूल्हे के परिवार से वास्तविक भुगतान का मोटे तौर पर अभारित औसत इंगित करता है।

नकारात्मक निबल दहेज के साथ शादियों का अनुपात, यानी, जहां दूल्हे के परिवार ने दुल्हन के परिवार को अन्य तरीकों की तुलना में अधिक भुगतान किया, वह शून्य तो नहीं है, लेकिन मात्रा में काफी कम है। अधिकांश शादियों में दूल्हे के परिवार को स्पष्ट निबल दहेज का भुगतान शामिल था। हमारे अध्ययन की अवधि के दौरान भारत में प्रति व्यक्ति आय में इजाफा हुआ है, अतः इन स्थिर प्रवृत्तियों का अर्थ है कि घरेलू आय के हिस्से के रूप में दहेज में राष्ट्रीय स्तर पर धीरे-धीरे गिरावट आई है।

भारत में सभी प्रमुख धार्मिक समूहों में दहेज प्रचलित है (चित्र 2)। यह प्रवृत्ति हिंदुओं के सन्दर्भ में राष्ट्रीय प्रवृत्ति के समान है- और यह आश्चर्य की बात नहीं है क्योंकि भारत में हिंदू धर्म बहुसंख्यक धर्म है (हमारे नमूने का 89 प्रतिशत हिंदू हैं)। इसमें भी एक महत्वपूर्ण बात इस ग्राफ से स्पष्ट है कि भारत में दहेज केवल एक हिंदूओ में प्रचलित नहीं है। मुस्लिम शादियों में औसत निबल दहेज हिंदुओं की तुलना में केवल थोड़ा ही कम है और अध्ययन अवधि के दौरान यह स्थिर रहा है। इसके विपरीत, इसी अवधि के दौरान ईसाई और सिख समाज में दहेज में उल्लेखनीय वृद्धि दिखाई दी है, जिसके चलते हिंदुओं और मुसलमानों की तुलना में औसत दहेज अधिक हो गया है।

चित्र 2. विवाह के वर्ष के अनुसार धर्म और जाति के अंतर्गत वास्तविक निवल दहेज की प्रवृत्ति

टिप्पणियाँ: (i) यह आंकड़ा 1960-2008 के दौरान वर्ष-वार शादी और धर्म (बाएं पैनल) या जाति (दाएं पैनल) द्वारा, दुल्हन की ओर से भुगतान किए गए वास्तविक निबल दहेज के पांच साल के चल अभारित औसत को दर्शाता है। (ii) सभी धर्म एक जाति समूह में शामिल हैं। SC, ST और OBC क्रमशः अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और अन्य पिछड़ा वर्ग को दर्शाता है।

दहेज उच्च जाति की स्थिति के साथ सकारात्मक रूप से सह-संबद्धित है, और दहेज भुगतान में जाति पदानुक्रम समय के साथ नहीं बदला है (चित्र 2)। उच्च जाति की शादियों में सबसे अधिक दहेज है, इसके बाद अन्य पिछड़ा वर्ग, अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति आते हैं।

यद्यपि औसत दहेज की प्रवृत्ति राष्ट्रीय स्तर पर स्थिर है, समय के साथ राज्यों में पर्याप्त अंतर दिखाई देता है (चित्र 3)। केरल राज्य में 1970 के दशक से निश्चित तौर पर और लगातार दहेज में बढ़ोत्तरी प्रदर्शित हुई है और हाल के वर्षों में वहां का औसत दहेज उच्चतम रहा है। बढ़ोत्तरी की प्रवृत्ति वाले अन्य राज्य हरियाणा, पंजाब और गुजरात हैं। केरल की धार्मिक संरचना में 26% मुस्लिम, 18% ईसाई, और 55% हिंदू हैं– वहां यह प्रवृत्ति पहले वर्णित धर्म द्वारा भिन्न प्रवृत्तियों के अनुकूल है। इसी प्रकार से, सिख बहुल राज्य पंजाब में बढ़ोत्तरी की प्रवृत्ति भी सिख दहेज में वृद्धि के अनुरूप है। दूसरी ओर, ओडिशा, पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु और महाराष्ट्र में औसत दहेज में कमी आई है।

चित्र 3. राज्य और विवाह के वर्ष के अनुसार वास्तविक निबल दहेज की प्रवृत्ति

टिप्पणियाँ: यह आंकड़ा राज्यों में विवाह के वर्ष के अनुसार, दुल्हन द्वारा भुगतान किए गए वास्तविक निबल दहेज के पांच साल के चल, अभारित औसत को दर्शाता है।

यह लेख दो-भागों की श्रृंखला में पहला है। अगले भाग में इस बात पर ध्यान केंद्रित होगा कि घरेलू निर्णय लेने और इंटर-टेम्पोरल संसाधन आवंटन को दहेज कैसे प्रभावित करता है। यह श्रृंखला विश्व बैंक के ‘लेट्स टॉक डेवलपमेंट‘ ब्लॉग के सहयोग से प्रकाशित की गई है।

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लेखक परिचय : एस. अनुकृति  विकास अनुसंधान समूह, विश्व बैंक में अर्थशास्त्री हैं। संगोह क्वोन कोरिया इंस्टीट्यूट ऑफ पब्लिक फाइनेंस में एसोसिएट फेलो हैं। निशीथ प्रकाश कनेक्टिकट विश्वविद्यालय में अर्थशास्त्र के सहायक प्रोफेसर हैं और अर्थशास्त्र विभाग और मानवाधिकार संस्थान में संयुक्त पद पर हैं।

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