गरीबी तथा असमानता

हिमाचल की शहरी रोजगार गारंटी योजना की जांच

  • Blog Post Date 13 अप्रैल, 2022
  • फ़ील्ड् नोट
  • Print Page

भारत में अर्थशास्त्रियों द्वारा शहरी रोजगार कार्यक्रम की आवश्यकता के बारे में दिए गए सुझावों के बावजूद, इस संबंध में राष्ट्रीय स्तर की नीति के अमल में आने में कुछ और समय लगेगा। हालांकि, कुछ राज्यों ने ऐसे कार्यक्रमों को लागू किया है और इस लेख में कृष्णा प्रिया चोरागुडी हिमाचल प्रदेश की मुख्यमंत्री शहरी आजीविका गारंटी योजना के मामले की जांच करती हैं। उनका तर्क है कि ऐसी योजनाएं शहरी क्षेत्रों में संपत्ति निर्माण और आजीविका सुरक्षा के साथ-साथ महिलाओं के रोजगार को बढ़ाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम हैं।

वर्ष 2020 में, जीन ड्रेज़ ने शहरी क्षेत्रों में सब्सिडी वाले सार्वजनिक रोजगार के सृजन हेतु भारत में एक शहरी रोजगार कार्यक्रम (ड्रेज़ 2020)- डुएट (विकेंद्रीकृत शहरी रोजगार और प्रशिक्षण) के विचार की सिफारिश की। यह प्रस्ताव "शहरी बेरोजगारी के मारक के रूप में एक स्थायी संस्था" की सिफारिश करता है। इस प्रस्ताव पर ‘आइडियाज फॉर इडिया' ई-संगोष्ठी में, शोधकर्ताओं ने ऐसे कार्यक्रम (मुखर्जी 2020) के कार्यान्वयन में संपत्ति निर्माण (कोतवाल 2020) से लेकर शहरी स्थानीय निकायों (यूएलबी) की भूमिका तक के मुद्दों पर चर्चा की। हालांकि इस संबंध में राष्ट्रीय स्तर की नीति के अमल में आने में अभी थोड़ा समय लगने वाला है, लेकिन उन राज्यों से कुछ सबूत सामने आ रहे हैं जिन्होंने अपने शहरी अनौपचारिक श्रमिकों के लिए नौकरी की गारंटी बनाने की पहल की है। ऐसा ही एक उदाहरण, उत्तर भारतीय राज्य हिमाचल प्रदेश है, जिसने मई 2020 में मुख्यमंत्री शहरी आजीविका गारंटी योजना (एमएमएसएजीवाई) शुरू की थी। इस कार्यक्रम में आजीविका सुरक्षा और शहरी संपत्ति निर्माण का दोहरा उद्देश्य है। इस लेख में, मैं योजना के कामकाज की और इसे जारी रखने की आवश्यकता की जांच करती हूं। मेरा विश्लेषण नवंबर 2021 में पहाड़ी राज्य के पांच नगर निगमों में से एक निगम ‘धर्मशाला’ में आयोजित कार्यक्रम के तहत श्रमिकों के किये गए 10 व्यक्तिगत गुणात्मक साक्षात्कारों पर आधारित है। मैंने सितंबर और नवंबर 2021 के बीच अन्य शहरों (पालमपुर, बैजनाथ-पिपरोला और शिमला) में 40 श्रमिकों के साथ टेलीफोन पर साक्षात्कार भी किए। व्यक्तिगत और टेलीफोन साक्षात्कार के लिए उत्तरदाताओं को कार्यक्रम के पोर्टल से प्राप्त प्रशासनिक डेटा से यादृच्छिक रूप से चुना गया था।

एमएमएसएजीवाई शहरी स्थानीय निकायों के क्षेत्र में रहने वाले प्रत्येक परिवार को 120 दिनों के वेतन रोजगार की गारंटी देता है और इस योजना का वार्षिक परिव्यय रु 100 करोड़ है। इस योजना के अन्य प्रावधानों में, कम से कम 30 दिन का रोजगार पूरा करने वाले श्रमिकों के लिए राष्ट्रीय शहरी आजीविका मिशन के तहत कौशल प्रशिक्षण देना और आवेदन करने के 15 दिनों के भीतर काम नहीं मिलने पर बेरोजगारी भत्ता दिया जाना शामिल है। प्रति दिन रु. 300 की मजदूरी दर राज्य में शहरी क्षेत्रों के लिए अधिसूचित न्यूनतम मजदूरी के रूप में आंकी गई है।

जैसा कि स्थिति है, राज्य सरकार ने वित्तीय वर्ष (वित्त वर्ष) 2022-23 के लिए योजना को जारी रखने का फैसला किया, और 2022-23 के बजट सत्र में शहरी बेरोजगार युवाओं के लिए गारंटीकृत रोजगार के लिए एक बिल पेश करने का वादा भी किया है। हालांकि, यह ध्यान दिया जाना चाहिए कि इस योजना के वार्षिक परिव्यय में भारी कटौती कर उसे विगत वर्षों के 100 करोड़ रुपये की तुलना में अब 5 करोड़ रुपये किया गया है।

आम स्थलों और सार्वजनिक संपत्तियों का निर्माण और रख-रखाव

मैंने अपने पूर्ण किए गए कार्यस्थलों के अपने दौरों के आधार पर पाया कि इस योजना के तहत उपयोगी परियोजनाएं पूर्ण की गई हैं। एमएमएसएजीवाई के तहत सबसे आम परियोजनाएं कुहल (जल चैनल) का निर्माण, सड़कों और नालों के पास प्रतिधारक कार्य, समतलन का कार्य और सार्वजनिक क्षेत्रों में झाड़ियों और घास को काटना और साफ करना है। इनमें से कई कार्यों का  महत्वपूर्ण लाभ स्थानीय समुदाय के लिए हैं। उदाहरण के लिए, कुहलों का निर्माण और उनका समय पर रखरखाव पहाड़ी क्षेत्रों की सिंचाई में एक आवश्यक भूमिका निभाता है और यह एक आम संपत्ति संसाधन है। जोखिम भरे इलाके और लाभप्रदता की कमी के कारण स्थानीय ठेकेदारों द्वारा छोड़ी गई कुछ परियोजनाओं को एमएमएसएजीवाई श्रमिकों द्वारा सफलतापूर्वक पूरा किया गया है।

महिला श्रमिकों के लिए रोजगार

हिमाचल प्रदेश आर्थिक सर्वेक्षण 2021-22 (हिमाचल प्रदेश सरकार, 2022) के अनुसार कोविड-19 के प्रभाव के कारण वर्ष 2020-21 में हिमाचल प्रदेश की अर्थव्यवस्था में 5% की गिरावट आई। राज्य में "सामान्य स्थिति"1 के तहत बेरोजगारी दर 3.7% थी और शहरी क्षेत्रों में युवा (15-29 आयु के) बेरोजगारी दर आवधिक श्रम-बल सर्वेक्षण 2019-20 (सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय, 2021) के अनुसार 16% थी। यद्यपि शहरी पुरुष श्रमिकों (4.1%) की  बेरोजगारी दर (सभी आयु के) ग्रामीण पुरुष श्रमिकों (4.4%) के समान थी, महिला श्रमिकों के संदर्भ में यह दर ग्रामीण क्षेत्रों (2.3%) की तुलना में शहरी क्षेत्रों (9.7%) में बहुत अधिक थी। 

एमएमएसएजीवाई के तहत, कार्यक्रम के डैशबोर्ड के आंकड़ों के अनुसार अधिकांश आवेदक महिलाएं थीं और कुल 7,593 स्वीकृत आवेदनों में से (20 फरवरी 2022 तक) सभी श्रमिकों में से लगभग आधे श्रमिक अनुसूचित जाति (एससी)/ अनुसूचित जनजाति (एसटी) समुदायों से संबंधित थे। महिला एमएमएसएजीवाई श्रमिकों के साथ मेरी बातचीत में, मैंने पाया कि कार्यक्रम के अधीन काम करना उनके परिवारों के लिए आय के पूरक स्रोत के रूप में है। उनमें से अधिकांश को श्रम बाजार में काम नहीं मिला क्योंकि निजी ठेकेदारों ने ज्यादातर पुरुषों और प्रवासी श्रमिकों को पसंद किया जो कम मजदूरी में काम करने के इच्छुक हो सकते हैं। एमएमएसएजीवाई ने कई महिलाओं को अनिश्चित, विलंबित या आंशिक भुगतान, लंबे समय तक काम करने और असुरक्षित कामकाजी परिस्थितियों वाले निजी ठेकेदारों के साथ के अनिश्चित रोजगार का एक बेहतर विकल्प प्रदान किया।

कुछ महिलाओं ने अपनी मजदूरी की आय अपने बच्चों की ट्यूशन पर खर्च करने की, जिसकी जरूरत थी क्योंकि पिछले 18 महीनों से स्कूल बंद थे। इस योजना के तहत काम करने से कई स्थानीय महिलाओं के मन में एक सकारात्मक श्रम-बल लगाव भी हुआ, यहां तक कि ​​जो  महिलाएं सक्रिय रूप से रोजगार की तलाश नहीं कर रही थीं- उन्होंने भी अब घर पर रहते हुए  काम करना पसंद किया। महिला, जिसने 120 दिनों की गारंटी में से केवल 21 दिनों के लिए ही काम प्राप्त किया, ने कहा, 'कम से कम कुछ काम सीखने को मिला'।

कार्यान्वयन संबंधी चुनौतियां

इस योजना के अच्छे इरादों के बावजूद, इसका कार्यान्वयन संतोषजनक नहीं रहा है। कार्यान्वयन के प्रभारी स्थानीय अधिकारियों ने कहा कि शहरी स्थानीय निकायों (यूएलबी) की क्षमता-संबंधी बाध्यताएं हैं। उदाहरण के लिए, धर्मशाला नगर निगम में केवल 69 स्थायी कर्मचारी हैं, जिसके कुछ साल पहले निगम के रूप में अधिसूचित होने के बाद भी इसमें कोई परिवर्तन नहीं हुआ है। राज्य में कुछ ही शहरी स्थानीय निकाय (यूएलबी) इस योजना के तहत सक्रिय रूप से काम प्रदान कर रहे हैं। अन्य शहरों में कामगारों के साथ टेलीफोनिक साक्षात्कार में, मुझे पता चला कि कुछ श्रमिकों को आवेदन करने के एक साल बाद भी कोई काम नहीं मिला था। उनमें से कुछ जिन्हें काम मिला- आम तौर पर 60 दिनों से कम के लिए मिला और उन्हें अपनी पूरी मजदूरी प्राप्त करने के लिए 1-2 महीने तक इंतजार करना पड़ा। मैंने जिन श्रमिकों से बात की, उनके द्वारा चिनाई जैसे कौशल हासिल करने में रुचि व्यक्त किये जाने के बावजूद, वे सभी एमएमएसएजीवाई के तहत मिलनेवाले बेरोजगारी भत्ते और कौशल प्रशिक्षण प्रावधानों से अनजान थे।

योजना को जारी रखने की आवश्यकता

कस्बों और शहरों की परिधि में आने वाले ग्रामीण क्षेत्रों का शहरी क्षेत्रों में पुनर्वर्गीकरण किया जाना हिमाचल प्रदेश के बढ़ते शहरीकरण का एक महत्वपूर्ण कारक है। ऐसे क्षेत्रों के लोग जनसांख्यिकी और आर्थिक अवसरों में किसी भी महत्वपूर्ण बदलाव के बिना, कल्याणकारी प्रावधानों से वंचित रह जाते हैं जो पहले उन्हें ग्रामीण निवासियों के रूप में उपलब्ध थे। वे मनरेगा (महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम)2 के तहत प्रदान किये जाने वाले कार्य के रूप में एक महत्वपूर्ण सुरक्षा जाल को खो देते हैं। एमएमएसएजीवाई के तहत आवेदकों की एक बड़ी संख्या ऐसे क्षेत्रों के श्रमिक हैं, जिनमें से कई श्रमिक इस योजना को 'शहरी नरेगा' कहते हैं।

अर्थव्यवस्था को महामारी से उबरने में काफी समय लगेगा, और इसकी तेजी से रिकवरी सुनिश्चित करने के लिए सामाजिक सुरक्षा जाल के रूप में रोजगार की गारंटी महत्वपूर्ण होगी। जिस प्रकार से पिछले दो वर्षों के दौरान ग्रामीण क्षेत्रों में मनरेगा की मांग चरम पर है, उसी तरह एमएमएसएजीवाई जैसी शहरी रोजगार गारंटी शहरी क्षेत्रों में अंतिम उपाय के रूप में काम कर सकती है। केरल, ओडिशा और झारखंड जैसे अन्य राज्यों में भी इसी तरह की योजनाएं हैं, और तमिलनाडु और राजस्थान ने हाल ही में एक योजना की घोषणा की है। यदि कोविड-19 महामारी के पहले लॉकडाउन के दौरान के आजीविका संकट से हमें कुछ सीख मिली है, तो वह शहरी अनौपचारिक श्रमिकों की अत्यधिक अनिश्चितता है, क्योंकि उनके पास कमाई के अलावा निर्वाह का कोई अन्य साधन नहीं है। ऐसी योजनाओं को कार्यदिवसों की गारंटीकृत संख्या निश्चित करते हुए और समय पर मजदूरी का भुगतान करके अधिक प्रभावी ढंग से लागू किये जाने से, आय और नौकरी के नुकसान का सामना करने वाले परिवारों को बेहद-जरूरी राहत मिलेगी।

यह सराहनीय है कि हिमाचल प्रदेश सरकार ने इस योजना को वित्त वर्ष 2022-23 के लिए बढ़ा दिया है और इस पर एक कानून लाने का प्रस्ताव किया है। तथापि, इसके तहत काम की मांग और राज्य में संपत्ति निर्माण, आजीविका सुरक्षा और महिलाओं के रोजगार में इसके अत्यधिक महत्व को देखते हुए, इस योजना के बजट में की गई भारी कटौती चिंताजनक है उन प्रावधानों को लागू करने के लिए शहरी स्थानीय निकायों में प्रशासनिक और वित्तीय क्षमता को बढाने के साथ-साथ बेरोजगारी भत्ता और कौशल-प्रशिक्षण जैसे योजना के प्रमुख प्रावधानों के बारे में श्रमिकों के बीच जागरूकता पैदा करने के प्रयास किए जाने चाहिए। सबसे पहले, सरकार को इस योजना हेतु बजट में कटौती पर पुनर्विचार करना चाहिए और तुरंत इसके लिए वार्षिक आवंटन की राशि को पूर्व के समान 100 करोड़ रुपये करना चाहिए तथा स्वीकृत धन का कुशल उपयोग भी सुनिश्चित करना चाहिए। योजना के लिए इस वर्ष हेतु रखा गया महज 5 करोड़ रुपये का परिव्यय रोजगार गारंटी के वादे को खोखला बना रहा है।

लेखक इस लेख हेतु उपयोगी टिप्पणियों और प्रतिक्रिया के लिए प्रो. रीतिका खेरा की आभारी हैं।

क्या आपको हमारे पोस्ट पसंद आते हैं? नए पोस्टों की सूचना तुरंत प्राप्त करने के लिए हमारे टेलीग्राम (@I4I_Hindi) चैनल से जुड़ें। इसके अलावा हमारे मासिक समाचार पत्र की सदस्यता प्राप्त करने के लिए दायीं ओर दिए गए फॉर्म को भरें।

टिप्पणियाँ:

  1. सामान्य स्थिति (मुख्य स्थिति प्लस सहायक स्थिति) का निर्धारण व्यक्ति द्वारा पिछले 365 दिनों के दौरान की गई गतिविधियों के आधार पर किया जाता है।
  2. मनरेगा ग्रामीण क्षेत्रों में ऐसे किसी भी वयस्क को स्थानीय सार्वजनिक कार्यों पर रोजगार की गारंटी प्रदान करता है, जो प्रति वर्ष प्रति परिवार 100 दिन तक निर्धारित मजदूरी पर मैनुअल काम करने को तैयार होते हैं।

लेखक परिचय:  कृष्णा प्रिया चोरागुडी मानविकी और सामाजिक विज्ञान विभाग,  आईआईटी दिल्ली  में अर्थशास्त्र में एक पीएच.डी. छात्र हैं।

No comments yet
Join the conversation
Captcha Captcha Reload

Comments will be held for moderation. Your contact information will not be made public.

संबंधित विषयवस्तु

समाचार पत्र के लिये पंजीकरण करें