कोविड -19 महामारी के दौरान स्कूल बंद होने के कारण हुए शिक्षण के नुकसान की चिंताओं के बीच, तमिलनाडु के एक स्वयंसेवक-आधारित शिक्षा कार्यक्रम - इल्लम थेडी कलवी (आईटीके) – ने सीखने की खाई को पाटने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। इस लेख में, सार्थक अग्रवाल ने ग्रामीण आईटीके कक्षा में किये अपने दौरे को याद किया है, और कार्यक्रम की सफलता में योगदान देने वाले कारकों की और इस मॉडल से अन्य राज्य क्या सीख ले सकते हैं, इसकी रूपरेखा प्रस्तुत की है।
इल्लम थेडी कलवी (अंग्रेजी में 'एजुकेशन एट डोरस्टेप्स'), तमिलनाडु सरकार का महत्वाकांक्षी प्रयास है, जो प्राथमिक और माध्यमिक विद्यालय के छात्रों के लिए कोविड के बाद के सीखने के अंतर को मजबूती से कम कर रहा है। दिसंबर 2021 से लगातार जारी रहने के बावजूद, इसने अभी भी व्यापक राष्ट्रीय ध्यान आकर्षित नहीं किया है। यह एक अफ़सोस की बात है, क्योंकि इस पर चल रहे शोध में यह पाया गया कि तमिलनाडु के ग्रामीण इलाके में प्रारंभिक सीखने की कमी में से 67 प्रतिशत कमी आईटीके के लॉन्च होने के चार महीने से भी कम समय में दूर हो गई है। शिक्षा पर महामारी के प्रभाव पर निराशावादी निष्कर्षों की बाढ़ के बीच, यह एक बूस्टर शॉट के रूप में आता है।
आईटीके कैसे काम करता है?
आईटीके "भारत का सबसे बड़ा स्वयंसेवक-आधारित शिक्षा कार्यक्रम" कहलाता है। इसके अंतर्गत 200,000 महिला स्वयंसेवकों द्वारा कुल 92,000 बस्तियों के 33 लाख से अधिक छात्रों को प्रतिदिन 90 मिनट के लिए पढ़ाया जा रहा है। ये आंकड़े चौकाने वाले हैं।
चित्र साभार: लेखक द्वारा स्वयं खींचा गया
इतनी सफलता के बावजूद, आईटीके एक साधारण मॉडल पर चलता है। छात्रों को दो समूहों में बांटा गया है- कक्षा 1-5 के लिए प्राथमिक, और कक्षा 6-8 के लिए उच्च प्राथमिक- और उनकी बस्तियों में ही उन्हें बुनियादी कौशल का एक उद्देश्य-निर्मित पाठ्यक्रम पढ़ाया जाता है। चूंकि कार्यक्रम स्वयंसेवी संचालित है, इसलिए किसी को आश्चर्य हो सकता है कि क्या सरकार को अच्छे शिक्षक खोजने में चुनौतियों का सामना करना पड़ा। हाँ, ऐसा है, लेकिन योग्य लोगों का चयन करने में: सरकारी आंकड़ों के अनुसार, हर उपलब्ध पद के लिए चार उम्मीदवारों ने आवेदन किया था।
कौन-सा कारण आईटीके मॉडल को इतना सफल बनाता है? तमिलनाडु का 51% का उच्च सकल नामांकन अनुपात, जो राष्ट्रीय औसत से दोगुना है- शायद एक प्रमुख कारण है। लेकिन दूसरा पहलू यह है कि इस कार्यक्रम ने समुदाय की ताकत का सफलतापूर्वक लाभ उठाया है। जैसा कि प्रधान मंत्री मोदी जी ने पिछले साल भारतीय पुलिस सेवा (आईपीएस) के परिवीक्षाधीनों से कहा था, "भारत का समाज अक्सर अपनी सरकार से अधिक शक्तिशाली होता है"। आईटीके पहल स्वयंसेवकों द्वारा संचालित है और वे उसी क्षेत्र में रहते हैं जिसमें वे पढ़ा रहे हैं, इससे दोनों पक्षों के बीच आपसी जुड़ाव (स्थानीय कनेक्शन) स्थापित हो पाता है। स्वयंसेवकों का चयन एक कठोर प्रक्रिया के जरिये किया जाता है जिसमें एक साइकोमेट्रिक टेस्ट शामिल है, और पढ़ाने/शिक्षण की सामग्री (टीएलएम) तैयार करने हेतु उनके खर्च को कवर करने के लिए प्रति माह केवल 1,000 रुपये का भुगतान किया जाता है। भले ही यह राशि अक्सर समय पर नहीं दी जाती है, फिर भी वे अपने कार्य में लगे रहते हैं।
पढ़ाने और शिक्षण की सामग्री स्वयंसेवक खुद तैयार करते हैं और उन खर्चों को पूरा करने के लिए उन्हें मुआवजा दिया जाता है |
चित्र साभार: लेखक द्वारा स्वयं खींचा गया
कुछ महिलाएं अनुबंधित सरकारी स्कूल की शिक्षिकायें हैं (जिन्हें प्रति माह लगभग 6,500 रुपये का वेतन मिलता है), जो अपने ज्ञान का उपयोग अपने समुदायों में सीखने में सुधार के लिए करना चाहती हैं। वे स्थायी नौकरी पाने के अवसर की तलाश में भी हो सकती हैं, और हालांकि इसमें उनके सफल होने की संभावना नहीं है, फिर भी उनके अनुपालन और प्रेरणा का स्तर उच्च बना रहता है। राज्य सरकार भी इन युवा स्वयंसेवकों को प्रेरित करने में अपना योगदान देती है; वह अच्छा प्रदर्शन करने वाले शिक्षकों को उदारतापूर्वक प्रशंसा प्रमाण-पत्र देती है और उनमें से सर्वश्रेष्ठ को सार्वजनिक कार्यक्रमों में सम्मानित करती है।
स्कूल प्रबंधन समितियां (एसएमसी) भी आईटीके के लिए बधाई की पात्र हैं। अधिकांश राज्यों में ऐसी समितियां निष्क्रिय हैं, तथापि तमिलनाडु की समितियों को राज्य के शिक्षा विभाग द्वारा समन्वित सामूहिक पुनर्गठन बैठकों के माध्यम से आईटीके के रोलआउट से ठीक पहले फिर से सक्रिय किया गया था। एसएमसी ने अपने स्वयंसेवकों की पृष्ठभूमि और अधिवास की जांच की। समिति के सदस्यों ने शाम के पाठ पढ़ाने के लिए जगह की भी व्यवस्था की, जो ज्यादातर गांव के सामुदायिक हॉल में आयोजित किये जाते हैं। इन अस्थायी स्कूलों में सबसे अच्छा बुनियादी ढांचा नहीं हो सकता है, लेकिन यह हम जितना सोच सकते हैं उससे कम मायने रखता है- शिक्षा अर्थशास्त्रियों ने नियमित रूप पाया है कि स्कूल के इनपुट बढ़ने से सीखने के परिणामों पर केवल छोटा प्रभाव ही पड़ता है (दास एवं अन्य 2011)। शिक्षकों का ध्यान उनके प्राथमिक काम पर केंद्रित रखना मायने रखता है, जो आईटीके प्रशासनिक कार्य एसएमसी को सौंपकर करने की कोशिश करता है। किसी बच्चे की नियमित रूप से अनुपस्थिति हो तो केवल प्रशासन ही नहीं- सदस्य भी उसके माता-पिता को कड़े बोल सुनाते हैं। वे समुदाय के सम्मानित सदस्य होते हैं, इसलिए उनकी टिप्पणियों का महत्त्व होता है।
योजना के बारे में समग्र जागरूकता अधिक है। अभिजीत सिंह1 के एक अप्रकाशित शोध के अनुसार, 91% परिवारों ने आईटीके के बारे में सुना है, और 57% ने कहा कि उनके बच्चे इस कार्यक्रम में भाग लेते हैं। इसमें उपस्थिति की दर गरीब परिवारों में अधिक है। शुरू में सरकार ने राज्य की 92,000 बस्तियों में आईटीके के बारे में जागरूकता फैलाने के लिए 5,000 लोक कलाकारों की भर्ती की। मुख्यमंत्री ने भी अपना व्यक्तिगत समय देकर स्वयंसेवकों को आगे आने और योगदान करने हेतु आमंत्रित करके इस पहल को लोकप्रिय बनाने में मदद की।
जिलों के मास्टर प्रशिक्षकों ने फिर ब्लॉक स्तर के अधिकारियों को प्रशिक्षित किया, जिन्होंने अपना ज्ञान आखरी कड़ी के स्वयंसेवकों तक पहुँचाया। प्रत्येक ब्लॉक में सरकारी स्कूल के दो शिक्षकों और नागरिक समाज संगठन के कुछ सदस्यों ने आईटीके कक्षाओं का दौरा किया और कक्षा की गतिविधियों की निगरानी की। इसके अलावा, फेसबुक और टेलीग्राम समूह हैं जहां क्रमशः 85,000 और 75,000 स्वयंसेवक कार्यक्रम निदेशक के साथ सीधे संवाद करते हैं। इसी मंच के माध्यम से बाकी सदस्यों के साथ सर्वोत्तम प्रथाओं को साझा करने के लिए शिक्षकों को प्रोत्साहित किया जाता है।
इन दिनों कोई भी शिक्षा परियोजना प्रौद्योगिकी की भूमिका के बिना पूरी नहीं होती है। आईटीके के पास एक उद्देश्य-निर्मित निगरानी ऐप है जो बहुत सरल है, लेकिन इसका उपयोग कई कार्यों के लिए किया जा सकता है। इसके माध्यम से सरकार स्वयंसेवकों को पढ़ाने/शिक्षण की सामग्री (टीएलएम) भेजने और छात्रों की उपस्थिति और उनके सीखने के स्तर2 से संबंधित डेटा एकत्र कर पाती है। स्वयंसेवक इस ऐप पर अपने वजीफा भुगतान (वेतन) की स्थिति भी देख सकते हैं।
लेकिन यह सिर्फ ऐप ही नहीं जो आईटीके को 21वीं सदी की पहल बनाता है। हाल ही में आयोजित एक रीडिंग मैराथन के दौरान, इस कार्यक्रम के छात्रों ने गूगल के 'रीड अलॉन्ग' एप्लिकेशन और अपने इन-क्लास स्वयंसेवकों की मदद से महज 12 दिनों में 263 करोड़ शब्द पढ़ डाले। विशेषज्ञों की सलाह के अनुरूप, यह प्रौद्योगिकी का एक उत्कृष्ट उपयोग था जो नियमित शिक्षण प्रक्रिया के लिए पूरक है, लेकिन उसे प्रतिस्थापित नहीं करता है।
आईटीके के साथ मेरा अनुभव
मैंने चेन्नई से सटे एक ग्रामीण इलाके में आईटीके कक्षा का अवलोकन करते हुए एक दोपहर बिताई। इसके बावजूद कि बच्चों के सीखने हेतु बेहतर समय बिताया जा सकता था- बच्चों को हमारे सामने प्रदर्शन करने के लिए कहा गया; मैं स्वयंसेवकों के समर्पण और ब्लॉक अधिकारियों की रुचि से प्रभावित हुआ। वे कार्यक्रम की बारीकियों से अच्छी तरह वाकिफ थे और इसकी सफलता में व्यक्तिगत रूप से जुड़े लग रहे थे। एक स्वयंसेवक ने खुद अपने छात्रों के लिए विकसित किए टीएलएम को गर्व से दिखाया, उस सामग्री में एक किफायती लेकिन बैटरी से चलने वाला प्रभावी पंखा था। अभी निर्णय पर आना जल्दबाजी होगी, लेकिन मुझे आश्चर्य नहीं होगा अगर एक प्रभाव मूल्यांकन का अत्यधिक सकारात्मक परिणाम प्राप्त होता है।
चित्र साभार: लेखक द्वारा स्वयं खींचा गया
अन्य राज्यों के लिए सीख
यह कार्यक्रम छह महीने के विस्तार के बाद मार्च 2023 तक जारी रह सकता है। क्या इस कार्यक्रम से अन्य शिक्षा विभागों हेतु कोई सबक है? हां, इस पर मैं काफी बहस कर सकता हूँ।
पहली यह कि, 20 महीने तक स्कूल बंद रहने से हुए नुकसान की भरपाई कुछ हफ्तों में नहीं की जा सकती । पहल यदि अधिक अवधि के लिए नहीं हो तो, कम से कम एक वर्ष तक चलनी चाहिए। दूसरी, छोटी पायलट परियोजनाएं इस विशाल अंतर को पाटने में सक्षम नहीं होंगी। सार्वजनिक क्षेत्र के नेताओं को महत्वाकांक्षी होना चाहिए और आईटीके की तरह3 बड़े पैमाने पर निर्माण करना चाहिए। तीसरी, स्थानीय स्वयंसेवकों को शामिल करने और निष्क्रिय एसएमसी को फिर से सक्रिय करने से, सीखने और इसकी निगरानी हेतु प्रभावी संस्थान बनाये जा सकते हैं। चौथी, हाई-टेक फैंसी मॉनिटरिंग टूल्स के निर्माण के चक्कर में नहीं पड़ना चाहिए। प्रौद्योगिकी के माध्यम से शिक्षक अपने छात्रों को संभाल तो सकते हैं; लेकिन बच्चों को केवल अजीबोगरीब गैजेट उपलब्ध करा देना और यह उम्मीद करना कि वे सब कुछ अपने आप सीख लेंगे, यह कारगर नहीं हो सकता। पांचवीं बहस, एक सच्चे बॉटम-अप दृष्टिकोण का पालन किया जाए। यह विकास का शब्दजाल नहीं है, लेकिन आईटीके के कार्यान्वयन के समय इसे व्यवहार में लाया गया है; कार्यक्रम के निदेशक, इल्लम भगवथ ने यह तय करने के लिए कि स्वयंसेवकों को गर्मी की छुट्टी के दौरान छुट्टी दी जाए या नहीं, आईटीके के टेलीग्राम चैनल पर एक सर्वेक्षण चलाया। उन्होंने अपने निर्णय को शिक्षक की प्रतिक्रिया के आधार पर प्रासंगिक बनाया। अंत में, और यह कुछ ऐसा है जो अभी तक आईटीके में भी नहीं किया गया है- यानी शिक्षण को सही स्तर (TaRL) ढांचे पर अपनाया जाए। प्रारंभ में, इस शैक्षणिक दृष्टिकोण का समर्थन एनजीओ ‘प्रथम’ द्वारा किया गया था, इसका कड़ा मूल्यांकन अभिजीत बनर्जी और एस्थर डफ्लो सहित अन्य शोध द्वारा किया गया है, और इन्होंने इसके अत्यधिक प्रभावशाली परिणाम प्राप्त किए हैं (जे-पाल, 2018)।
मुझे जब पहली बार आईटीके कार्यक्रम के बारे में पता चला, तो मैंने अपना सिर खुजलाया: स्वयंसेवक अपने समय के लिए इतना कम भुगतान प्राप्त करने के बावजूद, इतनी बड़ी संख्या में और वह भी भरपूर प्रेरणा के साथ आगे क्यों आए? मैंने श्री भगवथ से यह प्रश्न किया; उनके अनुसार, "ऐसी चीजें हैं जिन्हें पैसे के संदर्भ में नहीं मापा जा सकता है। उदाहरण के लिए, स्वाभिमान, समाज में पहचान, सुने जाने का आनंद, आस-पड़ोस के बच्चों के साथ भावनात्मक लगाव और स्वयंसेवकों द्वारा प्राप्त किये गए शिक्षण का बेहतर उपयोग। हम ऐसे कारकों के कारण अपने कार्यक्रम को सफलतापूर्वक चलाते हैं।" यह स्पष्ट नहीं है कि यह कम लागत वाला, उच्च प्रेरणा मॉडल अन्य राज्यों में दोहराया जा सकता है या नहीं। लेकिन 200,000 युवा महिलाओं की ऊर्जा का उपयोग करते हुए और उन्हें हमारे समय की सबसे बड़ी प्राथमिकता- बच्चों के अच्छी तरह से शिक्षण, की दिशा में निर्देशित करके तमिलनाडु राज्य ने पहले ही कुछ खास हासिल कर लिया है।
क्या आपको हमारे पोस्ट पसंद आते हैं? नए पोस्टों की सूचना तुरंत प्राप्त करने के लिए हमारे टेलीग्राम (@I4I_Hindi) चैनल से जुड़ें। इसके अलावा हमारे मासिक समाचार पत्र की सदस्यता प्राप्त करने के लिए दायीं ओर दिए गए फॉर्म को भरें।
टिप्पणियाँ:
- ये निष्कर्ष ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय में RISE वार्षिक सम्मेलन 2022 में प्रस्तुत किए गए थे।
- लगभग 60,000 स्वयंसेवकों के पास स्मार्टफोन नहीं है, इसलिए वे उपस्थिति कागज पर दर्ज कराते हैं।
- तमिलनाडु में यह कार्यक्रम दिसंबर 2021 में 12-जिले के पायलट चरण के साथ शुरू हुआ, लेकिन जब इसके परिणाम आशाजनक दिखाई दिए तो इसे जनवरी 2022 में व्यापक रूप से विस्तारित किया गया।
लेखक परिचय: सार्थक अग्रवाल भारतीय प्रशासनिक सेवा के एक अधिकारी हैं।
Comments will be held for moderation. Your contact information will not be made public.