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भारत में बीमा: प्रधान मंत्री जन आरोग्य योजना की लक्ष्यीकरण संबंधी समस्या

  • Blog Post Date 16 नवंबर, 2022
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भारत का सबसे बड़ा स्वास्थ्य बीमा कार्यक्रम गरीब और कमजोर आबादी पर लक्षित है जो कम से कम चिकित्सा देखभाल प्राप्त करने में सक्षम होंगे। तथापि, इस लेख में छाबड़ा और स्मिथ दर्शाते हैं कि राष्ट्रीय और राज्य स्तर की- दोनों स्वास्थ्य बीमा योजनाओं के लाभार्थियों में से अधिकतर लाभार्थी कल्याण वितरण के ऊपरी स्तर से आते हैं। वे सुझाव देते हैं कि सार्वभौमिक स्वास्थ्य कवरेज की दिशा में जागरूकता बढ़ाने और इन योजनाओं से अधिक लाभ के लिए वैकल्पिक पात्रता मानदंड का उपयोग किया जा सकता है।

कोविड -19 महामारी के कारण आये आर्थिक और स्वास्थ्य संकट ने दुनिया भर के परिवारों को बुरी तरह से प्रभावित किया है। यह न केवल गरीबों, बल्कि लगभग गरीब और कमजोर तबके के लोगों के बारे में भी सच है, जिनमें अनौपचारिक क्षेत्र के लोग भी शामिल हैं जो अक्सर सामाजिक बीमा कार्यक्रमों के अंतर्गत शामिल नहीं होते हैं। महामारी के दौरान आर्थिक और स्वास्थ्य-संबंधी झटकों का सामना करने के बाद से सार्वभौमिक स्वास्थ्य कवरेज (यूएचसी) के उद्देश्य पर नए सिरे से ध्यान केंद्रित हुआ है। कई देशों में कोविड या किसी अन्य कारण से होने वाली बीमारी के वित्तीय परिणामों के लिए सुरक्षा सुनिश्चित करना, एक अधूरा एजेंडा रहा है।

भारत में, सबसे बड़ा स्वास्थ्य बीमा कार्यक्रम वर्ष 2018 में शुरू की गई पूरी तरह से सरकार द्वारा वित्त पोषित योजना- प्रधान मंत्री जन आरोग्य योजना (पीएम-जेएवाई) है, जो अस्पताल में भर्ती होने की लागत के लिए प्रति परिवार वर्ष में 5,00,000 रुपये तक का कवरेज प्रदान करती है। यह योजना 2011 की सामाजिक आर्थिक और जाति जनगणना (एसईसीसी) के आधार पर आबादी के निचले 40% (या 5 करोड़ लोगों) तबके के लिए लक्षित है। यह समूह संभावित आपातकालीन, उच्च लागत वाले अस्पताल में भर्ती होने में सबसे कम सक्षम है, और उनके संबंधित चिकित्सा बिलों से और अधिक गरीब होने की संभावना है। पीएम-जेएवाई को 15 से अधिक राज्यों में, राज्य बीमा योजनाओं- जिनका अपना स्वतंत्र नाम है, के साथ को-ब्रांडेड किया गया है; इन योजनाओं में कुछ विवरण भिन्न हो सकते हैं, तथापि पीएम-जेएवाई और राज्य की योजनाएं मोटे तौर पर एक ही कार्यक्रम हैं। हालांकि, आंध्र प्रदेश, छत्तीसगढ़, मेघालय, राजस्थान, महाराष्ट्र, तमिलनाडु, कर्नाटक, केरल और उत्तराखंड जैसे कुछ राज्यों ने अपनी योजनाओं में पात्रता1 का काफी विस्तार किया है।

क्या लक्षित स्वास्थ्य बीमा अपने इच्छित लाभार्थियों तक पहुंचती है?

पिछले 20 वर्षों में स्वास्थ्य बीमा कार्यक्रमों में विशिष्ट जनसंख्या समूहों को लक्षित किया जाना कई अन्य मध्यम-आय वाले देशों में किए गए सुधारों के अनुरूप है, जिसके अंतर्गत कर-वित्त पोषित स्वास्थ्य वित्तपोषण कार्यक्रमों का उद्देश्य निम्न सामाजिक-आर्थिक स्तर के लाभार्थियों को प्राथमिकता देना है, साथ ही व्यापक संस्थागत सुधार हेतु एक माध्यम के रूप में काम करना भी है। लक्षित कार्यक्रम सार्वभौमिक स्वास्थ्य कवरेज (यूएचसी)2 को आगे बढाने की दिशा में उपयोगी कदम साबित हो सकते हैं।

योजनाओं में लक्षित दृष्टिकोण के जो भी गुण हों, कार्यान्वयन की निगरानी जमीनी स्तर पर करना महत्वपूर्ण है। नीतिगत मंशा और वास्तविकता के मद्देनजर, लक्षित दृष्टिकोण का संचालन करते समय कई संभावित नुकसान हो सकते हैं, जिनमें बहिष्करण की त्रुटियां (अर्थात, नीचे के 40% में आने वाले परिवारों को अपात्र समझा जाना), समावेशन की त्रुटियां (जो नीचे के 40% में नहीं हैं, उनके द्वारा कार्यक्रम के लाभ प्राप्त किया जाना) आउटरीच और संचार में कमियां (जैसे पात्र परिवारों को कार्यक्रम या उनकी पात्रता के बारे में पता नहीं होना), और पंजीकरण में बाधाएं (उदाहरण के लिए, सेवा के दुर्गम स्थान, पहचान के प्रमाण या मोबाइल एक्सेस के संबंध में कठिन आवश्यकताएं, या योजना संबंधी कार्य देखने वालों को अनौपचारिक भुगतान) शामिल हैं।

इन चुनौतियों को ध्यान में रखकर लाभार्थी लक्ष्यीकरण की मजबूत निगरानी की जाती है तो, इस बारे में उपयोगी साक्ष्य प्राप्त हो सकते हैं कि क्या पीएम-जेएवाई सफलतापूर्वक अपनी इच्छित आबादी तक पहुंच रही है। इस मुद्दे को सामने लाने के लिए, जनवरी और अप्रैल 2021 के बीच 28 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों3 के 1,29,036 परिवारों में प्रशासित एक सर्वेक्षण उपकरण में नए प्रश्न जोड़े गए। इस सर्वेक्षण को भारतीय अर्थव्यवस्था की निगरानी के लिए केंद्र (सीएमआईई) द्वारा इसके नियमित पैनल के एक भाग के रूप में लागू किया गया।  प्रश्नावली में, अन्य स्वास्थ्य संबंधी सर्वेक्षणों (जैसे राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण या राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण (एनएसएस) स्वास्थ्य दौर) के विपरीत, स्पष्ट रूप से नाम से पीएम-जेएवाई और उपयुक्त राज्य-विशिष्ट बीमा योजना- दोनों के बारे में पूछा गया।

पीएम-जेएवाई के लाभ कौन ले रहा है?

यह सवाल बना हुआ है: क्या पीएम-जेएवाई नीचे की 40% आबादी तक पहुंच रहा है? चित्र 1 में उन उत्तरदाताओं के वितरण को दर्शाया गया है जो सामाजिक-आर्थिक स्थिति के तहत पीएम-जेएवाई में नामांकित हैं (जैसा कि पारिवारिक खपत के बारे में पूछे गए प्रश्नों से बड़ी संख्या में सूचित हुआ है)। मध्य क्वांटाईल में नामांकन सबसे अधिक यानी लगभग 20% है, और सबसे गरीब क्वांटाईल में सबसे कम 11.6% है। शीर्ष दो क्वांटाईल में नामांकन करने वालों की भी बड़ी संख्या है। वास्तव में, निष्कर्ष बताते हैं कि कल्याण वितरण के मामले में कुल आबादी के निचले हिस्से की तुलना में, शीर्ष आधे हिस्से में अधिक पीएम-जेएवाई लाभार्थी हैं। इसलिए नीचे के 40%4 को कवर करने के उद्देश्य को पूरा करने के संदर्भ में लक्ष्यीकरण प्रदर्शन काफी कम हो जाता है।

चित्र 1. पीएम-जेएवाई में नामांकित परिवारों का अनुपात, क्वांटाईल के अनुसार

नोट: उन राज्यों के परिवारों को शामिल नहीं किया गया है जहां पीएम-जेएवाई लागू नहीं है।

चित्र 2 में राज्य बीमा योजना के अंतर्गत सामाजिक-आर्थिक क्वांटाईल के अनुसार नामांकित वितरण को दर्शाया गया है। यह केवल राज्य योजना नामांकन की रिपोर्ट करने वालों और उन लोगों के बीच अंतर दर्शाता है जिन्होंने यह भी कहा कि वे पीएम-जेएवाई लाभार्थी5 थे। पीएम-जेएवाई चित्र के समान, चित्र 2 से पता चलता है कि नामांकित परिवारों का एक बड़ा हिस्सा अमीर क्वांटाईल में है- वास्तव में, इससे भी अधिक है। हालांकि, यह भी सच है कि कई राज्यों ने अपनी योजनाओं में राज्य की आबादी के सबसे गरीब 40% से भी अधिक को शामिल करने हेतु योजना-संबंधी पात्रता का विस्तार किया है, और कुछ मामलों में तो सार्वभौमिक कवरेज का लक्ष्य रखा है। इन राज्यों में, ऊपरी क्वांटाईल के बीच उच्च कवरेज नीति विकल्पों के अनुरूप हो सकता है।

चित्र 2. राज्य स्वास्थ्य बीमा योजनाओं में नामांकित परिवारों का अनुपात, क्वांटाईल के अनुसार

चित्र 1 से यह विशेष रूप से उल्लेखनीय है कि पीएम-जेएवाई में नामांकन तीसरे क्वांटाईल में सबसे अधिक है, जो 'लापता मध्य' के पारंपरिक आख्यान के बिल्कुल विपरीत है। इस सिद्धांत के अनुसार, यदि किसी देश में गरीबों के लिए सब्सिडी वाले बीमा और सबसे अमीरों के लिए अंशदायी, औपचारिक क्षेत्र के बीमा कवरेज के दो स्वतंत्र आधारों से स्वास्थ्य वित्तपोषण प्रणाली का निर्माण किया जाता है तो मध्यम-आय वाले समूहों की उपेक्षा होगी। यहां दिखाया गया नामांकन पैटर्न इस संदेश की पुष्टि करता है कि नीतिगत प्राथमिकता आबादी के सबसे गरीब तबके के लिए बनी रहनी चाहिए, जिनमें से पीएम-जेएवाई में कवरेज अभी भी सबसे कम है।

संक्षेप में, वर्तमान लक्ष्यीकरण दृष्टिकोण की कमियाँ स्पष्ट हैं। एसईसीसी अब 10 साल से अधिक पुराना है और इसे अपडेट भी नहीं किया गया है, जबकि तब से अब तक निश्चित रूप से कई महत्वपूर्ण पारिवारिक परिवर्तन हुए होंगे। एसईसीसी-आधारित लक्ष्यीकरण गतिशील शहरी वातावरण में लागू करना विशेष रूप से कठिन है। एसईसीसी के बारे में परिवारों को कोई स्पष्ट जानकारी नहीं है क्योंकि अन्य बड़े कार्यक्रमों में आमतौर पर इसका उपयोग नहीं किया जाता है, जिससे उनकी पात्रता स्थिति के बारे में अनिश्चितता पैदा होती है, और ये अनिश्चिततायें कार्यक्रम तक पहुंच में बाधा के रूप में कार्य करती हैं।

लक्ष्यीकरण हेतु वैकल्पिक तरीके

क्या किया जा सकता है? एसईसीसी का एक संभावित विकल्प राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम (एनएफएसए) पात्रता मानदंड को लागू करना होगा जिसका उपयोग सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) के तहत रियायती खाद्यान्न के लिए किया जाता है। एनएफएसए एसईसीसी से अधिक  महत्वपूर्ण लाभ प्रदान करता है, क्योंकि यह क्रियाशील (नियमित रूप से अद्यतन) है, राज्यों द्वारा सीधे प्रबंधित किया जाता है, और इसे आबादी द्वारा अच्छी तरह से समझा गया है। उचित मूल्य की दुकानें भारत की सरकारों और नागरिकों के बीच इंटरफेस के सबसे सामान्य बिंदुओं में से हैं। वे पीएम-जेएवाई संबंधी संचार प्रयासों हेतु एक स्वाभाविक मंच की पेशकश करेंगे, और तदनुसार निचले क्वांटाईल के बीच जागरूकता के स्तर में सुधार ला सकते हैं। हालांकि, इसका एक संभावित नुकसान यह है कि अयोग्य परिवारों द्वारा एनएफएसए राशन कार्ड अनौपचारिक भुगतान के माध्यम से बहुत आसानी से प्राप्त किए जा सकते हैं, और यह समस्या पीएम-जेएवाई में भी फैल सकती है।

हालांकि एनएफएसए पात्रता मानदंड में बदलाव लाने से पीएम-जेएवाई के कवरेज में आबादी के लगभग 65% की वृद्धि होगी, अतः पात्रता को वर्तमान 40% पर रखना कोई दीर्घकालिक तर्क नहीं है। भारत की आबादी के एक बड़े हिस्से को स्वास्थ्य बीमा कवरेज की आवश्यकता है। चित्र 3 से पता चलता है कि कल्याण वितरण के 40वें और 80वें प्रतिशत के बीच प्रति व्यक्ति घरेलू खपत का मासिक माध्य अंतर केवल रु. 1,000 है, जो एक सामान्य अस्पताल के बिल से बहुत कम है। वास्तव में, यही कारण है कि लक्ष्य सार्वभौमिक कवरेज है: क्योंकि केवल निचले क्वांटाईल की ही नहीं, भारत की अधिकांश आबादी एक विनाशकारी या खराब स्वास्थ्य सदमे की चपेट में है। अन्य देशों से भी इस बात के प्रचुर प्रमाण मिलते हैं कि अनौपचारिक क्षेत्र से स्वास्थ्य बीमा योगदान (अनिवार्य या स्वैच्छिक) प्राप्त करना बहुत कठिन है और यह यूएचसी के लिए वास्तविक राह नहीं है।

चित्र 3. सभी क्वांटाईल में उपभोग व्यय का वितरण

स्रोत: राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण 2011-12

सार्वभौमिक स्वास्थ्य कवरेज के लिए मुख्य अल्पकालिक बाधा कवरेज विस्तार के कारण पड़ने वाला अतिरिक्त वित्तीय बोझ है, खासकर उन राज्यों में जहां एनएफएसए योग्य जनसंख्या हिस्सेदारी बहुत अधिक है। लेकिन इस राजकोषीय बाधा को सापेक्ष देखा जाना चाहिए। यह भी सच है कि स्वास्थ्य के लिए आवंटित कुल सरकारी व्यय (भारत सरकार और राज्यों द्वारा संयुक्त रूप से) के हिस्से को मापे जाने पर पता चलता है कि स्वास्थ्य पर व्यय हेतु भारत की प्राथमिकता दुनिया में सबसे कम है। यह 4% से कम है, और विश्व विकास संकेतक डेटाबेस के अनुसार, भारत दुनिया भर के 187 देशों में से 181वें स्थान पर है। इस प्रकार से, भारत में स्वास्थ्य हेतु वित्त-पोषण के लिए सरकारी धन अपेक्षाकृत अप्रयुक्त स्रोत बना हुआ है।

संक्षेप में, संभावित रूप से एनएफएसए मानदंड लागू करके योजनाओं में लक्षित जनसंख्या में उल्लेखनीय वृद्धि की जा सकती है और यह पीएम-जेएवाई के विस्तार की राह पर अगला तार्किक कदम होगा। एक ऐसा भविष्य जिसमें भारत के स्वास्थ्य कवरेज परिदृश्य में आबादी का कोई भी तबका छूट नहीं गया हो, उम्मीद है कि जल्द ही साकार हो जाएगा।

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टिप्पणियाँ:

  1. कुछ राज्यों में, केवल वे परिवार जो पीएम-जेएवाई के तहत पात्र हैं, को-ब्रांडेड बैनर के अंतर्गत शामिल हैं, जबकि अन्य राज्यों ने अपनी पात्रता मानदंड का उपयोग करके पीएम-जेएवाई सूची से परे 'विस्तार आबादी' तक कवरेज का विस्तार करने का विकल्प चुना है और पूरी तरह से राज्य के संसाधनों द्वारा वित्त पोषित (अर्थात, केंद्र सरकार के सह-वित्तपोषण के बिना, जैसा कि मुख्य पीएम-जेएवाई लाभार्थियों के मामले में है) किया है। दिल्ली, ओडिशा और पश्चिम बंगाल पीएम-जेएवाई में शामिल नहीं हैं।
  2. यह ध्यान देने-योग्य बात है कि कुछ देशों ने लक्ष्यीकरण के बिना लगातार सार्वभौमिक दृष्टिकोण का सफलतापूर्वक अनुसरण किया है।
  3. कुछ केंद्र शासित प्रदेशों और पूर्वोत्तर राज्यों को शामिल नहीं किया गया है।
  4. अतिरिक्त निष्कर्षों के लिए, भटनागर एवं अन्य 2022 देखें।
  5. चूंकि पीएम-जेएवाई और राज्य योजनाएं को-ब्रांडेड हैं और उनके नाम अलग-अलग हो सकते हैं, समग्र कवरेज को एक या दोनों योजनाओं में नामांकन की रिपोर्ट करने वाले परिवारों के हिस्से से मापा गया है।
  6. उदाहरण के लिए, इंडोनेशिया (बनर्जी एवं अन्य 2021), फिलीपींस (कैपुनो एवं अन्य 2016) और वियतनाम (वागस्टाफ एवं अन्य 2016) के साक्ष्य देखें।

लेखक परिचय: शीना छाबड़ा विश्व बैंक के स्वास्थ्य, पोषण और जनसंख्या वैश्विक अभ्यास, दक्षिण एशिया क्षेत्र में एक वरिष्ठ स्वास्थ्य विशेषज्ञ हैं।ओवेन स्मिथ विश्व बैंक के स्वास्थ्य, पोषण और जनसंख्या वैश्विक अभ्यास में एक वरिष्ठ अर्थशास्त्री हैं, जो वर्तमान में नई दिल्ली, भारत में है। 

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