मानव विकास

बढ़ते शहरीकरण के प्रभाव में ग्रामीण भारत में बढ़ता हुआ मोटापा

  • Blog Post Date 07 अप्रैल, 2021
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Anaka Aiyar

University of Nevada, Reno

aaiyar@unr.edu

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Prabhu Pingali

Tata-Cornell Institute

plp39@cornell.edu

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Andaleeb Rahman

Cornell University

ar687@cornell.edu

राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (एनएफएचएस) 2015-16 के आंकड़ों के अनुसार भारत की लगभग 20% जनसंख्‍या मोटापे से ग्रस्त है। यह लेख बताता है कि देश में मोटापे की प्रवृत्ति ने इसके स्वाभाविक आर्थिक परिवर्तन का ही अनुसरण किया है जिसके अंतर्गत शहरीकरण में वृद्धि ग्रामीण विकास को प्रभावित करती है। इससे ज्ञात होता है कि शहर के आसपास के गांवों पर पड़ने वाले शहरीकरण के प्रभाव का दायरा जब एक किलोमीटर बढ़ता है तो लगभग 3,000 ग्रामीण महिलाओं में मोटापे में वृद्धि होती है। 

राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (एनएफएचएस) 2015-16 के अनुसार भारत के कम से कम 20% लोगों को मोटापे (25 से अधिक बॉडी मास सूचकांक (बीएमआई)1) से ग्रस्‍त हैं, जिनमें महिलाओं की संख्‍या अधिक है। आम तौर पर शहरों में मोटापे से ग्रस्‍त होने की संभावना अधिक है, लेकिन हाल के दशक में मोटापे में वृद्धि का कारण ग्रामीण क्षेत्र है जहां परंपरागत रूप से लगातार अल्‍प-पोषण एक विशेषता रही है (आकृति 1)। हालिया शोध में हमने पाया है कि ग्रामीण महिलाओं के मोटापे में इस वृद्धि का कारण भारत के आर्थिक परिवर्तन अर्थात शहरी आर्थिक वृद्धि और इसकी ग्रामीण विकास पर पड़ने वाले इसके प्रभाव है (अय्यर, रहमान और पिंगली 2021)।

आकृति 1. 2005-06 और 2015-16 के बीच भारत में मोटापे में वृद्धि

आकृति में आए अंग्रेजी शब्‍दों का हिंदी अर्थ

Percent Overweight : अधिक वजन की प्रतिशतता

Men : पुरुष

Women : महिलाएं

Rural : ग्रामीण

Urban : शहरी

अति-पोषणता और आर्थिक परिवर्तन का बोझ

किसी राष्‍ट्र के संरचनात्मक परिवर्तन के मार्ग पर आगे बढ़ने के साथ आर्थिक परिवर्तन के कारण वहां के लोगों की पोषण संबंधी स्थिति अल्‍पपोषण से अतिपोषण में बदलने लगती है। संरचनात्मक परिवर्तन के सिद्धांत के अनुसार, आर्थिक विकास कुल उत्पादन में कृषि की हिस्सेदारी में गिरावट और कैलोरी की आवश्यकता में कमी के साथ जुड़ा हुआ है क्योंकि कृषि आधारित शारीरिक श्रम करने वाले लोग कृषि-आधारित कार्यों से परे होने लगते हैं। आर्थिक प्रगति बेहतर बाजारों की ओर ले जाती है और आहार की आदतों का 'पश्चिमीकरण' कर देती है जिसमें संसाधित और शर्करा-युक्‍त उत्पादों का अधिक मात्रा में सेवन किया जाता है (पॉपकिन 1997, पिंगली 2007, मास्टर्स एवं अन्‍य 2018)। गैर कृषि मजदूरी बढ़ने के कारण स्वयं खाना पकाने में लगने वाले समय की औसत लागत बढ़ जाती है, जिससे कैलोरी-ग्रहण, वसा-सघन एवं सुविधा-आधारित डिब्‍बाबंद खाद्य पदार्थों का अधिक सेवन होती है (ड्रूव्स्की और पॉपकिन 2009, पिंगली 2007, पॉपकिन 2009)। अतः आर्थिक विकास के कारण अधिक कैलोरी और वसा युक्त उत्पादों के सेवन में वृद्धि होती है, जो कि अतिपोषण में योगदान देते हैं (पॉपकिन 1997, पॉपकिन 1999, पॉपकिन एवं अन्‍य 2001)।

ग्रामीण भारत में मोटापे के रुझान संकेत करते है कि मोटापे के बोझ का एक बड़ा हिस्सा अधिक शहरीकृत राज्यों (एनएफएचएस, 2015-16) में है। आकृति 2 में हम मोटापे की घटनाओं और शहरीकरण की गहनता के बीच जिला स्‍तरीय सहसंबंध को चित्रित करते हैं। बिंदुओं का रंग राज्यों को उनके संरचनात्मक परिवर्तन के चरण के आधार पर वर्गीकृत करता है (पिंगली एवं अनय 2019)। यह देखा जा सकता है कि अधिक शहरीकरण वाले जिलों में महिलाओं में मोटापा भी अधिक है।

आकृति 2. अधिक शहरीकृत राज्यों में महिलाओं में मोटापा अधिक है

टिप्‍पणी: (i) UT केंद्र शासित प्रदेशों को संदर्भित करता है और NE पूर्वोत्तर के राज्यों को संदर्भित करता है। (ii) LAP कम कृषि उत्पादकता वाले राज्य हैं, HAP उच्च कृषि उत्पादकता वाले राज्यों को संदर्भित करता है, और RTS तेजी से परिवर्तित हो रहे राज्यों को संदर्भित करता है। (iii) बिंदु अलग-अलग जिलों (बिंदु (ii) में वर्गीकरण के अनुसार रंग-कोडित) का प्रतिनिधित्व करते हैं (iv) लाल रेखा आंकड़ों की उपयुक्‍तता की द्विघात रेखा का प्रतिनिधित्व करती है।

आर्थिक वृद्धि और ग्रामीण मोटापा

हम मानते हैं कि ग्रामीण क्षेत्रों में मोटापे में वृद्धि गाँवों की कस्‍बों जैसे शहरी केंद्रों से दूरी के साथ सीधी जुड़ी हुईं है। हमारी परिकल्पना उस शोध (क्रिस्टियेंसन और टोडो 2014, वैंडर कासलीन एवं अन्‍य 018) से प्रेरित है, जो यह दर्शाता है कि ग्रामीण क्षेत्रों में गरीबी में कमी शहरी विकास से आंतरिक रूप से जुड़ी हुई है। भारत के लिए हाल के अध्ययनों में ग्रामीण क्षेत्रों की गरीबी को कम करने और विकास को बढ़ावा देने में शहरों की भूमिका को दिखाया गया है (दत्त एवं अन्‍य 2019, गिब्सन एवं अन्‍य 2017)। भारत के ग्रामीण परिवर्तन के लिए शहरी क्षेत्रों से निकटता केंद्रीय तत्‍व रही है, क्योंकि आर्थिक विकास से प्राप्त आय का एक बड़ा हिस्सा उन गांवों को प्राप्‍त होता है जो शहरी क्षेत्र के आस-पास हैं (कृष्णा और बाजपेई 2011)। परिवहन संबंधी बेहतर बुनियादी ढांचे के साथ गांव और शहरों के बीच की दूरी कम होने के कारण किसानों के लिए बाजार और आजीविका के नए अवसरों तक पहुंच आसान हुई है (शर्मा 2016)। इसके अतिरिक्त, खाद्य उत्पादों की नई किस्मों तक पहुंच ने ग्रामीण-शहरी प्रवासियों के निर्धारित खाद्य पदार्थों के उपभोग को अन्य ऊर्जा-सघन खाद्य पदार्थों की ओर मोड़ दिया है (रहमान और मिश्रा 2020)।

हम एनएफएचएस (2015-16) से व्यक्तिगत स्तर के आंकड़ों का उपयोग करते हैं। पोषण संबंधी संकेतकों के साथ, यह डेटासेट हमें सैम्पल गांवों2 की भूस्थिति और शहरी केंद्रों से उनकी दूरी के बारे में जानकारी प्रदान करता है। हमारे अनुभव-जन्य परिणाम हमारी परिकल्पना के अनुरूप हैं क्योंकि जैसे-जैसे गांवों से शहरों की दूरी3 कम होती जाती है वैसे-वैसे ग्रामीण महिलाओं के बीच मोटापा रैखिक रूप से बढ़ता है (आकृति 3)।4 हम स्पष्ट रूप से देख सकते हैं कि कैसे शहरीकरण, ग्रामीण निवासियों पर उनके पोषण परिणामों को प्रभावित करके अपना असर ड़ालता है।

आकृति 3. ग्रामीण क्षेत्रों में मोटापे और निकटतम शहरी केंद्र से दूरी के बीच संबंध

आकृति में आए अंग्रेजी वाक्‍यांशों का हिंदी अर्थ

Probability of the women having BMI>25: महिलाओं में 25 से अधिक बीएमआई होने की संभावना

Distance to nearest urban cluster (Kms): निकटतम शहरी क्षेत्र से दूरी (किमी में)

हमारे शोध में हम पाते हैं कि ग्रामीण-शहरी दूरी में एक किलोमीटर (किमी) की कमी होने से ग्रामीण क्षेत्रों में महिलाओं के लिए मोटापे की घटनाओं में 0.06% की वृद्धि होती है। किसी शहर के आसपास के गांवों पर पड़ने वाले शहरीकरण के प्रभाव का दायरा जब एक किलोमीटर बढ़ता है तो लगभग 3,000 ग्रामीण महिलाओं में मोटापे में वृद्धि होती है। सबसे बड़ा प्रभाव बड़े शहरों के करीब रहने, कमजोर सामाजिक-आर्थिक स्थिति वाले समूहों में और अधिक शहरीकृत राज्यों में रहने वाली महिलाओं पर पड़ता है। शहरी क्षेत्रों के आसपास के क्षेत्र में, संसाधित और अस्वास्थ्यकर खाद्य पदार्थों की अधिक उपलब्धता होती है और महिलाएं ऐसी गतिविधियों में कार्यरत (यदि कार्यरत हैं तो) होती हैं जिनमें कम मेहनत की आवश्यकता है। इनमें से पहली स्थिति के कारण कैलोरी व्यय कम हो जाता है और बाद की स्थिति के कारण कैलोरी ग्रहण करने की मात्रा बढ़ जाती है। ये प्रभाव एक दूसरे को सुदृढ़ करते हैं और मोटापे के बोझ को बढ़ाने में योगदान करते हैं।

आहार विविधता की भूमिका

एनएफएचएस में विभिन्न खाद्य पदार्थों की खपत की आवृत्ति पर आंकड़ों से हम एक आहार चर की गणना कर पाते हैं, जिसका उपयोग हम यह जांचने के लिए करते हैं कि आहार विविधता कैसे अतिपोषण के बोझ को कम करती है।5 हम एक महत्वपूर्ण तथ्य उजागर करते हैं कि यदि आहार विविधता कम है तो शहरी केंद्रों के करीब रहने से मोटापे के जोखिम पर अधिक प्रभाव पड़ता है। इसी तरह, उच्‍च आहार विविधता मोटापे की घटनाओं पर शहरीकरण के प्रभाव को संभावित रूप से नियंत्रित करती है। यह हमें बताता है लंबे समय में मोटापे के जोखिम से बचने के लिए एक संतुलित और स्वस्थ आहार बहूत ज़रूरी है।

निष्कर्ष

हमारे निष्कर्ष भारत में कुपोषण के तिहरे बोझ अर्थात कम वजन, अधिक वजन और सूक्ष्म पोषक तत्वों की कमी के संबंध में की जाने वाली बहस में एक महत्वपूर्ण योगदान प्रदान करते हैं। मोटे तौर पर ये वैश्विक रुझानों के अनुरूप हैं जो मोटापे को ग्रामीण क्षेत्रों और निम्न सामाजिक आर्थिक समूहों के ओर स्‍थानांतरित होने को दर्शाते हैं (एनसीडी-आरआईएससी 2019), तथा यह अतिपोषण को एक प्रमुख सार्वजनिक स्वास्थ्य चिंता के रूप में पहचानने के संदर्भ में नीति को सचेत करता है। जैसे-जैसे भारत में शहरीकरण हो रहा है, इसके प्रतिकूल प्रभाव ग्रामीण क्षेत्र में मोटापे और इसके कारण गैर-संचारी रोगों (एनसीडी) के रूप में देखा जाएगा। ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले गरीबों में मोटापे के बढ़ते खतरे का दुष्परिणाम यह है कि उन्हे एनसीडी के बोझ से प्रेरित भयावह स्वास्थ्य आघात का सामना करना पड़ सकता है। इसलिए ऐसी पोषण नीतियों को लागू किया जाना चाहिए जोकि एक ओर इस मुद्दे की जानकारी लोगों तक पहुंचाएं और वहीं दूसरी ओर अधिक विविध और स्वस्थ आहारों को अपनाने के लिए व्यवहार में बदलाव के लिए प्रेरित करें। कृषि क्षेत्र के लिए, इसका अर्थ यह है कि अधिक विविध उत्पादन प्रणालियों को बढ़ावा दिया जाये जो यह सुनिश्चित करतीं हैं कि उपयुक्त कृषि नीति के माध्यम से पौष्टिक खाद्य पदार्थ उपलब्‍ध हों।

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टिप्‍पणियां:

  1. बॉडी मास इंडेक्स (बीएमआई) ऊंचाई और वजन के आधार पर शरीर में वसा मापने का एक उपाय है और उच्च बीएमआई को आमतौर पर मोटापा और इसका सूचक माना जाता है।
  2. एक मानक प्रक्रिया के रूप में, गुमनाम रखने के लिए गांवों की भूस्थिति को 5-10 किमी के दायरे में लाया गया है।
  3. ग्रामीण-शहरी दूरी चर के रूप में, हम भारत में जनगणना कस्बों से एनएफएचएस ग्रामीण क्लस्टर की भूगणितीय दूरी और ग्रामीण क्षेत्रों के शहरी होने के माप (जोन्स-स्मिथ और पॉपकिन 2010) दोनों का उपयोग करते हैं। हम पाते हैं कि प्रस्तावित संबंध दोनों स्थितियों में है, लेकिन हम अपने पसंदीदा माप यानि शहरों से दूरी का उपयोग करते हैं क्‍योंकि इसकी व्‍याख्‍या आसान है।
  4. हम अपने नमूने के हिस्‍से के रूप में, उन्‍हीं महिलाओं को लेते हैं जो ग्रामीण समूहों में रह रहीं हैं, जिनकी आयु 18 वर्ष से अधिक है तथा जो सर्वेक्षण के दौरान गर्भवती नहीं हैं।
  5. आहार विविधता को आहार की इन विभिन्न खाद्य श्रेणियों की दैनिक खपत के आधार पर स्कोर के रूप में मापा जाता है: डेयरी, अंडा, मछली, मांस, फल, सब्जी और फलियां (एनएफएचएस वर्गीकरण के अनुसार)।

लेखक परिचय: प्रभु पिंगली टाटा-कॉर्नेल इंस्टीट्यूट के संस्थापक निदेशक हैं, और वे चार्ल्स एच डायसन स्कूल ऑफ अप्लाइड इकोनॉमिक्स एंड मैनेजमेंट में प्रोफेसर हैं; साथ ही उनकी डिविजन ऑफ न्यूट्रीश्नल साइन्स, डिपार्टमेंट ऑफ ग्लोबल डेव्लपमेंट, तथा कॉर्नेल यूनिवर्सिटी के कॉलेज ऑफ एग्रिकल्चर एंड लाइफ साइन्स में संयुक्त नियुक्तियाँ हैं। अनका अय्यर रेनो स्थित यूनिवर्सिटी ऑफ नेवाडा में अर्थशास्त्र की असिस्टेंट प्रोफेसर हैं। अंदलीब रहमान कॉर्नेल यूनिवर्सिटी स्थित टाटा-कॉर्नेल इंस्टीट्यूट (टीसीआई) में पोस्ट-डॉक्टोरल एसोसिएट है।

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