आर्थिक झटकों के परिणामों को कम करने के लिए माता-पिता अधिक काम करने के लिए प्रेरित होते हैं और बच्चों का अधिक समय घर के कामों में उनकी मदद करने या परिवार के खेतों में बीत सकता है, जिससे उनकी स्कूली शिक्षा बाधित हो सकती है। ग्रामीण भारत के आंकड़ों का विश्लेषण करते हुए, इस लेख में दर्शाया गया है कि अधिक अस्थिर कृषि उत्पादन और खपत के रूप में जोखिम में 100% की वृद्धि होने से बच्चे के स्कूल जाने की संभावना में 4-5% तक की कमी हो जाती है।
अर्थशास्त्र में, हमने लंबे समय से जोखिम के प्रभावों पर विचार किया है - उदाहरण के लिए, दूरदर्शी किसान लाभदायक निवेश के अवसरों को छोड़ सकते हैं यदि वे भविष्य में इस तरह के निवेश से होने वाले लाभों के बारे में अनिश्चित हैं (रोसेन्ज़विग और बिन्सवांगर 1993, कार्लन एवं अन्य 2014)। इसी तरह, व्यक्ति उद्यमशीलता की गतिविधियों में शामिल होने के लिए कम इच्छुक होते हैं यदि जोखिम अधिक हो (बियांची और बोब्बा 2013)।
जब हम स्कूली शिक्षा के बारे में सोचते हैं, जो कि निवेश का ही एक रूप है क्योंकि इसमें माता-पिता को स्कूल सामग्री, पोशाक, ट्यूशन के लिए पैसे खर्च करने पड़ते है, और साथ ही जब बच्चे स्कूल में होते हैं तो वे घर या परिवार के खेत में मदद नहीं कर सकते हैं - हम इस प्रक्रिया में अनिश्चितताओं को बहुत अधिक महत्व नहीं देते हैं। आखिरकार, बच्चे रोजाना स्कूल जाते हैं, और अंततः उनके पास स्कूली शिक्षा पूरी करने के लिए पर्याप्त ज्ञान एकत्रित हो जाएगा। है ना?
दुर्भाग्य से, यह स्कूली आयु वर्ग के लाखों बच्चों के लिए पूरी तरह से सत्य नहीं है। वैश्विक महामारी के बिना भी, बीमारी जैसे कई कारणों या चूंकि बच्चों को आर्थिक झटके के बाद अपने परिवार की सहायता करने की आवश्यकता होती है, की वजह से उनकी स्कूली शिक्षा बाधित हो सकती है। जब मजदूरी कम होती है, तो माता-पिता झटके के आर्थिक नतीजों को कम करने के लिए अधिक काम करने का प्रयास करते हैं (जयचंद्रन 2006)। बच्चों के लिए, अक्सर इसका अर्थ यह होता है कि उन्हें घर के काम में मदद करने या परिवार के खेतों में अधिक समय देना पड़ता है। इसलिए बार-बार स्कूली शिक्षा में रुकावट आती है, जिसके चलते बच्चों को अपने छूटे गए पाठ्यक्रम को पूरा करना और अधिक कठिन हो जाता है।
क्या यह संभव है कि स्कूली शिक्षा में रुकावट का यह जोखिम संभवत: माता-पिता को अपने बच्चे को स्कूल भेजने से रोकने का प्राथमिक कारण हो?
ग्रामीण भारत में जोखिम और स्कूली शिक्षा संबंधी निर्णय 5
हाल के शोध में, हमने पाया कि क्या ऐसे बच्चे जिनके आय संबंधी जोखिम अधिक हैं और इसके परिणामस्वरूप स्कूल वर्ष के दौरान किसी समय उनकी स्कूली शिक्षा बाधित होने की संभावना अधिक है, तो वर्ष की शुरुआत में स्कूल में उनके नामांकन की संभावना कम होती है (फोस्टर और गेहरके 2020)। पहले हम प्रश्न को सैद्धांतिक रूप से देखते हैं, और दो अवधियों में बाल मानव पूंजी में घरेलू निवेश निर्णयों को मॉडल के रूप में रखते हैं, जिससे दूसरी अवधि1 में स्कूली शिक्षा निवेश के लक्ष्य अर्जित करने के बारे में माता-पिता की अनिश्चितता का पता चल सके। सीखने की पूरी प्रक्रिया के दौरान स्कूली शिक्षा में रुकावट के महत्व को ध्यान में रखते हुए, हम बाल मानव पूंजी में लगातार निवेश को एक दूसरे का पूरक होने देते हैं, अर्थात, स्कूल वर्ष की शुरुआत में बाल मानव पूंजी में निवेश केवल तभी फायदेमंद होता जब माता-पिता पूरे स्कूल वर्ष में लगातार समान मात्रा में निवेश करें। इस मॉडल से अनुमान लगता है कि माता-पिता की प्राथमिकताओं के बारे में काफी मानक धारणाओं के साथ, अनिश्चितता में वृद्धि (अधिक संभावना कि बच्चे की स्कूली शिक्षा को बाधित हो सकती है) पहली अवधि में मानव पूंजी निवेश को हतोत्साहित करती है।
ग्रामीण भारत में इस परिघटना के महत्व को समझने के लिए, हम ग्रामीण आर्थिक और जनसांख्यिकीय सर्वेक्षण (आरईडीएस) के तीन दौर के डेटा को यूरोपियन सेंटर फॉर मीडियम रेंज वैदर फोरकास्ट्स (ईसीएमडब्ल्यूएफ) से प्राप्त उच्च-रिज़ॉल्यूशन वर्षा डेटा के साथ जोड़ते हैं। ये आंकड़े इस मायने में अद्वितीय हैं कि इनमें प्रत्येक दौर2 में वर्ष के दौरान तीन अवधियों के लिए बच्चों और माताओं का समय आवंटन शामिल है। आरईडीएस डेटा हमें 1981-82 और 2007-08 के बीच लगभग 7,500 बच्चों की स्कूली शिक्षा की जानकारी देता है। साक्षात्कार के समय इन बच्चों की आयु 6-15 वर्ष है, और इनमें से लगभग सभी के पास घरेलू काम, परिवार के खेतों में काम, या ऐसे काम जिसके बदले में उनको पैसा मिलता है, के रूप में कुछ कर्तव्य हैं।
आरईडीएस डेटा मोटे तौर पर ग्रामीण भारत का प्रतिनिधित्व करता हैं और ये कई दशकों का डेटा है, जिससे हम विचलन के स्रोत के रूप में गांवों में जोखिम संरचना में दीर्घकालिक परिवर्तनों का उपयोग कर पाते हैं। 'जोखिम' की हमारी अवधारणा ग्रामीण भारत से तीन प्रमुख तथ्यों को उजागर करती है। पहला, हमारे अध्ययन की समयावधि में अधिकांश परिवारों की आय का प्रमुख स्रोत कृषि है -चाहे स्वयं के उत्पादन के माध्यम से हो या किसी दूसरे के खेतों में अनियत कार्य के माध्यम से। दूसरा, कृषि कार्य स्वाभाविक रूप से जोखिम भरा है क्योंकि ग्रामीण भारत में कृषि उपज, मजदूरी और रोजगार का स्तर वर्षा की स्थिति से काफी प्रभावित होता है (उदाहरण के लिए देखें, जयचंद्रन 2006, शाह और स्टाइनबर्ग 2017, कौर 2019)। अधिक वर्षा से अच्छी फसल होती है, श्रमिकों की अधिक मांग होती है और मजदूरी बढ़ती है। इसके विपरीत, वर्षा का कम स्तर खराब फसल, कृषि श्रमिकों की कम मांग और कम मजदूरी का कारण बनता है। तीसरा, पिछले दशकों में ग्रामीण भारत में कृषि उत्पादन में सिंचाई का उपयोग तेजी से बढ़ा है जिससे कुछ स्थानों में कृषि उत्पादन पर अच्छे मौसम पर निर्भरता कम हो गई, लेकिन अन्य स्थानों पर ऐसा नहीं है (डुफ्लो और पांडे 2007)।
जोखिम माप का निर्माण करने के लिए, हम घरेलू उपभोग व्यय, वर्षा और गांव-स्तर की सिंचाई के बीच संबंध का अनुमान लगाते हैं, जिससे वर्षा के प्रभाव और सिंचित क्षेत्र की मात्रा के अंतर की गणना की जा सके। हम पाते हैं कि बिना सिंचाई वाले गांवों में वर्षा में 10% की गिरावट से उपभोग में 2.3% की कमी आती है। इसके विपरीत, पूरी तरह से सिंचित गांवों में, वर्षा में गिरावट का घरेलू खपत पर लगभग शून्य प्रभाव पड़ता है। वर्षा और सिंचाई के बीच 'अंतःक्रिया' भी बच्चे के समय के उपयोग को प्रभावित करती है - कम वर्षा का अर्थ है अध्ययन के नमूने में स्कूल में कम समय बिताना, और किसी गांव विशेष3 में झटके की तीव्रता को सिंचित क्षेत्र के बड़े हिस्से द्वारा कम किया जाता है। इन अनुमानों के साथ, हम एक निश्चित समय पर एक विशिष्ट गाँव में उपभोग व्यय के संभाव्यता वितरण का निर्माण कर सकते हैं जिसमें गाँव का ऐतिहासिक वर्षा वितरण हमें वर्षा के परिणामों की संभावना बताता है, और सिंचाई की वर्तमान उपलब्धता यह निर्धारित करती है कि सिंचाई का कोई स्तर खपत का कितनी मजबूती से निर्धारण करेगा। वितरण4 में यह फैलाव हमारा अलग-अलग समय पर गांव-स्तरीय जोखिम का माप है।
हम अध्ययन के समय पर जोखिम के प्रभाव का अनुमान लगाने के लिए, समय के साथ गांवों के भीतर गांव-स्तरीय जोखिम5 में बदलाव का पता लगाते हैं, और पाते हैं कि जोखिम बच्चों के स्कूल जाने की संभावना को काफी कम कर देता है। हमारे निष्कर्ष यह बताते हैं कि जोखिम में 100% की वृद्धि से बच्चे के स्कूल जाने की संभावना 4-5% तक कम हो जाएगी। ये परिणाम विभिन्न अलग स्थितियो के लिए भी हैं, जिसमें घरेलू धन, मानव पूंजी के वर्तमान स्टॉक पर पिछले झटके के प्रभाव के लिए उत्तरदायी पिछले तीन वर्षों में वर्षा, और राज्य-विशिष्ट झटकों के लिए नियंत्रण शामिल हैं। हम वैकल्पिक स्पष्टीकरणों के बारे में भी पता लगाते हैं, उदाहरण के लिए, माता-पिता को अधिक जोखिम होने पर अपनी बचत ज्यादा रखने की आवश्यकता हो सकती है और वे अपनी सीमित आय स्कूली शिक्षा पर खर्च करने के लिए कम इच्छुक हो सकते हैं, या स्कूली शिक्षा के प्रतिफल गांव-स्तरीय जोखिम द्वारा भिन्न प्रकार से प्रभावित हो सकते हैं। हालाँकि, हमें इनकी भूमिका के संबंध में कोई सबूत नहीं मिला।
सार्वजनिक नीति क्या कर सकती है?
नीति के दायरे का आकलन करने के लिए, हम स्कूली शिक्षा निवेश पर आय-सुधार नीति, विशेष रूप से महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (मनरेगा)6 के प्रभावों का भी अनुकरण करते हैं। हम अनुमान लगाते हैं कि 2014-2016 के आरईडीएस सर्वेक्षण के फॉलो-अप के साथ आरईडीएस डेटा में वृद्धि करते हुए मनरेगा ने उपभोग में विचलन को किस हद तक कम कर दिया है, और गांवों में भिन्नता के स्रोत के रूप में कार्यक्रम की तीव्रता में अंतर (मनरेगा रोजगार के व्यक्ति-दिवसों की संख्या प्रति व्यक्ति के रूप में उत्पन्न होती है) का उपयोग करते हैं। हम पाते हैं कि मनरेगा उपभोग व्यय पर वर्षा के प्रभाव को ठीक वैसे ही कम करती है जैसे सिंचाई करती है। हम इन अनुमानों का उपयोग कार्यक्रम के जोखिम-घटाने और उपस्थिति-बढ़ाने के प्रभाव को अनुकरण करने के लिए कर सकते हैं, और यह पाते हैं कि एक समान कार्यक्रम, जिसमें मजदूरी दर निश्चित है, स्कूल उपस्थिति में 1 प्रतिशत अंक की वृद्धि करेगा।
हालांकि, कार्यक्रम के मजदूरी प्रभावों को नजरअंदाज नहीं किया जाना चाहिए। शाह एवं स्टाइनबर्ग (2019) और ली एवं सेखरी (2020) ने कार्यक्रम की चरणबद्ध शुरुआत का उपयोग भिन्नता के स्रोत के रूप में करते हुए पाया कि स्कूली शिक्षा पर मनरेगा के नकारात्मक प्रभाव हैं, और तर्क दिया कि मनरेगा ने मजदूरी बढ़ाकर किशोरों को स्कूल से दूर करने और कम उम्र में श्रम शक्ति में शामिल होने के लिए प्रेरित किया है। यकीनन, जोखिम को कम करने में मनरेगा के प्रभाव को शुरुआती चरणों में परिवारों द्वारा पूरी तरह से समझा नहीं जा सका, क्योंकि इसका कार्यान्वयन अस्पष्ट था और इसकी दीर्घकालिक व्यवहार्यता के बारे में पता नहीं था। यह स्पष्ट नहीं है कि बढ़ती मजदूरी का प्रत्यक्ष प्रभाव और कम परिवर्तनीय आय का अप्रत्यक्ष प्रभाव लंबी अवधि में कैसे संतुलित होता है। हालाँकि, हमारे परिणाम बताते हैं कि स्कूली शिक्षा पर मनरेगा के नकारात्मक मजदूरी परिणामों को इस सीमा तक कम किया जा सकता है कि इस कार्यक्रम को प्रतिकूल झटके की अवधि के दौरान सहायता प्रदान करने वाले एक विश्वसनीय स्रोत के रूप में मान्यता दी गई है।
यह अनुकरण उन कार्यक्रमों के लाभों पर प्रकाश डालता है जो विकासशील देशों में, विभिन्न प्रकार के जोखिमों से निपटने में कम आय वाले परिवारों की सहायता करते हैं। आय हस्तांतरण, चाहे वह नकद हस्तांतरण के रूप में हो या सार्वजनिक निर्माण कार्यक्रमों के रूप में हों, मानव पूंजी में निवेश को बढ़ा सकते हैं लेकिन ऐसा तभी संभव है कि जब इन्हें सावधानीपूर्वक डिजाइन किया जाए ताकि माता-पिता (या छात्र) द्वारा बाद की समय-अवधि में स्कूली शिक्षा निवेश के शुरुआती स्तरों का पालन नहीं करने की संभावना को कम किया जा सके। काम को पारदर्शी और विश्वसनीय बनाकर और ऐसे कार्यक्रमों को उन गांवों की ओर लक्षित करके जो प्रतिकूल झटकों से अधिक नियमित रूप से प्रभावित होते हैं,इनके कल्याणकारी प्रभाव को अधिकतम किया जा सकता है।
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टिप्पणियाँ:
- उदाहरण के लिए, माता-पिता को मई-जून में बच्चे का नामांकन करना होता है, लेकिन उन्हें पता होता है कि सितंबर में फसल काटने में मदद करने के लिए बच्चे की आवश्यकता होगी।
- तीन सीजन का अर्थ है: रोपण, कटाई और कम काम-काज का समय। प्रश्नावली में, संदर्भ महीने अक्टूबर/नवंबर (सीजन एक; चावल की खेती करने वालों के लिए कटाई का समय), फरवरी (सीजन दो; कम कामकाज का समय), और अप्रैल/मई (सीजन तीन; चावल की खेती करने वालों के लिए रोपण का समय) हैं।
- अधिक जानकारी के लिए फोस्टर और गेहरके (2020) देखें।
- हम मानक विचलन और अंत:चतुर्थक रेंज का उपयोग दो अलग-अलग मापों के रूप में करते हैं। मानक विचलन वह माप है जिसका उपयोग किसी सेट के औसत से मूल्यों के एक सेट की भिन्नता या फैलाव की मात्रा को मापने के लिए किया जाता है। अंत:चतुर्थक रेंज डेटा के 75 वें और 25 वें प्रतिशतक के बीच का अंतर है।
- उदाहरण के लिए, मान लीजिए कि उच्च जोखिम वाले गांवों में कृषि से विविधीकरण और उद्योगों के विस्तार की संभावना अधिक है। ऐसे मामले में, उच्च जोखिम वाले गांवों और कम जोखिम वाले गांवों के बीच शिक्षा के श्रम प्रतिफल अलग-अलग होंगे। हालांकि, हमें इस बात का कोई प्रमाण नहीं मिलता है कि जोखिम शिक्षा के श्रम प्रतिफल, किसी गांव में कारखानों की उपस्थिति, अथवा कृषि उत्पादन में लगे परिवारों के हिस्से से व्यवस्थित रूप से संबंधित है।
- मनरेगा एक ग्रामीण परिवार को एक वर्ष में 100 दिनों के वेतन-रोजगार की गारंटी देता है, जिसके वयस्क सदस्य निर्धारित न्यूनतम मजदूरी पर अकुशल शारीरिक कार्य करने के इच्छुक हैं। मनरेगा का एक उद्देश्य ग्रामीण क्षेत्रों में उस समय काम उपलब्ध कराना था जब कृषि संबंधी काम न हों।
लेखक परिचय : एंड्रयू फोस्टर ब्राउन यूनिवर्सिटी में अर्थशास्त्र के जॉर्ज और नैन्सी पार्कर प्रोफेसर हैं | एस्थर गेहरके वैगनिंगन यूनिवर्सिटी एन्ड रिसर्च में अर्थशास्त्र की सहायक प्रोफेसर हैं।
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