मुद्रा तथा वित्त

एमएसएमई को जमानती (कोलेटरल) ऋण दिए जाने से जुड़ा कम उत्पादकता जाल

  • Blog Post Date 10 नवंबर, 2022
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Harsh Vardhan

Management Consultant and Researcher

harshv89@yahoo.com

महामारी के दौरान एमएसएमई को दिए गए बैंक ऋण की हिस्सेदारी में वृद्धि हुई है। इस लेख में, हर्ष वर्धन ने इस वृद्धि के संभावित चालक के रूप में बैंक ऋणों की सरकारी गारंटी के बारे में चर्चा की है। वह जमानती (कोलेटरल ) ऋण प्रदान करने की वर्तमान नीति की रूपरेखा तैयार करते हैं, और ऋण लेते समय एमएसएमई द्वारा सामना की जाने वाली बाधाओं की चर्चा करते हैं- जिससे निवेश और फर्म उत्पादकता में कमी आती है। वे तर्क देते हैं कि क्रेडिट गारंटी योजना से मिली सीख का उपयोग एमएसएमई क्रेडिट के लिए एक स्थायी गारंटी योजना तैयार करने के लिए किया जा सकता है।

सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम (एमएसएमई) भारतीय अर्थव्यवस्था का एक महत्वपूर्ण हिस्सा हैं। लगभग 60 से 80 लाख की संख्या में एमएसएमई हैं और उनके द्वारा सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का लगभग 30% तथा 10 करोड़ से अधिक रोजगार निर्माण होने का अनुमान है। अर्थव्यवस्था में उनकी इस महत्वपूर्ण भूमिका के बावजूद, वे लंबे समय से ऋण के वंचित रहे हैं। एमएसएमई को नियमित रूप से ऋण दिए जाने से संबंधित मुद्दों पर लंबे समय से व्यापक चर्चा की जाती रही है और यह कहना उचित है कि यह एक नीतिगत चुनौती बनी हुई है।

कोविड-19 महामारी के दौरान, एमएसएमई को बैंकिंग क्षेत्र से मिलने वाले ऋण में नाटकीय रूप से वृद्धि हुई। एमएसएमई को बैंक से मिलने वाला ऋण वर्ष 2015 से लगभग पांच वर्षों तक स्थिर रहा, और वित्त वर्ष 2020-21 में इसमें 15% और वित्त वर्ष 2021-22 में 31% की वृद्धि हुई है। यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि इन दो वर्षों में समग्र बैंक ऋण वृद्धि लगभग 8% थी। चित्र 1 में एमएसएमई को दिए जाने वाले बैंक ऋण में हुई वार्षिक वृद्धि और कुल जारी बैंक ऋण में एमएसएमई ऋण की हिस्सेदारी का विवरण दिया गया है। बैंक ऋण में एमएसएमई को जारी ऋण का पिछले दशक की पहली छमाही में लगभग 8.5% पर स्थिर था, वह वित्त वर्ष 2019-20 तक घटकर लगभग आधा हुआ और 4.8% रह गया। इसी परिप्रेक्ष्य में देखें तो, बैंकिंग प्रणाली द्वारा वर्ष 2020 में दिए गए (असुरक्षित) व्यक्तिगत ऋणों का हिस्सा कुल ऋण का 8% था। 

चित्र 1. कुल बैंक ऋण में से एमएसएमई को जारी ऋण की वृद्धि और हिस्सेदारी

स्रोत: आरबीआई के आंकड़ों के आधार पर लेखक द्वारा की गई गणना

एमएसएमई को जारी किए जाने वाले बैंक ऋण में हुई इस अचानक वृद्धि का कारण क्या है? एक सीधा स्पष्टीकरण यह है कि महामारी के कारण इन उद्यमों पर दबाव आया और चुनौती से निपटने के लिए ऋण की एक मजबूत मांग पैदा हुई। बैंकिंग प्रणालियों से ऋण की आपूर्ति सरकार द्वारा कोविड राहत पैकेज के एक भाग के रूप में घोषित गारंटी कार्यक्रम के अधीन थी। विस्तारित क्रेडिट लाइन गारंटी योजना (ईसीएलजीएस) ने बैंक द्वारा एमएसएमई को जारी किए जाने वाले ऋण हेतु सरकारी गारंटी प्रदान की, जो पूर्व-निर्दिष्ट मानदंडों के आधार पर इस सुविधा के लिए योग्य थे। ये मांग और पूर्ति आधारित स्पष्टीकरण संभावित रूप से एमएसएमई हेतु ऋण के विस्तार का निकटतम कारण हो सकते हैं, जबकि एमएसएमई को दिए जाने वाले क्रेडिट के अचानक विस्तार ऋण में एक गहरे मुद्दे को भी उजागर करता है और कुछ नीतिगत उपायों की ओर इशारा करता है जो इस मसले का समाधान कर सकते हैं।

जमानती (कोलेटरल) ऋण का प्रचलन

औपचारिक वित्तीय ऋणदाता (प्रधानतः बैंक) सूचना-आधारित ऋणदाता हैं। इसका तात्पर्य यह है कि ऋणकर्ताओं के बारे में विश्वसनीय वित्तीय जानकारी तक पहुंच रखने वाले ऋणदाताओं पर ऋण निर्भर करता है। एमएसएमई, पारंपरिक रूप से औपचारिक बैंकिंग प्रणाली से मिलने वाले ऋण की कमी से जूझ रहे हैं, क्योंकि बैंकिंग प्रणाली को उनके बारे में जानकारी अपर्याप्त और/या अविश्वसनीय थी। वर्तमान नीतिगत वातावरण इन उद्यमों को छोटे बने रहने के लिए प्रोत्साहित करता है, क्योंकि उनका विस्तार होने पर उन्हें मिलने वाले कई लाभ (करों और कर्तव्यों, श्रम कानूनों आदि संदर्भ में) बंद हो जाएंगे। इसके अलावा, एमएसएमई व्यवसाय का एक महत्वपूर्ण हिस्सा नकद में किया जाता है, जिसके चलते उनके बारे में विश्वसनीय वित्तीय जानकारी प्राप्त करना कठिन हो जाता है। मालिक और व्यवसायों के व्यक्तिगत वित्त अक्सर सह-मिश्रित होते हैं, जो बैंकों को उन्हें ऋण देने से सतर्क करते हैं। एमएसएमई की इन अंतर्निहित विशेषताओं के साथ काम करने के लिए, बैंकिंग प्रणाली ने एमएसएमई को ऋण देने की एक विधि के रूप में जमानती (कोलेटरल) ऋण का उपयोग किया है।

व्यवसायों को ऋण देने वाले बैंक लगभग हमेशा उसमें एक 'प्राथमिक सुरक्षा' शामिल करते हैं, जो ऋणकर्ताओं के डिफ़ॉल्टर होने की स्थिति में ऋणकर्ता की व्यावसायिक संपत्ति पर बैंक के दावे के रूप में है। जमानती (कोलेटरल) ऋण देने के मामले में, ऋणदाता अतिरिक्त सुरक्षा चाहते हैं, जो भारत में ज्यादातर कुछ संपत्ति (आवासीय, वाणिज्यिक या भूमि के टुकड़े पर) के रूप में होती है। जमानती (कोलेटरल) सुरक्षा में जो आवश्यक गुण ऋणदाता देखते हैं, वे सुरक्षा के मूल्य और तरलता का पता लगाने में आसानी हैं। इन विशेषताओं के चलते  अचल संपत्ति पसंदीदा जमानती (कोलेटरल) सुरक्षा बन जाती है।

वर्ष 2016 से पहले, भारत में प्रभावी दिवालियापन कानून नहीं था, तथा दिवालियापन को हल करने हेतु ऋणदाताओं के पास कोई कुशल तंत्र नहीं था। इसका मतलब यह था कि ऋणकर्ता के डिफ़ॉल्ट होने की स्थिति में ऋणदाताओं के अधिकार दृढ़ता से स्थापित नहीं हुए थे। इसने जमानती (कोलेटरल) सुरक्षा पर निर्भरता को बढ़ा दिया, जो ऋणकर्ताओं के डिफ़ॉल्टर होने की स्थिति में अपना बकाया वसूल करने का एक आसान तरीका प्रदान कर सकता है।

जबकि समग्र बैंक ऋण में एमएसएमई को दिए जा रहे जमानती (कोलेटरल) ऋण के सटीक अनुपात का अनुमान लगाना मुश्किल है (क्योंकि यह डेटा सार्वजनिक डोमेन में उपलब्ध नहीं है), वास्तविक साक्ष्य दर्शाते हैं कि इस तरह के ऋण का 80% से अधिक हिस्सा जमानती सुरक्षा के जरिए है। यहां तक कि एमएसएमई को ऋण देने के लिए अधिक उत्सुक पाई गई गैर-बैंकिंग वित्त कंपनियों (एनबीएफसी) में संपत्ति के ऐवज में ऋण (एलएपी) की अधिकता है, जो संपत्ति के रूप में जमानती (कोलेटरल) सुरक्षा के ऐवज में दिया जा रहा क्रेडिट है।

जमानती (कोलेटरल) ऋण के निहितार्थ

भारी मात्रा में जमानती (कोलेटरल) ऋण एमएसएमई के मालिकों के लिए गलत प्रोत्साहन का निर्माण करता है। उनके व्यवसाय में जब भी अधिशेष उत्पन्न होता है तो उस अधिशेष का निवेश करके संपत्ति प्राप्त करने की एक मजबूत प्रवृत्ति होती है जो उनके ऋण के लिए जमानती (कोलेटरल) के रूप में काम आ सकती है (जैसा कि पहले बताया गया है, वह अचल संपत्ति हो जाती है)। इस प्रकार से, व्यवसाय द्वारा उत्पन्न पूंजी को व्यवसाय में ही निवेश नहीं किया जाता है, बल्कि उसका उपयोग भूमि, या आवासीय या वाणिज्यिक अचल संपत्ति के रूप में गैर-व्यावसायिक संपत्ति प्राप्त करने के लिए उपयोग किया जाता है। परिणामस्वरूप, ऋणदाता और एमएसएमई ऋणकर्ता अनिवार्य रूप से निम्न-गुणवत्ता वाले संतुलन में फंस जाते हैं, जहां ऋणदाता जमानती (कोलेटरल) सुरक्षा की मांग करके अपनी ऋण जोखिम को कम करने लगते हैं और ऋणकर्ता गैर-व्यावसायिक संपत्ति प्राप्त करने में अपनी कीमती पूंजी लगाने के लिए प्रोत्साहित हो जाते हैं जो जमानती (कोलेटरल) के रूप में काम कर सकती है। इस प्रकार उपभोक्ताओं की ऋण तक पहुंच उस जमानती (कोलेटरल) सुरक्षा कि वजह से बाधित होती है जो वे उधारदाताओं को प्रदान कर सकते हैं।

एमएसएमई मालिकों को भी अपने कारोबार में इक्विटी पूंजी लगाने में एक अजीबोगरीब चुनौती का सामना करना पड़ता है। ये उद्यम अक्सर परिवार के स्वामित्व वाले होते हैं और उनके परिवार और दोस्तों के पास उपलब्ध पूंजी सीमित होती है। कई मालिकों के पास अक्सर लाभ प्राप्त करने के लिए प्रत्येक इकाई को छोटा रखने के उद्देश्य से कई एमएसएमई होते हैं। सीमित पारिवारिक पूंजी के साथ, मालिक चाहते हैं कि इन उद्यमों में उनकी इक्विटी पूंजी प्रतिवर्ती बनी रहे। परिणामस्वरूप, वे स्थायी इक्विटी पूंजी के बजाय मालिकों से ऋण (आमतौर पर असुरक्षित ऋण) के रूप में पूंजी लगाना पसंद करते हैं।

जमानती (कोलेटरल) की उपलब्धता, और इक्विटी पूंजी डालने की अनिच्छा से बाधित होने के संयुक्त प्रभाव से एमएसएमई पुराने अल्प-पूंजीकरण से परेशान हो जाते हैं। अपर्याप्त दीर्घकालिक पूंजी प्रौद्योगिकी, संयंत्रों और मशीनरी आदि में निवेश को समर्थ बना सकती है। अल्प-निवेश का यह जाल एमएसएमई को कम उत्पादकता के चक्र में फंसाता है। एमएसएमई के माध्यम से उपलब्ध रोजगार की बड़ी संख्या को देखते हुए, यह बदले में पूरी अर्थव्यवस्था की उत्पादकता को प्रभावित करता है।

संभावित नीतिगत हस्तक्षेप

इस संदर्भ में, हम यह समझने की कोशिश कर सकते हैं कि एमएसएमई क्रेडिट को बढ़ाने में ईसीएलजीएस इतना प्रभावी क्यों था। इस योजना ने उधारदाताओं को जमानती (कोलेटरल) सुरक्षा के लिए एक विकल्प उपलब्ध कराया। इस योजना के तहत गारंटी अनिवार्य रूप से जमानती (कोलेटरल) के रूप में कार्य करती है। इसे उधारदाताओं द्वारा एक प्रभावी जोखिम न्यूनीकरण के रूप में देखा गया था और इसलिए, उन्होंने बेझिझक ऋण दिया, और एमएसएमई ऋणकर्ताओं ने जमानती (कोलेटरल) सुरक्षा प्रस्तुत करने की आवश्यक बाध्यता से मुक्त होकर भारी उधार लिया।

इससे हमें प्रभावी नीतिगत हस्तक्षेप हेतु एक विचार मिलता है जो ऊपर वर्णित निम्न उत्पादकता जाल से एमएसएमई को बाहर निकाल सकता है। यदि हम एमएसएमई ऋण के लिए गारंटी प्रदान करने हेतु एक स्थायी संस्थागत व्यवस्था बना सकें, तो जमानती (कोलेटरल) ऋण पर अत्यधिक निर्भरता कम हो जाएगी। स्पष्ट रूप से ऐसी योजना में कुछ महत्वपूर्ण मुद्दे हैं जिनका समाधान किया जाना चाहिए। इस तरह की एक स्थायी योजना उन सभी समस्याओं का सामना करेगी जो सरकारी योजनाओं में खराब डिजाइन, गलत तरीके से प्रोत्साहन, खराब निगरानी के प्रति अतिसंवेदनशील होती हैं- जिसके परिणामस्वरूप राजकोषीय खिंचाव होता है और इसका उत्पादन पर सीमित प्रभाव पड़ता है। यह उधारदाता और ऋणकर्ता दोनों के लिए नैतिक जोखिम की समस्याएँ भी पैदा कर सकता है।

यही वह स्थिति है जिसमें ईसीएलजीएस के साथ कोविड-युग के प्रयोग का अनुभव अमूल्य हो सकता है। जैसा कि अगले कुछ वर्षों के लिए इस योजना के परिणाम देखे गए हैं, वे विशेष रूप से यह सुनिश्चित करने में कि गलतियाँ कम हों, इस बात की अंतर्दृष्टि प्रदान कर सकते हैं कि किस प्रकार के ऋणकर्ताओं को सबसे अधिक लाभ हुआ और उधारदाताओं की ओर से कौन से कार्य उपयुक्त रहे। यह अनुभव संस्थागत स्थायी गारंटी योजना के विचारशील डिजाइन को सक्षम करेगा। इस तरह का डिजाइन एमएसएमई को उत्पादकता बढ़ाने वाले निवेश करने हेतु प्रोत्साहित करेगा, और उधारदाता ऐसी योजना के तहत एमएसएमई क्रेडिट को अंडरराइट और मॉनिटर करना जारी रख सकते हैं। सरकार पर पड़ने वाले राजकोषीय बोझ को कम करने हेतु इस योजना को प्रभावी बनाया जा सकता है। योजना का संपूर्ण लागत-लाभ विश्लेषण यह सुनिश्चित करने में बहुत व्यावहारिक हो सकता है कि स्थायी गारंटी योजना से मिलनेवाले लाभ लागत से अधिक हों।

जीएसटी का रोलआउट और इलेक्ट्रॉनिक भुगतान की वृद्धि जैसे अन्य संस्थागत विकास ने पहले ही एमएसएमई पर उपलब्ध जानकारी में नाटकीय रूप से सुधार किया है। सावधानीपूर्वक तैयार किया गया स्थायी गारंटी पारिस्थितिकी तंत्र ऋण प्रवाह को और तेज कर सकता है।

निष्कर्ष                                                        

एमएसएमई भारतीय अर्थव्यवस्था का एक महत्वपूर्ण हिस्सा हैं। अर्थव्यवस्था में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका को देखते हुए, उनकी उत्पादकता को बढ़ाने से समग्र रूप से अर्थव्यवस्था की उत्पादकता को बढ़ावा मिलेगा। ईसीएलजीएस का अनुभव अंतर्दृष्टि प्रदान कर सकता है जिसका उपयोग एमएसएमई क्रेडिट के लिए एक स्थायी गारंटी स्थापित करने हेतु किया जा सकता है, जो बदले में इन उद्यमों को जमानती (कोलेटरल) ऋण के चंगुल से मुक्त करने और उनकी उत्पादकता में सुधार करने में सहायक हो सकता है।

लेखक परिचय: डॉ हर्षवर्धन मुंबई में एक प्रबंधन सलाहकार और शोधकर्ता हैं।

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