मानव विकास

भारत में बच्चों के टीकाकरण की समयबद्धता और उसका कवरेज

  • Blog Post Date 26 अक्टूबर, 2021
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Sisir Debnath

Indian Institute of Technology Delhi

sisirdebnath@iitd.ac.in

यूनिवर्सल इम्यूनाइजेशन प्रोग्राम के तहत 12 साल से कम उम्र के बच्चों के लिए मुफ्त में टीकाकरण उपलब्ध होने के बावजूद, विश्व के एक तिहाई बच्चों की मौतें भारत में जिन बीमारियों की रोकथाम वैक्सीन से हो सकती है ऐसी बीमारियों के कारण होती हैं। देबनाथ और चौधरी इस लेख में, 2005-06 और 2015-16 के राष्ट्रीय स्तर के प्रातिनिधिक डेटा का उपयोग देश में नियमित टीकाकरण की समयबद्धता और उसके कवरेज की जांच करने के लिए करते हैं। इसके अलावा, वे इस संबंध में कोविड-19 के प्रभाव का आकलन करने के लिए बिहार में किये गए हाल के एक प्राथमिक सर्वेक्षण के निष्कर्षों पर भी चर्चा करते हैं।

भारत में टीकाकरण के कवरेज में उल्लेखनीय वृद्धि होने के बावजूद, पाँच वर्ष से कम आयु के बच्चों में होने वाली सभी प्रकार की मौतों में से लगभग दो-तिहाई मौतें उन बीमारियों के कारण होती हैं जिन्हें टीकों के जरिये रोका जा सकता है। इन मौतों के पीछे एक प्रमुख अंतर्निहित कारक टीकाकरण में देरी है (लियू एवं अन्य 2016)। इसके अलावा, टीकाकरण की समयबद्धता पर उपलब्ध अध्ययनों में अनुपस्थित और गलत चरों, रिकॉर्ड-आधारित डेटा की सीमाओं और पैमाने की कमी के कारण मापन-संबंधी त्रुटियाँ हैं।

यूनिवर्सल इम्यूनाइजेशन प्रोग्राम (यूआईपी) के तहत, भारत में वैक्सीन से रोकी जा सकने वाली 12 बीमारियों1 के खिलाफ टीकाकरण मुफ्त में किया जाता है। तीन दशकों से भी अधिक समय से यूआईपी के जारी रहने के बावजूद, वैक्सीन से रोकी जा सकने वाली बीमारियों के कारण वैश्विक बाल-मृत्यु के एक तिहाई बाल-मृत्यु भारत में होती हैं (ब्लैक एवं अन्य 2010), और विश्व में बिना टीकाकरण वाले बच्चों की सख्या में से सबसे बड़ा हिस्सा भारत में है (रोग नियंत्रण और रोकथाम केंद्र (सीडीसी), 2013)। भारत के राष्ट्रीय परिवार और स्वास्थ्य सर्वेक्षण (एनएफएचएस)-4 (2015-16) के अनुसार, 12 से 23 महीने की उम्र के सभी बच्चों में से अब तक केवल 62% को ही सभी बुनियादी टीके2 लगवाए गए हैं।

समय क्यों महत्वपूर्ण है

टीका लगवाने के लिए उपयुक्त आयु बच्चे को माँ से प्राप्त एंटीबॉडी से सुरक्षा मिलना बंद होने तथा सबसे कम आयु, जिसमें अधिक प्रभावी तरीके से सुरक्षित रूप से टीका लगवाया जा सकता हो, इस बात पर निर्भर करती है। टीका लगवाने में देरी करने से बच्चों की रोग प्रतिरोधक क्षमता कम हो जाती है जब वे बीमार पड़ते हैं। इसे ‘स्वाभाविक रोग प्रतिरोधकता'3 (गुएरा 2007) के बढ़ने में बाधक के रूप में भी जाना जाता है। उदाहरण के लिए, ऐसे बड़े भाई-बहन जिन्होंने टीके नहीं लगवाये हैं वे अपने छोटे भाई-बहनों के लिए काली खांसी के वाहक साबित हो सकते हैं (इज़ुरिएटा एवं अन्य 1996)। इसके अलावा, शुरुआती चरणों में बच्चों को टीका लगवाने में होने वाली देरी की वजह से उनके बाद के टीकाकरण में देरी हो सकती है (किएली एवं अन्य 2018)। अक्सर, बाद के टीके के समय को विलंबित टीके के समय के साथ जोड़ा जाता है, जिसका अर्थ यह हो सकता है कि बाद वाला टीका समय से पहले लगवाया गया है। साक्ष्य से पता चला है कि समय से पहले लगवाये गए खसरे के टीके की प्रभावशीलता कम हो गई क्योंकि माँ से प्राप्त एंटीबॉडी के चलते ये निष्प्रभावी हो जाते हैं। साथ ही, खसरा और डीपीटी-3 टीकों के संयोजन से जटिलताएं निर्मित होती हैं और इनको लगवाने में की गई योजनागत गलतियों के कारण इसके दुष्प्रभाव के रूप में लड़कियों में समानुपातिक रूप से उच्च मृत्यु दर होती है (अवोफेसो एवं अन्य 2013)।

होनेवाली देरी के कारण

ग्रामीण भारत में टीका लगाने का कार्य सहायक नर्स-दाइयों (एएनएम) द्वारा दिया जाता है, जिन्हें ग्राम स्तर पर आशा (मान्यता-प्राप्त सामाजिक स्वास्थ्य कार्यकर्ता)4 द्वारा सहयोग किया जाता है। एएनएम सरकारी कर्मचारी होते हैं जिनका वेतन उनके कार्य-निष्पादन पर आधारित नहीं होता है, जबकि आशा कार्यकर्ताओं को सेवा के लिए शुल्क के रूप में भुगतान किया जाता है। एएनएम और आशा कार्यकर्ताओं की प्राथमिक जिम्मेदारियों में से एक ग्राम स्वास्थ्य और पोषण दिवस (वीएचएनडी) का आयोजन करना है, जहां- अन्य स्वास्थ्य, पोषण और स्वच्छता सेवाओं के साथ-साथ शिशुओं का टीकाकरण भी किया जाता है। इन सत्रों की तैयारी की जिम्मेदारी एएनएम की होती है, जो अपने क्षेत्र में हाल ही में जन्मे शिशुओं के जन्म-संबंधी रिकॉर्ड की जांच करती हैं और जिन्हें टीका लगाना है उनकी सूची बनाती हैं। हालांकि, इस तरह के बड़े पैमाने पर महत्वपूर्ण प्राथमिक डेटा को संकलित करने तथा उसे नियोजित करने में बहुत मेहनत लगती है जिसमें मानवीय त्रुटि की काफी संभावना रहती है। ये सूचियां ‘एएनएम’ से ‘आशा’ तक वीएचएनडी सत्र से ठीक एक दिन पहले पहुंचती हैं, जिससे उनको टीकों के लिए बच्चों को एकत्रित करना मुश्किल हो जाता है। इसके अलावा, बड़ी मात्रा में कागजी कार्रवाई करनी पड़ती है जिसके चलते दी जाने वाली सेवा के लिए अक्सर उपलब्ध समय कम हो जाता है।

मांग पक्ष की ओर से, माता-पिता के निर्णय काफी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं– सामाजिक- आर्थिक कारक, जागरूकता की कमी, और धार्मिक विश्वास सभी टीका लगवाने में होनेवाली देरी के स्पष्ट कारक हैं (मैथ्यू 2012, चौधरी एवं अन्य 2019, पति एवं अन्य 2011)। बीसीजी, डीपीटी-1 और खसरे के टीकाकरण में देरी से संबंधित पूर्वानुमानकारी बातों पर चौधरी एवं अन्य (2019) ध्यान आकर्षित करते हैं। घर में ही पैदा होने वाले बच्चों में बीसीजी के टीकाकरण में देरी होने की संभावना 2.7 गुना अधिक होती है (टौइल एवं अन्य 2016)। टीके की सुरक्षा और उसके लाभों के बारे में माता-पिता की चिंता जन्म के समय कम वजनवाले शिशुओं के टीकाकरण में होने वाली देरी में भूमिका निभाती है (ओ'लेरी एवं अन्य 2016)। साक्ष्य यह भी दर्शाते हैं कि जन्म-क्रम जितना अधिक होगा, आयु-उपयुक्त टीकाकरण में देरी की संभावना उतनी ही अधिक होगी। कम उम्र में विवाह और माँ की कम शिक्षा अक्सर उनमें जागरूकता और स्वास्थ्य-संबंधी संदेशों के प्रति ग्रहणशीलता की कमी का कारण बनती है और इससे भी टीकाकरण में देरी की संभावना होती है (मैथ्यू 2012, पति एवं अन्य 2011)। जागरूकता और उपयोगिता की कमी तथा सामाजिक, वित्तीय और भौतिक बाधाओं के चलते समाज के आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग की स्थिति भी इस सन्दर्भ में खराब है (अवोफेसो एवं अन्य 2013, मैथ्यू 2012)।

बच्चों के टीकाकरण में समयबद्धता

हम पांच साल से कम उम्र के बच्चों के टीकाकरण में औसत जिला स्तर की समयबद्धता का अध्ययन करने के लिए एनएफएचएस-4 (2015-16) डेटा का उपयोग करते हैं। हम समयबद्धता के स्थानिक वितरण को स्पष्ट करने के लिए बीसीजी और डीपीटी-3/पेंटावैलेंट-35 टीकों के आंकड़े प्रस्तुत करते हैं।

चित्र 1. बीसीजी वैक्सीन का जिला-वार समय पर लगाया जाना

Source: NFHS-4

स्रोत: एनएफएचएस-4

नोट: (i) यह आंकड़ा समय पर टीका प्राप्त करने वाले पांच वर्ष से कम आयु के शिशुओं के प्रतिशत को दर्शाता है। (ii) हम किसी टीके को समय पर लगाया गया तब मानते हैं जब उसे नियत तारीख के सात दिनों के भीतर लगाया गया हो।

चित्र 2. डीपीटी-3/पेंटावैलेंट टीकों का जिला-वार समय पर लगाया जाना

स्रोत: एनएफएचएस-4

नोट: (i) यह आंकड़ा समय पर टीका प्राप्त करने वाले पांच वर्ष से कम आयु के शिशुओं के प्रतिशत को दर्शाता है। (ii) हम किसी टीके को समय पर लगाया गया तब मानते हैं जब उसे नियत तारीख के सात दिनों के भीतर लगाया गया हो।.

जैसा कि अपेक्षित था, आंकड़े दर्शाते हैं कि बीसीजी का टीका जो जन्म के पश्चात दिया जाता है, अक्सर समय पर दिया जाता है जबकि डीपीटी-3 का टीका जिसे जन्म के 14 सप्ताह बाद लगाया जाना है, में विलम्ब होता है| इसके अलावा, इन टीकों के वितरण की समयबद्धता में पर्याप्त भौगोलिक भिन्नता है, और बिहार, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश के कुछ जिलों और पूर्वोत्तर भारत के कुछ हिस्सों में टीकाकरण संबंधी निष्पादन खराब है।

भारत में पांच साल से कम उम्र के बच्चों के टीकाकरण में समय के साथ हुए बदलाव को समझने के लिए, हम एनएफएचएस (एनएफएचएस-3 (2005-2006) और एनएफएचएस-4 (2015-2016) ) के दो अनुवर्ती दौरों से कई टीकों को लगाने संबंधी कवरेज और उसकी समयबद्धता नीचे तालिका 1 में दर्शाते हैं।

तालिका 1. वैक्सीन कवरेज और समयबद्धता



कवरेज (%)

समयबद्धता (%)

समयबद्धता

वैक्सीन

एनएफएचएस -3

एनएफएचएस -4

एनएफएचएस -3

एनएफएचएस -4



जन्म

बीसीजी

76.6

88

27.5

55.1

ओपीवी-0

47.2

71.5

64.3

80.1



6 सप्ताह

ओपीवी -1

88

84.6

58.3

60.5

डीपीटी-1

73.1

83.1

58.9

61

10 सप्ताह

ओपीवी -2

82.6

77.6

46.8

47.6

डीपीटी -2

65.3

77.5

47.3

48.1



14 सप्ताह

ओपीवी-3

72.4

63.6

34.1

35

डीपीटी-3

55

69.2

34.5

35.2

9-12 माह

खसरा

53.5

67.7

73

76.1

स्रोत: एनएफएचएस-3, एनएफएचएस-4. टिप्पणियां: (i) हम कवरेज और समयबद्धता की गणना के लिए पांच साल से कम उम्र के बच्चों पर विचार करते हैं। (ii) यदि प्राथमिक देखभालकर्ता सूचित करता है कि बच्चे को टीका लगाया गया था या एमसीपी (मां-बाल संरक्षण) कार्ड में टीकाकरण6 दर्ज किया गया हो, तो हम बच्चे को टीका लगवाया गया मानते हैं। (iii) समयबद्धता की गणना करने के लिए, हम उन बच्चों के बारे में विचार करते हैं जिनके एमसीपी कार्ड में टीकाकरण की वैध तिथि दर्ज की गई है। (iv) ओपीवी का मतलब ओरल पोलियो वैक्सीन है।

हमारे द्वारा अध्ययन किए गए अधिकांश टीकों के कवरेज से पता चलता है कि एनएफएचएस डेटा के दो दौरों के बीच की 10 साल की अवधि में काफी सुधार हुआ है। कुल मिलाकर, हम पाते हैं कि जन्म के समय दिए जाने वाले टीकों का कवरेज और समयबद्धता बूस्टर खुराक की तुलना में काफी बेहतर है। हालांकि, ओपीवी की बूस्टर खुराक की कवरेज समय के साथ घटती गई है, और उनकी समयबद्धता में भी कोई उल्लेखनीय सुधार नहीं हुआ है। ओपीवी देने में आसान होने के बावजूद, उसके कवरेज में गिरावट की प्रवृत्ति स्वास्थ्य नीति-निर्माताओं के लिए एक चिंता का विषय होना चाहिए। बीसीजी और ओपीवी-0 के अलावा अन्य टीकों की समयबद्धता में इन 10 वर्षों में कोई उल्लेखनीय सुधार नहीं दिखा है।

हम बीसीजी और डीपीटी-3/पेंटावैलेंट-3 टीके लगवाये गए शिशुओं के संचयी प्रतिशत को दर्शाते हैं क्योंकि वे नीचे चित्र 3 और 4 में बड़े हो जाते हैं।

चित्र 3. शिशुओं को लगवाये गए बीसीजी टीके की समयबद्धता में परिवर्तन

संचयी प्रतिशत

बीसीजी टीकाकरण के समय आयु (माह में)

चित्र 4. शिशुओं को लगवाये गए डीपीटी-3/ पेंटावैलेंट-3 की समयबद्धता में परिवर्तन

संचयी प्रतिशत

बीसीजी टीकाकरण के समय आयु (माह में)

चित्र-3 दर्शाता है कि एनएफएचएस सर्वेक्षण के अंतिम दो दौरों के बीच बीसीजी की समयबद्धता में काफी सुधार हुआ है। यह संस्थागत निष्पादन में एनएफएचएस-3 के 24% से एनएफएचएस-4 (मिश्रा और स्यामला 2021) में 54% तक की उल्लेखनीय वृद्धि के लिए आंशिक रूप से कारक हो सकता है। चित्र 4 में डीपीटी-3 के मामले में, दो दौरों के बीच कोई प्रत्यक्ष परिवर्तन नहीं हुआ है।

कोविड-19 के प्रभाव

भारत में वर्ष 2020 में कोविड-19 के कारण लगे पहले लॉकडाउन के बाद, कई रिपोर्टों ने नियमित स्वास्थ्य सेवाओं में व्यवधान का संकेत दिया था। स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय (MoHFW) और इंडियन एसोसिएशन ऑफ पीडियाट्रिक्स ने आपातकालीन टीकाकरण प्रोटोकॉल (MoHFW, 2020) पर दिशानिर्देश शीघ्र ही जारी किये। अधिकारियों के ठोस प्रयासों के बावजूद, एनएचएम (राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन) के एचएमआईएस (स्वास्थ्य प्रबंधन सूचना प्रणाली) के आंकड़ों के अनुसार, जनवरी 2020 की तुलना में अप्रैल 2020 में लगभग दस लाख बीसीजी, लगभग 14 लाख खसरा और पेंटावैलेंट-1 टीके, और 606,000 ओपीवी-0 टीके कम लगवाये गए। संभव है कि टीकाकरण में आई यह कमी प्राथमिक ग्रामीण स्वास्थ्य सेवा के लिए महत्वपूर्ण आशा और एएनएम कार्यकर्ताओं के कोविड-19 से निपटने में जुट जाने की वजह से आई हो।

कोविड-19 के दौरान टीकाकरण में आए व्यवधानों को मापना

हमने हाल के आईजीसी अनुसंधान (देबनाथ और देव 2021) में, अप्रैल 2021 में बिहार के मुजफ्फरपुर जिले के चार ब्लॉकों में पायलट सर्वेक्षण किया, जिसमें फ्रंटलाइन स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं और प्राथमिक देखभालकर्ताओं को शामिल किया गया था। उत्तरदाताओं में 22 एएनएम, 100 आशा और 200 प्राथमिक देखभालकर्ता शामिल थे। इन सर्वेक्षणों के माध्यम से, हमने उनकी व्यापक सामाजिक-आर्थिक विशेषताओं, समय के उपयोग के पैटर्न, फ्रंटलाइन स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं के साथ आदान-प्रदान, टीकाकरण की समयबद्धता और प्रभावशीलता के साथ-साथ मोबाइल एप्लिकेशन-अर्थात अनमोल (एएनएम ऑनलाइन) के उपयोग के बारे में उनके ज्ञान के संबंध में जानकारी जुटाने का लक्ष्य रखा था।

यह समझने के लिए कि क्या महामारी की पहली लहर के दौरान नियमित टीकाकरण बाधित हुआ, हम अपने सर्वेक्षण डेटा से टीके के कवरेज और उसकी समयबद्धता को संक्षेप में तालिका 2 में प्रस्तुत करते हैं।

तालिका 2. मुजफ्फरपुर में रिपोर्ट किया गया टीका कवरेज और समयबद्धता

समयबद्धता

वैक्सीन

कवरेज (%)

समयबद्धता (%)



जन्म

बीसीजी

93

63.4

ओपीवी-0

67

97



6 सप्ताह

ओपीवी -1

96.5

58

डीपीटी-1

97

56.7



10 सप्ताह

ओपीवी -2

95

32.6

डीपीटी --2

95

39.4



14 सप्ताह

ओपीवी -3

91

22

डीपीटी-3

91

21.4

9-12 माह

खसरा

29.5

88.1

नोट: (i) शिशुओं की आयु सीमा 5-13 महीने है। (ii) हम किसी टीके को समय पर लगाया गया तब मानते हैं जब उसे नियत तारीख के सात दिनों के भीतर लगाया गया हो। (ii) समयबद्धता की गणना के लिए, 6-12 महीने के उन शिशुओं के सन्दर्भ में विचार किया गया है जिनके एमसीपी कार्ड पर टीकाकरण की वैध तिथि दर्ज है।.

औसतन, अधिकांश टीकों का कवरेज अधिक है और हम बूस्टर खुराक के सन्दर्भ में एनएफएचएस डेटा के समान ही लेकिन बहुत कम परिमाण में व्यापक प्रभाव देखते हैं। खसरे के टीकाकरण का कम कवरेज आंशिक रूप से नमूने में संकीर्ण आयु सीमा का कारण हो सकता है। हालांकि समयबद्धता के आंकड़े एनएफएचएस-4 के आंकड़ों से मिलते-जुलते हैं, लेकिन ये अपेक्षाकृत कम हैं। इसे नियमित टीकाकरण हेतु कोविड-19 से प्रेरित देरी की अभिव्यक्ति माना जा सकता है|7

नीतिगत निहितार्थ

चूंकि हम पाते हैं कि जन्म के समय के डोज के अलावा टीकों का कवरेज और समयबद्धता अपर्याप्त है, इन विशेष टीकाकरणों पर ध्यान केंद्रित करने के लिए स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं को प्रोत्साहित करना और शायद समय पर टीकाकरण सुनिश्चित करने के लिए उन्हें मामूली वित्तीय लाभ दिया जाना कारगर साबित हो सकता है। समय पर टीके लगाये जाने के महत्व के बारे में देखभालकर्ताओं और अग्रिम पंक्ति के स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं की जागरूकता बढ़ाने से टीकाकरण में होनेवाली देरी को कम किया जा सकता है।

विशेष रूप से खसरे के सन्दर्भ में, ‘स्वाभाविक रोग प्रतिरोधकता’ में जरा-सी कमी की वजह से भी इसके प्रकोप की संभावना के चलते उसके लिए कैच-अप अभियानों पर भी ध्यान केंद्रित किया जा सकता है (शेट एवं अन्य 2021)। प्राथमिक देखभाल सेटिंग्स (चौधरी एवं अन्य 2019) में नियमित टीकाकरण सूक्ष्म योजनाओं को डिजाइन करते समय विलंबित टीकाकरण की उच्च संभावना वाले समूहों के लिए एक लक्षित दृष्टिकोण का उपयोग किया जाना चाहिए। योजना और प्रबंधन का विकेंद्रीकरण भी परिणामों को बेहतर बनाने में मदद कर सकता है। टीकाकरण कार्यक्रमों के कार्यान्वयन और विकास में सामुदायिक स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं की भागीदारी बढ़ाने के लिए नीति तैयार करना सहायक हो सकता है क्योंकि उन्हें पूर्ण और समय पर टीकाकरण सुनिश्चित करने के लिए तैनात किया जाता है (प्रिंजा एवं अन्य 2010)

स्वास्थ्य सेवा के उपयोग पर एक व्यापक डेटाबेस बनाने, कई स्तरों पर इसके विभाजन, वास्तविक रियल-टाइम निगरानी और नीति निर्माताओं द्वारा प्रस्तावित हस्तक्षेप को सक्षम करने के लिए आवश्यक प्रणालियाँ अपनाई जानी चाहिए।

यह लेख आईजीसी ब्लॉग के सहयोग से प्रकाशित किया गया है।

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टिप्पणियाँ:

  1. वैक्सीन-रोकथाम योग्य 12 रोग हैं- डिप्थीरिया, पर्टुसिस, टीटेनस, पोलियो, खसरा, रूबेला, बचपन के तपेदिक का एक गंभीर रूप, हेपेटाइटिस बी, और हीमोफिलस इन्फ्लुएंजा टाइप-बी के कारण होने वाला मेनिन्जाइटिस और निमोनिया।
  2. मूल टीकों में बीसीजी (बैसिल कैलमेट-गुरिन; ट्यूबरकुलोसिस) वैक्सीन की एक खुराक, डीपीटी (डिप्थीरिया, पर्टुसिस (काली खांसी) और टीटेनस) वैक्सीन की तीन खुराक, पोलियो वैक्सीन की तीन खुराक और खसरे के टीके की एक खुराक शामिल हैं। राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन का टीका कार्यक्रम यहां उपलब्ध है।
  3. विश्व स्वास्थ्य संगठन स्वाभाविक रोग प्रतिरोधकता को "जब कोई समुदाय टीकाकरण से या पूर्व के संक्रमण से विकसित रोग-प्रतिरोधकता के माध्यम से रोग प्रतिरोधक होता है तो उसके द्वारा किसी संक्रामक बीमारी से प्राप्त अप्रत्यक्ष सुरक्षा के रूप में परिभाषित करता है।
  4. मान्यता प्राप्त सामाजिक स्वास्थ्य कार्यकर्ता (आशा) स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय द्वारा राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन के एक भाग के रूप में स्थापित सामुदायिक स्वास्थ्य कार्यकर्ता हैं।
  5. पेंटावैलेंट टीके में पांच एंटीजन (डिप्थीरिया, काली खांसी, टीटेनस, और हेपेटाइटिस-बी, और हीमोफिलस इन्फ्लुएंजा टाइप-बी) होते हैं और इसे वर्ष 2014 के आसपास डीपीटी वैक्सीन के बदले में जारी किया गया था। कुछ उदाहरणों में, इन टीकों का परस्पर उपयोग किया जाता है।
  6. मदर एंड चाइल्ड प्रोटेक्शन (एमसीपी) कार्ड गर्भवती महिलाओं और स्वास्थ्य सेवा प्रणाली के बीच संपर्क के पहले बिंदु के रूप में कार्य करता है। यह सभी स्वास्थ्य सेवाओं के लिए नियत तारीखों और प्रसव की तारीखों को दर्ज करता है जिसमें प्रसवपूर्व देखभाल, प्रसवोत्तर देखभाल और परिवार नियोजन शामिल हैं। इसमें टीकाकरण प्राप्त करने की तारीख के साथ टीकाकरण रिकॉर्ड बनाए रखने के लिए एक विस्तृत अनुभाग शामिल है।
  7. हालाँकि, इनकी व्याख्या सावधानी से की जानी चाहिए क्योंकि हम डेटा का उपयोग केवल 200 शिशुओं के सन्दर्भ में करते हैं। शिशुओं के बारे में डेटा उनके प्राथमिक देखभाल करने वालों से प्राप्त होता है जिनका सर्वेक्षण किया गया था।

लेखक परिचय: अब्यलिक चौधरी इंडियन स्कूल ऑफ बिजनेस में मैक्स इंस्टीट्यूट ऑफ हेल्थकेयर मैनेजमेंट में रिसर्च एनालिस्ट हैं। शिशिर देबनाथ भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, दिल्ली में मानविकी और सामाजिक विज्ञान के सहायक प्रोफेसर हैं।

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