हाल ही में प्रलेखित किये गए दो तथ्य इस परंपरागत धारणा के विपरीत चलते हैं कि आर्थिक विकास बेहतर स्वास्थ्य की ओर ले जाता है: विकासशील देशों में आय और पोषण की स्थिति के बीच एक स्पष्ट लिंक का अभाव; और आर्थिक विकास के साथ, तथा सामान्य व्यक्तियों में, जो कि जरूरी नहीं कि अधिक वजन वाले हों, चयापचय संबंधी बीमारी का बढ़ता प्रचलन। यह लेख इन प्रतीत होने वाले असंबंधित अवलोकनों के लिए एक ही स्पष्टीकरण प्रदान करता है।
पुर्वाधुनिक अर्थव्यवस्था में मौसम और वर्षों के दौरान खाद्य आपूर्ति में व्यापक अल्पकालिक उतार-चढ़ाव के लक्षण थे, तथापि इसमें सदियों से दीर्घकालिक विकास दर शून्य के करीब थी। विकासात्मक जीवविज्ञानियों, उदाहरण के लिए बेटसन एवं अन्य (2014), ने यह सिद्ध किया है कि पुर्वाधुनिक आबादी ने लंबे समय तक (शारीरिक रूप से) स्थानीय खाद्य आपूर्ति को अपनाया।
आर्थिक विकास से आय में पर्याप्त वृद्धि होती है और साथ ही खपत (खाद्य) भी बढती है। ग्लुकमैन और हैनसन (2004) जैसे शोधकर्ता तर्क देते हैं कि वर्तमान खपत और पैतृक खपत जिसकी आबादी आदी है, के बीच के परिणामी बेमेल की वजह से विकासशील देशों में- कम से कम कुछ पीढ़ियों में चयापचय संबंधी रोग की उच्च दर पाई गई है। हाल के एक शोध (ल्यूक एवं अन्य 2021) के जरिये हम इन देशों में पाए गए कुपोषण के समकालिक सातत्य की व्याख्या प्रारंभिक अनुकूलन को एक ‘सेट पॉइंट' से जोड़कर करना चाहते हैं।
सेट पॉइंट थ्योरी का मूलाधार इस अवलोकन से प्रेरित था कि एक विशिष्ट व्यक्ति का वजन समय के साथ उल्लेखनीय रूप से स्थिर होता है। सेट पॉइंट एक होमियोस्टैटिक (स्थिर) प्रणाली का हिस्सा है जो भोजन के सेवन में उतार-चढ़ाव के बावजूद चयापचय और हार्मोनल समायोजन (मुलर एवं अन्य 2010) करके शरीर के ऊर्जा संतुलन को बनाए रखता है। सभी होमियोस्टैटिक प्रणालियों का गुण यह है कि वे केवल निश्चित बाध्यताओं के अन्दर स्व-नियमित हो सकती हैं, और इन बाध्यताओं को पार करते ही यह प्रणाली विफल हो जाएगी।
हमारे मॉडल में, आर्थिक विकास के प्रारंभिक चरणों में बीएमआई (बॉडी मास इंडेक्स; ऊंचाई के आधार पर वजन) के लिए सेट पॉइंट का निर्धारण पुर्वाधुनिक काल की पैतृक आय (खपत) के अनुसार किया जाता है। यदि वर्तमान और पुर्वाधुनिक आय पर्याप्त रूप से एक-दूसरे के आसपास है, तो व्यक्ति सफलतापूर्वक अपने सेट पॉइंट को बनाये रखेंगे। उनका बीएमआई वर्तमान आय के बजाय पुर्वाधुनिक आय के जरिये निर्धारित किया जाएगा, जिसके परिणामस्वरूप, हमारे द्वारा बीएमआई के जरिये मापी गई पोषण की स्थिति- और वर्तमान आय के बीच एक कमजोर संबंध दिखाई देता है। जैसे ही वर्तमान आय और पुर्वाधुनिक आय के बीच का अंतर एक सीमा को पार कर जाता है, शरीर उस सेट पॉइंट को बनाये रहने में सक्षम नहीं होगा। बीएमआई अब वर्तमान आय को ट्रैक करना शुरू कर देगा और साथ में, चयापचय संबंधी रोग का खतरा बढ़ जाएगा क्योंकि सेट पॉइंट को बनाए रखने वाले चयापचय का संतुलन बाधित हो गया है। ऐसे व्यक्ति जो 'पोषण जाल' के बाहर निकल गए हैं, लेकिन जरूरी नहीं कि वे अधिक वजन वाले हों, वे आर्थिक विकास के साथ होने वाले चयापचय संबंधी रोग के बढ़ते प्रसार में प्राथमिक योगदानकर्ता हैं। पुर्वाधुनिक अनुकूलन-सहित अंतर्निहित सेट पॉइंट की विशेषता वाला हमारा मॉडल, इस प्रकार दोनों शैलीगत तथ्यों को एक साथ समझा सकता है- बीएमआई और आय के बीच का कमजोर संबंध, और विकासशील देशों में देखे जाने वाले चयापचय संबंधी रोग की बढ़ती व्यापकता।
बॉडी मास इंडेक्स और चयापचय संबंधी रोग की संभावना: भारतीय डेटा के अनुसार परिकल्पना की जाँच
यदि आय, बीएमआई, और चयापचय संबंधी रोग के बारे में डेटा पुर्वाधुनिक काल से लेकर कई पीढ़ियों में प्रत्येक वंश (घर) के सन्दर्भ में उपलब्ध होते, तो हम सीधे पूर्ववर्ती तर्क की जाँच कर सकते थे। किसी एक वंश में ऐसी कोई एक विशेष पीढ़ी होगी जिसमें बीएमआई में वृद्धि और चयापचय संबंधी रोग की जोखिम के साथ ही वर्तमान आय और पैतृक आय के बीच का अंतर एक सीमा से अधिक हो गया होगा। इस तरह के बहु-पीढ़ी पारिवारिक स्तर के आंकड़ों के अभाव में, हम विकास की प्रक्रिया के दौरान आबादी में आय के विकास की विशेषता को ध्यान में रखे हुए, वर्तमान आय के आधार पर नवल परीक्षण करते हैं। पीढ़ी-दर पीढ़ी आय वितरण का विकास किस प्रकार से होता है, इस बारे में संभाव्य धारणा बनाते हुए हमारा मॉडल किसी भी समय निम्नलिखित निहितार्थ उत्पन्न करता है, जैसा कि चित्र 1 में वर्णित है: (i) यद्यपि वर्तमान पारिवारिक आय में बीएमआई (नीली धराशायी रेखा) सभी स्तरों से बढ़ रही है, जैसे-जैसे हम क्षैतिज अक्ष के साथ आगे बढ़ते हैं, इस संबंध में एक विशेष आय स्तर (काली धराशायी ऊर्ध्वाधर रेखा द्वारा इंगित) पर एक किंक (ढलान असंतुलन) होता है; (ii) चयापचय संबंधी रोग (लाल धराशायी रेखा) की संभावना समान आय स्तर से नीचे स्थिर है और उसके बाद बढती है।
चित्र 1. मॉडल के निहितार्थ
Current income: वर्तमान आय
Mean BMI: औसत बीएमआई
BMI without set point: निर्धारित बिंदु के बिना बीएमआई
BMI with set point: निर्धारित बिंदु के साथ बीएमआई
Pr(metabolic disease) : संभावना (चयापचय संबंधी रोग)
किंक बिंदु (आय सीमा) के बाईं ओर के परिवार अपने निर्धारित बिंदु पर बने रहते हैं और वे बीएमआई और वर्तमान आय के बीच के कमजोर संबंध के लिए जिम्मेदार होते हैं। हम नीचे देखते हैं कि सीमा के दाईं ओर के परिवार सामान्य सीमा के भीतर बीएमआई दर्शाते हैं, सेट पॉइंट से बाहर हैं और उन्हें चयापचय संबंधी रोग का खतरा है। इन निहितार्थों की जांच करने के लिए भारत एक आदर्श सेटिंग है क्योंकि इसकी आबादी में एक ही समय पर उच्च स्तर का अल्पपोषण और चयापचय संबंधी रोग का उच्च फैलाव है (स्वामीनाथन एवं अन्य 2019)। 2004-2005 और 2011-2012 के भारत मानव विकास सर्वेक्षण (आईएचडीएस) डेटा (चित्र 2 में दर्शाया गया है) का उपयोग करते हुए, हम पाते हैं कि बीएमआई एवं आय के बीच का संबंध (बच्चों और वयस्कों के लिए अलग-अलग) और चयापचय संबंधी रोग एवं आय के बीच का संबंध (केवल वयस्कों के सन्दर्भ में) मॉडल में दिए गए अनुमानों से मेल खाता है। हैनसेन (2017) परीक्षण का उपयोग करते हुए, अनुमानित सीमा से नीचे बीएमआई और पारिवारिक आय के बीच का कमजोर संबंध आबादी में औसत आय स्तर के करीब पाया गया है, जो आंशिक रूप से इस आबादी में अल्पपोषण के सातत्य को दर्शाता है, जैसा कि नीचे दिया गया है। एक ही सीमा से ऊपर आय के साथ चयापचय संबंधी रोग की संभावना में तेज वृद्धि, सामान्य सीमा के निचले स्तर पर बीएमआई से मेल खाती है, यह दूसरे शैलीगत तथ्य को समझाने में मदद करती है कि विकासशील देशों में सामान्य वजन वाले व्यक्तियों को भी जोखिम होता है।
चित्र 2. बीएमआई एवं आय के बीच संबंध और चयापचय रोग एवं आय के बीच संबंध, बच्चों (बाएं पैनल) और वयस्कों (दाएं पैनल) के सन्दर्भ में
स्रोत: भारत मानव विकास सर्वेक्षण (आईएचडीएस), 2004-2005 और 2011-2012।
टिप्पणियाँ: (i) सहसंयोजकों का एक निश्चित सेट, गैर-पैरामीट्रिक अनुमान से पहले आंशिक रूप से विभाजित किया गया है। अधिक जानकारी के लिए ल्यूक एवं अन्य देखें (2021)| (ii) ऊर्ध्वाधर रेखाएं अनुमानित सीमा स्थान को चिह्नित करती हैं और छायांकित क्षेत्र संबंधित 95% विश्वास अंतरालों1का सीमांकन दर्शाते हैं।
अन्य अध्ययनों ने विकासशील देशों में पाए जानेवाले अल्पपोषण के सातत्य को समझाने हेतु बाल्यावस्था में दस्त (स्क्रिमशॉ एवं अन्य 1968), सांस्कृतिक रूप से निर्धारित आहार वरीयताओं (एटकिन 2013, 2016), और बेटे को वरीयता (जयचंद्रन और पांडे 2017) के आधार पर वैकल्पिक तंत्र का प्रस्ताव दिया है। माना जाता है कि आर्थिक विकास के साथ आहार और जीवन शैली में परिवर्तन ने भी चयापचय संबंधी रोग (नारायण 2017) के बढ़ते प्रसार में योगदान किया है। हमारे मॉडल की विशिष्ट विशेषता यह है कि यह आय और बीएमआई एवं चयापचय संबंधी रोग दोनों के बीच एक परस्पर संबंध का अनुमान एक ऐसे किंक के जरिये लगाता है, जो किसी वैकल्पिक, संभावित सह-अस्तित्व तंत्र द्वारा निहित नहीं है।
मॉडल की बाहरी वैधता का आकलन
मॉडल की बाहरी वैधता का आकलन करने के लिए, हम इंडोनेशिया परिवार जीवन सर्वेक्षण (आईएफएलएस) और घाना सामाजिक आर्थिक पैनल सर्वेक्षण (जीएसपीएस) के डेटा के साथ इसका परीक्षण करते हैं।
हालाँकि पुर्वाधुनिक सेट पॉइंट सभी विकासशील देशों में प्रासंगिक हो सकता है, जनसंख्या का कौन-सा हिस्सा रह गया है यह विकास की प्रक्रिया में देश किस स्तर पर है उस पर निर्भर करेगा। वर्तमान आय और ऐतिहासिक आय के सन्दर्भ में देशों के बीच की तुलना यह इंगित करती है कि अफ्रीका की तुलना में एशिया में आय का अंतर काफी अधिक है। दरअसल, घाना में प्रति व्यक्ति आय 1960 से 2010 तक अनिवार्य रूप से अपरिवर्तित रही है, जबकि भारत और इंडोनेशिया में प्रति व्यक्ति आय में काफी वृद्धि हुई है।
मॉडल के अनुरूप, चित्र 3 (बाएं पैनल) में दर्शाए गए आईएफएलएस के परिणाम भारतीय डेटा से प्राप्त परिणामों से मेल खाते हैं। इसके विपरीत, चित्र 3 (दाएं पैनल) में दर्शाए गए घाना के डेटा में, किसी किंक (असंतुलन) के बिना बीएमआई और घरेलू आय के बीच एक सकारात्मक और निरंतर संबंध है। भारत और इंडोनेशिया स्पष्ट रूप से आर्थिक विकास के एक चरण में हैं जहां आबादी का एक बड़ा हिस्सा सीमा के दोनों ओर है, जिसके परिणामस्वरूप अल्पपोषण और चयापचय संबंधी रोग का सह-अस्तित्व दिखता है। इसके विपरीत, घाना की आबादी काफी हद तक अपने पुर्वाधुनिक सेट पॉइंट पर प्रतीत होती है, यही वजह है कि वहां कोई असंतुलन (किंक) नहीं है।
चित्र 3. इंडोनेशिया (बाएं पैनल) और घाना (दाएं पैनल) से प्राप्त अनुभवजन्य परिणाम
स्रोत: इंडोनेशिया परिवार जीवन सर्वेक्षण (आईएफएलएस), 2007 और 2014 दौर, घाना सामाजिक आर्थिक पैनल सर्वेक्षण (जीएसपीएस), 2009-2010 और 2013 दौर।
टिप्पणियाँ: (i) चित्र 2 के अनुसार, सहसंयोजकों का एक निश्चित सेट, गैर-पैरामीट्रिक अनुमान से पहले आंशिक रूप से विभाजित किया गया है। (ii) ऊर्ध्वाधर रेखाएं अनुमानित सीमा स्थान को चिह्नित करती हैं और छायांकित क्षेत्र संबंधित 95% विश्वास अंतरालों का सीमांकन दर्शाते हैं। जीएसपीएस में चयापचय संबंधी रोग की जानकारी उपलब्ध नहीं है।
हम जिला और गांव के स्तर पर प्रति व्यक्ति पैतृक आय के माप निर्धारित करके और फिर हमारे मॉडल के लिए शुरुआती बिंदु के रूप में कार्य करनेवाले जैविक संबंधों की पुष्टि करते हुए अपना सूक्ष्म विश्लेषण पूरा करते हैं: (ए) बीएमआई पैतृक आय के अनुसार निर्धारित किया जाता है, जो सेट पॉइंट से, अनुमानित सीमा से नीचे, और सीमा से ऊपर की वर्तमान आय से संबद्ध है; (बी) सीमा से ऊपर वर्तमान और पैतृक आय के बीच के अंतर में चयापचय संबंधी रोग का खतरा बढ़ रहा है, सीमा से नीचे नहीं।
विचार विमर्श
मॉडल के अनुमानों का परीक्षण करने और उस पर आधारित जैविक संबंधों की पुष्टि करने के बाद, हम माइक्रो-डेटा से देशों के बीच की तुलनाओं की ओर बढ़ते हैं। डीटन (2007) का मानना है कि ऊंचाई के आधार पर मापी जाने वाली वयस्क के पोषण की स्थिति दक्षिण एशिया में प्रति व्यक्ति जीडीपी (सकल घरेलू उत्पाद) से अनुमानित की तुलना में कम है, जबकि अफ्रीका के सन्दर्भ में यह विपरीत है। पोषण की स्थिति को मापने के लिए ऊंचाई के बजाय बीएमआई का उपयोग करते हुए हम चित्र 4 (बाएं पैनल) में समान क्षेत्रों के बीच के पैटर्न को दर्ज करते हैं। इसके अलावा, मौजूदा शोध से पता चला है कि औसत बीएमआई कम होने के बावजूद दक्षिण एशियाई लोगों में मधुमेह और संबंधित चयापचय संबंधी विकारों का असामान्य रूप से उच्च फैलाव है, (नारायण 2017)। हम चित्र 4 (दाएं पैनल) में देखते हैं कि बीएमआई के आधार पर मधुमेह की व्यापकता, वास्तव में अफ्रीका की तुलना में न केवल दक्षिण एशिया में बल्कि एशिया में अधिक है। जब हम क्षेत्रों के बीच आय की गतिशीलता का ध्यान रखते हैं, तो हमारा मॉडल इन असंबंधित निष्कर्षों की व्याख्या कर सकता है, अर्थात, एशिया में वर्तमान आय अधिक है, लेकिन ऐतिहासिक आय, जो सेट पॉइंट को निर्धारित करती है, अफ्रीका में अधिक थी।
चित्र 4. बीएमआई (बाएं पैनल) और मधुमेह (दाएं पैनल) के आधार पर देशों के बीच तुलना
जबकि यह मॉडल विभिन्न प्रकार के स्वास्थ्य परिणामों के बारे में सूक्ष्म और वृहद स्तर पर जानकारीपूर्ण है, नीतिगत दृष्टिकोण से यह महत्वपूर्ण है कि आगे अल्पपोषण और चयापचय संबंधी रोग की व्यापकता पर सेट पॉइंट के प्रभाव को निर्धारित करना होगा। भारतीय आंकड़ों के सन्दर्भ में वास्तविक पोषण स्थिति और मॉडल द्वारा अनुमानित पोषण की स्थिति की तुलना करने से संकेत मिलता है कि सेट पॉइंट के अभाव में, 5-19 आयु वर्ग के कम वजन वाले बच्चों की संख्या में 10% और कम वजन वाले वयस्कों की संख्या में 24% की कमी होगी। चयापचय संबंधी रोग के लिए सेट पॉइंट के योगदान को निर्धारित करने के लिए, हम मॉडल के एक अतिरिक्त निहितार्थ को उपयोग में लाते हैं, जो यह है कि बीएमआई में एक सीमा से नीचे भिन्नता के चलते बीमारी का खतरा उजागर नहीं होगा, लेकिन यही सीमा से ऊपर बीएमआई में बढ़ जाएगा। चित्र 5 में दर्शाये गए भारतीय डेटा के साथ अनुमान, सामान्य सीमा के निचले स्तर (18.5-25) पर बीएमआई सीमा को पूरे देश के सन्दर्भ में ठीक 22 से कम और दक्षिण भारत के लिए 21 से नीचे इंगित करते हैं। हम आने वाले दशकों में अन्य देशों में सेट पॉइंट तंत्र के कारण अपेक्षाकृत कम बीएमआई पर अल्पपोषण और चयापचय संबंधी रोग के समान सह-अस्तित्व का अवलोकन करने की उम्मीद कर सकते हैं।
चित्र 5. चयापचय संबंधी रोग- बीएमआई संबंध
हालांकि भविष्य का पूर्वानुमान इस प्रकार धूमिल लग सकता है, फिर भी कुछ आशा है। हाल के प्रायोगिक प्रमाण यह इंगित करते हैं कि बाल्यावस्था में गहन और निरंतर पोषण पूरकता दी जाने से यह पोषण की स्थिति में स्थायी रूप से सुधार ला सकती है (रूएल एवं अन्य 2008) और वयस्कता में चयापचय संबंधी रोग के जोखिम को कम कर सकती है (फोर्ड एवं अन्य 2018)। हमारे ढांचे में इन निष्कर्षों का अर्थ है कि बचपन के शुरुआती हस्तक्षेपों ने सेट पॉइंट को ऊपर की ओर अंतरित कर दिया। इसके अलावा, जबकि चित्र 5 इंगित करता है कि वयस्क भारतीय आबादी के एक बड़े हिस्से को मधुमेह (और संबंधित विकारों) के लिए वर्तमान में अनुमानित की तुलना में जांच की आवश्यकता हो सकती है, इस निष्कर्ष के लिए एक सकारात्मक कोण भी है। उन्नत अर्थव्यवस्थाओं में मधुमेह उत्क्रमण कार्यक्रमों, जिनमें आमतौर पर (मोटे या अधिक वजन वाले) रोगियों को बड़ी मात्रा में वजन कम करने की आवश्यकता होती है के विपरीत, भारत जैसे विकासशील देशों में दुबले मधुमेह रोगियों को अपने सेट पॉइंट की सीमा के दूसरी तरफ जाने के लिए अपेक्षाकृत कम मात्रा में वजन कमी करने की आवश्यकता हो सकती है।
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टिप्पणी:
- विश्वास अंतराल अनुमानित प्रभावों के बारे में अनिश्चितता व्यक्त करने का एक तरीका है। 95% विश्वास अंतराल, का अर्थ है कि यदि आप नए नमूनों के साथ प्रयोग को बार-बार दोहराते हैं, तो 95% समय परिकलित विश्वास अंतराल में सही प्रभाव होगा।
लेखक परिचय: नैन्सी ल्यूक एक सामाजिक जनसांख्यिकीविद् हैं | कैवान मुंशी येल यूनिवर्सिटी में अर्थशास्त्र के प्रोफेसर हैं। अनु मैरी ओमन सीएमसी वेल्लोर में सामुदायिक स्वास्थ्य विभाग में प्रोफेसर हैं। स्वप्निल सिंह बैंक ऑफ लिथुआनिया में प्रधान अनुसंधान अर्थशास्त्री हैं।
By: Piraji Wanne 16 October, 2022
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