ज्यां ड्रेज के ड्यूएट प्रस्ताव (एक शहरी कार्य कार्यक्रम) पर अपना दृष्टिकोण व्यक्त करते हुए गुप्ता एवं अन्य यह तर्क देते हैं कि इसका उद्देश्य केवल वित्तीय सहायता देना नहीं है, बल्कि एक व्यापक परिवेश का निर्माण करना है जो शहरी क्षेत्रों में कमजोर श्रमिक आबादी के लिए ज़्यादा मजबूत हो। वे लोकतांत्रिक जवाबदेही और स्थानीय भागीदारी को बढ़ाते हुए आजीविका सुरक्षा को बढ़ावा देने के लिए इस योजना की क्षमता पर विचार-विमर्श करते हैं।
यह प्रशासन की विफलता है कि हमारी जनसंख्या की अधिकांश आबादी अभी भी किसी तरह दो जून की रोटी का ही जुगाड़ कर पा रही है जो एक तथ्य है और भारत के शहरी कार्यबल का एक बड़ा हिस्सा यह अनुभव कर रहा है। पिछले आर्थिक संकट ने सबसे कमजोर वर्ग की जरूरतों को पूरा करने की मांग को बढ़ा दिया है। शहरी माहौल में रोजगार-आधारित सुरक्षा जाल बनाने की आवश्यकता इसमें महत्वपूर्ण है।
ज्यां द्रेज़ का शहरी क्षेत्रों में एक सार्वजनिक रोजगार कार्यक्रम का विचार इस चर्चा को आगे बढ़ाते हुए कई और पहलुओं पर ध्यान आकृष्ट करता है। इनमें बजट बनाने से लेकर सार्वजनिक संस्थानों को मजबूत करने तथा रोजगार को एक सार्वभौमिक अधिकार बनाना भी शामिल है। इस बहस को आगे बढ़ाते हुए हमें शहरी परिवेश में मौजूदा उपलब्ध संसाधनों और शासी संरचनाओं पर गौर करने की जरूरत है - कि किस प्रकार इसे गतिशील और सुदृढ़ किया जा सकता है, ताकि इसका महत्व भी बना रहे। नकद हस्तांतरण जैसे वैकल्पिक उपायों की तुलना में ड्यूएट (विकेंद्रीकृत शहरी रोजगार और प्रशिक्षण) प्रस्ताव हमें शहर के स्थानीय सरकारों को इसमें शामिल करने, सक्रिय करने और समर्थन देने के लिए साधन की क्षमता पर भी विचार करने के लिए कहता है। ड्यूएट केवल आर्थिक मदद करने तक ही सीमित नहीं है, बल्कि यह एक व्यापक परिवेश बनाने के लिए कार्य करेगा जो कमजोर वर्ग के लोगों के लिए अधिक मजबूत या समावेशी हो। मनरेगा (महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम) के ग्रामीण अनुभव बताते हैं कि किस प्रकार नीति निर्माण के जरिये जन-भागीदारी, क्षमता निर्माण और स्थानीय सरकारों को वित्तीय संसाधनों के आवंटन में सुधार किया जा सकता है – ये खुद की हित में महत्वपूर्ण परिणाम है (फैजी 2010)। ड्यूएट जैसा कार्यक्रम हमें शहरी परिवेश में भी ऐसा करने का अवसर प्रदान करता है। 74वां संविधान संशोधन1 इसे फिर से नीति निर्माण की चर्चा के केंद्र में ले आया है।
शहरी क्षेत्रों को नगर परिषदों, नगर पालिकाओं अथवा नगर निगमों (एमसी) के रूप में नियंत्रित किया जाता है। इन सभी में चुने हुए प्रतिनिधि रहते हैं और इनकी राजस्व प्राप्ति कर-संग्रह और राज्य सरकारों के अनुदान के माध्यम से होती है। हालांकि निस्संदेह इसके लिए अतिरिक्त संसाधनों की आवश्यकता होगी, शहरी स्थानीय निकायों (यूएलबी) के साथ इसे शुरू करने का एक प्रमुख लाभ निगमों के विवेकाधीन सार्वजनिक धन की उपलब्धता है। इन निधियों द्वारा बूटस्ट्रैप स्थानीय पहलों की मदद की जा सकेगी और यूएलबी द्वारा मापन योग्य संकेतकों, जैसे प्रति रुपया कार्य-दिवस के आधार पर हुए खर्चे को केंद्र सरकार द्वारा पूरक प्रोत्साहन राशि प्रदान की जानी चाहिए।
उदाहरण के लिए - कुछ बड़े नगर-निगमों में स्थानीय निर्वाचित प्रतिनिधियों को वार्ड स्तर के नागरिक कार्यों पर स्व-विवेक से खर्च करने के लिए धन दिया जाता है। अहमदाबाद नगर निगम, जो देश में 7वां सबसे बड़ा नगर निगम है, उसमें प्रत्येक निर्वाचित प्रतिनिधि को साल में 30 लाख रुपए दिए जाते हैं। अहमदाबाद नगर-निगम के 48 वार्डों को 192 वार्ड पार्षदों में वितरित किया गया है, जिनमें स्व-विवेक से खर्च करने के लिए कुल मिलाकर लगभग 57.6 करोड़ रुपए दिए जाते हैं। यह राशि वर्तमान में न्यूनतम नौकरशाही प्रक्रियाओं (उदाहरण के लिए तालिका 2 देखें) द्वारा स्वीकृत कर निम्न मदों पर खर्च की (तालिका 1 देखें) जा सकती है। बसोले एवं अन्य द्वारा (2019) अपनी रिपोर्ट में सूचीबद्ध की गई कई गतिविधियों को शहर द्वारा स्वीकृत गतिविधियों के अनुसार लागू किया जा सकता है। शहरी क्षेत्र के विधायकों के पास उपलब्ध स्थानीय क्षेत्र विकास निधि को भी इसी तरह से खर्च किया जा सकता है।
तालिका 1 में उन गतिविधियों की सूची दी गई है जिन्हे विवेकाधीन निधि-व्यय के रूप में अहमदाबाद नगर-निगम द्वारा अनुमति दी गई है
कार्य का प्रकार |
कार्य की प्रकृति |
गंदगी वाले इलाकों में विकासात्मक कार्य |
• मलिन बस्तियों और चॉलों में पानी की व्यवस्था, जल निकासी एवं सड़क, शौचालय आदि का निर्माण • बिल्डिंग सोसाइटियों और चॉलियों के पास बोर्ड लगाना • नगर-निगम द्वारा जल/निकासी पीवीसी (पोलीविनाइल क्लोराइड) पाइप में रिसाव वाले पाइपलाइनों को बदलना (स्वच्छता अभियान के तहत), ‘आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों (ईडबल्यूएस)’ के लिए निगम द्वारा कोलोनियों का निर्माण |
सार्वजनिक सड़क |
• सार्वजनिक सड़कों पर डिवाइडर और स्पीड-ब्रेकर बनाना • ट्रैफिक सर्कल का निर्माण • चबूतरों के गेट की मरम्मत और उन्नयन (बैठने के लिए ऊपर उठे हुए प्लेटफार्म) |
सार्वजनिक भवनों में सुविधाएं उपलब्ध करवाना |
• फाइबर या स्टील से बनी बेंच की व्यवस्था • वाटर कूलर उपलब्ध कराना • वाटर प्यूरीफायर, ट्यूब लाइट, पंखे, लाइट पोल, सोलर लाइट, सोलर वॉटर हीटर, सोलर प्लांट, एलईडीलाइट आदि लगाना |
नगरपालिका स्कूल |
• प्राथमिक और माध्यमिक स्कूलों में शौचालय, मूत्रालय, पानी की सुविधा, चाहरदीवारी, तार की बाड़, विद्युतीकरण, पंखे आदि की व्यवस्था |
आंगनवाड़ियाँ |
• नगर निगम के प्रबंधन में आंगनवाड़ी (शिशु देखभाल केंद्र) भवन का निर्माण • खेलकूद एवं व्यायाम उपकरणों की खरीद |
उद्यान |
• सार्वजनिक उद्यान बनाना और उनका प्रबंधन करना |
श्मशान |
1. सभी धर्म के लोगों के लिए श्मशान हेतु प्राथमिक सुविधाएं उपलब्ध कराना |
तालिका-2 अहमदाबाद नगर-निगम के कार्य निष्पादन हेतु बिना टेंडरींग के अनुमोदन प्रदान करने के लिए प्राधिकृत अधिकारियों की सूची
अनुमोदन राशि3 |
प्राधिकृत अधिकारी |
रु. 25,000 तक |
संयुक्त निदेशक (यांत्रिक) |
रु. 25000 तक |
अतिरिक्त सिटी इंजीनियर |
रु. 50000 तक |
सिटी इंजीनियर |
रु. 1,00,000 तक |
स्वास्थ्य चिकित्सा अधिकारीa |
रु. 25,000-1,25,000 |
निगम उपायुक्त |
रु. 1,25,000-3,00,000 |
निगम आयुक्त |
रु. 300000 के ऊपर |
स्थायी समिति |
वर्तमान में इन निधियों का उपयोग एक ब्लैक बॉक्स बना हुआ है। उदाहरण के लिए, कई आरटीआई (सूचना के अधिकार अधिनियम के तहत दायर किए गए अनुरोध) की मदद से हमने पाया है कि अहमदाबाद में इन फंडों से 2016-2018 के दौरान व्यय के अधिकतम अंश (लगभग 38%) सड़कों के निर्माण और रखरखाव पर खर्च हुए थे, इसके बाद स्ट्रीट लाइट्स और पोल लगाने पर (लगभग 16%), बेंचों के संस्थापन पर (लगभग 13%), पानी और जल निकासी की सुविधा पर (लगभग 12%), तथा डस्टबिन लगाने पर (लगभग 9%) खर्च हुए जो अधिकांशतः पार्षदों और ठेकेदारों के एक नेटवर्क के माध्यम से किए गए। रोजगार सृजन की दिशा में इन फंडों को टॉप-अप करने और खर्च में प्राथमिकता तय करने से संभावित बेहतर परिणाम में मदद मिलेगी। इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि इन संसाधनों के उपयोग को अधिक से अधिक पारदर्शी बनाया जाएगा क्योंकि ड्यूएट निधि के उपयोग हेतु किसी भी कार्य के लिए आवश्यक व्यक्ति के कार्य-दिवसों पर अनुमानित व्यय के अनुरूप होगी और किया जाने वाला कार्य निजी या सार्वजनिक संस्थाओं द्वारा संचालित किया जा रहा है या नहीं, इसकी जानकारी भी दी जाएगी। इस अनुमानित व्याय को समेकित करना, इसे वार्ड समितियों की जांच के लिए लाना, और सार्वजनिक करना न केवल रोजगार सृजन पर इन निधियों के प्रभाव को मापने में मदद करेगा बल्कि शहरी क्षेत्रों में अव्यवस्थित सार्वजनिक व्यय के कुप्रबंधन और अक्षमताओं को कम करने की दिशा में भी लंबा रास्ता तय करेगा।
प्रशासनिक रूप से ड्यूएट जैसे कार्यक्रम को एक 'प्लेसमेंट कार्यालय' की आवश्यकता होती है, जहाँ रोज़गार की तलाश करने वालों से रोज़गार के लिए संभावित साइटों की आवश्यकता का मिलान किया जा सकता हो। इन कार्यालयों को नौकरी के अवसरों की पहचान करने, जॉब स्टैम्प के उपयोग की निगरानी, और नौकरी चाहने वालों के लिए सुलभ होने के लिए विभिन्न सरकारी विभागों (संभवतः स्थानीय क्षेत्रों में भी) से समन्वय करने की आवश्यकता होगी। शहरी स्थानीय निकायों (यूएलबी) में एक मौजूदा विकल्प उप-क्षेत्रीय कार्यालय है। अहमदाबाद में उप-क्षेत्रीय कार्यालय वार्ड स्तर पर उपलब्ध हैं और अन्य निगमों में भी ऐसे वार्ड-स्तर के समकक्ष कार्यालय होने की संभावना है। ये गृह–कार्यालय परिसर बड़े विभागों, विधायकों और वार्ड पार्षदों के लिए काम करते हैं। उनके पास आमतौर पर एक ई-गवर्नेंस कार्यालय भी होता है, जहां आमतौर पर जल निकासी, इंजीनियरिंग, स्वास्थ्य एवं सफाई संबंधी सभी शिकायतें प्राप्त होती हैं, और पंजीकृत होती हैं। कॉम्प्लेक्स का उपयोग संभावित श्रमिकों के पंजीकरण, जॉब कार्ड जारी करने, श्रमिकों के डेटाबेस और उनके कौशल के प्रबंधन, तथा काम के आवंटन के लिए भी किया जा सकता है। इसके अलावा सार्वजनिक रूप से इस जानकारी को साझा करने के लिए वेबसाइटें भी तैयार की जा सकती हैं।
एक प्रमुख व्यक्ति जिसका लाभ ड्यूएट को मिलना चाहिए वह स्थानीय वार्ड पार्षद है, जो स्थानीय पर्यावरण की जरूरतों और संसाधनों का पूरा ज्ञान रखता हो। प्रस्तावित योजना पर पार्षदों के साथ बातचीत में उन्होंने अपनी भूमिका को लेकर विश्वास व्यक्त किया है क्योंकि वे अन्य चीजों के अलावा विभिन्न समुदाय के सदस्यों के कौशल से काफी परिचित हैं। जनप्रतिनिधिक जवाबदेही निर्वहन के चलते ये पार्षद कार्यक्रम को संचालित करने के लिए एक अतिरिक्त तंत्र को जोड़ सकते हैं।
प्रस्तावित योजना के लिए डिजाइन की चुनौतियों में यह सुनिश्चित करना शामिल है कि कार्यक्रम स्थानीय सरकारों के लिए एक ऐसी व्यवस्था नहीं बन जाए जो सभी आवश्यक सेवाएं प्रदान करते हुए पहले से कम कमाने वाले की कमाई को और कम कर दे। इसके बजाय, रोजगार को उन कार्यों की ओर निर्देशित किया जाना चाहिए जिससे कार्य में शामिल निवासियों और समुदायों के जीवन स्तर में सुधार हो, न कि उन उच्च वर्ग के लोगों के लिए जो पहले से ही शहरी सेवाओं से लाभान्वित हैं। एक ऐसा रोजगार कार्यक्रम जो श्रमिक समुदायों में संपत्ति बनाने में सहायक हो और ऐसा करने में मदद करे।
दूसरी बात, प्रवासियों का मुद्दा काफी जटिल है, जिसका हल निकालने की आवश्यकता है - क्या उनकी नौकरी की गारंटी उनके गंतव्य या मूल साइटों से बंधी होनी चाहिए?
नकद हस्तांतरण करना या निगम के बजट में वृद्धि करना ड्यूएट जैसे कार्यक्रम सृजन करने की तुलना में अधिक सुविधाजनक लग सकता है। लेकिन हम ड्यूएट के माध्यम से रोजगार की मांगों को एक साथ एक मंच पर लाने के रूप में देखते हैं, वह भी ऐसे समय में जब सामाजिक चिंता बढ़ रही है और लोग अपनी आजीविका खो रहे हैं। यह कई सरकारी विभागों और निजी संस्थाओं की आवश्यकताओं को एक साथ समन्वय करते हुए एक केंद्रीय स्थल के रूप में काम कर सकता है। भले हीं ड्यूएट शुरुआत करने की गारंटी नहीं दे, यह तब भी बेरोजगारों की मांगों और शहरी बुनियादी ढांचे की मांगों को समझने में पहला कदम होगा। साथ ही यह भी समझने में मदद करेगा कि सरकारी खर्च के लिए नौकरी सृजन के मानकों एवं इसके उद्देश्य को किस प्रकार एकरूपता में लाया जा सकता है। यह सीधे-सीधे उस हिस्सेदारी को बढ़ाता है जो शहरी निवासियों की सार्वजनिक खर्च की प्रक्रिया और परिणाम दोनों में शामिल है। नगद हस्तांतरण एक सुविधाजनक साधन की तरह लग सकता है, लेकिन इसमें रोजगार-सृजन की मूल भावना, काम की गरिमा का अभाव है। जब लॉकडाउन ने मजदूरों को असहाय बना दिया, तो हमने कई प्रवासी श्रमिकों की सहायता की, उन्होंने हमें याद दिलाया कि "हम काम करने वाले लोग हैं", वैसे लोग नहीं जो भिक्षा चाहते हैं।
टिप्पणियाँ:
- 74 वें संशोधन ने शहरी स्थानीय निकायों या शहर की सरकारों को शक्तियों के विचलन को अनिवार्य किया, जिससे उन्हें स्थानीय शासन को चलाने को संवैधानिक दर्जा मिला।
- चाली या चॉल से हमारा तात्पर्य बड़ी इमारतों को विभाजित कर कई छोटे घरों में किया गया है, जो सस्ते दरों पर आधारभूत रहने की सुविधा उपलब्ध कराते हैं।
- छोटे-पैमाने के कार्य टेंडर के बजाय कोटेशन के माध्यम से किए जाते हैं। इसमें प्राधिकार पदानुक्रम टेंडर से अलग होता है और यह शहर अथवा क्षेत्रीय स्तर पर किया जाता है।
लेखक परिचय: अंकुर सरीन आईआईएम अहमदाबाद के पब्लिक सिस्टम समूह एवं रवि जे. मथाई सेंटर फॉर इनोवेशन इन एजुकेशन में सहायक प्रोफेसर हैं। अद्वैता राजेंद्र आईआईएम अहमदाबाद के पब्लिक सिस्टम समूह में पीएचडी की छात्रा हैं। ईशु गुप्ता आईआईएम अहमदाबाद के राइट टू एजुकेशन रिसोर्स सेंटर में शोध सहयोगी हैं।
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