गरीबी तथा असमानता

कोविड-19 संकट ने शहरी गरीबों को कैसे प्रभावित किया है? - फोन सर्वेक्षण के निष्‍कर्ष - I

  • Blog Post Date 13 मई, 2020
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Farzana Afridi

Indian Statistical Institute, Delhi Centre

fafridi@isid.ac.in

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Sanchari Roy

King’s College London

sanchari.roy@kcl.ac.uk

यद्यपि कई टिप्पणीकारों ने वर्तमान कोविड-19 संकट के कारण प्रवासियों की दुर्दशा पर प्रकाश डाला है, परंतु शहरी झुग्‍गी झोंपडी बस्तियों में रह रहे कम आय वाले परिवारों के बारे में बहुत कम ज्ञात है। इस नोट में, अफरीदी, ढिल्लों एवं रॉय ने दिल्ली के औद्योगिक क्षेत्रों में 413 परिवारों के नमूनों के आधार पर उनकी आजीविका, एवं शारीरिक और भावनात्मक कल्याण पर प्रभाव के संबंध में फोन सर्वेक्षण द्वारा प्राप्‍त निष्कर्षों पर चर्चा की है। वे इस संकट के लिंग आ‍धारित अनुभव में भी कुछ अंतर्दृष्टि प्रदान करती हैं।

 

कोविड-19 महामारी के कारण दुनिया को भारी आर्थिक झटका लगा है। चीन से शुरू होकर, दुनिया के अधिकांश देशों ने सभी सामाजिक गतिविधियों के लॉकडाउन को किसी न किसी रूप में अपनाया है। भारत में, 24 मार्च 2020 को देश भर में लॉकडाउन शुरू हुआ और यह अभी भी जारी है। कई टिप्पणीकारों ने समाज के सबसे गरीब वर्गों की दुर्दशा पर प्रकाश डाला है, विशेष रूप से प्रवासियों के बारे में, जो अपनी दैनिक रोजगार खो चुके हैं और अब भोजन या आश्रय के लिए सरकारी सहायता या निजी दान पर निर्भर हैं। ये प्रवासी अब घर वापस लौटने के लिए मीलों लंबा सफर तय कर रहे हैं। हालांकि शहरी झुग्‍गी–झोंपड़ी बस्तियों में रह रहे कम आय वाले परिवारों की कठिनाइयों के बारे में बहुत कम ज्ञात (यदि कुछ हो भी) है। इस लॉकडाउन के कारण किस प्रकार उनकी कमाई और आय पर असर पड़ा है? भले राज्य और केंद्र सरकारों ने आर्थिक तंगी को कम करने के लिए अनेक कदम उठाए हैं, जैसे कि भोजन हस्तांतरण या शिविर लगाना, और बैंक खातों में सीधे नकदी जमा करना, परंतु ये नीतिगत प्रक्रियाएं शहरी क्षेत्रों में कम आय वाले परिवारों तक पहुंचने में कितनी प्रभावी रहीं हैं?

वर्तमान संकट के प्रभाव पर आंकड़ों के अभाव में, शहरी भारत में श्रमिकों की स्थिति को समझने के लिए हमारे पास उपाख्‍यान के रूप में केवल एक ही उपाय है। हालांकि, जमीनी हकीकत को अपेक्षाकृत बड़े पैमाने समझने के लिए पर फोन सर्वेक्षण एक संभावित विधि हैं। यद्यपि फोन सर्वेक्षण प्रतिनिधि प्रकार का होने के कारण विश्वसनीय तो है, परंतु भारत की मौजूदा स्थिति में यह एक चुनौतीपूर्ण कार्य है क्योंकि गरीबों के पास या तो फोन तक सुविधा सीमित है या वे बार-बार फोन नंबर बदल लेते हैं। उत्तरदाताओं का एक मौजूदा डेटाबेस फोन सर्वेक्षण की प्रतिनिधित्व क्षमता से संबंधित कुछ मुद्दों तक संभावित रूप से पहुंच सकता है।

कोविड-19 महामारी के बाद, लॉकडाउन और सामाजिक दूरी के नियमों का पालन करते हुए हम 6 अप्रैल 2020 से दिल्ली के औद्योगिक क्षेत्रों के आस-पास आवासीय इलाकों में लगातार जमीनी हालात को जानने के लिए उत्तरदाताओं के दैनिक फोन सर्वेक्षण कर रहे हैं। यादृच्छिक विधि से चयनित इन उत्तरदाताओं का हमारे द्वारा साक्षात्कार, व्यक्तिगत रूप से, मई 2019 से उनके श्रम बाजार के परिणामों, रोजगार और आजीविका को समझने के लिए किया गया था। हमारे प्रतिदर्श में दिल्ली में फैले 10 औद्योगिक क्षेत्रों (उदाहरण के लिए, मंगोलपुरी, वज़ीरपुर और शाहदरा) के लगभग 1,500 परिवार शामिल हैं जहाँ हम 18 से 45 वर्ष के प्रमुख कार्य समूह में जोड़ों (पति और पत्नी दोनों) का साक्षात्कार करते हैं। हमारे प्रतिदर्श में अधिकांश वही लोग हैं जो कारखानों एवं निर्माण कार्यों में दैनिक-मजदूरी करते हैं, या अनौपचारिक क्षेत्र (उदाहरण के लिए, छोटे-मोटे व्‍यवसाय, छोटी खुदरा दुकानों) में स्व-नियोजित हैं – यही ऐसा जनसांख्यिकीय समूह है जो विशेष रूप से आर्थिक और स्वास्थ्य झटके के प्रति कमजोर है और जिसे आजीविका के नुकसान के लिए सार्वजनिक स्थानान्तरण के माध्यम से बड़ी सहायता की आवश्यकता होगी। ये लोग घरों के समूहों में रहते हैं - जिसमें जेजे क्लस्टर1 और पुनर्वास कालोनियां भी शामिल हैं जो बहुत अधिक घनी बसी हुई होती हैं। इस कारण इन इलाकों में सामाजिक दूरी का पालन करना अत्‍यधिक चुनौतीपूर्ण हो जाता है। इसके अलावा, केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) के आकलन बताते हैं कि ये क्लस्टर गंभीर रूप से प्रदूषित हैं और वायु, जल या मृदा प्रदूषण से संबंधित संरक्षा मापदंडों को पूरा नहीं करते हैं। कुछ हालिया अनुमानों में यह बताया गया है कि ऐसी बस्तियों के इसी वातावरण के कारण वहां के निवासियों का स्वास्थ्य इस वायरस के प्रति विशेष रूप से असुरक्षित है।

मंगोलपुरी, नई दिल्ली में आवासीय संरचनाएँ। फोटो साभार: रमेश पठानिया / मिंट

हालांकि हमारे उत्तरदाता अल्पकालिक या मौसमी प्रवासी नहीं हैं, बल्कि औसतन 28 वर्षों से दिल्ली में रह रहे हैं, उनमें से 65% से अधिक लोगों का मूल निवास दिल्ली के बाहर का है - मुख्य रूप से उत्तर प्रदेश (यूपी) (40% से अधिक) और बिहार (9%)। इन परिवारों की कमाई और आय का न केवल अपने कल्याण पर, बल्कि यूपी और बिहार के ग्रामीण इलाकों में अपने रिश्तेदारों के माध्यम से दूर तक प्रभाव पड़ सकता है।

20 अप्रैल से लॉकडाउन प्रतिबंधों को कम किए जाने से पहले 18 अप्रैल 2020 तक के सर्वेक्षण के आंकड़ों में, हमारे प्रारंभिक प्रतिदर्श के 413 परिवारों के एक सबसेट हेतु उनकी आजीविका, शारीरिक और भावनात्मक कल्याण पर उनकी प्रतिक्रियाएं प्राप्‍त की गईं हैं। यद्यपि जारी फोन सर्वेक्षणों में मुख्य उत्‍तरदाता पुरुष हैं, लेकिन हमने सीधे पत्नियों से भी सर्वेक्षण के कुछ सवाल पूछे, जिससे हमें इस संकट के लिंग आधारित अनुभवों के बारे में भी जानकारी प्राप्‍त हुई।

आजीविका और रोजगार

हमारा मुख्य सर्वेक्षण इन परिवारों की आजीविका और मजदूरी की कमाई पर बड़े पैमाने के झटके का संकेत देता है। जैसा कि अपेक्षित है, इन आवासीय क्षेत्रों में श्रमिकों का विशाल हिस्सा (91% पुरुष) अब काम नहीं कर पा रहा है। लॉकडाउन से पहले नियोजित लगभग 85% उत्‍तरदाताओं ने अपने मुख्य व्यवसाय से कुछ भी नहीं कमाया है जबकि ऐसे उत्‍तरदाता जो 24 मार्च से पहले नियोजित थे उनमें से आधे से अधिक (53%) लोगों को मार्च महीने का अपना पूरा वेतन भी नहीं मिला।

आकृति 1. आजीविका और रोजगार

नोट: ऊर्ध्वाधर अक्ष प्रत्येक श्रेणी के लिए उत्तरदाताओं के प्रतिशत को दर्शाता है।

आकृति में दिए गए अंग्रेजी वाक्‍यों का हिंदी अर्थ

Not worked at all - बिल्‍कुल काम नहीं किया

Not earned any income - कोई आय अर्जित नहीं की

Job loss - नौकरी गंवाई

Not received full March salary - मार्च का पूरा वेतन नहीं मिला

अधिकांश ऐसे लोग जिन्‍होंने लॉकडाउन के बाद से कोई काम न करने या कोई आय अर्जित नहीं करने की रिपोर्ट की है जिनमें स्वनियोजित (32%) और कारखानों या निर्माण कार्य संबंधी नौकरियों (30%) में और मजदूरी करने वाले मजदूर हैं। उन लोगों में से जिन्हें 24 मार्च से पहले नियोजित किया गया था और जिन्‍होंने लॉकडाउन के बाद कुछ दिनों का काम किया था, उनकी दैनिक आय में 87% की गिरावट आई है - प्रति दिन औसत रु. 365 से रु. 46।

लॉकडाउन समाप्त होने के बाद क्या ये कर्मचारी अपना रोजगार हासिल कर पाएंगे, क्या आय में आई गिरावट अस्थायी है? हमारे उत्तरदाताओं में से 81% ने बताया कि उनकी नौकरी स्थायी या अस्थायी रूप से चली गई है। हालांकि, अधिकांश उत्तरदाता नौकरी के जाने को अस्थायी मानते हैं। ऐसी ही स्थिति उनके करीबी परिवार और दोस्तों की थी - उनके परिवार में 74% सदस्यों ने और उनके सामाजिक नेटवर्क के भीतर 63% से अधिक लोगों ने नौकरी गंवाने की रिपोर्ट की। अधिकांश उत्‍तरदाताओं ने अपने स्वयं की या परिवार की और अपने दोस्तों या पड़ोसियों की नौकरी जाने को अस्थायी के रूप में माना है। इस बिंदु पर हम यह नहीं समझ सकते हैं कि क्या यह इन श्रमिकों का जन्मजात आशावाद है कि वे अपने रोजगार को फिर से प्राप्त करने में सक्षम होंगे, या क्या वास्तव में उनकी नौकरी अस्थायी रूप से गई है। जैसा कि हम इन श्रमिकों को लगातार देखते रहेंगे, हम लॉकडाउन के बाद उनकी नौकरी जाने की स्थिति के बारे में बेहतर अंतर्दृष्टि प्राप्त करेंगे, और बहुत कुछ आर्थिक स्थिति के सुधरने के दौरान समष्टि अर्थशास्‍त्रीय कारकों और नीति समर्थन पर भी निर्भर करेगा।

सार्वजनिक स्थानान्तरण और अन्य सहायता

यह सुनिश्चित करना कि खाद्य पदार्थ और आवश्यक वस्‍तु जैसे कि दवाएँ, जरूरतमंदों तक पहुँचे, इस समय में एक चुनौती रही है। हमने अपने उत्तरदाताओं से पूछा कि क्या लॉकडाउन के बाद से उनको भोजन और अन्य आवश्यक वस्तुओं की पर्याप्त रूप से आपूर्ति हुई थी। उनमें से पैंतीस प्रतिशत ने बताया कि पर्याप्त भोजन और आवश्यक वस्तुएं उन तक नहीं पहुंचे थे। इसी तरह, 30% ने कहा कि उन्हें जरूरत पड़ने पर पर्याप्त चिकित्सा सहायता नहीं मिली।

47 प्रतिशत उत्तरदाताओं ने बताया कि लॉकडाउन के दौरान उन्हें किसी-न-किसी प्रकार की सहायता या सहयोग प्राप्त हुआ है - 89% उत्तरदाताओं को सरकार से सहायता प्राप्त हुई, 12% को मित्रों और रिश्तेदारों से सहायता मिली, और 4% को अन्य स्रोतों जैसे कि स्‍थानीय राजनीतिक नेता, गैर सरकारी संगठन आदि से सहायता प्राप्त हुई। सरकार से मिलने वाली सहायता मुख्‍य रूप से वित्तीय सहायता, भोजन और अन्य राशन के सामान की व्यवस्था के रूप में थी। कुछ व्यक्तियों ने विशेष रूप से सरकार से पका हुआ भोजन प्राप्त करने का उल्लेख किया है। हालांकि, उत्तरदाताओं में से 71% का मानना था कि लॉकडाउन के दौरान सरकार की मदद अपर्याप्त थी।

आकृति 2. सार्वजनिक स्थानान्तरण और अन्य सहायता

नोट: ऊर्ध्वाधर अक्ष प्रत्येक श्रेणी के लिए उत्तरदाताओं के प्रतिशत को दर्शाता है।

आकृति में आए अंग्रेजी वाक्‍यों का हिंदी अर्थ

Insufficient food & other essentials - अपर्याप्‍त भोजन एवं अन्‍य आवश्‍यक वस्‍तुएं

Inadequate govt. assistance - अपर्याप्‍त सरकारी सहायता

भावनात्मक कल्‍याण

उपलब्ध सबूत यह बताते हैं कि महामारी के परिणामस्वरूप दुनिया भर में अत्‍यधिक भावनात्मक तनाव पैदा हुआ है - कुछ विशुद्ध रूप से शारीरिक अलगाव के कारण और कुछ सीधे-सीधे शारीरिक एवं वित्तीय कल्याण के बारे में मूलभूत चिंताओं के कारण।

आकृति 3. भावनात्मक कल्याण

नोट: ऐसे उत्तरदाताओं का अनुपात जो तनाव, अवसाद, चिंतित आदि होने के बारे में दृढ़ता से सहमत या सहमत होते हैं।

आकृति में आए अंग्रेजी वाक्‍यों/शब्‍दों का हिंदी अर्थ

Financial stress - वित्‍तीय तनाव; Health stress - स्‍वास्‍थ्‍य संबंधी तनाव

Depressed - अवसाद; Anxious/Nervous - चिंतित/घबराहट

Unable to sleep - नींद न आना; Women - महिलाएं

Men - पुरुष

हमारे प्रतिदर्श में 81% पुरुषों की तुलना में लगभग 85% महिलाएं अपने परिवारों के शारीरिक स्वास्थ्य के बारे में चिंतित महसूस करती हैं। 63% पुरुष अपनी स्थिति के बारे में अवसाद महसूस करते हैं जबकि ऐसी महिलाएं 65% हैं। आश्चर्यजनक रूप से, पुरुष और महिलाएं दोनों को अपने स्वास्थ्य के बजाय अपने परिवार की वित्तीय पर्याप्तता के बारे में अधिक अवसाद है। हालांकि यह अंतर अधिक नहीं है। 61% पुरुषों की तुलना में लगभग 75% महिलाओं ने मौजूदा स्थिति के बारे में चिंता या घबराहट महसूस की, और महिलाओं और पुरुषों दोनों के 1/3 से अधिक ने पर्याप्त नींद न हो पाने के बारे में बताया है। इससे निष्‍कर्ष निकलता है कि महिलाएं पुरुषों की तुलना में अधिक तनावग्रस्त दिखाई देती हैं।

दिलचस्प बात यह है कि ये परिवार अपने रोजगार को फिर से हासिल करने के बारे में आशावान हैं क्योंकि वे आय और नौकरियों के जाने को अस्थायी मानते हैं। इस आशा के बावजूद, इनके मनोवैज्ञानिक दबाव बहुत अधिक हैं और यह संभावना व्‍यक्‍त की जा सकती है कि यदि सुधार की अवधि के बाद कार्य और रोजगार के पुन: प्राप्‍त होने की उम्मीदें पैदा न हों तो यह स्थिति और बिगड़ सकती है। इससे यह संकेत भी मिल सकता है कि स्वास्थ्य के बारे में चिंता एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है, और शायद आवश्‍यक जरूरी वस्‍तुओं तथा चिकित्सा देखभाल तक पहुंच को लेकर भी तनाव है। इसी प्रकार की अन्‍य चिंताएं भी हैं।

स्वास्थ्य और स्वास्थ्य प्रक्रियाएं

प्रतिदर्श के केवल 10% लोगों ने लॉकडाउन के बाद मुख्य रूप से केवल बुखार, बुखार एवं खांसी, तथा केवल खांसी के लक्षणों के संयोजन के साथ बीमार पड़ने के बारे में बताया है। कुछ मुट्ठी भर कोविड-19 पॉजिटिव मामले थे जिनके बारे में उन्हें पता था (केवल चार उत्‍तरदाताओं ने उत्तर दिया कि वे किसी ऐसे व्यक्ति के बारे में जानते हैं जिसकी जांच पॉजिटिव आई थी)। हालांकि, हमारे कुछ प्रतिदर्श क्षेत्रों को कोविड-19 के लिए कंटेइनमेंट (रोकथाम) जोन के रूप में नामित किया गया है।

जबकि हमारे प्रतिदर्श के बीच कोविड-19 के कथित शा‍रीरिक प्रभाव अब तक काफी कम (10%) दिखाई देते हैं, मनोवैज्ञानिक प्रभाव, जिनमें स्वास्थ्य और वित्त के कारण तनाव शामिल है, बहुत अधिक (70-80%) हैं।

व्यक्तिगत स्वच्छता और सामाजिक दूरी के मानदंडों के पालन के संदर्भ में, दोनों लिंग के 60% से अधिक लोग इस कथन से दृढ़ता से सहमत हैं कि उनके आस-पास रहने वाले लोग सामाजिक समारोहों में भाग नहीं ले रहे हैं, सामाजिक दूरी अपना रहे हैं, और बार-बार हाथ धो रहे हैं। फिर भी, उत्तरदाताओं में से 82% ने यह सूचना दी है कि वे पिछले सप्ताह अपने घर के बाहर निकले। घर से निकलने का मुख्य कारण (93%) किराने का सामान और अन्य आवश्यक वस्तुओं की ख़रीदारी करनी था।

आकृति 4. सामुदायिक स्वास्थ्य प्रक्रियाएं

नोट: उत्तरदाताओं का अनुपात जो दृढ़ता से बयान से सहमत हैं।

आकृति में आए अंग्रेजी वाक्‍यों/शब्‍दों का हिंदी अर्थ:

No social gatherings - कोई सामाजिक समारोह नहीं;Women - महिलाएं

Keep physical distance - शारीरिक दूरी रखना; Men - पुरुष

Wash hands frequently - बार-बार हाथ धोना

इस तथ्य के बावजूद कि हमारे सर्वेक्षण के अधिकांश उत्तरदाता दिल्ली के निवासी हैं, उनमें से कुछ (7%) वर्तमान में दिल्ली में स्थित नहीं हैं। वे या तो अपने पैतृक गांव में हैं या अपने मूल राज्य में जाने के लिए राजमार्ग पर किसी परिवहन साधन की प्रतीक्षा कर रहे हैं - मुख्य रूप से वे आकस्मिक मजदूर या विनिर्माण क्षेत्र में स्व-नियोजित हैं। हालांकि, उनमें वे लोग भी शामिल हैं जिन्होंने पहले निजी क्षेत्र में एक वेतनभोगी नौकरी की थी। इस प्रकार यह धारणा कि यह केवल मौसमी या अल्पकालिक प्रवासी ही अपने गांवों में वापस जा रहे हैं, पूरी तरह से सही नहीं हो सकती है। यह उस सीमा को प्रतिबिंबित करती हैं जिसके अंतर्गत शहरी गरीबों को आर्थिक नुकसान हुआ है।

यह उभरती तस्वीर परेशान करने वाली है, और इस बात को रेखांकित करती है कि जैसे-जैसे हम सुधार प्रक्रिया में आगे बढ़ते हैं इस मानवीय संकट को दूर करने के लिए नकदी और वस्‍तु रूप दोनों प्रकार से सार्वजनिक खर्च और स्थानान्तरण की एक बड़ी सहायता की जरूरत है। हालांकि शहरी श्रमिकों का नौकरी खोना अब तक अस्थायी है, लेकिन अधिकांश लोगों को अपना पूरा वेतन नहीं मिला है। यह भी स्पष्ट नहीं है कि भविष्य में सामाजिक दूरी के मानदंड उनकी कमाई को प्रभावित करने की क्षमता को कैसे प्रभावित करते रहेंगे। शहरी रोजगार और कमाई पर दीर्घकालिक प्रभाव निजी क्षेत्र में कारोबार शुरू करने और विनिर्माण में सरकारी उपायों पर काफी हद तक निर्भर करेगा।

इस पोस्ट के समापन भाग में, हम 20 अप्रैल से लॉकडाउन के उपायों को आसान बनाने के बाद के अपने सर्वेक्षण के निष्कर्षों की जानकारी देंगे।

यह लेख द वायर के सहयोग से प्रकाशित हुआ था।

नोट्स:

  1. जेजे का हिंदी में अर्थ है झुग्‍गीझोंपडि़यां तथा यह छोटी, अनधिकृत बस्तियों को संदर्भित करता है।

लेखक परिचय: फ़रज़ाना आफरीदी भारतीय सांख्यिकी संस्थान दिल्ली के अर्थशास्त्र एवं योजना विभाग में एसोसिएट प्रोफेसर हैं। अमृता ढिल्लों किंग्स कॉलेज लंदन में राजनीतिक अर्थव्यवस्था विभाग में अर्थशास्त्र की प्रोफेसर हैं। संचारी रॉय किंग्स कॉलेज लंदन में विकास अर्थशास्त्र में वरिष्ठ व्याख्याता (एसोसिएट प्रोफेसर) हैं।

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