समष्टि अर्थशास्त्र

केंद्रीय-बजट 2020: बुनियादी ढांचे हेतु खर्च, हिस्‍सेदारी बेचना तथा संसाधनों को मध्यमवर्ग की ओर निर्देशन को प्राथमिकता

  • Blog Post Date 12 फ़रवरी, 2020
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वित्त मंत्री सीतारमण ने 1 फरवरी को 2020-21 का केंद्रीय बजट पेश किया – यह उस समय आया है जब अर्थव्यवस्था आर्थिक मंदी का सामना कर रही है। इस पोस्ट में, निरंजन राजध्यक्ष ने कहा कि भले ही इस बार की कर-संबंधी धारणाएं जुलाई 2019 के बजट की तुलना में कम आक्रामक हों, लेकिन बहुत कुछ आर्थिक सुधार की ताकत और सरकार की अपनी हिस्‍सेदारी बेचने की महत्वाकांक्षी योजना बनाने की क्षमता पर निर्भर करता है। 

 

वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण द्वारा पेश किए गए दूसरे बजट को कई आलोचनाओं का सामना करना पडा है। इसलिए मुझे इस अन्यथा फीके बजट में से एक महत्वपूर्ण सकारात्मक पहलू का उल्लेख करके अपनी बात आरंभ करनी चाहिए।

इस बार का वास्तविक बजट अभ्यास जुलाई 2019 की तुलना में कहीं अधिक विश्वसनीय है। एक से कम की कर उछाल को समावि‍ष्‍ट करते हुए केंद्र सरकार का शुद्ध कर राजस्व 2019-20 के संशोधित अनुमान से आगे, 8.7% की दर बढ़ने की उम्मीद है। पिछला बजट कर राजस्व में अवास्तविक वृद्धि के इर्द-गिर्द बनाया गया था। यही कारण है कि वर्ष के मध्य में मामूली आर्थिक वृद्धि और कर कटौती के बावजूद शुद्ध कर-संग्रह, जुलाई 2019 के बजट में दिए गए आंकड़ों की तुलना में कम होते हुए भी, लगभग 1.5 खरब रुपये होने की उम्मीद है।

यह प्रशंसनीय है कि वित्त मंत्री ने सरकार द्वारा अतिरिक्त बजटीय उधार के संबंध में एक बयान जारी किया है। इसका अधिकांश हिस्सा भारतीय खाद्य निगम द्वारा राष्ट्रीय लघु बचत कोष से लिया जाता है। सार्वजनिक क्षेत्र की कुल उधार आवश्यकता हमें इस बात का एक बेहतर विचार देती है कि भारतीय परिवारों की वित्तीय बचत का अनुपात सरकार और उसकी एजेंसियों के लिए क्या है। घरेलू बचत बाध्यताएं राजकोषीय विस्तार को रोकती हैं जो इस समय संभव है।

क्या सरकार अप्रैल 2020 में शुरू होने वाले वित्तीय वर्ष में जीडीपी (सकल घरेलू उत्पाद) के 3.5% के वित्तीय घाटे के लक्ष्य को पूरा कर पाएगी? यद्यपि जुलाई 2019 के बजट की तुलना में कर-धारणाएं कम आक्रामक हों, लेकिन बहुत कुछ आर्थिक सुधार की ताकत और सरकार द्वारा परिसंपत्ति की बिक्री के माध्यम से 2.1 खरब रुपये और दूरसंचार स्पेक्ट्रम की नीलामी से 1.35 खरब रुपये एकत्र करने की क्षमता पर निर्भर करता है। भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) से लाभांश के 60,000 करोड़ रुपये (0.6 खरब) का अर्थ है कि अगले साल बजटीय सहायता के लिए केंद्रीय बैंक से भुगतान पर निर्भरता कम हो सकती है। तब बहुत कुछ तो सरकार की हिस्‍सेदारी बेचने की महत्वाकांक्षी योजना के सफल होने की क्षमता और साथ ही संघर्षरत दूरसंचार कंपनियों द्वारा स्पेक्ट्रम के लिए बोली लगाने की क्षमता पर भी निर्भर करता है।

असाधारण वर्षों के लिए एफ़आरबीएम (राजकोषीय उत्तरदायित्व और बजट प्रबंधन) अधिनियम में प्रदान किए गए मोचन खंड (एस्केप क्लॉज) का उपयोग करने के निर्णय का आशानुरूप प्रयोग किया गया है। अधिक विशिष्ट आवश्यकता यह है कि यदि वास्तविक उत्पादन वृद्धि में पिछली चार तिमाहियों के औसत से कम से कम तीन प्रतिशत अंक कम होता है तो सरकार अपने राजकोषीय घाटे के लक्ष्य से जीडीपी के 0.5% से पीछे रह सकती है। फिलहाल ऐसा नहीं है। चालू वित्त वर्ष में दूसरी तिमाही में आर्थिक वृद्धि पिछली चार तिमाहियों के औसत से 1.6 प्रतिशत कम रही। इसलिए, वित्त मंत्री ने एफ़आरबीएम नियमों से बचने के लिए संरचनात्मक सुधारों के अधिक अस्पष्ट कारण का उपयोग किया है।

मोचन खंड (एस्केप क्लॉज) के उपयोग ने सरकार को चालू वित्त वर्ष हेतु राजकोषीय घाटे को बजट में दिए गए जीडीपी के 3.3% के करीब रखने के लिए चौथी तिमाही में खर्च को कम नहीं करने की अनुमति दी है, इस प्रकार से चालू वित्‍त वर्ष में एक कमजोर अर्थव्यवस्था के लिए अवांछित प्रति चक्रीय झटके से बचा जा सकता है। हालांकि, यह अभी भी स्पष्ट नहीं है कि 2019-20 में राजकोषीय कमी को किस तरह से वित्तपोषित किया जाना है, क्योंकि अभी तक पूरक उधार कार्यक्रम की कोई घोषणा नहीं हुई है। एफ़आरबीएम का मोचन खंड (एस्केप क्लॉज) भी सरकार को यह अनुमति देता है कि वह सीधे आरबीआई को बॉन्ड बेचकर अपने राजकोषीय घाटे का मुद्रीकरण कर सकती है, इसलिए 2003 के बाद यह पहली बार होगा जब कोई भारतीय सरकार प्रिंटिंग प्रेस तक पहुंच की मांग कर सकती है। क्या आने वाले हफ्तों में इसका इस्तेमाल वित्‍त पोषण अंतराल को पूरा करने के लिए किया जाएगा?

सकल मांग को प्रोत्साहित करने के लिए राजकोषीय रणनीति के दो आधार हैं। एक ओर आयकर में कटौती और उसके साथ-साथ चुनिंदा कार्यक्रमों में बढ़ते खर्च। आयकर अनुसूची में परिवर्तन होने से भारत में कर के सात स्लैब हो जाएंगी, जो वी.पी. सिंह द्वारा दीर्घावधि राजकोषीय घाटा नीति दस्तावेज के दिशा-निर्देशों का पालन करते हुए 1985 के बजट में आयकर स्लैब की संख्या को आठ से घटाकर चार करने के बाद से सबसे जटिल आयकर संरचना हो जाएगी। एक और चिंता यह है कि लाभार्थी अतिरिक्त प्रयोज्‍य आय का उपयोग बचत या ऋण के भुगतान में करने का निर्णय ले सकते हैं। आमतौर पर एक गिरती हुई अर्थव्यवस्था में कर कटौती का कम प्रभाव होता है।

राजकोषीय रणनीति का दूसरा आधार उच्च सार्वजनिक व्यय है। कुछ प्रमुख कार्यक्रम, जैसे कि महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (एमएनआरईजीएस), राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन तथा राष्ट्रीय शिक्षा मिशन को धन की कमी का सामना करना पड़ रहा है। जिन योजनाओं पर अधिक ध्यान दिया गया है, उनमें प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना, प्रधानमंत्री आवास योजना, जल जीवन मिशन, शहरी कायाकल्प मिशन और एकीकृत बाल विकास सेवा (आईसीडीएस) हैं। प्रत्यक्ष नकदी हस्तांतरण के पीएम-किसान कार्यक्रम पर बहुत कुछ निर्भर करता है, जिसके कार्यान्वयन संबंधी बाधाओं के कारण इसके पहले वर्ष में कई उल्‍लेखनीय आरंभिक समस्याएं सामने आई हैं।

खर्च करने का तरीका बुनियादी ढाँचे हेतु खर्च में प्राथमिकता को इंगित करता है, हालाँकि इस बात पर स्पष्टता की कमी अभी भी है कि महत्वाकांक्षी राष्ट्रीय अवसंरचना पाइपलाइन (योजना) को किस तरह से वित्त-पोषित किया जाना है। अनुभवजन्य साहित्य से पता चलता है कि बुनियादी सुविधाओं के लिए सर्वोच्‍च राजकोषीय गुणक उच्चतर है, लेकिन यह देखते हुए कि अक्‍सर भारत में ऐसी योजनाओं के निष्‍पादन में कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है, इनके निष्पादन की क्षमताओं पर बहुत कुछ निर्भर करता है ।

इसके अलावा, नए बजट में निहित कुछ विकल्पों से यह संकेत मिलता है कि संसाधनों को ऐसे लोगों की ओर मोड़ने को प्राथमिकता दी गई है जो आय पिरामिड के बीच में आते हैं (मध्यम आय वर्ग के आस-पास) बजाय इसके दोनों सिरों (निम्न आय एवं उच्च आय वर्ग) के लोगों के; उदाहरण के लिए, ग्रामीण रोजगार योजना के बजाय पीएम-किसान के लिए प्राथमिकता, प्रति वर्ष रुपये 15,00,000 से कम आय वालों के लिए कर दर में कटौती और लघु और मध्यम कारोबारियों को ऋण को बढ़ावा देने के उपाय। इसे आंशिक रूप से अर्थशास्त्र के दृष्टिकोण से और आंशिक रूप से नरेंद्र मोदी सरकार की राजनीतिक रणनीति के दृष्टिकोण से समझाया जा सकता है।

लेखक परिचय: निरंजन राजाध्यक्ष आईडीएफ़सी इंस्टीट्यूट में एक वरिष्ठ फ़ेलो और अनुसंधान निदेशक हैं। वे संस्थान के अनुसंधान कार्यक्रमों को दिशा प्रदान करते हैं।

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