गरीबी तथा असमानता

लॉकडाउन के दौरान शहरी भारत में कितनी नौकरियां गईं?

  • Blog Post Date 17 मई, 2021
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Arup Mitra

Institute of Economic Growth

arup@iegindia.org

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Jitender Singh

Department of Economic Affairs, Government of India

jtndrdahiya@gmail.com

कोविड -19 के प्रसार को रोकने के लिए मार्च 2020 में लगाए गए राष्ट्रव्यापी लॉकडाउन ने विशेष रूप से भारत की शहरी अर्थव्यवस्था को बुरी तरह प्रभावित किया। अप्रैल-जून 2020 की अवधि के लिए आवधिक श्रम-बल सर्वेक्षण के आंकड़ों का उपयोग करते हुए, मित्रा और सिंह ने शहरी क्षेत्रों में नौकरी के नुकसान की जांच की। वे पाते हैं कि कृषि की तुलना में माध्यमिक और तृतीयक क्षेत्र अधिक प्रतिकूल रूप से प्रभावित हुए और पुरुषों की तुलना में अधिक महिलाएं श्रम-बल से बाहर हो गईं।

 

कोविड-19 महामारी के प्रारंभ के पश्चात, 25 मार्च 2020 को लगाए गए राष्ट्रव्यापी लॉकडाउन के शुरुआती चरण के दौरान, भारत का शहरी श्रम बाजार बुरी तरह प्रभावित हुआ था। हालांकि शहरी श्रम बाजार पर इस अप्रत्याशित प्रभाव के कई कारण थे, जिनमें से विशेषकर दो कारण प्रमुख हैं। पहला, ग्रामीण क्षेत्रों की तुलना में शहरी इलाकों में लॉकडाउन को अधिक सख्ती से लागू किया गया था। दूसरा, लॉकडाउन के दौरान कृषि की अपेक्षा माध्यमिक और तृतीयक गतिविधियां अवरुद्ध हो गईं, और देश का 95% शहरी कार्यबल माध्यमिक और तृतीयक गतिविधियों में ही संलग्न है। यह 2020-21 की पहली तिमाही के जीडीपी (सकल घरेलू उत्पाद) के अनुमानों में स्पष्ट रूप से झलकता है। यह बताता है कि शहरी आधारित गतिविधियाँ - दोनों माध्यमिक और तृतीयक क्षेत्र, लगभग 23% तक सिकुड़ गयी हैं, जबकि लॉकडाउन के बावजूद कृषि क्षेत्र में विकास जारी रहा ।

आधिकारिक आंकड़ों के अभाव में श्रम बाजार पर कोविड-19 के प्रतिकूल प्रभाव का परिमाण विवादास्पद रहा है। मई 2020 में, सेंटर फॉर मॉनिटरिंग ऑफ इंडियन इकोनॉमी (सीएमआईई) ने दिखाया कि अप्रैल के महीने में ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में लगभग 12.2 करोड़ नौकरियां चली गईं। अब, एक साल बाद, अप्रैल-जून 2020 तिमाही के श्रम-बल सर्वेक्षण (पीएलएफएस) आंकड़े भारत सरकार के सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय द्वारा जारी किए गए हैं। इन आंकड़ों के आधार पर हम इस अवधि के दौरान नौकरी के नुकसान का अनुमान प्रस्तुत करते हैं, और कुछ प्रचलित अनुमानों के साथ पुनर्समीक्षा करना चाहते हैं।

नौकरियों में हुए नुकसान का अनुमान लगाने हेतु आधिकारिक आंकड़ों का उपयोग

तिमाही आधार पर जारी पीएलएफ़एस के आंकड़ों को व्यापक रूप से भारत में रोजगार और बेरोजगारी के आंकड़ों का सबसे विश्वसनीय स्रोत माना जाता है। त्रैमासिक सर्वेक्षण परिणाम शहरी क्षेत्रों के लिए कुछ अतिरिक्त जानकारी की उपलब्धता के साथ शहरी और ग्रामीण दोनों क्षेत्रों के लिए उपलब्ध हैं। जबकि शहरी क्षेत्रों में नए घरों का हर तिमाही में सर्वेक्षण किया जाता है। पहली तिमाही में जिन घरों का सर्वेक्षण किया गया था, उनका दूसरी तिमाही में भी सर्वेक्षण किया गया और इन परिवारों को तीसरी तिमाही में पुनःसर्वेक्षित किया गया, हालांकि इस प्रक्रिया का ग्रामीण संदर्भ में पालन नहीं किया गया तथा सर्वेक्षण केवल वर्तमान साप्ताहिक स्थिति (सीडबल्यूएस) के आधार पर श्रम बाजार संकेतकों को मापता है। सीडबल्यूएस, सर्वेक्षण की तारीख से पूर्व सात दिनों की अवधि को संदर्भ में लेता है। रिपोर्ट में अन्य बातों के अलावा, लिंग और आयु वर्ग के तीन प्रमुख संकेतकों को शामिल किया गया हैं- श्रम-बल भागीदारी दर, श्रमिक-जनसंख्या अनुपात और बेरोजगारी दर।

जैसा कि रिपोर्ट में उल्लेख किया गया है, लॉकडाउन के कारण, कुछ उत्तरदाताओं से बाद में संपर्क किया गया, और अप्रैल-जून की अवधि के संबंध में उनकी कार्य स्थिति के बारे में पूछा गया था। इन सर्वेक्षणों में से लगभग 61% मामलों में फोन द्वारा पुनर्सर्वेक्षण का कार्य किया गया था। चूंकि ग्रामीण आंकड़ों के मामले के विपरीत, शहरी त्रैमासिक आंकड़ों में ऋतुकालीन भिन्नता की संभावना कम है, हमने जनवरी-मार्च 2020 तिमाही के अनुमानों की तुलना अप्रैल-जून 2020 तिमाही से की है।

श्रम बल

हमने जनवरी-मार्च 2020 और अप्रैल-जून 2020 की तिमाही के श्रम बल1, कार्य बल2 और बेरोजगारी के आंकड़ों को ‘15 वर्ष और उससे अधिक’ उम्र के लोगों के लिये आकृति-1 में वर्णित किया है। वर्णन के अनुसार, लगभग 18.2 करोड़ लोग या तो नौकरी की तलाश कर रहे थे या लॉकडाउन से ठीक पहले की तिमाही में कार्यरत थे। हालांकि, लॉकडाउन अवधि के दौरान लगभग 70 लाख लोग श्रम-बल से बाहर हो गये।

इस तथ्य के बावजूद कि श्रम-बल में महिलाओं की संख्या (लगभग 4 करोड़) पुरुषों (लगभग 14 करोड़) की तुलना में बहुत कम थी, पुरुषों की तुलना में अधिक महिलाएं (40 लाख बनाम 30 लाख) इस दौरान श्रम-बल से बाहर हो गयीं।

वे लोग जो, श्रम बल से बाहर हो गये भाजक के तौर पर बेरोजगारी दर3 में परिलक्षित नहीं हो सकते हैं, क्योंकि श्रम-बल में भी गिरावट आई है। इसलिए, बेरोजगारी दर के बजाय रोजगार में बदलाव महामारी के दौरान श्रम बाजार के प्रदर्शन को देखने के लिए सही संकेतक है।

आकृति 1. श्रम शक्ति में 15 वर्ष और उससे अधिक आयु के व्यक्ति के आंकड़े 2020 में(10 लाख में)

टिप्पणी: (i) 01 फरवरी 2020 को जनवरी-मार्च 2020 के लिए और 01 मई 2020 को अप्रैल-जून 2020 के लिए 15 वर्ष और उससे अधिक आयु वर्ग की अनुमानित जनसंख्या का उपयोग कर अनुमान लगाया गया है। किसी विशेष तिमाही में 15 से अधिक आयु वर्ग की जनसंख्या के भाग की गणना आयु और लिंग के आधार पर किए गए सर्वेक्षण में प्रकाशित की गई है। (ii) जनवरी-मार्च 2020 के लिए अनुमानित जनसंख्या 37.88 करोड़ थी और अप्रैल-जून 2020 के लिए 38.2 ​​करोड़ थी। (iii) जनसंख्या अनुमान के लिए फॉर्मूला है: A = A1 * [1 + R / 100] (t / 120), जहां A1,1 मार्च 2011 की जनगणना की जनसंख्या है, R, 2001 और 2011 दशक की जनगणना के बीच जनसंख्या परिवर्तन का प्रतिशत है। 2011, और t मार्च 2011 से महीनों की संख्या है।

रोजगार और बेरोजगारी

उद्योग तथा रोजगार की व्यापक स्थिति के अनुसार रोजगार अनुमान के आंकड़े आकृति-2 और 3 में प्रस्तुत किये गए हैं। अनुमान के अनुसार, जनवरी-मार्च 2020 तिमाही में लगभग 16.6 करोड़ लोगों को रोजगार मिला हुआ था। अप्रैल-जून 2020 में, पिछली तिमाही की तुलना में रोजगार में गिरावट लगभग 2.6 करोड़ रही, जिसमें 1.9 करोड़ पुरुष और 70 लाख महिलाएं थी (आकृति-1)। वहीं शहरी कृषि क्षेत्र में पिछली तिमाही की तुलना में अप्रैल-जून 2020 में नियोजित व्यक्तियों की संख्या में कोई बदलाव नहीं होने के कारण शहरी कृषि क्षेत्र स्थायी बना रहा। जबकि, द्वितीयक और तृतीयक क्षेत्रों में नौकरीयो का नुकसान हुआ (आकृति-2)। इससे सबसे ज्यादा प्रभावित सामान्य श्रमिक हुए। लॉकडाउन से पहले की तिमाही के दौरान नियोजित लगभग 1.9 करोड़ श्रमिकों में से लगभग 90 लाख ने अप्रैल-जून 2020 के दौरान अपनी नौकरी खो दी (आकृति- 3)। ‘आकृति-नियमित वेतन और वेतनभोगी’ श्रेणी में 1 करोड़ और ‘स्व-नियोजित' श्रेणी में लगभग 60 लाख लोगों की नौकरियाँ खत्म हो गयी। इनमें से कुछ को हो सकता है कि लॉकडाउन के कारण नौकरी छोड़ने को मजबूर किया गया हो और हो सकता है कि कुछ ने कोविड -19 के डर के कारण स्वेच्छा से ऐसा किया हो।

आकृति-2. 15 वर्ष और उससे अधिक आयुवर्ग के व्यक्तियों का उद्योग द्वारा नियोजन, 2020 में (दस लाख में)

आकृति- 3. व्यापक रोजगार स्थिति द्वारा 15 वर्ष और अधिक आयु वर्ग के रोज़गार आंकड़े, 2020 (दस लाख में)

वैसे लोग जो लॉकडाउन के दौरान भी श्रम बाजार में थे और नौकरी की तलाश कर रहे थे, इनमें से से करीब 3.6 करोड़ रोजगार पाने में असक्षम रहे। जबकि पिछले तिमाही में 1.7 करोड़ लोग बेरोज़गार थे, जिसमें 2 करोड़ के करीब अतिरिक्त वृद्धि हुई। इस आधार पर यह कहा जा सकता है कि अप्रैल-जून 2020 की तिमाही में बेरोजगारों की संख्या (आकृति-1) में उल्लेखनीय वृद्धि दर्ज की गयी है।

निष्कर्ष टिप्पणी

अनुमान बताते हैं कि अप्रैल-जून 2020 के दौरान शहरी क्षेत्र में पूर्ववर्ती तिमाही की तुलना में रोज़गारित व्यक्तियों की संख्या में लगभग 2.6 करोड़ की गिरावट दर्ज की गयी। लगभग 60 लाख महिलाए कार्य-बल से बाहर हो गई और बेरोजगारों की संख्या में लगभग 2 करोड़ की वृद्धि हुई। जब रोजगार की स्थिति की जांच की गई तो पाया गया कि इसमें सबसे ज्यादा प्रभावित सामयिक मज़दूर थे। उद्योग समूहों के संदर्भ में, द्वितीयक और तृतीयक क्षेत्र भी इससे बुरी तरह प्रभावित हुए जबकि कृषि क्षेत्र काफी हद तक अप्रभावित रहा। ऐसा इसलिए है क्योंकि लॉकडाउन का एक मजबूत प्रभाव क्षेत्र-केंद्रित रहा, जिसने ग्रामीण क्षेत्रों की तुलना में शहरी क्षेत्र को अधिक प्रभावित किया।

हालाँकि, अगर गाँवों में वापस चले गए लोग ग्रामीण कृषि या गैर-कृषि गतिविधियों में उनकी समा लेने की क्षमता के आधार पर शामिल हो गए होते तो शहरी नौकरी के नुकसान की भरपाई कुछ हद तक हो सकती थी। यदि कृषि क्षेत्र पहले से ही संतृप्त है और ग्रामीण गैर-कृषि गतिविधियां मांग-आपूर्ति दबाव4 पर काफी हद तक निर्भर हैं, ना कि मांग-प्रेरित घटकों पर- ऐसे में आय और उपभोग में घाटा वास्तव में बहुत बड़ा होगा। महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (मनरेगा)5 नौकरियां, ‘आपद रोजगार’ को दर्शाती हैं, में मई और जून 2020 में काफी वृद्धि की (आकृति-4)।

आकृति- 4. मनरेगा नौकरियों में काम करने वाले व्यक्तियों में साल-दर-साल वृद्धि (प्रतिशत में)

स्रोत: मनरेगा सार्वजनिक डेटा पोर्टल

इसके अलावा, शहरी क्षेत्रों में नौकरी गंवाने वाले सभी लोग ग्रामीण क्षेत्रों से ताजा प्रवासी नहीं होंगे। उनमें से कई लंबे समय से शहरी क्षेत्रों में ही रह रहे हैं, और ग्रामीण रिश्तेदारों के साथ थोड़ा ही जुड़ाव रखते हैं। इसलिए, ग्रामीण श्रम बाजार में उनकी संभावनाएँ काफी कम हो सकती हैं। क्या इन सब सबूतों के आधार पर एक शहरी रोजगार गारंटी कार्यक्रम की ज़िम्मेदारी तय नहीं की जा सकती ?

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टिप्पणियाँ:

  1. ऐसे व्यक्ति को श्रम-बल में गिना गया है यदि उन्होने संदर्भ सप्ताह के दौरान किसी भी दिन कम से कम एक घंटे के लिए काम मिला, या संदर्भ सप्ताह के दौरान वे किसी भी दिन कम से कम एक घंटे के लिए काम करने के लिए उपलब्ध थे।
  2. पीएलएफएस के अनुसार, कार्यबल "सर्वेक्षण की तारीख से पहले 7 दिनों के दौरान किसी भी दिन कम से कम 1 घंटे के लिए काम करने वाले व्यक्तियों की संख्या प्रदान करता है"।
  3. बेरोजगारी दर श्रम शक्ति में बेरोजगार व्यक्तियों का प्रतिशत है।
  4. वे गतिविधियाँ जो माँग द्वारा समर्थित नहीं होती हैं, या ऐसी गतिविधियाँ जो श्रम आपूर्ति में अधिकता की द्योतक होती हैं।
  5. मनरेगा एक ग्रामीण परिवार को एक वर्ष में 100 दिनों के मजदूरी-रोजगार की गारंटी देता है, जिसके वयस्क सदस्य निर्धारित न्यूनतम मजदूरी पर अकुशल वैयक्तिक काम करने को तैयार हैं।”

लेखक परिचय: अरुप मित्रा दिल्ली के आर्थिक विकास संस्थान (आइईजी) में अर्थशास्त्र के प्रोफेसर हैं। जितेन्द्र सिंह भारत सरकार के वित्त मंत्रालय के आर्थिक मामलों के विभाग के निदेशक हैं।

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