सामाजिक पहचान

शिशु जन्म का बढ़ता वित्तीय बोझ

  • Blog Post Date 17 अगस्त, 2021
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Prem Shankar Mishra

Population Research Centre, Institute for Social and Economic Change

premshankar@isec.ac.in

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T.S. Syamala

Population Research Centre, Institute for Social and Economic Change

syamala@isec.ac.in

कई भारतीय राज्यों में, अभी भी बड़ी संख्‍या में शिशुओं को घर पर ही जन्‍म दिया जाता है, और सार्वजनिक एवं निजी दोनों स्वास्थ्य सुविधाओं में संस्थागत प्रसव पर लोगों को अपनी जेब से अधिक पैसा खर्च करना पड़ता है। राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण के आंकड़ों का विश्लेषण करते हुए, प्रेम शंकर मिश्रा और टी. एस. स्यामला ने पिछले कुछ वर्षों के दौरान संस्थागत प्रसव संबंधी रुझानों तथा ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में और कमजोर वर्गों के बीच असमानताओं का पता लगाया है ।

 

भारत में सार्वजनिक स्वास्थ्य सुविधाओं में मातृ एवं शिशु स्वास्थ्य सेवाओं की निःशुल्क व्‍यवस्‍था की गई है जिनमें प्रसवपूर्व देखभाल, प्रसव देखभाल (संस्थागत प्रसव, या चिकित्सा केंद्र में प्रसव), प्रसवोत्तर देखभाल और शिशु देखभाल शामिल हैं। इन सेवाओं के प्रावधान को बढ़ावा देने और इनके समर्थन के लिए कई नीतियां और कार्यक्रम तैयार किए गए हैं। उदाहरण के लिए, जननी सुरक्षा योजना (जेएसवाई)1 और जननी शिशु सुरक्षा कार्यक्रम (जेएसएसके)2 मातृ और शिशु मृत्यु को कम करने के उद्देश्य से संस्थागत प्रसव को प्रोत्साहित करते हैं। इन कार्यक्रमों के कार्यान्वयन के कारण, भारत में संस्थागत प्रसव की संख्‍या में कई गुना वृद्धि हुई है (अंतर्राष्ट्रीय जनसंख्या विज्ञान संस्थान (आईआईपीएस) और आईसीएफ इंटरनेशनल, 2017)। हालांकि, 2019-20 एनएफएचएस (राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण)-53 रिपोर्ट से पता चलता है कि कई राज्यों में संस्थागत प्रसव का अनुपात राष्ट्रीय औसत से कम है, सार्वजनिक सुविधाओं में संस्थागत प्रसव के लिए जेब से (आउट ऑफ पॉकेट) किया जाने वाला व्‍यय उच्च है, और सी-सेक्शन (सीजेरियन) प्रसव की दर राष्ट्रीय औसत (आईआईपीएस, 2020) और आदर्श अंतर्राष्ट्रीय दर (विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्‍ल्‍यूएचओ), 2015) की तुलना में बहुत अधिक है।

इस पोस्ट में, हमने संस्थागत प्रसवों, संबंधित ओओपी खर्च और सी-सेक्शन प्रसवों के रुझानों को समझने के लिए भारत के प्रमुख राज्यों और संघ राज्‍य क्षेत्रों (यूटी) के ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में एनएफएचएस (2019-20 में एनएफएचएस-5, और 2015-16 में एनएफएचएस-4)4 के दो दौर के डेटा का विश्लेषण किया है।

संस्थागत प्रसवों में वृद्धि हुई है - यद्यपि यह पूरे देश में असमान है

कुल मिलाकर, संस्थागत प्रसव 2005-06 में 39% थे, जो बढ़कर 2015-16 में 79% और 2019-205 में 89% हो गए हैं। फिर भी, राज्यों/संघ राज्य क्षेत्रों में बड़े अंतर हैं। उदाहरण के लिए, गोवा, तेलंगाना, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, सिक्किम, महाराष्ट्र, गुजरात, जम्मू और कश्मीर तथा पश्चिम बंगाल में संस्थागत प्रसव दर 90% से अधिक है। दूसरी ओर, नागालैंड, मेघालय, बिहार, मणिपुर और असम जैसे राज्यों में संस्थागत प्रसव दर कम है।

कई राज्यों के अध्ययनों से पता चला है कि संस्थागत प्रसव को चुनने में खर्च एक बड़ी बाधा है (गर्ग और करण 2009, मोहंती और कस्तोर 2017, मिश्रा और मोहंती 2019)। यहां तक कि सार्वजनिक स्वास्थ्य सुविधाओं में भी महिलाओं को प्रसव के लिए पैसा खर्च करना पड़ता है।

आकृति 1. प्रमुख राज्यों/संघ राज्य क्षेत्रों में संस्थागत प्रसव (सार्वजनिक और निजी), 2015-16 और 2019-20

स्रोत: 2015-16 के आंकड़े एनएफएचएस-4 और 2019-20 के आंकड़े एनएफएचएस-5 के हैं।

आकृति में राज्‍यों के नाम (नीचे से ऊपर की ओर) नागालैंड, मेघालय, बिहार, मणिुपर, असम, मिजोरम, हिमाचल प्रदेश, त्रिपुरा, पश्चिम बंगाल, जम्‍मू एवं कश्‍मीर, गुजरात, महाराष्‍ट्र, सिक्किम, लद्दाख, आंध्र प्रदेश, दादरा एवं नगर हवेली तथा दमण एवं दीव, कर्नाटक, तेलंगाना, अंडमान एवं निकोबार द्वीप समूह, लक्षद्वीप, गोवा।

जेएसवाई कार्यक्रम का उद्देश्य शिशु जन्म के दौरान परिवारों द्वारा किए जाने वाले जेब से (ओओपी) खर्च को कम करना और सार्वजनिक स्वास्थ्य सुविधाओं में संस्थागत प्रसव को बढ़ावा देना है। लक्षित लाभार्थियों में सभी अनुसूचित जाति/जनजाति (एससी/एसटी) की महिलाएं और गरीबी रेखा से नीचे रहने वाली वे महिलाएं शामिल हैं जिनकी उम्र प्रसव के समय 19 वर्ष या उससे अधिक है। जननी सुरक्षा योजना के माध्‍यम से गर्भवती महिलाओं को प्रदान की जाने वाली वित्तीय सहायता के परिणामस्‍वरूप कमजोर समुदायों, विशेष रूप से अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति के बीच संस्थागत प्रसव दरों में वृद्धि हुई है (मिश्रा एवं अन्‍य 2021ए, आईआईपीएस, 2020)। आंकड़ों से संकेत मिलता है कि जेएसवाई ने 2005-06 और 2015-16 के बीच ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में 36.4% कवरेज प्राप्त किया, जिसमें एससी/एसटी के लिए यह आंकड़ा 44.3% और गैर-एससी/एसटी के लिए 33% था। हालाँकि, मिश्रा एवं अन्‍य के हालिया एक अध्ययन (2021बी) में यह पाया गया है कि ईएजी (एम्पावर्ड एक्शन ग्रुप)6 (57.3%) और गैर-ईएजी राज्यों (24%) के बीच इस योजना के कवरेज में भारी असमानता है।

संस्थागत प्रसव के लिए बढ़ता जेब (ओओपी) खर्च

भारत अपने सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का 1.2% हिस्‍सा स्वास्थ्य पर खर्च करता है, जो स्वास्थ्य सेवाओं की लागत के केवल 25% भाग को ही कवर करता है, शेष खर्च परिवार अपने दम पर वहन करने के लिए रह जाते हैं (मिश्रा और मोहंती 2019)। यह वित्तीय बोझ गरीब और कमजोर समुदायों की महिलाओं को संस्थागत प्रसव तक पहुंचने में रुकावट डालता है।

आकृति 2. संस्थागत प्रसव पर ओओपी खर्च (रुपये में), 2015-16 और 2019-20

नोट: (i) नीले और लाल गोले क्रमशः 2015-16 और 2019-20 में ओओपी खर्च को दर्शाते हैं। (ii) चार्ट में एनएफएचएस-5 के पहले चरण में सर्वेक्षण किए गए राज्यों और संघ राज्‍य क्षेत्रों को शामिल किया गया है।

एनएफएचएस-5 के अनुसार, संस्थागत प्रसव के लिए 2015-16 में ओओपी रु.4,178 था, जो 2019-20 में बढ़ कर रु.4,653 हो गया। ओओपी खर्च मणिपुर, मिजोरम, नागालैंड, सिक्किम, त्रिपुरा, पश्चिम बंगाल और केरल में अधिक होता है। ऐसा इसलिए है क्योंकि इनमें से अधिकांश राज्य पहाड़ी क्षेत्रों में स्थित हैं और यहां सड़क संपर्क और परिवहन सुविधाएं खराब हैं, तथा साथ ही एम्बुलेंस सेवाओं, परीक्षण के लिए प्रयोगशालाओं आदि के रूप में मजबूत सार्वजनिक स्वास्थ्य बुनियादी ढांचे की कमी है। इसके अलावा, साक्ष्‍य बताते हैं कि भारत में रोगियों को सार्वजनिक स्वास्थ्य सुविधाओं में अच्छी सेवाएं प्राप्त करने के लिए इनाम/उपहार देने की जरूरत पड़ती है (लैंड्रियन एवं अन्‍य 2020)।

ग्रामीण-शहरी अंतर

ओओपी खर्च के कारण वित्तीय बोझ शहरी परिवारों की तुलना में ग्रामीण परिवारों में अधिक है, जिसमें सार्वजनिक सुविधा में सामान्य प्रसव के लिए शहरी परिवार का औसत खर्च रु4,330 है जबकि इसकी तुलना में ग्रामीण परिवार का औसत खर्च रु.5,368 है (2019-20 के अनुसार)।

ओओपी का एक प्रमुख स्रोत सी-सेक्शन प्रसव की भारी लागत है, जिसके परिणामस्वरूप परिवारों को स्वास्थ्य पर बहुत अधिक खर्च करना पड़ता है। 2019-20 के दौरान औसतन सी-सेक्शन प्रसव (सभी प्रसव के अनुपात के रूप में) की दर निजी क्षेत्र के अंतर्गत ग्रामीण क्षेत्रों में 50.1% और शहरी क्षेत्रों में 54.5% थी और सार्वजनिक क्षेत्र के अंतर्गत ग्रामीण क्षेत्रों में 20.7% और शहरी क्षेत्रों में 28.9% थी।

आकृति 3. सार्वजनिक स्वास्थ्य सुविधाओं में प्रसव पर ओओपी खर्च में ग्रामीण-शहरी अंतर, 2019-20

स्रोत: एनएफएचएस-5 डेटा।

सी-सेक्शन प्रसव की दरों में चिंताजनक वृद्धि

औसतन, देश भर में सी-सेक्शन प्रसव की दर 2015-16 में 17% थी, जो बढ़कर 2019-20 में 23.1% हो गई है, जिसमें तेलंगाना, आंध्र प्रदेश, जम्मू और कश्मीर, केरल तथा पश्चिम बंगाल चार्ट में सबसे ऊपर हैं। यह रुझान सार्वजनिक स्वास्थ्य के लिए चिंता का विषय है क्योंकि अंतरराष्ट्रीय स्वास्थ्य समुदाय द्वारा अनुशंसित दर 10-15% है (डब्ल्यूएचओ, 2015)। कुल मिलाकर, 2019-20 में 53.1% सी-सेक्शन प्रसव निजी सुविधाओं में हुए जो कि 2016 के 42% की तुलना में वृद्धि दिखाता है। सिक्किम, असम, कर्नाटक और त्रिपुरा में, 50% से अधिक सी-सेक्शन प्रसव निजी सुविधाओं में होते हैं। हालांकि, कुछ राज्यों में, सी-सेक्शन का प्रचलन अभी भी काफी कम है-उदाहरण के लिए, बिहार (3.6%), नागालैंड (8%), मेघालय (9.2%), मिजोरम (9.8%), और असम (15%) में, क्‍योंकि यहां इन प्रक्रियाओं को पूरा करने के लिए आवश्‍यक स्वास्थ्य बुनियादी ढांचा खराब है तथा मानव संसाधन की कमी है।

आकृति 4. सी-सेक्शन प्रसव 2015-16 और 2019-20

स्रोत: 2015-16 के आंकड़े एनएफएचएस-4 से हैं, और 2019-20 के आंकड़े एनएफएचएस-5 के हैं।

सी-सेक्शन से जुड़े उच्च ओओपी खर्च गरीब और कमजोर परिवारों को कर्ज और अत्यधिक गरीबी में धकेल सकते हैं। महिलाओं में सी-सेक्शन प्रसव की उच्च दर को कई सामाजिक आर्थिक, मनोवैज्ञानिक और स्वास्थ्य समस्याओं का कारण माना जाता है (भाटिया एवं अन्‍य 2020)। लैंसेट (2018) की एक श्रृंखला ने बताया कि सी-सेक्शन द्वारा प्रसव अल्पकालिक और दीर्घकालिक स्वास्थ्य प्रभावों और स्वास्थ्य देखभाल लागत दोनों से जुड़ा है। इसके कारण सामान्य प्रसव की तुलना में, महिलाओं और बच्चों में गंभीर बीमारियां और मृत्यु दर बढ़ गई है।

निजी क्षेत्र में सी-सेक्शन प्रसव की दरों में यह वृद्धि विभिन्न कारणों से है जिनमें से सभी चिकित्सा संबंधी करण नहीं हैं,क्योंकि महिलाओं की विशेषताएं और प्राथमिकताएं भी मायने रखती हैं। हालांकि, साक्ष्‍यों से पता चलता है कि निजी सुविधाओं में अक्सर सी-सेक्शन प्रसव के लिए चिकित्सक द्वारा जोर डाला जाता है क्‍योंकि इसके लिए उनको अनुचित वित्तीय प्रोत्साहन मिलता है (भाटिया एवं अन्‍य 2020)।

आकृति 5. निजी सुविधाओं में सी-सेक्शन प्रसव, 2015-16 और 2019-20

विचार-विमर्श

भारत में, विभिन्न सामाजिक-आर्थिक वर्गों में मातृ एवं शिशु स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुंच और इनके उपयोग में असमानता का मुख्‍य कारण संस्थागत प्रसव में बढ़ता हुआ वित्तीय बोझ है, यहां तक ​​कि मुफ्त सार्वजनिक स्वास्थ्य सुविधाओं में भी यही स्थिति है।

राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन (एनएचएम) में न्‍याय-संगत, सस्ती और गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य सेवाओं तक सार्वभौमिक पहुंच की परिकल्पना की गई है, जो लोगों की जरूरतों विशेष रूप से महिलाओं और बच्चों की जरूरतों के प्रति जिम्‍मेदार और अनुक्रियाशील है। एनएचएम के तहत, जेएसवाई और जेएसएसके कार्यक्रमों ने संबंधित ओओपी खर्च को कम करने और उनके स्वास्थ्य परिणामों में सुधार करने के लिए स्वास्थ्य सेवाओं में महिलाओं और बच्चों को वित्तीय सहायता प्रदान की है। हालांकि, इन कार्यक्रमों में कमजोरियों जैसे कि सार्वभौमिक कवरेज की कमी, 19 वर्ष से कम उम्र की महिलाओं और दो से अधिक बच्चों वाली महिलाओं को शामिल नहीं करना, कोई रेफरल परिवहन की सुविधा न होना, अच्छी गुणवत्ता वाली आपातकालीन प्रसूति और व्यापक आपातकालीन प्रसूति देखभाल की कमी, सार्वजनिक स्वास्थ्य बुनियादी ढांचे और मानव संसाधनों में क्षेत्रीय असमानता, और इक्विटी-आधारित कार्यान्वयन की कमी के कारण भारत ने अभी तक सार्वभौमिक स्वास्थ्य कवरेज (सतत विकास लक्ष्य 3) के अपने लक्ष्यों को हासिल नहीं किया है। इसलिए, रणनीतिक कार्यान्वयन और जेएसवाई और जेएसएसके जैसे कार्यक्रमों के माध्यम से मांग-पक्षीय वित्‍तपोषण के लिए बेहतर रूप से बनाई गई प्रणाली महत्वपूर्ण है। कमजोर वर्गों के बीच जेएसवाई कवरेज को बढ़ाने और कम कवरेज वाले क्षेत्रों में संसाधनों और सामुदायिक स्वास्थ्य कार्यबल को जुटाने की आवश्यकता है। इसके अलावा, इस कार्यक्रम की प्रभावशीलता को बढ़ाने के लिए, सामुदायिक स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं को प्रशिक्षित किया जाना चाहिए और व्यक्तिगत एवं घरेलू स्तर पर जानकारी फैलाने और जागरूकता बढ़ाने के लिए लगातार प्रयास किए जाने चाहिए।

सी-सेक्शन प्रसवों की संख्‍या को समग्र रूप से कम करने के लिए, विशेष रूप से निजी क्षेत्र में, सरकार को इस मुद्दे की फिर से जांच करनी चाहिए और गर्भावस्था के बाद के चरणों में किसी भी जटिलता से बचने हेतु महिलाओं को पूर्ण प्रसव-पूर्व देखभाल सेवाएं प्राप्त करने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए। निजी क्षेत्र में अनावश्यक सी-सेक्शन प्रसव के लिए दिए जाने वाले अनुचित प्रोत्साहन के मुद्दे पर भी ध्‍यान देने की आवश्यकता है। ऐसा, अनियमित निजी क्षेत्र के प्रदाताओं, ​​सी-सेक्शन प्रक्रियाओं के लिए चिकित्सक द्वारा प्रेरित मांग और निजी अस्पतालों में होने वाले अन्य भ्रष्‍टाचारों पर निगरानी करने के माध्यम से किया जा सकता है।

सार्वजनिक स्वास्थ्य बुनियादी ढांचे और मानव संसाधनों के विकास के माध्यम से आपूर्ति-पक्ष तंत्र में सुधार करने से मातृ एवं बाल स्वास्थ्य सेवाओं की पहुंच और उपयोग में वृद्धि, और जेब (ओओपी) से खर्च में कमी, तथा निजी क्षेत्र की उपचार सुविधाओं का लाभ उठाया जा सकता है। सरकार को मौजूदा योजनाओं की निगरानी और मूल्यांकन और उनके कामकाज संबंधी मुद्दों पर ध्‍यान देते हुए जांच और संतुलन की रणनीति का पालन करना चाहिए, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि एनएचएम के न्याय-संगत, सस्ती और गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य सेवाओं के लक्ष्य को हासिल किया जा सके।

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टिप्पणियाँ:

  1. जननी सुरक्षा योजना (जेएसवाई) एक सुरक्षित मातृत्व योजना है, जिसे राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के तहत 2005 में शुरू किया गया था। इस योजना के अंतर्गत सशर्त नकद हस्तांतरण के माध्यम से संस्थागत प्रसव को बढ़ावा दिए जाने का प्रयास किया जाता है जिसमें गरीब गर्भवती महिलाओं को अपने बच्चों को सार्वजनिक स्वास्थ्य सुविधाओं में जन्‍म देने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है।
  2. जननी शिशु सुरक्षा कार्यक्रम (जेएसएसके) भारत सरकार द्वारा शुरू की गई एक योजना है जिसके अंतर्गत ग्रामीण और शहरी दोनों क्षेत्रों में सार्वजनिक स्वास्थ्य सुविधाओं में गर्भवती महिलाओं को मुफ्त और नकदी रहित सेवाएं प्रदान की जातीं हैं जिनमें सामान्य प्रसव और सीजेरियन ऑपरेशन तथा बीमार, नवजात शिशुओं (जन्म के 30 दिन बाद तक) की स्‍वास्‍थ्‍य देखभाल शामिल है।
  3. 22 राज्यों/संघ राज्‍य क्षेत्रों (यूटी) के लिए जारी किया गया।
  4. एनएफएचएस-5 प्रत्येक राज्य/संघ राज्य क्षेत्र के लिए भारत में जनसंख्या, स्वास्थ्य और पोषण संबंधी जानकारी प्रदान करता है। एनएफएचएस-4 के समान ही, एनएफएचएस-5 प्रमुख मातृ एवं शिशु स्वास्थ्य सेवाओं से संबंधित कई संकेतकों के लिए जिला-स्तरीय अनुमान भी प्रदान करता है। हम 22 राज्यों/संघ राज्‍य क्षेत्रों से संबंधित सूचना प्रस्तुत करते हैं, जिनके लिए आंकड़े उपलब्ध हैं।
  5. एनएफएचएस-5 की तथ्‍यात्‍मक जानकारी के अनुसार जिन राज्यों के आंकड़े उपलब्ध हैं।
  6. सामाजिक आर्थिक रूप से पिछड़े आठ राज्य - बिहार, छत्तीसगढ़, झारखंड, मध्य प्रदेश, ओडिशा, राजस्थान, उत्तराखंड और उत्तर प्रदेश को एमपावर्ड एक्‍शन ग्रुप (ईएजी) राज्यों के रूप में जाना जाता है। ये राज्‍य जनसांख्यिकीय परिवर्तन की दृष्टी से पिछड़े हुए हैं, और यहां भारत में शिशु मृत्यु दर सबसे अधिक है।

लेखक परिचय : प्रेम शंकर मिश्रा जनसंख्या अनुसंधान केंद्र, सामाजिक और आर्थिक परिवर्तन संस्थान, बैंगलोर में वरिष्ठ अनुसंधान फेलो हैं। टी.एस. स्यामाला एसोसिएट प्रोफेसर और जनसंख्या अनुसंधान केंद्र, सामाजिक और आर्थिक परिवर्तन संस्थान, बैंगलोर के प्रमुख हैं।

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