समष्टि अर्थशास्त्र

कोविड-19: क्या हम लंबी दौड़ के लिए तैयार हैं? - भाग 1

  • Blog Post Date 06 अप्रैल, 2020
  • दृष्टिकोण
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कोविड-19 के प्रसार की संभावित पुनरावृत्ति को रोकने के लिए यह लॉकडाउन, संभवतः भविष्य में किए जाने वाले कई लॉकडाउन में से पहला हो सकता है, इसलिए नीति निर्माताओं को इससे प्रतिकूल रूप से प्रभावित व्यक्तियों को राहत प्रदान करने के लिए तैयार रहना होगा। इसे ध्यान में रखते हुए, लेखक एक व्यापक दृष्टिकोण का प्रस्ताव करते हैं जिसमें अगले 24 महीनों में होने वाले किसी भी लॉकडाउन के दौरान राशन कार्ड धारक सभी परिवारों को प्रदान किए जाने वाले वस्‍तु रूपी अंतरणों और नकद सहायता के एक संयोजन के लिए तर्क दिया गया है।

 

सार्स-कोव-2 वायरस के बारे में बहुत कुछ अज्ञात है, जो इस नए कोरोनावायरस रोग (कोविड -19) का कारण बन रहा है, लेकिन दुनिया के प्रमुख महामारी विज्ञानियों का मानना ​​है कि इसका प्रसार-प्रक्रिया लंबे समय तक चलेगी। इसके टीके को उपलब्ध होने में कम से कम 18 महीने लगेंगे, और उसके बाद भी, पूरी दुनिया की आबादी को कवर करने के लिए टीके के उत्पादन को बढ़ाने में एक लंबा समय लगेगा। तब तक, या जब तक पर्याप्त लोग इस वायरस से प्रतिरक्षित नहीं हो जाते, हम बीमारी के प्रकोप को कई बार देख सकते हैं, जिसके कारण संक्रमण और मृत्यु दर में भारी वृद्धि हो सकती है। कई विशेषज्ञों का यह भी मानना ​​है कि सार्स-कोव-2 मौसमी वायरस है, जो सर्दी में कोविड-19 मामलों में भारी वृद्धि कर सकता है।

संक्षेप में, अगले दो वर्षों में, दुनिया भर की सरकारों को इस बीमारी द्वारा बार-बार होने वाले प्रकोपों ​​को समाप्‍त करने पर संसाधनों को खर्च करना होगा, और अक्सर इसे शहरों, क्षेत्रों, या पूरे देशों को ‘लॉक डाउन’ के माध्‍यम से किया जाएगा। जैसा कि हमने अब तक कुछ ही दिनों के राष्ट्रीय लॉकडाउन में देखा है, ये लॉकडाउन भारी आर्थिक लागतों के साथ आते हैं और कई कमजोर लोगों को इसके कारण भारी कठिनाइयां उठानी पड़ती हैं। नीति निर्माताओं को लॉकडाउन की लागत को कम करने के साथ-साथ प्रतिकूल रूप से प्रभावित व्यक्तियों को राहत प्रदान करने के लिए भी तैयार रहना होगा। इसके अलावा, जो अव्यवस्था, दहशत और चिंता हमने पिछले कुछ दिनों में देखी हैं उसे रोकने हेतु उन्‍हें इन उपायों की घोषणा लॉकडाउन से पहले ही करने के लिए तैयार होना होगा।

नीति प्रतिक्रियाओं के लिए मार्गदर्शक सिद्धांत

वैश्विक महामारी के परिभाषित पहलुओं में से एक है इसके साथ जुड़ी हुई आधारभूत अनिश्चितता। सामान्य ज्ञान और प्रायोगिक साक्ष्य दोनों यह स्थापित करते हैं कि लगभग सभी लोग अपने जीवन में अनिश्चितता का सामना करने के लिए बाध्य हैं। एक महत्वपूर्ण सिद्धांत जो सरकार की नीतियों में होनी चाहिए वह है, ऐसे कठिन समय में अनिश्चितता को और न बढ़ाना। कमजोर लोगों को सुरक्षा उपलब्ध कराने के लिए प्रतिबद्ध पूर्व-स्थापित नीति ढांचा होना चाहिए जो दूरदर्शी भी हो। इसे व्यापक रूप से प्रचारित किया जाना चाहिए ताकि प्रभावित लोगों को पता चले कि उनके हक क्या है और वे उन तक कैसे पहुंच सकते हैं।

भौतिक और मनोवैज्ञानिक दोनों रूप से, नीतियों की कमजोरियों को एक व्यापक दृष्टिकोण से देखने की आवश्यकता है कि बार-बार लॉकडाउन की स्थिति में जनसंख्या का एक बहुत बड़ा हिस्‍सा इससे प्रभावित होगा। कई व्यक्ति जैसे कि प्रवासि, दिहाड़ी मजूदर, आकस्मिक मजदूर, अनौपचारिक क्षेत्र के श्रमिक और कई स्व-नियोजित व्यक्तिय, जिनके पास पर्याप्त व्यक्तिगत बचत के रूप में कोई सुरक्षित साधन नहीं है, उनकी आय में तेजी से कमी आएगी जिसके कारण वे संभावित रूप से भूख, बेघर होने और स्‍वास्‍थ्‍य संबंधी जैसी कठिनाइयों का सामना करेंगे। इस अभाव के भौतिक परिणाम जितने दुर्बलकारी हैं, इससे उत्‍पन्‍न मनोवैज्ञानिक क्षतियां भी उतनी ही विस्‍मयकारी हैं। विशेष रूप से, अभाव के इस प्रासंगिक समय का संज्ञानात्मक स्‍तर और निर्णय लेने पर गंभीर प्रभाव पड़ता है, जो कमजोर समूहों (मुलैनाथन एवं शफिर 2013) हेतु प्रतिकूल परिणामों का कारण बनते हैं।

इसे ध्यान में रखते हुए, हम एक व्यापक दृष्टिकोण का प्रस्ताव करते हैं जिसमें अगले 24 महीनों में होने वाले किसी भी लॉकडाउन के दौरान राशन कार्ड धारक सभी परिवारों को प्रदान किए जाने वाले वस्‍तु रूपी अंतरणों और नकद सहायता के एक संयोजन के लिए तर्क दिया गया है। भविष्य में लंबे समय तक और कई लॉकडाउन की संभावनाओं को देखते हुए, हमारे प्रस्तावित अंतरण सरकार द्वारा घोषित उपायों की तुलना में अधिक महत्वाकांक्षी हैं। हमें लगता है कि यह उन लाखों भारतीयों के लिए पर्याप्त सुरक्षा प्रदान करने के लिए महत्वपूर्ण है, जिनके पास लंबे समय तक आर्थिक निष्क्रियता के दौरान जीविका चलाने के लिए बचत उपलब्‍ध नहीं है।

नकद और वस्‍तु रूपी अंतरण के लिए यह महत्वपूर्ण है कि वे पूरक के रूप में काम करें, विकल्प के रूप में नहीं। लॉकडाउन अक्सर जमाखोरी, आपूर्ति श्रंखलाओं में व्यवधान और मूल्य में उतार-चढ़ाव के साथ आते हैं, जो किसी भी नकद अंतरण के मूल्य को समाप्‍त कर सकते हैं। यह सुनिश्चित करने के लिए कि ये अंतरण वास्तव में लोगों को राहत प्रदान करें, हम आवश्यक वस्तुओं के प्रवाह को बनाए रखने के लिए सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) को मजबूत करने और आपूर्ति श्रंखलाओं के प्रबंधन के महत्व पर भी बल देते हैं।

इन नीतियों के कार्यान्वयन के लिए सरकार के कई स्तरों पर समन्वयन की आवश्यकता होती है। हम सलाह देते हैं कि न केवल मौजूदा महामारी बल्कि भविष्य की महामारियों को ध्‍यान में रखते हुए सरकारी प्रतिक्रियाओं का प्रबंधन करने हेतु एक मजबूत संस्थागत बुनियादी ढांचा तैयार किया जाए।

इसके अलावा, नीतियों को उन विशिष्ट समूहों पर ध्यान दिया जाना चाहिए जो लॉकडाउन की आर्थिक लागतों हेतु अधिक असुरक्षित हैं जैसे कि महिलाएँ और बच्चे, प्रवासी श्रमिक, दिहाड़ी मजदूर और स्व-नियोजित श्रमिक, आदि, जिनमें से कई को अपना हक भी पाने के लिए संघर्ष करना पड़ता है।

एक सामाजिक सुरक्षा जाल बनाना

लंबी अवधि की अनिश्चितता, सार्स-कोव-2 के प्रकोप और लॉकडाउन की संभावित पुनरावृत्ति, और उनसे जुड़ी महत्वपूर्ण भौतिक और मनोवैज्ञानिक लागतों को देखते हुए, हम यह सलाह देते हैं कि जिन क्षेत्रों में लॉकडाउन किया गया है वहां सभी परिवारों को मासिक नकद अंतरण किया जाए, और इसे पीडीएस प्रणाली के माध्यम से भोजन और अन्य आवश्यक वस्तुओं के अंतरण के द्वारा समर्थन दिया जाए।

नकद अंतरण:

  1. लॉकडाउन की अवधि के दौरान, हम लॉकडाउन के क्षेत्र में सभी राशन कार्ड धारक परिवारों को मासिक नकद अंतरण की सलाह देते हैं। हम निश्चित रूप से जानते हैं कि मासिक नकद अंतरण की किसी भी सिफारिश के संबंध में पहला सवाल यह उठेगा कि इसकी उचित राशि क्या है। इस संबंध में हमारा सुझाव है कि यह राशि परिवार के आकार के अनुसार अलग-अलग होनी चाहिए, और चार सदस्‍यों के परिवार के लिए, हमारा सुझाव (गरीबी रेखा की गणना के आधार पर) है कि शहरी क्षेत्रों में मासिक अंतरण की यह राशि ₹4,300 और ग्रामीण क्षेत्रों में ₹2,600 होनी चाहिए। क्या यह राशि बहुत अधिक है? हमारा मानना है कि ऐसा नहीं है। नीचे की गणनाओं में हम दिखाते हैं कि यदि लॉकडाउन के कारण होने वाली आय-हानि के आधार पर अंतरण किया जाता, तो यह राशि बहुत अधिक होता।
  2. चूँकि आधार कार्ड को राशन कार्ड और बैंक खाते दोनों के साथ जोड़ दिया गया है, इसलिए सीधे यह अंतरण प्रत्येक राशन कार्ड से जुड़े बैंक खातों में किए जा सकते हैं। इस चिंता का समाधान करने के लिए कि राशन कार्ड और आधार कार्ड का उपयोग किए जाने से ऐसे कुछ लोग छूट सकते हैं जिनके पास ये दोनों नहीं हैं, सरकार को उन व्यक्तियों से संबंधित भुगतान के दावों पर कार्रवाई करने के लिए कदम उठाने चाहिए जो अपने अधिकारों तक पहुंचने में समर्थ नहीं हैं। दावों पर कार्रवाई की सुविधा के लिए एक हेल्पलाइन स्थापित की जा सकती है, और इन्हें जल्द से जल्द हल किया जाना चाहिए। ग्रामीण क्षेत्रों में, जिनके पास आवश्यक दस्तावेज नहीं हैं उन लोगों के दावों पर कार्रवाई करने की जिम्मेदारी ग्राम पंचायतों को दी जानी चाहिए। सरपंच (ग्राम प्रधान) को ऐसे छूटे हुए व्यक्तियों की सूची तैयार करने के लिए जिम्मेदारी दी जा सकती है जिन्‍हें बैंक प्रतिनिधियों द्वारा घर पर नकद दी जाएगी।
  3. बैंक खातों में धन अंतरित करने के अलावा, यह सुनिश्चित करने के लिए कदम उठाए जाने चाहिए कि लोगों को नकद मिल रहा है। शहरी क्षेत्रों में बैंकों और एटीएम (स्वचालित टैलर मशीन) पर अधिक भीड़ को रोकने के लिए, लोगों को पैसे निकालने हेतु आधार कार्ड नंबरों पर आधारित सरल नियमों का उपयोग किया जा सकता है। ग्रामीण क्षेत्रों में, हर महीने प्रत्येक गांव में नकद लाने के लिए बैंक के प्रतिनिधियों या मोबाइल बैंकिंग वैन का उपयोग किया जा सकता है। चूंकि इस समय बायोमेट्रिक प्रमाणीकरण जोखिम भरा हो सकता है, इसलिए इस आवश्यकता के आसपास काम करने के लिए विशिष्ट कदम उठाए जाने चाहिए। उदाहरण के लिए, बैंकिंग प्रतिनिधि पहले किसी व्यक्ति की पहचान की पुष्टि उसके फोटो पहचान पत्र (जैसे वोटर आईडी कार्ड) से कर सकते हैं, और फिर नकद देने से पहले आधार कार्ड की तस्वीर ले सकते हैं। बैंकिंग प्रतिनिधि लाभार्थियों के आधार कार्ड विवरण के साथ बाद में बैंक में लेनदेन की प्रक्रिया को पूरा कर सकते हैं।
  4. 23 करोड़ राशन कार्ड धारकों तथा औसतन चार सदस्‍यों के परिवार को मिलाकर वर्तमान तीन सप्ताह के लॉकडाउन को कवर करने की कुल लागत लगभग ₹55000 करोड़ या राजकोषीय घाटे (सकल घरेलू उत्पाद का 3.5% पर) के लगभग दसवें हिस्‍से के बराबर आएगी। प्रस्तावित अंतरण जीडीपी के घाटे को 0.3 प्रतिशत अंक से 3.8% तक बढ़ा देगा। बेशक, उत्पादन के पूरी तरह से बंद किए जाने के कारण इस अवधि के कर संग्रह पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा, जिससे घाटे में वृद्धि ही हागी। इस अंतरण को किन्‍हीं भी स्रोतों के माध्‍यम से वित्तपोषित करना, चाहे वह प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष कर हों या व्यापार अथवा घरेलू और अंतर्राष्ट्रीय उधार हों, निश्चित रूप से चुनौतीपूर्ण होगा, लेकिन ये लागतें एक पूर्ण रूप से फैली हुई महामारी की लागतों के सामने तुच्‍छ हैं। हमें लगता है कि एक मामूली अंतरण, जो गरीबों को बहुत कम समय के लिए मदद करे और उन्हें संक्रामक वातावरण में काम करने के लिए मजबूर करे, उस उदार अंतरण की तुलना में दीर्घकालिक रूप से उच्च लागतपूर्ण प्रभाव डालेगा जो लोगों को घर पर सुरक्षित रूप से रहने की अनुमति दे, बीमारी के प्रसार को रोके और अर्थव्यवस्था में बीमार व्यक्तियों के काम करने के दिन की संख्या को कम करे।
  5. यदि लॉकडाउन केवल विशिष्ट राज्यों या जिलों में ही होता है तो नकद स्तांतरण को सभी प्रभावित क्षेत्रों में रह रहे और काम कर रहे परिवारों तक विस्तारित किया जाना चाहिए। एक उदाहरण के रूप में, यदि दिल्ली को एक महीने के लिए लॉकडाउन किया जाए, तो राशन कार्ड धारक सभी 19 लाख परिवारों को ₹4,300 के अंतरण करने पर उस माह ₹817 करोड़ की कुल लागत आएगी।
  6. इस महामारी के दौरान आर्थिक अनिश्चितता को कम करने के लिए नकद अंतरण की उपलब्धता की घोषणा पहले से की जानी चाहिए।

नकद अंतरण राशि की गणना करने के लिए कई दृष्टिकोण हैं। जबकि हमारी सिफारिश रंगराजन समिति द्वारा निर्धारित गरीबी रेखा पर आधारित है, यहां हम डूबी हुई कमाई को वैकल्पिक रूप से वित्तीय संकट का एक माप मानते हैं क्योंकि लॉकडाउन के दौरान कई दिहाड़ी मजूदर, खासकर शहरी क्षेत्रों में काम नहीं कर पाएंगे। मनरेगा (महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम) न्यूनतम मजदूरी ग्रामीण क्षेत्रों में ₹202 प्रति दिन है, और शहरी क्षेत्रों के लिए हम इस न्यूनतम मजदूरी को 25% अधिक करके समायोजित करते हैं क्योंकि शहरी क्षेत्रों में औसत आकस्मिक श्रमिक मजदूरी ग्रामीण मजदूरी (आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण, 2017-18) की तुलना में लगभग 25% अधिक है। इस प्रकार इसके संगत शहरी मजूदरी ₹251 प्रति दिन आती है। शहरी क्षेत्रों में महिला श्रम शक्ति भागीदारी (एफएलएफपी) के 20% दर और ग्रामीण क्षेत्रों में 25% को देखते हुए और प्रत्येक परिवार में कमाऊ सदस्‍य के रूप में एक पुरुष को मानते हुए, हमें सामान्‍य रूप से चार सदस्‍यों के एक परिवार के लिए शहरी क्षेत्रों में ₹7,220 और ग्रामीण क्षेत्रों में ₹6,060 मासिक घरेलू आय प्राप्त होती है। यदि हम पीडीएस (उपभोक्ता मामलों के विभाग से खुदरा मूल्य डेटा के आधार पर ₹32 प्रति किलो की औसत बाजार दर पर 20 किलो अनाज) के माध्यम से प्रदान किए जाने वाले हाल ही में घोषित अतिरिक्त राशन के मुद्रीकृत मूल्य को घटा दें तो हम प्रति शहरी परिवार हेतु लगभग ₹5,400 और ग्रामीण परिवार हेतु ₹4,200 के नकद हस्‍तांतरण पर पहुंचते हैं। यदि हम दिहाड़ी मजदूरों की न्यूनतम मजदूरी के बजाय औसत कमाई का उपयोग करें, तो अंतरण का आंकड़ा और भी अधिक होगा।

वस्‍तु रूपी अंतरण:

  1. नकद अंतरण के साथ-साथ अनाज, दाल और अन्य आवश्यक वस्तुएं प्रदान करने के माध्‍यम से भी इसे समर्थित किया जाना चाहिए। एक लॉकडाउन के दौरान, लोगों का नकद के लिए बैंक या एटीएम जा पाना मुश्किल हो जाता है, और आपूर्ति श्रंखला बाधित हो जाती है, जिसके कारण आवश्यक वस्तुओं की कीमतें बढ़ जाती हैं। सरकार ने तीन महीनों के लिए पीडीएस प्रणाली के माध्यम से परिवारों को अनाज और दालों का मुफ्त राशन देने की घोषणा पहले ही कर दी है। हम इन उपायों का समर्थन करते हैं और सुझाव देते हैं कि इन्हें लॉकडाउन की स्थिति में आगे भी जारी रखा जाए। हालाँकि, इस समय बॉयोमीट्रिक प्रमाणीकरण जोखिम को और अधिक बढा सकता है अत: यदि उचित हो तो इसे निलंबित कर दिया जाना चाहिए, जैसा कई राज्य पहले ही कर चुके हैं।
  2. चूंकि लॉकडाउन की अवधि के दौरान लोगों (विशेषकर बुजुर्गों) को पीडीएस दुकानों तक जाने में दिक्कत हो सकती है, अत: इन वस्‍तुओं को पीडीएस ट्रकों के द्वारा घरों तक पहुंचाया जा सकता है।
  3. पीडीएस दुकानों की भूमिका को नए सिरे से तय करने की जरूरत है। अनाज और दालों के अलावा, भारतीय परिवारों के लिए आवश्यक आलू, प्याज, टमाटर जैसी सब्जियों और नमक जैसी वस्‍तुओं को इन उचित मूल्य की दुकानों के माध्यम से उपलब्ध कराया जाना चाहिए और यदि संभव हो तो कम दरों पर।
  4. कई बार और लंबे समय तक लॉकडाउन किए जाने की स्थिति में, घरों को चलाने के लिए आवश्यक वस्‍तुओं की सूची को बढ़ाना होगा। नीतिगत अनिश्चितता को कम करने के लिए, आवश्यक वस्तुओं की एक व्यापक सूची तैयार करने की आवश्यकता है, जिसमें घर चलाने के लिए आवश्यक सभी सामान शामिल हैं (उदाहरण के लिए, भोजन के अलावा अन्य आवश्यकताएं जैसे कि बिजली और नलसाजी संबंधी आवश्‍यकता, और पैकेट भोजन)।

आवश्यक वस्तुओं की आपूर्ति का समर्थन

नकद और वस्‍तु रूपी अंतरण के प्रावधान के साथ भोजन और दवाओं जैसे आवश्यक सामानों की पर्याप्त आपूर्ति को बनाए रखना भी जरूरी है। भारत में आपूर्ति श्रंखला लंबी और गैर-स्वचालित है। वे उपज को खेतों से एकत्र करते हैं और उसे थोक बाजार तक ले जाते हैं और फिर छोटे स्थानीय विक्रेताओं के लिए इसे अलग-अलग किया जाता है। सबसे पहले तो ये बाजार खुद ही वायरस के फैलने के संभावित स्थान बन सकते हैं। दूसरा, लॉकडाउन के कारण मंडी तक एकत्रीकरण और मंडियों से आगे वितरण दोनों प्रभावित हो सकते हैं।

वर्तमान लॉकडाउन में दुकानों में सामान तथा सब्जी एवं फलों की आपूर्ति में कमी आने, और ई-कॉमर्स की गड़बड़ियों ने भविष्य के लिए योजना बनाने में महत्वपूर्ण सबक दिए हैं। लॉकडाउन की प्रकृति के बारे में अनिश्चितता और इसके अपवादों के कारण जमाखोरी और जल्‍दी खराब होने वाले कुछ सामानों की कीमतों में वृद्धि हुई है और कुछ अन्‍य वस्‍तुओं की कीमत में गिरावट भी आई है। आकृति 1 भारतीय परिवारों द्वारा उपयोग किए जाने वाली कुछ आवश्यक वस्तुओं - टमाटर, प्याज, आलू, अनाज, दालें, तेल और चीनी के लिए मार्च 2020 के महीने के दौरान औसत खुदरा कीमतों को चित्रित करता है1। यह देखा गया है कि लॉकडाउन की घोषणा के तुरंत बाद तीन वस्तुओं - टमाटर, प्याज और आलू (टीओपी – टोमॅटो, ऑन्यन, पोटैटो) की कीमतों में तेज उछाल आया। ये वस्तुएं भारतीय परिवारों द्वारा अक्सर उपयोग की जाने वाली नश्‍वर/अर्ध-नश्‍वर वस्‍तुएं हैं, और स्थानीय बाजारों में खरीदी जाती हैं और इनकी कीमतों में रोजाना परिवर्तन होता है। अन्य वस्तुओं की कीमतों में अभी तक बढ़ोतरी नहीं हुई है, मुख्‍य रूप से इसलिए क्योंकि वे शीघ्र खराब होने वाली नहीं हैं और पैक किए गए रूप में उपलब्धता के कारण इनका मूल्‍य अधिक स्थिर रहता है, इसलिए कीमतें अक्सर बदलती नहीं हैं2। यदि आपूर्ति श्रंखलाओं को अच्छी तरह से प्रबंधित नहीं किया जाए तो विशेषकर उन वस्तुओं की कीमतों में भी तेज उछाल आने की संभावना है, जो नियमित रूप से घरों में उपयोग की जाती हैं। ऐसा होने पर नकद अंतरण का लाभ काफी हद तक खत्म हो जाएगा।

आकृति 1. आवश्यक खाद्य पदार्थों की मार्च 2020 में कीमतें

स्रोत: उपभोक्ता मामलों के विभाग, और लेखकों द्वारा 75 शहरों पर आधारित गणना

  1. संयुक्त मंडियों के मौजूदा मॉडल को फिर से आकार देने की आवश्यकता है और इसके स्‍थान पर ऐसी व्‍यवस्‍था होनी चाहिए जिसके अंतर्गत ट्रकों द्वारा अलग-अलग छोटी-छोटी जगहों पर सामान उतारा जाए। भीड़भाड़ से बचने के लिए किसी स्थान पर अनुमति प्राप्त ट्रकों की संख्या को सीमित किया जा सकता है। इन स्थलों पर आगमन की योजना के लिए मध्य प्रदेश में प्रयुक्‍त की जाने वाली एसएमएस आधारित पंजीकरण प्रणाली का उपयोग एक मॉडल के रूप में किया जा सकता है। कोविड-19 परीक्षण प्रोटोकॉल का विस्तार करके इसमें आवश्यक वस्तुओं की आपूर्ति में लगे हुए श्रमिकों को भी शामिल किया जाना चाहिए, जो वायरस को अनुबंधित करने के उच्च जोखिम में हैं और सामुदायिक संचरण को कम करने के लिए नियमित रूप से परीक्षण किया जाना चाहिए।
  2. खेतों से मंडियों तक माल की आवाजाही को भी स्वतंत्र रूप से जारी रखने की अनुमति दी जानी चाहिए। वर्तमान में केवल ’आवश्यक’ वस्तुओं की आवाजाही की अनुमति है, लेकिन आवश्यक वस्तुओं की सूची में कम वस्‍तुएं होने से किसानों की आय में गिरावट और आपूर्ति में कमी ही आएगी। भविष्य में सामान की कमी को रोकने के लिए सभी कृषि उत्पादों की निर्बाध आवाजाही की अनुमति होनी चाहिए।
  3. मंडियों का काम-काज जारी रहे, इसे सुनिश्चित करने की परम आवश्‍यकता पर पहले ही जोर दिया जा चुका है (नारायणन 2020)। रबी (सर्दियों) की फसल के लिए खरीद योजनाओं को क्रियान्वित करना विशेष रूप से महत्वपूर्ण है, जिसे अप्रैल की शुरुआत में काटा जाएगा, ताकि किसानों की आय की रक्षा की जा सके और खाद्य भंडार को समाप्‍त होने से रोका जा सके। आगे लॉकडाउन होने की स्थिति में, अगले खरीफ मौसम के लिए किसानों को बीज और उर्वरक भी उपलब्ध कराने की आवश्यकता है। अन्य लोगों ने व्यापारियों और क्रेताओं के लिए क्रेडिट लाइन खोलने और यह सुनिश्चित करने का भी प्रस्ताव रखा है कि कृषि उपज बाजार समिति शुल्क का भुगतान न करने के बावजूद आपूर्ति श्रंखलाओं के सुचारू संचालन में बाधा ना आए।
  4. आपूर्ति की निरंतरता को सुनिश्चित करने के लिए, हमें राज्यों में योजना और समन्वयन की आवश्यकता है। जिन जिलों में आपूर्ति समाप्‍त हो रही है, उन्हें घबराहट से बचाने के लिए उनकी पहचान करना और वहां स्टॉक बढ़ाने की आवश्यकता है।
  5. वर्तमान लॉकडाउन के तत्काल बाद, कृषि-प्रसंस्करण उद्योगों द्वारा निर्मित पैकेट-भोजन की कमी होगी, जिसमें तेल से लेकर स्वास्थ्य और स्वच्छता के सामानों सहित कई वस्‍तुएं शामिल है। सरकार को इस क्षेत्र में पूर्व-तत्‍पर होने और यह सुनिश्चित करने की आवश्‍यकता होगी कि वस्‍तुओं की कमी होने से पहले इन उत्पादकों को काम करने की अनुमति प्राप्‍त हो जाए। इन उत्पादकों के लिए, नियोक्ताओं द्वारा आवश्यक आपूर्ति श्रृंखला निरंतरता के हिस्से के रूप में अपने व्यवसायों को संचालित करने के लिए आवश्‍यक पत्र जारी किए जा सकते हैं। यह उनके कर्मचारियों की आवाजाही की अनुमति देने के लिए प्रमाण के रूप में पर्याप्त होना चाहिए।

भविष्य में बीमारी के प्रकोप पर प्रतिक्रिया करने के लिए संस्थागत बुनियादी ढांचे का निर्माण

सिफारिशों को लागू करने हेतु केंद्रीय और राज्य सरकारों के बीच समन्वयन स्‍थापित करने के लिए एक मजबूत संस्थागत ढांचे की आवश्यकता होगी। हमारा प्रस्ताव है कि केंद्र सरकार राष्ट्रीय स्तर पर एक सर्वोच्च निकाय का गठन करे – ‘महामारी तैयारी समूह’ - जिसकी अध्यक्षता प्रधानमंत्री करें, और जो कोविड-19 के प्रकोपों ​​के संबंध में सरकारी प्रतिक्रियाओं का समन्वयन करेगी। हम प्रस्तावित करते हैं कि इस इकाई के पास समर्पित कार्यालय होने चाहिएँ जो निम्नलिखित मुद्दों पर ध्यान केंद्रित करें:

  1. रोग की निगरानी और रिपोर्टिंग प्रणाली को सुव्यवस्थित करना : बीमारी के प्रकोप और उस पर निगरानी से संबंधित आंकड़े एकत्रित करने की हमारी मौजूदा प्रणाली को सुदृढ़ तथा सुव्यवस्थित किए जाने की आवश्‍यकता है ताकि अविलंब कार्रवाई के लिए केंद्रीय के पास विश्वसनीय और अद्यतन जानकारी उपलब्‍ध हो।
  2. सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रबंधन प्रतिक्रियाओं का समन्वय करना : हमें अस्पतालों और चिकित्सा उपकरणों के उत्पादन के लिए योजना बनाने की आवश्यकता है। एक महामारी का सामना करने के लिए आपूर्ति श्रंखलाओं का समन्वय किया जा सकता है और महामारी तैयारी समूह इस कार्य को कर सकता है।
  3. आर्थिक और सामाजिक नीतियों का निर्माण : यह स्पष्ट है कि कोई भी महामारी इससे संबद्ध लॉकडाउन अवधि के साथ भारतीय आबादी पर काफी भरी आर्थिक और सामाजिक लागत थोप देती है। इसलिए, हमें इस समूह में ऐसे विशेषज्ञों की आवश्यकता है जो इस तरह के परिदृश्य में इन लागतों को कम करने के लिए जिम्मेदार एवं मजबूत नीतियां तैयार कर सकें।
  4. राज्यों के साथ समन्वय : यह समूह किसी महामारी के समय राज्यों में संभावित समन्वय विफलताओं, जैसे कि राज्य सीमाओं पर आवश्यक वस्तुओं के परिवहन की अनुमति, प्रवासियों के लिए सुरक्षित परिवहन की सुविधा आदि के विरुद्ध एक केंद्रीय समन्वय एजेंसी के रूप में भी काम कर सकती है।
  5. प्रभावी ढंग से संवाद करना : सरकार के लिए बीमारी के बारे में जानकारियों के साथ-साथ अनुशंसित व्यवहार संबंधी प्रतिक्रियाओं को स्पष्ट रूप से सूचित करना ज़रूरी है, जैसे क्‍या करें या क्या न करें, इत्यादि। सरकार को लॉकडाउन से संबंधित प्रतिबंधों और इसमें छूट के बारे में भी साफ और स्पष्ट होना चाहिए। संकट के समय यह समूह ऐसे मुद्दों पर प्रभावी संचार के लिए केंद्रीय प्राधिकरण हो सकती है।

हमारे राष्ट्र के आकार को देखते हुए यह सलाह दी जा सकती है कि राज्य स्तर पर भी संबंधित मुख्यमंत्री की अध्यक्षता में इसी प्रकार के ‘महामारी तैयारी समूह’ गठित की जाए जो केंद्रीय समूह के साथ समन्वय करे, और प्रत्येक राज्य के भीतर जिलों में प्रबंधन और नीतियों के संचार में मदद करे। केंद्र सरकार को ग्राम पंचायतों को आकस्मिक धनराशि अंतरित करना चाहिए, जिससे स्थानीय स्तर पर निर्णय लेने और प्रशासन की मजबूती बढ़े, ताकि एक सुव्यवस्थित रिपोर्टिंग प्रणाली बनाई जा सके। 

इस लेख के लेखक दूसरे भाग में, विशिष्ट कमजोर समूहों पर महामारी के आर्थिक प्रभावों पर चर्चा करते हैं और उचित नीतियों का सुझाव देते हैं। 

इस लेख का एक अङ्ग्रेज़ी संस्करण द वायर पर प्रकाशित किया गया है: https://thewire.in/government/coronavirus-long-haul-comprehensive-relief-policy-framework

नोट्स:

  1. ये आंकड़े उपभोक्ता मामलों के विभाग (डीसीए) द्वारा एकत्र किया जाते हैं, और यह 75 शहरों का औसत ले कर अंकित किया जाता है।
  2. अन्य खराब होने वाली वस्तुओं के लिए आंकड़े डीसीए द्वारा एकत्र नहीं किये जाते हैं, लेकिन इस बात की संभावना काफी ज्यादा है कि इनमें भी वृद्धि देखी गई।

लेखक परिचय: यह लेख, राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र के सोनीपत में स्थित, अशोका विस्वविद्यालय के अर्थशास्त्र विभाग के प्राध्यापकों (अभिनाश बोरा, सब्यसाची दास, अपराजिता दासगुप्ता, अश्विनी देशपांडे, कनिका महाजन, भरत रामास्वामी, अनुराधा साहा, अनिशा शर्मा) द्वारा लिखा गया है।

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