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जीवनसाथी के द्वारा होने वाली हिंसा को कम करना: युवा पुरुषों के साथ एक आधार तैयार करना

  • Blog Post Date 22 जून, 2021
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बिहार में पांच में से दो विवाहित महिलाओं ने वैवाहिक हिंसा का अनुभव किया है। राज्य में युवा पुरुषों को लैंगिक परिवर्तनकारी जीवन-कौशल साझा करने वाले एक अध्ययन ‘दो कदम बराबरी की ओर’ कार्यक्रम के आधार पर संथ्या और जेवियर ने प्रारंभिक किशोरावस्था में इस तरह के हस्तक्षेपों के नियमित प्रदर्शन के महत्व को रेखांकित करते हुए बताया है कि इससे महिलाओं के प्रति पारंपरिक दृष्टिकोण को बदलकर महिलाओं पर हो रही हिंसा की घटनाओं में कमी लायी जा सकेगी।

 

दशकों1 से बिहार राज्य वैवाहिक हिंसा के उच्चतम प्रसार के साथ भारतीय राज्यों में निराशाजनक रिकॉर्ड धारक रहा है। उदाहरण के लिए, राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (एनएफएचएस) (2005-2006) के तीसरे दौर में राज्य में पांच में से तीन विवाहित महिलाओं2 ने बताया कि उन्होंने किसी न किसी बिंदु पर वैवाहिक हिंसा का अनुभव किया (अंतर्राष्ट्रीय जनसंख्या विज्ञान संस्थान और मैक्रो इंटरनेशनल, 2007)।

बिहार की राज्य सरकार ने महिलाओं के खिलाफ हिंसा के मुद्दे से निपटने के लिए कई उपाय किए हैं। 2006 में, बिहार राज्य महिला आयोग और महिला विकास निगम की स्थापना महिला सशक्तिकरण के लिए की गई थी। 2008 में, मुख्यमंत्री नारी शक्ति योजना, एक समग्र योजना के रूप में आई, जो महिलाओं को आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक रूप से सशक्त बनाने के उद्देश्य से शुरू की गयी थी। वर्ष 2016 में राज्य सरकार ने राज्य में शराबबंदी की घोषणा की, जिससे घरेलू हिंसा में कमी आने की उम्मीद थी, चूंकि शराब का दुरुपयोग इसका एक प्रमुख कारक था। इन कार्यक्रमों के कार्यान्वयन और समय के साथ वैवाहिक हिंसा की रिपोर्टिंग करने वाली महिलाओं के अनुपात में गिरावट के बावजूद, अभी हाल के एनएफएचएस (2019-2020) के आंकड़े बताते हैं कि बिहार में पांच में से दो विवाहित महिलाओं ने कभी न कभी वैवाहिक हिंसा का अनुभव किया है। (इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट फॉर पॉपुलेशन साइन्सेज, 2020)।

जीवनसाथी के द्वारा होनेवाली हिंसा को कम करना

हालांकि महिलाओं और लड़कियों को सशक्त बनाने पर ध्यान केंद्रित करने वाले कार्यक्रम आवश्यक हैं, लेकिन वे महिलाओं के खिलाफ हिंसा को रोकने के लिए पर्याप्त नहीं हैं। लैंगिक हिंसा में पुरुषों और लड़कों की मुख्य भूमिका होती है, जिस कारण उन्हें लैंगिक हिंसा निवारण कार्यक्रमों में अवश्य शामिल किया जाना चाहिए। शुरुआती किशोरावस्था (10 से 14 वर्ष की आयु) या इससे पहले की आयु में युवाओं के दृष्टिकोण और व्यवहार में परिवर्तन लाने के महत्त्व को व्यापक रूप से समझा गया है (कगेस्तेन एवं अन्य 2016, लेन एवं अन्य 2017)। हालांकि, भारत में लड़कों के दृष्टिकोण और व्यवहारों को बदलने में सफल होने वाले कार्यक्रमों के प्रकार पर सीमित साक्ष्य की उपलब्धता एक प्रमुख चुनौती रही है।

हाल के कुछ अध्ययनों ने लड़कों और युवा पुरुषों के लिए लिंग-परिवर्तनकारी जीवन-कौशल कार्यक्रमों की स्वीकार्यता, व्यवहार्यता और प्रभावशीलता का प्रदर्शन किया है (अच्युत एवं अन्य 2011, दास एवं अन्य 2012, फ्रायडबर्ग एवं अन्य 2018, जेजीभॉय एवं अन्य 2017)। आईजीसी अनुसंधान के तहत (संथ्या और जेवियर 2019) द्वारा हम इसी प्रकार के एक अध्ययन– ‘दो कदम बराबरी की ओर’ (दो कदम समानता की ओर) परियोजना3 (जीजीभॉय एवं अन्य 2017) पर विचार करते हैं। यह परियोजना 13-21 आयु वर्ग के लड़कों और युवाओं के बीच लागू की गई, जो नेहरू युवा केंद्र संगठन (एनवाईकेएस) द्वारा समर्थित युवा क्लबों के सदस्य थे, जिन्हें लिंग-परिवर्तनकारी जीवन-कौशल और क्रिकेट कोचिंग दोनों का मिश्रित प्रशिक्षण दिया गया।

दो कदम बराबरी की ओर

नवंबर 2019 से जनवरी 2020 के बीच, 431 प्रतिभागियों और 422 गैर-प्रतिभागी युवाओं के साथ साक्षात्कार आयोजित किए गए, जो लक्षित युवा क्लबों से संबंधित थे। दो कदम और इसी तरह के अन्य अध्ययनों के निष्कर्ष बताते हैं कि लिंग-परिवर्तनकारी जीवन कौशल की शिक्षा देकर लड़कों और युवाओं के लैंगिक दृष्टिकोण और पुरुषत्व की पारंपरिक धारणाओं में परिवर्तन किया जा सकता है। उदाहरण के लिए दो कदम में भाग लेने वाले युवकों ने कार्यक्रम पूरा होने के पांच साल बाद भी समतामूलक लैंगिक मानदंडों को कायम रखा; गैर-प्रतिभागियों के 38% की तुलना में दो कदम के प्रतिभागियों में से 49% इस बात से असहमत थे कि एक लड़के को अपनी बहन को अकेले बाहर जाने के लिए मना करना उचित है। इसी तरह 63% गैर-प्रतिभागियों के मुक़ाबले दो कदम के 70% प्रतिभागी इस बात से असहमत थे कि कुछ ऐसे समय होते हैं जब एक पत्नी अपने पति द्वारा पीटे जाने के योग्य होती है। एक युवा के रूप में दो कदम कार्यक्रम के एक प्रतिभागी ने कहा "हिंसा मर्दानगी दिखाने का एक तरीका नहीं है। मर्दानगी तब होती है, जब घर में कुछ काम करना होता है और उसे पत्नी से करवाने के बजाय पति खुद करता है। यही मर्दानगी है। हां, अपनी पत्नी को गाली देने वाले पुरुषों को सजा मिलनी चाहिए। पुलिस, गांव के लोग उसे समझाएं... लेकिन अगर उसकी पत्नी किसी अनजान आदमी के साथ यौन संबंध बनाती है, तब आदमी द्वारा उसकी पिटाई करना सही है। इस स्थिति के अलावा औरतों को पीटना कभी भी सही नहीं होता है।"

ये कार्यक्रम न केवल युवा पुरुषों के दृष्टिकोण को में बदलाव लाते हैं बल्कि उनके व्यवहारों को भी प्रभावित करते हैं। दो कदम में भाग लेने वाले युवा पुरुषों में अपनी प्रेमिका या पत्नी के खिलाफ भावनात्मक, शारीरिक या यौन हिंसा करने की संभावना उन युवकों की तुलना में कम थी, जो इससे अनभिज्ञ थे। गैर-प्रतिभागियों के पाँच में से दो प्रतिभागियों की तुलना में दो कदम के एक तिहाई प्रतिभागियों ने साक्षात्कार से पहले के वर्ष में जीवनसाथी के खिलाफ हिंसा के अपराध की सूचना दी।

लैंगिक परिवर्तनकारी जीवन-कौशल कार्यक्रम के लिए कोई भी प्रदर्शन पर्याप्त नहीं है - दो कदम का अनुभव बताता है कि नियमित प्रदर्शन ही परिवर्तन की कुंजी है। जो लोग नियमित रूप से भाग ले रहे थे, उनके कार्य और व्यवहार में परिवर्तन सबसे अधिक स्पष्ट थे। उदाहरण के लिए 79% नियमित प्रतिभागियों4, 72% अनियमित प्रतिभागियों और 69% गैर-प्रतिभागियों ने बताया कि अकेले पति को यह तय नहीं करना चाहिए कि घर का पैसा कैसे खर्च किया जाए। इसी तरह, 12% नियमित प्रतिभागियों, 15% अनियमित प्रतिभागियों और 22% गैर-प्रतिभागियों ने बताया कि उन्होंने साक्षात्कार से पूर्व के वर्ष में अपने साथी के खिलाफ शारीरिक या यौन हिंसा की।

युवा पुरुषों के साथ जुड़ने के लिए एक रूपरेखा

दो कदम जैसे कार्यक्रमों ने लड़कों और युवकों के साथ जुड़ने हेतु एक रूपरेखा प्रदान की है। साथ ही, यह भी ध्यान दिया जाना चाहिए कि दो कदम के साथ नियमित जुड़े रहने वाले आठ युवाओं में से एक ने हिंसा को अंजाम दिया। इस कार्यक्रम के लड़कों के बीच पारंपरिक दृष्टिकोण और व्यवहार बदलने में अधिक प्रभावी होने की संभावना है, यदि उन्हें बाद की किशोरावस्था की तुलना में शुरुआती किशोरावस्था के दौरान नियमित रूप से लक्षित किया जाय। (गुप्ता और संथ्या 2020, ब्लम 2020)।

जैसा कि दो कदम में भाग लेने वाले एक युवक ने सिफारिश की कि, "दो कदम जैसे और भी कार्यक्रम होने चाहिए क्योंकि इसमें शामिल होने वाले लड़के सीखने के बाद इस तरह की हिंसा करने के बारे में कभी नहीं सोचेंगे। लड़कियों को भी इसमें शामिल किया जाना चाहिए ताकि उन्हें अपने अधिकारों का पता चल सके। लड़कियों के लिए अलग से सत्र आयोजित किया जाएं तो बेहतर होगा, ताकि उनके माता-पिता उन्हें भाग लेने से न रोकें, और लड़कों और लड़कियों को कुछ पूछने में शर्मिंदगी महसूस न हो..."

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टिप्पणियाँ:

  1. नवीनतम राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (NFHS-5) के आंकड़ों के अनुसार, बिहार अब दूसरे स्थान पर है, जबकि कर्नाटक में वैवाहिक हिंसा का चलन सबसे अधिक है। NFHS-5 के आंकड़े अब तक 22 राज्यों के लिए जारी किए जा चुके हैं।
  2. संयुक्त राष्ट्र विवाहित महिलाओं या पुरुषों को उन व्यक्तियों के रूप में परिभाषित करता है कि "जिन्होंने अपने जीवन में कम से कम एक बार शादी की है, हालांकि उनकी वर्तमान वैवाहिक स्थिति अविवाहित' की भी हो सकती है"।
  3. इस परियोजना का कार्यान्वयन पोपुलेशन काउंसिल, द सेंटर फॉर कैटलाइजिंग चेंज और लंदन स्कूल ऑफ हाइजीन एंड ट्रॉपिकल मेडिसिन द्वारा एवं यूकेएड के सहयोग से कार्यान्वित किया गया।
  4. जिन लड़कों ने महीने में 2-3 बार या उससे अधिक बार जीवन-कौशल और खेल सत्र में भाग लेने की सूचना दी, उन्हें नियमित प्रतिभागी माना गया, और अन्य सभी प्रतिभागियों को 'अनियमित प्रतिभागियों' के रूप में परिभाषित किया गया है।

लेखक परिचय: के.जी. संथ्या पॉपुलेशन काउंसिल में एक वरिष्ठ सहयोगी है | ए. जे. फ़्रांसिस ज़ेवियर पॉपुलेशन काउंसिल के भारत कार्यालय में एक वरिष्ठ कार्यक्रम अधिकारी हैं |

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