समष्टि अर्थशास्त्र

बजट 2021-22: लिंग आधारित नजरिए से

  • Blog Post Date 24 फ़रवरी, 2021
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Nalini Gulati

Editorial Advisor, I4I

nalini.gulati@theigc.org

2021-22 के केंद्रीय बजट को लिंग आधारित नजरिए से परखते हुए नलिनी गुलाटी ने इस बात पर चर्चा की है कि इस बजट में भारतीय अर्थव्यवस्था में महिलाओं के लिए विशेष रूप से डिजिटल पुश, सार्वजनिक परिवहन, अन्य सार्वजनिक सेवाओं, स्वास्थ्य क्षेत्र के संबंध में, और कपड़ा उद्योग को बढ़ावा देने के लिए क्या प्रावधान किए गए हैं और क्‍या नहीं।

निर्मला सीतारमण उस आयोग का एक हिस्‍सा थीं जिसने वर्ष 2005-06 में भारत में लिंग उत्तरदायी बजट (जीआरबी)1 अपनाने की बात कही थी। उनके द्वारा इस वर्ष के बजट भाषण में ऐसे बजट आवंटन की घोषणा न करना अचंभित करता है। बजट दस्तावेजों2 का गहराई से अध्‍ययन करने पर हम पाते हैं कि वित्‍त वर्ष 2021-22 के लिए लिंग आधारित बजट रु.1,53,326.28 करोड़ है। पिछले वर्ष यह आवंटन रु.143,461.72 करोड़ (बजट अनुमान) था जिसे संशोधित3 कर रु.207,261.02 करोड़ कर दिया गया था4 कुल व्यय के अनुपात में यह आवंटन (बजट अनुमान) जुलाई 2019 के बजट में 4.9% था, पिछले वर्ष 4.7% था और इस वर्ष कम हो कर 4.4% हो गया है। दो वर्ष पहले जब लिंग आधारित बजट ने भारत में 15 साल पूरे किए और सीतारमण ने अपना पहला बजट पेश किया, तब उन्होंने जीआरबी का मूल्यांकन करने और इस क्षेत्र में आगे बढ़ने के लिए सुझाव देने हेतु सरकारी और निजी हितधारकों के साथ एक व्यापक दृष्टिकोण-आधारित समिति के गठन का प्रस्ताव किया था। हालाँकि इस प्रस्ताव की वर्तमान स्थिति स्पष्ट नहीं है।

जबकि हम मौजूदा असमानताओं को बढ़ा-चढ़ा कर अभिव्‍यक्‍त करने का जोखिम लेते हैं, यह दोहराना महत्वपूर्ण है कि 'लिंग का महत्‍वपूर्ण न होना' और 'लिंग-निरपेक्षता' एक समान नहीं है। एक ऐसे देश में जो वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम के ग्लोबल जेंडर गैप इंडेक्स (2020) में 112वें स्थान पर है और महिला श्रम बल भागीदारी दर (एफ़एलएफ़पीआर)5 के कम होने के कारण जिसकी छवि खराब है। यह आश्चर्यजनक है कि इस बजट के 6 स्‍तंभों में से दो स्‍तंभों, यानि 'महत्‍वाकांक्षी भारत हेतु समावेशी विकास'6 और 'मानव पूंजी को पुन: मजबूत करने', के तहत महिलाओं का कोई उल्लेख नहीं किया गया। चूंकि भारत की प्रतिभाशाली जनसंख्‍या में से आधी संख्‍या महिलाओं की है, इसलिए वर्तमान सरकार की प्रमुख योजना यानि आत्मानिभर भारत की चर्चाओं में महिलाओं का अधिकार केवल एक क्षणिक टिप्‍पणी ("महिला सशक्तिकरण") से कहीं अधिक हैं।

महिलाओं की आर्थिक भागीदारी पर कोविड-19 के प्रभाव के संबंध में की जाने वाली चर्चाओं के दो व्‍यापक पहलू रहे हैं। सकारात्मक पहलू यह है कि महामारी के कारण कार्यक्षेत्र बदल रहे हैं तथा दूरस्थ एवं स्थान पर निर्भर न रहते हुए कार्य करने के अधिक अवसर पैदा हो रहे है। यह उन महिलाओं के लिए बाधाओं को कम कर सकता है जो घर से बाहर काम करने में असमर्थ हैं या सुरक्षा संबंधी चिंताओं के कारण नौकरी के स्‍थान को नहीं बदल सकती हैं, या वे जिन पर घरेलू जिम्मेदारियों का अत्‍यधिक बोझ है। दूसरी ओर ऐसा प्रतीत होता है कि घर पर ही रहने की इस नई सामान्‍य स्थिति ने उनकी “समय की कमी” की स्थिति को और खराब कर दिया है। इसके अलावा संकट की स्थिति में पुरुषों की तुलना में महिलाओं पर बुरा प्रभाव पड़ने की अधिक आशंका है और ऐसा परिवार के भीतर सीमित संसाधन आवंटन के रूप में और उससे भी अधिक मानव पूंजी खोने के खतरे के रूप में है (इस वर्ष अधिक लड़कियों को बाल विवाह में धकेले जाने की आशंका है)। सर्वेक्षण में पाया गया है कि महिलाओं और पुरुषों दोनों का मानना ​​है कि जब नौकरियां कम होती हैं, तो महिलाओं की तुलना में पुरुषों को नौकरी पाने का अधिक अधिकार होता है।

जबकि बजट मुख्य रूप से वित्तीय आवंटन के बारे में होता है, यह सरकार की व्यापक नीतिगत दिशा और प्राथमिकताओं को भी इंगित करता है। अब जबकि हम भारत को "5 लाख करोड़ डॉलर की अर्थव्यवस्था" बनाने की बात कर रहे हैं और “नई विश्व व्यवस्था” में एक “अग्रणी भूमिका” निभा रहे हैं, अर्थव्यवस्था में महिलाओं के महत्व पर स्पष्ट रूप से ध्यान केंद्रित करना इस “पुनर्व्‍यवस्‍था” के अंतर्गत महिलाओं को वह स्‍थान हासिल करने के लिए प्रेरित कर सकता था जिसकी वे हकदार हैं।

डिजिटल इंडिया और लिंग असमानता

बजट 2021-22 जोकि भारत का पहला डिजिटल बजट है, डिजिटलीकरण की दिशा में एक मजबूत कदम है। आगामी जनगणना पहली डिजिटल जनगणना हो सकती है। डिजिटल भुगतान के तरीकों को बढ़ावा देने के लिए वित्तीय प्रोत्साहन हेतु आवंटन की घोषणा की गई है। ऐसे व्‍यक्ति जो अपने 95% लेन-देन डिजिटल रूप से करते हैं उनके लिए कर ऑडिट छूट हेतु टर्नओवर सीमा रु.5 करोड़ से बढ़ा कर रु.10 करोड कर दी गई है। 

हालाँकि इस प्रकार पेपरलेस होने पर ध्यान केंद्रित किए जाने को डिजिटल बुनियादी ढांचे, साइबर सुरक्षा प्रणालियों, इंटरनेट और उपकरणों तक पहुँच7, एवं डिजिटल कौशल की जमीनी वास्तविकताओं की स्वीकार्यता के साथ पूरक नहीं किया गया है। डिजिटल पहुंच और कौशल में गंभीर लैंगिक असमानता पर ध्‍यान दिए बिना हो सकता है कि डिजिटलीकरण महिलाओं को और अधिक पीछे कर दे। 2017-18 में किए गए 75वें राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण (एनएसएस) के आंकड़ों के अनुसार 20% पुरुषों की तुलना में 12.8% महिलाओं ने कंप्यूटर चलाने में सक्षम होने की बात कही, और 25% पुरुषों की तुलना में 14.9% महिलाओं ने इंटरनेट का उपयोग करने में सक्षम होने की सूचना दी। भारत में इकहत्‍तर प्रतिशत पुरुषों के पास अपने मोबाइल हैं, जबकि ऐसी महिलाओं की संख्‍या केवल 38% है। ताज्‍जुब होता है कि भले ही एक घर में डिजिटल उपकरण और इंटरनेट कनेक्टिविटी मौजूद है, वहां भी कार्य या अध्ययन के लिए इन उपकरणों का पुरुष सदस्यों द्वारा उपयोग करने को प्राथमिकता दिए जाने की अधिक संभावना है।

बजट के नजरिए से महिलाओं को मुफ्त/रियायती उपकरण दिए जाने जैसे कदम, जोकि संभावित रूप से सार्वजनिक कौशल कार्यक्रमों में भागीदारी से जुड़े हुए हैं, एक तत्काल सकारात्मक प्रभाव हो सकते हैं।8

लिंग संवेदनशील सार्वजनिक परिवहन और सुरक्षित सार्वजनिक स्थान

बजट में शहरी सार्वजनिक परिवहन को बड़े पैमाने पर बढ़ावा दिए जाने का स्‍वागत किया गया है। हालांकि, महिलाओं को सार्वजनिक परिवहन तक पहुंचने में विशेष चुनौतियों का सामना करना पड़ता है, जो उनकी शारीरिक और आर्थिक गतिशीलता को रोकता है। इन नए निवेशों को लिंग संवेदनशील बुनियादी ढांचे के डिजाइन, विशेष रूप से लास्‍ट लाइन कनेक्टिविटी बनाने के अवसरों के रूप में देखा जाना चाहिए। यद्यपि यह मुद्दा सामाजिक और सांस्कृतिक मानदंडों के साथ जुड़ा हुआ है, लेकिन शहरी, सार्वजनिक स्थानों पर महिलाओं के लिए सुरक्षा की कमी इस तथ्‍य का एक महत्वपूर्ण कारण हो सकता है कि स्टार्ट-अप पारिस्थितिकी तंत्र जोकि हाल के दिनों में अर्थव्यवस्था के कुछ जोर दिए गए क्षेत्रों में से एक है में, 'डिलीवरी बॉयज़' का वर्चस्व है। उद्यमियों और श्रमिकों दोनों के संदर्भ में, जबकि सरकार मांग और प्लेटफ़ॉर्म आधारित अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देने के लिए घोषित उपायों को लागू रही है, इसलिए इस क्षेत्र में अधिक महिलाओं को जोड़ने का ध्‍यान रखा जाना चाहिए।9

निर्भया फंड (महिलाओं की सुरक्षा के लिए योजना) के तहत रु.10.4 करोड़ का आवंटन किया गया है जबकि वित्‍त वर्ष 2020-21 के लिए बजट अनुमान रु.855.23 करोड़ था। वित्‍त वर्ष 2020-21 के लिए इसका संशोधित अनुमान कम हो कर रु.8.53 करोड़ हो गया था, जो संभवतः इसलिए हो सकता है क्योंकि यह योजना सार्वजनिक स्थानों पर महिलाओं की सुरक्षा के लिए है और 2020 में हम में से अधिकांश घरों के अंदर ही थे। हालाँकि हम घरेलू हिंसा, जिसे संयुक्त राष्ट्र द्वारा ' आभासी महामारी' कहा जाता है, का समाधान करने के लिए योजनाओं पर धन प्रदान करने संबंधी किसी पूरक व्‍यवस्‍था जैसे कि आश्रय गृह और कानूनी सहायता आदि पर ध्यान केंद्रित नहीं करते हैं। लिंग आधारित बजट में स्‍थान दी गई "महिला हेल्पलाइन" और "वन स्टॉप सेंटर" मदों पर वित्त वर्ष 2020-21 के लिए संशोधित अनुमानों के तहत बहुत कम राशि दिखाई पड़ती हैं, और वास्तव में वित्‍त वर्ष 2021-22 के लिए यह रिक्‍त ही है। वित्‍त वर्ष 2019-20, अर्थात वह नवीनतम वर्ष जिसके लिए लिंग आधारित बजट के तहत वास्तविक खर्च के आंकड़े उपलब्ध हैं, में निर्भया फंड के लिए वास्तविक खर्च रु.11.38 करोड़ है जबकि इसके लिए रु.891.23 करोड़ का आवंटन (बजट अनुमान) किया गया था। 

स्वास्थ्य क्षेत्र: आशा कार्यकर्ताओं को अपना हक प्रदान करता हुआ मानसिक आयाम

हालांकि बजट में स्वास्थ्य देखभाल के लिए एक समग्र दृष्टिकोण अपनाए जाने का दावा किया गया है लेकिन मानसिक स्वास्थ्य का कोई उल्लेख नहीं है, सिवाय इस उल्‍लेख के कि “निसंदेह रूप से हमारे शारीरिक और मानसिक कल्याण के लिए कठिन रहे इस वर्ष के दौरान नागरिकों द्वारा अत्‍यंत धीरज दिखाया गया है”। मानसिक स्वास्थ्य श्रमिकों की उत्पादकता को प्रभावित करने के लिए जाना जाता है, और कमजोर समूहों पर कोविड-19 के प्रभाव के संबंध में प्रदर्शित साक्ष्‍यों ने महिलाओं और पुरुषों के मानसिक स्वास्थ्य पर संकट के अलग-अलग प्रभावों को नोट किया है।

वित्त मंत्री ने भाषण के आरंभ में अग्रिम पंक्ति के कार्यकर्ताओं और उन लोगों के प्रति आभार व्यक्त किया, जिन्होंने लॉकडाउन महीनों के दौरान आवश्यक सेवाओं को चालू रखा था। तथापि, आशा कार्यकर्ताओं (मान्यता प्राप्त सामाजिक स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं) की संख्या बढ़ाने और उनकी स्थिति में सुधार के लिए कोई घोषणा नहीं की गई। ग्रामीण क्षेत्रों में कार्यरत इन महिला सामुदायिक स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं द्वारा अधिक कार्य करने और कम वेतन मिलने के बावजूद महामारी के दौरान अतिरिक्त जिम्मेदारी निभाई गई है और वायरस के जोखिम का सामना किया है। 

स्वास्थ्य क्षेत्र पर ध्‍यान केंद्रित करने से महिलाओं के लिए रोजगार सृजन में अपनी भूमिका को रेखांकित करने का एक मौका हो सकता था, लेकिन इस क्षेत्र में महिला श्रमिकों को संभावित रूप से प्रभावित करने वाली एकमात्र घोषणा नर्सिंग व्‍यवसाय में पारदर्शिता, दक्षता और शासन सुधार को बढ़ावा देने के उद्देश्‍य से लाए जाने वाले राष्ट्रीय नर्सिंग और मिडवाइफरी आयोग विधेयक के रूप में की गई। 

कपड़ा उद्योग - महिलाओं के नियोक्ता के रूप में

बजट में जोर दिए गए प्रमुख क्षेत्रों में से एक क्षेत्र कपड़ा उद्योग है। इस उद्योग को विश्व स्तर पर प्रतिस्पर्धी बनाने, बड़े निवेश आकर्षित करने और रोजगार सृजन को बढ़ावा देने के लिए मेगा इनवेस्टमेंट टेक्सटाइल्स पार्क (मित्रा) स्‍कीम आरंभ करने की योजना है। यह उस ‘उत्‍पादन आधारित प्रोत्‍साहन’ योजना के अलावा है, जिसे पहले कपड़ा उद्योग सहित 10 प्रमुख क्षेत्रों के लिए घोषित किया गया था। इस क्षेत्र के लिए कच्चे माल के इनपुट पर शुल्‍कों को भी युक्तिसंगत बनाया गया है। 

इस क्षेत्र का विस्तार महिलाओं के लिए अधिक से अधिक रोजगार सृजन में तब्दील हो, इसके लिए सक्षम करने वाली स्थितियों का निर्माण किया जाना चाहिए जैसे कि लक्षित कौशल और प्रशिक्षुता, विश्वसनीय बाल देखभाल सुविधाएं, कार्यस्थल पर तथा आने-जाने के समय सुरक्षा, उचित वेतन, मातृत्‍व अवकाश, सुविधाजनक कार्यसमय, आदि। सभी प्रकार के कार्यों में हकदारी हेतु महिलाओं के श्रम कोड का प्रावधान इस संबंध में एक सकारात्मक कदम है, जिसमें "पर्याप्त सुरक्षा" के साथ रात की शिफ्ट में कार्य करना भी शामिल है।

बांग्लादेश एक ऐसा देश है जहां महिलाएं पारंपरिक रूप से घर से बाहर काम नहीं करती थीं लेकिन वहां निर्यात-उन्मुख गारमेंट क्षेत्र में वृद्धि ने महिला श्रम-बल भागीदारी को बढ़ाने में मदद की। शोध से पता चला है कि महिलाओं के लिए नौकरियों की अधिक उपलब्धता अन्य सामाजिक लाभों जैसे विवाह में देरी और लड़कियों के लिए अधिक शिक्षा प्राप्‍त करने का कारण बनी। हालाँकि यह भी नोट किया गया है कि बांग्लादेश में गारमेंट निर्माण के क्षेत्र में काम करने वाली महिला श्रमिक ‘व्‍यावसायिक उन्‍नति में अवरोध’ का सामना करती हैं और अक्सर सुपरवाइजर या प्रबंधक पदों तक नहीं पहुंच पाती हैं। चूंकि भारत में बनाए गए ये टेक्‍सटाइल पार्क आरंभ से ही कौशल निर्माण और कार्य की अनुकूल परिस्थितियों के रूप में उपयुक्त हैं जिनके परिणामस्‍वरूप महिलाओं का उद्योग के साथ सभी स्तरों पर लाभकारी तरीके से जुड़ना सुनिश्चित हो सकता है, इसलिए यह भी एक मानक तत्‍व है। 

सार्वजनिक सेवाएं

महिलाओं की बेहतरी, समय का उपयोग, और घर से बाहर के वेतनभोगी कार्यों में भागीदारी के संदर्भ में सार्वजनिक सेवाओं को बेहतर करने वाला कोई भी प्रावधान पूर्ण रूप से महिलाओं द्वारा वहन किए जाने वाले घरेलू कार्यों के बोझ को कम करता है। इसलिए, जल जीवन मिशन के तहत सभी जगह जल-आपूर्ति की चर्चा स्वागत योग्‍य है।

यह बजट शहरी क्षेत्रों में वायु प्रदूषण के मुद्दे को प्राथमिकता देता है, लेकिन खाना पकाने के लिए अशुद्ध ईंधन के उपयोग के कारण घर के अंदर होने वाले वायु प्रदूषण की समस्या को उजागर नहीं करता है, जिसका घर की महिलाओं पर अधिक नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। यह सर्वविदित है कि उज्ज्वला योजना ने ग्रामीण भारत में एलपीजी (तरलीकृत पेट्रोलियम गैस) का विस्तार तो किया है, लेकिन परिवारों द्वारा एलपीजी का उपयोग सीमित ही बना हुआ है।

अंत में, स्वच्छ भारत, स्वस्‍थ भारत अभियान के तहत, मुख्य रूप से दो महत्वपूर्ण मुद्दों, यानि शहरी केंद्रों में उचित अपशिष्ट प्रबंधन और स्वच्छ वायु, पर ध्यान केंद्रित किया गया है लेकिन सार्वजनिक शौचालयों जैसे पहलुओं को इससे बाहर रखा गया है जो महिलाओं के लिए घरों से बाहर जाने के संदर्भ में महत्वपूर्ण हैं। 

अप्रत्यक्ष, संभावित लाभ

बजट के अंतर्गत घोषित टीकाकरण अभियान के लिए आवंटन उदार प्रतीत होता है। यदि इसे कुशलता से लागू किया जाता है और अगले कुछ महीनों में महामारी को नियंत्रित कर लिया जाता है, तो यह आतिथ्य और सौंदर्य जैसी सेवाओं पर तत्काल सकारात्मक प्रभाव डाल सकता है क्योंकि इनमें व्यक्ति-से-व्यक्ति संपर्क अधिक होता है। खासकर शहरों में इस तरह की सेवाएं हाल के वर्षों में महिलाओं की आर्थिक भागीदारी के लिए महत्वपूर्ण रूप से उभर कर आई हैं।

आशा है कि भारत की इस "प्रतिज्ञा और आशा की भूमि" में महिलाओं की आकांक्षाओं को साकार किया जाएगा!

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टिप्पणियाँ:

  1. जीआरबी में केवल महिलाओं के लिए धन की व्यवस्था नहीं की जाती; यह एक ऐसी व्‍यवस्‍था है जो पूरे बजट को लिंग नजरिए से जांचती है। जेंडर बजट स्टेटमेंट में दो भाग शामिल हैं: भाग A में महिलाओं के लिए 100% आवंटन के साथ महिला-विशिष्ट योजनाएँ हैं, और भाग B में महिला-समर्थक ऐसी योजनाओं का निर्माण किया जाता है, जिसमें कम से कम 30% आवंटन महिलाओं के लिए होता है। जीआरबी इस मान्यता पर आधारित है कि राष्ट्रीय बजट महिलाओं और पुरुषों के लिए अलग-अलग मात्रा में लाभकारी होता है, और यह पितृसत्तात्मक सामाजिक मानदंडों और पूर्वाग्रहों को मजबूत भी कर सकता है।
  2. जेंडर बजट स्टेटमेंट बजट दस्तावेजों में ‘व्यय प्रोफाइल’ (विवरण 13; पृष्ठ 150-163) के अतंर्गत उपलब्ध है।
  3. बजट अनुमान आने वाले वित्त वर्ष के लिए बजट में किसी मंत्रालय या योजना को आवंटित धनराशि को बताता है। संशोधित अनुमान वर्ष के बीच में संभावित व्यय की समीक्षा है, और इसे व्‍यय हेतु संसदीय अनुमोदन या पुनर्विनियोजन आदेश के माध्यम से अधिकृत होने की आवश्यकता होती है।
  4. पिछले वित्त वर्ष के दौरान इस संशोधन हेतु भाग A में उल्लेखनीय क्षेत्रों में पीएमजेडीवाई (प्रधान मंत्री जन धन योजना) महिला खाताधारकों और विधवा पेंशन योजना के अंतर्गत प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण, और भाग B में मनरेगा (महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम) और स्वास्थ्य क्षेत्र में राशि प्रदान करना शामिल हैं। 
  5. आर्थिक सर्वेक्षण 2020-21 में कहा गया है कि 2018-19 में उत्पादक-आयु वर्ग की महिलाओं के बीच श्रम बल भागीदारी दर 26.5% थी, और यह मुख्य रूप से घरेलू कार्यों में उनकी उच्च भागीदारी के लिए कारण है (खंड II, पृष्ठ 249)।
  6. एकमात्र अपवाद यह है कि नए श्रम कोड के तहत, "महिलाओं को सभी श्रेणियों में और पर्याप्त सुरक्षा के साथ रात की पारी में भी" कार्य करने की अनुमति दी जाएगी। 
  7. एकमात्र संबंधित घोषणा मोबाइल फोन उद्योग में घरेलू मूल्य संवर्धन को बढ़ावा देने के लिए उत्‍पाद शुल्‍क को युक्तिसंगत बनाने के उपाय हैं।
  8. कोविड-पूर्व समय में, जब बिहार राज्य सरकार ने लड़कियों को साइकिल प्रदान की, तो इस कार्यक्रम से माध्यमिक विद्यालय नामांकन में लैंगिक अंतर को कम करने में मदद मिली। विवरण यहां देखें। 
  9. डिजिटल कौशलों के साथ पुन: कौशल अर्जित करने/कौशल उन्‍नयन पर ध्‍यान दिया जाना सर्वाधिक महत्‍वपूर्ण होने के कारण यहां भी महत्‍वपूर्ण होगा।

लेखक परिचय: नलिनी गुलाटी आईजीसी (इंटरनैशनल ग्रोथ सेंटर) के इंडिया सेंट्रल प्रोग्राम में कंट्री इकोनॉमिस्ट और आइडियास फॉर इंडिया की प्रबंध संपादक हैं।

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