महामारी के दौरान भौतिक बाजारों से लेकर ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म तक हुए बाजारों के विस्तार के कारण भारत में पहले से मौजूद डिजिटल लैंगिक विभाजन और भी बढ़ गया है। ऑटो-फ़ोटोग्राफ़ी का तरीका अपनाते हुए, सेवा भारत की टीम ने महिला सूक्ष्म उद्यमियों से 'डिजिटल' शब्द की उनकी समझ को व्यक्त करने के लिए कहा। उन्होंने पाया कि जो टेक्नॉलजी महानगरीय क्षेत्रों में सामान्य हो सकती है, वह ग्रामीण क्षेत्र के गरीबों की नजर में महत्वपूर्ण और आकांक्षी है। उनके निष्कर्ष, देश भर की महिलाओं के नजर में डिजिटल सशक्तिकरण क्या है — इसकी बारीक समझ को सामने लाते हैं।
महामारी ने शहरी और ग्रामीण भारत में मौजूदा डिजिटल व्यवस्था को स्पष्ट तो किया है, लेकिन डिजिटल लैंगिक विभाजन को और भी बढाया है। डिजिटल विभाजन ने महिलाओं और अनौपचारिक अर्थव्यवस्था में संलग्न लोगों को अधिक जोखिम के प्रति संवेदनशील बना दिया है। ये डिजिटल एंट्री बैरियर से लेकर; आजीविका के नुकसान के कारण कमाई का कम दायरा; बाजार विनिमय और लेन-देन के तेजी से बदलते तरीके; और समग्र रूप से डिजिटल पारिस्थितिकी तंत्र, इसके अंतर्निहित पूर्वाग्रहों के साथ जिसमें गोपनीयता, जोखिम और पहुंच के मुद्दे शामिल हैं।
इस पृष्ठभूमि में सेवा अनुबंध1 के कार्य की शुरुआत डिजिटल मार्केटप्लेस तक पहुंच को सुविधाजनक बनाने से हुई और धीरे-धीरे उन्होंने सूक्ष्म उद्यमियों को अपने दम पर डिजिटल माध्यमों को संचालित करने हेतु सक्षम वातावरण बनाने का प्रयास किया। मार्च 2022 में उन्होंने एक खोजपूर्ण दृश्य अनुसंधान अध्ययन किया, जिसमें अनुबंध के तहत विभिन्न भूमिकाएं निभाने वाले प्रतिभागियों को उनके दैनिक जीवन में 'डिजिटल का मतलब और इस्तेमाल' के बारे में एक प्रश्न के जवाब में दृश्य और श्रव्य अंश प्रस्तुत करने के लिए कहा गया। बढ़ते डिजिटल पारिस्थितिकी तंत्र से महिलाओं को जोड़ने की कोशिश के चल रहे प्रयासों के बीच, सेवा आंदोलन के लिए यह प्रासंगिक लगा कि वास्तव में गरीब महिलाओं की नजर में 'डिजिटल' शब्द क्या है? वे डिजिटल टेक्नॉलजी की विशेषता किसे मानती हैं? ऐसी संस्थाओं के साथ उनकी परस्पर-क्रिया का स्वरूप क्या है? ऐसी व्यवस्थाओं से उनका जीवन कहाँ तक उलझा हुआ है? समाज के सबसे निचले सामाजिक-आर्थिक वर्ग की महिला अनौपचारिक श्रमिकों के लिए आय-सृजन के स्रोतों के साथ डिजिटल सिस्टम का स्थिर समन्वय वास्तव में क्या मायने रखता है? ये कुछ व्यापक प्रश्न हैं जिनसे हमें अनुबंध की पायलट पूछताछ हेतु पहला प्रवेश बिंदु तैयार करने में मदद मिली।
पद्धति
आम तौर पर प्रतिभागियों को साक्षात्कार या सर्वेक्षण के दौरान एक निश्चित समय-सीमा, संदर्भ और प्रारूप में सवालों के जवाब देने की आवश्यकता होती है, जिसमें कम से कम विनिमय की निर्धारित भाषा पर न्यूनतम कमांड की आवश्यकता होती है। शोध हेतु डेटा संग्रह के पारंपरिक तरीकों से हटके अध्ययन करने के प्रयास में हमारा प्रयास यह समझने की कोशिश पर केंद्रित था कि हितधारकों और प्रतिभागियों ने किस प्रकार से रुचि के विषय को गैर-मौखिक अभिव्यक्ति के माध्यम से स्व-प्रदर्शित किया।
दृश्य नृवंशविज्ञान (एथनोग्राफी) के भीतर अनुसंधान विधियों में से एक — ऑटो-फ़ोटोग्राफ़ी को इस अध्ययन में समाहित किया गया है। शुरू में इस नृवंशविज्ञान दृष्टिकोण का उपयोग 19वीं शताब्दी में किया गया था, जब शोधकर्ता क्षेत्र में तस्वीरें लेते थे और उन्हें दुनिया भर की मूल संस्कृतियों को चित्रित करने के लिए अन्य दर्शकों के सामने पेश करते थे (ग्लॉ एवं अन्य 2017)। वर्तमान समय में तेजी से आगे बढ़ते हुए, शोध पद्धति प्रक्रिया में अब शोधकर्ता की प्रत्यक्ष भागीदारी के बिना, कुछ अर्थों को संप्रेषित करने के लिए प्रतिभागियों को स्वयं चित्र क्लिक करने हेतु कहा जाता है (नोलैंड 2006)। इसलिए इस दृष्टिकोण को अपनाने से हमें उम्मीद थी कि सेवा भारत की महिलाएं इसी तरह खुद को अलग तरह से (कुछ के लिए शायद अधिक आसानी से) एक निश्चित भाषा की सीमा के बिना और कम पूर्वाग्रहों के साथ अभिव्यक्त करने में सक्षम होंगी।
हमारी खोज
मोटे तौर पर डिजिटल साधनों के बारे में पूछताछ की वजह से विभिन्न प्रकार के संगठन बने। प्रतिभागी समूहों ने उनके जीवन में निश्चित भूमिका निभाने वाले वस्तुओं, उपकरणों और तकनीकों की एक विस्तृत श्रृंखला को शामिल करके ऑडियो-विजुअल मीडिया के माध्यम से खुद को अभिव्यक्त किया। हम पाते हैं कि अलग-अलग वस्तुओं से प्राप्त उपयोगिता का स्तर एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में भिन्न होता है और यह दृढ़ता से उनकी सांस्कृतिक और सामाजिक-आर्थिक सेटिंग्स तथा विशेष रूप से सेवा अनुबंध के एक भाग के रूप में उनके द्वारा किये जाने वाले विभिन्न प्रकार के उन कार्यों के बीच उनकी बातचीत और बड़े पैमाने पर सेवा पारिस्थितिकी तंत्र पर निर्भर करता है।
दिल्ली में सेवा सर्वेक्षण के साथ जमीनी स्तर की डिजिटल डेटा संग्रहकर्ता - काजल बेन और नैना बेन की प्रविष्टियाँ, जो काम के लिए कंप्यूटर का उपयोग (बाएं), और ई-श्रम कार्ड बनाने और यात्रा के दौरान संगीत सुनने के लिए स्मार्टफोन का उपयोग (केंद्र और दाएं) करते हुए दर्शाते हैं।
इस अध्ययन के लिए 18 महिलाओं द्वारा कुल 102 प्रविष्टियां - 91 तस्वीरें और 11 वीडियो - जमा की गई हैं। हम सर्वप्रथम सेवा सर्वेक्षण2 के प्रतिभागियों की प्रतिक्रियाओं को देखकर इस संग्रह को देखना शुरू करते हैं। यहां स्मार्टफोन और लैपटॉप का अधिकतम उपयोग मिलता है। राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली से प्राप्त प्रतिक्रियाएं, उन संपत्तियों की उपयोगिताओं के बारे में विचारों में महत्वपूर्ण अंतर के साथ, ग्रामीण उत्तरदाताओं की तुलना में डिजिटल संपत्ति और नेटवर्क तक पहुंच का उच्च प्रसार दर्शाती हैं। दिल्ली के प्रतिभागियों ने ज्यादातर लैपटॉप को एक उपकरण के रूप में चित्रित किया, जिसका उपयोग काम के लिए किया जाता है, विशेष रूप से कार्यालय की जगह के संदर्भ में। वहीं स्मार्टफोन का उपयोग व्यक्तिगत घरेलू आवश्यकताओं, संचार, मनोरंजन, अवकाश या अन्य संबद्ध गतिविधियों की पूर्ति के लिए किया जाता है। तथ्य यह है कि उन्हें डेटा संग्रह के लिए विभिन्न डिजिटल उपकरणों के उपयोग में पहले भी प्रशिक्षित किया गया है और विभिन्न शोध परियोजनाओं के लिए डिजिटल डेटा संग्रहकर्ता के रूप में काम करनेवाले कई उत्तरदाता डिजिटल संस्थाओं के रूप में विशिष्ट उपकरणों के वर्गीकरण के उनके दृष्टिकोण में कुछ अंतर्दृष्टि प्रदान कर सकते हैं।
सुप्रिया बेन और दीया बेन द्वारा प्रविष्टियां, जो पश्चिम बंगाल में सेवा सर्वेक्षण के साथ जमीनी स्तर की डिजिटल डेटा संग्रहकर्ता हैं।
हालाँकि दिल्ली के महानगरीय परिदृश्य से दूर, पश्चिम बंगाल के एक छोटे से शहर फुलिया की ओर बढ़ते हुए, हम प्रतिक्रियाओं के पैटर्न में बदलाव देखते हैं — जिनमें विशेष रूप से सोशल मीडिया और ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म प्रमुखता प्राप्त करते हैं। फुलिया अपने हथकरघा कपड़ा उद्योग और अपने कुशल बुनाई समुदायों के लिए दुनिया भर में प्रसिद्ध है। हमने पाया कि महामारी ने बड़े पैमाने पर स्थानीय स्थानों से लेकर ऑनलाइन ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म तक बाजारों की गतिविधियों और विस्तार को प्रोत्साहित किया, जिससे फुलिया के छोटे—छोटे बुनाई व्यवसायों की व्यापार गतिशीलता और आय पर स्वाभाविक रूप से प्रभाव पड़ा होगा। इस कस्बे में रहने वाली सर्वेक्षण महिलाएं अपने व्यवसाय करने के तरीके में इस तरह के प्रमुख बदलावों की गवाह हो सकती हैं और उनकी प्रविष्टियां इन विकासों के बारे में सामूहिक जागरूकता को दर्शा सकती हैं, अतः वे डिजिटलीकरण के 'प्रतीक' के रूप में नजर आती हैं।
सुप्रिया बेन और दीया बेन की प्रविष्टियाँ, जो पश्चिम बंगाल में सेवा सर्वेक्षण के साथ जमीनी स्तर की डिजिटल डेटा संग्रहकर्ता हैं।
प्रतिभागी पूल के एक अन्य वर्ग, उद्यमी सखी3, ने अपने निजी स्थानों में पाए जाने वाले उपकरणों को डिजिटल होने पर जोर दिया। उत्तराखंड, राजस्थान और पश्चिम बंगाल के स्थानों में प्रत्येक प्रतिभागी से प्राप्त रेफ्रिजरेटर, वाशिंग मशीन, प्रेस आयरन, इलेक्ट्रिक केतली, गीजर, और गैस स्टोव जैसी वस्तुओं की दृश्य प्रविष्टियों की संख्या अत्यधिक थी।
राजस्थान और उत्तराखंड में सेवा अनुबंध की उद्यमी सखी - अंजलि बेन और निशा बेन की प्रविष्टियां — जिसमें वॉशिंग मशीन (बाएं), इलेक्ट्रिक केतली (बीच में) और आयरन बॉक्स (दाएं) शामिल हैं)।
इन सभी उपकरणों को एक साथ लानेवाला सामान्य सूत्र, महिलाओं द्वारा किए जाने वाले अवैतनिक देखभाल कार्य को पूरा करने में इन उपकरणों द्वारा निभायी जानेवाली महत्वपूर्ण भूमिका है। इनसे यह भी संकेत मिलता है कि अपनी घरेलू जिम्मेदारियों को पूरा करने हेतु महिलाएं कितना समय और श्रम खर्च करती हैं। डेटा में इन उपकरणों का प्रतिनिधित्व या तो उद्यमी सखी की दैनिक दिनचर्या में उनकी वर्तमान उपस्थिति या इन वस्तुओं को अपने पास रखने की उनकी आकांक्षा का संकेत दे सकता है।
पश्चिम बंगाल में सेवा अनुबंध की उद्यमी सखी — प्रिया बेन की प्रविष्टियां, जिसमें स्मार्टफोन पर कैलकुलेटर एप्लिकेशन का उपयोग करना (बाएं), कलाई-घड़ी (बीच में) और स्मार्टफोन पर सर्वेक्षण करने के लिए कॉल करना शामिल है (बाएं)।
निशा बेन की प्रविष्टियाँ, जो उत्तराखंड में सेवा अनुबंध के साथ एक उद्यमी सखी हैं और अतिथि होम-स्टे का प्रबंधन करती हैं, जिसमें एक फ्रिज (बाएं) और गैस स्टोव पर चाय की केतली (दाएं) शामिल हैं।
अंतिम समूह, अर्थात् अतिथि होम-स्टे प्रतिभागी, ग्रामीण उत्तराखंड में स्थित महिला सूक्ष्म उद्यमी हैं और पहले के साथियों की तुलना में अपेक्षाकृत अधिक आयु वर्ग की हैं। उनके द्वारा किये जानेवाले प्राथमिक व्यवसाय में ज्यादातर कृषि कार्य शामिल हैं। साथ ही अपनी आय में विविधता लाने के लिए अपने घरों को होम-स्टे के रूप में किराए पर देना शामिल है। कुछ महिलाओं ने देखभाल के काम से जुड़े घरेलू उपकरणों के विषय को दोहराया, और फिर उस तकनीक का उल्लेख करने के लिए आगे बढ़ीं जो देखभाल के काम के बोझ को कम करने में सक्षम बनाती है — अर्थात, विभिन्न ऑनलाइन अनुप्रयोगों द्वारा घरेलू उपयोगिताओं, सब्जियों और भोजन की होम डिलीवरी। ग्रामीण उत्तराखंड के दूरस्थ पहाड़ी इलाकों में सार्वजनिक परिवहन की कमी के कारण आवागमन की बड़ी चुनौतियों के परिणामस्वरूप, शुल्क के बदले में व्यक्ति के घर पर अभिहित व्यक्तिगत वितरण उपयोगिताओं के नवाचार को अत्यधिक महत्त्व मिला है। यह महिलाओं को भोजन और पानी प्राप्त करने के लिए लंबी दूरी की चढ़ाई और पैदल यात्रा करने की परेशानी से बचाता है। इसी सोच के तहत संचार, कनेक्टिविटी और बुनियादी ढांचे में वृद्धि, नलों के माध्यम से पानी की आपूर्ति का विस्तार, और नई दवाओं की उपलब्धता सभी को इस समूह द्वारा डिजिटल और तकनीकी प्रकृति के रूप में मान्यता दी गई थी।
निशा बेन की प्रविष्टियाँ, जो उत्तराखंड में सेवा अनुबंध के साथ एक उद्यमी सखी हैं, और अतिथि होम-स्टे का प्रबंधन करती हैं।
प्रगति के ये सभी संकेतक, जिन्हें प्राथमिक माना जाता है और महानगरीय शहरी क्षेत्रों में पहले से ही सर्वव्यापी हैं। वास्तव में, ये ऐसी सुविधाएं हैं जो देश के ग्रामीण गरीबों ने दशकों से चाही हैं। ये सभी वार्तालाप यह दर्शाती हैं कि एक ग्रामीण समुदाय के बहुत सीमित संसाधनों के साथ जीवन जीने के सामूहिक अनुभव के इतिहास और समुदाय की भौगोलिक विशेषताएं, नवाचार और प्रगति की उनकी धारणा को कितनी मजबूती से प्रभावित कर सकती हैं, जो महिलाओं के समुदाय में और भी अधिक स्पष्ट हो सकती हैं।
निष्कर्ष
अधिक से अधिक, ‘डिजिटल’ शब्द और इसके विविध डिजाइन और कार्य पारंपरिक रूप से अनौपचारिक अर्थव्यवस्था से बाहर के आख्यानों से प्रभावित हुए हैं। इस अध्ययन ने इस घटना को विशेष रूप से अपने प्रतिभागियों के लिए अपनी आंखों के माध्यम से सरल तरीके से देखने का प्रयास किया है। इन सीखों का उपयोग विकास हस्तक्षेपों को सूचित करने के लिए किया जा सकता है, जिसकी सफलता जागरूकता, पहुंच और स्वामित्व द्वारा निर्धारित की जाती है।
इस अध्ययन से जो डेटा सामने आया है, वह एक गरीब अनौपचारिक महिला कार्यकर्ता के जीवन और कार्य में डिजिटल तकनीकों और नवाचारों के वर्तमान समन्वय की सीमा को दर्शाता है, और कैसे इसका महत्व और प्रभाव शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में बदलते भौगोलिक परिदृश्य और संस्कृतियों के साथ एक अलग आकार लेता है। यह इस बारे में महत्वपूर्ण प्रश्न उठाता है कि क्या अनौपचारिक अर्थव्यवस्था में स्व-नियोजित महिलाओं की डिजिटल प्रौद्योगिकी तक पहुंच और उसका उपयोग उनके सामाजिक और आर्थिक सशक्तिकरण का एक महत्वपूर्ण भाग है; और ग्रामीण और शहरी क्षेत्र की गरीब महिलाओं की नजर में ‘डिजिटल सशक्तिकरण’ का उपयुक्त उदाहरण क्या होगा? पूछताछ की इस दिशा में ऐसे कई और प्रासंगिक प्रश्न उठते हैं, जिनके जरिये देश में महिला कार्य-बल की नई उभरती जरूरतों की जांच की जा सकती है।
छोटे पैमाने पर, सेवा भारत के हितधारकों का अपने कार्यक्षेत्रों और रोजमर्रा की जिंदगी में ‘डिजिटल’ के दायरे के बारे में क्या दृष्टिकोण है और वे इसका वर्णन कैसे करते हैं — इस पर साक्ष्य स्थापित करने से शुरू करते हुए, हम कल्पना करते हैं कि समान महिलाओं के कौशल विकास के बारे में राष्ट्रीय संवाद, और तेजी से बढती डिजिटल दुनिया में उन्हें लाभान्वित करने के लक्ष्य से प्रेरित डिजिटल समावेशन और नीतिगत उपायों को जमीनी वास्तविकताओं के अनुरूप बेहतर बनाया जा सकता है।
टिप्पणियाँ:
- सेवा अनुबंध जमीनी स्तर की महिला उद्यमियों द्वारा उत्पाद, सेवाएं और होम-स्टे अनुभव प्रदान करता है।
- डेटा संग्रह पायलट के रूप में शुरू किए गए सेवा सर्वेक्षण को लाभ कमाने वाली इकाई के रूप में विकसित किया गया है। यह डेटा संग्रह में अनौपचारिक क्षेत्र की महिला श्रमिकों के कौशल को बढ़ाने/उन्नयन करने के लिए एक मंच के रूप में कार्य करता है। डेटा संग्रह उपकरण (जैसे कोबो टूलबॉक्स, Google फॉर्म आदि) और कार्यप्रणाली पर प्रशिक्षण आयोजित किया जाता है। सर्वेक्षण सेवा स्थापित राज्यों में स्वतंत्र डेटा संग्राहकों के समूह को एक साथ लाता है ताकि गुणवत्तापूर्ण डेटा संग्रह तैयार किया जा सके और इस तरह उनकी आय के स्रोत में विविधता लाई जा सके।
- उद्यमी सखी 17-25 वर्ष की आयु के बीच के जमीनी स्तर के विपणन और संचार पेशेवरों का एक संवर्ग है, जो विभिन्न मिश्रित गतिविधियों में संलग्न हैं, जिसमें दैनिक आधार पर भुगतान कार्य के साथ-साथ अवैतनिक देखभाल कार्य शामिल है।
क्या आपको हमारे पोस्ट पसंद आते हैं? नए पोस्टों की सूचना तुरंत प्राप्त करने के लिए हमारे टेलीग्राम (@I4I_Hindi) चैनल से जुड़ें। इसके अलावा हमारे मासिक समाचार पत्र की सदस्यता प्राप्त करने के लिए दायीं ओर दिए गए फॉर्म को भरें।
लेखक परिचय: अनीशा रॉय जमीनी स्तर की महिला सूक्ष्म उद्यमियों की आजीविका और आय में सुधार करने में डिजिटल टेक्नॉलजी की भूमिका पर शोध करने हेतु सेवा भारत के लिए काम कर रही हैं।
Comments will be held for moderation. Your contact information will not be made public.