मानव विकास

भारत में शिक्षकों की कमी और इससे जुड़ी वित्तीय लागत का आकलन

  • Blog Post Date 15 जुलाई, 2022
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Sandip Datta

Delhi School of Economics

sandip@econdse.org

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Geeta Gandhi Kingdon

University College London

g.kingdon@ioe.ac.uk

भारत में नई शिक्षा नीति के तहत सार्वजनिक प्राथमिक विद्यालयों में शिक्षकों के 10 लाख रिक्त पदों को अत्‍यावश्‍यक रूप से भरने का प्रस्ताव किया गया है। इस लेख में,शिक्षा से संबंधित वर्ष 2019-20 के जिला सूचना प्रणाली (यू-डीआईएसई) आंकड़ों का उपयोग करते हुए,पूरे भारत में शिक्षकों की कमी के इस अनुमान का आकलन किया गया है। शिक्षक अधिशेष की व्यापकता और 'फर्जी' छात्र नामांकन को देखते हुए यह प्रतीत होता है कि दस लाख शिक्षकों की बहुप्रचारित कमी के बजाय लगभग 100,000 शिक्षकों का शुद्ध अधिशेष है।

भारत में यह व्यापक धारणा है कि प्राथमिक विद्यालयों में खराब शिक्षा के स्तर का एक महत्वपूर्ण कारण शिक्षकों की भारी कमी है। भारत के शिक्षा मंत्रालय का अनुमान है कि सरकारी प्राथमिक विद्यालयों में शिक्षकों के 10 लाख से अधिक पद रिक्त हैं,जिन्हें राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 (एनईपी) के तहत जल्द से जल्द भरने का वादा किया गया है। हाल के एक अध्ययन (दत्ता और किंगडन 2021ए) में, हम इस बड़े रिक्ति अनुमान की वास्तविकता की जांच करते हैं,क्योंकि यह साधारण तथ्य के साथ असंगत है कि,हमारी गणना के अनुसार, पब्लिक स्कूलों में छात्र-शिक्षक अनुपात (पीटीआर) प्रति शिक्षक 25.1 छात्र है,जो शिक्षा का अधिकार (आरटीई) अधिनियम, 2009 में अनुमत छात्र-शिक्षक अनुपात (पीटीआर)- 30 से काफी कम है। प्रथम दृष्टि से ऐसा लगता है कि बड़ी संख्या में शिक्षकों का अधिशेष है,और यह देश में शिक्षकों की भारी कमी की धारणा पर सवाल खड़ा करता है। हम दस लाख शिक्षक रिक्तियों को भरने की वित्तीय लागत की गणना भी करते हैं।

हम शिक्षा से संबंधित वर्ष 2019-20 के आधिकारिक जिला सूचना प्रणाली (यू-डीआईएसई) आंकड़ों का उपयोग करते हुए,प्रत्येक स्कूल में शिक्षक की रिक्तियों या अधिशेषों की गणना उस स्कूल द्वारा रिपोर्ट किए गए छात्र-नामांकन और उसके वर्तमान शिक्षकों की संख्या के साथ तुलना करके करते हैं। हम यह देखते हैं कि क्या ये नामांकित छात्रों की संख्या से जुड़े आरटीई अधिनियम के शिक्षक-आवंटन मानदंडों के अनुसार आवश्यक शिक्षकों की संख्या से कम (या अधिक)हैं। हमने किसी राज्य में शिक्षक रिक्तियों या अधिशेषों की कुल संख्या का पता लगाने हेतु उस राज्य के सभी स्कूलों में इन रिक्तियों(या अधिशेष) का मिलान किया।

विस्तृत निष्कर्ष

हमारे अध्ययन में,सबसे पहले,हम पाते हैं कि हमारी गणना से मोटे तौर पर बड़ी संख्या में शिक्षक रिक्तियों की पुष्टि होती है, जबकि यह भी इंगित होता है कि आरटीई अधिनियम के समान शिक्षक-आवंटन मानदंडों को लागू करने से कई स्कूलों में अधिशेष शिक्षक भी हैं। शिक्षकों के अधिशेष की अवलोकित इस बड़ी संख्या को समायोजित करने पर कुल 2,46,346 शिक्षकों की कमी सामने आती है- यानी यह व्यापक रूप से प्रचारित दस लाख शिक्षक रिक्तियों का लगभग एक चौथाई ही है। यदि हम कुल 1,76,201 शिक्षक रिक्तियों की रिपोर्ट करने वाले अपवाद राज्य- बिहार को हटा दें, तो भारत के 20 प्रमुख राज्यों1 में राष्ट्रीय स्तर पर 70,145 शिक्षकों की निवल कमी है।

राष्ट्रीय स्तर पर शिक्षकों की इस निवल कमी का राज्य-वार विश्लेषण करने पर पता चलता है कि केवल सात राज्यों में निवल शिक्षक रिक्तियां हैं,और इनमें से 94% रिक्तियां पांच राज्यों- बिहार,उत्तर प्रदेश,झारखंड,मध्य प्रदेश और कर्नाटक में हैं। चौदह राज्यों में निवल शिक्षक अधिशेष हैं, जहां- उदाहरण के लिए, नई भर्ती को रोककर, स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति योजनाओं आदि को लागू करके अधिशेष शिक्षकों को कम करने के परिणामस्वरूप बड़ी बचत हो सकती है। शिक्षकों की कमी वाले राज्यों में भी,जिलों के भीतर शिक्षक-अधिशेष वाले स्कूलों से शिक्षकों की कमी वाले स्कूलों में शिक्षकों की पुनः तैनाती की बहुत अधिक गुंजाइश है।

हम मिड डे मील अथॉरिटी जैसे निकायों द्वारा फर्जी छात्र-नामांकन अनुमानों और नियंत्रक तथा महालेखा परीक्षक (सीएजी) द्वारा वर्ष 2015 में किये गए ऑडिट(सीएजी, 2015) के आधार पर अतिशयोक्तिपूर्ण छात्र-नामांकन संख्या का भी समायोजन करते हैं। चित्र 1 में छात्र-नामांकन बिंदुओं - जिनके ऊपर एक नए शिक्षक या प्रधान-शिक्षक को स्कूल में आवंटित किया जाना है,पर अचानक उछाल भी दिखाया गया है- यानी, 60 से अधिक विद्यार्थियों के लिए, विद्यार्थियों के 60 और 100 के नामांकन के ठीक ऊपर,और 30 के गुणकों पर। अधिक रिपोर्ट किए गए नामांकन का समायोजन करने से आवश्यक शिक्षकों (और इसलिए शिक्षक रिक्तियों) की संख्या बहुत कम हो जाती है,और अधिशेष शिक्षकों की संख्या बढ़ जाती है। हमारी गणना के अनुसार, यदि सरकार फर्जी छात्र-नामांकन को नजरअंदाज करती है, और अपने दावा किए गए दस लाख शिक्षक रिक्तियों को भरती है,तो पहले से ही मामूली औसत पीटीआर 25.1 गिरकर 19.9 हो जाएगा, जिससे अतिरिक्त शिक्षकों के वेतन की लागत लगभग 636.74 अरब रुपये (2019-20 की कीमतों में) हो जाएगी, और इससे बहुत बड़ा स्थायी राजकोषीय बोझ निर्माण होगा।

चित्र 1. सार्वजनिक प्राथमिक विद्यालयों में कुल छात्र-नामांकन

स्रोत: यू-डीआईएसई 2019-20

टिप्पणियाँ: (i) हिस्टोग्राम स्कूल के आकार (अर्थात कुल छात्र-नामांकन द्वारा) के अनुसार सभी सार्वजनिक प्राथमिक विद्यालयों के वितरण को दर्शाता है। (ii) यह दर्शाता है कि कई स्कूल कुछ वांछनीय सख्या में छात्र-नामांकन की रिपोर्ट करते हैं-जिसमें कुल छात्र-नामांकन में 20, 25, 30, 40, 50 आदि की अचानक वृद्धि होती है। (iii) 57, 58, 59 और 60 के छात्र-नामांकन ट्रफ (द्रोणी) को 61, 62 और आगे इसी प्रकार से स्पाइक्स द्वारा बनाया गया है,जो संभवतः इसलिए है कि, शिक्षक आवंटन मानदंडों के अनुसार, एक स्कूल को कुल 60 छात्र-नामांकन तक दो शिक्षक मिलते हैं, लेकिन 61 से 90 के कुल छात्र-नामांकन वाले स्कूल को तीन शिक्षक मिलते हैं। (iv) 100 से अधिक छात्र-नामांकन हो तो जूनियर स्कूल को एक प्रमुख-शिक्षक (हेड-टीचर) मिलता है,जिसके चलते 100 से अधिक छात्र-नामांकन दर्शाने वाले स्कूलों की संख्या में अचानक वृद्धि होने की संभावना है।

फर्जी छात्र-नामांकन को पहले हटाना और फिर प्रत्येक राज्य के लिए शिक्षकों की केवल निवल रिक्तियों (एक राज्य के भीतर अधिशेष शिक्षकों को फिर से तैनात करने के बाद रहने वाली रिक्तियां) को भरने के लिए आवश्यक अतिरिक्त शिक्षकों का अनुमान लगाना- इन दोनों विचारों को मिलाते हैं तो राष्ट्रीय स्तर पर शिक्षकों का निवल अधिशेष 98,371 होगा।

इसके अतिरिक्त,हम दर्शाते हैं कि आरटीई अधिनियम के अनुसार "60 या उससे कम" छात्रों वाले किसी भी स्कूल में दो शिक्षक दिए जाने का नियम अपनाने से उन 'छोटे' स्कूलों को भी दो शिक्षक दिए जाते हैं, जिनमें कुल "20 या उससे कम" छात्र हैं। हमारे नमूने में 1,29,424 ऐसे 'छोटे' पब्लिक स्कूल थे और इनमें औसतन प्रति स्कूल केवल 12.7 छात्र थे। यहां,दो शिक्षकों की नियुक्ति के आरटीई-अनिवार्य नियम के कारण औसत पीटीआर प्रति शिक्षक केवल 6.8 विद्यार्थियों का हो जाता है। हम दिखाते हैं कि यदि नियम में संशोधन किया जाता है,और 20 या उससे कम छात्रों वाले स्कूलों में केवल एक शिक्षक आवंटित किया जाता है,तो फर्जी छात्र-नामांकन के समायोजन के बिना, राष्ट्रीय स्तर पर केवल 114,620 शिक्षकों की निवल कमी होगी। अनुमानित फर्जी छात्र-नामांकन को हटाने के बाद, शिक्षकों का कुल अधिशेष 2,39,800 रहेगा।

अंत में, हम महत्वपूर्ण शिक्षक अधिशेष वाले स्कूलों की जांच करके दुर्लभ शैक्षिक संसाधनों के अपव्यय को मापते हैं। इस अधिकता को स्पष्ट करें तो: प्रति शिक्षक 6.6 विद्यार्थियों2 के पीटीआर वाले 27,619 छोटे स्कूल थे। उन्होंने कुल 1,71,055 शिक्षकों को नियुक्त किया था, लेकिन अगर इन स्कूलों में प्रत्येक में दो शिक्षक अनिवार्य थे, तो उन्हें केवल 55,238 शिक्षकों3 की आवश्यकता होगी। वर्ष 2019-20 में इन स्कूलों की संयुक्त रूप से वार्षिक शिक्षक वेतन बिल की राशि 101.73 अरब रुपये थी,और प्रति छात्र-शिक्षक वेतन पर व्यय रु.89,947 था- यह उस वर्ष के लिए बिहार में प्रति व्यक्ति आय का 1.8 गुना है, जो हमारे पूरे नमूने में छोटे पब्लिक स्कूलों में प्रत्येक बच्चे की शिक्षा पर खर्च किया जा रहा है|

नीति निहितार्थ

हमारे द्वारा वर्ष 2010-11 से 2019-20 तक के यू-डीआईएसई डेटा के किये गए विश्लेषण से, हमने पाया कि सार्वजनिक प्राथमिक विद्यालयों में छात्रों के नामांकन में काफी गिरावट आई है और पब्लिक स्कूलों को छोड़कर निजी स्कूलों में दाखिला लेने की लंबे समय से चली आ रही प्रवृत्ति के कारण स्कूलों का आकार बहुत छोटा हो गया है। वर्ष 2019-20 तक, एक सार्वजनिक प्राथमिक विद्यालय में विद्यार्थियों की औसत संख्या केवल 63 थी,और सभी पब्लिक स्कूलों में से 48% स्कूलों में कुल 60 या उससे कम विद्यार्थियों का नामांकन था, और प्रति स्कूल औसतन केवल 31 छात्र थे।

इस तरह से स्कूल के आकार का कम हो जाना उनकी शैक्षणिक व्यवहार्यता और बच्चों को पर्याप्त समाजीकरण के अवसर प्रदान करने के उनके दायरे पर सवाल उपस्थित करता है। इससे स्पष्ट होता है कि न्यूनतम व्यवहार्य आकार के स्कूल के बारे में आवश्यक नीति की जरुरत है। कुछ राज्यों (मध्य प्रदेश,उत्तर प्रदेश और राजस्थान जैसे राज्य)ने अपने स्कूलों की संख्या कम कर दी है, और इस तरह आस-पास के स्कूलों को समेकित करके स्कूल का औसत आकार बढ़ाया है। यह सुनिश्चित करने के लिए कि स्कूलों का विलय होने के बाद स्कूलों तक पहुंच में कोई बाधा न आए,राज्य उन बच्चों को क्षतिपूर्ति दे सकते हैं जिन्हें स्कूलों में आने के लिए परिवहन लागत चुकाकर आगे की यात्रा करनी पड़ती है। शायद,बच्चों के स्कूल में आने-जाने के लिए उनके माता-पिता को प्रत्यक्ष लाभ (नकद)अंतरण प्रदान करके ऐसा कर सकते हैं।

इससे आरटीई अधिनियम में दो-शिक्षक नियम की समीक्षा की भी अपेक्षा है–जो उन 'छोटे' स्कूलों के लिए भी लागू हो, जिनकी संख्या हाल के वर्षों में काफी तेजी से बढ़ी है। छात्रों के शिक्षण के संदर्भ में, कक्षा के आकार या पीटीआर के प्रभाव के बारे में उपलब्ध साहित्य के आलोक में, और 30 के पीटीआर पर ज्ञात 'सीमा'4 की कमी के मद्देनजर, शिक्षक आवंटन नियमों को और अधिक साक्ष्य-आधारित बनाया जा सकता है (अधिक विस्तृत विमर्श हेतु देखें- दत्ता और किंगडन 2021बी)।

अंत में, निवल शिक्षक अधिशेष वाले 13 राज्यों5 की सरकारों को इस बात पर विचार करने की आवश्यकता है कि कुछ स्कूलों में शिक्षकों की कमी की समस्या का हल किस हद तक शिक्षकों को ‘काम पर रखते हुए’ किया जाना चाहिए,और किस हद तक स्कूलों से शिक्षकों के पुनर्आवंटन के जरिये किया जाना चाहिए जिनमें अधिशेष-शिक्षक हैं। सिद्धांत रूप में,जैसा कि ऊपर उल्लेख किया गया है,अधिशेष शिक्षकों को युक्तिसंगत बनाने के लिए कई तरीकों को आजमाया जा सकता है। इसके लिए प्रत्येक राज्य के भीतर एक जिला-वार विश्लेषण किया जाना चाहिए ताकि शिक्षक-अधिशेष वाले स्कूलों से शिक्षकों की कमी वाले स्कूलों में शिक्षकों की इंट्रा-डिस्ट्रिक्ट या इंट्रा-डिवीजन पुनःतैनाती के दायरे को देखने में मदद मिल सके। राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 (एनईपी) में यह आश्वासन दिया गया है कि, शिक्षकों की कम वांछनीय स्थानों पर पुनःतैनाती को प्रोत्साहित करने के लिए, "शिक्षकों को ग्रामीण क्षेत्रों में शिक्षण कार्य करने के लिए प्रोत्साहन प्रदान किया जाएगा इसके लिए एक प्रमुख प्रोत्साहन उन्हें स्थानीय आवास उपलब्ध कराना या उनके लिए आवास भत्ते में वृद्धि का प्रावधान होगा"। इस लीवर का उपयोग वास्तव में पुनःतैनाती (पुनर्नियोजन) को लागू करने के लिए किया जा सकता है।

शिक्षकों को स्थानांतरित करना प्रशासनिक और राजनीतिक रूप से चुनौतीपूर्ण हो सकता है, जबकि राज्य सरकारों को यह विचार करने की आवश्यकता है कि बड़ी संख्या में शिक्षकों- जिन्हें पढ़ाने के लिए बहुत कम छात्र मिलते हैं, को अपने घर के पास तैनाती से मिलने वाले 'किराए'6 की लागत को करदाताओं द्वारा वहन किया जाना कितना सही होगा; और इसलिए नहीं कि राज्य में भी कम शिक्षक हैं,बल्कि इसलिए कि वह बहुत छोटे स्कूलों या शिक्षक-अधिशेष स्कूलों के शिक्षकों को फिर से नियुक्त नहीं कर सकता (या करने को तैयार नहीं है)- क्या इसमें बड़ी वित्तीय लागत को वहन करना न्यायोचित (तर्कसंगत) है, और इसलिए यह वर्ग आकार और छात्र-शिक्षक अनुपात की अनुमत ऊपरी सीमा तक नहीं पहुंच पाता है।

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टिप्पणियाँ:

  1. हमने गोवा, दिल्ली, मिजोरम, मेघालय, नागालैंड, सिक्किम, त्रिपुरा आदि जैसे छोटे राज्यों को शामिल नहीं किया है।
  2. विचाराधीन स्कूलों में कुल 60 या उससे कम विद्यार्थियों का नामांकन था,और पांच या अधिक शिक्षक थे। इन स्कूलों में प्रत्येक में 40.9 छात्र थे, और औसतन 6.2 शिक्षक थे।
  3. इस उपाय से, उनके पास प्रति वर्ष 68.88 अरब रुपये की लागत से 1,15,817 शिक्षकों का अधिशेष था।
  4. आरटीई अधिनियम 30 के अधिकतम पीटीआर को निर्धारित करता है, भले ही इस बात का कोई प्रमाण नहीं है कि अगर पीटीआर को 30 से ऊपर बढाया जाता है तो इससे बच्चे के परिणामों- जैसे उनके शिक्षण पर महत्वपूर्ण प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा।
  5. इसमें पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश,राजस्थान, असम, हरियाणा, केरल, हिमाचल, पंजाब, जम्मू और कश्मीर, ओडिशा, छत्तीसगढ़ और उत्तर प्रदेश शामिल हैं।
  6. अर्थशास्त्र में, ‘किराए’ का मतलब किसी मालिक या उत्पादन के कारक को उस कारक को उत्पादन में लाने के लिए आवश्यक लागत से अधिक का भुगतान है।

लेखक परिचय:

संदीप दत्ता दिल्ली स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स, दिल्ली विश्वविद्यालय में अर्थशास्त्र में सहायक प्रोफेसर हैं। गीता गांधी किंगडन लंदन विश्वविद्यालय के शिक्षा संस्थान में शिक्षा और अंतर्राष्ट्रीय विकास की प्रोफेसर हैं, और हाल ही में ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय के अर्थशास्त्र विभाग में रिसर्च फेलो थीं।

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