सामाजिक पहचान

भारत में हिंदुओं और मुसलमानों के प्रजनन दर में अंतर: एक अपडेट

  • Blog Post Date 19 मई, 2023
  • लेख
  • Print Page
Author Image

Pallabi Das

Amity University, Kolkata

pallabipc@gmail.com

Author Image

Saswata Ghosh

Institute of Development Studies Kolkata

ghosh.saswata@gmail.com

पिछले शोध के आधार पर सास्वत घोष और पल्लबी दास एनएफएचएस के नवीनतम दौर के आंकड़ों का उपयोग करते हुए हिंदुओं और मुसलमानों के बीच के राज्य और जिला स्तर की प्रजनन क्षमता में अंतर का अनुमान लगाते हैं। वे दर्शाते हैं कि भले पिछले दशक के दौरान अधिकांश राज्यों में प्रजनन परिवर्तन में प्रगति हुई है और हिंदुओं और मुसलमानों के बीच की प्रजनन दर में भी अभिसरण हुआ है, फिर भी कुछ क्षेत्रीय भिन्नताएं अभी भी बनी हुई हैं।

भारत में पिछले दशक के दौरान एक महत्वपूर्ण प्रजनन परिवर्तन हुआ है। राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (एनएफएचएस-5) के नवीनतम दौर के अनुसार, वर्ष 2019-21 में, भारत में कुल प्रजनन दर (टीएफआर, या प्रत्येक महिला से पैदा हुए बच्चों की औसतन संख्या) पहले ही 2.1 के प्रतिस्थापन स्तर से नीचे पहुंच गई थी। यह परिवर्तन पिछले दशक के दौरान सभी क्षेत्रों और समाज के वर्गों में हुआ तो है पर अलग-अलग मात्रा में (भारत के रजिस्ट्रार जनरल, 2011)। तथापि, भारत जैसे विशाल देश में विभिन्न सामाजिक-जनसांख्यिकीय, आर्थिक और स्थानिक मापदंडों में टीएफआर में कुछ भिन्नताएँ अभी भी देखी जा सकती हैं – और यह भारत की जनसंख्या में उच्च स्तर की विषमता के कारण है (ऐसा तथ्य, जिसे पहले के शोध – जैसे जेम्स और राणा (2021) द्वारा दर्शाया गया है)।

भारत में दो प्रमुख धार्मिक समूह – हिंदुओं और मुसलमानों के प्रजनन की दरों में अंतर शिक्षाविदों और नीति निर्माताओं के बीच हमेशा विवाद का विषय रहा है। एनएफएचएस-5 के अनुसार, हिंदुओं का टीएफआर 1.9 और मुसलमानों का 2.4 होने का अनुमान लगाया गया था। तथापि, जेम्स और राणा (2021) के अनुसार, ऐतिहासिक रूप से अन्य समुदायों की तुलना में उच्च प्रजनन दर दर्ज करने वाले मुसलमानों सहित सभी धार्मिक समूह भारत में घटती प्रजनन क्षमता में शामिल हैं, हाल के वर्षों में मुसलमानों द्वारा भी प्रजनन दर में तेजी से गिरावट दर्ज की गई है। वर्ष 2011 की जनगणना के आंकड़ों का उपयोग करते हुए घोष (2018) के एक पूर्व के अध्ययन में पाया गया कि जिन जिलों में हिन्दुओं की प्रजनन दर अधिक थी, उनमें मुस्लिमों की प्रजनन दर भी अधिक थी, और जहां हिन्दुओं की प्रजनन दर कम थी वहां मुसलमानों की प्रजनन दर भी कम थी – यह दर्शाता है कि प्रजनन दर के स्तर को धर्म ने नहीं प्रभावित किया है। अध्ययन में यह भी पाया गया कि कम महिलाओं में सामाजिक-धार्मिक संबद्धता या शैक्षिक प्राप्ति चाहे जो भी हो, उच्च प्रजनन दर वाले क्षेत्रों में समूहों में उच्च प्रजनन दर की विशेषता थी; कम प्रजनन वाले क्षेत्रों के संदर्भ में भी यही स्थिति है।

आंकड़ा और नमूना चयन

इस लेख में हम पहले सभी धर्मों में पिछले 30 वर्षों में टीएफआर में गिरावट की गति का अनुमान लगाते हैं; और विशेष रूप से हिंदुओं और मुसलमानों के संदर्भ में भारत के 10 चयनित राज्यों1 में, जहाँ मुसलमानों की आबादी कुल आबादी की तुलना में कम से कम 10% है और जो भविष्य के दशकों में धार्मिक जनसांख्यिकी पर स्पष्ट प्रभाव डाल सकते हैं। दूसरा, हम इन 10 चयनित राज्यों में जिला स्तर पर हिंदू-मुस्लिम प्रजनन अंतर का अनुमान लगाने के लिए एनएफएचएस से प्राप्त इकाई-स्तरीय आंकड़ों का उपयोग करते हैं और अभिसरण की दिशा में उनकी प्रक्रिया का आकलन करने का प्रयास करते हैं। इस अभ्यास के लिए आंकड़ा राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (विशेष रूप से पहले और पांचवें दौर) के विभिन्न दौरों से तैयार किए गए थे, और शोधकर्ताओं द्वारा 2001 और 2011 की जनगणना से टीएफआर के अप्रत्यक्ष अनुमान लगाए गए थे। सरलता के लिए, एनएफएचएस के पहले और पांचवें दौर के संदर्भ वर्षों की चर्चा क्रमशः वर्ष 1992-93 और 2019-21 के बजाय वर्ष 1992 और वर्ष 2019 के रूप में की गई है।

पिछले 30 वर्षों के दौरान प्रजनन प्रवृत्ति

जैसा कि आकृति 1 में दर्शाया गया है, अखिल भारतीय स्तर पर वर्ष 1992 और वर्ष 2019 के बीच टीएफआर 3.4 से घटकर 2.0 हो गया है। इसी अवधि में हिंदुओं में यह 3.3 से घटकर 1.9 हो गया, जबकि मुसलमानों में यह 4.4 से घटकर 2.4 हो गया है।

आकृति 1. हिंदू और मुस्लिम आबादी के बीच कुल प्रजनन दर (टीएफआर) , 1992-2019 

वर्ष 1992 और 2019 के बीच, सभी धर्मों में टीएफआर में 41.3% की गिरावट आई है। जैसा कि तालिका 1 से पता चलता है। गिरावट की गति औसतन वर्ष 2001-2011 के बीच सबसे तेज रही, इसके बाद 2011-2019 के बीच तेज रही, जबकि यह वर्ष 1992-2001 के बीच सबसे धीमी थी। हमारे अध्ययन के 10 राज्यों में गिरावट की गति उत्तर प्रदेश और असम में सबसे तेज और केरल में सबसे धीमी पाई गई। तालिका 1 से, यह भी देखा जा सकता है कि उत्तर प्रदेश जैसे उन राज्यों में जहां 1990 के दशक में काफी अधिक प्रजनन दर थी, वहां वर्ष 2001-2011 के दौरान तेजी से गिरावट आई है। यह भी ध्यान दिया जा सकता है कि जिन राज्यों में पहले से ही अपेक्षाकृत कम प्रजनन दर थी (उदाहरण के लिए, कर्नाटक) या 1990 के दशक के दौरान या उससे पहले प्रजनन दर का प्रतिस्थापन स्तर (उदाहरण के लिए, केरल) हासिल किया था, उनमें 1992-2001 के दौरान तेजी से गिरावट देखी गई, जबकि उच्च प्रजनन दर वाले राज्यों – बिहार और झारखंड में उक्त अवधि के दौरान में वास्तव में टीएफआर में वृद्धि हुई है।

तालिका 1. वर्ष 1992 से 2019 तक कुल प्रजनन दर (टीएफआर) का अनुमान

स्रोत: वर्ष 2001 और 2011 की जनगणना के अनुमान क्रमशः राजन (2005) और घोष (2018) से प्राप्त किए गए हैं। राज्यों के आधार पर वर्ष 1992 के अनुमान मिश्रा (2004) से एकत्र किए गए हैं। वर्ष 2019 के अनुमान एनएफएचएस -5 (2019-21) राज्य की रिपोर्ट से प्राप्त किए गए हैं।

नोट: चूंकि झारखंड का गठन 15 नवंबर, 2000 को बिहार राज्य से हुआ था, इसलिए वर्ष 1992 में झारखंड का टीएफआर बिहार के समान माना गया है। 

तालिका 1 से यह भी पता चलता है कि इस अवधि के दौरान अखिल भारतीय स्तर पर हिंदुओं की तुलना में मुसलमानों में टीएफआर में तेजी से गिरावट आई थी। मुसलमानों में यह गिरावट दिल्ली में सबसे अधिक थी, इसके बाद पश्चिम बंगाल का स्थान था, जबकि हिंदुओं में यह उत्तर प्रदेश में सबसे अधिक थी। वर्ष 1992-2001 के दौरान, भले बिहार और झारखंड में हिंदुओं के टीएफआर में वृद्धि हुई, वहीं उन्हीं राज्यों में मुसलमानों की टीएफआर में गिरावट आई। वर्ष 2001-2011 के दौरान, भले ही गिरावट की गति बहुत अधिक थी, धर्मों में और अधिकांश अध्ययन राज्यों में गिरावट की यह दर दिल्ली जैसे कुछ राज्यों में हिंदुओं की तुलना में मुसलमानों में अपेक्षाकृत अधिक थी। वर्ष 2011-19 के दौरान, पूरे भारत में टीएफआर में गिरावट हिंदुओं की तुलना में मुसलमानों में 5 प्रतिशत अंक अधिक थी। गिरावट की यह दर असम में मुसलमानों में सबसे अधिक पाई गई, जबकि हिंदुओं में गिरावट दिल्ली में सबसे अधिक थी। उक्त अवधि के दौरान बिहार में टीएफआर में गिरावट की गति सबसे धीमी थी, जो हिंदुओं में केवल 0.67% थी, जबकि मुसलमानों में यह लगभग 10% बढ़ी।

वर्षों से हिंदुओं और मुसलमानों के बीच की टीएफआर में अंतर

तालिका 2 दर्शाती है कि समय के साथ हिंदुओं और मुसलमानों के बीच टीएफआर के बीच का अंतर कैसे कम हुआ है। अखिल भारतीय स्तर पर, वर्ष 1992 में हिंदुओं और मुसलमानों के बीच 1.11 बच्चों का अंतर वर्ष 2019 तक घटकर केवल 0.42 बच्चों का रह गया था। पश्चिम बंगाल में अंतर में कमी सबसे अधिक रही, जहाँ वर्ष 1992 में 2.07 बच्चों का अंतर था, जो वर्ष 2019 में 0.56 हो गया था। हालाँकि, अन्य ऐसे राज्य भी हैं, (उदाहरण के लिए, उत्तर प्रदेश, गुजरात और कर्नाटक) जहाँ न केवल वर्षों से अंतर में कमी एक समान नहीं थी, बल्कि यह कुछ हद तक बढ़ भी गई है। जैसे-जैसे बिहार में मुसलमानों के बीच प्रजनन दर बढ़ी, उदाहरण के लिए, हिंदुओं और मुसलमानों के बीच प्रति महिला बच्चों की संख्या के बीच का अंतर भी वर्ष 2011 और 2019 के बीच बढ़ गया (0.40 से 0.75 बच्चे प्रति महिला)।

तालिका 2. वर्ष 1992 से 2019 तक हिंदू और मुस्लिम आबादी के बीच की कुल प्रजनन दर (टीएफआर) में अंतर

स्रोत: लेखकों द्वारा की गई गणना

प्रजनन स्तर में जिलेवार अंतर

10 अध्ययन राज्यों में से, टीएफआर चार राज्यों, असम, पश्चिम बंगाल, दिल्ली और केरल (तालिका 3 देखें) के सभी जिलों में हिंदुओं की प्रजनन दर प्रतिस्थापन (यानी, <=2.1) पर या उससे नीचे पहुंच गई। इन राज्यों में, मुसलमानों में टीएफआर क्रमशः 43.3%, 75%, 54.5% और 57.1% जिलों में प्रतिस्थापन स्तर पर या उससे नीचे पहुंच गई। बिहार, उत्तर प्रदेश और झारखंड राज्यों में केवल 2.6%, 33.3% और 36% ने हिंदुओं में प्रजनन दर के प्रतिस्थापन स्तर पर या उससे नीचे रही, जबकि ये प्रतिशत क्रमशः मुसलमानों में 7.9%, 25.3% और 26.1% थे – जो पहले के निष्कर्षों की पुष्टि करते हैं कि जिन जिलों में हिंदू प्रजनन क्षमता अधिक थी, वहां मुस्लिम प्रजनन क्षमता भी अधिक थी (घोष 2018)। महाराष्ट्र, गुजरात और कर्नाटक जैसे राज्यों में जहां अधिक जिलों में मुस्लिमों की तुलना में हिंदुओं के प्रजनन में परिवर्तन देखा गया है, 40-45% जिलों में मुस्लिम प्रजनन परिवर्तन के मध्यवर्ती चरण (टीएफआर > 2.1 और <3.0) में हैं।

तालिका 3. हिंदुओं और मुसलमानों के बीच प्रजनन के विभिन्न स्तरों वाले जिले, वर्ष 2019

स्रोत: राज्यों के आधार पर टीएफआर के जिला स्तर के अनुमानों की गणना लेखकों द्वारा एनएफएचएस-5 (2019-21) से व्यक्तिगत महिला नमूना का उपयोग करके की गई है।

तालिका से यह भी पता चलता है कि उत्तर प्रदेश और झारखंड के अधिकांश जिलों में, हिंदुओं और मुसलमानों दोनों के बीच प्रजनन परिवर्तन मध्यवर्ती चरण में रहा है। बिहार में, भले 68.4% जिले हिंदुओं में प्रजनन परिवर्तन के इस मध्यवर्ती चरण में हैं, आधे से अधिक जिलों में मुसलमानों में प्रजनन परिवर्तन परिवर्तन-पूर्व चरण (टीएफआर >3) में है। यहाँ यह बताना महत्वपूर्ण है कि बिहार के 9 जिले (23.7%) ऐसे हैं, जहां मुसलमानों में टीएफआर 4.0 से अधिक पाई गई है।

अभिसरण या विचलन?

2011 की जनगणना के आंकड़ों का उपयोग करते हुए किये गए 618 जिलों के पहले के एक अध्ययन में, घोष (2018) ने तर्क दिया है कि हिंदू और मुस्लिम दोनों में प्रजनन परिवर्तन चल रहा है, भले ही यह अस्थिर गति से है। अध्ययन में यह भी पाया गया कि भले हिंदुओं और मुसलमानों के बीच प्रजनन दर का समग्र अभिसरण चल रहा है, फिर भी महत्वपूर्ण क्षेत्रीय भिन्नताएं बनी हुई हैं। जेम्स और राणा (2021) द्वारा इसकी और पुष्टि की गई है। यदि हम वर्तमान अध्ययन के निष्कर्षों की तुलना पूर्व के अध्ययन से करते हैं (घोष (2018) के निष्कर्षों के लिए तालिका 4 देखें), तो हम यह पता लगा सकते हैं कि बिहार को छोड़कर नौ राज्यों में अभिसरण की प्रक्रिया में वृद्धि हुई है।

तालिका 4. हिंदुओं और मुसलमानों के बीच प्रजनन के विभिन्न स्तरों वाले जिलों की संख्या और हिस्सा

स्रोत: घोष (2018)

इस तरह की प्रगति अन्य सात राज्यों की तुलना में पश्चिम बंगाल और असम में अपेक्षाकृत तेज रही है। उदाहरण के लिए, असम में, हालांकि 96.3% जिलों ने हिंदुओं में प्रतिस्थापन स्तर पर या उससे नीचे टीएफआर हासिल किया, यह दर वर्ष 2011 में मुसलमानों में केवल 22.2% थी। वर्ष 2019 के आंकड़ों के अनुसार, ये आंकड़े हिंदुओं में 100% हैं, लेकिन मुसलमानों में 43.3% हैं। इसके अलावा, वर्तमान अनुमानों के अनुसार, असम में मुसलमानों में उच्च प्रजनन दर केवल 2 जिलों में है, जबकि वर्ष 2011 में यह 11 जिलों थी। अन्य सात राज्यों में अभिसरण की प्रक्रिया स्थिर पाई गई।

अभिसरण की प्रक्रिया में बिहार राज्य एकमात्र अपवाद प्रतीत होता है। हालांकि 2011 में सभी धर्मों में कोई भी जिला प्रजनन स्तर पर या प्रतिस्थापन स्तर हासिल नहीं कर पाया, लेकिन वर्ष 2019 के अनुमानों के अनुसार हिंदुओं में एक जिले में और मुस्लिमों में तीन जिलों में प्रजनन परिवर्तन हुआ है। इसी समय, उच्च प्रजनन दर वाले जिलों की संख्या हिंदुओं (2011 और 2019 में 11 जिलों में) में समान रही, जबकि मुसलमानों में यह घट रही है (2011 में 20 जिले और 2019 में 14 जिले)। हालाँकि, वर्ष 2011 में किसी भी जिले ने बहुत अधिक प्रजनन दर (टीएफआर > 4.0 के साथ) नहीं दर्शाई थी, वर्ष 2019 के अनुमान के अनुसार 10 जिलों2 में मुसलमानों में बहुत अधिक प्रजनन दर थी। इन जिलों को राज्य के स्वास्थ्य और परिवार कल्याण विभाग द्वारा विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है, और इन जिलों में मुसलमानों में प्रजनन दर क्यों बढ़ी है, इसे समझने के लिए गहन जांच की आवश्यकता है।

निष्कर्ष

एनएफएचएस आंकड़ों के नवीनतम दौर के अनुसार, भारत में समग्र स्तर पर प्रजनन दर में बदलाव हुआ है, हालांकि उत्तरी और उत्तर-मध्य क्षेत्रों में स्थित कुछ राज्य अभी भी परिवर्तन प्रक्रिया में पिछड़ रहे हैं। इस अध्ययन में, हम 10 बड़े राज्यों में राज्य स्तर पर पिछले 30 वर्षों में हिंदू-मुस्लिम प्रजनन अंतर और उनके रुझानों की एक गहन तस्वीर प्रदान करते हैं।

हमारी कार्यप्रणाली की एक महत्वपूर्ण सीमा यह है कि भले ही जिला स्तर के नमूने पर टीएफआर का प्रत्यक्ष अनुमान काफी ठोस है, यदि किसी विशेष धर्म के संदर्भ में नमूना आकार बहुत छोटा होता, तो धर्म के आधार पर टीएफआर के अनुमान गलत हो जाते। इस प्रकार से, अध्ययन से प्राप्त परिणाम सर्वोत्तम सांकेतिक हैं परंतु निर्णयात्मक नहीं हैं। बहरहाल, यह पता लगाया जा सकता है कि हालांकि अध्ययन किए गए राज्यों में हिंदुओं और मुसलमानों के बीच प्रजनन दर की समग्र अभिसरण प्रक्रिया वर्ष 2011 के बाद से पिछले दशक में आगे बढ़ी है, फिर भी कुछ भिन्नताएं बनी हुई हैं। विशेष रूप से बिहार में इस पर व्यापक ध्यान देने की आवश्यकता है।

टिप्पणियाँ:

  1. चयनित राज्य (मुस्लिम आबादी के अपने भारित प्रतिशत हिस्से के साथ) असम (30.4%), पश्चिम बंगाल (30.4%), झारखंड (11.2%), बिहार (13.9%), उत्तर प्रदेश (16.4%), दिल्ली (12.7%), गुजरात (10.0%), महाराष्ट्र (10.4%), कर्नाटक (12.3%) और केरल (27.4%)। चयनित राज्यों में कुल मिलाकर भारत की मुस्लिम आबादी का 85% आबादी है।
  2. ये जिले हैं पूर्व चंपारण, सीतामढ़ी, मधेपुरा, सुपौल, अररिया, पूर्णिया, मधेपुरा, दरभंगा, खगड़िया और बक्सर।

क्या आपको हमारे पोस्ट पसंद आते हैं? नए पोस्टों की सूचना तुरंत प्राप्त करने के लिए हमारे टेलीग्राम (@I4I_Hindi) चैनल से जुड़ें। इसके अलावा हमारे मासिक समाचार पत्र की सदस्यता प्राप्त करने के लिए दायीं ओर दिए गए फॉर्म को भरें। 

लेखक परिचय:

पल्लबी दास कोलकाता स्थित ऐमिटी यूनिवर्सिटी में भूगोल-शास्त्र असिस्टेंट प्रोफेसर हैं। सास्वत घोष कोलकाता स्थित इंस्टिट्यूट ऑफ डेवलपमेंट स्टडीस में असोसिएट प्रोफेसर हैं।

No comments yet
Join the conversation
Captcha Captcha Reload

Comments will be held for moderation. Your contact information will not be made public.

संबंधित विषयवस्तु

समाचार पत्र के लिये पंजीकरण करें