सामाजिक पहचान

दहेज ग्रामीण भारत में परिवार के फैसलों को कैसे प्रभावित करता है?

  • Blog Post Date 22 जुलाई, 2021
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Sungoh Kwon

Korea Institute of Public Finance

sokwon@kipf.re.kr

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Nishith Prakash

University of Connecticut

nishith.prakash@uconn.edu

यह व्यापक रूप से माना जाता है कि भारतीय माता-पिता बेटी के पैदा होते ही दहेज के लिए बचत करना शुरू कर देते हैं। ग्रामीण भारत में दहेज पर दो-भाग की श्रृंखला के इस दूसरे भाग में, यह लेख इस बात की जांच करता है कि दहेज घरेलू निर्णय लेने और इंटर-टेम्पोरल संसाधन आवंटन को कैसे प्रभावित करता है। यह दर्शाता है कि जैसे-जैसे अपेक्षित दहेज बढ़ता है, कुल मिलाकर पहली संतान-लड़कों वाले परिवारों की तुलना में पहली संतान लड़कियों वाले परिवार बचत में वृद्धि करते हैं।

शादी के समय दुल्हन की ओर से दूल्हे को अंतरण या दहेज एक प्राचीन रिवाज है जो भारत जैसे समकालीन विकासशील समाजों में व्यापक रूप से प्रचलित है। हालांकि दहेज निषेध अधिनियम, 1961 भारत में दहेज देने या लेने पर रोक लगाता है, 2006 के ग्रामीण आर्थिक और जनसांख्यिकी सर्वेक्षण (आरईडीएस) के अनुसार, 1960-2008 के दौरान 95% शादियों  में दहेज का भुगतान किया गया था। दहेज लड़कियों के परिवारों पर काफी बोझ डालता है क्योंकि यह अक्सर परिवार की कई वर्षों की घरेलू आय के बराबर हो सकता है।

यह व्यापक रूप से माना जाता है कि भारतीय माता-पिता बेटी के पैदा होते ही दहेज के लिए बचत करना शुरू कर देते हैं। फिर भी, माता-पिता के बचत व्यवहार पर इस दहेज प्रथा के प्रभाव के परिमाण का कोई पूर्व प्रमाण नहीं है। इस लेख में, हम चर्चा करते हैं कि भविष्य में किया जाने वाला दहेज भुगतान किस प्रकार से परिवार के निर्णय लेने और इंटर-टेम्पोरल संसाधन आवंटन को प्रभावित करता है (अनुकृति तथा अन्य 2020)। इसके लिए हम 1986-2007 के दौरान हुई 17,000 शादियों के बारे में उपलब्ध 2006 के आरईडीएस के डेटा का उपयोग करते हैं। यह डाटासेट भारत में दहेज संबंधी जानकारी का नवीनतम स्रोत है। हम निबल दहेज की गणना दुल्हन के परिवार द्वारा दूल्हे या उसके परिवार को दिए गए उपहारों के मूल्य और दूल्हे के परिवार द्वारा दुल्हन के परिवार को दिए गए उपहारों के मूल्य के बीच के अंतर के रूप में करते हैं।

पहली संतान के लिंग (लड़का/लड़की) और अपेक्षित दहेज के बीच अंतर वाले परिवारों की तुलना

परिभाषा के अनुसार, एक लड़के के माता-पिता की तुलना में एक लड़की के माता-पिता के लिए दहेज खर्च अधिक होता है। चूँकि, लड़का-परिवार और लड़की-परिवार अन्य आयामों के साथ भिन्न हो सकते हैं जो बचत1 को प्रभावित कर सकते हैं, इसलिये हम लड़की के जन्म के बाद परिवार की बचत और लड़के के जन्म के बाद परिवार की बचत के बीच तुलना नहीं कर सकते। इसके बजाय, हम उन परिवारों की तुलना करते हैं जो पहली संतान के लिंग से भिन्न होते हैं क्योंकि: (क) जिनकी पहली संतान लड़की (एफजी) है ऐसे माता-पिता के परिवार में बेटों2 की चाहत की तीव्र इच्छा के कारण अधिक लड़कियां होती हैं- और ऐसे में उनका दहेज का बोझ जिनकी पहली संतान लड़का (एफबी) है उन परिवारों की तुलना में अधिक होता है और (ख) प्रथम संतति का लिंग-चयन (लड़का/लड़की) भारत3 में लगभग यादृच्छिक है। यह पता लगाने के लिए कि क्या एफजी और एफबी परिवारों के बीच अंतर दहेज के कारण हैं और किसी अन्य कारकों के कारण नहीं हैं, हम जाँच करते हैं कि अपेक्षित दहेज4 अधिक होने पर एफजी-एफबी अंतर अधिक है या नहीं। 

दहेज की अधिकतम अपेक्षा रखने से वर्तमान पारिवारिक बचत में वृद्धि होती है ।

हम पाते हैं कि भविष्य में अधिक दहेज की संभावना से वर्तमान बचत में वृद्धि होती है। जैसे-जैसे अपेक्षित दहेज बढ़ता है, एफबी परिवारों की तुलना में एफजी परिवार समग्र और सापेक्ष दोनों बचत बढ़ाते हैं। अपेक्षित दहेज का औसत स्तर (26,120 रुपये) बनाये रखने के लिए एफजी परिवार एफबी परिवारों की तुलना में प्रत्येक वर्ष प्रति व्यक्ति 1,613 रुपये अधिक बचाते हैं। बैक-ऑफ-द-एनवेलप की गणना से पता चलता है कि हमारे नमूने में एक औसत परिवार शादी के खर्च के एक बड़े हिस्से के लिए अग्रिम रूप से बचत करने में सक्षम है।

बढ़ी हुई बचत वित्तीय संस्थानों में बचत का रूप ले लेती है। दिलचस्प बात यह है कि आभूषण या कीमती धातुओं में बचत – जिसे पारंपरिक रूप से दहेज का एक अभिन्न अंग माना जाता है – यह कई साल पहले नहीं बढ़ती है। ये पैटर्न हाल के वर्षों में ग्रामीण भारत में वित्तीय संस्थानों और उपकरणों तक बढ़ी पहुंच और बैंक खातों में बचत की तुलना में आभूषणों के कम नकदीकरण होने के अनुरूप हैं।

अधिक बचत करने के लिए पिता अधिक काम करते हैं |

हम पाते हैं कि एफजी पिता अपेक्षित दहेज का बोझ बढ़ने के कारण एफबी पिता की तुलना में साल में अधिक दिन काम करते हैं, - यह दर्शाता है कि बढ़ी हुई बचत का एक हिस्सा अधिक आय के माध्यम से आता है। हम माताओं की श्रम आपूर्ति पर कोई प्रभाव नहीं पाते हैं, जो भारत में महिला श्रम-बल की भागीदारी के निम्न स्तर (क्लासेन 2017) को देखते हुए आश्चर्यजनक नहीं है ।

क्या बेटा चाहने की प्राथमिकता का दहेज एक अंतर्निहित कारण है ?

अक्सर यह दावा किया जाता है कि दहेज भारत में बेटे की वरीयता और लिंग-चयनात्मक गर्भपात का एक अंतर्निहित कारण है ( हैरिस 1993, दास गुप्ता तथा अन्य 2003 )। हालाँकि, यह भारत में देखे जाने वाले लिंग-चयन के पैटर्न के साथ असंगत है। यदि दहेज पुत्र की वरीयता का एक प्रमुख कारण होता, तो यह अपेक्षा होगी कि माता-पिता हमेशा पुत्री की अपेक्षा पुत्र को वरीयता दें, चाहे उनके कितने भी पुत्र हों। लेकिन, आंकड़ों से पता चलता है कि अगर माता-पिता के कम से कम एक बेटा है, तो उनकी प्राथमिकताएं लिंग-तटस्थ हैं, जिससे बेटे को वरीयता देने में दहेज की भूमिका पर संदेह पैदा होता है। इसके अनुरूप, हम दहेज के न रहते भी एफबी परिवारों की तुलना में एफजी में अधिक लिंग-चयन पाते हैं, अतः दहेज एक अतिरिक्त महत्वपूर्ण व्याख्यात्मक कारक5 नहीं है।

नीति निहितार्थ

हमारे निष्कर्ष आर्थिक व्यवहार को निर्धारित करने में दहेज जैसी पारंपरिक सांस्कृतिक प्रथा की महत्वपूर्ण भूमिका पर जोर देते हैं। ग्रामीण भारत में माता-पिता दहेज के लिए आज काम करते हैं और अधिक बचत करते हैं जिसका भुगतान (पे-ऑफ) कई वर्षों के बाद होता है । इससे पता चलता है कि जहां ऐसे समान डोमेन जैसे निवारक स्वास्थ्य देखभाल, जिसमे वर्तमान में व्यय होता है और भविष्य में रिटर्न काफी बाद मिलने वाले हैं, के विपरीत, माता-पिता के लिए दहेज के लिए बचत करते समय व्यवहार संबंधी बाधाओं को दूर करना आसान हो सकता है। हालाँकि, हमारे परिणाम उन परिवारों के सन्दर्भ में हैं जो गरीबी रेखा से ऊपर हैं। इससे पता चलता है कि गरीबी के परिणामस्वरूप अधिक गंभीर आय-बाधाएं या व्यवहारिक पूर्वाग्रह अत्यंत गरीब परिवारों को अपनी बेटियों के दहेज के लिए अग्रिम रूप से बचत करने से रोकते हैं। प्रभाव में यह विविधता अत्यंत गरीब परिवारों के बीच बचत के लिए बाधाओं से सम्बंधित साहित्य के अनुरूप है (डेलाविग्ना 2009, कार्लन तथा अन्य 2014, क्रेमर तथा अन्य 2019)। ये बाधाएं आय बाधाओं, सूचना और ज्ञान का अंतर, औपचारिक बचत उत्पादों तक कम पहुंच, और व्यवहार-संबंधी बाधाओं जैसे वर्तमान-पूर्वाग्रह, आत्म-नियंत्रण की कमी, और सीमित स्मृति और ध्यान के कारण होती हैं, जो अंततः गरीबी के चलते तीव्र हो सकती हैं। 

यह लेख दो-भाग श्रृंखला का दूसरा है, और विश्व बैंक के ‘लेट्स टॉक डेवलपमेंट’ ब्लॉग के सहयोग से प्रकाशित किया गया है।

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टिप्पणियाँ:

  1. यदि पुत्र-पक्षपाती रोक नियमों के कारण लड़कियों का जन्म लड़कों की तुलना में अपेक्षाकृत बड़े परिवारों में होता है (यह चुनने में कि कितने बच्चे होंगे), तो लड़की-परिवारों के पास प्रति व्यक्ति यांत्रिक रूप से कम बचत होगी, उदाहरण के लिए, दहेज की अपेक्षाओं के बावजूद।
  2. भारतीय माता-पिता एक एफबी लड़की के बाद लिंग-चयनात्मक गर्भपात कराने की संभावना अधिक रखते हैं और पालन करते हैं, जिसके परिणामस्वरूप एफबी परिवारों की तुलना में एफजी में औसतन अधिक लड़कियां पैदा होती हैं।
  3. प्रसव-पूर्व लिंग-चयन तकनीक की उपलब्धता में परिवर्तन के बावजूद, समय के साथ भारत में पहली संतान के रूप में लड़कियों के अनुपात में कोई बदलाव नहीं आया है। भारत में अधिकांश लिंग-चयनात्मक गर्भपात जन्म क्रम दो और उससे ऊपर के समय पर होते हैं।
  4. हम मानते हैं कि माता-पिता बच्चे के जन्म के समय अपनी जाति और अवस्था में चल रही दहेज प्रथा को देखकर दहेज राशि के बारे में अपेक्षाएं रखते हैं।
  5. भालोत्रा एवं अन्य (2020) भी देखें। जो तर्क देते हैं कि दहेज की लागत भारत में पुत्र-पसंद व्यवहार को प्रेरित करती है।

लेखक परिचय : एस. अनुकृति विकास अनुसंधान समूह, विश्व बैंक में अर्थशास्त्री हैं। संगोह क्वोन कोरिया इंस्टीट्यूट ऑफ पब्लिक फाइनेंस में एसोसिएट फेलो हैं। निशीथ प्रकाश कनेक्टिकट विश्वविद्यालय में अर्थशास्त्र के सहायक प्रोफेसर हैं और अर्थशास्त्र विभाग और मानवाधिकार संस्थान में संयुक्त पद पर हैं।

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