सामाजिक पहचान

शहरीकरण, लैंगिक और सामाजिक परिवर्तन: उत्तर भारत में महिलाओं की गतिशीलता

  • Blog Post Date 20 दिसंबर, 2021
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Vidisha Mehta

Harvard Kennedy School of Government

vmehta@hks.harvard.edu

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Harish Sai

University of Chicago

harishramsai@uchicago.edu

यद्यपि भारत में लैंगिक समानता को बढ़ावा देने वाले संरचनात्मक और सामाजिक परिवर्तन कई मायनों में हुए हैं, महिलाओं की प्रत्यक्ष गतिशीलता अभी भी बहुत कम है। यह लेख, उत्तर भारत के तीन शहरी समूहों के प्राथमिक आंकड़ों का विश्लेषण करते हुए दर्शाता है कि कुटुंब संरचना, परिवार का स्थान और गंतव्य स्थान, महिलाओं की गतिशीलता में भिन्नता की व्याख्या करते हैं। इसके अलावा, जो महिलाएं गतिशील नहीं हैं, उनके कामकाजी होने की संभावना कम रहती है।

यह लेख 'शहरीकरण, लैंगिक और सामाजिक परिवर्तन' पर आधारित पांच-भाग की श्रृंखला में से तीसरा है।

पिछले दो दशकों में, भारत में जो संरचनात्मक और सामाजिक परिवर्तन हुए हैं, वे कई मायनों में लैंगिक समानता को बढ़ावा देते हैं। उच्च आर्थिक विकास दर और घटती प्रजनन दर के साथ-साथ ही, प्राथमिक विद्यालय में लड़कियों का नामांकन लड़कों के बराबर हो गया है (विश्व बैंक 2020, 2019, 2021)। फिर भी, महिलाओं की प्रत्यक्ष गतिशीलता बेहद कम बनी हुई है। राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण- 4 (एनएफएचएस -4) डेटा (2015-2016) के अनुसार, केवल 41% भारतीय महिलाओं ने बताया कि उन्हें अकेले बाजार जाने, स्वास्थ्य सुविधा में जाने और अपने गांव या समुदाय के बाहर जाने की इजाजत थी। छह प्रतिशत महिलाओं को इन तीन गंतव्य स्थानों में से (आईआईपीएस (इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ पॉपुलेशन साइंसेज) और आईसीएफ इंटरनेशनल, 2017) किसी भी स्थान पर अकेले जाने की अनुमति नहीं थी।

महिलाओं की स्वतंत्र रूप से बाहर जाने की असमर्थता न केवल उन्हें समानता के आधार पर सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक गतिविधियों में भाग लेने से रोकती है, बल्कि यह सामाजिक गतिविधियों से लेकर रोजगार तक के मुद्दों पर अपने निर्णय लेने की उनकी क्षमता को भी बाधित करती है। अतः, महिलाओं की स्वायत्तता, उनका सशक्तिकरण और आर्थिक कर्त्तव्य का आकलन करने हेतु उनकी गतिशीलता एक महत्वपूर्ण माप है।

अध्ययन

हाल के एक अध्ययन (मेहता और साई 2021) में, हम हिंदी क्षेत्र के तीन शहरी समूहों- धनबाद (झारखंड), पटना (बिहार), और वाराणसी (उत्तर प्रदेश) में से प्रत्येक में 3,500 परिवारों से एकत्र किए गए प्राथमिक डेटा का विश्लेषण करते हैं। हम मुख्य रूप से इस डेटा की जांच परिवार में महिलाओं के संदर्भ में करते हैं, और उनकी गतिशीलता में अंतर को चार आयामों के आधार पर मापते हैं: कुटुंब संरचना, गंतव्य स्थान, परिवार का स्थान और आसपास के बुनियादी ढांचे। इसके बाद, हम श्रम-बल में शामिल होने के लिए महिलाओं की प्रवृत्ति पर सीमित गतिशीलता के प्रभाव का विश्लेषण करते हैं।

भारत में संयुक्त परिवारों की बड़ी संख्या के कारण यहाँ की पारिवारिक संरचना विशेष रूप से प्रमुख कारक के रूप में सामने आती है। इन परिवारों में महिलाओं को अक्सर परिवार के बड़े (और कभी-कभी छोटे) सदस्यों से अनुमति लेने की आवश्यकता होती है। भारतीय परिवारों के मुख्य रूप से पितृसत्तात्मक स्वरूप को देखते हुए, जो उन्हें अनुमति देने की स्थिति में होते हैं, वे आमतौर पर पुरुष ही होते हैं। इस कारण से, विभिन्न सदस्यों के साथ महिलाओं का संबंध उनकी गतिशीलता की मात्रा निर्धारित करने में एक महत्वपूर्ण विशेषता बन जाता है।

महिलाओं की प्रत्यक्ष गतिशीलता में भिन्नता को समझना

हमारे विश्लेषण से पता चलता है कि तीनों शहरों में, परिवार के मुखिया की बहुओं की गतिशीलता सबसे कम है (तालिका 1)। दूसरी ओर, परिवार के मुखिया के जीवन-साथी की गतिशीलता सबसे अधिक होती है। वास्तव में, परिवार की बहू से तुलना की जाए तो जीवन-साथी के स्थानीय बाजार जाने की संभावना उनसे लगभग दोगुनी है, आस-पड़ोस में बाहर जाने की संभावना 20% अधिक है, और बिना अनुमति के रिश्तेदारों से मिलने जाने की संभावना 11% अधिक है। परिवार के मुखिया की बेटियों की गतिशीलता का प्रतिशत बहू और जीवन-साथी के बीच का होता है। ये परिणाम विभिन्न धार्मिक और जातिगत पहचानों के साथ-साथ आय के स्तरों के अनुरूप हैं।

तालिका 1. शहर के अनुसार एकत्रित की गई गतिशीलता की मात्रा

बाजार

पड़ोस से बाहर

परिजन

परिवार के मुखिया का जीवन-साथी

0.44

0.41

0.32

परिवार के मुखिया की बहु

0.26

0.23

0.19

परिवार के मुखिया की पुत्री

0.38

0.33

0.23

ग्रामीण

0.38

0.35

0.27

शहरी

0.42

0.39

0.32

पक्की उपागमन-सड़क

0.36

0.32

0.28

कच्ची उपागमन-सड़क

0.42

0.39

0.29

सर्वोपरि महत्व का एक अन्य कारक महिला का गंतव्य स्थान है। हम पाते हैं कि महिलाएं बाजार जाने के संदर्भ में सबसे अधिक गतिशील होती हैं, और रिश्तेदारों के पास जाने के संदर्भ में सबसे कम गतिशील होती हैं। आमतौर पर बाजार घरों के पास, अक्सर एक ही पड़ोस में स्थित होते हैं। बाजार जाना एक आवश्यकता भी है। शायद यही कारण है कि हम किसी भी अन्य स्थान की तुलना में बाजारों में आवाजाही की अधिक स्वतंत्रता देखते हैं। पड़ोस से बाहर जाने में आम तौर पर लंबी दूरी की यात्रा करना और सार्वजनिक परिवहन का उपयोग करना शामिल है। इस प्रकार, यह बहुत संभव है कि सुरक्षा को लेकर भय की भावना पड़ोस के बाहर महिलाओं की गतिशीलता को प्रतिबंधित करती है। यह इस विचार को बल देता है कि गंतव्य स्थान की दूरी जितनी अधिक होती है, महिलाओं की गतिशीलता उतनी ही अधिक प्रतिबंधित होती जाती है।

हालाँकि, हम महत्वपूर्ण शहर-स्तरीय भिन्नता देखते हैं। उदाहरण के लिए, धनबाद में महिलाएं उच्चतम स्तर की गतिशीलता का आनंद लेती हैं, जबकि वाराणसी में महिलाएं सबसे कम गतिशीलता का अनुभव करती हैं। हालांकि, तीनों शहरों में महिलाओं की गतिशीलता बाजार जाने के संदर्भ में सबसे अधिक होती है और रिश्तेदारों से मिलने के दौरान सबसे कम। यह इंगित करता है कि महिलाओं को ऐसे क्षेत्रों में जाने की अनुमति है जो घर की देखभाल करना जैसी परंपरागत लैंगिक भूमिकाओं को कायम रखते हैं, लेकिन अवकाश या आर्थिक उन्नति के लिए बार-बार घर से बाहर जाने से रोक दिया जाता है।

रोजगार और गतिशीलता के बीच सकारात्मक सह-संबंध से इस मान्यता को और बल मिलता है। हमारे विश्लेषण से पता चलता है कि जिन महिलाओं को घर से बाहर यात्रा करने की अनुमति की आवश्यकता नहीं होती है वे परिणामस्वरूप अधिक गतिशील होती हैं जिनकी रोजगार की संभावना अधिक होती है। जिन महिलाओं को अनुमति की आवश्यकता होती है, उनकी तुलना में गतिशील महिलाओं के पटना में 18% अधिक और वाराणसी और धनबाद में 10% अधिक नियोजित होने की संभावना है। हालाँकि, यह संबंध तीन सम्यक प्रश्न उठाता है। पहला, क्या कार्य किसी विशेष स्थान की गतिशीलता से जुड़ा हुआ है? दूसरा, जटिल कुटुंब संरचनाओं के रहते हुए, गतिशीलता रोजगार को कैसे प्रभावित करती है? अंत में, क्या गतिशील महिलाओं के दूसरों की तुलना में कुछ खास प्रकार के रोजगार में शामिल होने की संभावना है?

बाजार जाने की, पड़ोस से बाहर की यात्रा करने या बिना अनुमति के किसी रिश्तेदार के घर जाने की क्षमता से कामकाजी होने की संभावना लगभग 10% बढ़ जाती है। परिवार के मुखिया के साथ रिश्ता चाहे जो भी हो, अधिक स्वतंत्रता वाली महिलाओं के कामकाजी होने की संभावना अधिक होती है। परिवार के मुखिया की पत्नियों, बहुओं और बेटियों के लिए रोजगार की संभावना उनके गतिशील नहीं होने की तुलना में, उनके गतिशील होने की स्थिति में क्रमशः 11%, 7% और 3% बढ़ जाती है। यहां यह ध्यान देने योग्य है कि जो महिलाएं गतिशील नहीं हैं, उनकी तीनों रिश्तेदारी श्रेणियों में कामकाजी होने की संभावना केवल 20% होती है।

अंत में, हम पाते हैं कि गैर-कृषि कार्य या वेतनभोगी कार्य में रोजगार की संभावना एक महिला की प्रत्यक्ष गतिशीलता के स्तर के अनुरूप बढ़ जाती है। कम गतिशील महिलाओं की कृषि क्षेत्र और पारिवारिक व्यवसायों में काम करने की संभावना अधिक होती है। यह परिणाम सहज है क्योंकि इन क्षेत्रों में काम करने वाली महिलाओं को अक्सर घरेलू स्थान से बाहर जाने की आवश्यकता नहीं होती है।

समापन विचार

गतिशीलता और कार्य मौलिक रूप से एक दुसरे के साथ जुड़े हुए हैं। महिलाओं की श्रम शक्ति में- विशेष रूप से वेतनभोगी रोजगार में भागीदारी को बढ़ाने के लिए उनकी गतिशीलता बढ़ाना एक महत्वपूर्ण साधन है। महिलाओं की गतिशीलता में भिन्नता को समझाने में कुटुंब संरचना, परिवार का स्थान तथा गंतव्य स्थान (शहरी-ग्रामीण स्थिति) काफी प्रभावी हैं।

पारिवारिक संबंधों और स्थान की सावधानीपूर्वक जांच के माध्यम से, हमने भारतीय सेटिंग में महिलाओं की गतिशीलता के संभावित निर्धारकों का गहरा अध्ययन करना शुरू कर दिया है। सड़क सुरक्षा, सार्वजनिक परिवहन, शिक्षा और परिवार के आकार की भूमिका को समझने के लिए और अधिक शोध की आवश्यकता है। हालांकि, महिलाओं की आवाजाही पर लगे प्रतिबंध हटाने से उनके श्रम-बल में प्रवेश करने की संभावना बढ़ जाती है, जिसका उनकी स्वायत्तता पर महत्वपूर्ण असर होगा– और इसका असर बड़े पैमाने पर भारतीय अर्थव्यवस्था पर होगा।

इस श्रृंखला के अगले भाग में महिलाओं के रोजगार के बारे में अंतर्जातीय पदानुक्रम और धारणाओं पर चर्चा की जाएगी।

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लेखक परिचय: विदिशा मेहता वर्तमान में हार्वर्ड केनेडी स्कूल ऑफ गवर्नमेंट में इंटरनेशनल डेवलपमेंट (एमपीए/आईडी) में मास्टर ऑफ पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन की छात्रा हैं। हरीश साई वर्तमान में युनिवर्सिटी औफ शिकागो के हैरिस स्कूल ऑफ पब्लिक पॉलिसी में मास्टर ऑफ पब्लिक पॉलिसी के छात्र हैं।

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