कलकत्ता उच्च न्यायालय ने वर्ष 2008 में वायु की गुणवत्ता में सुधार के प्रयास में आदेश दिया कि कोलकाता और ग्रेटर कोलकाता में सभी पेट्रोल ऑटो को बदल कर पेट्रोल के स्थान पर तरलीकृत पेट्रोलियम गैस (एलपीजी) ईंधन से चलाया जाए। तथापि, इस परिवर्तन की प्रभावशीलता की जांच करते हुए इस लेख में पाया गया है कि कई ऑटो ड्राइवर अधिक प्रदूषणकारी संस्करण का होने के बावजूद, खाना पकाने के एलपीजी का उपयोग करना पसंद कर रहे हैं क्योंकि यह ईंधन की लागत को कम करता है। आदेश के अनुपालन में यह कमी कमजोर कानून प्रवर्तन और फिलिंग स्टेशनों की कमी के कारण और बढ़ जाती है।
दुनिया के कुछ सबसे प्रदूषित शहर भारतीय उपमहाद्वीप में हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन (2018) के अनुसार, दुनिया के बीस सबसे प्रदूषित शहरों में से नौ भारत के थे, जिनमें दिल्ली और कोलकाता जैसे शहरी समूह शामिल थे। यद्यपि, वायु प्रदूषण से होने वाले गंभीर प्रभावों को कम करने हेतु सार्वजनिक परिवहन के लिए स्वच्छ ईंधन के उपयोग की ओर बदलाव जैसे पर्यावरणीय नियमों को (क्रॉपर एवं अन्य 2012, हन्ना और ओलिवा 2015) अपनाया गया है, लेकिन वे मजबूत प्रवर्तन संस्थानों की कमी के कारण अक्सर अपनी पूरी क्षमता हासिल करने में विफल रहते हैं। कमजोर संस्थान गैर-अनुपालन के सीमांत प्रभाव को कम करते हैं, इससे नीतियों की प्रभावशीलता को कम करने वाले कार्यों को बल मिलता है। कोलकाता में ऑटो रिक्शा के लिए न्यायालय-अनिवार्य स्वच्छ-ईंधन परिवर्तन का मामला हमें यह उजागर करने हेतु निश्चयात्मक सेटिंग प्रदान करता है कि कैसे कमजोर प्रवर्तन संस्थान स्वच्छ-ईंधन की दिशा में बदलाव की प्रभावशीलता को कम कर सकते हैं।
औचित्य और प्रेरणा
कोलकाता में वायु की गुणवत्ता में सुधार के प्रयास में 18 जुलाई, 2008 को कलकत्ता उच्च न्यायालय ने आदेश दिया कि सभी धुआँ उगलने वाले पेट्रोल ऑटो रिक्शा (इसके बाद ऑटो के रूप में संदर्भित) को बदल कर पेट्रोल के स्थान पर तरलीकृत पेट्रोलियम गैस (एलपीजी) ईंधन से चलाया जाए। भले न्यायालय ने कोलकाता और ग्रेटर कोलकाता के मुख्य शहर में एलपीजी के उपयोग को अनिवार्य कर दिया था, पर क्या ऑटो ड्राइवरों ने इस फैसले के एक दशक बीत जाने के बाद वास्तव में इसका अनुपालन किया है और 'हरित ईंधन' का उपयोग किया है? इस प्रश्न का उत्तर खोजने के लिए, हमने मुख्य शहर (यानी, कोलकाता नगर निगम (केएमसी)) और इसके उपनगरीय किनारे (जुलाई 2022 के अनुसार केएमसी के बाहर के क्षेत्र (आकृति 1 देखें) दोनों में स्थित विभिन्न स्टैंडों के 209 ऑटो ड्राइवरों का सर्वेक्षण किया। केएमसी कोलकाता पुलिस के अधिकार क्षेत्र में आता है, जबकि केएमसी के बाहर के कई क्षेत्र पश्चिम बंगाल पुलिस के अंतर्गत आते हैं: हमारा मानना है कि यह प्रशासनिक सीमांकन हमारे अध्ययन के लिए महत्वपूर्ण है। हालांकि पश्चिम बंगाल पुलिस को विभिन्न पुलिस आयुक्तालयों में उप-वर्गीकृत किया गया है, हमने अपने अध्ययन हेतु ऐसे सूक्ष्म वर्गीकरण का उपयोग नहीं किया है।
आकृति 1. सर्वेक्षण किए गए ऑटो स्टैंड का स्थान
पहले की समाचार रिपोर्टों में शहर में चलने वाले ऑटो ड्राइवरों द्वारा ऑटो एलपीजी के बजाय खाना पकाने के एलपीजी, जिसे आम बोलचाल की भाषा में काटा-गैस के रूप में जाना जाता है, के उपयोग का उल्लेख है। यद्यपि दोनों एलपीजी हैं, ऑटो एलपीजी के विपरीत, काटा-गैस में भारी हाइड्रोकार्बन होते हैं जिसके कारण इंजन दहन के दौरान पूरी तरह से ऑक्सीकरण नहीं हो पाता, जिससे कार्बन मोनोऑक्साइड और अन्य हानिकारक गैसें वायु में उत्सर्जित होती हैं। काटा-गैस को प्राथमिकता देने का केवल कारण इसका किफायती होना है: 1 किलोग्राम काटा-गैस लगभग 1.6 लीटर ऑटो एलपीजी1 के बराबर है। इसलिए काटा-गैस हेतु अधिक कीमत चुकाने के बावजूद, ड्राइवरों को मात्रा के मामले में काफी अधिक लाभ होता है, जिससे यात्रा की गई दूरी के लिए ईंधन की लागत कम हो जाती है।
हमारे सर्वेक्षण के समय, घरेलू एलपीजी की प्रति किलोग्राम कीमत 76/- रुपये और ऑटो एलपीजी की प्रति लीटर कीमत 73.78/- रुपये थी। हमारे सर्वेक्षण के आंकड़ों से हम पाते हैं कि 41% ड्राइवरों ने ईंधन की जो कीमत बताई वह 76/- रुपये से अधिक थी। अधिकांश रूप से रिपोर्ट की गई ईंधन की कीमत 76-100 रुपये के बीच थी। यह हमारे डेटा में काटा-गैस उपयोगकर्ताओं की उपस्थिति का संकेत देता है।
एलपीजी उपयोग के पैटर्न
क्या ईंधन की कीमतों को 70-75 रुपये के बीच बताने वाले उपयोगकर्ताओं का पता लगने से अनिवार्य रूप से इसका मतलब निकलता है कि उन्होंने खाना पकाने के एलपीजी का उपयोग करने के बारे में झूठ बोला था? क्या सभी ऑटो ड्राइवर काटा-गैस का उपयोग करते हैं या उनके उपयोग के लिए कोई महत्वपूर्ण पैटर्न हैं?
हमने काटा-गैस उपयोगकर्ताओं का पता लगाने हेतु अपने प्रतिदर्श के प्रत्येक ड्राइवर के प्रति किलोमीटर ईंधन लागत की गणना की। इसकी गणना करने के लिए हमने दो अलग-अलग पद्धतियों का इस्तेमाल किया। पहली पद्धति में हमने उद्धृत माइलेज से बताये गए ईंधन मूल्य को विभाजित करके सीधे प्रति किलोमीटर ईंधन लागत की गणना की। तथापि, ईंधन की कीमत और माइलेज के सही मूल्य से अवैध काटा-गैस के उपयोग का पता चल सकता है, अतः इसमें गलत सूचना देने के लिए प्रोत्साहन मिल सकता है। इसलिए हमने एक अन्य अप्रत्यक्ष पद्धति का उपयोग किया, जिसमें हमने प्रति किलोमीटर ईंधन लागत की गणना उस ऑटो द्वारा तय की गई दैनिक दूरी से दैनिक ईंधन लागत को विभाजित करके की। चूंकि दैनिक ईंधन लागत, मार्ग की लंबाई, और प्रति-दिन की जाने वाली यात्राओं संबंधी हमारे सवालों से काटा-गैस उपयोगकर्ताओं की पहचान करने का हमारा उद्देश्य प्रकट नहीं होता, इसलिए हम मानते हैं कि प्रति किलोमीटर ईंधन लागत की गणना करने के लिए ऑटो ड्राइवरों की इन प्रतिक्रियाओं पर भरोसा किया जा सकता है।
अप्रत्यक्ष पद्धति का उपयोग करके गणना की गई प्रति किलोमीटर ईंधन लागत के वितरण से, हम पाते हैं कि केएमसी के बाहर चलने वाले ऑटो ड्राइवरों द्वारा खर्च की गई औसत ईंधन लागत, केएमसी के अंदर चलने वाले ऑटो ड्राइवरों द्वारा खर्च की गई लागत से 16% कम है। यह अंतर न केवल सांख्यिकीय रूप से महत्वपूर्ण है, बल्कि इसका परिमाण नमूना औसत का 17.4% है। आकृति 2 दर्शाता है कि कैसे प्रति किलोमीटर ईंधन लागत का वितरण दोनों क्षेत्रों में अलग-अलग है। यद्यपि प्रति किलोमीटर ईंधन लागत में औसतन अंतर केवल एक रुपये का है, यह नगण्य नहीं है। यह एक रुपये का अंतर, महीने के हर दिन 100 किमी ड्राइव (जो काफी सामान्य है) करने वाले ऑटो ड्राइवर के लिए 3000 रुपये के मासिक अंतर में बदल देता है। कोलकाता में रहने वाले एक ऑटो ड्राइवर के लिए यह अच्छी खासी रकम है।
पहली पद्धति से प्राप्त हमारे परिणाम भी इन निष्कर्षों का समर्थन करते हैं। उस पद्धति का उपयोग करते हुए, हम पाते हैं कि प्रत्येक किलोमीटर ड्राइव के लिए, ग्रेटर कोलकाता के ऑटो ड्राइवरों को ईंधन की जो लागत वहन करनी पड़ती है वह मुख्य शहर के उनके समकक्षों की तुलना में 11% कम है।
आकृति 2. केएमसी के अंदर और बाहर ईंधन की प्रति किलोमीटर लागत
नोट: प्रति किलोमीटर ईंधन लागत की गणना कुल दैनिक ईंधन लागत को प्रतिदिन तय की गई दूरी से विभाजित कर की गई है।
इसके अलावा, हमने पाया कि हालांकि केएमसी के अंदर चलने वाले ऑटो ड्राइवरों द्वारा एकत्रित औसत दैनिक राजस्व केएमसी के बाहर के ऑटो ड्राइवरों की तुलना में काफी अधिक है, लेकिन उनकी औसत मासिक आय भिन्न नहीं है2। यह विशेष रूप से आश्चर्यजनक है क्योंकि ऑटो के रखरखाव की लागत इन दोनों समूहों के लिए समान है। हालांकि, केएमसी के बाहर के ऑटो ड्राइवर अगर सस्ते ईंधन का उपयोग करते हैं जिससे वे अपने ईंधन खर्च में कटौती कर उच्च अधिशेष उत्पन्न कर पाते हैं, तो कम राजस्व के साथ भी, दोनों समूहों की मासिक आय समान हो सकती है। इस प्रकार से, ग्रेटर कोलकाता में काटा-गैस के व्यापक उपयोग के बारे में हमारे निष्कर्ष आय-राजस्व पैटर्न के संदर्भ में भी ठोस हैं।
घोष और सोमनाथन (2013), जिन्होंने पाया कि बदलाव से पहले ऑटो के स्वामित्व की स्थिति ईंधन पसंद में मुख्य थी, के विपरीत, बदलाव के एक दशक बाद अब हम ऑटो के स्वामित्व को निर्णायक कारक नहीं पाते हैं। बजाय इसके, हम ईंधन के उपयोग में स्थानीय विषमता पाते हैं। यदि सहज मिलता हो, तो ऑटो किराएदार और ऑटो मालिक दोनों अब एलपीजी के प्रदूषणकारी संस्करण का उपयोग करते हैं।
काटा-गैस उपयोग की और आकर्षित करने वाले कारक
ग्रेटर कोलकाता में चलने वाले ऑटो में काटा-गैस के व्यापक उपयोग का प्राथमिक कारण केएमसी के बाहर कानूनों का अपेक्षाकृत ढीला प्रवर्तन हो सकता है। यह देखते हुए कि ऑटो पर अपने मार्ग का नाम लिखा होना आवश्यक है, पेट्रोल ऑटो पर लगाए गए प्रतिबंध के एक दशक बाद भी ग्रेटर कोलकाता में अवैध पेट्रोल ऑटो के अस्तित्व-सहित मार्ग के नाम के बिना ऑटो की जहाँ-तहां उपस्थिति, इस व्यापक विश्वास की पुष्टि करती है कि पश्चिम बंगाल पुलिस द्वारा किया जा रहा कानून प्रवर्तन कोलकाता पुलिस की तुलना में ढीले हैं। कानून प्रवर्तन में ढिलाई गैर-अनुपालन के सीमांत प्रभाव को कम कर सकती है, जो काटा-गैस की अवैध खरीद और बिक्री के लिए अनुकूल हो सकती है। इसके अतिरिक्त घरेलू एलपीजी के स्थानीय वितरक काटा-गैस तक आसान पहुंच सुनिश्चित करते हैं, जो ऑटो एलपीजी के मामले में नहीं है क्योंकि इसके लिए ईंधन स्टेशनों पर जाने की आवश्यकता होती है। अधिकांश भारतीय शहरों के विपरीत, चूंकि कोलकाता में ऑटो बीच के स्टॉप के साथ बैठने और उतरने हेतु साझा निश्चित- मार्ग सेवाएं प्रदान करते हैं, अपर्याप्त ईंधन स्टेशन की वजह से उन ऑटो ड्राइवरों पर असंगत बोझ पड़ता है जो फिलिंग स्टेशनों से सबसे दूर के मार्गों पर चलते हैं। ऑटो ड्राइवरों के साथ हमारी ऑन-फील्ड बातचीत से पता चला कि केएमसी के बाहर फिलिंग स्टेशनों की कमी है और इसके परिणामस्वरूप, काटा-गैस का उपयोग करने के लिए प्रोत्साहन वहां अधिक मजबूत प्रतीत होता है।
निहितार्थ
ग्रेटर कोलकाता के ऑटो ड्राइवरों द्वारा काटा-गैस के व्यापक उपयोग के सबूत दर्शाते हैं कि खासकर कोलकाता पुलिस के अधिकार क्षेत्र से बाहर के स्थानों में वायु को साफ करने का अदालत का उद्देश्य पूरी तरह से पूरा नहीं हो रहा है। यह देखते हुए कि वायु प्रदूषण नगर निगम की सीमाओं से बंधा नहीं है, केएमसी के बाहर एलपीजी के प्रदूषणकारी संस्करण का व्यापक उपयोग लंबे समय में कोलकाता की वायु गुणवत्ता के लिए हानिकारक हो सकता है। ऐसा प्रतीत होता है कि उन स्थितियों में जहां कानून प्रवर्तन विशेष रूप से कमजोर है, जब तक स्वच्छ ईंधन के आर्थिक प्रोत्साहन पर्याप्त मजबूत नहीं होंगे, मिलावटी ईंधन का अवैध उपयोग बिना किसी रोकटोक जारी रहेगा।
एनवायरनमेंट फॉर डेवलपमेंट (EfD) ने जिस शोध परियोजना हेतु वित्तीय सहायता प्रदान की है जिस पर यह लेख आधारित है।
टिप्पणियाँ:
- एलपीजी का घनत्व 500-580 किग्रा/घन मीटर के बीच होता है जो 0.5 से 0.58 किग्रा/लीटर होता है।
- राजस्व यात्रियों से एकत्रित कुल किराया है, जबकि आय राजस्व और लागत (जैसे- ईंधन) के बीच का अंतर है।
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लेखक परिचय: सत्यकी सेनशर्मा दिल्ली स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स स्थित सेंटर फॉर डेवलपमेंट इकोनॉमिक्स में रिसर्च असिस्टेंट हैं।
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