नोवल कोरोनोवायरस महामारी के बाद लॉकडाउन का एक महत्वपूर्ण प्रभाव यह हुआ है कि किसान और उपभोक्ता इस बात को लेकर असमंजस, अनिश्चितता और चिंता में हैं कि आखिर आने वाले हफ्तों में क्या होगा। इस पोस्ट में, सुधा नारायणन खाद्य एवं कृषि उत्पादों की आपूर्ति श्रृंखला में वर्तमान बाधाओं की जानकारी देती हैं, और इन्हें जल्द से जल्द पटरी पर लाने के लिए सरकार द्वारा की जाने वाली कार्रवाई हेतु सुझाव देती हैं।
नोवल कोरोनोवायरस महामारी के बाद लॉकडाउन का एक महत्वपूर्ण प्रभाव यह हुआ है कि किसान और उपभोक्ता इस बात को लेकर असमंजस, अनिश्चितता और चिंता में हैं कि आखिर आने वाले हफ्तों में क्या होगा। कई राज्यों से एपीएमसी (कृषि उपज विपणन समिति) मंडियों के बंद होने के खबरें आ रही हैं, जिसके कारण किसान अपनी फसल का कुछ नहीं कर पा रहे हैं। कुछ राज्यों में उपज का परिवहन करने वाले व्यापारियों से जबरन पुलिस द्वारा वसूली के मामले भी सामने आए हैं; अन्य कई राज्यों में, ट्रक ड्राइवरों को लॉकडाउन का कथित रूप से उल्लंघन करने के कारण 12,000 रुपये तक का जुर्माना लगाया गया है। कर्नाटक में कम से कम एक किसान उत्पादक संगठन (एफपीओ) को अपनी गतिविधियों को निलंबित करने के लिए मजबूर किया गया है। गुजरात जैसे राज्य इस संबंध में और आगे बढ़ गए हैं और उन्होंने सरकारी खरीद कार्यों को पूरी तरह से स्थगित करने की घोषणा की है। कुल मिला कर यह गतिविधियां, रबी (सर्दियों) की फसल के चरम पर आकर, केवल किसानों के लिए ही नहीं बल्कि इन वस्तुओं की आपूर्ति श्रृंखला में शामिल अनौपचारिक श्रमिकों के लिए भी विनाशकारी हैं।
बड़े शहरों में वितरण के स्तर पर, कई निजी ई-कॉमर्स और माइक्रो डिलीवरी फर्मों को मुश्किलों का सामना करना पड़ा है। राज्य और शहर की सीमाओं पर उनके शिपमेंट को रोका जा रहा है, डेलीवेरी एजेंटों को डेलीवेरी के दौरान कभी-कभी पुलिस द्वारा परेशान किए जा रहा है। कुछ ने तो अपने परिचालन को पूरी तरह से निलंबित कर दिया है। इस तरह के व्यवधान, व्यापक रूप से, ग्राहकों को दुकानों पर आने के लिए मजबूर करते हैं, जबकि लॉकडाउन का मुख्य उद्देश्य इसे ही रोकना है। गलियों के विक्रेताओं को भी घर के अंदर रहने के लिए मजबूर किया गया है। शहरी केंद्रों में सीधे किसान-से-उपभोक्ता के बीच होने वाले व्यवस्थाएं भी बंद हैं क्योंकि वे इस बात को लेकर चिंतित हैं कि परिवहन के दौरान क्या होगा। किराने के सामान की खरीदारी करने के लिए बाहर निकल रहे उपभोक्ताओं को परेशान किए जाने की भी खबरें आ रही हैं।
सरकारी दिशानिर्देशों के अनुसार खाद्य वस्तुओं के परिवहन और खुदरा बिक्री की अनुमति है, इसके बावजूद अधिकांश घटनाओं से यह स्पष्ट है कि लॉकडाउन ने एक गलत मोड़ ले लिया है। वास्तव में, सामग्रियों की मुक्त आवाजाही में बाधाएं, भोजन की उपलब्धता से संबंधित अनिश्चितताएं पैदा कर सकती हैं, जिसके परिणामस्वरूप न केवल शहरों में बल्कि देश भर में उपभोक्ताओं और किसानों के लिए मूल्य अस्थिर हो जाएंगे। कुछ किसानों को कीमतों में तेज गिरावट देखने को मिल रही है, कुछ मामलों में तो यह आधे तक पहुंच गई है, क्योंकि परिवहन संबंधी जोखिम व्यापारियों को खरीद से रोक रहे हैं। चंद दिनों में हीं कुछ किसानों को ऐसा लगने लगा है कि उनके पास कोई खरीदार नहीं है; पहले से ही ऐसी खबरें हैं कि किसान फसल काटने में देरी कर रहे हैं। अगर हालात खराब होते हैं, तो वे खेतों में खड़ी फसल को छोड़ सकते हैं। इसके विपरीत, शहरों में उपभोक्ताओं के लिए, जल्द खराब होने वाली कई वस्तुओं की कीमतें काफी हद तक बढ़ जाएंगी। आपूर्ति श्रंखला की बाधाओं के कारण उत्पादन पर काफी नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है, खासकर जल्द खराब होने वाली वस्तुओं पर।
कई लोगों को यह उम्मीद है कि इन वर्तमान अड़चनों के प्रभाव केवल दो या तीन सप्ताह में ही स्पष्ट हो पाएंगे; सबसे खराब स्थिति में, अगर इन्हें बिना विचारे छोड़ दिया जाता है, तो ये उसी समय पर आएंगे जब इस महामारी का फैलाव वर्तमान की तुलना में कहीं अधिक होगा। इसलिए यहाँ, वक्त बहुमूल्य है।
आगे क्या करना चाहिए?
वर्तमान में कटाई जैसे कृषि कार्य अप्रभावित दिखाई देते हैं, यहां तक कि उन स्थानों पर भी जहां प्रवासी श्रमिकों पर निर्भरता है। इसलिए सरकार को अपना ध्यान, फौरन फसल कटाई के बाद की गतिविधियों, जैसे थोक और खुदरा विपणन, भंडारण और परिवहन, पर केन्द्रित कर देना चाहिए।
राज्यों के साथ केंद्र को, ज़रूरत के अनुसार, सभी मंडियों तथा सभी प्रकार की नियमित एवं अनियमित कृषि बाजारों (सार्वजनिक या निजी) को सामान्य रूप से कार्य करने की अनुमति देने के लिए सहमत होना चाहिए। महाराष्ट्र जैसे राज्य, जहां एपीएमसी मंडियों को बंद करने की घोषणा के बाद, सप्ताह के कुछ निर्धारित दिनों में व्यापार करने की अनुमति देते हुए, फिर से खोल दिया गया है और साथ ही उन्हें मंडी को विसंक्रमित करने के लिए भी अवसर प्रदान किया गया है। यह सही दिशा की ओर एक कदम है।
किसानों के सभी बाजारों को, सीधे किसान-से-उपभोक्ता व्यवस्था के रूप में समुदाय समर्थित कृषि और अन्य एफपीओ एवं सहकारी विपणन गतिविधियों को बिना किसी बाधा के काम करने की अनुमति दी जानी चाहिए। उदाहरण के लिए, तेलंगाना के रायथू बाज़ार, सबसे पहले प्याज की कीमतों की वृद्धि के दौरान और अधिक खतरनाक रूप से पिछले कुछ दिनों में, अक्सर उपभोक्ताओं की घबराहट का कारण रहे हैं। यदि सभी खाद्य खुदरा चाहते हैं तो उन्हें चौबीसों घंटे दुकान चलाने की अनुमति दी जानी चाहिए ताकि संभावित भीड़ को कम करने में मदद मिल सके।
वर्तमान में, वस्तुओं की आवाजाही के लिए नीति पर स्पष्टता नहीं है। यह आंशिक रूप से उन दिशानिर्देशों से जुड़ा हो सकता है जो वस्तुओं के आवश्यक होने या न होने के बारे में हैं और कम से कम कहने के लिए भ्रामक है।1,2 हालांकि, यह भी महत्वपूर्ण है कि किसानों के हितों की रक्षा के लिए गैर-खाद्य फसलों को भी मुफ्त आवाजाही और बिक्री की अनुमति दी जाए। उदाहरण के लिए, तमिलनाडु के दिशानिर्देश, स्पष्ट रूप से सभी माल वाहकों को परिचालन की अनुमति देता है (दिनांक 23 मार्च का जी.ओ.(एमएस).संख्या.152)। प्रशंसनीय दूरदर्शिता के साथ, तेलंगाना ने एक अलग आदेश (ज्ञापन सं.49, 23 मार्च 2020) के माध्यम से यह सुनिश्चित करने के लिए एक कदम आगे बढ़ाया है कि खरीफ मौसम की तैयारी में, जब बिजाई सामग्री की मांग होगी तो बीज उत्पादन, परीक्षण, भंडारण, और परिवहन में कोई बाधा न आए। आवाजाही में यह बाधा प्रणालीगत एवं व्यापक है और चयनित ऑपरेटरों को पास जारी करके इसे हल नहीं किया जा सकता है, उदाहरण के लिए, ई-कॉमर्स संबंधी फर्में। केंद्र और राज्यों को राज्य के भीतर और बाहर सभी कृषि वस्तुओं (खाद्य, गैर-खाद्य फसलों और आदानों) की मुक्त आवाजाही की अनुमति देने के लिए सहमत होना चाहिए।
आवाजाही संबंधी व्यवधानों में से कई व्यवधान "अति-उत्साही नौकरशाही" और पुलिस द्वारा लॉकडाउन को अनुचित तरीके से लागू करने के कारण आई है। कुछ व्यापारियों की शिकायत है कि इसके फलस्वरूप श्रमिकों का मिलना भी मुश्किल हो गया है। पुलिस को तत्काल यह सलाह दिए जाने की आवश्यकता है कि वह कृषि वस्तुओं की आवाजाही को रोकने के बजाय इसे सुविधाजनक बनाने का काम करें।
ऐसे समय में, मूल्य समर्थन कार्यों के तहत सरकारी खरीद महत्वपूर्ण है। उदाहरण के लिए, तेलंगाना ने ग्राम खरीद केंद्रों में भीड़ को कम करने के लिए विभिन्न किसानों के लिए अलग-अलग समय पर धान की विकेंद्रीकृत खरीद के लिए दिशा-निर्देश जारी किए हैं (जीओ एमएस संख्या.42, 22 मार्च 2020)। ओडिशा, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ जैसे कई राज्य पहले से ही ग्रामीण स्तर पर खरीद को विकेंद्रीकृत करने की क्षमता रखते हैं। राज्य स्व-सहायता समूहों, प्राथमिक कृषि ऋण सहकारी समितियों और यहां तक कि प्रचालनरत एफपीओ के माध्यम से भी ऐसा कर सकते हैं। सरकार ऐसे किसानों/एफपीओ, जो कि उत्पाद को रोकना चाहते हैं, को समर्थन देने के लिए गोदामों और कोल्ड स्टोरेज की अप्रयुक्त क्षमता को पट्टे पर दे सकती हैं, उन्हें गोदामों में प्राप्ति से जोड़ सकती हैं या मांगे जाने पर ऋण दे सकती हैं। कुछ मायनों में, इस तरह की योजनाएं नकद हस्तांतरण से परे की हैं, जिससे आपूर्ति और कीमतों को स्थिर करते समय यह सुनिश्चित होता है कि कटाई की गई उपज बर्बाद नहीं होगी। वास्तव में, यह देखते हुए कि कई राज्य सरकारें पहले ही भोजन वितरण की घोषणा कर चुकी हैं, खरीद भी इन प्रयासों में सहयोग दे सकती है।
स्वाभाविक रूप से, भंडारण, खरीद, और विपणन स्थलों को विसंक्रमित करने के साथ-साथ इन स्थानों में काम करने वाले लोगों के लिए सामाजिक दूरी रणनीति एवं सुरक्षात्मक उपायों के लिए कुछ प्रोटोकॉल जारी किए जाने की आवश्यकता है। इस समय, आपूर्ति श्रृंखला से जुड़े लोगों को इस बात से सुरक्षित महसूस कराने की आवश्यकता है कि वे न केवल महामारी बल्कि लॉकडाउन से भी सुरक्षित हैं। सरकार के लिए खाद्य और कृषि आपूर्ति श्रृंखलाओं को पटरी पर लाना बहुत मुश्किल नहीं है। ऐसा नहीं करने की कीमत बहुत भारी हो सकती है।
लेखक की टिप्पणियां: यहाँ उद्धृत कई उदाहरण जमीन पर उन लोगों के साथ व्यक्तिगत संवाद पर आधारित हैं, जिनमें किसान, एफपीओ के प्रमोटर और परिवहन संचालक शामिल हैं। उन्हें नैतिक कारणों से गुमनाम रखा गया है।
नोट्स:
- शब्द "आवश्यक" का उपयोग आवश्यक वस्तु अधिनियम से किया गया है, जिसके द्वारा कुछ वस्तुओं को आवश्यक के रूप में अधिसूचित किया गया है। लोगों (जिनमें पुलिस शामिल है) द्वारा उन्हें न जानने का कोई औचित्यपूर्ण कारण नहीं दिया जा सकता।
- ज्यादातर राज्यों ने महामारी रोग अधिनियम (1897 के केंद्रीय अधिनियम संख्या 3) की धारा 2, का उपयोग किया है, जिसे अक्सर राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन अधिनियम (2005) द्वारा लॉकडाउन घोषित करने के लिए सक्षम किया जाता है; वास्तविक अधिसूचनाएं राज्यवार काफी भिन्न होती हैं।
लेखक परिचय: सुधा नारायणन मुम्बई स्थित इंदिरा गांधी इंस्टीट्यूट फॉर डेवलपमेंट रिसर्च में एसोसिएट प्रोफेसर के पद पर कार्यरत हैं।
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