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विद्युत अधिनियम में संशोधन: सजग दृष्टिकोण की आवश्यकता

  • Blog Post Date 08 दिसंबर, 2022
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विद्युत अधिनियम, 2003 में हाल ही में प्रस्तावित संशोधन कुछ विधायी परिवर्तनों के साथ लगभग दो दशकों के बाद आया है। इस लेख में, दीक्षित और जोसे बिजली क्षेत्र के विकास- विशेष रूप से उस समय के दौरान प्रौद्योगिकी संचालित परिवर्तनों की समीक्षा करते हैं,और अधिनियम में प्रस्तावित कुछ संशोधनों के इस क्षेत्र के कामकाज पर पड़ने वाले सकारात्मक प्रभावों के बारे में चर्चा करते हैं। साथ ही,वे इन संशोधनों के पहलुओं के चलते आगे उपस्थित होने वाले उन प्रश्नों को भी सामने लाते हैं जिनको सजग दृष्टिकोण से हल किया जाना चाहिए।

भारत में विद्युत क्षेत्र के विकास हेतु विधायी ढांचा प्रदान करने वाले विद्युत अधिनियम, 2003,को फिर से संशोधित किये जाने का प्रस्ताव है। वर्ष 2014 के बाद से इस अधिनियम में संशोधन के पूर्व-प्रयास कई कारणों से आगे नहीं बढ़ सके। यद्यपि वर्ष 2007 में कुछ संशोधन किए गए थे,विद्युत क्षेत्र में बड़े विधायी परिवर्तन को हुए लगभग दो दशक बीत चुके हैं। तब से, इस क्षेत्र में कई महत्वपूर्ण परिवर्तन हुए हैं। उदाहरण के लिए, सौर फोटोवोल्टिक (पीवी) विद्युत उत्पादन, जो वर्ष 2003 में नहीं था,अब यह लागत में कमी,मॉड्यूलर स्वरूप और काफी कम सामाजिक और पर्यावरणीय प्रभावों के कारण नई क्षमता वृद्धि में केन्द्रीय स्थान पर आ गया है। ग्रिड-स्केल एनर्जी स्टोरेज सिस्टम जैसी नई प्रौद्योगिकियां- जो अक्षय ऊर्जा के बढ़ते हिस्से के प्रबंधन के लिए महत्वपूर्ण हैं, समान व्यावसायीकरण और लागत में कमी के कगार पर हैं। पिछले दो दशकों में, मीटरिंग और बिलिंग तकनीकों का भी महत्वपूर्ण विकास हुआ है।

पिछले दो दशकों में हुई प्रगति

भारत ने लगातार, बड़े पैमाने पर बिजली की कमी को दृढ़ता से दूर किया है और सार्वभौमिक विद्युतीकरण के करीब पहुंच गया है। पिछले दो दशकों में,बढ़े हुए नीतिगत दबाव और प्रतिस्पर्धी अक्षय ऊर्जा विकल्पों की उपलब्धता के कारण थोक बिजली बाजारों में भी काफी वृद्धि हुई है। उपभोक्ता बिजली की खरीद के लिए ओपन एक्सेस और कैप्टिव1 विकल्पों का उपयोग कर सकते हैं,और बिजली एक्सचेंजों पर एक दिन पहले (या तीन महीने पहले तक भी) बिजली खरीदने के लिए विविध बाजार अनुबंधों का उपयोग कर सकते हैं। भारत भी उन एकमात्र देशों में से एक है जिनके पास हरित ऊर्जा की खरीद के लिए समर्पित विशिष्ट बाजार अनुबंध हैं। केंद्र और राज्य स्तर पर नियामक आयोगों ने ग्रिड को बेहतर ढंग से प्रबंधित करने हेतु पूर्वानुमान, शेड्यूलिंग और विचलन निपटान नियमन2 जैसे कई नियम बनाए हैं। दूसरी ओर, हमें अभी भी खासकर अर्ध-शहरी और ग्रामीण उपभोक्ताओं के लिए, आपूर्ति और सेवा की गुणवत्ता में सुधार लाने के लिए एक लंबा रास्ता तय करने की जरूरत है। हमें गरीबी की चुनौती का समाधान करने और जीवन की गुणवत्ता में सुधार लाने के लिए गरीब से गरीब परिवारों और छोटे उद्यमों की बढ़ती खपत को सक्षम करने की दिशा में ठोस प्रयास करने की आवश्यकता है। क्षेत्र की- विशेष रूप से वितरण क्षेत्र की वित्तीय स्थिरता संबंधी समस्याएं, जिन्हें अभी भी आवधिक बचाव पैकेज की आवश्यकता है, को संबोधित करने की आवश्यकता है।

प्रस्तावित अधिनियम संशोधनों के साथ, केंद्र सरकार ने हाल के दिनों में कई नियम भी जारी किए हैं: बेहतर भुगतान पालन हेतु देरी से भुगतान अधिभार और संबंधित मामले नियम; और बड़ी संख्या में उपभोक्ताओं के लिए स्वच्छ बिजली की प्रतिस्पर्धी खरीद के रास्ते बढ़ाने के लिए ग्रीन ओपन एक्सेस नियम अधिसूचित किए गए हैं। अक्षय ऊर्जा की खरीद और उपयोगिताओं के लिए राजस्व की समय पर वसूली के संबंध में विद्युत संशोधन नियमों का मसौदा भी जनता की टिप्पणियों के लिए परिचालित किया गया है। 8 सितंबर 2022 को, विद्युत मंत्रालय ने विद्युत लाइसेंस के वितरण (पूंजी पर्याप्तता, साख और आचार संहिता की अतिरिक्त आवश्यकताएं) (संशोधन) नियम, 2022 को भी अधिसूचित किया, जो कई वितरण लाइसेंसधारियों के उसी क्षेत्र में संचालन के लिए आपूर्ति के न्यूनतम क्षेत्र को स्पष्ट करता है।  इससे प्रचलित कानून में महत्वपूर्ण संशोधनों के बिना भी कई वितरण लाइसेंसधारियों को शामिल किया जा सकता है। विद्युत अधिनियम में प्रस्तावित संशोधनों को इस व्यापक संदर्भ में देखे जाने की आवश्यकता है।

भविष्य के लिए जरूरी बदलाव

मौजूदा कानून की कुछ कमियों को दूर करने के साथ-साथ, पिछले दो दशकों के न्यायिक निर्देशों और कमियों को दूर करने के लिए अधिनियम में कई संशोधन प्रस्तावित हैं। विद्युत अधिनियम, 2003 के तहत नियामक आयोगों के आदेशों के खिलाफ अपील सुनने के लिए एक अपीलीय न्यायाधिकरण (एपीटीईएल) का गठन किया गया। पिछले कुछ वर्षों में, एपीटीईएल के समक्ष बड़ी संख्या में मामले दर्ज किए गए हैं जो कई वर्षों से लंबित हैं। टैरिफ ऑर्डर, बिजली खरीद समझौतों (पीपीए) से संबंधित विवादों और विभिन्न नियमों और विनियमों की व्याख्या से जुड़े महत्वपूर्ण मामलों पर एपीटीईएल के निर्णयों में देरी की वजह से नियामक निर्णय लेने में गड़बड़ी होती है। इससे नियामक अनिश्चितता और भारी वहन लागत3 बोझ भी होता है, और यह वितरण कंपनियों के वित्तीय संकट को और बढ़ाता है। इस संदर्भ में, एपीटीईएल के सदस्यों की संख्या बढ़ाकर न्यूनतम सात करने का प्रस्ताव स्वागत-योग्य है। इसे सभी रिक्तियों को समय पर भरने,देश में कई स्थानों पर एपीटीईएल बेंचों के प्रभावी कामकाज और उपभोक्ताओं के लिए किफायती कानूनी फीस (वैष्णव एवं अन्य 2018) रखते हुए समर्थन दिए जाने की आवश्यकता है।

नियामक शासन को प्रभावित करने वाली एक और निरंतर समस्या आयोगों में रिक्तियों को भरने में लंबी देरी रही है। केंद्र सरकार को राज्य आयोग के कामकाज को राज्य सरकार के परामर्श से किसी अन्य राज्य आयोग को सौंपने में सक्षम बनाने का प्रावधान किया जाए तो यह राज्यों को समय पर नियुक्तियां करने के लिए प्रेरित कर सकता है। लेकिन कुछ प्रावधान जैसे- आयोग-अध्यक्षों को चुनने का अधिकार केवल विद्युत क्षेत्र के संगठनों और सरकारी सचिवों के प्रमुखों तक सीमित रखना या कुछ न्यायिक कार्यों को अनिवार्य रूप से पूर्ण आयोग द्वारा नहीं, तो आयोग की एक बेंच द्वारा निष्पादित करने की आवश्यकता, नियामक प्रभावशीलता को कमजोर करेगा। नियामक प्रभावशीलता को मजबूत करने के कुछ अन्य प्रस्तावों पर प्रस्तावित संशोधन में विचार किया जा सकता था। इनमें उपभोक्ता प्रतिनिधियों की नियुक्ति को अनिवार्य बनाना और आपूर्ति, सेवा और सुरक्षा पहलुओं की गुणवत्ता पर ध्यान बढ़ाने हेतु  नियामक आयोगों के अधिदेश को मजबूत करना शामिल है।

एक अन्य आवश्यक प्रस्तावित संशोधन यह स्पष्ट करना है कि ऊर्जा भंडारण प्रणाली बिजली व्यवस्था का एक हिस्सा है। इससे ग्रिड में बड़े पैमाने पर अक्षय ऊर्जा के युग में, ग्रिड की समग्र स्थिरता और विश्वसनीयता को लाभ पहुंचाने हेतु बिजली भंडारण प्रणालियों के परिनियोजन को अनुकूलित करने के लिए आवश्यक उपयुक्त नीति और नियामक उपायों का मार्ग प्रशस्त होगा।अक्षय ऊर्जा की खरीद संबंधी दायित्वों को अनिवार्य करने वाला प्रस्तावित संशोधन,राज्यों में अक्षय ऊर्जा की खरीद संबंधी दायित्वों में स्थिरता लाएगा और इन दायित्वों के अनुपालन के लिए दंड में तेजी से वृद्धि करने का प्रस्ताव भी अक्षय ऊर्जा के परिनियोजन में तेजी लाने के लिए आवश्यक है। केंद्र सरकार द्वारा जारी कॉरपोरेट गवर्नेंस दिशानिर्देशों का अनुपालन सभी लाइसेंसधारियों द्वारा किये जाने की आवश्यकता संबंधी प्रावधान एक और स्वागत-योग्य प्रावधान है,जो लाइसेंसधारियों को बेहतर कॉरपोरेट गवर्नेंस उपायों को अपनाने हेतु प्रेरित कर सकता है।

कुछ जोखिम भरे प्रस्ताव और अनुत्तरित प्रश्न

अधिनियम के मूलभूत पुनर्गठन प्रस्तावों में से एक है कई वितरण लाइसेंसधारियों को अनुमति देकर उपभोक्ताओं को आपूर्तिकर्ताओं का विकल्प प्रदान करना। प्रस्ताव के अनुसार, किसी भी लाइसेंसधारी को उसके आपूर्ति-क्षेत्र में किसी भी उपभोक्ता को आपूर्ति करने के लिए अन्य लाइसेंसधारियों के वायर नेटवर्क का उपयोग करने की अनुमति है। इसे सक्षम करने के लिए, कई संबंधित प्रावधान हैं, जैसे कि न्यूनतम और अधिकतम टैरिफ तय करने का प्रावधान, क्रॉस-सब्सिडी बैलेंसिंग फंड का निर्माण,मौजूदा बिजली खरीद और संबंधित लागत को आपूर्ति के क्षेत्र में सभी वितरण लाइसेंसधारियों के बीच साझा करना आदि। तथापि, इससे कई प्रश्न और मुद्दे उपस्थित होते हैं, जिन्हें हल करना होगा।

उदाहरण के लिए, एक ही क्षेत्र में काम कर रहे वितरण लाइसेंसधारियों की वित्तीय व्यवहार्यता सुनिश्चित करने हेतु बिलकुल अलग उपभोक्ता आधार और बिजली की मांग के साथ लागत-प्रतिबिंबित टैरिफ कैसे प्रदान किया जा सकता है? प्रस्तावित संशोधन में यह अनिवार्यता है कि सभी वितरण लाइसेंसधारियों को संसाधन पर्याप्तता सुनिश्चित करनी है। हालांकि,बदलती मांग के साथ ऐसे कई लाइसेंसधारियों के लिए संसाधन पर्याप्तता कैसे सुनिश्चित की जायेगी? अलग-अलग लागत संरचनाओं वाले विभिन्न लाइसेंसधारियों के परिदृश्य में न्यूनतम और अधिकतम टैरिफ कैसे निर्धारित किया जाएगा, जबकि सभी लागत-प्लस परिदृश्य के तहत कार्य कर रहे हैं? क्या विभिन्न उपभोक्ता श्रेणियों के लिए ऐसे न्यूनतम और अधिकतम टैरिफ अलग-अलग होंगे?

चूंकि ये 'वितरण' लाइसेंसधारी होंगे, सभी लाइसेंसधारी वितरण नेटवर्क में निवेश करने के हकदार होंगे। इस परिदृश्य में तारों में निवेश के दोहराव या नेटवर्क में कम निवेश से कैसे बचा जा सकता है? केवल लाभकारी बातों को अपनाने को रोकने के उपाय कौन-से और कितने प्रभावी होंगे? वितरण क्षेत्र में खराब मीटरिंग और ऊर्जा गणना लंबे समय से एक समस्या रही है। एक से अधिक वितरण लाइसेंसधारी इस समस्या का समाधान कैसे करेंगे? या यह प्रस्ताव चुनौती को और बढ़ाएगा?

इनमें से कुछ सवालों का समाधान या उन्हें स्पष्ट करने का प्रयास नियमों और विनियमों, या नीतियों के माध्यम से किया जा सकता है। लेकिन पिछले दो दशकों के दौरान इस क्षेत्र के  मुकदमेबाजी, कमजोर नियामक प्रवर्तन तथा इस व्यवस्था के स्वाभाविक रूप से जटिल और गतिशील स्वरूप को देखते हुए सभी उपभोक्ताओं को इष्टतम लागत पर विश्वसनीय बिजली आपूर्ति प्रदान करने में सक्षम वित्तीय रूप से व्यवहार्य और प्रतिस्पर्धी वितरण क्षेत्र के उद्देश्य को प्राप्त करने में महत्वपूर्ण जोखिम हो सकता है। इससे कई जटिल मुकदमें भी बन सकते हैं जिन्हें हल करने में वर्षों लग जाते हैं, जिसके परिणामस्वरूप स्पष्ट नीतिगत ढांचे की तत्काल आवश्यकता होते हुए भी इस दिशा में निष्क्रियता होती है।

एक आसान और तेज़ वैकल्पिक दृष्टिकोण

निश्चित रूप से,उपभोक्ताओं को प्रतिस्पर्धी आपूर्ति विकल्प प्रदान करने और वितरण उपयोगिताओं के बीच आपूर्ति दक्षता को प्रोत्साहित करने की आवश्यकता है। हाल ही में अधिसूचित ग्रीन ओपन एक्सेस नियमों में दृष्टिकोण के अनुरूप,ओपन एक्सेस विकास को सक्षम करके इस उद्देश्य को बेहतर ढंग से प्राप्त किया जा सकता है। बिजली अधिनियम, 2003 के तहत वर्ष 2008 से 1 मेगावाट से अधिक भार वाले सभी उपभोक्ताओं के लिए ओपन एक्सेस अनिवार्य कर दिया गया है | मीटरिंग लागत में कमी, प्रौद्योगिकी विकास (उत्पादन और भंडारण विकल्पों के संदर्भ में) और ऊर्जा गणना उपायों के विकास, ग्रिड प्रबंधन प्रोटोकॉल आदि), को ध्यान में रखते हुए, अगले पांच साल की समय-सीमा में सभी उपभोक्ताओं द्वारा खुली पहुंच का लाभ उठाये जाने के लिए उन्हें एक निश्चित भार (लगभग, 20 किलोवाट) से ऊपर सक्षम करके खुली पहुंच का मार्ग और भी प्रशस्त करने का समय आ गया है। इसे राजस्व के नुकसान-स्वरूप मौजूदा वितरण लाइसेंसधारियों को क्षतिपूर्ति प्रदान करने और वितरण अवसंरचना में पर्याप्त निवेश का समर्थन करने हेतु एक निश्चित अवधि (जैसे पांच से सात साल तक) के लिए उचित क्रॉस सब्सिडी अधिभार के विनिर्देश के साथ पूरक होना चाहिए। राज्यों में कई वर्षों से खुली पहुंच को अपनाया जा रहा है, अतः वहां आवश्यक नियामक,ऊर्जा गणना और प्रक्रियात्मक प्रथाएं पहले से ही मौजूद हैं। इसलिए, उपभोक्ताओं को विकल्प प्रदान करने और आपूर्ति लागत में दक्षता लाने के लिए यह एक तेज़ और कम जोखिम-भरा मार्ग होगा (जोसे एवं अन्य 2018)। यह व्यवस्था उन उपभोक्ताओं के वर्ग को भी एक विकल्प प्रदान करेगी जो इसका प्रयोग करने की सबसे अधिक संभावना रखते हैं।

भारत में बिजली क्षेत्र एक महत्वपूर्ण मोड़ पर है, जहां यह कई चुनौतियों का सामना कर रहा है। इस मोड़ पर, मौलिक रूप से नए, महत्वपूर्ण अनिश्चितता से भरे विघटनकारी परिवर्तन बिजली उत्पादन के साथ-साथ इसके वितरण में अपर्याप्त निवेश का जोखिम पैदा करते हैं। यह बहुत बड़ा जोखिम हो सकता है, खासकर तब, जब अन्य विकल्प मौजूद हों और पहले से ही लागू किए जा रहे हों। यह एक स्वागत-योग्य स्थिति है कि संशोधन विधेयक को ऊर्जा संबंधी संसदीय स्थायी समिति के पास भेज दिया गया है, जो प्रस्तावित संशोधनों पर गहन विचार-विमर्श करेगी।

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टिप्पणियाँ:

  1. ओपन एक्सेस के तहत, वितरण कंपनियों (डिस्कॉम) से बिजली की आपूर्ति प्राप्त करने के बजाय,उपभोक्ताओं के पास जनरेटर से बिजली आपूर्ति प्राप्त करने के लिए मौजूदा ट्रांसमिशन और वितरण नेटवर्क का उपयोग करने का विकल्प होता है, जिनके साथ उनका बिजली आपूर्ति अनुबंध होता है। ओपन एक्सेस का लाभ उठाने वाले उपभोक्ता सेवा का लाभ उठाने के लिए उपयोगिताओं को कुछ शुल्क देते हैं। विद्युत अधिनियम, 2003, किसी भी व्यक्ति या व्यक्तियों के समूह को अपने स्वयं के उपयोग के लिए बिजली संयंत्र स्थापित करने की अनुमति देता है। यदि संयंत्र उपभोक्ता के परिसर में स्थित नहीं है, तो उपभोक्ता संयंत्र से बिजली का उपयोग करने के लिए ओपन एक्सेस प्रावधान का उपयोग कर सकता है।
  2. ये विनियमन पवन और सौर ऊर्जा, जो प्रकृति में परिवर्तनशील हैं- के लिए पूर्वानुमान और समय-निर्धारण, और विचलन के निपटान की सुविधा हेतु (राष्ट्रीय और राज्य-स्तर पर) एक फ्रेमवर्क प्रदान करते हैं। इनसे बेहतर समय-निर्धारण प्रथाएं सुनिश्चित की जाती हैं और ग्रिड स्थिरता और सुरक्षा को बनाए रखते हुए अक्षय ऊर्जा के बेहतर ग्रिड एकीकरण में सहायता मिलती है।
  3. वहन लागत का तात्पर्य नियामक द्वारा अनुमोदित लागतों की देरी से वसूली पर उत्पादन और वितरण कंपनियों द्वारा किए गए ब्याज लागत से है।

लेखक परिचय: शांतनु दीक्षित प्रयास (ऊर्जा समूह) के संस्थापक सदस्यों में से एक हैं। ऐन प्रयास (ऊर्जा समूह) में एक फेलो हैं।

 

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