कोविड- 19 के प्रसार को रोकने हेतु लगाई गई पाबंदियों और सामाजिक दूरी के दिशानिर्देशों के मद्देनजर फेस-टू-फेस सर्वेक्षणों के माध्यम से डेटा संग्रह करने में बड़ी बाधाओं का सामना करना पड़ा है। इस पोस्ट में कॉफ़ी एवं अन्य ने उनके द्वारा सामाजिक नज़रिया, भेदभाव, और सार्वजनिक राय पर वर्ष 2016 के बाद भारत के सात राज्यों एवं शहरों में किए गए मोबाइल फोन सर्वेक्षण करने के अपने अनुभव को साझा किया है।
आज जब कोविड-19 महामारी भारत और दुनिया भर में फैली हुई है, शोधकर्ताओं को उत्तरदाताओं और साक्षात्कारकर्ताओं को जोखिम में डाले बिना डेटा एकत्र करने के तरीके खोजने होंगे। इसलिए यही उपयुक्त समय है कि हम सामाजिक दृष्टिकोण, भेदभाव, और सार्वजनिक राय पर वर्ष 2016 के बाद से भारत के सात राज्यों और शहरों में किए गए हमारे एक मोबाइल फोन सर्वेक्षण - सामाजिक ऐटीट्यूड अनुसंधान, भारत (एसएआरआई) (हाथी एवं अन्य, 2020) के संचालन के हमारे अनुभव का वर्णन करें। अन्य शोधकर्ताओं के लिए इस सर्वेक्षण के तरीकों को अन्य प्रश्नों और संदर्भों के अनुकूल बनाना लक्ष्य है ।
प्रतिनिधि नमूने और मोबाइल फोन सर्वेक्षण
सांख्यिकी 101 (कोर्स) में छात्रों को यह तथ्य पता चलता है कि 1,000 या 1,500 प्रतिभागियों का एक सही चुना हुआ नमूना हमें लाखों या करोड़ों लोगों की आबादी के बारे में बहुत हद तक सटीक जानकारी दे सकता है। यह दुनिया के बारे में जानने के लिए प्रतिनिधि नमूना को एक अत्यंत शक्तिशाली उपकरण बनाती है।
तब भी, जिन अधिकांश सर्वेक्षण नतीजों को हम रोज़ देखते हैं, वे प्रतिनिधि नमूनों से नहीं हैं। इसके बजाय वे एक ‘स्वैच्छिक प्रतिक्रिया’ नमूने से हो सकते हैं - उदाहरण के लिए जैसे एक टेलीविजन कार्यक्रम दर्शकों को कॉल करने और एक नीति पर अपनी राय देने के लिए कहता है। ये सुविधा-आधारित नमूने शोधकर्ताओं और नीति निर्माताओं को इस बात से आश्वस्त नहीं कराते हैं कि ये परिणाम केवल सर्वेक्षण का उत्तर देने वाले चुनिंदा समूह के लिए हीं नहीं बल्कि सभी के लिए सही हैं।
क्या प्रतिनिधि नमूने प्राप्त करने के लिए पर्याप्त लोगों के पास मोबाइल फोन हैं
कई वर्षों के लिए शोधकर्ताओं ने टिप्पणी की कि फोन सर्वेक्षणों का उपयोग निम्न और मध्यम आय वाले देशों में प्रतिनिधि नमूनों को स्थापित करने के लिए नहीं किया जा सकता है। इसका कारण यह है कि अमीर देशों के विपरीत, निम्न और मध्यम आय वाले देशों में अधिकांश घरों में फोन नहीं होते हैं। मगर भारत में मोबाइल फोन-धारकों में तेजी से वृद्धि के साथ, यह अब बदल रहा है।
नीचे दी गई तालिका में राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (एनएफएचएस) 2015 के डेटा का उपयोग यह दर्शाने के लिए किया गया है कि प्रत्येक शहर/राज्य में कम से कम एक मोबाइल उपभोगता वाले घरों का अनुपात कितना है। मेट्रो शहरों में, घरेलू स्तर के मोबाइल फोन का स्वामित्व लगभग 100% था। बिहार और झारखंड में भी 2015 में 10 में से लगभग 9 घरों में एक मोबाइल फोन था, जो भारत के सबसे गरीब राज्यों में गिने जाते हैं। ये संख्या 2015 के बाद से पाँच वर्षों में काफी बढ़ गई है। उदाहरण के लिए - बिहार में, जहाँ एनएफएचएस डेटा 2015 में छह महीने की अवधि में एकत्र किए गए थे, सर्वेक्षण के आखिरी महीने में साक्षात्कार किए गए परिवारों में पहले महीने में साक्षात्कार किए गए घरों की तुलना में मोबाइल फोन होने की संभावना लगभग 4 प्रतिशत अधिक रही।
तालिका 1. ऐसे घरों का अनुपात जिनमें कम से कम एक मोबाइल उपभोगता हैं
घरों में मोबाईल कवरेज (%) |
|
दिल्ली |
99% |
मुंबई |
97% |
राजस्थान |
94% |
उत्तरप्रदेश |
92% |
महाराष्ट्र |
91% |
बिहार-झारखंड |
89% |
यह जानने के लिए कि क्या भारत में घरेलू स्तर का मोबाइल फोन कवरेज अब सार्वभौमिक है, हमें फेस-टू-फेस घरेलू सर्वेक्षणों से नए डेटा की आवश्यकता है। यह कहना उचित है कि यह काफी अधिक है। हमारे विचार में, अगर शोधकर्ता नीचे उल्लिखित नमूनाकरण रणनीति का पालन करें, तो हम अब भारत के अधिकांश क्षेत्रों में उच्च-गुणवत्ता के नमूनों को स्थापित करने के लिए मोबाइल फोन का घरों में न होना बाधक नहीं है।
एक प्रतिनिधि मोबाइल फोन सर्वेक्षण के लिए उत्तरदाता चयन
‘सारी’ के लिए उत्तरदाता चयन की शुरुआत भारत के दूरसंचार नेटवर्क में मोबाइल नंबर पैटर्न के आधार पर रैंडम डिजिट डायलिंग से होती है। दूरसंचार विभाग मोबाइल फोन कंपनियों को पांच अंकों की एक ‘श्रृंखला’ प्रदान करता है जिसे वे 10 अंकों के मोबाइल फोन नंबरों की शुरुआत में उपयोग कर बेचने की अनुमति देते हैं।‘सारी’ टीम हर 'मोबाइल सर्कल' में संभावित सक्रिय नंबरों का एक नमूना फ्रेम पहले एक सूची बनाकर तैयारी करती है। इस फ्रेम में कोई भी सिरीज़ उस अनुपात में होती है जिस अनुपात में सिरीज़ पाने वाली कंपनी ने भारतीय दूरसंचार नियामक प्राधिकरण (टीआरएआई) को अपने उपभोगता बताए हैं। फिर हम एक 10-अंकीय मोबाइल नंबर बनाने के लिए प्रत्येक श्रृंखला में रैनडम तरीके से उत्पन्न पांच-अंकीय संख्या को जोड़ते हैं। ‘सारी’ साक्षात्कारकर्ता इन नंबरों पर रैनडम क्रम में कॉल करते हैं। बेशक, इनमें से कुछ नंबर सक्रिय नहीं होते हैं। लेकिन डायलिंग के लिए बिताया गया समय हमारी पहुँच को सार्थक बनाता है।
लगभग हर घर में एक मोबाइल फोन हो सकता है, लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि हर सदस्य के पास एक है। ‘सारी’ पायलटिंग से पता चला है कि बूढ़े सदस्य और महिलाओं में युवा सदस्यों और पुरुषों की तुलना में मोबाइल फोन रखने की संभावना कम होती है। यह सुनिश्चित करने के लिए कि जिन सदस्यों के पास अपना मोबाइल फोन नहीं है, वे नमूने में शामिल हैं, हम घर में से एक सदस्य का चयन करते हैं। जो व्यक्ति फोन का जवाब देता है, उसे घर में सभी सदस्यों के बारे में बताने के लिए कहा जाता है जिनके पास मोबाइल फोन नहीं है – `सारी’ के प्रयोजनों के लिए ये 18-65 आयु वर्ग के वयस्क हैं जो साक्षात्कारकर्ता के समान स्त्री या पुरुष हैं। जिस सर्वेक्षण सॉफ़्टवेयर का साक्षात्कारकर्ता रिकॉर्डिंग प्रतिक्रियाओं के लिए उपयोग करते हैं, सूची में से एक प्रतिवादी को रैनडम तरीके से चुनता है।
अगला कदम साक्षात्कारकर्ताओं के लिए चयनित उत्तरदाता से बात करने के लिए अनुरोध करने का है। यह कदम मुश्किल हो सकता है और इसमें पर्याप्त प्रशिक्षण की आवश्यकता होती है। ऐसा इसलिए है क्योंकि साक्षात्कारकर्ताओं को अपने फोन का जवाब देने वाले व्यक्ति को समझाना पड़ता है कि उनको छोड़कर यह सर्वेक्षण उनके परिवार के सदस्य के साथ किया जाना महत्वपूर्ण क्यों है। साक्षात्कारकर्ता अक्सर चयनित प्रतिवादी से बात करने के लिए कॉल-बैक का समय निर्धारित करते हैं। `सारी’ टीम एक्सेल स्प्रेडशीट और ऑन-पेपर रिकॉर्ड के संयोजन का उपयोग करती है ताकि यह पता लगाया जा सके कि किस नंबर और उत्तरदाताओं को वापस और कब बुलाया जाना चाहिए।
नमूने की गुणवत्ता की निगरानी
जैसे-जैसे डेटा एकत्र किया जा रहा है, शोधकर्ता प्रतिनिधि विशेषताओं के प्रति अपनी सफलता को किसी जनगणना या अन्य किसी विश्वसनीय बड़े पैमाने पर फेस-टू-फेस सर्वेक्षण की तुलना करके ट्रैक कर सकते हैं। ‘सारी’ में उत्तरदाताओं की जनसांख्यिकी विशेषताओं की तुलना आयु, शिक्षा, जाति, स्थान (ग्रामीण/शहरी), और लिंग पर जनगणना के डेटा से की जाती है। नीचे दी गई आकृति 1 इस तरह की तुलना का एक उदाहरण प्रदान करता है - यह 2011 की जनगणना और एसएआरआई नमूना3 में विभिन्न आयु वर्गों के वितरण को दर्शाता है।
आकृति 1. महाराष्ट्र राज्य और 2011 की जनगणना से ‘सारी’ नमूने में वयस्क आयु के वितरण
क्योंकि कुछ सामाजिक समूहों के व्यक्तियों से सर्वेक्षण का जवाब मिलने की अधिक संभावना है, ‘सारी’ अन्य सर्वे की तरह ‘सर्वे-वेट्स’ का इस्तेमाल करता है। फिर भी, साक्षात्कारकर्ता सभी शिक्षा स्तरों, जातियों, उम्र, और भाग लेने वाले स्थानों से उत्तरदाताओं को समझाने की कोशिश करते हैं। सर्वेक्षण लीडर साक्षात्कारकर्ताओं को एक साथ और व्यक्तिगत रूप से नमूने के बारे में बताते हैं। ‘सारी’ के सर्वेक्षणकर्ताओं का वेतन संरचना प्रतिनिधि नमूने के निर्माण पर जोर को दर्शाता है - वे प्रति सर्वेक्षण अर्जित आय के बजाय वेतनभोगी हैं। प्रति-सर्वेक्षण के आधार पर सर्वेक्षणकर्ताओं का भुगतान करने से उन्हें केवल सबसे आसान पहुंच वाले उत्तरदाताओं का साक्षात्कार करने के लिए वित्तीय प्रोत्साहन मिलेगा।
सर्वेक्षण विधि पर और अनुसंधान की आवश्यकता
हमारी हालिया रिपोर्ट में भारतीय वयस्कों के प्रतिनिधि नमूनों से ‘सारी’ के निर्माण और सीखने की चुनौतियों और सफलताओं पर प्रकाश डाला गया है। हम आशा करते हैं कि जैसे अन्य शोध दल फोन सर्वेक्षणों का उपयोग करते हैं, वे प्रतिनिधि नमूने बनाने का प्रयास करेंगे और अपने अनुभवों को दूसरों के साथ साझा करेंगे। अमीर देशों के विपरीत, जहां सर्वेक्षण के तरीकों पर एक बड़ा साहित्य है, जिसमें सर्वेक्षण मध्यम प्रभाव, साक्षात्कारकर्ता प्रभाव, और सवाल शब्द तथा आदेश प्रभाव शामिल हैं, इस तरह के शोध भारत में बहुत कम प्रचलित हैं। फिर भी, शोधकर्ताओं को कोविड-19 महामारी जैसी परिस्थितियों के माध्यम से सटीक जानकारी एकत्र करने के लिए इसकी आवश्यकता है।
यह आलेखों की तीन शृंखलाओं का पहला भाग है। अगले भाग में, लेखक चर्चा करेंगे कि मानसिक स्वास्थ्य को मापने के लिए जनसंख्या-स्तर के स्वास्थ्य सर्वेक्षण में शामिल करने के लिए मोबाइल फोन सर्वेक्षण एक मूल्यवान माध्यम कैसे हो सकता है।
टिप्पणियाँ:
- उदाहरण के लिए, यदि किसी राज्य में सभी मोबाइल फोन उपभोक्ताओं में से 70% लोगों के पास कंपनी X के फ़ोन नंबर हैं, और कंपनी X के पास ट्राई से 30 श्रृंखलाएँ हैं, तो ‘सारी’ के 70% फ़ोन नंबर नमूना कंपनी X की श्रृंखला से आएंगे, और समान रूप से 30 श्रृंखलाओं के बीच विभाजित होंगे।
- एसएआरआई ‘सारी’ की डेटा गुणवत्ता जांच के बारे में अधिक जानकारी रिपोर्ट में उपलब्ध है।
लेखक परिचय: डाएन कॉफी अमेरिका के ऑस्टिन स्थित यूनिवर्सिटी ऑफ टेक्सास में समाजशास्त्र और जनसंख्या अनुसंधान की असिस्टेंट प्रोफेसर और भारतीय सांख्यिकी संस्थान (आइएसआइ), दिल्ली में विजिटिंग रिसर्चर हैं। अमित थोराट जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय, दिल्ली के सेंटर फॉर रीजनल डेव्लपमेंट में असिस्टेंट प्रोफेसर हैं। पायल हाथी यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया बर्कली में जनसांख्यिकी में पीएचडी कर रही हैं। नज़र खालिद यूनिवर्सिटी ऑफ पेंसिलवेनिया में जनसांख्यिकी एवं जनसंख्या अध्ययन में पीएचडी कर रहे हैं, साथ हीं वे रिसर्च इंस्टीट्यूट फॉर कंपैशनेट इक्नोमिक्स (राइस) में रिसर्च फैलो हैं। निधि खुराना राइस में रिसर्च फैलो हैं।
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