तान्या राणा और नेहा सुज़ैन जैकब केंद्रीय बजट के लैंगिक बजट वक्तव्य या जेंडर बजट स्टेटमेंट (जीबीएस) के माध्यम से, उसके दो हिस्सों के तहत विभिन्न मंत्रालय और विभाग किन योजनाओं को प्राथमिकता देते हैं, इस पर ध्यान देते हुए योजना आवंटन को वर्गीकृत कर के उसका विश्लेषण करते हैं। वे मनमाने वर्गीकरण, यानी जो योजनाएं पूरी तरह से महिला-केन्द्रित नहीं उनको शामिल करने और योजना के उद्देश्यों को पूरा करने में अपर्याप्त आवंटन संबंधी मुद्दों पर चर्चा करते हैं। वे महिलाओं के सशक्तिकरण हेतु वित्तीय प्राथमिकताओं के लिए निगरानी और स्पष्ट योजना वर्गीकरण की आवश्यकता पर ज़ोर देते हैं।
महिलाओं के आर्थिक, सामाजिक और राजनीतिक सशक्तिकरण (विश्व आर्थिक मंच, 2022) के संदर्भ में वर्ष 2022 में, भारत 146 देशों की सूची में 135वें स्थान पर था। इस पृष्ठभूमि में, इस पर विचार किया जाना चाहिए कि महिलाओं के व्यापक सशक्तिकरण में शासन किस तरह की भूमिका निभा सकता है? एक तरीका लैंगिक बजट वक्तव्य या जेंडर बजट स्टेटमेंट (जीबीएस)1 के माध्यम से महिलाओं और लड़कियों के लिए धन आवंटित करना है। इसे लैंगिक उत्तरदायी या जेंडर रिस्पॉन्सिव बजट (जीआरबी) के रूप में भी जाना जाता है। जीबीएस महिलाओं और लड़कियों के लिए एक अलग बजट नहीं है, बल्कि मौजूदा योजनाओं (भारत सरकार, 2023) के माध्यम से वित्तीय प्राथमिकता का विवरण है।
वित्तीय वर्ष 2023-24 में, भारत सरकार के कुल व्यय बजट में जीबीएस का हिस्सा केवल 5% था, जो पिछले वर्ष के आवंटन से 0.2% (संशोधित अनुमान के अनुसार) कम है। इसके अलावा, पिछले कुछ वर्षों में, जीबीएस के कुल आवंटन में, भाग-बी में भाग-ए की तुलना में अधिक अनुपात में आवंटन हुआ है (कासलीवाल 2023)। वित्तीय वर्ष 2020-21 में, यह भाग-बी के अंतर्गत वास्तविक व्यय का 85% से अधिक था, जबकि वित्तीय वर्ष 2021-22 में इसे घटाकर 54% कर दिया गया था। वित्तीय वर्ष 2023-24 में आवंटन (बजट अनुमान के अनुसार) बढ़ाकर 61% किया गया। यह जीबीएस में योजनाओं के माध्यम से महिलाओं और लड़कियों की वित्तीय प्राथमिकता का कम किया जाना दर्शाता है। इसलिए, इससे महत्वपूर्ण प्रश्न भी उठते हैं : सरकार महिलाओं और लड़कियों के लिए किन क्षेत्रों पर खर्च को प्राथमिकता देती है? इस अनुसार जीबीएस में क्या कमियाँ हैं?
हम विभिन्न महिला-विशिष्ट प्राथमिकताओं के संदर्भ में आवंटन के रुझानों का विश्लेषण करने का प्रयास करते हैं। जीबीएस में सरकार की सामाजिक क्षेत्र की बड़ी योजनाओं को विश्लेषणात्मक रूप से वर्गीकृत2 करते हैं और महिलाओं की ज़रूरतों के लिए इसके निहितार्थ का विश्लेषण करते हैं। इससे हमें लैंगिक अंतर को पाटने के लिए सरकार की प्राथमिकता को समझने में मदद मिलती है। साथ ही हम जीबीएस के आबंटन में आनेवाली चुनौतियों की भी चर्चा करते हैं।
लिंग-आधारित बजट की प्राथमिकता क्या है?
जीबीएस लिंग-आधारित3 प्राथमिकताओं के लिए कुल योजना आवंटन का या तो 100% (भाग ए) या कम से कम 30% (भाग बी) आवंटित किया जाता है। इसके भाग-ए में महिलाओं और लड़कियों के लिए 100% आवंटन के साथ 'महिला-विशिष्ट' योजनाएं शामिल होती हैं। दूसरी ओर, भाग-बी में 'महिला समर्थक' योजनाएं शामिल हैं, जिसमें महिलाओं और लड़कियों के लिए समग्र योजना आवंटन का कम से कम 30% शामिल होता है।
आकृति-1 में जीबीएस के भाग-ए और भाग-बी में महिलाओं और लड़कियों के लिए श्रेणी-वार प्राथमिकता को दर्शाया गया है। वित्तीय वर्ष 2023-24 में समग्र भाग-ए आवंटन में बुनियादी ढांचे की हिस्सेदारी सबसे अधिक (97%) है। इसमें ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में महिलाओं के स्वामित्व वाले घरों के निर्माण का वादा करने से लेकर सीसीटीवी कैमरों (भारत सरकार, 2018 ए) के माध्यम से 'निगरानी' के प्रावधान तक शामिल हैं। समग्र लैंगिक सशक्तिकरण में योगदान देनेवाले कौशल- विकास व आजीविका, शिक्षा, पोषण व स्वास्थ्य और सुरक्षा जैसे अन्य महत्वपूर्ण पहलुओं को छोड़ा जाना, लैंगिक अंतर को पाटने की बहुत कम या किसी प्रकार की गुंजाइश न होने को दर्शाता है।
आकृति-1. जीबीएस में कुल भाग-ए और भाग-बी आवंटन के अनुपात के रूप में विभिन्न महिला-विशिष्ट प्राथमिकताओं के लिए आवंटन
भाग-बी में आवंटन को अगर देखें तो कुल आवंटन का 35% आवंटन पोषण और स्वास्थ्य के लिए था, इसके बाद बुनियादी ढांचे, शिक्षा और आजीविका का स्थान था। कई योजनाओं में जीबीएस के माध्यम से महिलाओं और लड़कियों को लक्षित करने के विषय में कोई स्पष्ट गुंजाइश नहीं दिखती है।
केंद्रीय बजट 2023-24 में विभिन्न मंत्रालयों और विभागों ने लैंगिक प्राथमिकताओं को संतुलित करने की कोशिश कैसे की है, इस पर गहराई से विचार करने से पता चलता है कि उनमें से कईयों ने मौजूदा योजनाओं को या तो गलत तरीके से वर्गीकृत किया है या अपर्याप्त प्राथमिकता दी है। हम इसके कुछ उदाहरणों पर नीचे चर्चा करते हैं।
महिला एवं बाल विकास
महिला एवं बाल विकास मंत्रालय (एमडब्ल्यूसीडी) की सभी प्रमुख योजनाएं जीबीएस में शामिल हैं। भाग-ए में सूचीबद्ध योजनाओं में बुनियादी ढांचे, पोषण और स्वास्थ्य, पानी, स्वच्छता (वाश) और सामुदायिक गतिशीलता पर ध्यान केन्द्रित किया गया है। महत्वपूर्ण रूप से महिलाओं, किशोरियों और बच्चों के बीच पोषण संबंधी परिणामों में सुधार पर ध्यान केन्द्रित करने वाली मिशन सक्षम आंगनवाड़ी और पोषण-2.0 योजना मंत्रालय की सबसे बड़ी योजना है और जीबीएस के भाग-ए में है। इसके बावजूद, इस योजना के लिए समग्र योजना आवंटन का केवल 4% आवंटन किया गया है। वास्तव में, इसे भाग-ए में स्थान दिए जाने को चुनौती दी जा सकती है, क्योंकि इस योजना में लड़कों को भी शामिल किया गया है और पोषण और स्वास्थ्य के सामूहिक मुद्दों के बारे में गांव को संगठित करने के लिए जन आंदोलन जैसी अन्य गतिविधियां भी शामिल की गई हैं।
महिलाओं के आर्थिक सशक्तिकरण के लिए मिशन शक्ति की ‘सामर्थ्य’ उप-योजना के लिए भी इसी तरह का गलत वर्गीकरण देखा जा सकता है, जो जीबीएस के भाग-ए में शामिल है। इस योजना के लिए भाग-ए में कुल आवंटन का 97% आवंटन किया गया है, जबकि भाग-बी में यह आवश्यक आवंटन का 30% से बहुत कम है (केवल 3%)। इसमें दोहरी गणना भी की गई है, क्योंकि ‘सामर्थ्य’ को भाग-ए और भाग-बी दोनों में शामिल किया गया है।
ग्रामीण विकास
ग्रामीण विकास विभाग की योजनाओं को जीबीएस के भाग-ए में इसके समग्र योजना आवंटन का 100% हिस्सा आबंटित किया गया है। हालाँकि, इन योजनाओं में केवल महिलाओं के लिए बुनियादी ढांचे और सामाजिक सुरक्षा पर ध्यान केन्द्रित किया गया है। फिर भी, प्रधानमंत्री आवास योजना-ग्रामीण (पीएमएवाई-जी) को पूरी तरह से महिला केन्द्रित योजना के रूप में वर्गीकृत किया जाना संदेहपूर्ण लगता है। यह योजना महिलाओं के नाम पर मकानों के आवंटन को प्रोत्साहित करती है, जबकि 1 जनवरी 2023 तक, केवल 26% निर्मित मकानों का स्वामित्व पूरी तरह से महिलाओं के नाम था (जैकब और अन्य 2023)।
मंत्रालय के राष्ट्रीय आजीविका मिशन- ‘आजीविका’ में आर्थिक रूप से गरीब महिलाओं को सबसे प्रथम स्थान दिया गया है। इसी प्रकार, महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (एमजीएनआरईजीएस) का इरादा महिलाओं को कुल सृजित नौकरियों में से एक-तिहाई नौकरियां प्रदान करना है। हालाँकि आवंटन में भी यह इरादा परिलक्षित होता है जो महिलाओं के लिए समग्र योजना आवंटन का 30% से अधिक है। लेकिन, इसे आवंटन की पात्रता के अनुरूप बनाया जाना महत्वपूर्ण है। जीबीएस में आवंटन की बहुत कम या कोई भी निगरानी न होने के कारण, इस बात का औचित्य स्थापित करना मुश्किल है कि भले ही एमजीएनआरईजीएस आवंटन का 42% महिलाओं के लिए है, लेकिन 28 फरवरी 2023 तक कुशल और अर्ध-कुशल एमजीएनआरईजीएस श्रमिकों में महिलाओं का प्रतिशत केवल 25% था।
सामाजिक न्याय और अधिकारिता
सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय (एमओएसजेई) के तहत, भाग-बी के अंतर्गत केवल अनुसूचित जाति के लिए पोस्ट मैट्रिक छात्रवृत्ति आती है। यदि मंत्रालय का उद्देश्य छात्रवृत्ति राशि का एक निश्चित अनुपात लड़कियों के लिए आरक्षित रखना है तो यह स्पष्ट नहीं होता क्योंकि मंत्रालय की कई अन्य छात्रवृत्ति योजनाओं के लिए जीबीएस में आवंटन का कोई प्रावधान नहीं किया गया है। उदाहरण के लिए, वाइब्रेंट इंडिया के तहत प्रधानमंत्री यंग अचीवर्स स्कॉलरशिप अवार्ड स्कीम, ‘पीएम-यशस्वी’ को जीबीएस में बिल्कुल भी प्रदर्शित नहीं किया गया है। इसलिए, शिक्षा में लैंगिक असमानताओं को कम करने संबंधी योजना का यह दायित्व एक ‘बाद में सोचा गया विचार’ प्रतीत होता है।
पेयजल एवं स्वच्छता
सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय की तरह, पेयजल और स्वच्छता विभाग ने जीबीएस के भाग-बी में केवल एक प्रमुख योजना- स्वच्छ भारत मिशन-ग्रामीण (एसबीएम-जी) को शामिल किया है। समग्र योजना आवंटन के प्रतिशत के रूप में, वित्त वर्ष 2023-24 में एसबीएम-जी के लिए आवंटन 3% से बढ़कर 32% हो गया। इस आवंटन में महिलाओं और बच्चों के संदर्भ में खराब स्वच्छता और साफ-सफाई के असाम्यपूर्ण बोझ को स्पष्ट किया गया है (भारत सरकार, 2017)।
ग्रामीण महिला सशक्तिकरण को अपने उद्देश्यों में से एक के रूप में स्वीकार करने के बावजूद, जल जीवन मिशन (जेजेएम) जैसी प्रमुख योजनाओं का कोई भी उल्लेख नहीं है (भारत सरकार, 2019)। क्योंकि महिलाओं और लड़कियों को पूरे परिवार के लिए पानी लाने के लिए मुख्य रूप से जिम्मेदार माना जाता है, नल से पानी के कनेक्शन संबंधी लाभों से स्पष्ट रूप से लैंगिक असमानताएं कम (माथुर 2022) हो सकती हैं और इसे योजना के परिचालन दिशानिर्देशों में भी पहचाना गया है। अतः इस योजना को जीबीएस में भी उचित रूप से समायोजित किया जाना चाहिए था।
स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण
स्वास्थ्य और परिवार कल्याण विभाग ने जीबीएस के भाग-बी के तहत महिलाओं के लिए कई योजनाएं शामिल की हैं। वित्त वर्ष 2023-24 में उच्च आवंटन वाली योजनाओं को देखते हुए, महिलाओं और लड़कियों के लिए विशिष्ट श्रेणी-वार प्राथमिकता स्पष्ट नहीं होती है। जीबीएस आबंटन में यह एक प्रमुख रूकावट है कि इसमें किसी योजना को शामिल करने के लिए विभागों को आधार प्रदान करने की आवश्यकता नहीं होती है।
उदाहरण के लिए, राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन (एनएचएम) की प्रमुख योजना के अंतर्गत एक उप-घटक के रूप में बुनियादी ढांचे के रखरखाव के लिए 64.72 अरब रुपये आवंटित किए गए हैं। भाग-बी में प्रस्तुत, यह आबंटन समग्र योजना आवंटन का 95% है। दिशानिर्देशों के अनुसार, बुनियादी ढांचे के रखरखाव का उद्देश्य विभिन्न स्वास्थ्य कर्मियों को, जिसमें सहायक और नर्सिंग मिडवाइफ और महिला स्वास्थ्य कार्यकर्ता प्रशिक्षण स्कूल और कई अन्य शामिल हैं, वेतन सहायता प्रदान करना है (कपूर एवं अन्य 2023)। इसी प्रकार, अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान नई दिल्ली के मद में महिलाओं के लिए समग्र योजना आवंटन का 50% आवंटित किए जाने के पीछे का इरादा स्पष्ट नहीं है। ये आवंटन अधिक होने के बावजूद, इनमें जीबीएस के तहत कुछ योजनाओं को शामिल करने के बारे में कोई स्पष्टता नहीं है।
शिक्षा
स्कूली शिक्षा और साक्षरता विभाग (डीएसईएल) और उच्च शिक्षा विभाग (डीएचई) की योजनाएं प्रमुख रूप से जीबीएस के भाग-बी के अंतर्गत आती हैं, जिसमें क्रमशः जीबीएस का 10% और 7% आबंटन शामिल है। डीएसईएल के तहत, पीएम पोषण शक्ति निर्माण (पीएम-पोषण ; पूर्ववर्ती मध्याह्न भोजन योजना) के लिए कुल बजट का 50% महिला समर्थक योजनाओं (अर्थात भाग-बी में) के लिए आवंटित किया गया है। अन्य डीएसईएल योजनाओं में केन्द्रीय विद्यालय संगठन, नवोदय विद्यालय समिति और समग्र शिक्षा शामिल हैं, जहां जीबीएस के कुल योजना आवंटन का 30% शामिल है। इसके अलावा, वित्त वर्ष 2021-22 के बाद से इन विभागों की अन्य योजनाओं के आनुपातिक आवंटन में कोई बदलाव नहीं हुआ है।
स्कूली शिक्षा और साक्षरता विभाग के अंतर्गत आने वाली सभी योजनाएँ शिक्षा की श्रेणी में आती हैं। पीएम-पोषण योजना में एक पोषण घटक भी है क्योंकि इस योजना का लक्ष्य कक्षा 1 से 8 तक के बच्चों की पोषण स्थिति में सुधार करना है। शिक्षा के अलावा, समग्र शिक्षा की प्रमुख योजना भी बुनियादी ढांचे और वाश (उदाहरण के लिए, लड़कियों के लिए स्वतंत्र शौचालय निर्माण) की श्रेणियों के अंतर्गत आती हैं। चूंकि सामाजिक असमानताओं को कम करना इस योजना के प्रमुख उद्देश्यों में से एक है, इसलिए जीबीएस के भाग-बी के तहत इस योजना के लिए कुल व्यय बजट का 30% का आवंटन लक्ष्य भी न्यूनतम लगता है। वास्तव में, वित्त वर्ष 2022-23 में ‘समग्र शिक्षा’ के स्वीकृत बजट का केवल 8% हिस्सा 'लिंग और समानता' (बोर्डोलोई एवं अन्य 2023) के लिए आवंटित किया गया था।
कानूनी प्रवर्तन
पुलिस विभाग (गृह मंत्रालय के तहत) की योजनाओं की बुनियादी ढांचा और सुरक्षा भी दो प्रमुख श्रेणियां हैं। विभाग की दो योजनाएं, अर्थात् सुरक्षित शहर परियोजनाएं और आपातकालीन प्रतिक्रिया सहायता प्रणाली (ईआरएसएस), भाग-ए में आती हैं। लेकिन क्योंकि जीबीएस एक अलग बजट दस्तावेज़ नहीं होता, इसलिए जीबीएस में मूल से अधिक योजना आवंटन प्रस्तुत करना मान्य5 नहीं हो सकता है। साथ ही, ईआरएसएस महिला-विशिष्ट कार्यक्रम नहीं है, इसमें आपातकालीन सहायता की आवश्यकता वाले सभी नागरिकों को शामिल किया गया है।
पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस
पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस मंत्रालय का लक्ष्य हर घर के लिए स्वच्छ और सुरक्षित ईंधन को प्रोत्साहित करते हुए, गरीब परिवारों को सब्सिडी वाले तरल पेट्रोलियम गैस (एलपीजी) कनेक्शन प्रदान करना है। ग्रामीण और शहरी-दोनों क्षेत्रों में पुरुषों की तुलना में महिलाएं अवैतनिक घरेलू काम और देखभाल गतिविधियों पर अनुपातहीन मात्रा में समय बिताती हैं (सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय, 2020)। गृहकार्य को महिलाओं का कार्य मानने की पितृसत्तात्मक धारणा पर आधारित यह योजना भाग-ए में शामिल है। सब्सिडी के रूप में यह एक सामाजिक सुरक्षा उपाय है। हालाँकि, इसके इरादे को एलपीजी की कीमतों में वृद्धि से चुनौती मिली है, जिसने महिलाओं को पारंपरिक चूल्हों आदि का उपयोग करने के लिए मजबूर किया है, जिससे इस सब्सिडी राशि पर उनकी निर्भरता कम हो गई है (के, वंदना 2023)।
कौशल विकास
कौशल विकास मंत्रालय के तहत ‘कौशल भारत कार्यक्रम’ भाग-बी में शामिल किया गया एक नया अतिरिक्त कार्यक्रम है। प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना 4.0, प्रधानमंत्री-राष्ट्रीय प्रशिक्षुता संवर्धन योजना और जन शिक्षण संस्थान- इन तीन उप-योजनाओं को मिलाकर बनाया गया यह कार्यक्रम महिलाओं के कौशल विकास और प्रशिक्षण को बढ़ावा देने के लिए है। इस समग्र योजना आवंटन का 100% उनके लिए आबंटित किया गया है, जबकि योजना का कवरेज महिलाओं से परे है (और भाग-बी में होने के बावजूद)। और फिर, यह न केवल योजना के उद्देश्यों के लिए, बल्कि जीबीएस के डिज़ाइन के संदर्भ में भी विरोधाभासी है।
आवास और शहरी मामले
आवास और शहरी मामलों के मंत्रालय की जीबीएस में दो योजनाएं हैं। बुनियादी ढांचे के तहत वर्गीकृत प्रधान मंत्री आवास योजना (पीएमएवाई-यू) शहरी भारत में प्रत्येक शहरी परिवार के लिए पक्का (या स्थाई) मकान सुनिश्चित करती है। पीएमएवाई-जी की तरह, पीएमएवाई-यू भी महिलाओं के नाम पर या पुरुषों के साथ संयुक्त रूप से घरों के स्वामित्व को प्रोत्साहित करती है। पीएमएवाई-यू भाग-ए में आती है, जिसके लिए वित्तीय वर्ष 2023-24 में भाग-ए के महत्वपूर्ण अनुपात (29%) और समग्र जीबीएस का 11% आबंटन का प्रावधान है।
वित्तीय वर्ष 2022-23 तक, राष्ट्रीय शहरी आजीविका मिशन- दीन दयाल अंत्योदय योजना के लिए कुल आवंटन का 50% आबंटन भाग-बी में किया गया था। इस योजना का उद्देश्य शहरी गरीब महिलाओं को आजीविका वृद्धि (भारत सरकार, 2018बी) के लिए संगठित करना है। इस योजना में वित्तीय वर्ष 2023-24 में कोई आवंटन नहीं किया गया था। साल-दर-साल किए जाने वाले इस तरह के तदर्थ कार्यों से जीआरबी प्रयोग के प्रति कमज़ोर प्रतिबद्धता का संकेत मिलता है ।
निष्कर्ष
वास्तव में न्यायसंगत लैंगिक संबंधों की राह केंद्रीय बजट 2023-24 में अवास्तविक लगती है। इस लेख में चर्चा किए गए सामाजिक क्षेत्र के मंत्रालयों और विभागों को जीबीएस में वर्गीकरण और अपर्याप्त आवंटन की लगातार चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। भले ही जीबीएस का उच्च अनुपात भाग-बी योजनाओं के लिए है, तब भी लिंग के आधार पर योजना को महत्व देने के पीछे की मंशा अस्पष्ट बनी हुई है। इसके चलते, मंत्रालयों और विभागों की श्रेणियों और क्षेत्रों में प्रतिस्पर्धात्मक आवश्यकताओं के बीच, महिलाओं और लड़कियों के लिए विशिष्ट वित्तीय प्राथमिकता के माध्यम से लैंगिक अंतर को पाटने के एक तंत्र के रूप में कार्य करने की जीबीएस की क्षमता कम हो जाती है। उदाहरण के लिए, यदि शासन का लक्ष्य बुनियादी ढांचे पर ध्यान केन्द्रित करना है, तो लक्ष्य को स्पष्ट करने वाले चिन्हों को भी उन प्रासंगिक कारकों के साथ संरेखित करना होगा जो इन सुविधाओं को निजी और सार्वजनिक, दोनों क्षेत्रों में उनके सशक्तिकरण के लिए उत्तरदायी बनाते हैं (ओईसीडी, 2021)। वास्तव में, महिला एवं बाल विकास मंत्रालय की योजनाओं के लिए हाल ही में जारी दिशानिर्देश अन्य मंत्रालयों के साथ समाभिरूपता पर केन्द्रित हैं। जीबीएस में समग्र रूप से अपर्याप्त आवंटन किए जाने और इसके लिंग-आधारित प्रभाव पर स्पष्टता की कमी के कारण, यह इरादा भी अधूरा रह सकता है।
अंत में, निगरानी और योजना दिशानिर्देशों में महिलाओं और लड़कियों के विशिष्ट उद्देश्यों के पृथक्करण की कमी के कारण जीबीएस में योजनाओं को पूरी तरह से आवंटित करने की अस्पष्टता बनी रहती है (रमन 2021)। इसलिए, जीबीएस के माध्यम से महिलाओं के आर्थिक, सामाजिक और राजनीतिक सशक्तिकरण के लिए वित्तीय प्राथमिकता तब तक एक सपना बनी रहेगी, जब तक कि इन असमानताओं का समाधान नहीं किया जाता।
टिप्पणियाँ:
- जीबीएस मंत्रालयों और विभागों के लिए लिंग-आधारित लेंस के माध्यम से अपनी योजनाओं की समीक्षा करने के लिए एक 'रिपोर्टिंग तंत्र' है और तदनुसार, महिलाओं और लड़कियों के लिए वित्त का आबंटन (या आवंटित) किया जा सकता है।
- हम सामाजिक क्षेत्र के मंत्रालयों और विभागों का चयन करते हैं और व्यापक महिला-विशिष्ट श्रेणियों (या लक्ष्यों) के आधार पर इन मंत्रालयों और विभागों के भीतर योजनाओं को विश्लेषणात्मक रूप से वर्गीकृत करते हैं। एक योजना एक से अधिक श्रेणियों में फिट हो सकती है : उदाहरण के लिए, सुरक्षित शहर परियोजनाओं में बताए गए योजना उद्देश्यों के आधार पर बुनियादी ढांचे, सुरक्षा, सामुदायिक श्रेणीबद्ध और वाश के घटक शामिल होते हैं। इसलिए, हम इन श्रेणियों में योजनाओं का मानक असाइनमेंट नहीं करते हैं। एक बार वर्गीकृत होने के बाद, हम जीबीएस के भाग-ए और भाग-बी के तहत इन श्रेणियों में प्रतिशत संरचना की गणना करते हैं। इससे विभिन्न श्रेणियों और सामाजिक क्षेत्र के मंत्रालयों और विभागों में महिला-विशिष्ट योजनाओं के आकलन का आधार बनता है।
- नीति परिदृश्य में, 'लिंग' को अभी भी महिलाओं या पुरुषों, और लड़कियों या लड़कों के युग्मक (बायनेरिज़) के रूप में समझा जाता है।
- (पीएमएवाई-जी) योजना के लिए जीबीएस के भाग-ए में 62% आवंटन है।
- इस मामले में, महिलाओं की सुरक्षा संबंधी योजनाओं के लिए 3.21 अरब रुपये आवंटित किए गए, जिसमें ईआरएसएस शामिल है। इसके बावजूद, जीबीएस में सेफ सिटी प्रोजेक्ट और ईआरएसएस के लिए क्रमशः 13 अरब और 2.21 अरब रुपये मूल्य निर्धारित किया गया है।
अंग्रेज़ी के मूल लेख और संदर्भों की सूची के लिए कृपया यहां देखें।
लेखक परिचय : तान्या राणा अकाउंटेबिलिटी इनिशिएटिव, सेंटर फॉर पॉलिसी रिसर्च (सीपीआर) में लिंग, पोषण और स्वास्थ्य, और सार्वजनिक वित्त के प्रतिच्छेदन पर काम करने वाली एक रिसर्च एसोसिएट हैं। नेहा सुज़ैन जैकब इसी शोध संस्थान में उपराष्ट्रीय और राष्ट्रीय स्तर पर सार्वजनिक वित्त पर काम करने वाली एक वरिष्ठ अनुसंधान सहयोगी हैं।
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