क्या राजनीतिक आरक्षण विकास को कमजोर करता है या उसे बढ़ावा देता है, तो किसके लिए? यह लेख भारत के 'अनुसूचित क्षेत्रों' का विश्लेषण प्रस्तुत करता है, जहाँ ऐतिहासिक रूप से वंचित अनुसूचित जनजातियों के लिए राजनीतिक पद आरक्षित हैं। मनरेगा पर पड़ने वाले प्रभावों पर ध्यान देने से ज्ञात होता है कि आरक्षण का समग्र रूप से कोई बुरा परिणाम नहीं निकलता है। लक्षित अल्पसंख्यकों के लिए इसके कई लाभ हैं, जो अन्य अल्पसंख्यकों के बजाय अपेक्षाकृत विशेषाधिकार प्राप्त लोगों की कीमत पर आते हैं।
भारत में राजनीतिक प्रतिज्ञानात्मक कार्रवाईया या आरक्षण लंबे समय से विवादित विषय रहे हैं। एक ओर यह कुछ उन लोगों को जुटाता है जो इसके कमजोर पड़ने के डर से इसका विस्तार नए अधिकार क्षेत्रों और अतिरिक्त सामाजिक समूहों तक करना चाहते हैं वहीं दूसरी ओर यह उन लोगों को एकजुट करता है जो मुखर रूप से इसका विरोध करते हैं। राजनीतिक दलों ने इसका पक्ष लिया है और हाल ही में भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने भारतीय संविधान में निहित प्रतिज्ञानात्मक कार्रवाई प्रावधानों को लागू करने के लिए राज्यों के दायित्वों पर जोर भी डाला है। हमें इस परजम कर बहस की जाने वाली तथा राजनीतिक विभाजनकारी नीति का मूल्यांकन कैसे करना चाहिए?
एक तरीका यह है कि अपने सबसे मुखर विरोधियों के दावों पर आलोचनात्मक रूप से उत्तर दिया जाए। सामान्य रूप से आरक्षण के खिलाफ लोग इसके द्वारा विकास के प्रभावित होने के बारे में दो प्रमुख तर्क देते हैं। सबसे पहले, आरक्षण उन लोगों को सशक्त बना कर समग्र विकास के परिणामों को प्रभावित करेगाजो ‘उच्च योग्यता’ वाले व्यक्तियों की तुलना में कम योग्य हैं तथा उनका स्थान ले लेते हैं। दूसरा, जहाँ तक आरक्षण एक लक्षित अल्पसंख्यक समूह को लाभ प्रदान करता है, यह लाभ उन अन्य कमजोर समूहों की कीमत पर आएगा जिनके साथ वे प्रतिस्पर्धा कर रहे हैं जबकि इसका उद्देश्य यह था कि लाभ उन समूहों की कीमत पर आए जो यथास्थिति के अंतर्गत तुलनात्मक रूप से अधिक विशेषाधिकार प्राप्त हैं। इन दावों का मूल्यांकन करना मुश्किल है क्योंकि इसके लिए न केवल आरक्षण के समग्र प्रभावों का पूरा लेखा-जोखा रखने की आवश्यकता होगी, बल्कि समाज में समूहों में उन प्रभावों को कैसे वितरित किया जाता है, इसका भी पूरा लेखा-जोखा करना होगा।
हमारे नए शोध (गुलज़ार एवं अन्य 2020) के परिणाम, जो इस तरह का एक लेखा-जोखा प्रदान करता है, वह प्रतिज्ञानात्मक कार्रवाई पर संशय करने वाले लोगों की उम्मीदों से काफी विपरीत है। वास्तव में, हम पाते हैं कि प्रतिज्ञानात्मक कार्रवाई समग्र विकास अथवा गैर लक्षित कमजोर समुदायों को बाधा पहुंचाए बिना राजनीतिक और आर्थिक शक्ति दोनों को पुनर्वितरित कर सकती है।
राजनीतिक आरक्षण और विकास
हम भारत में ऐसे राजनीतिक ‘अनुसूचित क्षेत्रों’ का अध्ययन करते हैं, जहां एक राजनीतिक कोटा के अंतर्गत आधी पंचायतें (ग्राम परिषदों) एवं नेतृत्व के सभी पद ऐतिहासिक रूप से वंचित अनुसूचित जनजातियों (एसटी) के लिए आरक्षित है। हम प्रशासनिक कोटा सीमा के एक ओर स्थित गांवों की तुलना ठीक दूसरी ओर स्थित गांवों से करते हैं, और ये गांव जहाँ तक संभव हों बिल्कुल एक जैसे हैं, सिवाय इसके कि कुछ को अनुसूचित क्षेत्रों के रूप में रेखांकित किया गया है। हमारी मुख्य जांच दुनिया के सबसे बड़े रोजगार कार्यक्रम - महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (मनरेगा)1 का कार्यान्वयन है। मनरेगा और अनुसूचित क्षेत्र के कोटे का उद्देश्य आर्थिक और राजनीतिक रूप से हाशिए वाले समूहों को सशक्त बनाना है, उनकी पारस्परिकता का अध्ययन विशेष रूप से प्रतिज्ञानात्मक कार्रवाई पर संशयकरने वाले लोगों के दावों की जांच करता है। हम मूल्यांकन करते हैं कि क्या संशय करने वाले लोगों का यह दावा सही है कि अनुसूचित जनजातियों का प्रतिनिधित्व आत्म-पराजय के रूप में होगा, जिसमें वह उस आबादी की आर्थिक संभावनाओं को नुकसान पहुंचाता है जिसे सशक्त बनाने के लिए इसे बनाया गया था? मनरेगा का डाटा हमें समग्र परिणामों का मूल्यांकन करने के साथ हीसाथ कोटा द्वारा लक्षित अल्पसंख्यक समूह(एसटी), एक गैर-लक्षित अल्पसंख्यक समूह (अनुसूचित जाति या एससी), और तुलनात्मक विशेषाधिकार प्राप्त अवशिष्ट श्रेणी (गैर-एससी/एसटी) के लिए परिणामों का मूल्यांकन करने में भी सक्षम बनाता है। नीचे दी गई आकृति 1 भारत भर में मनरेगा कार्यान्वयन तथा साथ ही देश में अनुसूचित क्षेत्र पाए जाने के संबंध में हमारे अभिप्राय में भी काफी भिन्नता दिखाती है।
आकृति1. भारत भर में 2013 में मनरेगा कार्यदिवस (बाएं) और अनुसूचित क्षेत्रों (दाएं) में अंतर
हम पाते हैं कि मनरेगा वितरण लक्षित अल्पसंख्यकों (एसटी) की स्थिति में काफी हद तक सुधार करता है, जो अनुसूचित क्षेत्रों में 24% अधिक मनरेगा कार्य दिवस प्राप्त करते हैं। यह सुधार मुख्य रूप से गैर-एससी/एसटी हेतु कार्य की कीमत पर आता है, जो 11.5% कम कार्यदिवस प्राप्त करते हैं। हमें कोई सबूत नहीं मिला कि यह कोटा गैर-लक्षित, ऐतिहासिक रूप से वंचित अल्पसंख्यकों (एससी) के लिए रोजगार में किसी बदलाव का कारण बनता है। कुल मिलाकर, परिणाम यह संकेत देते हैं कि अनुसूचित क्षेत्रों में सरकारी कार्यक्रमों की डिलीवरी गैर-अनुसूचित क्षेत्रों की तुलना में बदतर नहीं है। आकृति 2 में मनरेगा के काम का हिस्सा अनुसूचित बनाम अन्य क्षेत्रों में समूह की आबादी के अनुपातों के अनुरूप दिखाया गया है। कुल मिला करहमारे निष्कर्ष प्रतिज्ञानात्मक कार्रवाई नीतियों की आलोचनाओं को नकारते हैं - लक्षित हाशिए वाले समूहों को कोटा से लाभ मिलता है, गैर-लक्षित हाशिए वाले समूहों पर कोई भी बुरा प्रभाव नहीं पड़ता है, और समग्र विकास के परिणामों को नुकसान भी नहीं होता है।
आकृति 2. अनुसूचित क्षेत्र मनरेगा कार्य और जनसंख्या शेयरों के बीच सामंजस्य में सुधार करते हैं
व्यापक प्रभाव
क्या मनरेगा पर देखे गए प्रभावों से परे चुनावी कोटा देने के कुछ निहितार्थ हैं? हमारे इस विश्वास को बढ़ाने के लिए कि चुनावी कोटा ने गरीब समुदायों के लिए परिणामों में सुधार किया है, और इस चिंता को दूर करने के लिए कि मनरेगा कार्यान्वयन में सुधार अन्य सरकारी कार्यक्रमों की कीमत पर आ सकता है -हम दो अतिरिक्त परिणामों पर कोटा के प्रभावों पर भी विचार करते हैं।
सबसे पहले, हम प्रधान मंत्री ग्राम सड़क योजना (पीएमजीएसवाई) गाँव की सड़कों के कार्यक्रम पर पड़ने वाले प्रभावों की जाँच करते हैं, जिसे 2000 में ग्रामीण गाँवों को हर मौसम में सड़क नेटवर्क से जोड़ने के उद्देश्य से स्थापित किया गया था। हम पाते हैं कि पंचायत अनुबंध (अनुसूचित क्षेत्रों का विस्तार अधिनियम - पेसा) के तहत आरक्षण आने के परिणामस्वरूप सड़क संपर्क अधिक हुआ है, तथा यह प्रभाव केवल चुनावों के समावेशन के बाद होते हैं, जो यह इंगित करता है कि वास्तव में परिवर्तन के लिए चुनावी कोटा जिम्मेदार हैं।
आकृति 3. सड़कों पर चुनावी कोटा (पेसा) चुनाव के समावेशन का प्रभाव
दूसरा, हम व्यापक सार्वजनिक वस्तुओं के प्रावधान पर अनुसूचित क्षेत्रों के प्रभावों पर विचार करते हैं जो गरीब समुदायों को लाभान्वित करते हैं और पाते हैं कि सड़कों, पानी, संचार और शिक्षा के औसत प्रावधान में भी सुधार होता है।
व्यापक प्रभावों के बारे में हमारा विश्लेषण बताता है कि कोटा के प्रभाव मनरेगा कार्यक्रम तक सीमित नहीं हैं, और हाशिए के समुदायों के कल्याण में कोटा राजनेताओं के तहत अधिक से अधिक निवेश की ओर इशारा करते हैं।
आगे क्या?
नीति-निर्माता अक्सर आर्थिक और राजनीतिक प्रयासों को अलग-अलग प्रकार से देखते हैं। हम तर्क देते हैं कि राजनीतिक प्रतिज्ञानात्मक कार्रवाई और विकास कार्यक्रम हाशिए के समुदायों के लिए बेहतर परिणाम देने हेतु पूरक उपायों के रूप में काम कर सकते हैं, तथा ये उपाय अन्य अल्पसंख्यकों, या समग्र समाज की कीमत पर नहीं आएंगे।
प्रतिज्ञानात्मक कार्रवाई के संदर्भ में की जाने वाली बहस पर हमारे परिणामों के क्या निहितार्थ हैं?
संशयवादियों का तर्क है कि राजनीतिक क्षेत्र में खुली प्रतिस्पर्धा सबसे अच्छे राजनेताओं को सामने लाती है। हालाँकि हमारे परिणाम बताते हैं कि कोटा के राजनेता यथास्थितिवादी राजनेताओं से कमतर प्रदर्शन नहीं करते हैं। इससे पता चलता है कि यथास्थिति संस्थाएं हाशिए के समुदायों से आने वाले समान रूप से योग्य व्यक्तियों को पद पर आने से और अधिक प्रभावी रूप में उनके समुदायों का प्रतिनिधित्व करने से रोक सकती हैं।
कोटा के दीर्घकालिक प्रभावों को लेकर चिंता के बारे मेंएक सवाल अभी भी खुला है। हमारा अध्ययन संस्थान के कार्यान्वयन के 12 साल बाद तक के प्रभावों को मापता है, लेकिन लंबी अवधि में निश्चित राजनीतिक प्रतिज्ञानात्मक कार्रवाई - जैसे अनुसूचित क्षेत्र कोटा का परिणाम यह हो सकता है कि इसके द्वारा भविष्य में आज के शीर्ष पर स्थित पहचान समूह को प्रतिस्थापित कर, आज की तरह ही असमान राजनीतिक संरचनाओं का निर्माण हो जाएगा। हम इसे आगे के अन्वेषण हेतु एक मूल्यवान प्रश्न मानते हैं।
नोट्स:
- मनरेगा एक ग्रामीण परिवार को एक वर्ष में 100 दिनों के मजदूरी-रोजगार कीगारंटी देता है, जिसके वयस्क सदस्य राज्य-स्तरीय वैधानिक न्यूनतम मजदूरी परअकुशल मैनुअल काम करने को तैयार हैं।
लेखक परिचय: साद गुलज़ार न्यू यॉर्क यूनिवरसिटि से राजनीति शास्त्र में पीएचडी कर रहे हैं। निकोलस हास आरहस यूनिवरसिटि के राजनीति शास्त्र विभाग में असिस्टेंट प्रोफेसर हैं। बेन पास्केल एक स्वतंत्र शोधकरता हैं।
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