कोरोना महामारी और लॉकडाउन के कारण सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) काफी चर्चित विषय रहा है। रीतिका खेरा और अनमोल सोमंची ने सरकारी आंकड़ों का प्रयोग कर पीडीएस के राज्य-वार कवरेज का अनुमान लगाया और भोजन सहायता की श्रेणियों का नक्शा बनाया है। वे यह पाते हैं कि राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम के व्यवस्थापन के कारण पीडीएस में हुए विस्तार तथा केंद्रीय समर्थन से परे राज्य के ‘टॉप-अप’ के बावजूद, 40 करोड़ से अधिक लोगों को इससे बाहर रखा गया है।
कोविड-19 महामारी से निपटने के लिए केंद्र सरकार द्वारा 24 मार्च 2020 से अचानक और कड़ाई से किए गए लॉकडाउन की घोषणा के बाद से सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) भारत में सामाजिक समर्थन और खाद्य सुरक्षा के लिए एक प्रमुख सार्वजनिक योजना के रूप में उभर कर सामने आई है।
कई संशयवादियों और पीडीएस के आलोचकों ने महामारी के दौरान लाखों भारतीयों के लिए बुनियादी खाद्य सुरक्षा प्रदान करने में इसकी महत्वपूर्ण भूमिका की सराहना तो की हीं है, परंतु वे यह भी उजागर करते हैं कि अभी भी इस पर काफी कुछ किए जाने की जरूरत है। राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम (एनएफएसए, 2013) के संदर्भ में बहस के समय कुछ प्रमुख मांगों को अधिनियम में शामिल नहीं किया गया था। उदाहरण के लिए, सार्वभौमीकरण की मांग को खारिज कर दिया गया था।
एनएफएसए 2013 के अनुसार ग्रामीण जनसंख्या के 75% और शहरी जनसंख्या के 50% भाग को पीडीएस के माध्यम से सब्सिडी वाला अनाज प्रदान किया जाना अनिवार्य है। एनएफएसए के तहत राशन कार्ड की दो श्रेणियां हैं - प्राथमिकता और अंत्योदय ("एनएफएसए कार्ड")। एनएफएसए मानदंडों के अनुसार प्राथमिकता वाले परिवारों में प्रत्येक सदस्य 2 रु. प्रति कि.ग्रा. की दर पर गेंहू और 3 रु. प्रति कि.ग्रा. की दर पर चावल, प्रति माह के हिसाब से 5 किलोग्राम अनाज का हकदार है। अंत्योदय परिवारों को एक ही कीमत पर 35 कि.ग्रा. प्रति-माह मिलता है, चाहे परिवार में कितने भी सदस्य क्यों न हों।
ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में क्रमशः 75% और 50% के राष्ट्रीय कवरेज अनुपात को राज्यवार अनुपात में परिवर्तित किया गया जिसमें गरीब राज्यों को अमीर राज्यों की तुलना में अधिक कवरेज मिला। कुछ राज्यों ने एनएफएसए का विरोध किया क्योंकि एनएफएसए के तहत उनका कवरेज अनुपात बहुत कम था। उन्होंने पहले से ही एक "विस्तारित पीडीएस" चला रखी थी जिसमें केंद्र द्वारा प्रदान की गई कवरेज से अधिक कवरेज थी (खेरा 2011 देखें); अन्य राज्यों में एनएफएसए कवरेज से परे जाने के लिए दबाव था। उन्हें शामिल करने के लिए एपीएल (गरीबी रेखा से ऊपर) की कीमतों पर ’सहायक’ राशन का प्रावधान (गेहूं के लिए 6.10 रु. प्रति कि.ग्रा. और चावल के लिए 8.30 रु. प्रति कि.ग्रा.) किया गया था।1
एनएफएसए के बाद यदि कोई राज्य एनएफएसए के मानदंडों से परे जाता है, तो जनसंख्या के अनुसार इसे "विस्तारित पीडीएस" के रूप में वर्गीकृत किया गया है। एनएफएसए के लागू होने के बाद भी विस्तारित पीडीएस चलाने की प्रथा जारी है। एनएफएसए के बाद कई राज्य अतिरिक्त सब्सिडी मूल्य प्रदान करते हैं। इस प्रकार तमिलनाडु में सभी कार्ड धारकों को राज्य द्वारा मुफ्त में चावल प्रदान किया जाता है, भले ही राज्य एनएफएसए कार्ड के लिए इसे 3 रु. प्रति कि.ग्रा. में खरीदता है। इसी तरह छत्तीसगढ़, झारखंड और ओडिशा राज्य केंद्र सरकार के निर्गम मूल्य से कम कीमत पर चावल उपलब्ध कराते हैं। राज्यों ने या तो सहायक राशन और/या राज्य संसाधनों का उपयोग करते हुए एनईईएम (एनईईएम) और एलईएएन (एलईएएन) राशन कार्ड जारी किए (ब्यौरा नीचे दिया गया है)।
इस लेख में हम पीडीएस अनाज के लिए राज्य-वार पहुंच पर बुनियादी जानकारी का संकलन और पुनर्निर्माण करते हैं - राशन कार्ड के प्रकार, प्रत्येक प्रकार के राशन कार्ड की हकदारी और प्रत्येक प्रकार के कार्डधारकों की जनसंख्या। पीडीएस से अनाज के लिए कितनी जनसंख्या हकदार है, एनएफएसए के अनुसार केंद्र द्वारा इस जनसंख्या के कितने भाग को सब्सिडी दी जाती है और कौनसे राज्य जनसंख्या के कुछ हिस्से को अतिरिक्त सब्सिडी देते हैं। लॉकडाउन के दौरान राज्यों द्वारा किए गए पीडीएस संबंधित उपायों पर भी कुछ जानकारी संकलित की गई है। यह बुनियादी जानकारी - जो आसानी से उपलब्ध होनी चाहिए। वास्तव में सभी राज्यों के लिए संकलित करना आसान नहीं है। इस लेख में डेटा के मुख्य स्रोत सरकारी प्रकाशन और पोर्टल (मुख्य रूप से, राज्य पीडीएस पोर्टल) हैं। हालांकि कई बार इसे समाचार पत्रों की रिपोर्टों, सरकारी परिपत्रों, शोधकर्ताओं, कार्यकर्ताओं और अन्य लोगों से प्राप्त जानकारी के साथ पूरक होना चाहिए था क्योंकि उन्हें नवीनतम परिवर्तनों की जानकारी थी।
पीडीएस कवरेज और हकदारियां
तीन सरकारी स्रोतों (मासिक खाद्यान्न बुलेटिन, केंद्र सरकार के एनएफएसए डैशबोर्ड और अलग-अलग राज्यों के पीडीएस पोर्टलों से संकलित डेटा) के अनुसार, वर्तमान में एनएफएसए कार्ड (प्राथमिकता और एएवाई) के माध्यम से पीडीएस कवरेज लगभग 81 करोड़ है। 2011 की जनगणना और केंद्रीय रूप से अनिवार्य कवरेज अनुपात का उपयोग करते हुए 81 करोड़ लोगों को एनएफएसए द्वारा सब्सिडी दी जानी चाहिए।
2020 के लिए अनुमानित कुल जनसंख्या 137.20 करोड़ को देखा जाए तो 80.9 करोड़ का आंकड़ा कुल जनसंख्या का मात्र 59% है जो एनएफएसंए में अपेक्षित दो-तिहाई से कम है (तालिका 1 देखें)। यह कानूनी रूप से अनिवार्य कवरेज से 10 से अधिक करोड़ कम है (जीन ड्रेज, रीतिका खेरा और मेघना मुंगिकर द्वारा अप्रकाशित अनुमान; इंडियास्पेंड 2020 देखें)। इस कम-कवरेज का कारण यह है कि केंद्र सरकार पीडीएस कवरेज को ठीक करने के लिए 2011 की जनगणना के पुराने आंकड़ों का उपयोग करती है।
जैसा कि पहले उल्लेख किया गया है कि कुछ राज्यों ने केंद्रीय एनएफएसए मानदंडों से परे जाने का फैसला किया और एक विस्तारित पीडीएस को चलाने के लिए अपने स्वयं के संसाधनों से योगदान दिया है। अनाज हकदारी वाले गैर-एनएफएसए राशन कार्ड धारकों को यहां दो शीर्षों के अंतर्गत वर्गीकृत किया गया है - एक, 'एनएफएसए के समतुल्य या अधिक पात्रता' (एनईईएम), अर्थात, जिनके पास एनएफएसए मानदंडों के अनुसार सब्सिडी वाले अनाज तक पहुंच है (एनएफएसए कीमतों के समान या उससे कम)2; दो, 'एनएफएसए राशन कार्डों के मुकाबले कम हकदारी वाले परिवार’ (एलईएएन)। उनकी पात्रता एनएफएसए कार्ड से कम हैं और निर्गम मूल्य आमतौर पर एनएफएसए की कीमतों से अधिक लेकिन अक्सर बाजार की कीमतों से कम होता है (हिमाचल प्रदेश में एपीएल कार्ड धारक इसका एक उदाहरण हैं)।
यदि हम एनईईएम की जनसंख्या को शामिल करते हैं, तो अतिरिक्त 9 करोड़ व्यक्ति एनएनएफएए हकदारी तक पहुंच का लाभ पीडीएस से लेते हैं (तालिका 1 में D और E पंक्तियां देखें)। इसके अतिरिक्त 5.1 करोड़ लोगों के पास एलईएएन राशन कार्ड हैं (तालिका 1 में F और G पंक्तियाँ)। उन्हें शामिल करने से पीडीएस कवरेज 95 करोड़ (2020 के लिए अनुमानित जनसंख्या का 69%) तक बढ़ जाती है। इनके अलावा 8.7 करोड़ (जनसंख्या का 6%) लोगों के पास गैर-खाद्य राशन कार्ड हैं जिनका संभवतः मुख्य रूप से उपयोग केरोसिन खरीदने के लिए और पहचान पत्र के रूप में किया जाता है।
लागत कौन वहन करता है?
अलग-अलग राज्यों के पीडीएस पोर्टलों के आंकड़ों और मासिक खाद्यान्न बुलेटिन की जानकारी के आधार पर तालिका 2 राज्यों को तीन श्रेणियों में वर्गीकृत करती है। पहली श्रेणी में वे राज्य हैं जो केवल एनएफएसए (कॉलम A) के तहत केंद्रीय अनाज आवंटन पर निर्भर हैं। दूसरी श्रेणी में वे राज्य हैं जो केंद्र से प्राप्त अतिरिक्त अनाज का उपयोग करते हुए एक विस्तारित पीडीएस चलाते हैं (B1)। तीसरी श्रेणी में विस्तारित पीडीएस वाले वे राज्य शामिल हैं जो केवल राज्य संसाधनों पर निर्भर हैं (B2)। विस्तारित पीडीएस के भीतर कार्ड धारकों के पास एनईईएम या एलईएएन हकदारियां हो सकती हैं।
जैसा कि ऊपर उल्लेख किया गया है - कुछ राज्यों में "सहायक" के रूप में गेहूं और चावल क्रमशः 6.10 रु. प्रति कि.ग्रा. और 8.30 रु. प्रति कि.ग्रा. (ये एनएफएसए से पहले की एपीएल दर हैं)। इसमें उत्तर-पूर्व भारतीय राज्य, हिमाचल प्रदेश, जम्मू और कश्मीर और उत्तराखंड जैसे पहाड़ी राज्य और कर्नाटक को छोड़कर सभी दक्षिणी राज्य शामिल हैं। कुछ ‘विशेष श्रेणी के राज्य’ भी हैं जबकि दक्षिणी राज्यों में एनएफएसए से पहले विस्तारित पीडीएस संचालित था। सहायक राशन का प्रावधान उन्हें एनएफएसए के बाद एनएफएसए से पहले की यथास्थिति बनाए रखने में मदद करने के लिए किया गया था अधिकांश अन्य राज्यों में, कानून के लागू होने के परिणामस्वरूप पीडीएस कवरेज में विस्तार हो गया है। जहां राज्य सहायक आवंटन का उपयोग करते हैं, वहां यदि इसके द्वारा कवर किए गए व्यक्ति एनईईएम परिवारों के हैं तो विस्तारित पीडीएस चलाने की लागत केंद्र और राज्यों द्वारा साझा की जाती है (जैसा कि तमिलनाडु में है), और यदि वे गैर-एनएफएसए पात्रता प्राप्त हैं (जैसे - हिमाचल प्रदेश में) तो इसे केंद्र द्वारा वहन किया जाता है। जब राज्यों को कोई सहायक राशन आवंटित नहीं किया जाता लेकिन राज्य फिर भी एक विस्तारित पीडीएस (जैसे छत्तीसगढ़) चलाता है, तो अतिरिक्त लागत पूरी तरह से राज्यों द्वारा वहन की जाती है।
तालिका 3 (कॉलम D) एनएफएसए मानदंडों ("एनएफएसए कार्ड") के तहत केंद्र द्वारा राज्य-वार कवरेज प्रस्तुत करता है। ऐसा प्रतीत होता है कि कुछ राज्य 2011 की जनसंख्या के आंकड़ों के अनुसार भी एनएफएसए कवरेज अपेक्षाओं को पूरा नहीं करते हैं। उदाहरण के लिए हिमाचल प्रदेश में 36.8 लाख (इसकी 2011 की जनसंख्या का 54%) लोगों के पास एनएफएसए (प्राथमिकता या अंत्योदय) कार्ड होना चाहिए; लेकिन केवल 28 लाख व्यक्ति ही केंद्र सरकार की सब्सिडी द्वारा कवर किए जाते हैं। हालांकि राज्य में समग्र कवरेज उच्च (98%) है, क्योंकि राज्य एपीएल कार्ड धारकों के लिए सहायक राशन का उपयोग करता है। इसी तरह के कम-कवरेज वाले अन्य प्रमुख राज्य (2011 की जनसंख्या के आधार पर) गुजरात, महाराष्ट्र और उत्तर प्रदेश हैं।
गुजरात में, चार राशन कार्ड प्रचलन में हैं: अंत्योदय, बीपीएल, एपीएल-1 और एपीएल-2। इनमें से पहले दो को क्रमशः एएवाई और प्राथमिकता के अनुसार पात्रता मिलती है। बीपीएल, एपीएल-1 और एपीएल-2 के अंतर्गत कार्ड को एनएफएसए और गैर-एनएफएसए के रूप में वर्गीकृत किया जाता है। यदि हम सभी अंत्योदय, बीपीएल (वे 14 लाख बीपीएल कार्ड शामिल हैं जिन्हें राज्य खाद्य पोर्टल पर गैर-एनएफएसए के रूप में वर्गीकृत किया गया है) और एनएफएसए एपीएल-1 (156 करोड़) को एनएफएसए कार्ड के रूप में गिनते हैं, तो ही हमें एनएफएसए मानदंडों के अनुसार गुजरात में कम-कवरेज प्राप्त होती है।
तालिका 3 (कॉलम F और H) एनएफएसए मानदंडों से परे पीडीएस कवरेज का विवरण प्रस्तुत करती है। वे राज्य जो एनईईएम कार्डों को केंद्र से प्राप्त सहायक राशन का उपयोग करते हुए अपनी लागत (कॉलम एफ) पर सब्सिडी देते हैं उनमें कर्नाटक को छोड कर अन्य सभी दक्षिणी राज्य शामिल हैं। यहां कुल राशन कार्डों में से 31-45% के बीच राशन कार्ड एनईईएम कार्ड हैं। इसके विपरीत, पश्चिम बंगाल (24%), छत्तीसगढ़ (10%), महाराष्ट्र (6%) और ओडिशा (2%) में एनईईएम कार्ड धारकों को प्राप्त होने वाली सब्सिडी पूरी तरह राज्य द्वारा वहन की जाती है।
अन्य अस्पष्टताएं भी बनी रहती हैं। उदाहरण के लिए तमिलनाडु में, पांच प्रकार के राशन कार्ड हैं: प्राथमिकता वाले परिवार (पीएचएच), अंत्योदय परिवार (पीएचएच-एएवाय), गैर-प्राथमिकता वाले परिवार (एनपीएचएच), गैर-प्राथमिकता शक्कर वाले परिवार (एनपीएचएच-एस) और गैर-प्राथमिकता कोई वस्तु नहीं (एनपीएचएच-एनसी) राशन कार्ड। इनमें से अंतिम को कोई पीडीएस वस्तु नहीं मिलती है जबकि एनपीएचएच-एस (जिसे ‘शक्कर कार्ड’ भी कहा जाता है) ने चावल के अलावा अन्य सभी पीडीएस वस्तुओं को प्राप्त करने का विकल्प चुना है। इस मामले में हमने एनपीएचएच-एस को एनईईएम के रूप में शामिल किया है क्योंकि वे चावल प्राप्त करने के लिए स्व-चयनित हैं। यदि इन सब को मिला दिया जाए तो यह संख्या 2020 की कुल जनसंख्या का 85% हो जाती है।
कोरोना महामारी और लॉकडाउन से संबंधित उपाय
मार्च 2020 के आसपास कोरोना वायरस के मामलों के बढ़ने और परिणामस्वरूप स्वास्थ्य आपातकाल स्थिति उत्पन्न होने के कारण भारत सरकार ने राष्ट्रीय स्तर पर सख्त लॉकडाउन लागू किया। पीडीएस ने इस अवधि में एक महत्वपूर्ण सहायक भूमिका निभाई है, लेकिन इसने पीडीएस के कवरेज में अपर्याप्तताओं को भी उजागर किया है।
इसके प्रत्युत्तर में कुछ राज्यों ने अस्थायी या स्थायी राशन कार्ड जारी किए हैं। इसमें दिल्ली में लगभग 54 लाख लोगों को ई-कूपन का प्रावधान शामिल है। इसके तहत लोगों को ऑनलाइन आवेदन करने के लिए कहा गया था और इस आवेदन प्रक्रिया में आधार कार्ड अनिवार्य था। मई के बाद ऐसे ई-कूपनों की स्थिति स्पष्ट नहीं है। राजस्थान के मुख्यमंत्री के ट्वीट के अनुसार, उन 46 लाख लोग, जिनके पास अनाज हकदारी वाले राशन कार्ड नहीं थे (मुख्य रूप से एपीएल कार्ड धारक, लेकिन बिना राशन कार्ड वाले भी), उनको मई के महीने में 10 किलो मुफ्त अनाज प्रदान किया गया था। माना जाता है कि दिल्ली और राजस्थान ने खुला बाजार बिक्री योजना (ओएमएसएस) का इस्तेमाल किया है जिसके तहत केंद्र सरकार राज्यों को उनकी इच्छानुसार मात्रा में 21 रु. प्रति कि.ग्रा. की दर पर गेंहू और 22 रु. प्रति कि.ग्रा की दर पर चावल खरीदने की अनुमति देती है। पुन:, इस तरह की योजनाओं के बारे में व्यापक जानकारी तथा नए लाभार्थियों की पहचान करने के लिए इस्तेमाल की जाने वाली प्रक्रिया आसानी से उपलब्ध नहीं है।
ओडिशा में, खाद्य मंत्री ने ट्वीट किया कि लॉकडाउन के दौरान राज्य खाद्य सुरक्षा योजना के माध्यम से पीडीएस में 2.37 लाख नए लोगों को शामिल किया गया था। इनमें से कुछ व्यक्ति ऐसे थे जिन्हें आधार कार्ड से संबंधित मुद्दों के कारण इससे बाहर कर दिया गया था; अन्य लोगों को ऑनलाइन शिकायतों और अलर्ट के आधार पर कार्ड जारी किए गए थे। फिर भी जिन्होंने पूर्व में अपने लिए राशन कार्ड जारी कराने हेतु राशन कार्ड प्रबंधन प्रणाली पर आवेदन किया था, राज्य ने उन लोगों को नए राशन कार्ड जारी करने के लिए 'प्रतीक्षासूची' के अंतर्गत रखा। कुछ राज्यों (ओडिशा और तमिलनाडु सहित) में नकद राहत राशि (1000 रुपये प्रति राशन कार्ड) वितरित करने के लिए पीडीएस दुकानों के नेटवर्क का उपयोग किया गया था।
पीडीएस में प्रौद्योगिकी के उपयोग के संबंध में एक छोटा लेकिन महत्वपूर्ण सबक है। मध्य प्रदेश और ओडिशा जैसे राज्यों ने अपने राशन कार्ड डेटाबेस को निरंतर अद्यतन करते रहने के लिए एक तंत्र को कार्यरत करने हेतु अपने डिजिटल राशन कार्ड प्रबंधन प्रणाली का उपयोग किया है (ड्रेजे एवं अन्य 2019 देखें)। राशन कार्डों के आवेदन और जारी करने की ऐसी विकेंद्रीकृत प्रणाली का पता लगाया जाना चाहिए, उसे अपनाया जाना चाहिए और अन्य राज्यों में इसका उपयोग भी किया जाना चाहिए।
निष्कर्ष टिप्पणी
हमारी गणना के अनुसार एनएफएसए मानदंडों के अनुसार 90 करोड़ लोगों को पीडीएस कवरेज मिल रहा है, और 5.1 करोड़ लोगों को एनएफएसए मानदंडों की तुलना में पीडीएस से कम समर्थन मिल रहा है, 40 करोड़ से अधिक लोगों को सरकार से किसी भी खाद्य सहायता के बिना अपनी व्यवस्था स्वयं करने के लिए छोड़ दिया जाता है।
यह सरकार के इस दावे का खंडन करता है कि पीडीएस द्वारा 100 करोड़ से अधिक लोगों को कवर किया जा रहा है। 4 जून को, प्रेस सूचना ब्यूरो (पीआईबी) की प्रेस विज्ञप्ति के अनुसार अतिरिक्त (एनएफएसए कवरेज से ऊपर और अधिक) 25 करोड़ व्यक्तियों के पास राज्य पीडीएस की पहुंच है। इसमें कहा गया है कि "एनएफएसए (लगभग 81.3 करोड़) के अंतर्गत लोगों की कवरेज वैधानिक प्रावधानों और 2011 की जनगणना आंकड़ों पर आधारित है... हालांकि राज्य ऐसी जनसंख्या को कवर करने के लिए अपनी राशन कार्ड योजना चलाते हैं और आज एनएफएसए के ऊपर और अधिक 25 करोड़ अतिरिक्त जनसंख्या को कवर करने के लिए 6 करोड़ से अधिक राज्य राशन कार्ड मौजूद हैं” (पीआईबी, 2020)।
यदि हम एनईईएम कार्ड (9 करोड़), एलईएएन कार्ड धारकों (5.1 करोड़) और गैर-खाद्य राशन कार्ड धारकों (8.7 करोड़) को जोड़ते हैं तो यह केवल हमें 22.8 करोड़ तक पहुंचाता है। हालांकि चूंकि अंतिम श्रेणी में कोई खाद्यान्न पात्रता नहीं है, गैर-एनएफएसए कार्ड धारक जिनके पास अनाज पात्रता है, वे केवल 14.1 करोड़ हैं। पीआईबी प्रेस विज्ञप्ति से यह स्पष्ट नहीं है कि उन्हें 25 करोड़ लोगों के अतिरिक्त राज्य कवरेज का आंकड़ा कैसे मिला।
भले ही केंद्र सरकार पीडीएस कवरेज का विस्तार करने की आवश्यकता के बारे में मना कर रही है, राज्य स्तर पर पूर्व में (लॉकडाउन के दौरान भी) एनएफएसए कवरेज मानदंडों से परे पीडीएस का विस्तार करने के लिए की गई पहलें यह बताती हैं कि कम-कवरेज और बाहर रह जाने की समस्या निश्चित रूप से विद्यमान है। बाहर रह गए 40 करोड़ में से कई गरीब व्यक्ति भी हैं।
केंद्र, भूख से कमजोर लोगों के लिए भोजन उपलब्धता में सुधार हेतु दीर्घकालिक और अल्पकालिक विकल्पों पर कार्य करने में सुस्त रहा है। गरीब राज्यों में पीडीएस का सार्वभौमीकरण करना, विस्तारित पीडीएस चलाने वाले राज्यों को सहायक कीमतों पर अधिक सब्सिडी वाला अनाज जारी करना या सामुदायिक रसोई स्थापित करना केंद्र के सामने कुछ विकल्प हैं। लॉकडाउन के दौरान केंद्र ने घोषणा की थी कि 8 करोड़ "प्रवासी" दो महीने के लिए (बाद में इसे नवंबर तक बढ़ा दिया गया) मुफ्त अनाज के हकदार होंगे। शुरुआती दो महीनों के अंत में कुछ राज्यों ने मुख्य रूप से ऐसे व्यक्तियों की पहचान में समस्याओं के कारण इस प्रावधान का उपयोग किया था। अस्थायी उपायों के बजाय केंद्र को 8 करोड़ लोगों (जिनमें से कुछ प्रवासी श्रमिक बिना राशन कार्ड के हो सकते हैं) को नियमित एनएफएसए कार्ड जारी करने की आवश्यकता है। यह कदम पीडीएस कवरेज को एनएफएसए के तहत कानूनी रूप से अपेक्षित संख्या के करीब ले आएगा।
अतिरिक्त खाद्य स्टॉक की वर्तमान स्थिति इन विकल्पों को व्यवहार्य बनाती है। भारतीय खाद्य निगम के पास जुलाई तिमाही की शुरुआत में बफर स्टॉक मानदंड़ों (41 एमटी) से दोगुना (96 एमटी) स्टॉक उपलब्ध था। राज्यों के पास केंद्र की तुलना में कम वित्तीय संसाधन हैं, इसलिए केंद्र को आगे आने की आवश्यकता है। ऊपर सूचीबद्ध परीक्षण तंत्रों पर भरोसा करने के बजाय केंद्र सरकार “एक राष्ट्र, एक राशन कार्ड” का इरादा रखती है जो संभवतः अनिश्चित लाभ के साथ अव्यवस्थित उपाय है (खेरा 2019 एवं खेरा 2020 देखें)। पोर्टेबिलिटी शुरू करने की तुलना में पीडीएस का विस्तार करना आसान है। पिछले कुछ महीनों ने स्पष्ट किया है कि पोर्टेबिलिटी की तुलना में सार्वभौमीकरण की ओर बढ़ना अधिक जरूरी है।
तालिका 1: सार्वजनिक वितरण प्रणाली के लिए अखिल भारतीय पहुंच: एक त्वरित अवलोकन
क्र.सं. |
संकेतक |
व्यक्ति (करोड़) |
जनसंख्या का हिस्सा 2020 (%) |
विवरण |
A |
कुल अनुमानित जनसंख्या, 2020 |
137.2 |
100 |
2011 की जनगणना तथा मध्य-दशक जन्म एवं मृत्यु दरों के आधार पर |
B |
एनएफएसए द्वारा अनिवार्य पीडीएस में कवर की जाने वाली अपेक्षित जनसंख्या |
92.2 |
67 |
2011 की जनगणना के अनुसार एनएफएसए द्वारा अनिवार्य भारित औसत |
C |
एनएफएसए राशन कार्डों द्वारा कवर किए गए व्यक्ति |
80.9 |
59 |
गेंहू और चावल के लिए क्रमश: रु. 2 एवं 3 प्रति कि.ग्रा. पर, प्राथमिकता कार्ड (5कि.ग्रा.प्रति व्यक्तिप्रति माह) तथा अंत्योदय (35 कि.ग्रा. प्रति कार्ड) |
D |
‘एनएफएसए समतुल्य अथवा अधिक पात्रता’ (एनईईएम) राशन कार्डों द्वारा कवर किए गए व्यक्ति |
9.0 |
7 |
समान (या कम) कीमतों पर एनएफएसए राशन कार्डों के समान (या अधिक) हकदारियां |
E |
‘एनएफएसए के मुकाबले कम पात्रता’ (एलईएएन) राशन कार्डों द्वारा कवर किए गए व्यक्ति |
5.1 |
4 |
एनएफएसए राशन कार्डों की तुलना में कम हकदारियां और अधिक कीमतें |
F |
एनएफएसए या एनईईएम राशन कार्डों द्वारा कवर किए गए कुल व्यक्ति |
89.9 |
66 |
C + D |
G |
पीडीएस के माध्यम से भोजन तक पहुंच वाले कुल व्यक्ति |
950 |
69 |
C + D + E |
नोट: आदर्श रूप से एनएफएसए द्वारा 2020 की अनुमानित जनसंख्या के हिसाब से (पंक्ति B) ग्रामीण क्षेत्रों में औसतन 75% और शहरी क्षेत्रों में 50% जनसंख्या कवर की जानी चाहिए; हालाँकि 2020 के लिए ग्रामीण-शहरी जनसंख्या के लिए विश्वसनीय अनुमान उपलब्ध नहीं हैं, हमारा अनुमान अधिक होने की संभावना है क्योंकि पिछले एक दशक में शहरी जनसंख्या (एनएफएसए के तहत कम कवरेज के साथ) की हिस्सेदारी बढ़ गई है।
स्रोत: A और B पंक्तियों में 2011 की जनगणना के आंकड़ों से की गई गणना के आधार पर अनुमानित जनसंख्या वृद्धि हेतु मध्य-दशक राज्य-वार जन्म और मृत्यु दर का उपयोग करते हए जीन ड्रेज, रीतिका खेरा और मेघना मुंगिकर द्वारा लगाए गए अनुमान अप्रकाशित हैं (इंडियास्पेंड 2020 देखें)। पंक्तियाँ सी-ई अलग-अलग राज्यों के पीडीएस पोर्टलों से संकलित गईं हैं।
तालिका 2: राज्य और केंद्रीय सब्सिडी के आधार पर राज्यों का वर्गीकरण
(A) एनएफएसए पीडीएस |
(B) विस्तारित पीडीएस |
|||
(B1) केंद्रीय योगदान के साथ |
(B2) बिना केंद्रीय योगदान के |
|||
एनईईएम |
एलईएएन |
एनईईएम |
एलईएएन |
|
असम |
आंध्र प्रदेश2 |
गोवा |
छत्तीसगढ़3 |
छत्तीसगढ़3 |
बिहार |
केरल3 |
हिमाचल प्रदेश |
महाराष्ट्र4 |
कर्नाटक |
दिल्ली |
तमिलनाडु |
जम्मू और कश्मीर |
ओडिशा |
पश्चिम बंगाल3 |
गुजरात |
तेलंगाना2 |
केरल3 |
पश्चिम बंगाल3 |
|
हरियाणा |
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उत्तराखंड |
|
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झारखंड1 |
|
|
|
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मध्य प्रदेश1 |
|
|
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पंजाब |
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राजस्थान |
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|
|
|
उत्तर प्रदेश |
|
|
|
|
कवरेज (करोड़ में) |
64 |
26 |
26 |
25 |
नोट:
(i) जब किसी राज्य में पीडीएस कवरेज एनएफएसए मानदंडों के भीतर है तो इसे कॉलम A के तहत वर्गीकृत किया गया है
(ii) यदि कोई राज्य कवर की गई जनसंख्या के मामले में एनएफएसए मानदंडों से परे जाता है तो इसे "विस्तारित पीडीएस" के रूप में वर्गीकृत किया गया है।
(iii) यदि विस्तारित पीडीएस चलाने वाले राज्य को 'सहायक' राशन (6.10 रु. प्रति कि.ग्रा. पर गेहूँ और 8 रु. प्रति कि.ग्रा. पर चावल) आवंटित किया जाता है तो इसे कॉलम B1 के तहत रखा गया है।
(iv) अगर कोई राज्य केंद्र सरकार से राशन प्राप्त किए बिना विस्तारित पीडीएस चलाता है तो उसे कॉलम B2 के तहत वर्गीकृत किया गया है।
(v) B1 और B2 राज्यों को आगे एनईईएम या एलईएएन के रूप में वर्गीकृत किया गया है, जो विस्तारित पीडीएस द्वारा कवर किए गए लोगों की हकदारियों पर निर्भर करता है। एनएफएसए समतुल्य पात्रता या अधिक (एनईईएम) कार्ड रखने वाले परिवारों को एनएफएसए कार्ड धारकों के समान हकदारी का लाभ मिलता है। एनएफएसए के मुकाबले कम पात्रता (एलईएएन) कार्ड रखने वाले परिवारों को एनएफएसए की कीमतों से अधिक लेकिन बाजार की कीमतों से कम कीमत पर कुछ अनाज (राज्यों के अनुसार अलग-अलग मात्रा) मिलता है।
(vi) केंद्र शासित प्रदेश इस तालिका में शामिल नहीं हैं।
(vii) उत्तर-पूर्व भारतीय राज्यों को तालिका से बाहर रखा गया है। मणिपुर को छोड़कर अन्य सभी को 'सहायक' राशन मिलता है। यह जानकारी कि क्या ये एनईईएम या एलईएएन पात्रता में बदलती हैं? - सिक्किम और त्रिपुरा (एलईएएन के लिए कॉलम B1 कवरेज में शामिल) को छोड़कर अन्य किसी के लिए सार्वजनिक रूप से उपलब्ध नहीं थी।
1 झारखंड और मध्य प्रदेश में, एनएफएसए कार्ड धारकों को लगाया जाने वाला पीडीएस मूल्य एनएफएसए की कीमतों से कम होने के कारण राज्य का योगदान है।
2 आंध्र प्रदेश और तेलंगाना को उनके कुल आवंटन का एक छोटा सा हिस्सा (क्रमशः 1% और 3%) सहायक अनाज के रूप में प्राप्त होता है। हालाँकि मुख्य रूप से चावल खाए जाने वाले इन राज्यों में सहायक अनाज के रूप में गेहूं आवंटित किया जाता है। हम इन्हें केंद्रीय समर्थन के साथ विस्तारित पीडीएस के तहत वर्गीकृत करते हैं क्योंकि उन्हें सहायक अनाज मिलता है लेकिन यह संभव है कि विस्तारित पीडीएस राज्य द्वारा वित्त पोषित हो।
3 छत्तीसगढ़, केरल, और पश्चिम बंगाल एनईईएम और एलईएएन दोनों के तहत दिखाई देते हैं क्योंकि एक ही राज्य में अलग-अलग जनसंख्या समूहों की अलग-अलग हकदारियां हैं।
4 महाराष्ट्र में, एपीएल कार्ड धारकों की स्थिति स्पष्ट नहीं है। "एपीएल किसान" कार्ड की उप-श्रेणी को एनईईएम कार्ड के रूप में गिना जाता है। अन्य एपीएल कार्ड धारक या तो एलईएएन या गैर-खाद्य श्रेणी के परिवार हैं। हमने उन्हें गैर-खाद्य कार्ड के रूप में गिना है।
स्रोत: राज्य पीडीएस पोर्टल और मासिक खाद्यान्न बुलेटिन (जून 2020)
तालिका 3: सार्वजनिक वितरण प्रणाली की राज्य-वार कवरेज
राज्य |
अनुमानित जनसंख्या 2020 (करोड़ में) |
एनएफ़एसए कवरेज अनुपात (%) |
2020 की जनसंख्या के अनुसार अनिवार्य एनएफ़एसए कवरेज (करोड़ में) |
एनएफ़एसए कार्ड द्वारा कवर किए गए व्यक्ति (करोड़ में) |
अनुमानित एनएफएसए कवरेज में कमी (करोड़ में) |
एनईईएम कार्ड धारी लोग (करोड़)a |
एनएफ़एसए या एनईईएम कार्ड धारी जनसंख्या का अनुपात (%) |
एलईएएन कार्ड धारी जनसंख्या का अनुपातa |
[A] |
[B] |
[C] |
[D] |
[E=C-D] |
[F] |
[G=(D+F)/A] |
[H] |
|
भारत |
137.17 |
67 |
92.19 |
80.9 |
11.29 |
9 |
66 |
4 |
अंडमान और निकोबार द्वीप |
0.04 |
17 |
0.006 |
0.006 |
0 |
0 |
15 |
77 |
आंध्र प्रदेश |
5.38 |
54 |
2.92 |
2.68 |
0.24 |
1.52 |
78 |
0 |
अरुणाचल प्रदेश |
0.155 |
63 |
0.1 |
0.09 |
0.01 |
0 |
55 |
6 |
असम |
3.56 |
81 |
2.88 |
2.49 |
0.39 |
0 |
70 |
0 |
बिहार |
12.49 |
84 |
10.48 |
8.73 |
1.75 |
0 |
70 |
0 |
चंडीगढ़ b |
0.115 |
47 |
0.05 |
0.03 |
0.02 |
0 |
25 |
- |
छत्तीसगढ़ |
2.93 |
79 |
2.3 |
1.94 |
0.36 |
0.2 |
73 |
13 |
दादरा और नगर हवेली |
0.041 |
69 |
0.03 |
0.02 |
0.01 |
0 |
52 |
0 |
दिल्ली |
1.86 |
43 |
0.81 |
0.71 |
0.1 |
0 |
38 |
0 |
गोवा |
0.154 |
36 |
0.06 |
0.05 |
0.01 |
0 |
35 |
51 |
गुजरात |
6.84 |
63 |
4.34 |
3.36 |
0.98 |
0 |
49 |
0 |
हरियाणा |
2.89 |
50 |
1.44 |
1.21 |
0.23 |
0 |
42 |
0 |
हिमाचल प्रदेश |
0.745 |
54 |
0.4 |
0.28 |
0.12 |
0 |
38 |
61 |
जम्मू और कश्मीर |
1.38 |
59 |
0.82 |
0.72 |
0.1 |
0 |
52 |
33 |
झारखंड |
3.85 |
80 |
3.09 |
2.63 |
0.46 |
0 |
68 |
0 |
कर्नाटक |
6.74 |
66 |
4.43 |
4.32 |
0.11 |
0 |
64 |
11 |
केरल c |
3.55 |
46 |
1.64 |
1.54 |
0.1 |
1.04 |
73 |
28 |
लक्षद्वीप |
0.007 |
34 |
0.003 |
0.002 |
0.001 |
0 |
32 |
0 |
मध्य प्रदेश |
8.52 |
75 |
6.42 |
5.44 |
0.98 |
0 |
64 |
0 |
महाराष्ट्र |
12.29 |
62 |
7.66 |
6.83 |
0.83 |
0.41 |
59 |
0 |
मणिपुर b |
0.31 |
88 |
0.27 |
0.25 |
0.02 |
0 |
81 |
- |
मेघालयb |
0.35 |
72 |
0.25 |
0.22 |
0.03 |
0 |
62 |
- |
मिजोरम b |
0.12 |
65 |
0.08 |
0.07 |
0.01 |
0 |
57 |
- |
नागालैंड b |
0.22 |
75 |
0.16 |
0.13 |
0.03 |
0 |
58 |
- |
ओडिशा |
4.62 |
78 |
3.59 |
3.33 |
0.26 |
0.1 |
74 |
0 |
पुदुचेरी b |
0.13 |
51 |
0.07 |
0.06 |
0.01 |
0 |
48 |
- |
पंजाब |
3 |
51 |
1.53 |
1.33 |
0.2 |
0 |
45 |
0 |
राजस्थान |
8.07 |
65 |
5.25 |
4.96 |
0.29 |
0 |
61 |
0 |
सिक्किम |
0.07 |
67 |
0.05 |
0.04 |
0.01 |
0 |
55 |
18 |
तमिलनाडु |
7.79 |
51 |
3.94 |
0 |
0.28 |
2.95 |
85 |
0 |
तेलंगाना |
3.91 |
54 |
2.12 |
1.92 |
0.2 |
0.88 |
72 |
0 |
त्रिपुरा |
0.39 |
68 |
0.27 |
0.24 |
0.03 |
0 |
62 |
32 |
उत्तर प्रदेश |
23.7 |
76 |
18.06 |
15 |
3.06 |
0 |
63 |
0 |
उत्तराखंड |
1.11 |
61 |
0.68 |
0.61 |
0.07 |
0 |
56 |
42 |
पश्चिम बंगाल |
9.96 |
66 |
6.56 |
6.02 |
0.54 |
1.92 |
80 |
14 |
नोट: a एनईईएम और एलईएएन राशन कार्ड पर अधिक जानकारी के लिए, तालिका 1 एवं मूलपाठ देखें। b एनईईएम और एलएएन राशन कार्ड द्वारा कवर की गई जनसंख्या पर सूचना सार्वजनिक रूप से उपलब्ध नहीं थी। c कुल कवरेज (कॉलम G + H) 101% तक हो जाता है क्योंकि अनुमानित जनसंख्या वास्तविक जनसंख्या से कम हो सकती है। d 3.66 करोड़ में से 19 लाख ’शक्कर' कार्ड हैं (पाठ देखें)।
स्रोत: कॉलम A और C जीन ड्रेज़, रीतिका खेरा और मेघना मुंगिकर द्वारा गणना पर आधारित हैं (तालिका 1 का स्रोत देखें); कॉलम B मासिक खाद्यान्न बुलेटिन से है; 2020 में वास्तविक एनएफएसए कवरेज (कॉलम D) चंडीगढ़, मणिपुर, मेघालय, मिजोरम, नागालैंड, लक्षद्वीप और पुदुचेरी को छोड़कर राज्य के पीडीएस पोर्टलों से संकलित आंकड़ों पर आधारित है, जहां एनएफएसए डैशबोर्ड से डेटा लिया गया है (राज्य पोर्टलों ने ये आंकड़े उपलब्ध नहीं कराए हैं)। कॉलम F और H भी राज्य पीडीएस पोर्टल से संकलित किए गए हैं।
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हम टिप्पणियों के लिए जीन ड्रेजे और अरकाजा सिंह को, तथा सहायक स्पष्टीकरण के लिए पंक्ति जोग, समीत पांडा और अक्षय पवार के प्रति आभार प्रकट करते हैं।
नोट्स:
- सहायक राशन का अर्थ है कि ये राज्य केंद्र द्वारा उन्हें आवंटित अनाज की मात्रा के मामले में कोई समस्या नहीं थी और संभवतः कुछ बचत भी थी क्योंकि इस अनाज का कुछ हिस्सा अब पहले की तुलना में कम कीमत पर उपलब्ध कराया गया था।
- जहाँ तक हम जानते हैं, छत्तीसगढ़ एकमात्र राज्य है जहाँ प्रदान की गई मात्रा एनएफएसए मानदंड से अधिक है (छत्तीसगढ़ के राज्य खाद्य सुरक्षा अधिनियम के तहत लोगों को 7 कि.ग्रा.प्रति महीना मिलता है)।
लेखक परिचय: रीतिका खेरा भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) दिल्ली में असोसिएट प्रोफेसर हैं। अनमोल सोमंची एक स्वतंत्र शोधकरता हैं।
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