2000 के दशक के मध्य और उत्तरार्ध के दौरानभारत ने ग्रामीण क्षेत्रों में मोबाइल फोन कवरेज का विस्तार किया और कृषि संबंधी सलाह लेने वाले किसानों के लिए निशुल्क कॉल सेंटर सेवाओं की शुरुआत की। इस लेख से ज्ञात होता है कि इन कार्यक्रमों ने कृषि क्षेत्र में अधिक उन्नत प्रौद्योगिकियों को अपनाने और उत्पादकता बढ़ाने में मदद की। हालांकिऐसा प्रतीत होता है कि कृषि सलाह की पहुंच में भाषा संबंधी बाधाओं ने अलग-अलग क्षेत्रों में किसानों के बीच असमानता को बढ़ाया है।
अर्थशास्त्रियों और नीति निर्माताओं ने काफी पहले ही इस बात को मान्यता दी है कि अमीर और गरीब देशों के बीच उत्पादकता में बड़ा अंतर होता है। इनमें से सबसे प्रमुख अंतर कृषि क्षेत्र में हैं जहां सबसे गरीब 10% देशों की तुलना में सबसे अधिक उत्पादनशील 10% देशों में, औसतन, प्रति श्रमिक आउटपुट 50 गुना अधिक है (गोलिन एवं अन्य 2014)। उत्पादकता में इतने बड़े अंतर के बारे में लंबे समय से यह धारणा रही है कि इसका प्रमुख कारण विकासशील देशों में किसानों द्वारा आधुनिक तकनीकों को धीमी गति से अपनाया जाना है (फोस्टर और रोसेनज़िग 2010)। हालांकि यह अभी भी एक खुला सवाल है कि ऐसे कौन से कारक हैं जो ऐसी प्रौद्योगिकियों को अपनाने में बाधा डालते हैं और उत्पादकता में देखे जाने वाले इतने बड़े अंतर के लिए वे कितना मायने रखते हैं।
आधुनिक कृषि प्रौद्योगिकियों को सीमित मात्रा में अपनाए जाने का एक महत्वपूर्ण कारण यह है कि उनके अस्तित्व या उन्हें सबसे बेहतर तरीके से उपयोग करने के बारे में समयोचित एवं विश्वसनीय जानकारी की कमी है। उदाहरण के लिए - 2003 के अंत तक 60% भारतीय किसानों ने बताया था कि उनके पास खेती की पद्धतियों (राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण, 2005) से संबंधित आधुनिक प्रौद्योगिकी के बारे में जानकारी के किसी भी स्रोत तक पहुंच नहीं है। ऐसे संदर्भ में यह आश्चर्यजनक नहीं है कि पिछले दो दशकों में निम्न और मध्यम आय वाले देशों में मोबाइल फोन के तेजी से प्रसार को कृषि उत्पादकता अंतर में कमी लाने वाली संभावित महत्वपूर्ण खोज के रूप में लिया गया है। इष्टतम कृषि पद्धतियों के बारे में समय पर और विश्वसनीय जानकारी प्रदान करके मोबाइल फोन वास्तव में विकासशील देशों के कृषि क्षेत्र में प्रौद्योगिकी अपनाने और उत्पादकता बढ़ाने की क्षमता रखते हैं। हालांकि कई विद्वानों ने नई तकनीकों को अपनाने में सीखने और सूचना के महत्व को इंगित किया है (उदाहरण के लिए कॉनले एवं उदरी 2010, मुंशी 2004 देखें), परंतु कृषि उत्पादकता पर सूचना के प्रभावों के संबंध में बड़े पैमाने पर अनुभवजन्य साक्ष्य रहस्य बने हुए हैं।
अध्ययन
हमारे हालिया शोध (गुप्ता एवं अन्य 2020) में हम यह विश्लेषण करते हैं कि क्या सूचना तक पहुंच भारत में किसानों द्वारा ऐसी तकनीकों को अपनाए जाने में वृद्धि कर कृषि उत्पादकता को बढ़ा सकती है। हम 2000 के दशक के मध्य में भारत सरकार द्वारा शुरू किए गए दो कार्यक्रमों का अध्ययन करते हैं। सबसे पहले, साझा मोबाइल बुनियादी कार्यक्रम (एसएमआईपी), जिसने ऐसे ग्रामीण क्षेत्रों में लगभग 7,000 मोबाइल फोन टावरों के निर्माण को वित्तपोषित किया जो पहले जुड़े हुए नहीं थे। दूसरा, किसान कॉल सेंटर (केसीसी), जो भारतीय किसानों को भारतीय संविधान द्वारा मान्यता प्राप्त 22 आधिकारिक भाषाओं में निशुल्क फोन-आधारित कृषि संबन्धित सलाह प्रदान करता है।
हमारे अनुभवजन्य विश्लेषण में (i) एसएमआईपी के तहत निर्मित मोबाइल फोन टावरों के भौगोलिक निर्देशांकों, (ii) जीएसएमए (मोबाइल संचार हेतु वैश्विक प्रणाली) मोबाइल फोन नेटवर्क के विकास, (iii) 2007-2012 की अवधि के दौरान किसानों द्वारा केसीसी को किए गए 25 लाख कॉलों की सटीक सामग्री, (iv) उच्च उपज वाली किस्में, बीज, उर्वरक और कीटनाशक सहित आधुनिक तकनीकों को अपनाने की मात्रा, और (v) कृषि उत्पादकता के उपाय संबंधी आंकड़ों को जोडा गया है1। हमारा आंकड़ा हमें अपने विश्लेषण को 100 वर्ग किलोमीटर की अत्यधिक बारीक भौगोलिक इकाइयों में करने में सक्षम बनाता है।
हम इस तथ्य का उपयोग करते हैं कि एसएमआईपी के आरंभिक चरण के दौरान कई मोबाइल फोन टॉवरों को उनके मूल रूप से नियोजित स्थानों से हटा दिया गया था क्योंकि या तो उनकी भूभागीय स्थिति अनुचित थी या टॉवर द्वारा कवर की जाने वाली आबादी को अधिकतम किया जाना था। इससे हम उन क्षेत्रों की तुलना कर पाए जहां नए एसएमआइपी टावर प्रस्तावित किये गये थे और अंततः (अ) वे वहीं निर्मित किए गए थे, और (ब) वे वहीं निर्मित नहीं किए गए थे। हम इस भिन्नता को उस क्षेत्र में बोली जाने वाली स्थानीय भाषा की जानकारी के साथ जोड़ते हैं। हम भारत की लगभग 100 गैर-आधिकारिक भाषाओं में से एक भाषा बोलने वाले व्यक्तियों के हिस्से पर ध्यान केंद्रित करते हैं। भारत में ऐसे लगभग 4 करोड़ लोग हैं जो ज्यादातर ग्रामीण आबादी में से हैं तथा जो केसीसी द्वारा दी जाने वाली कृषि सलाह सेवा तक पहुंचने के लिए प्रभावी रूप से भाषाई अवरोध का सामना करते हैं। साथ ही मोबाइल फोन कवरेज का विस्तार तथा एक आधिकारिक भाषा में कृषि सलाह लेने के लिए किसानों की क्षमता हमें कृषि पद्धतियों के बारे में किसानों के बीच सूचना बाधाओं को कम करने के प्रभावों की पहचान करने में समर्थ करती है।
टॉवर का निर्माण किसानों द्वारा किसान कॉल सेंटरों में की गई कॉल को बढ़ाता है
आकृति 1क एक नए मोबाइल फोन टॉवर के निर्माण के बाद केसीसी को किसानों की कॉल के क्रमिक वृद्धि को दर्शाती है। यह आंकड़ा बताता है कि एक निश्चित क्षेत्र से किए गए केसीसी को कॉलों की संख्या में उस क्षेत्र में एक नए मोबाइल फोन टॉवर के निर्माण के बाद काफी हद तक बढ़ोतरी हो जाती है। ये निष्कर्ष भारतीय किसानों में कृषि सलाह के लिए एक बड़ी और अल्प पूरित मांग के अनुरूप हैं। आकृति 1ख से पता चलता है कि कॉलों में वृद्धि उन क्षेत्रों में केंद्रित है जहां स्थानीय आबादी का अधिकांश हिस्सा ऐसी कोई एक आधिकारिक भाषा बोलता है जिसमें केसीसी द्वारा कॉल का जवाब दिया जाता है।
आकृति 1क. किसान कॉल सेंटरों को किए गए फोन कॉलों पर मोबाइल फोन टॉवर निर्माण का प्रभाव
आकृति में आए अंग्रेजी शब्दों/वाक्यांशों का हिंदी अर्थ
Months from SMIP tower introduction - एसएमआईपी टॉवर आने के बाद के महीने
Coefficient estimates and 95% CI - गुणांक अनुमान तथा 95% सीआई*
(*सीआई - विश्वास अंतराल - एक 95% विश्वास अंतराल मूल्यों की वह सीमा है जिसके बीच जनसख्या के औसत के होने की 95% संभावना है)
नोट: (i) आंकड़ा मासिक गुणांक को अंतर-में-अंतर (डिफरेंस-इन-डिफरेंस)3 अनुमानक से केसीसी को किए गए कॉल की संख्या पर एसएमआईपी के तहत मोबाइल टॉवर निर्माण के अंतर प्रभाव को ग्रहण करता है।
(ii) महीना 0 को उस महीने के रूप में सामान्यीकृत किया गया है जिसमें एसएमआईपी मोबाइल फोन टॉवर का निर्माण किया गया था।
आकृति 1ख. आधिकारिक एवं गैर-आधिकारिक भाषा बोलने वालों की संख्या के अनुसार किसान कॉल सेंटरों को किए गए फोन कॉलों पर मोबाइल फोन टॉवर निर्माण का प्रभाव
नोट: (i) आंकड़ा मासिक गुणांक को अंतर-में-अंतर (डिफरेंस-इन-डिफरेंस)3 अनुमानक से केसीसी को किए गए कॉल की संख्या पर एसएमआईपी के तहत मोबाइल टॉवर निर्माण के अंतर प्रभाव को ग्रहण करता है, पृथकत: उन क्षेत्रों के लिए जहां आबादी का अधिकांश हिस्सा केसीसी की आधिकारिक भाषाओं में से एक बोलता है (या नहीं बोलता है)।
(ii) ‘महीना 0’ को उस महीने के रूप में सामान्यीकृत किया गया है जिसमें एसएमआईपी मोबाइल फोन टॉवर का निर्माण किया गया था।
आधुनिक कृषि प्रौद्योगिकियों को अपनाने पर प्रभाव
हम यह दर्शाते हैं कि भारतीय किसानों के बीच सूचना तक संभावित पहुंच में वृद्धि का उन्नत कृषि प्रौद्योगिकियों को अपनाने पर सकारात्मक प्रभाव पड़ा है। जिन क्षेत्रों में मोबाइल फोन टॉवरों के निर्माण के कारण मोबाइल फोन कवरेज में वृद्धि हुई, वहां उच्च किस्म के बीजों के साथ-साथ उर्वरकों और सिंचाई प्रणालियों जैसी पूरक तकनीकों को अपनाने में वृद्धि देखी गई। इन क्षेत्रों में कृषि भूमि पर कीटनाशकों के उपयोग में वृद्धि भी देखी गई। ये प्रभाव उन क्षेत्रों में अधिक थे जहां केसीसी में किसानों और कृषि सलाहकारों के बीच भाषा अवरोध कम थे। सूचना प्रावधान की परिकल्पना के अनुरूप हम यह दर्शाते हैं कि जिन क्षेत्रों में भाषा अवरोध कम था वहां किसानों ने इन तकनीकों के बारे में सटीक जानकारी मांगने के लिए केसीसी को अधिक कॉल किए।
कृषि उत्पादकता अंतर को कम करना
अंत में हम कृषि उत्पादकता के संबंध में जानकारी तक किसानों की पहुंच के प्रभाव का विश्लेषण करते हैं। विशेष रूप से, हमारे अनुमानों से संकेत मिलता है कि हमारे प्रतिदर्श क्षेत्रों को पूर्ण मोबाइल फोन कवरेज प्रदान करने और कृषि सलाह के लिए फोन-आधारित सेवा की उपलब्धता को मिला दिया जाए तो 25वें तथा 75वें प्रतिशतक क्षेत्रों में कृषि पैदावार के आधार-रेखा अंतराल लगभग 25% तक कम हो सकता है। 25वें और 75वें प्रतिशतक के बीच पैदावार में आधार-रेखा अंतराल विश्व आय वितरण में देशों के शीर्ष दशमक और निचले दशमक के बीच चावल और गेहूं के पैदावार के प्रलेखित आंकड़े के समान है (गोलिन एवं अन्य 2014)। हम यह भी बताते हैं कि सूचना तक पहुंच का प्रभाव विभिन्न प्रारंभिक उत्पादकता वाले किसानों पर अलग-अलग होता है, और यह उन किसानों के लिए सबसे बड़ा है जिनके पास सबसे कम प्रारंभिक स्तर की उत्पादकता है। इसलिए, हमारे निष्कर्षों से संकेत मिलता है कि भारतीय क्षेत्रों में कृषि पद्धतियों और सूचनाओं के बारे में जानकारी की कमी कृषि उत्पादकता अंतर के एक बड़े हिस्से को समझा सकती है, और पूरे देश में इस तरह के अंतराल को प्रेरित करने वाले कारकों पर बहस को सूचित कर सकती है।
नीतिगत प्रभाव
पिछले 20 वर्षों में विकासशील देशों में मोबाइल फोनों का व्यापक प्रसार देखा गया है। साथ ही इन देशों ने अपने कृषि विस्तार कार्यक्रमों को भी बढ़ाया है। हमारे निष्कर्ष दर्शाते हैं कि मोबाइल फोन सूचना प्रसार का एक प्रभावी माध्यम प्रदान करते हैं और इनसे कृषि सलाहकारों और किसानों के बीच ज्ञान हस्तांतरण की सुविधा मिल सकती है। सोशल मीडिया और ऑनलाइन सूचना साझा करने वाली वेबसाइटों के साथ-साथ 3G/4G मोबाइल सेवाओं सहित संचार प्रौद्योगिकियों में हाल की प्रगति भविष्य में किसानों के बीच सूचना के प्रसार में मदद कर सकती है। हालांकि यह विचार करना भी महत्वपूर्ण है कि इस तरह की जानकारी की असमान पहुंच का कल्याणकारी परिणामों पर प्रभाव पड़ता है। हमारे परिणामों से संकेत मिलता है कि वर्तमान में किसानों और कृषिविदों के बीच भाषा बाधाओं के कारण केसीसी कार्यक्रम से बाहर छूट गए क्षेत्रों में मोबाइल फोन की शुरूआत से बहुत कम लाभ होता है, जिससे क्षेत्रों में व्यापक असमानताएं पैदा होती हैं। यह सेवा में भाषा की बाधाओं को दूर करके कृषि सलाह तक सार्वभौमिक पहुंच को बढ़ावा देने के महत्व पर प्रकाश डालता है और इस प्रकार सभी किसानों को अपने मोबाइल फोन की पूरी क्षमता का दोहन करने में सक्षम बनाता है।
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टिप्पणियाँ:
- यह आंकड़ा एक उप-जिले के सभी गांवों के यादृच्छिक रूप से चयनित 7% प्रतिदर्श से सभी कृषि जोतों के एक राष्ट्रव्यापी सर्वेक्षण से प्राप्त किया गया था।
- एक तकनीक जिसमें किसी योजना तक पहुंच प्राप्त करने वाले और नहीं करने वाले समान समूहों में समय के साथ परिणामों के विकास की तुलना की जाती है।
लेखक परिचय: अपूर्व गुप्ता डार्टमाउथ कॉलेज में अर्थशास्त्र के असिस्टेंट प्रोफेसर हैं। एंड्रिया टेसी लंदन की क्वीन मैरी यूनिवर्सिटी के स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स में रीडर (असोसिएट प्रोफेसर) हैं। जैकोपो पौंटिसेली नॉर्थवेस्टर्न केलौग स्कूल ऑफ मैनेजमेंट में असोसिएट प्रोफेसर हैं, साथ हीं वे नेशनल ब्यूरो ऑफ इकोनॉमिक रेसर्च एवं सेंटर फॉर इकोनॉमिक अँड पॉलिसी रेसर्च में रिसर्च फैलो हैं।
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