शहरीकरण

शहर-नियोजन को लोकतांत्रिक बनाना: 'मैं भी दिल्ली' अभियान से कुछ विचार

  • Blog Post Date 16 नवंबर, 2021
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Shalaka Chauhan

Youth for Unity and Voluntary Action (YUVA)

shalaka.c@yuvaindia.org

दिल्ली मास्टर प्लान 2041 के अंतर्गत नागरिकों के विचारों को शामिल करना सुनिश्चित करने हेतु वर्ष 2018 में ‘मैं भी दिल्ली’ अभियान शुरू किया गया था। इस संदर्भ में, शलाका चौहान शहर-नियोजन प्रक्रियाओं में सह-निर्माण और नागरिकों की भागीदारी की भूमिका पर चर्चा करती हैं, जिसमें यह विश्वास में निहित है कि अभिव्यक्ति हेतु पर्याप्त सहभागी साधन और उपकरण उपलब्ध कराए जाने पर हर कोई शहर-नियोजन में अपना योगदान दे सकता है।

वर्ष 2018 में, 'मैं भी दिल्ली' (एमबीडी) नामक एक शहर-आधारित अभियान चलाने के लिए विभिन संगठनों, शोधकर्ताओं, कार्यकर्ताओं, सामुदायिक आयोजकों, योजनाकारों, वास्तुकारों और शिक्षाविदों का एक समूह साथ आया। जैसा कि नाम से पता चलता है, उद्देश्य बहुत स्पष्ट था- दिल्ली विकास प्राधिकरण (डीडीए) और शहरी मामलों के राष्ट्रीय संस्थान (एनआईयूए) द्वारा तैयार किये जा रहे 'दिल्ली के मास्टर प्लान (2021-2041)' (एमपीडी 41) के पक्ष में एक समावेशी, समुदाय-आधारित दृष्टिकोण की हिमायत करना।

इस अभियान की शुरूवात शहर का कार्य किस तरह से होता है, अपर्याप्त और असंगत योजना के कारण कौन-सी दिक्कतें आती हैं, और अगले मास्टर प्लान में 'सभी का समावेश' करने हेतु एक रणनीति तय करने के विचार के साथ हुई। इस अभियान के तहत पिछले तीन वर्षों के दौरान कई हस्तक्षेप किए गए हैं- भागीदारी डिजाइन पद्धतियां विकसित करना, ज्ञान आधारित उत्पाद बनाने की दिशा में जमीनी अनुसंधान, जागरूकता कार्यक्रम, सार्वजनिक बैठकें, और एनआईयूए और डीडीए के साथ सार्थक बैठकें । यह अभियान इस बात को सुदृढ़ करने में सक्षम रहा है कि एमपीडी केवल इसका प्रारूप तय करने वालों तक ही सीमित नहीं है, अपितु इसका असर सीधे दिल्ली के निवासियों पर पड़ने वाला है, अतः यह महत्वपूर्ण है कि शहर-नियोजन प्रक्रिया में उनकी जरूरतों पर ध्यान दिया जाए। यह अभियान तीन मुख्य स्तंभों- अनुसंधान और हिमायत, सामुदायिक जुड़ाव, और जनता के सुझावों और आपत्तियों में हस्तक्षेप के निर्धारण पर केंद्रित रहा।

चित्र 1. ‘मैं भी दिल्ली’ अभियान की यात्रा

मास्टर प्लान प्रक्रिया के सभी स्तरों पर शोध और हिमायत

इस अभियान की सबसे पहली और महत्वपूर्ण रणनीति, शहरी मुद्दों को मास्टर प्लान से कैसे जोड़ा जाता है और इसमें मौजूदा, सुस्पष्ट अंतर को दूर करने के लिए इस अभियान के जरिये क्या किया जा सकता है, इसके बारे में एक समझ का निर्माण करना थी। क्षेत्रीय विशेषज्ञों और समुदायों के साथ कई परामर्श बैठकों का आयोजन करके, इस अभियान के तहत मुख्य शहरी मुद्दों पर 20 से अधिक फैक्टशीट और छह तकनीकी रिपोर्टें तैयार की गईं और इन्हें एनआईयूए और डीडीए के समक्ष प्रस्तुत किया गया।

इस शोध पहल ने दिल्ली में जमीनी स्तर के संगठनों के लिए शहर के सामाजिक-स्थानिक पहलुओं को देखने के नए अवसर उपलब्ध कराये हैं। उदाहरण के लिए, कूड़ा बीनने वालों को ढलोओं (सॉर्टिंग सेंटर) तक पहुंच नहीं मिलना उनके काम करने के अधिकार से जुड़ा है, साथ ही यह शहर की कचरा प्रबंधन प्रणाली से भी जुड़ा है जिसे मास्टर प्लान में नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। यह अभियान मौजूदा योजनाओं और नीतियों को शहरी कानून और विकास के मौजूदा आधार पर निर्माण करने के लिए मास्टर प्लान के साथ सिंक्रोनाइज़ भी करता है। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि इन शहरी मुद्दों को विभिन्न विषयगत समूहों द्वारा एक अलग नज़रिये से देखने का प्रयास किया गया है। उदाहरण के लिए, आवास से संबंधित मुद्दों को उनके विभिन्न प्रकारों (जेजे (झुग्गी-झोपड़ी) क्लस्टर/बस्तियों, अनधिकृत कॉलोनियों, पुनर्वास कॉलोनियों, बेघर आश्रयों, किराये के आवास, और प्रवासी श्रमिकों के छात्रावास) के आधार पर व्यापक बनाया गया, और विभिन्न कार्यक्षेत्रों (जैसे झुग्गियों में सुधार, निष्कासन, पुनर्वास, नियमितीकरण, बेघर, आजीविका, सामाजिक बुनियादी ढांचा, और लिंग) पर ध्यान केंद्रित किया गया क्योंकि इन परस्पर बातों को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है। इस प्रकार, अभियान के जरिये यह परिप्रेक्ष्य लाने की कोशिश की गई कि चूंकि अभियान शहर के सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक आयामों से जुड़ा हुआ है, शहर के भौतिक और स्थानिक आख्यान में हस्तक्षेप किए बगैर 'शहर के अधिकार' का दावा नहीं किया जा सकता है।

समुदायों के साथ मजबूत, सार्थक जुड़ाव

दूसरा, नागरिकों से जुड़े इस अभियान के माध्यम से, मास्टर प्लान का उद्देश्य सबसे कमजोर और हाशिए के लोगों तक पहुंचना था। इसका उद्देश्य निवासियों की चिंताओं को नियोजन प्रक्रिया में शामिल करना था क्योंकि यह संभावित रूप से शहर की उपलब्धियों में विस्तार कर सकता था और निर्णयकर्ताओं को जनता की जरूरतों और आकांक्षाओं के प्रति उत्तरदायी होने में सक्षम बनाता था। शासन और नियोजन की प्रक्रिया को 'निम्न स्तर से ऊपर की ओर जाने वाली' बनाने के संबंध में बातचीत, कुछ ऑनलाइन परामर्शों को आयोजित करने से परे है क्योंकि इसे आधारभूत, पहुँच-योग्य, नियमित और दोनों ओर से जुड़ी हुई बनाने की आवश्यकता है। साथ ही, इस प्रक्रिया में प्रत्येक स्तर पर सामुदायिक जुड़ाव की आवश्यकता है। यह प्रक्रिया लोगों के विचार और उनके परामर्श से शुरू होती है और लोगों की बहुमूल्य प्रतिक्रिया के आधार पर उनकी जरूरतों और इच्छाओं को पूरा करना सुनिश्चित करती है।

इस अभियान के तहत सामुदायिक मानचित्रण कार्यशालाओं के जरिये आयोजित चर्चाओं और जनसभाओं के चलते यह अभियान इसके पहुंच में काफी आगे बढ़ चुका है। अभियान के अंतर्गत 100 से अधिक ऑनलाइन और ऑफलाइन बैठकों का आयोजन कर विभिन्न बस्तियों और समूहों में जागरूकता बढाने का प्रयास किया गया। इसके सत्रों को अधिक संवादात्मक और सहभागी बनाने के लिए सदस्यों ने टूलकिट, पुस्तिकाएं, सर्वेक्षण और प्रशिक्षण कार्यक्रम तैयार किए। कार्यशालाओं को डिजाइन करने और लोगों की अभिव्यक्ति को दर्ज करने की प्रक्रिया में समुदायों के स्थानीय युवा नेताओं को भी शामिल किया गया ताकि वे अपनी-अपनी बस्तियों और समूहों में इस कार्यक्रम का प्रसार कर सकें। इसके अलावा, ऑनलाइन सार्वजनिक परामर्श आयोजित करने हेतु एनआईयूए और डीडीए का सहयोग करने के लिए, अभियान ने सक्रिय रूप से समुदायों को संगठित किया और कुछ परामर्शों की सुविधा भी प्रदान की।

चित्र 2. स्थानीय मुद्दों को समझने के लिए सामुदायिक मानचित्रण अभ्यास का उपयोग करना

सामूहिक अभिव्यक्ति के लिए सुझावों और आपत्तियों का प्रभावी उपयोग करना

तीसरा, इस अभियान ने समुदायों से कुशल प्रतिनिधित्व और भागीदारी सुनिश्चित करने हेतु हमेशा सुझावों और आपत्तियों के चरण को एक महत्वपूर्ण कदम माना। कायदे से, मसौदा मास्टर प्लान पर अपने सुझाव और आपत्तियां दर्ज करने हेतु केवल 'एक अन्तराल' है जिसके माध्यम से लोग इसमें भाग ले सकते हैं। इस बार, मसौदा तैयार करने के समय और साथ ही मसौदा योजना जारी करने के बाद, जनता की भागीदारी के लिए डीडीए ने ऑनलाइन बैठकों (कोविड-19 के कारण) की एक श्रृंखला आयोजित की। तथापि, अभियान के आयोजकों ने पाया कि अभियान के दौरान और अन्य सामूहिक संस्थाओं द्वारा बैठकों में जिन बिंदुओं पर प्रकाश डाला गया था, उन्हें मसौदा योजना में पर्याप्त रूप से प्रतिबिंबित नहीं किया गया। इसके अलावा, केवल कुछ ही लोगों की पहुंच डिजिटल साधनों तक होने की वजह से ऑनलाइन बैठकों ने डिजिटल अंतर को बढ़ाया और उसे उजागर किया।

चित्र 3. अपने सुझाव और आपत्ति दर्ज कराने हेतु अभियान प्रतिनिधि डीडीए कार्यालय में एकत्रित हुए

एमपीडी 41 के मसौदे की ‘जनता द्वारा जाँच' के चरण में, इस अभियान के तहत हमारे शहर को हर रोज संवारने वाले लेकिन सबसे अधिक हाशिए पर रहे 'शहर-निर्माताओं' से सुझाव और आपत्तियां मंगाई गईं। डीडीए ने शुरुआत में सुझाव व आपत्ति दर्ज कराने के लिए 45 दिनों की ‘खिड़की’ उपलब्ध कराई थी। चूँकि अभियान के अंतर्गत सुझाव और आपत्तियां दर्ज करने के लिए मसौदे की गहन समीक्षा और समझ की आवश्यकता थी, अतः हर मंच पर सामूहिक अभिव्यक्ति के लिए पर्याप्त जोर दिया गया। अभियान के सदस्यों ने भूमिकाओं को विभाजित किया - कुछ ने भूमि-उपयोग मैप को पढ़ा, कुछ ने दस्तावेज़ में दिए गए लक्ष्य और विकास मानदंडों का विश्लेषण किया, और अन्य ने इस महत्वपूर्ण चरण के लिए समुदायों को संगठित किया। ‘खिड़की’ की अवधि को 30 दिनों के लिए बढाए जाने के बाद, संगठनों और सदस्यों ने अपनी प्रत्यक्ष उपस्थिति के जरिये 250 से अधिक सामुदायिक बैठकों और घर-घर जाकर प्रचार के माध्यम से जनता से सुझाव और आपत्तियां प्राप्त कीं और वहीँ से इस अभियान ने असली रफ़्तार पकड़ी। 19 अगस्त 2021 को, दिल्ली ने एक ऐतिहासिक क्षण देखा, जहां इस अभियान से जुड़े लोगों द्वारा 20,000 से अधिक फीडबैक फॉर्म ऑफलाइन माध्यम से जमा किए गए। इस प्रयास में, अधिक डेस्क स्थापित करने और प्रक्रिया को आसान और तेज बनाने में डीडीए को सहयोग करना भी शामिल था। लोगों के मुद्दों को शहर-नियोजन से जोड़ने की सदस्यों की मांगों के परिणामस्वरूप, डीडीए के उपाध्यक्ष ने पहली बार इस अभियान के प्रतिनिधियों को एक लंबी व्यक्तिगत बैठक के लिए बुलाया, और इसमें उन्होंने दिल्ली के लोगों की प्रासंगिक और उभरती हुई समस्याओं को हल करने में मसौदा योजना की विफलताओं के बारे में जानकारी प्राप्त की। चर्चा के बिंदुओं में व्यापक डिजिटल विभाजन, मसौदा योजना में हाशिए पर रहने वाले समुदायों के लिए संभावित खतरे और अभियान की सिफारिशों की सूची शामिल थी।

चित्र 4. डीडीए कार्यालय में सुझावों और आपत्तियों का दर्ज किया जाना

शहर को अपने लोगों से अलग नहीं किया जा सकता

इन हस्तक्षेपों और उपलब्धियों ने हमें इस बात पर दृढ़ता से विश्वास करने के लिए प्रेरित किया कि शहर-नियोजन प्रक्रियाएं हर पहलू और चरण में लोकतांत्रिक होनी चाहिए - चाहे वह अनुसंधान और सर्वेक्षण चरण की हो, या प्रारूपण या कार्यान्वयन प्रक्रिया हो। इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए कि लोगों को शहर-नियोजन की प्रक्रिया से बाहर रखते ही शहर असफल हो जाते हैं, योजना अधिकारियों को यह समझना चाहिए कि शहरों में व्यवस्थित समाधान लोगों की जरूरतों और आकांक्षाओं पर आधारित होता है, और यह समुदायों और सामूहिक संस्थाओं से विश्वास-पात्र और अनुमोदित होना चाहिए।

लेखक जेन जैकब्स ने अपनी रचना ‘द डेथ एंड लाइफ ऑफ ग्रेट अमेरिकन सिटीज’(1961) में लिखा है, "शहरों को केवल इसलिए और तब कि उन्हें हर-एक ने सृजित किया है, शहरों के पास हर किसी को कुछ न कुछ देने की क्षमता है।" इसमें मास्टर प्लान की बहुत बड़ी भूमिका होती है क्योंकि इसमें शहर को इस तरह से डिजाइन करने की क्षमता है कि यह लोगों और शहर की बुनियादी और आकांक्षात्मक जरूरतों को पूरा कर सके, क्योंकि किसी शहर को उसके लोगों से अलग करना अतार्किक है। दिल्ली में इसे सुनिश्चित करने में इस अभियान की अहम भूमिका रही है। हालांकि, अंतिम योजना से पता चल सकेगा कि अभियान कितना सफल रहा है।

लेखक मरीना जोसेफ (यूथ फॉर यूनिटी एंड वॉलंटरी एक्शन) और अरविंद उन्नी (एमबीडी अभियान) को उनके सुझाव और योगदान के लिए धन्यवाद देना चाहती हैं।

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लेखक परिचय: शलाका चौहान यूथ फॉर यूनिटी एंड वॉलंटरी एक्शन (YUVA) में प्रोजेक्ट एसोसिएट हैं।

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