सामाजिक पहचान

सशक्तिकरण : लैंगिक समानता पर सामुदायिक रेडियो का प्रभाव

  • Blog Post Date 24 जुलाई, 2025
  • लेख
  • Print Page
Author Image

Felix Rusche

University of Mannheim

felix.rusche.econ@gmail.com

भारत की सामुदायिक रेडियो नीति, 2006, में शैक्षणिक संस्थानों और गैर-सरकारी संगठनों को स्थानीय स्तर पर निर्मित सामग्री के माध्यम से स्थानीय विकास संबंधी मुद्दों पर ध्यान देने के लिए सामुदायिक रेडियो स्टेशन स्थापित करने की व्यवस्था की गई है। यह लेख दर्शाता है कि सामुदायिक रेडियो की सुविधा होने से महिलाओं की शिक्षा, विवाह और प्रजनन क्षमता में सुधार होता है। इस साक्ष्य से विकासशील देशों में लैंगिक असमानता को बड़े पैमाने पर दूर करने की दिशा में मीनी स्तर के मीडिया का लाभ उठाने की बात को बल मिलता है।

दुनिया के अधिकांश हिस्सों की तरह भारत में कम उम्र में विवाह, कम उम्र में माँ बनना और कम शिक्षा प्राप्त करना महिलाओं को शक्तिहीन बनता है और उनके जीवन के अवसरों को सीमित करता  है। जैसे-जैसे देश समृद्ध होते जा रहे हैं, लैंगिक असमानता अक्सर सामाजिक मानदंडों के अधीन बनी रहती है, जिसके चलते महिला सशक्तिकरण से होने वाले कल्याणकारी लाभ बाधित होते हैं (डुफ्लो 2012, जयचंद्रन 2015)। नीति-निर्माताओं और शोधकर्ताओं दोनों के सामने अब यह सवाल खड़ा हो गया है कि नीति के माध्यम से लैंगिक असमानता को कैसे दूर किया जा सकता है?

एक विशेष आशा की किरण है मीडिया का नीतिगत साधन के रूप में उपयोग। पिछले शोधों से पता चलता है कि मीडिया का प्रभाव तब दृष्टिकोण और व्यवहार को प्रभावित करता है जब श्रोता कहानियों और पात्रों से जुड़ पाते हैं (डेलाविग्ना और ला फेरारा 2015)। उदाहरण के लिए, जेन्सन और ओस्टर (2009) दर्शाते हैं कि ग्रामीण भारत में टेलीविजन की शुरुआत ने महिलाओं को एक अलग, अधिक शहरी जीवन शैली से परिचित कराकर उनकी स्थिति और स्वायत्तता में काफी बदलाव किया। लेकिन नीति निर्माता मीडिया की शक्ति का उपयोग किस प्रकार करें? और वे एकल-मुद्दे वाले सूचना अभियानों से कहीं आगे बढ़ते हुए, बड़े पैमाने पर और लंबी अवधि में, परिणामों को कैसे लक्षित करें?

भारत की सामुदायिक रेडियो नीति का लम्बा सफर

जनता के लिए व्यापक रूप में रेडियो प्रसारण की व्यवस्था संबंधी, वर्ष 1996 के सर्वोच्च न्यायालय के फैसले तथा नागरिक समाज, कार्यकर्ताओं और अंतर्राष्ट्रीय संगठनों द्वारा एक दशक तक की पैरवी के बाद, भारत ने वर्ष 2006 में आर्थिक और सामाजिक विकास को बढ़ावा देने के लिए एक नई सामुदायिक रेडियो नीति लागू की (पवराला 2007)। इस नीति के अनुसार शैक्षणिक संस्थान और गैर-सरकारी संगठन, स्थानीय स्तर पर निर्मित सामग्री के माध्यम से, स्थानीय विकास के मुद्दों पर ध्यान देने के लिए सामुदायिक रेडियो स्टेशन स्थापित कर सकते हैं। राजनीतिक समाचार प्रसारित करने पर प्रतिबंध था लेकिन ये रेडियो स्टेशन अपने संपादकीय निर्णय स्वयं ले सकते थे (रघुनाथ 2020)। वर्ष 2020 तक, 250 से अधिक सामुदायिक रेडियो स्टेशन शुरू किए जा चुके थे और अनुमानतः 33.1 करोड़ लोग इन स्टेशनों के अंतर्गत आने वाले क्षेत्रों में रहते थे (आकृति-1)।

आकृति-1. वर्ष 2020 तक शुरू किए गए सामुदायिक रेडियो स्टेशनों के अनुमानित कवरेज क्षेत्र

टिप्पणी : यह आँकड़ा 31 मार्च 2020 तक सामुदायिक रेडियो स्टेशनों के अनुमानित कवरेज क्षेत्रों को दर्शाता है। इनके बारे में जानकारी प्राप्त करने के लिए, मैंने सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय द्वारा प्रकाशित सामुदायिक रेडियो स्टेशनों की एक सूची का उपयोग किया। मैंने उनके नाम, पते और लाइसेंस धारक की जानकारी का उपयोग करके वेब पर उनके सटीक स्थान की गहन खोज और पहचान करके इन स्टेशनों के भौगोलिक स्थान का पता लगाया। कुल मिलाकर, मैं 276 सूचीबद्ध स्टेशनों में से 264 के सटीक स्थानों की पहचान कर सका। रेडियो टावर की ऊँचाई और ट्रांसमीटर पावर की जानकारी के साथ इनका उपयोग करते हुए, लॉन्गली-राइस/अनियमित भू-भाग मॉडल का उपयोग करके रेडियो स्टेशनों के कवरेज क्षेत्रों का अनुमान लगाया गया, यह एक मानक रेडियो-प्रसार मॉडल है जिसका उपयोग स्थानीय भौगोलिक विशेषताओं और ट्रांसमीटर के तकनीकी विवरणों को ध्यान में रखकर कवरेज क्षेत्रों का अनुमान लगाने के लिए किया जाता है। मेरा अनुमान है कि वर्ष 2020 तक कुल 33.1 करोड़ लोग कम से कम एक सामुदायिक रेडियो स्टेशन के कवरेज क्षेत्र में आएंगे

सामुदायिक रेडियो स्टेशनों का महिला सशक्तिकरण और शिक्षा पर ध्यान

सामुदायिक रेडियो स्टेशनों की संपादकीय स्वतंत्रता को देखते हुए, पहला सवाल यह है कि वे किन मुद्दों पर चर्चा करना चुनते हैं। मैं यह जानने के लिए, ईड़ा डॉट इन- ईडीएए.इन पर अपलोड हुए हज़ारों रिकॉर्ड किए गए रेडियो कार्यक्रमों का लिप्यंतरण, अनुवाद और विश्लेषण करता हूँ। ईड़ा डॉट इन एक ऐसी वेबसाइट है जिसके ज़रिए सामुदायिक रेडियो स्टेशन एक-दूसरे के साथ सामग्री साझा कर सकते हैं। विषय विश्लेषण (आकृति-2) दर्शाता है कि औसत रेडियो स्टेशन की विकास-संबंधी सामग्री का लगभग आधा हिस्सा महिला सशक्तिकरण या शिक्षा से संबंधित होता है, हालांकि रेडियो स्टेशन कई अन्य विषयों को भी कवर करते हैं। यह निष्कर्ष एक गैर-सरकारी संगठन, स्मार्ट- एसएमएआरटी (2023) द्वारा सामुदायिक रेडियो स्टेशनों पर किए गए एक सर्वेक्षण में भी नज़र आया है, जिससे यह पता चलता है कि 90% से ज़्यादा स्टेशन लिंग-आधारित साहित्य (सामग्री) को प्रसारित करते हैं।

आकृति-2. विषय मॉडल के आधार पर विभिन्न विषयों पर रेडियो स्टेशन की सामग्री का औसत हिस्सा

टिप्पणी : यह आँकड़ा औसत रेडियो स्टेशन के विषयों के वितरण को दर्शाता है। इसके लिए, रेडियो शो के अनुवादित ट्रांसक्रिप्ट को एलडीए मॉडल का उपयोग करके विषय साझाकरण प्रदान किया जाता है। एलडीए विशेष रूप से एक ऐसा मॉडल है जिसमें ट्रांसक्रिप्ट को कई विषयों का संयोजन का मिश्रित रूप माना जाता है। विषय विषय से जुड़े शब्दों और वाक्यांशों, मान्यताओं आदि के आधार पर, एलडीए फिर विषयों को परिभाषित करता है और दिखाता है कि प्रत्येक ट्रांसक्रिप्ट का कितना हिस्सा किस विषय से लिया गया है (अधिक विवरण के लिए हैनसेन एवं अन्य, 2018 को देखें)। सबसे अधिक पूर्वानुमानित पदों के आधार पर विषयों को नाम देने के बाद, मैं सबसे पहले प्रत्येक रेडियो स्टेशन के औसत विषय हिस्से की गणना करता हूँ और इसके आधार पर, औसत रेडियो स्टेशन की सामग्री की गणना करता हूँ। मैं ऐसा करने से पहले, विकास-संबंधी संदेशों का अंदाज़ा देने के लिए मनोरंजन (औसत रेडियो स्टेशन की अपलोड की गई सामग्री का 24%) और अन्य अपरिभाषित विषयों (17%) को विज़ुअलाइज़ेशन से बाहर रखता हूँ

फिर भी, जबकि विश्लेषण से पता चलता है कि रेडियो स्टेशन लड़कियों की शिक्षा के बारे में चर्चा करते हैं, वे इसके पक्ष में तर्क नहीं भी दे सकते हैं। मैं यह जानने के लिए चैट-जीपीटी का उपयोग करता हूँ। इसके लिए, मैं सबसे पहले चैट-जीपीटी को सभी ट्रांसक्रिप्ट भेजता हूँ ताकि लैंगिक असमानता से संबंधित चार प्रमुख मुद्दों- बाल विवाह, शिक्षा, परिवार नियोजन और घरेलू हिंसा पर चर्चा करने वालों की पहचान की जा सके। बाल विवाह जैसे मुद्दों पर चर्चा करने वाले ट्रांसक्रिप्ट की पहचान करने के बाद, मैं उन्हें फिर से चैट-जीपीटी को भेजता हूँ और पूछता हूँ कि क्या रेडियो शो बाल विवाह के पक्ष में, उसके प्रति तटस्थ या उसके विरुद्ध कोई बयान देता है। कुल मिलाकर, प्राप्त परिणाम दर्शाते हैं कि इन चार मुद्दों पर आधारित सामग्री वाले 96% शो में इन पर उस तरह से चर्चा की जाती है जिसे अर्थशास्त्री आमतौर पर महिला सशक्तिकरण के अनुरूप मानते हैं। विशेष रूप से, वे लड़कियों की शिक्षा और परिवार नियोजन का समर्थन करते हैं और बाल विवाह तथा घरेलू हिंसा की निंदा करते हैं। कुछ शो तटस्थ होते हैं, जबकि लगभग कोई भी इसके विपरीत तर्क नहीं देता है।

महिला सशक्तिकरण पर सामुदायिक रेडियो के प्रभाव का मूल्याँकन

महिला सशक्तिकरण के संबंध में भारत की सामुदायिक रेडियो नीति के प्रभावों को कारणात्मक रूप से मापने के लिए, मैंने सबसे पहले वर्ष 2020 तक शुरू किए गए 250 से ज़्यादा सामुदायिक रेडियो स्टेशनों के स्थानों का डेटा एकत्र किया (रुशे 2025)। स्थानों और तकनीकी विवरणों के आधार पर, कवरेज क्षेत्रों का अनुमान लगाया गया (डेटा संग्रह के विवरण के लिए आकृति-1 के लिए दी गई टिप्पणी देखें)। व्यक्तिगत परिणामों के डेटा के लिए, मैं वर्ष 2015-16 के राष्ट्रीय परिवार एवं स्वास्थ्य सर्वेक्षण पर निर्भर करता हूँ, जो पहले रेडियो स्टेशनों के शुरू होने के लगभग 10 साल बाद किया गया था (अंतर्राष्ट्रीय जनसंख्या विज्ञान संस्थान (आईआईपीएस) और आईसीएफ, 2017)। मैं वर्ष 2016 से पहले शुरू किए गए रेडियो टावर के आस-पास रहने वाले लोगों पर ध्यान केंद्रित करता हूँ, यानी वे लोग जिनके रेडियो सिग्नल प्राप्त करने की संभावना शून्य से ज़्यादा है। मेरे मुख्य विश्लेषणों में, इसमें रेडियो टावर के 50 किलोमीटर के दायरे में रहने वाले लोग शामिल हैं।1

सामुदायिक रेडियो के प्रभावों का आकलन करते समय, दुर्भाग्य से, कम से कम एक शोधकर्ता के दृष्टिकोण से, रेडियो टावर और इसलिए उनके कवरेज क्षेत्र बेतरतीब ढंग से नहीं लगाए जाते, बल्कि अधिक विकसित क्षेत्रों में बनाए जाते हैं। इस प्रकार, क्षेत्रीय और व्यक्तिगत स्तर की विशेषताओं से संबंधित भिन्नताओं को हटा देने के बाद भी, रेडियो के प्रभावों को स्पष्ट रूप से नहीं मापा जा सकता है।

फिर भी, सामुदायिक रेडियो के प्रभावों का पता लगाने के लिए, मैं एक पहचान रणनीति पर निर्भर करता हूँ जिसे सबसे पहले ओल्केन (2009) ने प्रस्तुत किया था। यह इस विचार पर आधारित है कि किसी व्यक्ति को रेडियो सिग्नल प्राप्त होता है या नहीं, यह तीन घटकों द्वारा निर्धारित होता है, जिनमें से दो संभवतः महिलाओं की स्थिति से भी संबंधित हैं। मेरा उद्देश्य सामुदायिक रेडियो के प्रभावों का पता लगाने के लिए केवल तीसरे घटक में भिन्नता पर निर्भर रहना है। पहले दो घटक रेडियो टावर से दूरी और व्यक्तियों के परिवेश की भौगिलिक स्थिति हैं। दोनों ही इस बात को प्रभावित कर सकते हैं कि किसी व्यक्ति को रेडियो सिग्नल प्राप्त होता है या नहीं। साथ ही, दोनों ही शहरीकरण या दूरस्थता जैसे चरों के बारे में पूर्वानुमान की तरह हैं, जो महिलाओं की स्थिति से संबंधित हो सकते हैं। यह सुनिश्चित करने के लिए कि ये कारक परिणामों को प्रभावित न करें, मैं किसी स्थान की ऊँचाई और ऊबड़-खाबड़पन के साथ-साथ रेडियो टावर से व्यक्तियों की दूरी को नियंत्रित करके उनसे संबंधित भिन्नता का पता लगाता हूँ।

उपरोक्त चरणों का अनुसरण करने पर, रेडियो रिसेप्शन में जो अंतर बचता है, वह रेडियो टावर और रिसीवर के बीच दृष्टि रेखा से उत्पन्न होता है। उदाहरण के लिए, एक पहाड़ी जो न तो व्यक्ति के आसपास के इलाके से संबंधित है और न ही टावर से उसकी दूरी से, सिग्नल को किसी निश्चित स्थान तक पहुँचने से रोक सकती है। मैं रेडियो के प्रभावों का पता लगाने के लिए इस शेष भिन्नता का उपयोग करता हूँ। मैं इस दृष्टिकोण की वैधता का कई तरीकों से परीक्षण करता हूँ। उदाहरण के लिए, यदि उपरोक्त विचार सही है, तो रेडियो रिसेप्शन में भिन्नता उन चरों का पूर्वानुमान लगाने वाली नहीं होनी चाहिए जिनके रेडियो के माध्यम से बदलने की संभावना नहीं है, बल्कि महिलाओं के परिणामों, जैसे जनसंख्या घनत्व, शहरीपन, जाति या धर्म, से संबंधित हो सकती है। मुझे लगता है कि यह इन और कई अन्य चरों का पूर्वानुमान लगाने में सक्षम नहीं है। यह इस तर्क को पुष्ट करता है कि उपरोक्त दो घटकों से संबंधित भिन्नता को हटाने के बाद, मैं सांख्यिकीय रूप से बहुत समान स्थानों की तुलना कर रहा हूँ जिनके रेडियो रिसेप्शन में अंतर है।

सामुदायिक रेडियो के सम्पर्क में आने से महिलाओं की भूमिका बदलती है

मैंने पाया कि सामुदायिक रेडियो सुनने वाले परिवारों में परिवार नियोजन संदेश सुनने की संभावना नमूना औसत की तुलना में 25% अधिक और एचआईवी/एड्स पर संदेश सुनने की संभावना 42% अधिक होती है। इसलिए, सामुदायिक रेडियो स्टेशन अपने द्वारा आमतौर पर प्रसारित किए जाने वाले संदेशों का प्रचार बढ़ा देते हैं। मुझे रेडियो के समग्र उपयोग पर एक सकारात्मक, लेकिन कुछ हद तक कमज़ोर प्रभाव भी दिखाई देता है।

सामुदायिक रेडियो सुनने वाली महिलाओं को औसतन 0.3 वर्ष की अतिरिक्त शिक्षा प्राप्त करती हैं  और उनके स्कूल छोड़ने की संभावना कम होती है। कुल मिलाकर, उनके प्राथमिक, माध्यमिक और उच्च शिक्षा की डिग्री प्राप्त करने की संभावना 34 प्रतिशत अधिक होती है। स्कूल छोड़ने के कारणों में बदलाव से स्पष्ट है कि शैक्षिक उपलब्धि में वृद्धि स्कूल के बुनियादी ढांचे या पहुँच में सुधार के कारण नहीं, बल्कि माता-पिता और स्वयं लड़कियों की बढ़ती आकांक्षाओं के कारण होती है। इसके अलावा, माता-पिता द्वारा स्कूल छोड़ने का कारण विवाह को बताने की संभावना कम होती है। यह लड़कियों में बाल विवाह में 1.4 प्रतिशत अंक (या 22%) की कमी में भी परिलक्षित होता है। साथ ही, सामुदायिक रेडियो सुनने वाली महिलाओं की 25 वर्ष की आयु तक शादी होने की संभावना कम होती है। पुरुषों पर भी यही प्रभाव पड़ता है, लेकिन इसमें लगभग पांच वर्ष का विलम्ब होता है, जो मेरे नमूने में पुरुषों और महिलाओं के बीच आयु के अंतर को मोटे तौर पर दर्शाता है।

मुझे प्रजनन क्षमता में भी गिरावट नज़र आती है। 19 से 35 वर्ष की आयु के बीच, जोखिम वाले क्षेत्रों में रहने वाली महिलाओं के बच्चे 8-12% कम होते हैं। ये बदलाव न केवल प्रसव में देरी का संकेत देते हैं, बल्कि जीवन भर प्रजनन क्षमता में कमी को भी दर्शा सकते हैं। इस तरह की कमी का महिलाओं के स्वास्थ्य और आर्थिक अवसरों पर गहरा प्रभाव पड़ सकता है।

अंततः सामुदायिक रेडियो स्टेशनों का प्रभाव शिक्षा, प्रजनन क्षमता और विवाह से कहीं अधिक है। हालांकि निम्नलिखित परिणामों के आँकड़े केवल एक तिहाई सर्वेक्षण स्थानों के लिए ही उपलब्ध हैं, मैंने पाया है कि सामुदायिक रेडियो वाले क्षेत्रों में रहने वाली युवा महिलाओं के पारिवारिक निर्णयों में भाग लेने और अपने आवागमन में अधिक स्वतंत्रता स्वायत्तता रखने की संभावना 11 प्रतिशत अधिक है। उल्लेखनीय रूप से, पुरुषों में भी बदलते दृष्टिकोण के संकेत दिखाई दे रहे हैं- ऐसे पारिवारिक निर्णयों की संख्या में वृद्धि हुई है जिनमें उनका मानना है कि महिलाओं को भाग लेना चाहिए। इससे यह पता चलता है कि सामुदायिक रेडियो न केवल महिलाओं को सशक्त बना रहा है, बल्कि पुरुषों के बीच लैंगिक मानदंडों में बदलाव लाने में भी सहायक हो रहा है।

निष्कर्ष और नीतिगत निहितार्थ

मेरा शोध भारत की सामुदायिक रेडियो नीति के महिला सशक्तिकरण पर गहरे प्रभावों के प्रमाण प्रदान करता है। इससे पता चलता है कि भारत जैसी ज़मीनी मीडिया नीतियाँ विकासशील देशों के लिए एक प्रभावी नीतिगत साधन के रूप में काम कर सकती हैं। सीमित सरकारी संसाधनों को देखते हुए, यह नीति विकास के परिणामों को प्रभावित करने के लिए नागरिक समाज के संसाधनों और ज्ञान का उपयोग करने का एक तरीका प्रदान करती है। सांस्कृतिक और भाषाई रूप से विविध देशों में स्थानीय मुद्दों के बारे में इन संस्थानों का ज्ञान विशेष रूप से मूल्यवान साबित हो सकता है। इसके अलावा, सामुदायिक मीडिया में श्रोताओं के जीवन के करीबी लोग भी शामिल होते हैं। इस प्रकार, ये सहकर्मी प्रभावों को बेहतर ढंग से सक्रिय करने में सक्षम हो सकते हैं। कम से कम, सामुदायिक रेडियो संभावित रूप से उन लोगों को शामिल कर सकता है जिनका सरकार और इसलिए सरकारी मीडिया अभियानों पर कुछ भरोसा है।

इन परिणामों से भारतीय नीति निर्माताओं के लिए यह निष्कर्ष निकलता है कि सामुदायिक रेडियो महिलाओं को सशक्त बनाने में सफल रहा है। योजना का और विस्तार करने के लिए, सरकार पात्र संगठनों के बीच इसे और ज़ोरदार तरीके से प्रचारित कर सकती है। हितधारकों के साथ चर्चा से, मैंने पाया कि लाइसेंसिंग प्रक्रिया की जटिलता अतिरिक्त लाइसेंस प्राप्त करने में एक बाधा बन रही है। सरकार इस प्रक्रिया में सहायता भी दे सकती है या (सफल) आवेदकों की संख्या बढ़ाने के लिए इसे और सरल बना सकती है। रेडियो उपकरण खरीदने जैसी स्टार्टअप लागतों के वित्तपोषण के लिए उपलब्ध धन जुटाने से बाज़ार में प्रवेश की बाधाएँ और कम हो सकती हैं, जैसा कि लाइसेंस शुल्क में कमी से होगा। साथ ही, नीति-निर्माता कम से कम कुछ स्टेशनों को अपनी ट्रांसमीटर शक्ति या टावर की ऊँचाई बढ़ाने की अनुमति देने पर विचार कर सकते हैं। कुछ क्षेत्रों में, रेडियो अन्यथा वित्तीय रूप से स्थिर होने के लिए श्रोताओं के एक बड़े समूह तक पहुँचने में सक्षम नहीं हो सकते हैं।

टिप्पणी :

  1. दो डेटा स्रोतों को मिलाते समय, एक समस्या उत्पन्न होती है : सर्वेक्षण उत्तरदाताओं के स्थानों का सटीक रूप से अवलोकन नहीं किया जाता है। सर्वेक्षण उत्तरदाताओं की गोपनीयता बनाए रखने के लिए, सर्वेक्षण स्थानों के सटीक जीपीएस निर्देशांक को यादृच्छिक यानी रैंडम रूप से 5 किलोमीटर तक स्थानांतरित किया जाता है (ग्रामीण क्षेत्रों में, 1% उत्तरदाता 10 किलोमीटर तक स्थानांतरित होते हैं)। इससे मापन त्रुटि उत्पन्न होती है। इस समस्या के समाधान के लिए, मैंने एक नई विधि विकसित की है जिसमें स्थानांतरण एल्गोरिथम के ज्ञान को बाह्य डेटा के साथ संयोजित करके इस संभावना की गणना की जाती है कि किसी व्यक्ति का सर्वेक्षण कवरेज क्षेत्र के भीतर किया गया था, बशर्ते कि वह विस्थापित स्थान मेरे द्वारा देखा गया हो। मैं दर्शाता हूँ कि इससे स्थानांतरण से उत्पन्न होने वाली समस्या का समाधान हो जाता है। 

अंग्रेज़ी के मूल लेख और संदर्भों की सूची के लिए कृपया यहां देखें।

लेखक परिचय : फेलिक्स रुशे मैनहेम विश्वविद्यालय में अर्थशास्त्र में पीएचडी उम्मीदवार हैं और बॉन-मैनहेम सहयोगी अनुसंधान केंद्र के सदस्य हैं। सितंबर में, वह मैक्स प्लैंक इंस्टीट्यूट फॉर रिसर्च ऑन कलेक्टिव गुड्स में (पोस्टडॉक्टरल) वरिष्ठ अनुसंधान फेलो के रूप में शामिल होंगे। एक अनुप्रयुक्त सूक्ष्म-अर्थशास्त्री के रूप में, उनकी शोध रुचियाँ श्रम, विकास और राजनीतिक अर्थव्यवस्था तक फैली हुई हैं।

क्या आपको हमारे पोस्ट पसंद आते हैं? नए पोस्टों की सूचना तुरंत प्राप्त करने के लिए हमारे टेलीग्राम (@I4I_Hindi) चैनल से जुड़ें। इसके अलावा हमारे मासिक न्यूज़ लेटर की सदस्यता प्राप्त करने के लिए दायीं ओर दिए गए फॉर्म को भरें।

No comments yet
Join the conversation
Captcha Captcha Reload

Comments will be held for moderation. Your contact information will not be made public.

संबंधित विषयवस्तु

समाचार पत्र के लिये पंजीकरण करें