भारत में महिलाओं की सुरक्षा - घरों के अंदर और बाहर - दोनों एक प्रमुख चिंता का विषय है। यह पोस्ट महिलाओं के आर्थिक सशक्तीकरण, मजबूत विरासत अधिकारों और काम करने की स्थिति तथा घरेलू हिंसा की घटनाओं के बीच की कड़ी की खोज करता है। यह बताता है कि आय और धन के माध्यम से महिलाओं को सशक्त बनाने से उनमें घरेलू हिंसा का शिकार होने की संभावना कम हो जाती है।
भारत में महिलाओं के खिलाफ अपराध एक विशेष रूप से गंभीर समस्या है। 2012 में थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन द्वारा किए गए एक सर्वेक्षण में भारत को जी-20 देशों में महिलाओं के लिए सबसे खराब देश के रूप में दर्जा दिया गया है। भारत के राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के आंकड़े बताते हैं कि 2012 के दौरान महिलाओं के खिलाफ 2,44,270 अपराध हुए (प्रति 1,00,000 महिलाओं पर 41 अपराधों की दर)। इन अपराधों में 24,923 बलात्कार (4 प्रति 1,00,000 महिलाएं), 8,233 दहेज-संबंधी हत्याएं (प्रति 1,00,000 महिलाएं) और 1,06,527 पति या उनके रिश्तेदारों (प्रति 1,00,000 महिलाएं) द्वारा दुर्व्यवहार जैसी घटनाएं शामिल हैं। इसके अलावा राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (एनएफएचएस) के अनुसार 36% विवाहित महिलाओं ने अपने जीवन-साथी द्वारा धक्का दिया जाना, थप्पड़ मारा जाना, मारना, गला घोंटना, जला देना या हथियार से डराना जैसे शारीरिक शोषण के कुछ प्रकारों का अनुभव किया है। इसके अलावा लगभग तीन चौथाई महिलाएं ऐसी हैं, जिन्होंने अपने खिलाफ हिंसा का अनुभव किया है परंतु उन्होंने कभी मदद नहीं मांगी है। इससे पता चलता है कि एनसीआरबी डेटाबेस गंभीर अंडर-रिपोर्टिंग से ग्रस्त है और जितना एनसीआरबी ने रिपोर्ट किया है, उससे कहीं अधिक महिलाओं के खिलाफ हिंसा की समस्या विद्यमान है।
क्या महिलाओं के आर्थिक सशक्तीकरण और घरेलू हिंसा के बीच एक संबंध है?
मैंने काम, कमाई या धन के माध्यम से महिलाओं के आर्थिक सशक्तीकरण और घरेलू हिंसा (माथुर और स्लावोव 2013) की घटनाओं के बीच संबंध का आकलन अपनी सह-लेखक सीता स्लाव के साथ किया। एक ओर महिलाओं की आय और धन का उच्च स्तर उनके प्रति घरेलू हिंसा को कम कर सकता है क्योंकि वे घर में महिलाओं की बातचीत करने की स्थिति में सुधार करती हैं। दूसरी ओर, पति अपनी अधिक सशक्त पत्नियों को अपनी स्थिति के लिए खतरा के रूप में देख सकते हैं, जिससे अधिक प्रतिशोधी हिंसा को बल मिल सकता है।
इस मुद्दे का पता लगाने के लिए हम दो घरेलू स्तर के डेटासेट – एनएफएचएस और भारतीय मानव विकास सर्वेक्षण (आईएचडीएस) के विवाहित महिलाओं के डेटा का विश्लेषण करते हैं। हम महिलाओं की आर्थिक स्थिति के लिए एक बाहरी प्रॉक्सी के रूप में राज्य-स्तरीय विरासत कानूनों में भिन्नता का उपयोग करते हैं। उत्तराधिकार कानून में परिवर्तन होता है जिसका अध्ययन हम हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम 1956 से करते हैं - जो हिंदू, बौद्ध, जैन और सिखों पर लागू होता है - और जो पारिवारिक संपत्ति की विरासत के संबंध में बेटों की तुलना में बेटियों के लिए अधिक हितकारी नहीं है। इस अधिनियम के तहत बेटियों को अपने पिता की स्वतंत्र संपत्ति के साथ-साथ परिवार की पैतृक संपत्ति में से पिता के "काल्पनिक" हिस्से को प्राप्त करने के लिए बेटों के समान अधिकार था। हालांकि बेटे परिवार की पैतृक संपत्ति में से अपने लिए स्वतंत्र हिस्से के हकदार थे। बेटों को यह अनुरोध करने की भी अनुमति दी गई थी कि पैतृक संपत्ति को विभाजित किया जाए, जबकि बेटियों को ऐसा कोई अधिकार नहीं था।
1956 अधिनियम के बाद कुछ राज्यों ने अधिनियम में संशोधन करने के लिए कानून बनाया और संपत्ति विरासत कानूनों को स्त्री-पुरुषों के लिए अधिक तटस्थ बनाया। इन राज्यों में केरल (1976), आंध्र प्रदेश (1986), तमिलनाडु (1989), महाराष्ट्र (1994), और कर्नाटक (1994) शामिल हैं। इन संशोधनों ने महिलाओं को परिवार की पैतृक संपत्ति में दावा करने का अधिकार दिया। हालांकि संशोधन केवल उन महिलाओं पर लागू थे, जिनका इस कानून के पारित होने के समय विवाह नहीं हुआ था। उत्तराधिकार कानून में ये राज्य-स्तर के परिवर्तन हमारे अध्ययन के लिए एक 'प्राकृतिक प्रयोग' प्रदान करते हैं, क्योंकि वे हमें यह जांचने की अनुमति देते हैं कि क्या इन राज्यों में संशोधन ('उपचार' समूह) से प्रभावित होने वाली महिलाओं ने संशोधनों से अप्रभावित महिलाओं की तुलना ('नियंत्रण' समूह) में अलग-अलग परिणामों का अनुभव किया था। जब यह कानून ऊपर सूचीबद्ध पाँच राज्यों में पारित किया गया था तब 'नियंत्रण' समूह में वे महिलाएँ शामिल हैं, जिनका विवाह उस समय हुआ था, साथ ही साथ अन्य सभी उन राज्यों की महिलाएँ शामिल हैं, जो राज्य 1956 के उत्तराधिकार कानून के अधीन थे। संपत्ति विरासत कानून में परिवर्तन प्रभावपूर्ण होना चाहिए क्योंकि भारत में धन के एक बड़े हिस्से में भूमि (रॉय 2008) शामिल है।
उत्तराधिकार कानूनों में बदलाव के अलावा हम पता लगाते हैं कि क्या आर्थिक सशक्तिकरण के अन्य उपाय जैसे कि नौकरी करना और नौकरी से अधिक कमाई होना, महिलाओं के लिए बेहतर परिणामों से जुड़े हैं।
आईएचडीएस डेटा से प्रमाण
आईएचडीएस एक राष्ट्रीय स्तर पर प्रतिनिधि सर्वेक्षण है जिसमें पूरे भारत में 1,503 गांवों और 971 शहरी इलाकों में 41,554 घरों को शामिल किया गया है। इस सर्वेक्षण में 2004-2005 की अवधि शामिल है जो घरेलू हिंसा और महिलाओं की कमाई और रोजगार से संबंधित मुद्दों पर डेटा का एक व्यापक सेट प्रदान करता है। आईएचडीएस योग्य महिलाओं से पूछता है कि अपने पति को बताए बिना घर से बाहर जाना, दहेज का भुगतान करने में विफल होना, घरेलू जिम्मेदारियों की उपेक्षा करना, अच्छा खाना नहीं बनाना और विवाहेतर संबंध रखना जैसे संभावित कारणों में से किसी के लिए "क्या आपके समुदाय में, पति के लिए अपनी पत्नियों को पीटना सामान्य है"। हम अपने परिणाम चर का निर्माण करने के लिए इन सभी प्रश्नों की प्रतिक्रियाओं को समेकित करते हैं, जो एक संकेतक है जिसमें यदि पत्नी इनमें से किसी भी एक प्रश्न का उत्तर "हां" देती है तो मान एक हो जाता है। यदि इन सभी प्रश्नों का उत्तर "नहीं" है तो परिणाम चर का मान शून्य हो जाता है।
हमारे परिणामों से यह पता चलता है कि रिपोर्ट की गई ‘पिटाई’ और या तो काम की स्थिति या काम के घंटे के बीच सांख्यिकीय रूप से कोई महत्वपूर्ण संबंध नहीं है। हालांकि अधिक कमाई वाली महिलाओं द्वारा यह रिपोर्ट करने की संभावना कम है कि पिटाई आम बात है। विशेष रूप से, 10,000 रुपये की वृद्धि (एक औसत महिला की कमाई की तुलना में एक बड़ी वृद्धि) इस बात की रिपोर्टिंग की संभावना को 0.5 प्रतिशत अंकों से कम कर देती है कि पिटाई आम बात है। इसकी तुलना में, महिला की कमाई के अलावा परिवार की आय में वृद्धि का संबंध इसी प्रकार से पिटाई के बारे में रिपोर्ट करने की संभावना में एक छोटी (लेकिन अभी भी सांख्यिकीय रूप से महत्वपूर्ण) कमी के साथ है।
हम उत्तराधिकार कानून में संशोधनों और कथित तौर पर पिटाई के बीच संबंध का कोई सबूत नहीं पाते हैं। इसका एक कारण यह हो सकता है कि आईएचडीएस पूछता है कि ‘क्या प्रतिवादी समुदाय में हिंसा आम बात है?’, बजाय इसके कि ‘क्या प्रतिवादी को हिंसा का व्यक्तिगत अनुभव है?’। यदि किसी समुदाय में दोनों उपचार (विरासत कानून में संशोधनों से प्रभावित) और नियंत्रण (विरासत कानून में संशोधन से प्रभावित नहीं) समूह की महिलाएं शामिल हैं, तो उपचारित महिलाएं यह बता सकती हैं कि उन्होंने सुना है कि हिंसा आम है, भले ही वे स्वयं कभी भी व्यक्तिगत रूप से हिंसा की शिकार ना हुई हों।
हालांकि आईएचडीएस परिणाम उस कहानी के अनुरूप हैं जो रोजगार और कमाई के माध्यम से हम यह स्थापित नहीं कर सकते कि महिला सशक्तिकरण - घरेलू हिंसा के जोखिम को कम करने का एक माध्यम है। विशेष रूप से कई अप्रतिष्ठित कारक होने की संभावना है (उदाहरण के लिए महिलाओं के प्रति पति का रवैया) जो संयुक्त रूप से एक महिला की कमाई और पिटाई के जोखिम दोनों को निर्धारित करते हैं।
एनएफएचएस डेटा से प्रमाण
आईएचडीएस की एक सीमा यह है कि इसमें सर्वेक्षण के केवल एक दौर का डेटा है। यह देखते हुए कि एनएफएचएस कुछ वर्षों के अंतराल पर किया जाता है। इस प्रकार हम घरेलू हिंसा पर पड़ने वाले प्रभावों की पहचान करने के लिए राज्य के भीतर और समय की भिन्नता को भी देख सकते हैं। हम 1998-99 और 2005-2006 में किए गए सर्वेक्षणों के आंकड़ों के साथ काम करते हैं क्योंकि इनमें घरेलू हिंसा की जानकारी है।
हम अपने एनएफएचएस विश्लेषण में दो वैकल्पिक परिणाम चर का उपयोग करते हैं। पहला मूल्य सूचक एक या शून्य के आधार पर एक संकेतक चर है कि क्या प्रतिवादी कभी उसके पति द्वारा हिंसा का शिकार हुआ है। दूसरा संकेतक चर यह है कि क्या प्रतिवादी कभी भी किसी के द्वारा हिंसा (उसके पति सहित) का शिकार हुआ है। घरेलू हिंसा को प्रभावित करने वाले कारकों के लिए हम महिलाओं के सशक्तीकरण के तीन उपायों का निर्माण करते हैं: एक महिला कार्यरत है या नहीं, पिछले वर्ष में प्रदर्शन का प्रकार (मौसमी, वर्ष-दौर आदि), और व्यवसाय। दुर्भाग्य से एनएफएचएस डेटा उत्तर देने वाली महिलाओं या उनके परिवारों की कमाई के बारे में जानकारी प्रदान नहीं करता है। इसलिए उपर्युक्त तीन उपायों का उपयोग कमाई के लिए प्रॉक्सी के रूप में किया गया है। इसके अलावा हम विरासत के कानूनों में बदलाव के घरेलू हिंसा पर प्रभाव का विश्लेषण करते हैं।
हमारे परिणाम बताते हैं कि विरासत कानून की लाभार्थी महिलाओं के साथ उनके पति या किसी अन्य व्यक्ति द्वारा मारपीट की होने की संभावना इस कानून का लाभ नहीं पानेवाली महिलाओं की तुलना में (2.5 प्रतिशत अंक) काफी कम है। इन परिणामों में एक साथ सभी तीन सशक्तिकरण उपायों को शामिल करके भी काफी हद तक बदल नहीं हुआ है। इसके अलावा हम पाते हैं कि अधिक शिक्षा वाली महिलाएँ, जिन महिलाओं के परिवारों में जीवन स्तर उच्च स्तर का है, और जिन महिलाओं की शादी 18 साल की उम्र के बाद होती है, उनके पिटने की संभावना कम होती है। हमने आईएचडीएस डेटा विश्लेषण में इन कारकों के समान परिणाम प्राप्त किए।
महिलाओं को अधिक शक्ति
आईएचडीएस डेटा से प्राप्त हमारे परिणाम आय और नौकरियों के कारण महिलाओं के खिलाफ घरेलू हिंसा में कमी को दर्शाते हैं, जबकि एनएफएचएस डेटा से प्राप्त परिणाम विरासत कानूनों के माध्यम से संपत्ति में परिवर्तनों के प्रभाव के कारण जीवनसाथी द्वारा हिंसा में कमी दर्शाते हैं।
ऐसे कई चैनल हैं जिनके माध्यम से महिलाओं के विरासत के अधिकार और कमाई घरेलू हिंसा का अनुभव करने की संभावना को प्रभावित कर सकते हैं। विरासत के अधिकारों के माध्यम से धन में वृद्धि और नौकरी से कमाई के माध्यम से आय में वृद्धि, घर के भीतर महिलाओं की बातचीत करने की शक्ति और उनके महत्व में वृद्धि की संभावना को बढ़ाते हैं। यहां तक कि ऐसे मामलों में समान प्रभाव हैं जहां वास्तविक उत्तराधिकार नहीं हुआ है, और संभावना है कि एक महिला जमीन और संपत्ति का वारिस हो सकती है।
विरासत कानून में बदलाव पर केंद्रित एक अन्य शोध में डिनिंगर एट अल (२०१३) सुझाव देते हैं कि महिला के उत्तराधिकार अधिकारों को मजबूत करने से उसके विवाह के बाजार परिणामों में बदलाव हो सकता है। उनके परिणामों से पता चलता है कि हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम में राज्य-स्तरीय संशोधन उस उम्र को बढ़ाने के लिए किए गए थे जिस पर महिलाएं शादी करेंगी, विशेषकर उन परिवारों में जहां पिता अधिक शिक्षित थे और इसलिए कानूनी परिवर्तनों के बारे में जागरूक होने की अधिक संभावना थी। देरी से शादी की उम्र महिलाओं के लिए बेहतर विवाह परिणामों से जुड़ी होती है। उदाहरण के लिए - फील्ड एंड अम्ब्रस (2008) और जेन्सेन और थॉर्नटन (2003) ने दिखाया है कि शादी में एक महिला की उम्र उसकी शैक्षिक प्राप्ति, बातचीत करने की शक्ति, घरेलू हिंसा का अनुभव होने की संभावना और प्रजनन पर नियंत्रण को प्रभावित करती है।
हमारे संदर्भ में यह संभव है कि मजबूत विरासत वाले अधिकारों या उच्च आय वाली महिला उन्हें सम्मान देनेवाले जीवनसाथी को चुन सकती है। हालांकि वास्तविक कारण-तंत्र स्पष्ट नहीं है। कुल मिलाकर डेटा इस परिकल्पना को मजबूत समर्थन प्रदान करता है कि आय और धन के माध्यम से महिलाओं को सशक्त बनाने से इस संभावना को कम किया जाता है कि वे घरेलू हिंसा का शिकार हो जाएंगी।
लेखक परिचय: अपर्णा माथुर व्हाइट हाउस के काउंसिल ऑफ इकोनॉमिक एडवाइजर्स में एक वरिष्ठ अर्थशास्त्री हैं।
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