भारत में अक्सर मौजूदा जिलों को विभाजित करके नए प्रशासनिक जिलों का निर्माण होता रहा है, जहां पिछले चार दशकों में जिलों की संख्या दोगुनी से अधिक हो गई है। इस लेख में, वर्ष 1991 से 2011 तक के आंकड़ों के मद्देनजर इस विभाजन के आर्थिक परिणामों पर हुए प्रभाव का आकलन किया गया है। यह लेख दर्शाता है कि विभाजन-प्रभावित जिले पहले की तुलना में अधिक समरूप हो गए हैं; यह विभाजन नव-निर्मित जिलों के लिए विशेष रूप से फायदेमंद है, जो विभाजन के पुनर्वितरण लाभों को प्राप्त करते हैं।
कई विकासशील देशों में उप-राष्ट्रीय प्रशासनिक सीमाएँ अस्थिर होती हैं। प्रशासनिक प्रसार या सरकारी विभाजन में नए राज्यों, जिलों, उप-जिलों आदि का निर्माण शामिल होता है। उप-राष्ट्रीय स्तर पर मौजूदा इकाइयों को विभाजित करके नई प्रशासनिक इकाइयों का निर्माण किया जाना आम बात है (ग्रॉसमैन और लुईस 2014)। 1950 के दशक के बाद से, भारत में बार-बार नए जिलों का निर्माण हुआ है। वर्ष 1971 में देश में 356 जिले और वर्ष 2011 में 640 जिले थे, तब से जिलों की संख्या बढ़कर अब 7801हो गई है। नए जिलों के निर्माण के लिए बताए गए कारण प्रशासनिक सुगमता और नागरिकों के करीब राज्य (शासन) को लाकर बेहतर विकास परिणाम प्राप्त करना हैं (2018, ब्रिंकरहॉफ एवं अन्य 2018)।
भारत में जिलों का निर्माण: रुझान और निहितार्थ
अधिक जिलों का निर्माण करने की दिशा में एक सुस्पष्ट प्रवृत्ति रही है, जिसने 1992 में पंचायती राज संशोधन2 के बाद से और गति पकड़ी है (चित्र 1 देखें)। सैद्धांतिक रूप से विकेंद्रीकरण सुधार लागू होने से, प्रत्येक उप-राष्ट्रीय इकाई को नियंत्रित करने से लाभ बढ़ेंगे और यह स्थानीय अभिजात वर्ग के लिए नई इकाइयों (ग्रॉसमैन और लुईस 2014) के निर्माण की मांग करने के लिए प्रोत्साहित करता है।
चित्र 1. भारत में जिलों के निर्माण की गति
नोट: नीली रेखा 1992 के पंचायती राज संशोधनों की शुरूआत के वर्ष को दर्शाती है। लाल रेखा विभिन्न वर्षों में भारत में कुल जिलों की संख्या को दर्शाती है। लाल बिंदी वाली रेखा वर्ष 1990 तक की प्रवृत्ति के अनुसार कुल जिलों को प्रक्षेपित करती है।
यद्यपि प्रशासनिक प्रसार अक्सर विकेंद्रीकरण सुधारों से जुड़ा होता है, यह एक नीतिगत विकल्प है। विकेंद्रीकरण में निचले स्तर की सरकारी इकाइयों (फलेटी 2013) के लिए जिम्मेदारी, अधिकार और संसाधनों का हस्तांतरण शामिल होता है,जबकि प्रशासनिक प्रसार केवल अंतर्निहित वित्तीय और प्रशासनिक संरचना को बदले बिना नई सरकारी इकाइयां बनाता है (ग्रॉसमैन और लुईस 2014, ग्रॉसमैन एवं अन्य 2017)। हालांकि, नए जिलों का निर्माण नागरिकों को उनके प्रशासकों के करीब लाता है और प्रत्येक जिले को जातीयता और वरीयताओं के मामले में छोटा और अधिक समरूप बनाता है, तथा सैद्धांतिक रूप से बेहतर विकास परिणामों की ओर अग्रसर होता है (पियर्सकल 2019)।
अनुभव-जन्य अध्ययन ने प्रशासनिक प्रसार में चुनावी राजनीति की भूमिका (रेसनिक 2017) और संघर्ष और हिंसा पर प्रशासनिक प्रसार के प्रभाव (पियर्सकल और सैक्स 2017,बाज़ी और गुडगिन 2021) का पता लगाया है। तथापि, प्रशासनिक प्रसार के विकासात्मक परिणामों पर पडने वाले प्रभावों के बारे में उपलब्ध साक्ष्य मिले-जुले हैं (कार्लिट्ज 2017, लुईस 2017, बिलिंग 2019, हलीमतुसा'दियाह 2020)। हमारे हाल के कार्य (राजन और मलघन 2022) में, हम भारत से उपलब्ध उप-जिला स्तर के डेटा का उपयोग करते हुए जिला प्रसार के विकासात्मक परिणामों संबंधी अनुभव-जन्य साक्ष्य में योगदान करते हैं।
भारत में संबंधित राज्यों द्वारा एक मौजूदा जिले के कुछ उप-जिलों को एक नए जिले के रूप में निर्दिष्ट करके और नई इकाई में से एक उप-जिले को जिला मुख्यालय3 के रूप में चुनकर नए जिले बनाए जाते हैं। इसलिए, चूंकि उप-जिलों के पुन:आवंटन और उनके लिए एक नए प्रशासनिक मुख्यालय का आवंटन करके जिलों का निर्माण किया जाता है, इसलिए जिला स्तर से नीचे के प्रशासन में परिवर्तन नहीं होता है, लेकिन नए जिला मुख्यालयों के लिए बुनियादी ढांचे का सृजन होता है।
जाँच के परिणाम
सार्वजनिक वस्तुओं संबंधी प्रावधानों और सामाजिक श्रेणी के बारे में भारत के जिलों में दो जनगणना अवधियों (वर्ष 1991 से 2011 तक) में एकत्र किए गए डेटा का उपयोग करते हुए, और इसी अवधि के दौरान नाईट-टाइम लुमिनोसिटी (रात्रि-कालीन आर्थिक गतिविधि) उपायों4 का उपयोग करते हुए, हम जांच करते हैं कि क्या नवगठित होने के लिए चुने गए जिलों और बचे हुए जिलों के बीच जातीय संरचना और आर्थिक परिणामों के संदर्भ में देखने योग्य अंतर हैं। हमने जनगणना जनसंख्या डेटा से दो जनसांख्यिकीय चरों- भिन्नात्मकता5और एक स्थानिक असमानता6 सूचकांक की गणना की।
जिला जैसी उच्च प्रशासनिक इकाई की तुलना में उप-जिला स्तर पर श्रेणी-वार7(एससी, एसटी, ओटीएच) जनसंख्या वितरण भिन्न होने की संभावना है। हम पाते हैं कि जिन जिलों को विभाजित किया है उनके उप-जिलें (‘मूल' और 'जनित' जिलें- दोनों) उन जिलों से अलग हैं जो विभाजित नहीं हुए हैं। हमने शहरी आबादी का हिस्सा, कृषि श्रम का हिस्सा, साक्षर आबादी का हिस्सा-जैसे अन्य जनसांख्यिकीय और आर्थिक चरों और उप-जिले में प्राथमिक विद्यालयों और प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों की संख्या- जैसे सार्वजनिक वस्तुओं के संकेतकों पर विचार करते हुए, विभाजित जिलों के आर्थिक परिणामों और जातीय वितरण की तुलना की।
विभाजित जिलों में विभाजन और असमानता दोनों अधिक थे, और अंतर सांख्यिकीय रूप से महत्वपूर्ण थे। इसी तरह, हमने विभाजन से पहले के क्षेत्रों के आर्थिक परिणामों की तुलना एक ऐसे संकेतक का उपयोग करके की, जो यह मापता है कि उप-जिले में औसत नाईट-टाइम लाइट (रात्रि-कालीन आर्थिक गतिविधि) उस जिले की तुलना में अधिक है, जिसका वह हिस्सा है। एक विभाजित जिले के अन्दर, उच्च स्तर की असमानता और आर्थिक परिणामों के निचले स्तर के हाशिए वाले क्षेत्रों के अलग होने और भविष्य में उनके एक नया जिला बनने की संभावना है।
हम यह भी पता लगाते हैं कि क्या नव निर्मित 'जनित' जिलों के विकास के परिणाम उस हिस्से की तुलना में बेहतर हैं जो पूर्ववर्ती ‘मूल' जिलों के साथ रहे हैं। हम पाते हैं कि नाईट-टाइम लाइट (रात्रि-कालीन आर्थिक गतिविधि) के तहत मापे गए आर्थिक परिणामों में, 'जनित' जिले ‘मूल' जिले की तुलना में काफी बेहतर प्रदर्शन करते हैं। यह प्रभाव कुछ वर्षों तक बना रहता है,और फिर कम हो जाता है। हम यह भी पाते हैं कि ‘मूल' और 'जनित' दोनों जिले, जिन्हें विभाजित किया गया था,उन जिलों से बेहतर करते हैं जो कभी विभाजित नहीं हुए।
चित्र 2. 'जनित' और ‘मूल' जिलों के संदर्भ में प्रति व्यक्ति ‘नाईट-टाइम लाइट’ में अंतर
नोट: यह आंकड़ा विभाजन से पहले और बाद के वर्षों में 'जनित' और ‘मूल' जिलों की औसत प्रति व्यक्ति नाईट-टाइम लाइट (रात्रि-कालीन आर्थिक गतिविधि) के बीच के अंतर को दर्शाता है।
आशय
हमारे निष्कर्षों से इस परिकल्पना को पुष्टि मिलती है कि आर्थिक उत्पादन के संदर्भ में, समग्र जिले- विशेष रूप से नव निर्मित जिलों के लिए जिला विभाजन फायदेमंद होता है। अवलोकित प्रभावों के लिए दो अंतर्निहित तंत्र हो सकते हैं - यह विभाजन के बाद जनसंख्या वितरण में अधिक समरूपता के कारण या विभाजन के पुनर्वितरण लाभों के चलते उत्पन्न हो सकता है।
विभाजन के बाद, 'जनित' और ‘मूल' क्षेत्र- दोनों पहले की तुलना में अधिक समरूप हो जाते हैं। हम पाते हैं कि जब एक समान जिले से तुलना की जाती है जो कभी विभाजित नहीं हुआ, तो 'जनित' और ‘मूल'- दोनों जिले आर्थिक परिणामों के मामले में बेहतर प्रदर्शन करते हैं। इससे पता चलता है कि विभाजन के बाद जनसंख्या वितरण और वरीयताओं में अधिक समरूपता देखे गए परिणामों में एक भूमिका निभा सकती है।
हालांकि, विभाजन के बाद की अवधि में 'जनित' क्षेत्र ‘मूल' क्षेत्रों की तुलना में बेहतर प्रदर्शन करते हैं। यह उम्मीद करना वाजिब है, क्योंकि 'जनित' जिले के गांवों को उनके करीब एक नए प्रशासनिक सेटअप के स्थापित होने का अतिरिक्त लाभ मिलता है। यह आशेर एवं अन्य (2018) के निष्कर्षों के अनुरूप है, जिन्होंने भारत के डेटा का उपयोग करके दर्शाया कि नागरिकों और प्रशासनिक केंद्रों के बीच की दूरी को कम करने से बेहतर परिणाम प्राप्त हो सकते हैं। ‘मूल' क्षेत्र में पहले से ही एक स्थापित प्रशासनिक व्यवस्था होती है, और इसलिए एक नए जिला मुख्यालय के निर्माण के कारण पुनर्वितरण का प्रभाव ‘मूल' जिले में नहीं होता है। ‘मूल' क्षेत्र से अधिक 'जनित' क्षेत्र में देखा गया यह लाभ दर्शाता है कि ये अवलोकित प्रभाव पुनर्वितरण लाभों के कारण हैं। इस प्रकार से, हमारे निष्कर्ष दर्शाते हैं कि जनसंख्या समरूपता और पुनर्वितरण प्रभाव- ये दोनों तंत्र जिला विभाजन में कारगर हैं।
हम यहां पाते हैं कि सरकारी कार्य कई और विविध हैं,और उन कार्यों में से एक पर जनसंख्या के आकार का प्रभाव दूसरों पर होने वाले प्रभाव के समान नहीं हो सकता है। इस अध्ययन में, स्थानीय सरकारों के प्रदर्शन या सेवा वितरण की दक्षता और लागत पर टिप्पणी किए बिना, नाईट-टाइम लाइट (रात्रि-कालीन आर्थिक गतिविधि) द्वारा मापे गए अन्य कार्यों और सेवाओं के संबंध में स्थानीय सरकार के आकार पर अपनी टिप्पणियों को सामान्य आर्थिक परिणामों तक सीमित रखा गया है। नीतिगत उपाय के रूप में प्रशासनिक प्रसार के विशिष्ट सार्वजनिक सेवा उपायों जैसे शिक्षा, स्वच्छता, जल आपूर्ति, या मातृ स्वास्थ्य (कार्लिट्ज 2017, लुईस 2017, बिलिंग 2019, हलीमातुसा'दियाह 2020) के परिणाम मिले-जुले हैं। यद्यपि भारत में प्रति जिले की जनसंख्या अधिक है, और इस तरह प्रशासनिक विभाजन के अवलोकित प्रभाव प्रति प्रशासनिक इकाई जनसंख्या के निचले स्तर पर गिर सकते हैं, इस अध्ययन के निष्कर्ष प्रशासनिक प्रसार के कुछ सकारात्मक पहलुओं को उजागर करते हैं।
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टिप्पणियाँ:
- अगस्त 2022 तक।
- 73वें और 74वें संविधान संशोधन अधिनियम के तहत स्थानीय स्वशासन की एक त्रिस्तरीय प्रणाली को स्थापित किया गया है, जिसके आधार के रूप में ग्राम-सभा (गाँव या गाँवों के समूह में मतदाता सूची में पंजीकृत सभी व्यक्ति शामिल हैं) राज्य विधानमंडलों द्वारा इसे सौंपे गए कार्य और शक्तियों के अनुसार अपना कार्यनिष्पादन करती है।
- उदाहरण के लिए, कर्नाटक राज्य में वर्ष 1997 में कर्नाटक में मौजूदा मैसूर जिले से एक नया जिला चामराजनगर बनाया गया था। मैसूर के 11 उप-जिलों में से, चार को स्थानांतरित कर दिया गया और उन्हें एक नए जिले में गठित किया गया, जिनका नया मुख्यालय चामराजनगर उप-जिले को बनाया गया।
- नाईट-टाइम लुमिनोसिटी को अक्सर आर्थिक उत्पादन के लिए एक प्रॉक्सी के रूप में चुना जाता है क्योंकि यह आउटपुट के साथ अत्यधिक सह-संबद्ध है, उच्च रिज़ॉल्यूशन पर उपलब्ध है, और इसे विशिष्ट रूप से मानवीय गतिविधियों (शेन और नॉर्डहॉस 2011) के साथ जोड़ा जा सकता है।
- भिन्नात्मकता इस संभावना का एक उपाय है कि दो यादृच्छिक रूप से चुने गए व्यक्ति दो अलग-अलग सामाजिक श्रेणियों से संबंधित होंगे– यहाँ एससी, एसटी या ओटीएच। यदि क्षेत्र के विभिन्न सामाजिक समूह जनसंख्या की दृष्टि से कमोबेश समान रूप से मजबूत हों तो भिन्नात्मकता अधिक होती है। यदि एक समूह संख्यात्मक रूप से हावी है तो क्षेत्र कम भिन्नात्मक है।
- असमानता, जिले की भिन्नात्मकता-सहित उप-जिले की भिन्नात्मकता की एक तुलना मीट्रिक है जिसमें यह स्थित है। असमानता हमें यह दर्शाती है कि क्या उप-जिले का उस जिले से भिन्न जनसांख्यिकीय वितरण है जिसमें वह स्थित है।
- जनगणना के आंकड़े तीन श्रेणियों- अनुसूचित जाति (एससी), अनुसूचित जनजाति (एसटी) और अन्य (ओटीएच) में जनसंख्या डेटा प्रदान करते हैं।
लेखक परिचय: दीपक सेंटर फॉर पब्लिक पॉलिसी, भारतीय प्रबंधन संस्थान बैंगलोर में एसोसिएट प्रोफेसर हैं। ज्योत्सना राजन भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, कानपुर में औद्योगिक और प्रबंधन इंजीनियरिंग विभाग में सहायक प्रोफेसर हैं।
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