मानव विकास

समय पर चेतावनी’ के रूप में स्कूल में अनुपस्थिति

  • Blog Post Date 17 अगस्त, 2023
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जब बच्चे अक्सर स्कूल में अनुपस्थित रहते हैं तो यह इस बात का संकेत हो सकता है कि वे प्रतिकूल व्यक्तिगत परिस्थितियों से गुज़र रहे हैं। अनुराग कुंडू इस लेख में, स्कूलों में छात्रों की उपस्थिति पर नज़र रखने और कमज़ोर छात्रों को सहायता प्रदान करने के लिए बड़े पैमाने के एक हस्तक्षेप संबंधी अनुभव की चर्चा करते हैं, जिससे छात्रों के स्कूल वापस आने में मदद मिल सकती है। वे स्कूलों में बेहद कम उपस्थिति के कारण सीखने और स्वास्थ्य परिणामों पर पड़ने वाले प्रतिकूल प्रभावों और छात्रों की परिस्थितियों को समझने और उचित हस्तक्षेप डिज़ाइन करने के लिए स्कूलों में उनकी उपस्थिति को ट्रैक करने की आवश्यकता पर प्रकाश डालते हैं।

दिल्ली के जैतपुर की 16 वर्षीय प्रिया और तुगलकाबाद की 16 वर्षीय दिव्या1 पिछले साल लगातार 12 दिनों तक स्कूल नहीं गईं। इस अवधि में लगातार 12 दिनों तक अनुपस्थित रहने वाले केवल यही दो बच्चे नहीं थे, बल्कि दिल्ली सरकार के स्कूलों के 3,629 अन्य बच्चे भी लगातार 12 दिनों तक अनुपस्थित रहे। हमने देखा कि बच्चे जिन प्रतिकूलताओं का सामना कर रहे हैं, उनके कारण अक्सर या नियमित रूप से अनुपस्थित रहते हैं। इनमें गम्भीर बीमारी, चोट लगना, मादक द्रव्यों का सेवन, प्रियजनों की मृत्यु, कम उम्र में शादी, बाल श्रम और बदमाशी आदि शामिल हैं, जिनके चलते उनका स्कूल जाना छूट जाता है या वे पढ़ाई ही छोड़ देते हैं।

हमने उन बच्चों के बारे में जानकारी ली जो लगातार सात दिनों तक स्कूल नहीं गए थे, या जिनकी उपस्थिति पिछले महीने की तुलना में 33% कम हो गई थी। उनमें से लगभग आधे गम्भीर बीमारी या चोट के कारण अनुपस्थित थे ; 1,945 बच्चों ने अपने परिवार के किसी सदस्य को खो दिया था ; 51 छात्राओं का विवाह कराया गया था ; शारीरिक दंड मिलने के कारण 50 बच्चों ने पढ़ाई छोड़ दी थी ; 6,943 बच्चों ने स्कूल छोड़ दिया था ; और कुल मिलाकर 46 बच्चे लापता थे, जिन्हें ढूंढने पुलिस जुट गई थी। साथियों का दबाव, मादक द्रव्यों का सेवन और शर्म या स्कूल जाने का डर भी कम उपस्थिति का एक कारक हो सकता है।

इसके चलते, दिल्ली बाल अधिकार संरक्षण आयोग (डीसीपीसीआर) को बच्चों की उपस्थिति पर नज़र रखने, उन्हें आवश्यक सहायता प्रदान करने और उन्हें स्कूलों में वापस लाने के लिए बड़े पैमाने का एक हस्तक्षेप शुरू करना पड़ा। इसे 'समय-पर-चेतावनी प्रणाली' का नाम दिया गया। इस हस्तक्षेप के तहत वास्तविक रूप से यानी रियल-टाइम में हर दिन दिल्ली के सरकारी स्कूलों के लगभग 19 लाख बच्चों की उपस्थिति की निगरानी की और उन बच्चों को, जो लगातार सात या अधिक दिनों तक अनुपस्थित थे या जिनकी उपस्थिति 33% से कम हो गई थी, उन्हें 'जोखिम में' छात्रों के रूप में चिह्नित किया गया। इन छात्रों तक पहुंचने के लिए आयोग की हेल्पलाइन के माध्यम से या स्कूल प्रबंधन समितियों, क्लस्टर समन्वयकों और नागरिक समाज संगठनों की मदद से घर पर जाकर मिलना तय करके एक आउटरीच तंत्र तैयार किया गया

बच्चों द्वारा स्कूल छोड़ना रोकने के लिए 12 महीनों की अवधि में 45,000 से अधिक होम विजिट्स किए गए। इस तरह पाया गया कि प्रिया के स्तन में एक सिस्ट हो गया था और दिव्या की शादी तय हो चुकी थी, इसलिए उनके माता-पिता को उनकी शिक्षा जारी रखवाने का कोई मतलब नहीं दिख रहा था। दोनों लड़कियाँ जिन परिस्थितियों का सामना कर रही थीं, उस संदर्भ में उनकी अनुपस्थिति ‘समय-पर- चेतावनी’ थी।

स्कूल में अनुपस्थिति को समझना और उसका हल निकलना

अपने बच्चों की शिक्षा के प्रति गम्भीरता से सोचे जाने के लिए माता-पिता को प्रेरित करने, हजारों बार अनुवर्ती कार्रवाई या फॉलो-अप और 45,000 होम विजिट्स के माध्यम से अब इन बच्चों की परिस्थितियों को बेहतर ढंग से समझने में सहायता मिली है। इससे उनकी समस्या का समाधान करने के लिए ‘गवर्नन्स’ में अधिक समझ और सहानुभूति आ पाते हैं

इन हस्तक्षेपों के माध्यम से, लगभग 40,000 बच्चों को समर्थन देने, प्रेरित करने और स्कूल वापस लाने में सफलता मिल पाई है। शारीरिक दंड, बाल विवाह, माता-पिता की मृत्यु, या ऐसे अन्य कारणों के गम्भीर मामलों के लिए यह हस्तक्षेप एसएमएस या आईवीआर कॉल से लेकर हेल्पलाइन-आधारित वैयक्तिकृत कॉल और होम विजिट्स तक फैला हुआ है। हेल्पलाइन कॉल तथा होम विजिट्स के माध्यम पाए गए अनुपस्थिति के अधिक गम्भीर मामले, अक्सर छात्र की कमजोरी की सीमा के आधार पर एक विशिष्ट प्रकार के हस्तक्षेप के बाद सामने आए। विश्लेषण से पता चलता है कि हेल्पलाइन कॉल जैसे सरल हस्तक्षेप से छात्रों के स्कूल में दोबारा आने की संभावना लगभग 10% बढ़ जाती है। इसी प्रकार, अनुपस्थिति के बारे में उनके माता-पिता को एक दैनिक एसएमएस ने छात्रों (मुख्य रूप से किशोर लड़कों) के ‘स्कूल-बंक’ करने में लगभग 45% की कमी आई और इस प्रकार स्कूलों में उनकी उपस्थिति की दर में सुधार हुआ।

इस प्रक्रिया में इन हस्तक्षेपों ने लगभग 3,100 बच्चों को उच्च-स्तरीय सहायता भी प्रदान की है। इसमें चिकित्सा सहायता प्रदान करना, जिन बच्चों ने अपने रिश्तेदारों को खो दिया है उनके लिए शिक्षकों से परामर्श और अधिकतम सहायता प्रदान करना, कुछ बाल विवाहों को रोकना और विभिन्न सरकारी योजनाओं के तहत वित्तीय सहायता के लिए बच्चों के परिवारों को नामांकित करना, वर्दी या किताबों का वितरण न होने के कारण स्कूल छोड़ने की घटनाओं को रोकना शामिल हैं। आयोग ने बच्चों के लापता हो जाने, माता-पिता की कैद, या शारीरिक दंड या बदमाशी संबंधी मामले में भी सीधा हस्तक्षेप किया। इन बच्चों की सहायता के लिए प्रशासन आगे आया।

‘समय-पर-चेतावनी प्रणाली’ से सीख

प्रतिकूल परिस्थितियों में जीने वाले बच्चों का पता लगाने, पहचानने और उनका समर्थन करने संबंधी प्रक्रियाओं को स्पष्ट रूप से निर्धारित करने से यह सुनिश्चित किया जा सकता है कि प्रत्येक बच्चा स्कूल जा रहा है और पढ़ाई कर रहा है। हमने कुछ सबक सीखे हैं जो देश के बाकी हिस्सों के संदर्भ में भी प्रासंगिक हैं क्योंकि स्कूलों में कम उपस्थिति एक ‘देशव्यापी समस्या’ है। उदाहरण के लिए, पिछले साल भारत के 21% स्कूलों में छात्रों की कुल संख्या का आधा या उससे कम उपस्थिति दर्ज की गई थी। एक समय, उत्तर प्रदेश के लगभग एक-तिहाई वरिष्ठ माध्यमिक छात्र किसी भी विशिष्ट दिन अनुपस्थित रहे थे (सिंह 2015)। आम तौर पर, हाई स्कूल में अनुपस्थिति प्राथमिक स्कूल की तुलना में अधिक होती है, क्योंकि वंचित छात्र बड़े होने पर पढ़ाई छोड़ देते हैं।

प्रतिकूल परिस्थितियों में बच्चों की सहायता के लिए स्कूलों में उनकी उपस्थिति पर नज़र न रखना और ‘डिफ़ॉल्ट हस्तक्षेप’ का निर्माण किया जाना इस बात का संकेत है कि प्रशासन निष्क्रिय और उदासीन नहीं है। नई शिक्षा नीति के घोषित लक्ष्य- सार्वभौमिक मूलभूत साक्षरता और संख्यात्मकता (यूनिवर्सल एफएलएन) को प्राप्त करने के लिए स्कूलों में उपस्थिति पर नज़र रखने की आवश्यकता है। शिक्षा की वार्षिक स्थिति संबंधी रिपोर्ट (एएसईआर) में खराब अधिगम परिणामों की उल्लेखनीय व्याख्या यह की गई है कि छात्र सीखने के लिए स्कूलों में ही नहीं हैं। इसलिए, कोई आश्चर्य की बात नहीं है कि कक्षा 5 के केवल 53% छात्र ही कक्षा 2 के पाठ पढ़ सकते हैं। अलग-अलग अध्ययन, खराब अधिगम परिणामों के प्रमुख कारण के रूप में छात्रों की अनुपस्थिति को दर्शाते आए हैं (उदाहरण के लिए, गार्सिया और वेईस 2018 और अक्कस और सिंकुर 2022 देखें)।

यह देखते हुए कि स्कूलों में कम उपस्थिति पोषण के लिए मध्याह्न भोजन, एनीमिया की रोकथाम के लिए आयरन-फोलिक एसिड की गोलियों और किशोरियों के लिए सैनिटरी पैड का वितरण सहित अन्य प्रावधानों की प्रभावशीलता को कम करता है और उसे सीमित करता है। कम उपस्थिति केवल शिक्षा के परिणामों के लिए नहीं, बल्कि स्वास्थ्य और पोषण संबंधी कारणों से भी विनाशकारी है। हमारे जैसे देश में, जहां आधी से अधिक किशोरियां एनीमिया यानी खून की कमी से पीड़ित हैं, इस महत्त्वपूर्ण कारक का समाधान करना किया जाना अनिवार्य है।

निष्कर्ष

दिव्या और प्रिया की उपस्थिति हमारे सिस्टम के लिए उनकी प्रतिकूल परिस्थितियों का पता लगाने, पहचानने और उसका हल खोजने की सबसे पहली चेतावनी थी। इसके बावजूद देश में उपस्थिति संबंधी ऐसा डेटा शायद ही एकत्र किया जाता है।

देश का सबसे बड़ा डेटा संग्रह फ्रेमवर्क- शिक्षा के लिए एकीकृत जिला सूचना प्रणाली (यूडीआईएसई), स्कूलों में उपस्थिति संबंधी डेटा एकत्र करने में सक्षम नहीं है और इसलिए सिस्टम स्तर पर कक्षा की वास्तविकता से हमें दूर करता है। समय आ गया है, खासकर ऐसे समय में जब हम ऐसा करने की स्थिति में हैं कि इसमें सुधार होना चाहिए। क्योंकि अब अधिकांश शिक्षक मोबाइल एप्लिकेशन का उपयोग करने लगे हैं और उपस्थिति संबंधी डेटा एकत्र करना आसान है।

दिव्या और प्रिया की कहानियाँ जानने के लिए, स्कूल में उनकी उपस्थिति पर नज़र रखना हमारे कार्य  का पहला क्रम होना चाहिए। प्रिया की साल 2022 जुलाई में सर्जरी हुई थी, अब वह स्वस्थ है और नियमित रूप से स्कूल जाती है। दिव्या ने दिसंबर 2022 में स्कूल में 100% उपस्थिति दर्ज की और अपनी बोर्ड परीक्षाओं में शामिल हुई। वह एक व्यवसायी महिला चाहती है और विश्वास है कि वह ऐसा कर पाएगी

(इस लेख में लेखक द्वारा व्यक्त विचार उनके निजी हैं।)

नोट :

  1. लड़कियों के नाम बदल दिए गए हैं।

अंग्रेज़ी के मूल लेख और संदर्भों की सूची के लिए कृपया यहां देखें।

लेखक परिचय : अनुराग कुंडू  दिल्ली सरकार में बाल अधिकार आयुक्त रहे हैं और इस भूमिका में दिल्ली के 60 लाख बच्चों की शिक्षा, स्वास्थ्य, पोषण और सुरक्षा की जिम्मेदारी उनके कार्यक्षेत्र में शामिल थी।

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