गरीबी तथा असमानता

कोविड-19 राहत: क्या महिला जन धन खाते नकद हस्तांतरण के लिए सही विकल्प हैं?

  • Blog Post Date 26 जून, 2020
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Anmol Somanchi

Paris School of Economics

anmol.somanchi94@gmail.com

भले भारत सरकार द्वारा कोविड-19 हेतु राहत पैकेज की घोषणा की गई है, जिसमें खाद्य राशन प्रदान किए जाने के साथ-साथ नकद हस्तांतरण को भी उचित स्‍थान दिया गया है, परंतु नकद हस्‍तांतरण हेतु महिला जन धन बैंक खातों की सूची का उपयोग करने के बारे में स्थिति स्पष्ट नहीं है। इस लेख में, अनमोल सोमांची यह दिखाते हैं कि कैसे आधे से कुछ कम परिवार इस नकद हस्तांतरण से वंचित रह जाएंगे, और इस व्यवस्था में क्या कमियाँ हैं।

कोरोना महामारी की प्रतिक्रिया स्‍वरूप वित्त मंत्री द्वारा 26 मार्च 2020 को घोषित राहत पैकेज का एक महत्वपूर्ण घटक प्रधानमंत्री जन धन योजना1 (पीएमजेडीवाई) के तहत सभी 20 करोड़ महिला बैंक खातों में तीन महीने (अप्रैल-जून 2020) के लिए 500 प्रति माह रुपये का प्रत्यक्ष नकद हस्तांतरण था। भले राहत पैकेज में खाद्य राशन प्रदान किए जाने के साथ-साथ नकद हस्तांतरण को भी उचित स्‍थान दिया गया है, परंतु नकद हस्‍तांतरण हेतु महिला जन धन बैंक खातों की सूची का उपयोग करने के बारे में स्थिति स्पष्ट नहीं है। किसी संकट के समय में, राहत के उपायों का प्रगतिशील होना, उनमें न्यूनतम बहिष्करण त्रुटियां होना और उनका लाभार्थियों तक विश्वसनीय रूप से तथा समय पर पहुंचना आवश्‍यक है। इस लेख में, मैंने व्यक्तिगत और पारविारिक स्तर पर महिलाओं के पीएमजेडीवाई खातों की व्‍यापकता का अनुमान लगाया है, व्‍यापकता और लक्ष्यीकरण के अलावा कुछ अन्य मुद्दों पर और अंत में विकल्पों पर एक संक्षिप्त चर्चा की है।

सार्वजनिक स्रोतों (नीचे वर्णित) से मिले आंकड़ों पर आधारित एक स्वतंत्र कार्य (पांडे एवं अन्य, 2019) का अनुमान है कि व्यक्तिगत स्तर पर लगभग आधी गरीब महिलाओं के पास पीएमजेडीवाई खाता होने की संभावना नहीं है। इस आलेख में मैं, शहरी और ग्रामीण महिलाओं के लिए व्यक्तिगत स्तर के कवरेज का अनुमान लगाने के लिए, उनके विश्लेषण का विस्तार करता हूँ। यह देखते हुए कि एक घर के लोग संसाधनों को आपस में बांटते हैं, ऐसी संकट में और भी ज्यादा, एक नीति के दृष्टिकोण से पीएमजेडीवाई खातों के घरेलू स्तर के कवरेज को जानना भी महत्वपूर्ण है। हालांकि, इस तरह की जानकारी भ्रामक है - न तो सरकारी डेटा और न ही हाल ही में राष्ट्रीय प्रतिनिधि घरेलू सर्वेक्षण इस संबंध में सहायक हैं। यह कम से कम आंशिक रूप से इस लिए है क्योंकि कई महिलाओं को पता नहीं है कि क्या उनके पास पीएमजेडीवाई खाता है या नहीं, इसलिए अधिकांश घरेलू सर्वेक्षणों से जानकारी गायब है। इस अंतर को भरने के लिए, व्यक्तिगत-स्तर के कवरेज के अनुमानों और साधारण संभाव्यता गणनाओं के आधार पर, मैं उन परिवारों के अनुपात का अनुमान लगाता हूँ जिनमे पीएमजेडीवाई खाताधारी एक भी महिला के नहीं होने की संभावना है। इसके बाद, मैं कवरेज और लक्ष्यीकरण के अलावा कुछ अन्य मुद्दों को उजागर करता हूँ, और विकल्पों पर एक संक्षिप्त चर्चा के साथ समाप्त करता हूँ।

आंकडों के स्रोत

सरकार के पीएमजेडीवाई पोर्टल पर प्रकाशित आंकड़ों के अनुसार, अप्रैल 2020 की शुरुआत में खातों की संख्या 38.23 करोड़ थी। इनमें से ग्रामीण/अर्ध-शहरी क्षेत्रों में महिलाओं और व्यक्तियों के क्रमशः 20.72 करोड़ और 22.67 करोड़ खाते हैं। विश्व बैंक के अनुमान के अनुसार, 2018 में भारत की वयस्क (15+ वर्ष) महिलाओं और ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाली महिलाओं की जनसंख्या की हिस्सेदारी क्रमशः 47.58 करोड़ और 66% लाख थी। अंत में, गरीबी में रहने वाली महिलाओं की हिस्सेदारी और गरीब महिलाओं के महिला पीएमजेडीवाई कुल खातों की हिस्सेदारी के आंकड़े राष्ट्रीय प्रतिनिधि वित्तीय समावेशन अंतर्दृष्टि (एफआईआई) 2018 सर्वेक्षण2 से प्राप्‍त किए गए हैं।

तालिका 1. उपलब्ध द्वितीयक आंकड़े

सूचक

मान

स्रोत

कुल पीएमजेडीवाई खाते (करोड़)

38.23

पीएमजेडीवाई पोर्टल, अप्रैल 2020

कुल ग्रामीण/अर्ध-श‍हरी पीएमजेडीवाई खाते (करोड़)

22.67

पीएमजेडीवाई पोर्टल, अप्रैल 2020

महिलाओं के स्‍वामित्‍व वाले कुल पीएमजेडीवाई खाते (करोड़)

20.72

पीएमजेडीवाई पोर्टल, अप्रैल 2020

कुल वयस्‍क (15+) जनसंख्‍या (करोड़)

98.67

विश्‍व बैंक अनुमान, 2018

कुल वयस्‍क (15+) महिला जनसंख्‍या (करोड़)

47.58

विश्‍व बैंक अनुमान, 2018

ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाली जनसंख्‍या का अनुपात

66%

विश्‍व बैंक अनुमान, 2018

सभी वयस्‍क महिलाओं में से गरीब महिलाओं का अनुपात

69%

एफ़आईआई, 2018

गरीब महिलाओं द्वारा धारित महिला का अनुपात

75%

एफ़आईआई, 2018

बहिष्करण का अनुमान

जैसा पांडे एवं अन्‍य (2020) तालिका 1 में दिए गए आंकड़ों का उपयोग करते हुए बताते हैं एक वयस्क महिला की पीएमजेडीवाई खाता नहीं होने की संभावना की गणना समग्र जनसंख्‍या के साथ-साथ गरीब, शहरी और ग्रामीण महिलाओं के लिए की जाती है (तालिका 2 की पहली पंक्ति देखें)।

आइए हम इन व्यक्तिगत-स्तरीय संभावनाओं को 'p' से वर्णित करें। यह मानते हुए कि पीएमजेडीवाई खातों का यादृच्छिक ढंग से वयस्क जनसंख्‍या में बंटन किया जाता है (और किसी भी व्यक्ति के पास दो पीएमजेडीवाई खाते नहीं हैं), एक वयस्क महिला वाले एक परिवार के लिए, सभी महिला घरेलू सदस्यों के पास पीएमजेडीवाई खाता नहीं होने की संभावना p के बराबर है (आइए हम इसे P कहते हैं); दो वयस्क महिलाओं वाले परिवारों के लिए, P = p2 के बराबर है; तीन वयस्क महिलाओं वाले घरों के लिए, P = p3 के बराबर है; और इसी तरह आगे। इन गणना की गई P को परिवारों की कुल वयस्क महिलाओं की संख्या, एनएफएचएस-4 (राष्‍ट्रीय परिवार स्‍वास्‍थ्‍य सर्वेक्षण) और एफआईआई 2018 सर्वेक्षणों से प्राप्त, द्वारा बंटन के साथ जोड़ा जाता है ताकि परिवार में किसी भी वयस्क महिला के पास पीएमजेडीवाई खाता न होने की समग्र संभावना तक पहुंचा जा सके (तालिका 2 की पहली देखें)।

तालिका 2. पीएमजेडीवाई से बहिष्करण

सूचक

कुल

गरीब

शहरी

ग्रामीण

एक वयस्‍क महिला की पीएमजेडीवाई खाता न रखने की संभावना

56%

53%

52%

61%

एक परिवार में किसी भी महिला के पास पीएमजेडीवाई खाता न होने की संभावना

43%

38%

37%

46%

स्रोत: तालिका 1 से आंकड़ों का उपयोग करते हुए लेखक की गणना, एफआईआई 2018 (’सभीऔर गरीबपरिवारों के बंटन हेतु), और एनएफएचएस-4 (‘शहरीऔर ग्रामीण परिवारों के बंटन हेतु)। 3

सभी महिलाओं में से आधी से अधिक महिलाएं, और सभी परिवारों में से आधे से कुछ कम परिवार नकद राहत से बाहर रह जाएंगे। व्यक्तिगत और घरेलू स्तर पर इस बहिष्करण के गरीबों में कम लेकिन ग्रामीण क्षेत्रों में काफी अधिक होने की संभावना है। यदि हम इस तथ्य पर ध्यान देते हैं कि फरवरी 2020 तक, प्रत्येक पाँच पीएमजेडीवाई खातों में से एक 'निष्क्रिय' था, तो यह बहिष्करण यहाँ सुझाए गए आंकड़ों से भी अधिक होने की संभावना है। इसके अलावा, इस बात की भी संभावना है कि पीएमजेडीवाई खाता न रखने वाली महिलाएं अपने साथ घोर अन्याय होना महसूस करें। यदि महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (मनरेगा)4 के तहत नियोजित उन श्रमिकों का को देखें, जिनके पास पहले से ही एक बैंक खाता है और उन्‍होंने इसलिए पीएमजेडीवाई खाता नहीं खोला है5। निश्चित रूप ऐसे लोग बिना अपनी गलती के इस राहत से वंचित रह जाएंगे, जो सामान्य समय में भी सबसे अधिक कमजोर हैं।

परिवार-स्तर के बहिष्करण के लिए ये अनुमान मानते हैं कि पीएमजेडीवाई खातों को वयस्क जनसंख्‍या में यादृच्छिक ढंग से बंटन किया जाता है। इस अभिधारणा का परीक्षण एफआईआई 2018 सर्वेक्षण के आंकड़ों का उपयोग करके महिला वयस्कों के समग्र बंटन और मुख्य जनसांख्यिकीय चरों (आयु, परिवार के आकार, धर्म, साक्षरता, गरीबी की स्थिति) के अनुसार एक पीएमजेडीवाई खाते धारक महिला वयस्कों के बंटन की तुलना करते हुए किया जा सकता है। कम से कम इन सूचकों हेतु, यह अनुमान (आश्चर्यजनक रूप से) लगता है कि औसत महिलाओं की तुलना में गरीब महिलाओं के पास पीएमजेडीवाई खाता होने की संभावना थोड़ी अधिक है। हालांकि, इससे यह तथ्‍य नहीं छिपना चाहिए कि कुल महिलाओं में गैर-गरीब महिलाओं का अनुपात (31%), गैर-गरीब महिलाओं द्वारा धारित पीएमजेडीवाई खातों के अनुपात (25%) से बहुत अलग नहीं है, जिसका अर्थ है कि अभी भी समावेशन त्रुटियों के उच्च होने की संभावना है। दूसरी ओर, ऐसा संभव है कि इस संकट ने कई और लोगों को गरीबी में धकेल दिया हो, जिसका अर्थ यह होगा कि गरीब जनसंख्‍या के लिए बहिष्करण का यह अनुमान कम हो सकता है। इन अनुमानों के अनुरूप, डालबर्ग द्वारा अप्रैल 2020 की शुरुआत में यादृच्छिक रूप से चयनित 6,915 (स्व-रिपोर्ट किए गए) गरीब परिवारों के सर्वेक्षण के शुरुआती नतीजों में पाया गया कि 43% परिवारों में किसी भी महिला का पीएमजेडीवाई खाता नहीं है (टोटापल्‍ली एवं अन्‍य 2020)। यह भी ध्यान देने योग्य है कि पीएमजेडीवाई खाता होना समावेशन की गारंटी नहीं दे सकता है - अजीम प्रेमजी विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं द्वारा किए गए एक सर्वेक्षण के शुरुआती परिणामों से पता चलता है कि महिला पीएमजेडीवाई खाते वाले लगभग 15% परिवारों को अप्रैल में नकद हस्‍तांतरण प्राप्त नहीं हुआ था।

अन्य चिंताएँ

समावेशन और बहिष्करण त्रुटियों के अलावा, कम से कम तीन अन्य चिंताएं भी हैं।

पहली चिंता, जैसा कि खेरा (2020) और पांडे एवं अन्‍य (2020) ने दर्शाया है, ग्रामीण बैंक शाखाओं का घनत्व कम है और वित्तीय संस्थानों से निकटता एक चिंता का विषय है। एफआईआई 2018 सर्वेक्षण के अनुसार, एक तिहाई से कुछ कम महिलाओं की 1 किमी के भीतर और केवल दो-तिहाई महिलाओं की 5 किमी के भीतर बैंक शाखा तक पहुंच है। एटीएम तक पहुंच भी इसी के समान है, लेकिन केवल 27% वयस्कों के पास ही एटीएम/डेबिट/रूपे कार्ड है। बैंकिंग सहायक और आधार6 माइक्रो-एटीएम निश्चित रूप से बैंक शाखाओं की पहुंच का विस्तार करके उनकी मदद कर सकते हैं, लेकिन 2018 तक, इनकी उपस्थिति सीमित लगती है (तालिका 3 देखें)। भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के हालिया आंकड़ों से पता चलता है कि ग्रामीण क्षेत्रों में प्रति लाख व्यक्तियों पर लगभग 534 बैंकिंग सहायक (केवल 54 बैंक शाखाओं की तुलना में) हैं, जिनमें से लगभग 80% वर्तमान में प्रचालनरत हैं (नारायण 2020)। फिर भी, जैसा कि लॉकडाउन के दौरान मीडिया की रिपोर्ट बताती है कि अब भी बैंक शाखाओं पर निर्भर होने की संभावना अधिक है।

तालिका 3. वित्तीय संस्थानों से निकटता

संकेतक

1 किमी के भीतर

5 किमी के भीतर

पहुंच के साथ वयस्‍क महिलाओं का अनुपात (%):

बैंक शाखा

एटीएम मशीन

बैंकिंग एजेंट या सहायक

आधार माइक्रो-एटीएम

28

22

13

8

69

56

31

18

स्रोत: एफआईआई 2018

दूसरी चिंता यह है कि भुगतान और प्रमाणीकरण प्रणाली से जुड़े कई मुद्दे भी बहिष्‍करण में शामिल हो सकते हैं। डीबीटी (प्रत्‍यक्ष लाभ हस्‍तांतरण) मिशन के आंकड़े बताते हैं कि पिछले दो वर्षों में सामाजिक सुरक्षा पेंशन और मातृत्व अधिकार संबंधी भुगतान में भुगतान विफलताओं की दर 1% और 7% (निम्‍न सीमा) के बीच रही है (खेरा और सोमांची 2020)। ये मुद्दे आधार-आधारित और गैर-आधार दोनों भुगतानों को प्रभावित करते हैं, हालांकि आधार पेमेंट ब्रिज सिस्टम (एपीबीएस) की ओर जाने में तीव्रता बरतने के कारण मुसीबतों (धोराजीवाला एवं अन्य 2019) में संभवतया और बढ़ोतरी हुई है। इसके अलावा, आज बैंकिंग सहायक के साथ लेन-देन में अक्सर आधार-सक्षम भुगतान प्रणाली (एईपीएस) के माध्यम से आधार-आधारित बायोमेट्रिक प्रमाणीकरण शामिल होता है, जो सार्वजनिक स्वास्थ्य चिंता और बहिष्करण का एक संभावित कारण है। पहले ही कई रिपोर्टों में बताया जा चुका है कि लॉकडाउन के दौरान एईपीएस लेनदेन में वृद्धि के परिणामस्वरूप असफल लेनदेन की दर बढ़ गई है (पालेपू 2020, राघवन एवं शाह 2020)।

तीसरी चिंता, पीएमजेडीवाई के साथ जुडी एक निश्चित अस्पष्टता इस मुद्दे को बदतर बना देने को लेकर है। पीएमजेडीवाई खाताधारकों की सूची न तो गरीबों के लिए बहुत अच्छी तरह से लक्षित है और न ही यह सार्वभौमिक है (जिनके लिए यह बनाई गई थी उनमें से कोई नहीं)। सार्वजनिक रूप से उपलब्ध जानकारी से जो कुछ एकत्रित की जा सकती है, उसके अनुसार पीएमजेडीवाई सूची में किसी को शामिल किया जाना कुछ हद तक मनमाना लगता है। अगस्त 2014 में आरंभ होने के बाद, मीडिया में पागलपन की हद तक प्रचार करते हुए, पीएमजेडीवाई खातों को सरकारी लक्ष्यों (सिन्हा एवं आजाद 2018) को पूरा करने के लिए सावधानी के साथ खोला गया था। यद्यपि इसका घोषित उद्देश्य यह था कि ऐसे लोग जो अभी तक बैंकिंग सुविधाओं से वंचित हैं उनके लिए वर्ष 2015 के अंत तक बैंक खाते खोले जाएं, परंतु जिन लागों के ये खाते खोले गए थे उनमें से मोटे तौर पर एक तिहाई लोगों के पास पहले से ही एक और बैंक खाता था (शर्मा एवं अन्‍य 2016)। इसके अलावा, जैसा कि ऊपर उल्लेख किया गया है, इनमें से हर पांच खातों में से लगभग एक खाता निष्क्रिय है और उनकी स्थिति के बारे में कोई अतिरिक्त जानकारी भी उपलब्ध नहीं है। वास्तव में, यह अस्पष्टता इतनी व्यापक है कि जो सर्वेक्षण पीएमजेडीवाई पर जानकारी प्रदान करते हैं, जैसे कि FII सर्वेक्षण जिसे पांडे एवं अन्य (2020) और मैंने गरीब आबादी के बीच पीएमजेडीवाई के कवरेज का अनुमान लगाने के लिए उपयोग किया हैं, वे केवल एक अधूरी तस्वीर प्रदान करता है। एफआईआई सर्वेक्षण व्यक्तियों से यह जानकारी लेता है कि क्या उनका बैंक खाता "पीएमजेडीवाई या इसी तरह किसी योजना" के तहत पंजीकृत है - शायद यह पीएमजेडीवाई खाता होने के बारे में सही अनुमान करने में कठिनाई का स्पष्ट प्रतिबिंब है। वैसा ही मामला ऊपर उल्लिखित डालबर्ग सर्वेक्षण का है, जिसका अर्थ है कि उनके घरेलू स्तर के पीएमजेडीवाई कवरेज के अनुमान एक ऊपरी सीमा दर्शाते हैं। इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि कई महिलाएं यह नहीं जानती कि उनके पास पीएमजेडीवाई खाता है या नहीं, इसलिए वे इस उम्‍मीद पर लंबी दूरी तय करके बैंकों में कतार में लगती हैं कि उनके खाते में कुछ पैसा मिल जाए लेकिन वे खाली हाथ ही वापस लौट जाती हैं। यह अस्पष्टता राशन कार्ड या मनरेगा श्रमिकों या सामाजिक सुरक्षा पेंशनरों की सूची के विपरीत है, जहां सूचियां जांच के लिए सार्वजनिक रूप से उपलब्ध हैं, बड़े पैमाने पर लक्षित और विश्वसनीय हैं (ड्रेज और खेरा 2017), और ज्यादातर मामलों में, लाभार्थी अपनी समावेशन स्थिति के बारे में निश्चित हैं।

विकल्‍प

बोरा एवं अन्‍य (2020) और घोष (2020) द्वारा दिए गए तर्कानुसार पीएमजेडीवाई के लिए एक विकल्प सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) सूची का उपयोग करना होगा। इस दृष्टिकोण में उच्चतर समग्र व्‍यापकता होगी, व्यक्तियों के बजाय परिवारों को मज़बूती से लक्षित किया जाएगा, और इसमें बहिष्करण और समावेशन त्रुटियां कम होंगी। इसके अलावा, सभी उपलब्ध सरकारी सूचियों में से, कमजोर आबादी के अधिकतम हिस्से को शामिल करने की संभावना पीडीएस में अधिक है, विशेष रूप से अंत्योदय अन्न योजना (एएवाई) के तहत शामिल किए गए लोगों को। हालांकि, पीडीएस लाभार्थियों के लिए यह ‘दोगुनी या कुछ नहीं' रणनीति होगी - पीडीएस लाभार्थियों को जुड़वां लाभ (अनाज और नकद) परंतु राशन कार्ड रहित लोगों के लिए कुछ नहीं। इसके अलावा, आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार, केवल 20% से कम राशन कार्ड बैंक खातों के साथ जोड़े गए हैं। पीडीएस अनाज के बदले बैंक खातों में नकद हस्तांतरण के हालिया प्रयोग सतर्क रहने के कई कारण प्रदान करते हैं।

एक अन्य स्पष्ट पसंद, मनरेगा जॉब कार्ड की सूची होगी, जैसा कि खेरा (2020) ने तर्क दिया है। जबकि इसके अनुसार समग्र व्‍यापकता ग्रामीण क्षेत्रों में महिलाओं के पीएमजेडीवाई खातों के लगभग समान होगी, यह दृष्टिकोण सबसे कमजोर परिवारों (मनरेगा के स्व-लक्ष्यीकरण प्रकृति के कारण) की ओर निर्देशित होगा, और केवल पीडीएस पर निर्भरता से बचा जा सकेगा। यह सुनिश्चित करने के लिए कि शहरी गरीबों को बाहर नहीं किया गया है, इसे शहरी क्षेत्रों में पीडीएस/पीएमजेडीवाई परिवारों को नकद हस्तांतरण के साथ पूरक किया जा सकता है। किसी भी स्थिति में, यह देखते हुए कि लॉकडाउन के कारण अप्रैल में मनरेगा गतिविधियों को बंद कर दिया गया था और रोजगार सृजन 5 साल के सबसे निचले स्तर पर आ गया था, सरकार को मनरेगा श्रमिकों को पर्याप्त राहत देने पर गंभीरता से विचार करना चाहिए।

एक संकट के दौरान, यह आवश्यक है कि नकद सहायता विश्‍वसनीय तरीके से लाभार्थियों तक पहुंचे और वे समय पर इसका उपयोग कर सकें। भुगतान एवं प्रमाणीकरण प्रणाली और पहुंच से संबंधित उपरोक्त चुनौतियों के साथ विभिन्न मुद्दों को ध्यान में रखते हुए, पीडीएस राशन की दुकानों या मनरेगा के कार्यस्‍थलों पर नकद राशि दिए जाने पर विचार किया जा सकता है। लॉकडाउन के दौरान ओडिशा और तमिलनाडु ने पहले ही इस तरह का उपाय अपनाया है।

अंत में, नकद हस्तांतरण की वर्तमान राशि 500 रुपए प्रति माह (तीन महीने के लिए) बिल्‍कुल अपर्याप्त है, खासकर लॉकडाउन की वजह से खाद्य कीमतों में वृद्धि को देखते हुए (नारायणन और साहा 2020)। यहां तक ​​कि सबसे गरीब 20% लोगों में भी प्रति व्यक्ति औसत मासिक खपत व्यय इस राशि से अधिक है (रे एवं अन्‍य 2020)। संकट को कम करने और अर्थव्यवस्था में मांग को पुनर्जीवित करने के दृष्टिकोण से इस राशि को तत्काल बढ़ाने की आवश्यकता है।

एफआईआई सर्वेक्षण आंकड़ों को साझा करने हेतु और कृषानु चक्रवर्ती, जौन ड्रीज एवं रीतिका खेरा को उपयोगी टिप्पणियों हेतु लेखक की ओर से धन्यवाद।

नोट्स:

  1. प्रधानमंत्री जन धन योजना (पीएमजेडीवाई) भारत सरकार की प्रमुख वित्तीय समावेशन योजना है। यह हर परिवार के लिए कम से कम एक बुनियादी बैंकिंग खाते के साथ बैंकिंग सुविधाओं; वित्तीय साक्षरता, क्रेडिट बीमा और पेंशन सुविधा के लिए सार्वभौमिक पहुंच की परिकल्पना करती है।
  2. एफआईआई सर्वेक्षण, ग्रामीण फाउंडेशन के गरीबी संभावना सूचकांक (पीपीआई) का उपयोग करता है ताकि पारिवारिक विशेषताओं, वित्तीय स्थिति, सुविधाओं और परिसंपत्तियों से संबंधित 10 सरल प्रश्नों के जवाब के आधार पर अमरीकी डॉलर 50/दिन के नीचे रहने वाले व्यक्तियों के संख्या की संभावना का आकलन किया जा सके।
  3. तकनीकी रूप से, एफआईआई आंकड़े पीपीआई चर व्यक्तिगत-स्तर की गरीबी को इंगित करते हैं। हालांकि, चूंकि एफआईआई आंकड़े घरेलू स्तर की गरीबी के लिए एक चर प्रदान नहीं करते हैं, और यह देखते हुए कि पीपीआई के अधिकांश प्रश्न पारिवारिक विशेषताओं से संबंधित हैं, मैं व्यक्तिगत स्तर के पीपीआई चर को पारिवारिक स्तर की गरीबी के लिए एक प्रतिनिधि के रूप में मानता हूं।
  4. मनरेगा एक ग्रामीण परिवार को एक वर्ष में 100 दिनों के मजदूरी-रोजगार की गारंटी देता है, जिसके वयस्क सदस्य राज्य-स्तरीय वैधानिक न्यूनतम मजदूरी पर अकुशल शारीरिक काम करने को तैयार हैं।
  5. भले ही हम यह मानें कि 2013-14 के बाद खोले गए सभी मनरेगा बैंक खाते पीएमजेडीवाई खाते हों (ऐसा होने की संभावना नहीं है), मनरेगा एमआईएस (nrega.nic.in) के आंकड़ों से पता चलता है कि 43% मनरेगा खाते गैर होंगे।
  6. आधार या विशिष्ट पहचान संख्या (यूआईडी) भारत सरकार की ओर से भारतीय विशिष्ट पहचान प्राधिकरण (यूआईडीएआई) द्वारा जारी 12 अंकों की एक व्यक्तिगत पहचान संख्या है। इसके अंतर्गत प्रत्येक निवासी की बायोमेट्रिक पहचान - 10 अंगुलियों के निशान, आंख की पुतली की पहचान और फोटोग्राफ ली जाती हैं और इसे भारत में कहीं भी पहचान और पते के प्रमाण के रूप में प्रयोग करने हेतु बनाया गया है।

लेखक परिचय: अनमोल सोमंची इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट (आईआईएम) अहमदाबाद में रिसर्च एसोसिएट हैं।

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